बरसी 9 दिसंबर पर विशेष--
शेर सिंह फज्जर जिन्होंने दो युद्ध लड़े
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कनीना। जिन जाबांजों के दिल में देश के प्रति प्यार हिलौरे ले रहा हो वे चैन से कब बैठ सकते हैं। उन्हें तो बस देश सेवा की धुन सवार होती है। ऐसे ही एक जाबांज सिपाही कनीना में पैदा हुए थे जिन्होंने एक नहीं अपितु दो-दो युद्ध किए और अपनी देशभक्ति एवं बहादुरी का परिचय दिया। इस जाबांज सिपाही का नाम शेर सिंह फज्जर था जिन्होंने नौ दिसंबर 1971 को पाक के विरुद्ध युद्ध में न केवल अपना बलिदान दिया अपितु बलिदान से पूर्व अपने साथियों का हौंसला बुलंद भी किया।
शहीद शेर सिंह का जन्म कनीना जिला महेंद्रगढ़ में एक मुसलिम परिवार में फज्जर अलि के धर लिया। परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण तथा घर में सबसे बड़ा पुत्र होने के कारण घर की सारी जिम्मेदारियां उन्हीं के कंधों पर आन पड़ी और ऐसे में वे महज प्राथमिक शिक्षा ही ग्रहण कर पाए और 20 जून 1963 को 15 राजपूत रेजिमेंट में भर्ती हो गए। भर्ती हुए अभी दो वर्ष ही बीते थे कि पाक और भारत का 1965 का युद्ध छिड़ गया। शेर सिंह को अपने साथियों सहित देश की सीमा पर भेजा गया जहां उन्होंने अदम्य साहस का परिचय दिया।
उनकी बहादुरी के चलते ही उन्हें 1965 का रक्षा मेडल, 1947 का जीएस मेडल तत्पश्चात नागा हिल्स मेडल दिया गया। अभी पांच वर्ष ही बीते थे कि पाक ने भारत के विरुद्ध पुन: सिर उठाना शुरु: कर दिया। शेर सिंह को उनके साथियों के साथ 18 अकतूबर 1971 को कैक्टस लिली में तैनात किया। जब पाक ने भारत पर धावा बोला तो इस जाबांज सिपाही ने दुश्मनों के दांत खट्टïे कर डाले।
युद्ध दौरान सात दिसंबर 1971 की रात को एक गोली उनको पार कर गई। उनके साथियों ने उन्हें घायल अवस्था में सैनिक अस्पताल में भर्ती कराया। कुछ ठीक होते ही आठ दिसंबर की रात को शेर सिंह फिर से युद्ध में जा डटे। दुश्मनों के दांत खट्टïे करने में कसर नहीं छोड़ी लेकिन नौ दिसंबर को दुश्मन की एक गोली उनके सीने में लगी और शहीद होते होते भी देशभक्त दुश्मनों पर वार करते रहे। आखिरकार शरीर ने जवाब दे दिया और वे भारत माता पर कुर्बान हो गए।
शहीद शेर सिंह की विधवा भतेरी देवी अपने घर कनीना में गुजर बसर कर रही है। शहीद का एक पुत्र लीलू खान कनीना बस स्टैंड पर फल ओर जूस बेचकर गुजारा कर रहा है वहीं दूसरा पुत्र नौरंग दिल्ली में डाकघर में काम कर रहा है।
फोटो कैप्शन: शहीद शेर सिंह
वाटर सप्लाई का पानी रास्ते में फैलने से बनी आफत
- भारी मात्रा में हो रहा है जल का रिसाव
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कनीना। कनीना उपमंडल के गांव मोड़ी में वाटर सप्लाई लाइन जगह-जगह लीक हो को जाने से मोड़ी से गोमला मार्ग पर भारी मात्रा में जल रिसाव हो गया है। आवागमन बाधित हो गया है, पैदल चलना भी कठिन हो रहा है।
मिली जानकारी राम सिंह, रामकिशन, राजेश कुमार, रवि कुमार, हरिओम आदि के खेतों के पास यह पुरानी वाटर सप्लाई की लाइन जगह जगह लीक कर रही है जिसके चलते अधिकांश जल मार्ग पर जाम हो जाता है। किसानों को अपने खेतों तक पहुंचने के लिए आफत बन गई है।
