Not sure how to add your code? Check our installation guidelines **KANINA KI AWAZ **कनीना की आवाज**

Friday, March 18, 2022

 
कीमती बन गए हैं धांसे एवं पदाड़ी
******************************************
************************************
***********************************
********
कनीना। सरसों की फसल काटने के तुरंत बाद किसान अपने खेत के धांसों को उखाड़ रहे हैं। ईंधन का विकल्प होने के कारण मांग बढ़ गई है। वहीं पदाड़ी भी बिकती है।
  खेतों से किसान जब सरसों फसल की कटाई करते हैं तो कटाई के तुरंत बाद ही खेत से धांसों को उखाड़ लेते हैं। किसानों का कहन है कि एक जमाना था जब धांसों की मांग न के बराबर होती थी। अब महंगाई के युग में ईंधन का विकल्प धांसे बन गए हैं। किसान सरसों की कटाई के तुरंत बाद ही धांसों को उखाड़ लेते हैं।
  धांसों की मांग इस कद्र बढ़ी है कि जिन किसी के पास धांसे नहीं है वे दूसरे किसानों के खेतों से धांसे उखाड़ रहे हैं। गृहणि शकुंत, राधा, आशा ने बताया कि धांसे तेजी से जलते हैं और कहने को धांसे हैं किंतु वे ईंधन के रूप में बेहतर काम नहीं करते। मजबूरी के चलते उन्हें ईंधन के रूप में प्रयोग किया जाता है।
रबी फसल बतौर दक्षिण हरियाणा में उगाई जाने वाली सरसों फसल पैदावार लेने के बाद सरसों के दानों को ढकने वाली बेकार मानी जाने वाली पदाड़ी अब बहुत उपयोगी पदार्थ बन गयी है। यह पदाड़ी अपनी चार अवस्थाओं से होकर गुजर रही है। पहली अवस्था में तो किसान इस पदाड़ी को खेतों में पटक देते थे और यहां तक कि उसे खेत में जलाकर राख कर देते थे। कोई उस पदाड़ी का ग्राहक नहीं होता था। कुछ पशु खा जाते थे या फिर कभी कभार उपले बनाने में काम में लिया जाता था। दूसरी अवस्था में इसकी कीमत आंकी जाने लगी। कुछ लोग इस पदाड़ी को मुफ्त में उठाकर घरों में काम में लेने लगे विशेषकर गरीब तबके के लोग पशुचारे के रूप में काम में लेते थे। तत्पश्चात इस पदाड़ी की थोड़ी बहुत कीमत दी जाने का दौर आया। दूर दराज से लोग अपने गन्ने से गुड़ बनाने या ईंट भ_ा मालिक इसे ईंट पकाने में काम में लेने लगे। वर्तमान युग में पदाड़ी को भारी दामों पर बेचा जाता हैं। कुछ लोग तो पदाड़ी का धंधा ही करने लग गए हैं।
  किसानों के लिए पदाड़ी तो अब कीमती पदार्थ बनता जा रहा है।  भाड़भूजे मूंगफली व पदार्थों की सिकाई करने में काम में ले रहे हैं। उधर गुड बनाने वाले कुछ लोग दूर दराज से आते हैं और पदाड़ी को खरीदकर ले जाने लगे हैं। हालात यह बन गई है कि लोग पदाड़ी के बदले फसल की कटाई का काम भी करने लगे हैं। किसानों को इसका और भी कुछ मोल मिलने के आसार हैं।
     सरसों के अलावा धांसे एवं पदाड़ी की मांग भी दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है। किसान धांसों के बदले सरसों की कटाई करवाने के अलावा पदाड़ी को महंगे दामों पर बेच रहे हैं। खेत से धांसे पहले काटे जा रहे हैं और बाद में सरसों की पैदावार ले रहे हैं।
 विगत वर्षों से गुड़ बनाने वालों को रुझान पदाड़ी की ओर बढ़ गया है और ऐसे में पदाड़ी काफी आय का सौदा बनती जा रही है। सरसों के धांसों की मांग भी दिनोंदिन बढ़ती ही जा रही है। वर्तमान में नौबत यह बन गई है कि किसान अपनी सरसों फसल की कटाई धांसों के बदले करवाने लगे हैं। पदाड़ी के बदले कभी सरसों को थ्रेसर मशीन से निकलवाने का काम करते थे किंतु अब पदाड़ी को बेचने का काम करने लगे हैं और पदाड़ी कीमती बनती जा रही है। किसान राजेंद्र सिंह, सूबे सिंह, अजीत कुमार, कृष्ण कुमार ने बताया कि गेहूं के मुकाबले सरसों की मांग अधिक होने के कारण किसानों का रुझान ही सरसों उगाने की ओर बढ़ता जा रहा है।
फोटो कैप्शन 1: खेत में इक_े किए धांसे।






