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Sunday, August 8, 2021

 
 बाजार में घेवर की भरमार
-तीज पर्व पर होती है अधिक मांग
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 कनीना। कनीना की विभिन्न दुकानों पर घेवर की मिठाई की भरमार है। विभिन्न प्रकार की ये मिठाइयां उपलब्ध हैं जो तीज एवं सिंधारा पर्व पर उपभोग की जाती है।
 मैदा से निर्मित ऐसी मिठाई का लेन-देन तीज पर्व पर किया जाता है। महेंद्र शर्मा, सुरेश कुमार, रवि कुमार ने बताया कि मावा युक्त घेवर सबसे अधिक प्रचलित है वहीं उनकी मांग अधिक होने कारण महंगे हैं जबकि सामान्य घेवर कुछ सस्ते हैं। तीज एवं सिंधारा पर्व पर ससुराल में रह रही लड़की के परिजन उनसे मिलने आते हैं और घेवर, बताशा पेठा, आदि मिठाई उपहार स्वरूप देकर जाते हैं। बाजार में फल और सब्जियां बेशक कम नजर आए किंतु घेवर की मिठाई अधिक नजर आती है। गत कई दिनों से हलवाई घेवर की मिठाई बनाने में लगे हुए हैं ताकि लोगों की मांग पूरी हो सके। दो सालों से कोरोना की मार झेलकर अब हलवाई घेवर मिठाई बना रहे हैं।
फोटो कैप्शन 13: बाजार में उपलब्ध घेवर की मिठाई।




हर वर्ष पौधारोपण कर गांव में नई हरित ककराला साइट तैयार कर रही है ग्रामीण संस्था
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कनीना। खंड के गांव ककराला में बाबा भैया सेवा दल ने पौधारोपण मुहिम 2021 के तहत मुक्ति धाम परिसर में 100 पौधें लगाकर नई हरित साइट का शुभारंभ किया। पौधारोपण के साथ ही 400 पौधें व 70 ट्री गार्ड पर्यावरणविदों ने ग्रामीणों को वितरित किये। विगत दिनों सरपंच कृष्ण सिंह के हाथों त्रिवेणी लगाकर मुहिम की शुरुआत की गई। संस्था बेहतर सोच लेकर चल रही है तथा नये आयास स्थापित कर रही है। लक्की सीगड़ा ने कहा कि एक ग्रामीण परिवेश में ये संस्था संगठित होकर, ग्रामीणों के साथ मिलकर जिस स्तर पर हर वर्ष पौधारोपण मुहिम चला रही है, क्षेत्र के सभी पर्यावरणविदों के लिये बहुत शुभ संकेत है। सँस्था न केवल पौधारोपण करती है बल्कि उनके देखभाल के सारे इंतजाम सुनिश्चित करके हर वर्ष एक नई हरित साइट विकसित कर रही है। पर्यावरण समन्वयक इंद्रपाल शर्मा ने बताया कि इस वर्ष संस्था ने मुक्ति धाम को अभियान के लिये चयनित किया था।  टीम पानी की व्यवस्था व पौधारोपण जगह की तैयारियों में लगातार जुटी हुई थी। हर वर्ष की भांति ज्यादा से ज्यादा ग्रामीणों को पर्यावरण मुहिम से जोडऩे के लिये पौधों व ट्री गार्ड के पंजीकरण भी लिये गये थे। इस वर्ष की मुहिम में 300 पौधें व 80 ट्री गार्ड ग्रामीणों को देखभाल की शपथ दिलाकर वितरित किये, 100 पौधे राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल ककराला प्रांगण के लिये भेंट किये हैं व 100 पौधे मुक्ति धाम साइट पर लगाकर संस्था ने देखभाल की जिम्मेदारी ली है। संस्था के कुछ लोग परिसर तक पानी पहुंचाने में आर्थिक मदद की है। अध्यक्ष महेश कुमार ने बताया कि सँस्था पिछले 5 वर्षों से पौधे लगाने से ज्यादा, उनकी देखभाल पर धन, समय व श्रम लगा रही है।  उन्होंने  कहा कि ग्रामीणों का ऐसे ही सहयोग रहा तो ये एक दिन आदर्श व हरे भरे गांव ककराला के सपने को हम जरूर पूरा करते हुये देखेंगे।
यह संस्था साल भर पौधे लगाने तथा देखभाल करने में लगी रहती है। यही कारण है कि संस्था का दूरदराज तक नाम है।
फोटो कैप्शन 17: पौधारोपण करते ककराला संस्था के लोग।




