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Sunday, March 20, 2022

 
जिला में अब कोरोना पॉजिटिव की कुल संख्या 24751
-आज 1 मरीज ठीक होने के बाद डिस्चार्ज
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कनीना। सिविल सर्जन डा.अशोक कुमार ने बताया कि जिला महेंद्रगढ़ में आज 1 नया कोरोना वायरस संक्रमित केस आया है। अब जिला में कोरोना पॉजिटिव की कुल संख्या 24751 है। उन्होंने बताया कि आज 1 कोरोना संक्रमित मरीज को डिस्चार्ज किया गया है। अभी तक जिले में कुल 24585 कोरोना संक्रमित मरीज ठीक हो चुके हैं। अब तक जिला में 164 कोरोना संक्रमित मरीजों की मृत्यु हो चुकी है। कोरोना के 2 केस अभी भी एक्टिव हैं। जिले में 20 मार्च तक 249663 नागरिकों की स्क्रीनिंग की गई है। इनमें से 115122 मरीजों में सामान्य बीमारी पाई गई है। उन्होंने बताया कि कोविड-19 के लिए अब तक जिले से 545965 सैंपल भेजे गए हैं। इनमें से 1242 सैंपल की रिपोर्ट आनी शेष है।
कोरोना संक्रमित की सूची -
1  खेड़ी-1





सोमवार को मनाया जा रहा है बासौड़ा पर्व
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 कनीना। कनीना क्षेत्र में सोमवार को बासौड़ा का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। यह पर्व पुराने समय से मनाया जाता आ रहा है। इस पर्व के प्रति लोगों में गहन आस्था है। रविवार को शीतला मां की पूजा करने के बाद समस्त परिवार बासी भोजन करेगा। करीब आधा दर्जन गांवों में बासौड़ा के छोटे मेले लगते हैं।
  इस पर्व के तहत लोग रात को भोजन बनाकर रख देते हैं और सुबह होने पर माता स्थल पर ले जाकर उसकी पूजा करते हैं और फिर इसे ग्रहण किया जाता है।
बासौढ़ा का त्यौहार क्षेत्र में धूमधाम से मनाया जाता है। उतर भारत का प्रसिद्ध त्यौहार बासौढ़ा बासौड़ा, शीतला, पूजन तथा शीतला अष्टमी आदि नामों से जाना जाता है। चैत्र माह के रंगों के त्योहार होली के बाद अकसर शनिवार या बुधवार को भोजन बनाकर रखा जाता है। पूरा परिवार ही बासी भोजन खाता है।
बासौढ़ा त्योहार मनाने के पीछे पुत्र कामना तथा शीतला रोगों से बचना माना जाता है। पुराने वक्त में चेचक या शीतला रोग अधिक होता था जिसमें लाखों व्यक्तियों की प्रतिवर्ष मृत्यु हो जाती थी। स्त्रियां शीतला माता की पूजा करके परिवार को रोगों से बचाने की प्रार्थना करती थी। तभी से यह त्योहार चला आ रहा है। त्योहार से एक दिन पूर्व विभिन्न पकवान बनाकर रख दिये जाते हैं। जिसमें चावल प्रमुख होता है। अगली रोज सुबह सवेरे उठ स्नान व शीतला माता की पूजा कर, जीवों को भोजन खिलाकर पूरा परिवार ही बासी भोजन करता है।
पुराने वक्त में बासी भोजन खाने के पीछे एक दंतकथा भी प्रचलित है जिसके अनुसार एक बुढिय़ा गांव से बाहर झोपड़ी में रहती थी। वह बासी भोजन करती थी जो ग्रामवासी देते थे। एक बार भयंकर शीतला रोग फैला। ग्रामीण रोग पीडि़त हो गए परन्तु बुढिय़ा खुश व रोग रहित थी। ग्रामीणों ने बुढिय़ा से रोग रहित होने का कारण पूछा। बुढिय़ा ने बताया की वह बासी भोजन करती है, तभी से ग्रामीणों ने उनके पदचिह्नों पर चलना शुरू कर दिया। परम्परा वर्तमान में भी चली आ रही है।