मच्छरों की हुई भरमार,
-2018 से मलेरिया का कोई केस नहीं
*******************************************
***********************************
****************
कनीना। कनीना क्षेत्र में ज्यों ज्यों सरसों की लावणी हो रही है तथा गर्मी बढऩे लगी है त्यों त्यों मच्छर बढ़ते जा रहे हैं। घरों में मक्खी एवं मच्छर बढऩे से परेशानी होने लगी है। पंखों एवं कूलरों को साफ करके चलने योग्य बनाया जा रहा है। यद्यपि कनीना उप नागरिक अस्पताल के तहत मलेरिया का 2018 से कोई केस नहीं आया है जिसके पीछे जागरूकता बढ़ाना एक कारण माना जाता है। कनीना के सुनील कुमार एमपीएचडब्ल्यू इस क्षेत्र में अहं भूमिका निभाते हैं। और घर घर जाकर मलेरिया, मच्छरों के बारे में जागरूक करते हैं। यही कारण है कि मलेरिया का कोई केस गत वर्षों से नहीं आया है। लोगों का कहना है कि मच्छर एवं मक्खी अभी से ही जीना हराम कर रहे हैं। भविष्य में इनकी संख्या अधिक हो जाएगी।
क्या रही है मलेरिया की स्थिति-
 मलेरिया अधिकारी कार्यभारी शीशराम ने बताया कि मलेरिया समूल नष्टकरने का टारगेट 2025 रखा हुआ है जिसको लेकर के मलेरिया से संबंधित जागरूकता उत्पन्न की जा रही है। उन्होंने बताया कि कनीना क्षेत्र में 2015 में 7 केस मलेरिया के थे, 2016 में 2 केस जबकि 2017 में एक केस मलेरिया का था। 2017 के बाद आज तक कोई भी केस मलेरिया का नहीं आ रहा है।
जागरूकता ने बचाया है मलेरिया से-
 हेल्थ इंस्पेक्टर शीशराम ने बताया कि मलेरिया को खत्म करने में सबसे बड़ी जागरूकता आई है। लोग भी जागरूक हो गए हैं वहीं जागरूक किया भी जा रहा है। जगह जगह जहां पानी जमा होता है, वहां के लोगों को तथा आम ग्रामीण सभी को घर-घर जाकर सूचित किया जा रहा है और मलेरिया से बचने की सावधानियां बताई जा रही है। वहीं मच्छरों से बचने के भी कुछ तरीके ओडोमास, मच्छरदानी तथा अन्य साधन प्रयोग लोग स्वयं अपना रहे हैं जसके चलते मलेरिया के केस नहीं आ रहे हैं। धीरे-धीरे मलेरिया समाप्त होता जा रहा है। आने वाले समय में मलेरिया खत्म हो सकता है और टारगेट पूरा हो सकता है।