जंगली चौलाई हरी सब्जी का विकल्प बनकर रही है उभर
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 कनीना। बेहतर हरी सब्जी के विकल्प के रूप में जंगली चौलाई प्रसिद्ध होती जा रही है। ग्रामीण लोग तो इसे विभिन्न रूपों में खा रहे हैं। सब्जी महंगी होने तथा हरी सब्जी न मिलने के कारण हरी सब्जी का बेहतर विकल्प बन गया है।
  किसी जमाने में ग्रामीण क्षेत्रों में चौलाई, श्रीआई, पुआड़, बथुआ, नूनिया, जंगली टिंडा, कोहेंद्रा तथा पुनर्नवा इतने प्रसिद्ध थे कि निरोगी काया रखते थे। घर में मेहमान आते थे तो भी वे महंगी सब्जी खरीदकर नहीं लाते थे अपितु खेतों में खरपतवार के रूप में पाई जाने वाली बेहतर सागों का ही उपयोग करते थे। अब उनका अस्तित्व ही समाप्त हो गया है।
    वर्तमान में बाजार में सब्जियों के भाव आसमान छू रहे हैं। हरी सब्जी के रूप में महज पालक मिलता है जिसकी कीमत भी दस रुपये प्रति 100 ग्राम से अधिक है। उस पर ये सब्जियों जहरीली दवाओं से युक्त होती हैं। दवा विक्रेताओं का कहना है कि सब्जी उगाने वाले किसान अति घातक दवाएं खरीदकर ले जाते हैं जिनका उपयोग वे सब्जी पैदा करने में करते हैं। ये दवाएं कैंसर, हृदयघात, मिरगी, दमा एवं कई घातक बीमारियों का कारण बन रही हैं।
  गरीब जन तो सब्जी खरीद भी नहीं पा रहे हैं। गरीबों के लिए ऐसे में कंटीली चौलाई बिना उर्वरक एवं कीटनाशी की हरी सब्जी उन्हें मिल पा रही है। वास्तव में यह अमरंथस है जो अति तेजी से फैल रहा है।
क्या कहते हैं बुजुर्ग-
जंगली चौलाई से मिलती जुलती चौलाई मिलती थी। यह बारिश में गर्मियों के मौसम में पैदा होती थी जिसका उपयोग देसी साग बनाने तथा जायकेदार परांठे आदि बनाने के काम में लेते थे। कढ़ी, खाटा का साग, पकौड़ी तथा भाजी के अलावा रायता बनाने के काम में लेते थे। श्रीआई भी गर्मियों में बाजरे की फसल के साथ उगने वाला चौड़ी पत्ती का खरपतवार होता था जिसका उपयोग चौलाई की भांति किया जाता था।  ये कई प्रकार की विटामिन, खनिज लवण प्रदान करते थे। खून, पेट के विकार में ये रामबाण होते थे।  किसान राजेंद्र सिंह, सूबे सिंह, कृष्ण कुमार ने बताया कि उन्होंने श्रीआई, चौलाई एवं कंटीली चौलाई को प्रयोग करके देखा है।शहरों के सब्जी बाजार में चौलाई की जगह जंगली चौलाई भी बिक रही है।
क्या कहते हैं डाक्टर एवं वैद्य-
डा अजीत शर्मा, वैद्य बालकिशन करीरा, डा कालू, डा वेदप्रकाश आदि से कंटीली चौलाई के विषय में चर्चा की तो उन्होंने कहा कि ये कम से कम शरीर में खनिज लवण एवं विटामिन तो प्रदान करती हैं। पेट के रोगों में काम आती हैं। मुफ्त में बेहतर सब्जी मिल जाती है। ऐसे में वे कंटीली चौलाई खाने की सलाह देते हैं।
क्या कहते हैं वनस्पतिशास्त्री-
वनस्पति शास्त्री रविंद्र कुमार का कहना है कि कंटीली चौलाई वास्तव में अमेरिका से आया हुआ बीज है जो अमरंथस स्पीशिज नाम से जाना जाता है। यह लोहा, मैग्रेशियम, मैंग्रीज, पोटाशियम के अलावा विटामिनों से परिपूर्ण होता है। उन्होंने बताया कि यह पेट की बीमारी, कैंसर, हैजा, गनोरिया, बुखार, पेट के अल्सर, मूत्र विकार, महिला ब्रेस्ट में दूध बढ़ाने के काम आता है। अनिमिया के शिकार को जरूर प्रयोग करना चाहिए। इसे साग के रूप में प्रयोग करना लाभप्रद है।  
फोटो कैप्शन 14: जंगली चौलाई ।  