बासौढ़ा के दिन चावल पकाकर आपसी आदान प्रदान करने की परम्परा भी चली आ रही है। इस परम्परा को कंडवारी नाम से जाना जाता है। पुत्रवती माता चावल पकाकर घर-घर बंटवाती है। प्रत्येक घर परिवार में यह प्रथा चली आ रही है बासी भोजन के पीछे वैज्ञानिक आधार भी माना जाता है। वर्तमान में भी कई रोगों से बचने के लिए बासी रोटी बताई जाती है। प्रत्येक गांव में माता स्थल बने हुये हैं जहां पूजा होती है।



मामूली से खर्चे में प्राप्त करो पीएचडी की डिग्री और लिखो डॉक्टर अपने नाम के साथ
-आश्चर्य विभिन्न संस्थाएं बेच रही हैंं ये डिग्रियां
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कनीना। ग्रामीण कहावत है- हल्दी लगे ना फिटकरी और रंग आये चौखा। अर्थात कुछ मेहनत भी नहीं और अच्छा रंग आये । यह कहावत शत प्रतिशत पीएचडी पाने वाले उन लोगों पर लागू होती है जो आनरेरी डिग्री प्राप्त कर रहे हैं। विदित हो पीएचडी करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है, कम से कम 4  साल लगते हैं। अनेकों बार विश्वविद्यालय जाना पड़ता है ,लाखों रुपये फीस जमा की जाती है, इंटरव्यू भी देना पड़ता है, साक्षात्कार देने के बाद ही कहीं अनेकों कठिनाइयां एवं अध्ययन कर पीएचडी की डिग्री हासिल होती है किंतु इन परेशानियों को झेलने की बजाय अब आनरेरी डिग्री देने का सिलसिला पूरे ही देश में जारी है। पांच हजार से लेकर लाखों रुपये ऐंठकर इस प्रकार की आनरेरी पीएचडी थमा दी जाती है।  इस प्रकार की डिग्री पाने वाला झटपट अपने आपको डाक्टर लिखने लग जाता है। आश्चर्यजनक तथ्य है कि कोई भी विश्वविद्यालय के बगैर पीएचडी की डिग्री नहीं दे सकता किंतु विभिन्न संस्थाएं है या कुछ लोग भी इस प्रकार की डिग्रियां दे रहे हैं। चाहे वे स्वयं बहुत कम पढ़े लिखे हो किंतु लोगों को पीएचडी की डिग्री दे रहे हैं।
पीएचडी की डिग्री पाने वाले भी लोग इन डिग्रियों को हासिल कर अपने नाम के साथ डॉक्टर लिखने लग गए हैं। अगर समुचित जांच की जाए तो आने को डॉक्टर लिखने वाले या तो डॉक्टर लिखना बंद कर देंगे या कैद की सलाखों के पीछे भी जा सकते हैं। कहने को तो आनरेरी डिग्री है किंतु पैसे ऐंठने इसकी आड़ में पैसे झूठ लेते हैं। यहां तक कि नेपाल से भी कई संस्थाएं इस प्रकार की डिग्रियां दे रही है। विभिन्न सोशल माध्यमों से डिग्री लेने के लिए दिए गए नंबरों पर संपर्क करने की बात कहते हैं। इस संबंध में जब ऐसी संस्थाओं से कई जगह बात ही अलग अलग स्थानों से अलग अलग रेट में पीएचडी की डिग्री देने की बात चली परंतु न तो वे विश्वविद्यालय से संबंध रखते है और न विश्वविद्यालय है बल्कि अपनी संस्थाएं बनाकर इस प्रकार की डिग्रियां दे रहे हैं। इससे पीएचडी की कड़ी मेहनत करके डिग्री पाने वाले बेहद मायूस हैं।  अपने नाम के साथ डाक्टर लिखकर वे समाज में सम्मान पाते हैं जबकि हकीकत यह है कि यह डिग्री वैध नहीं होती या फर्जी होती है। ये लोग अपने नाम के साथ डाक्टर नहीं लिख सकते। देने वाला कोई संस्था का मालिक या कोई नामचीन व्यक्ति ही नहीं हो सकता अभी तो विश्वविद्यालय ही इस प्रकार की डिग्री दे सकता है विश्वविद्यालय वह भी यूजीसी की लिस्ट में होनी चाहिए तभी पीएचडी की डग्री दे सकते हैं।  अब तो विदेशों से भी इस प्रकार की डिग्रियां मिलने लगी है और अनेकों लोग इस प्रकार की डिग्री पा रहे हैं किंतु यदि वे किसी विश्वविद्यालय से ऑनरेरी डिग्री प्राप्त करते हैं तो डॉक्टर लिखने के अधिकारी हैं।



विश्व गौरैया दिवस पर......