शांति से मनाया प्रेम एवं भाईचारे का पर्व धुलेंडी
**********************************************
************************************
**************
 कनीना। कनीना में धुलेंडी का पर्व होली धूमधाम से संपन्न हुआ। होली के पर्व पर किसी अप्रिय घटना का समाचार नहीं मिला है। दिन भर लोग रंग गुलाल से होली खेलते नजर आए।
 उल्लेखनीय है कि युवा वर्ग में पहली बार देखने को मिला कि पानी की बचत कर रहे थे तथा प्राकृतिक रंग एवं गुलाल आदि से होली खेल रहे थे। कृष्ण कुमार, सुरेंद्र कुमार, सुनील कुमार ने बताया कि उन्होंने पहली बार हल्दी, टेसू के फूल, चुकंदर का रस, पत्तों के रस एवं मेहंदी आदि से होली खेली और पानी को बचत की पहली बार क्षेत्र में सूखी होली खेलने को मिली। वहीं यदाकदा कुछ लोग पानी बिखेरते भी नजर आए। वहीं दुुलेंडी के दिन तो दिन भर सड़कों, गलियों में होली खेलते लोग नजर आए। क्षेत्र में भडफ़ एवं जैनाबाद,सीहा, निमोठ, बवानिया आदि गांवों में मेले लगे वहीं  जैनाबाद आश्रम में लाल दास महाराज ने होली खेली और भक्तों पर रंग डाला। भक्तों ने भी महाराज पर रंग डाला। होली का पर्व धूमधाम से विभिन्न संस्थाओं में भी मनाया गया। होली खेलते महिलाएं, पुरुष एवं बच्चे देखे गए।
    कनीना के सामान्य बस स्टैंड पर तथा अनाज मंडी में सभी दुकानें बंद रही और वे होली खेलते देखे गए। विभिन्न संस्थानों एवं समाजसेवियों के अनुरोध पर इस बार कम पानी का प्रयोग हुआ। बच्चे एवं युवा ही अधिक संख्या में होली खेलते मिले।
  दुलेंडी पर अकसर लड़ाई झगड़ा होता रहा है किंतु इस बार शांतिपूर्वक पर्व संपन्न हो गया। पत्रकार, समाजसेवी, नेता एवं सामान्य जन बढ़ चढ़कर गुलाल लगा रहे थे।
फोटो कैप्शन 2 व 3: होली खेलते कनीना के लोग।



अवैध रूप से ले जाई जा रही थी बजरी,ट्रैक्टर ट्राली सीज, मामला दर्ज
************************************************************
*********************************
************************
कनीना। खनिज रक्षक की शिकायत पर अवैध खनन कर बजरी की ढुलाई करने का मामला दर्ज करते हुए ट्रैक्टर ट्रॉली को सीज किया है। एसआई उमेद सिंह ने कनीना-अटेली फाटक के पास चेकिंग कर रहे  थे तो एक ट्रैक्टर ट्राली चालक मौके से फरार हो गया। इसमें सात मिट्रिक टन बजरी भरी हुई थी जिसके चलते ट्राली को सील कर दिया गया तथा मुकेश कुमार डेरोली जाट को जुर्माना भरने का आदेश दिया था। 21 फरवरी 2022 के माध्यम से जुर्माना नोटिस दिया जा चुका है किंतु उन्होंने जुर्माना देने से इनकार कर दिया। इससे पहले भी 4 नवंबर 2019 को अवैध बजरी ढुलाई के  मामले में 3 लाख 63 हजार 268 रुपये जुर्माना लगाया था जो उन्होंने भर दिया गया था किंतु अब यह राशि भरने में असमर्थता जाहिर की है इसके चलते उनके विरुद्ध विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज कर लिया है ट्राली सीज कर दी गई है।




जौ की खेती भूले किसान
-10 हेक्टेयर पर हुई बीजाई
***************************************************
********************************
*********************
कनीना। कनीना क्षेत्र में जौ की खेती कम होती जा रही है।  महज 10 हेक्टेयर पर जौ उगाए गए हैं। जौ की रोटी, राबड़ी तथा धानी आदि बनाकर प्रयोग करते है। अब किसानों को पूजा या राबड़ी के लिए जौ खरीदकर लाने पड़ते हैं।
  कभी कनीना खंड में हजारों एकड़ में जौ की खेती की जाती थी। जौ न केवल पूजा आदि बल्कि हवन, नवरात्रि में,राबड़ी पेय बनाने के लिए ,जौ चने की रोटी खानी हो तो जौ याद आता है। होली पूजा में जौ भूने जाते हैं तो दूर दराज से ढूंढ ढूंढकर जाते हैं।
    किसान अजीत कुमार, सूबे सिंह एवं राजेंद्र सिंह ने बताया कि कम पानी में जौ की पैदावार तो बेहतर होती है किंतु इसकी तूड़ी पशु नहीं खाते वहीं इसके रेट गेहूं की तुलना में कम हैं जिसके कारण जौ नहीं उगाया जाता है।  अब सत्तू, धाणी, पूजा के लिए जौ तथा हवन आदि के लिए जौ बाजार से किसान खरीदते हैं।  गर्मियों में राबड़ी की मांग बढ़ती है तथा ठंडाई के रूप में राबड़ी को प्रति गिलास के हिसाब से बेचा भी जाता है।
कितनी उगाई गई है खेती-
कनीना के कृषि विस्तार अधिकारी डा देवराज यादव ने बताया कि वर्तमान में 30340 हेक्टेयर पर कनीना क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की फसलें उगाई है। उन्होंने बताया कि सबसे अधिक  20760 हेक्टेयर पर जहां सरसों की फसल उगाई गई है।