 बारिश जल खड़ा होने से किसानों की फसल हुई तबाह
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 कनीना। कनीना उपमंडल के विभिन्न गांवों में अधिक बारिश से जहां भावी फसल को तो लाभ होगा किंतु वर्तमान बाजरे की फसल नष्ट हो गई है। अधिक पानी के चलते बाजरा का पीला पड़ गया है और धीरे-धीरे समाप्त हो रहा है। कनीना क्षेत्र में अकेले एक सौ किसानों की फसल खराब हो गई है जहां वर्तमान में भी पानी खड़ा है। पानी खड़ा होने से धीरे-धीरे 3 से 4 दिनों में फसल खत्म हो जाती है। विगत दिनों से कनीना क्षेत्र में 200 एमएम से अधिक बारिश फसलों के लिए नुकसानदायक साबित हुई है।
किसान सूबे सिंह, अजीत कुमार, कृष्ण कुमार आदि ने बताया की ढलान वाले क्षेत्रों में जो फसलें उगाई गई थी उनमें पानी खड़ा हो गया है। वर्तमान में भी सैकड़ों किसानों के खेतों में पानी खड़ा हुआ है। बारिश का यह जल न सूखने के कारण फसल तबाह हो गई है। बार-बार किसान नेता मुआवजे की मांग कर रहे हैं। किसानों ने भी अपनी फसल का बीमा करवाया था जिसके चलते उन्हें उम्मीद है कि इस बार फसल नष्ट होने का मुआवजा उन्हें मिल जाएगा।
कनीना की बावनी नामक भूमि पर ही जहां रामगढ़ डिस्ट्रीब्यूटर के आसपास झील होने के कारण वर्षा का जल खड़ा हुआ है। किसान बेहद परेशान है। मेहनत पर पानी फिर जाने से किसानों को भावी फसल पर आश टिकी है।
फोटो कैप्शन 12: खराब होती कनीना क्षेत्र के किसानों की बाजरे की फसल।


 
नहर का पुल बना है समस्या
-कई दुर्घटनाएं घट चुकी हैं
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 कनीना। कनीना के प्रसिद्ध धार्मिक स्थान बाघोत गांव के पास सीहोर- छितरौली सीधे मार्ग पर बना पुलिया आफत बना हुआ है। बाघोत गांव के नजदीक से नहर गुजरती है जहां पर खड़ा पुलिया होने की वजह से दिखाई नहीं देता और रात के समय अनेकों घटनाएं घटित हो चुकी है। इस पुल पर विगत 1 साल में आधा दर्जन वाहन इस नहर में गिर चुके हैं। सौभाग्य से इस नहर में पानी यदा-कदा आने से जान की हानि नहीं हुई। हीरालाल, महेश कुमार, दिनेश कुमार ने बताया कि पहले स्कूल पर दीवार नहीं थी किंतु अब दीवार तो बना दी उसे भी क्षतिग्रस्त कर दिया है। बाहरी वाहन चरखी दादरी के लिए इस सड़क मार्ग से गुजरने लगे हैं जिसके चलते यह पुल आफत बना हुआ है। 90 डिग्री के कोण पर बनाया गया यह पुल रात के अंधेरे में दिखाई नहीं देता। वैसे भी यहां प्रकाश की व्यवस्था नहीं है जिसके चलते वाहन दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं। यदि इस पुल को सड़क के अनुरूप बना दिया जाए तो दुर्घटनाओं में कमी आ सकती है। क्षेत्र के लोगों ने मांग की है कि पुल को सड़क के अनुरूप पुन: निर्मित किया जाए।
 फोटो कैप्शन 13: सड़क पर बना पुल
14: भारी वाहन पुल को पार करते हुए।