झोपड़पट्टी लुप्त होने से लुप्त हो गई गौरैया
-इंसान से गहन सेंबंध रहा है गौरैया का
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 कनीना। ग्रामीण क्षेत्र में किसी समय इंसान के संग सैकड़ों गौरैया देखने को मिलती थी। इनके संग गहरा नाता होता था। इंसान जहां सुबह सवेरे उठता तो गौरैया उन्हें उठाती थी तथा उनकी झोपड़पट्टी में जहां इंसान आराम करता गौरैया नजर आती थी आज वह गौरैया और वो झोपड़पट्टी गायब हो गए हैं। आज न तो ग्रामीण क्षेत्रों में झोपड़पट्टी बचे हैं और ना ही गौरैया को छिपने के लिए कोई ठिकाने बचे हैं।  जहां भी देखें ऊंचे ऊंचे महल,उच्च वोल्टेज की बिजली की तारे, गर्मियों में पानी की कमी, दानों आदि में जहरीली दवाओं का होना, वृक्षों की कटाई के चलते ये गौरैया धीरे-धीरे लुप्त होती जा रही है। यूं ही इनकी संख्या घटती गई तो आने वाले समय में शायद धरती पर कोई गौरैया बच पाएगी।
गोरैया के विषय में राजेंद्र सिंह, महेंद्र सिंह, कृष्ण कुमार, सुमेर सिंह आदि बताते हैं कि जब वे छोटे बच्चे होते थे तो पक्के मकान कम होते थे और कच्चे घर, झोपड़पट्टी अधिक होती थी जिनमें गौरैया देखने को मिलती थी किंतु वर्तमान समय में गौरैया लुप्त होने के कगार पर हैं।
 उधर कनीना के डा होशियार सिंह यादव का कहना है कि इंसान के क्रियाकलापों के चलते  गौरैया घटती जा रही हैं। झोपडिय़ा जहां उनके छिपने के स्थान होते थे खत्म होने के बाद जहां वन जंगल धीरे-धीरे खत्म होते चले गए। यद्यपि गौरैया इंसान के ज्यादा समीप रहती थी किंतु इंसानों से दूर होने पर भी उन्हें कोई छुपने के ठिकाने नहीं मिले। वृक्षों को इतना काट डाला है कि उनके घोंसले के लिए स्थान नहीं मिलता, उनकी प्रजनन के लिए उचित वातावरण न मिलने से उनकी संख्या घटती जा रही है, विशेषकर गर्मियों में पीने के लिए उनको पानी नहीं मिलता वहीं दाने भी नहीं मिलते हैं। उनको उचित दाना पानी नहीं मिलने के कारण भी वे लुप्त हो गई है। साथ में इंसान बहुत अधिक जीव जंतु पालता है, ये जीव जंतु भी गौरैया के दुश्मन है। कभी गौरैया को विशेष रूप से बुलाकर उनको दाना पानी दिया जाता था। एक जमाना था जो मोर गौरैया एवं गीदड़ आदि आवाज लगाने पर हाजिर हो जाते थे। कनीना के प्रसिद्ध संत मोलडऩाथ अपने हाथों से मोर और गौरैया को दाने देते थे पानी पिलाते थे किंतु अब सभी लुप्त हो चुके हैं। क्योंकि इंसान की आदतों ने उनको दूर कर दिया है।
 उनका कहना है कि गौरैया को हाउस स्पैरो जिसे पैसर डोमेस्टिका  नाम से जाना जाता है। इसकी करीब 25 प्रजातियां पाई जाती है जो पूरे विश्व में फैली हुई हैं। यह प्रमुख रूप से इंसान के साथ मिलती है जो इंसान को चहचहाहट से जगाती थी आज चहचहाहट लुप्त हो गई है।