पूर्व सरपंच गजराज सिंह मोड़ी, सतीश कुमार, अजय कुमार, कांता आदि ने बताया कि मोड़ी से गोमला पांच करम का कच्चा रास्ता है जो पानी से पूर्ण रूप से भरा हुआ है। वास्तव में पानी की लाइन जावहरा की ढाणी तक जाती है। इस ढ़ाणी से आगे पानी की लाइन पुरानी होने के कारण जर्जर हो गई है। जब कोई वाहन उधर से गुजरता है वहीं से पाइप टूट जाता है और लीक करने लग जाता है। उन्होंने बताया कि खेतों तक पहुंचना दूभर हो गया है। यहां वाहन चलाना तो दूर पैदल चलाना और भी कठिन है। सबसे बड़ी बात है कि यह क्षेत्र एसई कोसली तथा एसडीओ वाटर सप्लाई कोसली में ही पड़ता है जबकि यह गांव कनीना जिला महेंद्रगढ़ का है। यहां पेयजल सप्लाई पर पुराने समय से नियंत्रण कोसली के तहत आता है।
किसानों ने बताया कि किसी समय मोड़ी से 35 गांवों में जल की सप्लाई होती थी जिनमें नांगल मूंदी, रोलियावास, ऊंचा नीचा आदि कई गांव रेवाड़ी के भी शामिल थे इसीलिए यहां जल सप्लाई पर नियंत्रण कोसली जिला रेवाड़ी का होता था किंतु वर्तमान में जल सप्लाई मोड़ी पंचायत के तहत चल रही है। किंतु लाइन पुरानी बिछी हुई है। किसानों ने मांग की है या तो लाइन को बदल कर लोहे की दबाई जाए या इस लाइन को बंद किया जाए ताकि किसानों को राहत मिल सके।
फोटो कैप्शन 6 तथा 7: मोड़ी से गोमला मार्ग में जमा वाटर सप्लाई का जल।
समाजसेवी संस्थाओं ने चलाया सफाई अभियान
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कनीना। कनीना उप-मंडल के गांव मोड़ी स्थित समाजसेवी ग्रुप आईसीटीएम सोशल तथा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने पर्यावरण संरक्षण गतिविधियां प्रारंभ की। पर्यावरण संरक्षण गतिविधियां शांतिकुंज अनाथालय गांव मोड़ी से प्रारंभ की गई। इस दौरान अनाथालय प्रांगण की सफाई की गई और प्लास्टिक को इक_ा किया गया। पर्यावरण संरक्षण गतिविधियां शांतिकुंज अनाथालय में 12 दिसंबर तक सक्रिय रहेंगी। पर्यावरण संरक्षण गतिविधियों में साफ सफाई, प्लास्टिक इक_ा करना तथा फूलों एवं छायादार पेड़ पौधों का रोपण करना , आसपास रह रहे जनजाति को पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूक करना तथा पर्यावरण संरक्षण स्लोगन जैसे जल संरक्षण है मेरा सपना ताकि खुशहाल बने भारत अपना, प्लास्टिक हटाओ धरती बचाओ तथा आओ फिर एक बदलाव लाए, हर रोज एक पेड़ लगाएं को जन जन तक पहुंचाना शामिल रहेगा। इस कार्यक्रम में आईसीटीएम ग्रुप के सचिन शर्मा, उमेद सिंह तथा संघ कार्यकर्ता अनूप यादव, धनुष शर्मा अन्य शामिल रहे।
फोटो कैप्शन 4: सामाजिक संस्थाओं के लोग मोड़ी में सफाई अभियान चलाते हुए।
निशुल्क हृदय एवं नेत्र रोग जांच शिविर 12 दिसंबर को
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कनीना। 12 दिसंबर को कनीना के लाला शिवलाल धर्मशाला नजदीक रेलवे स्टेशन में सेवा भारती की ओर से आयोजित 45वां विशाल निशुल्क हृदय, नेत्र रोग जांच एवं परामर्श शिविर का आयोजन किया गया है।