 पत्रकारों की समस्याओं को वरीयता के आधार पर हल करने का होगा प्रयास-प्रधान
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 कनीना। हरियाणा पत्रकार संघ के जिला अध्यक्ष प्रदीप बालोदिया तथा जिला संरक्षक आनंद शर्मा कनीना के पत्रकारों से प्रथम औपचारिक बैठक करने के लिए कनीना पहुंचे। इस मौके पर विभिन्न पत्रकारों ने जिला अध्यक्ष का
फूल मालाओं से स्वागत किया। इस मौके पर जिला अध्यक्षप्रदीप बालरोडिय़ा ने कहा कि पत्रकार दिन रात जन सेवा में जुटे रहते हैं और अनेकों समस्याएं उनके सामने आती हैं। इन समस्याओं से जूझना ही पत्रकारों का एक पेशा बनकर रह गया है। ऐसे में जिन समस्याओं को हल किया जा सके उन्हें स्वयं मिल बैठकर हल करेंगे और जिनका निवारण उच्चस्तर पर हो सकेगा उनका भी समाधान निकालने का हर संभव प्रयास किया जाएगा। उन्होंने कहा कि एकजुटता से अगर काम ले तो छोटी बड़ी हर समस्या का कोई न कोई समाधान हो सकता है। उन्होंने कहा कि इस वक्त सदस्यता अभियान चलाया हुआ है और इस अभियान को उत्कर्ष तक ले जाना है।
 इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार दीपचंद यादव ने पत्रकारों के लिए की जाने वाली बीमा पालिसी पर गहन मंथन करके बताया कि अनेकों पालिसी बाजार में उपलब्ध है जो पत्रकारों के मृत्यु के बाद ही नहीं अंग भंग होने पर भी आर्थिक मदद देती है।
हमें उन पालिसी से संपर्क करना चाहिए तथा सभी को पॉलिसी के दायरे में लाकर लाने का प्रयास करना चाहिए। इस अवसर पर विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की गई तथा महेश गुप्ता, एचएस यादव, मनोज रोहिल्ला, कपिल यादव, सुशील मित्तल, इंद्रजीत शमर्,ा कर्मवीर यादव सहित विभिन्न पत्रकार मौजूद थे।
 फोटो कैप्शन 9: प्रदीप बालरोडिय़ा का स्वागत करती कनीना प्रेस।  




अच्छी बारिश के बाद किसानों में खुशी
-पतंगबाजी में आई तेजी
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 कनीना। हरियाली तीज के दृष्टिगत पतंगों की बहार आ गई है। करीब 200 एमएम बारिश के बाद किसान प्रसन्न हैं। बच्चे एवं युवा वर्ग पतंग उड़ाने के मामले में अधिक सक्रिय है। कनीना क्षेत्र में सर्वाधिक पतंगबाजी हरियाली तीज पर होती है। आगामी 11 अगस्त को हरियाली तीज का पर्व मनाया जा रहा है। बाजार में घेवर की मिठाई,राखी एवं पतंग पर्याप्त मात्रा में मिल रहे हैं।
  बाजारों में दुकानों पर पतंग एवं डोर खूब बिक है। युवा हो या बच्चा अपनी छतों पर सुबह शाम पतंगबाजी करता है। जिस दिन स्कूलों की छुट्टी होती है उस दिन तो बच्चे अपने घरों की छतों से नीचे ही नहीं आते हैं।  
   पतंगबाजी में युवा एवं बच्चों की अधिक भागीदारी होती है। दुकानदार योगेश कुमार, कृष्ण कुमार, रोहित कुमार आदि ने बताया कि इस बार पतंगबाजी के लिए युवा वर्ग में उत्साह अधिक है क्योंकि पतंगबाजी बारिश एवं अच्छी फसल की खुशी में अधिक उड़ाई जाती हैं। इस बार बेहतर बारिश एवं लहलहाती बाजरे की फसल देखी जा रही है।
   अक्सर ग्रामीण क्षेत्रों में दो प्रकार की पतंग हवा में उड़ाई जाती है। एक पतंग के पूंछ होती है दूसरी बगैर पूंछ की होती है। बगैर पूंछ की पतंग को पतंगबाजी के एक्सपर्ट जन ही लुत्फ उठा सकते हैं किंतु पूंछ वाली पतंग को छोटे बच्चे तक हवा में उड़ाकर लुत्फ लेते हैं। इन पतंगों के पेच लड़ाए जाते हैं। एक वक्त था जब कनीना के वर्तमान राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय के पास पतंग उड़ाने की प्रतियोगिता चलती थी तथा मेला लगता था किंतु वर्तमान में दोनों बंद हैं।
   हरियाली तीज के दिन तो दिनभर डेक पर संगीत चलता है और छतों पर कई कई बच्चे इक_े होकर पतंगबाजी करते देखे जा सकते हैं। एक तरफ डेक का शोर सुनाई पड़ता है।
फोटो कैप्शन 10: छत पर पतंग उड़ाते छोटे बच्चे।