कोरोना का कोई केस नहीं आया
-आज 1 मरीज ठीक होने के बाद डिस्चार्ज
****************************************
**********************************
************
कनीना। सिविल सर्जन डा.अशोक कुमार ने बताया कि जिला महेंद्रगढ़ में आज कोई भी नया कोरोना वायरस संक्रमित केस नहीं आया। अब जिला में कोरोना पॉजिटिव की कुल संख्या 24750 है। उन्होंने बताया कि आज 1 कोरोना संक्रमित मरीज को डिस्चार्ज किया गया है। अभी तक जिले में कुल 24580 कोरोना संक्रमित मरीज ठीक हो चुके हैं। अब तक जिला में 164 कोरोना संक्रमित मरीजों की मृत्यु हो चुकी है। कोरोना के 6 केस अभी भी एक्टिव हैं। जिले में 18 मार्च तक 249663 नागरिकों की स्क्रीनिंग की गई है। इनमें से 115122 मरीजों में सामान्य बीमारी पाई गई है। उन्होंने बताया कि कोविड-19 के लिए अब तक जिले से 544660 सैंपल भेजे गए हैं। इनमें से 1127 सैंपल की रिपोर्ट आनी शेष है।


मशीनों से लावणी कर







वाना बना मजबूरी
-बहुत कम किसान पसंद करते हैं मशीन
**************************** ***********
**********************************************
कनीना। कनीना एवं आस पास सरसों फसल कटाई का पर्व पूरे यौवन पर है। इस बार दूसरे प्रांतों से मजदूर कम आने से मजबूरन मशीनों द्वारा लावणी का कार्य करवा रहे है। दूसरे प्रांतों के मजदूर होली मना कर इस  क्षेत्र में आएंगे। अभी तक जो मजदूर कार्यरत थे वे भी होली का त्योहार मनाने के लिए वापस आपने प्रांतों में जा चुके हैं।
कनीना क्षेत्र के किसान सुरेश कुमार,  कृष्ण कुमार, सूबे सिंह, अजीत कुमार आदि ने बताया कि 6 मजदूर प्रति दिन एक किला जमीन की सरसों की कटाई 3500 रुपये में कर रहे हैं किंतु मजदूर कम आने से और लावणी का कार्य तेजी से आने से किसान मशीनों द्वारा कटाई का कार्य करवाने लगे हैं। वैसे भी बार-बार मौसम बदल रहा है जिसके चलते किसान लावणी का कार्य जल्द से जल्द पूरा करवाना चाहते हैं।
बहुत कम किसान पसंद करते हैं मशीन को-
कंबाइन हार्वेस्टर मशीन 2800 प्रति एकड़ के हिसाब से सरसों की कटाई का कार्य करती है। पंजाब से आए हुए बलविंदर ने बताया कि वे करीब 2 माह तक यह कार्य यहां करेंगे। पहले सरसों की लावणी करेंगे तत्पश्चात गेहूं की लावणी करेंगे। किसान मशीनों से लावणी कम करवाते हैं क्योंकि मशीनें चारा नष्ट कर देती है। किसानों के लिए चारा तथा सरसों का ईंधन तूड़ी बहुत काम के होते हैं। यही कारण है कि वे मशीन पसंद नहीं करते हैं।
गेहूं लवाणी के वक्त आएंगे किसान-
गेहूं की लावणी में दूसरे प्रांतों के मजदूर मदद कर सकते हैं। किसानों ने बताया कि जो मजदूर आये हुये थे वे भी होली का पर्व मनाने के लिए वापस अपने प्रांतों में जा चुके हैं। इस समय राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश आदि प्रांतों से भारी संख्या में मजदूर आते हैं परंतु विगत वर्ष जहां कोरोना के चलते मजदूर कम आए तो इस बार त्योहार के चलते कम आए हैं।
फोटो कैप्शन 04: मशीनों से कटाई करते हुए।


No comments: