निशान यात्रा के लिए निकल पड़े भक्त खाटू श्याम लिए
-खाटू श्याम में लगता है देश का बड़ा मेला
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कनीना। कनीना हजारों खाटू भक्त विभिन्न श्याम मंदिरों में जाते हैं। यात्रा शुरू हो गई है तथा भक्तों के लिए शिविर लगने लगे हैं। विगत वर्ष कनीना के श्याम मंदिर से एक निशान यात्रा हुडिय़ा जैतपुर स्थित खाटू धाम पहुंची थी जो वर्षों से पदयात्रा करके निशान को खाटू श्याम मंदिरों में पहुंचते हैं।
जानकारी देते हुए श्रीश्याम सेवक मंडल के प्रधान संदीप महेश्वरी ने बताया प्रतिवर्ष श्री श्याम महोत्सव मनाया जाता है जिसमें एक निशान यात्रा कनीना से खाटू धाम जैतपुर तक जाती है। इस यात्रा में सैकड़ों महिलाएं भाग लेती हैं। जैतपुर धाम-कनीना से करीब 22 किमी दूर जैतपुर का खाटू श्याम मंदिर स्थित है जहां 15 मार्च को बड़ा मेला लगने जा रहा है। इस मेले में भक्त निशान लेकर पहुंचते हैं और बाबा को अर्पित करते हैं। हर वर्ष हजारों की संख्या में भक्त जैतपुर जाते हैं। जो भक्त खाटू धाम राजस्थान नहीं पहुंच पाते हैं वे जैतपुर धाम जाते हैं। खाटू श्याम मंदिर एवं श्याम कथा पर कनीना निवासी डा होशियार सिंह यादव ने कृति की रचना की है जिसमें विस्तार से जानकारी हासिल की जा सकती है।
खाटू श्याम मेला-
जैतपुर में 15 मार्च को खाटू श्याम मेला लगेगा जिसमें अपार भीड़ जुटेगी। कलकत्ता तथा अलवर के शृंगारकर्ता प्रतिदिन ताजा फूलों से बाबा का शृंगार करते हैं। करीब 300 वर्ष पुराने इस श्याम मंदिर का विगत वर्षों जीर्णोंद्धार करवाया गया है।
कनीना व आस पास के भक्त जैतपुर जाएंगे। 22 किमी के इस सफर में वे मोहनपुर, भोजावास, रातां से होकर प्रतापुर एवं जैतपुर पहुंचते हैं। इस पदयात्रा में उनके साथ जल एवं खाने पीने का सामान वाहन में साथ साथ चलता है। डीजे पर थिरकते पैर एवं रंग गुलाल में भीगे भक्त खुशी खुशी जैतपुर के लिए रवाना होते हैं।
महाभारत का इतिहास समेटे है बाबा खाटू श्याम
-14 मार्च को लगेगा मेला, किया जाता है निशान अर्पित
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कनीना। राजस्थान में रिंगस से करीब 17 किमी दूर खाटूश्याम धाम पौराणिक इतिहास को समेटे हुए है। यूं तो इस धाम पर वर्ष भर भारी भीड़ चलती है किंतु फाल्गुन शुक्ल एकादशी (14 मार्च)को जो मेला लगता है उसमें अपार जनसैलाब उमड़ता है। यहां कई दिनों पूर्व ही भक्तजन आकर ध्वज चढ़ाने लग जाते हैं। राजस्थान, उत्तर प्रदेश और हरियाणा के अलावा पंजाब के बेशुमार भक्तजन पदयात्रा करके इस धाम पर पहुंचते हैं। पदयात्रियों का जाना शुरू हो गया है जो 15 मार्च तक चलते रहेंगे।
खाटूश्याम की कथा-
श्याम बाबा का नाम बर्बरीक था तथा महाभारत में भीम का पौत्र घाटोत्कच का पुत्र था। जब कौरवों और पांडवों का युद्ध चल रहा था तो बर्बरीक तीन बाण लेकर युद्ध में आया। जब श्रीकृष्ण की नजरें उन पर पड़ी तो उनका परिचय तथा युद्ध में आने का कारण पूछा। बरबरीक ने अपना नाम घटोत्कच पुत्र बबरीकÓ बताया और कहा मैं युद्ध के लिए आया हूं और तीन बाणों से तीन लोकों को बेंध सकता हूं। कृष्ण ने उनकी परीक्षा हेतु सामने खड़े विशाल पीपल के सभी पत्ते एक ही बाण से छेदने के लिए कहा।
बर्बरीक ने एक बाण धनुष पर चढ़ाया और, पीपल के सभी पत्ते छेद डाले। श्रीकृष्ण ने शीश दान में मांगा। बरबरीक ने हाथ जोड़कर एक विनती की कि उन्हें पूरा युद्ध दिखाया जाये।
शीश को ऊंचे पर्वत पर रख युद्ध का हाल देखने दिया। जब पांडव युद्ध जीत गए तो युद्ध में जीत का कारण श्रीकृष्ण का सुदर्शन चक्र तथा द्रोपदी का काल रूप बताया।
बर्बरीक के सच्चे न्याय को सुन श्रीकृष्ण ने उन्हें कलियुग में श्याम बाबा नाम से पूजे जाने का वरदान दिया। इसके बाद शीश नदी में बहा दिया जो चलकर खाटू पवित्र धाम में रुका। तभी से खाटू श्याम स्थल पर श्याम मन्दिर बनाकर पूजा आरम्भ की। मन्दिर में रखा शीश स्वयं उत्पन्न हुआ माना जाता है। विस्तार से खाटू श्याम की जानकारी डा होशियार सिंह यादव लेखक कनीना की कृति से प्राप्त की जा सकती है।
रास्ता -
कनीना से सैकड़ों की संख्या में झंडा लेकर श्री खाटू श्याम की ओर रवाना होते हैं। विभिन्न जिलों और राज्यों के भक्तजन निजामपुर सड़क मार्ग को काटने वाले रेलवे ट्रैक के साथ-साथ चलकर जाते हैं रास्ते में अनेक पड़ाव एवं ठहराव होते हैं। रास्ता कनीना-मोहनपुर-सुंदराह-झीगावन-बेवल-अटा ली-सिहमा-खासपुर-नारनौल- निजामपुर-डाबला- जीलो-मावंडा-नीम का थाना-भागेगा-कांवट-कछेरा-श्रीमाधोपुर-रिंगस- खाटूश्याम।
ठहराव-
खाटूश्याम धाम पर मेला अति दर्शनीय है। राजस्थान के भरने वाले प्रसिद्ध मेले के श्रद्धालुओं के लिए गांव-गांव में ठहरने के लिए शिविर लगाये जाते हैं। श्याम बाबा को पहुंचने वाले श्रद्धालुओं व भक्तों को यहां ठहराकर प्रबंधक विभोर हो जाते हैं। वहीं भक्तों की अच्छी सेवा की जाती है। किसी भी भक्त को रास्ते में कोई परेशानी नहीं आती है। वैसे भी भारी संख्या में भक्त विशेषकर महिलाएं अधिक जाती हैं। रास्ते में नहाने, खाने एवं दवाओं को शिविरों में भी बेहतर प्रबंध होता है।
तैयारी-
खाटूश्याम जाने के लिए एक डंडे पर सवा मीटर का कपड़ा जो खाटू ध्वज के नाम से पूजा अर्चना करने के बाद धारण किया जाता है और रास्ते में किसी कपड़े आदि या साफ जगह पर ही रखा जाता है। सुबह सवेरे खाटू की पूजा करके ही ध्वज को लेकर आगे बढ़ते हैं। सफाई के साथ-साथ मन एवं वचन से पूरे रास्ते शुद्धता का ख्याल रखा जाता है। कांवड़ के मुकाबले खाटूश्याम के नियम लचीले होते हैं। साबुन, तेल, ब्रश आदि की जा सकती है। क्योंकि अधिकांश रास्ता ट्रैक के साथ-साथ होकर गुजरता है। ऐसे में भक्तों को ट्रेन का ध्यान रखना जरूरी है। साभार डा हारेशियार सिंह यादव लेखक कनीना की कृति खाटू श्याम
फोटो कैप्शन 2: श्याम बाबा पर जाते भक्तजन।
दूर दराज तक विख्यात है जैतपुर का श्याम मंदिर
-श्याम बाबा के मेले में 14 मार्च को अपार भीड़ उमड़ेगी
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कनीना। जो भक्त करीब 200 किमी दूर राजस्थान में खाटू श्याम धाम पर नहीं जा सकते हैं उनके लिए जैतपुर का धाम विख्यात है। हुडिय़ा-जैतपुर यहां से 22 किमी दूर राजस्थान में स्थित है जहां पदयात्री निशान लेकर जा रहे हैं। प्रति वर्ष यहां पर कई हजार निशान अर्पित किए जाते हैं और खाटू श्याम भक्त पैदल चलकर जाते हैं। कनीना, अटेली, नारनौल तथा महेंद्रगढ़ के अलावा आस पास के भक्त जो एक ही दिन में अपना निशान खाटू को अर्पित करना चाहते हैं और अधिक दूर चलने में असमर्थ हैं उनके लिए यह खाटू श्याम मंदिर जाना जाता है।
जैतपुर में 14 मार्च को खाटू श्याम मेला लगने जा रहा है जिसमें अपार भीड़ जुटेगी। कलकत्ता तथा अलवर के शृंगारकर्ता प्रतिदिन ताजा फूलों से बाबा का शृंगार करते हैं। करीब 300 वर्ष पुराने इस श्याम मंदिर का विगत वर्षों जीर्णोंद्धारकरवाया गया है।
भक्त अपने घर से खाटू श्याम का निशान लेकर पदयात्रा करता हुआ कनीना से भोजावास तथा राताकलां से जैतपुर पहुंचता है। अपने निशान को बाबा पर अर्पित करके संतुष्ट हो जाता है। भक्तों ने बताया कि इस धाम तक आसानी से पहुंचा जा सकता है। फाल्गुन एकादशी को यहां विशाल मेला लगता है जिसमें भक्त यहां आकर मन्नत मांगते हैं। माना जाता है कि उनकी मन्नतें पूर्ण हो जाती हैं।
कनीना व आस पास के भक्त जैतपुर जाएंगे। 22 किमी के इस सफर में वे मोहनपुर, भोजावास, रातां से होकर प्रतापुर एवं जैतपुर पहुंचते हैं। इस पदयात्रा में उनके साथ जल एवं खाने पीने का सामान वाहन में साथ साथ चलता है। डीजे पर थिरकते पैर एवं रंग गुलाल में भीगे भक्त खुशी खुशी जैतपुर के लिए रवाना हो रहे हैं। भारी संख्या में भक्त आपने साथ अमर ज्योति लेकर जा रहे हैं। यह ज्योति भी जैतपुर धाम पर अर्पित की जा रही है। साभार डा होशियार सिंह यादव कनीना की कृति खाटू श्याम बाबा
फोटो कैप्शन 3: खाटू श्याम जैतपुर का एक दृश्य।
सिमट कर रह गए होली के खेल
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कनीना। कनीना में एक माह तक चलने वाले होली के खेल अब सिमटकर रह गए हैं। होली मनाने के विशेष ढंग, होलीवाला जोहड़ तथा होली पर ईंधन डालने की अनोखी परंपरा अब औपचारिकता बनकर रह गई हैं। कनीना में दो दिन पहले होली का डांडा गाड़ दिया गया है। जबकि गांवों में यह कार्य बसंत पंचमी पर संपन्न हो चुका है।
एक वक्त था जब एक माह तक कनीना क्षेत्र में होली के खेल चलते थे। जब से होली का डांडा गाड़ दिया जाता था तभी से होली के खेल शुरू हो जाते थे। इन खेलों में चांदनी रात में लुक्का छुपी, कोरड़ा मारना तथा स्वांग रचना आदि प्रमुख होते थे। इन खेलों से जहां एक माह उत्सव चलता था वहीं पकती फसल को देखकर भी खुशी मनाई जाती थी। अब न तो वो खेल रहे हैं और न उनके खिलाड़ी।
अब तो लुक्का छुपी का खेल रात को चले तो लोग चोर समझकर पीट डाले। होली के डांडे पर ईंधन डालने का रिवाज भी सिमटकर रह गया है। होलिका दहन से महज पांच सात पूर्व ही ईंधन डालकर खानापूर्ति की जाती है। बुजुर्गों के सहयोग से चलने वाले होली के खेल अब देखने को कम ही मिलते हैं। जहां होली के मधुर मधुर गीत, स्वांग रचना, ढोल एवं ताशें अब किसी मेले में ही देखने को मिल सकते हैं।
बुजुर्ग आज के दिन जब होली का पर्व देखते हैं और सुनते हैं तो एक ही बात कहते हैं कि अब न तो एकता रही और न पहले वाला भाईचारा। अब तो बस आपसी रंजिश एवं एक दूसरे को नीचा दिखाने की परंपरा बढ़ रही है। होलीवाला जोहड़ जहां होलिका दहन किया जाता है उसमें गंदा पानी भरा खड़ा रहता है। मजबूरीवश होलिका दहन के समय महिला एवं पुरुष वहां जाकर प्रह्लाद भक्त की पूजा अर्चना करते हैं। होलिका दहन का पर्व 17 मार्च को मनाया जा