 

कनीना मंडी शिविर में पहुंचे 145 मरीज
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 कनीना। रविवार को सेवा भारती हरियाणा प्रदेश शाखा द्वारा 41वां हृदय रोग एवं नेत्र रोग जांच एवं परामर्श शिविर का आयोजन किया गया। विगत 40 शिविरों में लगातार सेवा दे मेट्रो अस्पताल एवं रोग संस्थान रेवाड़ी से डा अश्विनी यादव ने अपनी टीम त्रिभुवन, गौरव, सुनील, परवीना सहित सेवा प्रदान की। इसी प्रकार डाक्टर आरबी यादव अस्पताल यादव रेवाड़ी से से डा आकाश सिंह डॉ सुमित पाहन नेत्र रोग विशेषज्ञ सहित तेजपाल खैरवाल ने रोगियों की जांच की। शिविर में इसीजी, बीपी, शुगर की निशुल्क जांच की गई, चश्मे एवं दवाइयां भी वितरित की गई। इस अवसर पर सेवा भारती कनीना के प्रधान सुरेश शर्मा, शिव कुमार अग्रवाल, श्याम सुंदर बंसल, जगदीश आचार्य, नरेश पार्षद, सुनील कुमार, अमित कुमार ,योगेश अग्रवाल, योगेश गुप्ता, दयाराम मोहनपुर, प्रेम सिंगला सहित सेवा भारती के सदस्य उपस्थित थे।
 फोटो कैप्शन 7: कनीना मंडी में आयोजित शिविर में जांच करते डाक्टर।



एसडीवमा विद्यालय ककराला में अध्यापक- अभिभावक बैठक का आयोजन
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कनीना। एसडीवमा विद्यालय ककराला में आज अध्यापक- अभिभावक बैठक का आयोजन किया गया। इस बैठक में 785 अभिभावकों पहुंचे। सभी अभिभावकों ने  अपने बच्चों के भविष्य के लिये विद्यालय प्रबंधन व सभी संबधित अध्यापकों के साथ विचार विमर्श किया। सभी अभिभावकों ने अपने बच्चों की दिनचर्या, उनके व्यवहार, समय-सारणी, रुचि आदि से संबधित पहलुओं से प्रबंधन व संबधित अध्यापकों से परिचित करवाया। विद्यालय निदेशक व प्राइवेट स्कूल एसोसिएशन कनीना के प्रधान  जगदेव यादव ने अध्यापक-अभिभावक बैठक के महत्व पर प्रकाश डालते हुये बताया कि हम अपने आपको गौरवशाली समझते हैं कि हमारे अभिभावक इतने जागरूक व सजग है कि अध्यापक-अभिभावक बैठक के महत्व को समझते हैं। छात्र के भविष्य निर्माण में विद्यालय प्रबंधन के साथ महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभा रहे हैं।  उन्होंने कहा कि यह बैठक केवल छात्र के केवल शैक्षिक पक्ष की जानकारी के लिये नहीं बल्कि छात्र के सम्पूर्ण व्यवहार, रुचियों व सामथ्र्यता से संबधित बातों के आदान-प्रदान के लिये आयोजित की जाती है। इन चीजों के बिना अध्यापक-अभिभावक बैठक का मकसद पूरा नहीं हो सकता। छात्र अभिभावक का विचार-विमर्श छात्र के जीवन को एक नई दिशा प्रदान करता है। उसके जीवन के सकारात्मक व नकारात्मक पहलुओं की समीक्षा करके उसके अंदर सकारात्मकता का संचार करता है।  उन्होनें कहा कि शिक्षण एक त्रि-आयामी प्रक्रिया है। ये तीन पक्ष है अध्यापक, अभिभावक व विद्यार्थी। इनमें से कोई दो अक्सर साथ रहते हैं परंतु तीनों एक साथ इस प्रकार के आयोजनों में ही होते हैं जिसका प्रमुख केन्द्र बिंदु छात्र ही होता है।
फोटो कैप्शन 8: पीटीएम ककराला ।