उधर रविंद्र कुमार विशेषज्ञ वनस्पति शास्त्र ने बताया जलवायु में परिवर्तन और इंसान की छेड़छाड़ के चलते जीव जंतु लुप्त हो गए हैं जिनमें गौरैया भी एक है। अगर समय रहते इंसान नहीं चेता तो भविष्य में गौरैया धरती से लुप्त हो जाएंगी।




स्कालरशिप परीक्षा में पहुंचे एक हजार विद्यार्थी
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कनीना। एसडी स्कूल खेड़ी तलवाना में आयोजित स्कालरशिप परीक्षा में परीक्षार्थियों ने जबरदस्त उत्साह दिखाया। अभिभावक अपने बच्चों को उत्साह के साथ स्कालरशिप परीक्षा दिलवाने पहुंचे। विद्यालय में परीक्षा देने आए विद्यार्थियों व उनके अभिभावकों का विद्यालय स्टाफ सदस्यों ने स्वागत किया।
 परीक्षा के दौरान अभिभावकों के बैठने के लिए भी विशेष प्रबंध किया गया। संगीत टीम ने सभी अभिभावकों को अपने मधुर गीत-संगीत के माध्यम से बांधे रखा ।  इस दौरान विद्यालय प्रबंधन ने विद्यालय के बच्चों की उपलब्धियों से अभिभावकों को अवगत कराया।विद्यालय के चेयरमैन जगदेव यादव ने बताया कि 93.2 प्रतिशत बच्चों ने स्कॉलरशिप परीक्षा दी और 1000 बच्चों का पंजीकरण हुआ था। जो बहुत ही प्रशंसनीय व सराहनीय है।
निदेशक महोदय ने उपस्थित अभिभावकों को संबोधित करते हुए कहा कि आज  स्कूल अभिभावकों के विश्वास पर पूर्ण कायम है।  इसी का नतीजा है कि आज विद्यालय  के बच्चे शिक्षा ही नहीं खेल, कल्चरल व अन्य हर क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रहे हैं।
पहले जहां क्षेत्र के अभिभावक अपने बच्चों को अच्छी एजुकेशन के लिए दूरदराज भेजने को मजबूर थे परंतु अब दूरदराज के अभिभावक अपने बच्चों को अच्छी एजूकेशन के लिए महेंद्रगढ़ भेज रहे हैं यह हम सब के लिए गौरव का विषय है। अभिभावकों के विश्वास के कारण आज महेंद्रगढ़ शिक्षा का हब बन चुका है यहां कम खर्चे में अभिभावक अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलवा रहे हैं।
उप प्रधानाचार्या शोभा राव खरसाणीयां ने स्कॉलरशिप परीक्षा दिलवाने आए सभी अभिभावकों का स्वागत करते हुए बताया कि इस बार सैनिक स्कूल प्रवेश परीक्षा में पहले ही प्रयास में 10 में से 7 विद्यार्थियों ने परीक्षा उत्तीर्ण की।उन्होंने बताया कि परीक्षा में विशेष मेधावी छात्र-छात्राओं को उनकी प्रतिभा के अनुसार प्रत्येक कक्षा में दाखिले के समय विशेष छूट दी जाएगी। परीक्षा परिणाम तैयार होने पर प्रत्येक अभिभावक के मोबाइल पर भेजा जाएगा परिणाम जारी होने के बाद अभिभावक विद्यालय में भी फोन करके अपने बच्चे का परीक्षा परिणाम पूछ सकेंगे। परीक्षा के सफल आयोजन में कोच प्रदीप कुमार, सुजीत कुमार ,पूनम , कृष्ण ,नवीन  ,सुनीता सहित समस्त स्टाफ सदस्यों का विशेष सहयोग रहा।
फोटो कैप्शन 02: स्कालरशिप की परीक्षा देते विद्यार्थी।