रहा है। साभार डा होशियार सिंह यादव लेखक कनीना की कृति होली का पर्व।
दो बड़े मेलों की हो रही है तैयारियां
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कनीना। फरवरी एवं मार्च कनीना व समीपी क्षेत्रों में दो बड़े मेला लगने जा रहे हैं। इन मेलों में अपार भीड़ जुटती है। वही इन मेलों की तैयारियां जोरों पर चल रही है।
बाबा मोलडऩाथ मेला-
14 मार्च को कनीना का प्रदेश भर में विख्यात संत शिरोमणि बाबा मोलडऩाथ का मेला भरने जा रहा है। संत शिरोमणि बाबा मोलडऩाथ को बालक नाथ, ओघड़ बाबा नाम से जाना जाता है वही कनीनावासी खेड़ा वाला नाम से भी जानते हैं। बस स्टैंड के पास भरने वाले मेले की तैयारियां चल रही है। रंग रोगन किया जा रहा है। इस मेले में पूरे ही कस्बा के लोग शक्कर का प्रसाद अर्पित करते हैं ऊंट और घोडिय़ों की दौड़ पूरे प्रदेश में विख्यात है। विक्रमी संवत 2006 में संत शिरोमणि बाबा मोलडऩाथ ने सिरसवाला जोहड़ में समाधि लगाई थी और वे स्वस्थ होकर समाधिस्थ तो गए थे। उनकी याद में हर वर्ष यहां भारी भीड़ जुटती है और मेला लगता है। अब तो कनीना का बाबा मोलडऩाथ आश्रम श्रद्धा एवं भक्ति का आश्रम बन गया है। इसके आसपास कम से कम एक दर्जन अन्य मंदिर स्थापित हो गए हैं जिसके चलते यह दर्शनीय स्थल भी बन गया है। इसी स्थान पर 24 मार्च को शक्कर मेला लगने जा रहा है। कबड्डी तथा ऊंट घोड़ों की दौड़ के अलावा यहां दंगल भी आयोजित होते हैं। यह मेला कनीना के पूर्वजों ने चलाया था जो आज भी चला आ रहा है।
खाटू श्याम मेला-
14 तथा 15 मार्च को जहां जैतपुर एवं खाटू श्याम (राजस्थान) के विशाल मेला लगने जा रहे हैं जिनको लेकर कनीना ही नहीं अपितु आसपास गांव में शिविर लगाने की तैयारियां चल रही हैं। खाटू श्याम तथा जैतपुर धाम पर भक्त पदयात्रा करते हुए निशान अर्पित करने जाते हैं। दोनों ही स्थानों पर एकादशी एवं द्वादशी के दिन यहां अपार भीड़ जुटती है। जहां खाटू श्याम मेला पूरे ही देशभर में विख्यात है वही जैतपुरा जयपुर स्थित खाटू श्याम मेला भी दूर दराज तक प्रसिद्ध है। कनीना के कई दल इन दोनों ही मेलों में जाकर निशान अर्पित करते हैं। कई वर्षों से निशान अर्पित करने वाले अनिल कुमार का कहना है कि यह दोनों धाम पूरे ही देश नहीं बल्कि विदेशों तक जाने जाते हैं। खाटू श्याम वास्तव में बरबरी का नाम था जो पांडवों में भीम के पौत्र थे। महज तीन बाणों से युद्ध करने के लिए महाभारत युद्ध में पहुंचे थे इसलिए उन्हें तीन बाण धारी तथा नीले घोड़े का सवारी करने वाला नाम से जाना जाता है। कलयुग के श्रीकृष्ण अर्थात श्याम बरबरीक को ही जाना जाता है। धाम पर जहां मेले के लिए विभिन्न गांव से भक्तजन पद यात्रा करने की तैयारियों में जुट गए हैं तथा भक्त रवाना होने लगे हैं। समस्त जानकारी कनीना के लेखक डा होशियार सिंह यादव की कृति खाटू श्याम सेपढ़ सकते हैं।
फोटो कैप्शन 4 कनीना का बाबा मोलडऩाथ आश्रम
06 खाटू द्वार।
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