 

वीर चक्र सूबेदार रामकुमार को उनकी शहादत के दिन याद किया
-हवन आयोजित किया, पुष्प अर्पित किये
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कनीना। कनीना के वीरचक्र प्राप्त सूबेदार रामकुमार को उनकी 56वीं शहादत पर उन्हें याद किया गया। हवन आयोजित किया तथा उन्हें पुष्प अर्पित किये गये।
  कनीना में गुगनराम नामक एक साधारण व्यक्ति के घर रामकुमार नामक बच्चे का प्रथम जुलाई 1937 को जन्म हुआ। मां का नाम दाना देवी था।
भारत का का अमर सपूत रामकुमार 4 कुमाऊं टुकड़ी के कमांडर के साथ कारलपुर पुल की सुरक्षा के लिए 7 अगस्त 1965 को तैनात किया। दुश्मन की नजर पुल को उड़ाने की थी क्योंकि आवागमन का यही रास्ता था। पुल की दिन भर कड़ी सुरक्षा की गई धीरे-धीरे काली रात आने लगी। रात करीब 11 बजे दुश्मनों की सेना ने मौका देख गोली बारी शुरू कर दी और राकेटों से हमला बोल दिया। भारी संख्या में सैनिक मारे गए। टुकड़ी का कमांडर भी बुरी तरह से घायल हो गया और वह चलने में असहाय नजर आता था। उधर रामकुमार भी खुद गोलीबारी में घायल हो चुका था परन्तु हिम्मत जुटाकर रामकुमार ने कमांडर को कन्धे पर डाल लिया और धीरे-धीरे घसीटते हुए उन्हें दूर ले गया जहां पर दुश्मन का प्रभाव कम था। दुश्मनी सेना ने जमकर गोलीबारी व राकेटों से हमला बोल दिया। नायक रामकुमार के सिने पर गोलियां लगी और शरीर छलनी हो चुका था। वे मातृभूमि के काम आये। भारत के इस वीर सपूत के अदम्य साहस को देख 7 अगस्त 1965 को ही उन्हें मरणोपरांत वीर चक्र देने की घोषणा कर दी गई।
  इस मौके पर पूर्व प्रधान मा दलीप सिंह, अभय सिंह, उप प्रधान अशोक ठेकेदार, विजयपाल चेयरमैन, कर्ण सिंह, सत्यवीर सिंह, शहीद के पुत्र सूबेदार अर्जुन सिंह, भरपूर सिंह, सुनील कुमार, प्रकाश, राजू, अजीत, जीत सिंह, शहीद के पौत्र होशियार सिंह, सूबेदार राम सिंह, नित्यानंद, अमर सिंह, पूर्व एसएचओ अतर सिंह आदि मौजूद थे।
फोटो कैप्शन 5: शहीद रामकुमार की बरसी पर हवन करते हुये।
             साथ में शहीद रामकुमार