1150 किलोमीटर लंबी बाइक यात्रा की शुरुआत 22 मार्च से
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कनीना। राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय अगिहार में अंग्रेजी के प्रवक्ता व ग्राम झगड़ोली निवासी मदन मोहन कौशिक 22 मार्च को प्रात: 5 बजे अपनी सातवीं शहीद स्मारकों  की  1150 किलोमीटर लंबी  बाइक यात्रा की शुरुआत करेंगे। उनकी यह यात्रा महेंद्रगढ़ के राव तुलाराम  चौक से शुरू होकर दादरी, रोहतक, पानीपत, कुरुक्षेत्र, अंबाला, सरहिंद, भगत सिंह के पैतृक गांव  खटकड़ कलां, चमकौर साहिब,आनंदपुर साहिब होते हुए शाम को अमृतसर पहुंचेगी। वहां स्वर्ण मंदिर व जलियांवाला बाग के दर्शन   के अलावा अटारी बॉर्डर पर बीएसएफ की परेड का भी अवलोकन किया जाएगा। यात्रा के दूसरे दिन 23 मार्च को यात्रा अमृतसर से शुरू होकर प्रात: नौ बजे फिरोजपुर पहुंचेगी तथा भारत-पाकिस्तान बार्डर पर अमर क्रांतिकारियों भगत सिंह राजगुरु व सुखदेव  बटुकेश्वर दत्त तथा भगत सिंह की माता की समाधि पर शहीदों को  पुष्पांजलि अर्पित करेंगे। शाम को हुसैनीवाला बार्डर पर बीएसएफ की परेड का भी अवलोकन करेंगे। इस तिरंगा यात्रा में उनके साथ गांव पाली से मास्टर सुरेंद्र पाल तथा मुंडिया खेड़ा से भूगोल के प्रवक्ता सूर्य प्रकाश यादव भी शामिल होंगे। उन्होंने विगत वर्ष भी यह यात्रा पूरी की थी।
फोटो कैप्शन 01:विगत वर्ष की गई यात्रा की फोटो।


12 से 18 वर्ष के बच्चों को कोरोना रोधी टीकें लगाये
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कनीना। कनीना 19 मार्च कोविड-19 के संक्रमण से बचाव के लिए सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र सेहलग द्वारा राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय खेड़ी तलवाना में 12 साल से 18 साल के बच्चों का टीकाकरण किया गया इस अवसर पर स्वास्थ्य निरीक्षक राजेंद्र सिंह खेड़ी की केंद्र प्रभारी संतरा देवी नर्स आशा कुमारी नर्स वरिष्ठ प्रवक्ता नरेश कौशिक राकेश कुमार कोच प्रवीन शास्त्री सत्यवीर सिंह संजय मेहरा सुरेंद्र सिंह आदि उपस्थित थे स्वास्थ्य निरीक्षक राजेंद्र सिंह ने बताया कि इस बार नई वैक्सीन में बेहतर ढंग की सुईं का इस्तेमाल किया गया है जिसमें सिरिंज प्रयोग के बाद उसकी सुई स्वत ही नष्ट हो जाती है उन्होंने बताया कि आज 80 विद्यार्थियों का टीकाकरण किया गया है इनमें कक्षा 9 से 12वीं तक के विद्यार्थियों का टीकाकरण किया गया है तथा 12 साल से 14 साल की आयु वर्ग के विद्यार्थियों का टीकाकरण सोमवार को किया जाएगा।
फोटो कैप्शन 06: 12 से 18 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों को कोरोनारोधी टीका लगाते हुए।






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