असल जिंदगी पर हावी हो रही है वर्चुअल जिंदगी-सूर्यकांत












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कनीना। कोविड-19 के कारण बच्चों की जीवन शैली में बदलाव आया है, उनके व्यवहार का पैटर्न बदल गया है। आजकल बच्चे मोबाइल पर ज्यादा समय बिताने लगे हैं जिसके कारण बच्चे स्मार्ट फोन के एडिक्ट हो रहे हैं।उन्हें मोबाइल पर गेम खेलना व कार्टून फिल्में देखना अच्छा लगता है। यह कहना है उम्मीद कॉउंसलिंग सेंटर डाइट महेंद्रगढ़ के मनोवैज्ञानिक सूर्यकांत यादव का।
 उन्होंने बताया कि इसके अलावा बच्चे आउटडोर की बजाय इंडोर गेम खेलना पसंद करने लगे हैं। मोबाइल पर पढ़ाई करते-करते या तो गेम खेलने लगते हैं या फिर यू ट्यूब देखने लगते हैं। देर तक मोबाइल फोन की स्क्रीन पर नजर गड़ाये रखने से न केवल उनकी आंखों पर असर पड़ रहा है बल्कि उनका मानसिक स्वास्थ्य भी खतरे में पड़ रहा है। बच्चे ही नहीं बल्कि हम सभी मोबाइल फोन के इतने आदि हो गए हैं कि हम अपने फोन के बिना एक घंटा भी नहीं बिताते हैं। यह हमें मानसिक रूप से कमजोर तो बना ही रहा है साथ ही हमें अनेक  मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं,पारिवारिक रिश्तों और सामाजिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
उन्होंने कहा कि चिन्ता की बात यह है कि अभिभावक चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि अभिभावक खुद इसी समस्या के शिकार हैं मतलब मोबाइल एडिक्शन से ग्रस्त हैं। ऐसे में परिवार एक अलग ही परिस्थिति से गुजर रहा है। घर-घर में ऐसी ही समस्याएं देखने को मिल रही हैं। अब तो असल जिंदगी में वर्चुअल जिन्दगी की इतनी दखलंदाजी हो गई है कि प्रत्येक कामकाजी व नौकरी पेशा लोग वर्चुअल मीटिंग एप्स पर इतने सक्रिय हो गए हैं कि आम बातचीत भी इसी प्लेटफार्म पर करने लगे हैं।
वास्तव में इंटरनेट पर अपनी जिंदगी को जीना आधुनिक जीवन की सबसे बड़ी विडंबना है। हर उम्र के लोग खासकर युवा अपनी जिंदगी का 90 प्रतिशत हिस्सा इंटरनेट और उससे जुड़े एप व संसाधनों पर जीते हैं। यदि समय रहते नहीं जागा गया तो वर्चुअल जिंदगी का यह कुचक्र बहुत घातक सिद्ध होगा
उन्होंने बताया कि एक सर्वे के अनुसार 84 फीसदी स्मार्टफोन यूजर्स ने माना है कि वे एक दिन भी अपने फोन के बिना नहीं रह सकते। 95 प्रतिशत लोग हर सुबह उठते ही सोशल मीडिया खंगालते हैं। 63 प्रतिशत लोग मोबाइल ओसीडी के शिकार हैं,जिसमें 20 साल के 70 प्रतिशत सिर्फ युवा हैं।
मोबाइल एडिक्शन से बच्चे को ऐसे बचाएं
मनोवैज्ञानिक सूर्यकांत कहते हैं कि आजकल परिवारों में किसी के पास भी एक-दूसरे के लिए समय नहीं है। कुछ परिवार तो इतने व्यस्त होते हैं कि उनके पास आपस में बात करने का भी समय नहीं होता।इसे दूर करने का अच्छा तरीका परिवार में अनुशासन लाना है। यह नियम बना लें कि कम से कम एक समय का भोजन सभी साथ मिलकर करें। इसके अलावा आउटडोर एक्टिविटीज पर फोकस करें, पैरेंट्स को चाहिए कि वो बच्चों को आउटडोर गेम्स व एकसरसाइज जैसी चीजों के लिए तैयार करें। मोबाइल और इंटरनेट के समय को फिक्स कर दें। मानिटर करते रहें कि बच्चा स्क्रीन पर ज्यादा समय कहां गुजार रहा है।
 बच्चे की स्ट्रेंथ को पहचाने और उसे प्रोत्साहित करते रहें। बच्चे की हाबी को पुनर्बलित करें व उनके साथ वक्त गुजारें। अगर तमाम कोशिशों के बाद बच्चा मोबाइल की लत से नहीं उबर पा रहा है,तो आप प्रशिक्षित मनोवैज्ञानिक/काउंसलर की सलाह लें।
फोटो कैप्शन: सूर्यकांत यादव।

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