विस्तृत जानकारी देते हुए सेवा भारती के योगेश अग्रवाल ने बताया कि शिविर में पेट से संबंधित, स्त्री रोगों की एवं डाक्टरों का प्रबंध किया गया है। उन्होंने बताया इस बार डा राहुल सिंगला हृदय रोग विशेषज्ञ,डा नेहा वत्स नेत्र रोग विशेषज्ञ पहुंच रहे हैं। यहां परामर्श, इसीजी, बीपी, ब्लड शुगर आदि की निशुल्क जांच की जाएगी। हृदय रोगों की जांच उन लोगों को करवानी चाहिए जिनकी सांस फूलती हो, अत्यधिक मोटापा, अत्यधिक पसीना आता हो, उम्र 40 वर्ष से अधिक हो, तंबाकू-धूम्रपान सेवन करने वाले, रक्तचाप से पीडि़त, अत्यधिक घबराहट बेचैनी, हृदय संबंधित पारिवारिक रोग प्रवृत्ति, आलसी जीवन शैली वाले जरूर इस शिविर का में जांच करवाएं।
गुलदावदी ने ली अंगड़ाई
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कनीना। सर्दी बढऩे से जहां फसलें वृद्धि कर रही हैं वहीं गुलदावदी के पौधों पर सफेद फूलों की बहार आ गई है। बाग बगीचों में सफेद फूलों की बहार नजर आती है।
जहां सर्दी के कारण आम जन घरों में दुबके नजर आ रहे हैं वहीं फूल व पत्तों पर ओस नजर आता है वहीं गुलदावदी के फूलों पर अति सफेद रंग के सुंदर फूल नजर आ रहे हैं। वनस्पति शास्त्री मानते हैं कि गुलदावदी को सर्दी सहन करने व सर्दी पडऩे के बाद ही फूल खिलते हैं। यही कारण है कि विभिन्न रंगों की गुलदावदी गमलों में नजर आती है। बागों में सुंदरता बढ़ाने वाली गुलदावदी बागों की सैर करने वालों के लिए आकर्षण का विषय बना हुआ है।
कनीना क्षेत्र में खरीफ फसल बतौर फूलों की खेती की जाती है जो दीपावली, नवरात्रि तथा विभिन्न पर्वों पर मांग होती है। सर्दी के मौसम में हालांकि फूल उगाए जाते हैं किंतु मांग कम होती है।
क्या कहते हैं वनस्पतिशास्त्री-
वनस्पति शास्त्री रवींद्र कुमार का कहना है कि गुलदावदी को क्राइसेंथेमम नाम से जाना जाता है जो दवाओं में तो काम आती ही है वहीं सिर चकराना, उच्च रक्तचाप तथा कई अन्य बीमारियों में काम में लाई जाती है। इसकी खेती सर्दियों में की जाती है किंतु शहरी क्षेत्रों में ही इसकी अधिक मांग होती है।
फोटो कैप्शन 1: कनीना के एक बाग में खुशबू दे रही गुलदावदी।
सर्दी पडऩे से सरसों फसल में आई आब
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कनीना । कनीना क्षेत्र में इस बार सरसों की बेहतर पैदावार होने के आसार बन गए हैं। सर्दी पडऩे से सरसों की फसल में रौनक आ गई है।
कनीना क्षेत्र में विगत वर्ष की तुलना में 900 एकड़ पर अधिक फसल उगाई गई है। गेहूं की बिजाई करीब 8,000 हेक्टेयर पर की गई है। फसल लहलहाती नजर आने लगी है किंतु दिनरात आवारा जानवरों से सुरक्षा की जा रही है। सबसे अधिक भू भाग पर कनीना क्षेत्र में सरसों अधिक उगाई है।
किसान राजेंद्र सिंह, सूबे सिंह, कृष्ण कुमार एवं अजीत सिंह ने बताया कि सरसों की फसल की दिन रात सुरक्षा करनी पड़ रही है क्योंकि आवारा जंतुओं ने धावा बोलना शुरू कर दिया है। इस बार बेहतर पैदावार होने के आसार बने हुए हैं। किसानों की आशा इसी फसल पर टिकी हुई है।
क्या कहते हैं खंड कृषि अधिकारी-
कनीना कृषि अधिकारी डा. देवेंद्र यादव ने बताया कि अकेले कनीना क्षेत्र में 48425 एकड़ पर सरसों उगाई गई है। उनका कहना है कि अब तक मौसम में ठंड का असर कम था किंतु अब दस दिनों से सर्दी पडऩे से सरसों में रौनक आ गई है। उन्होंने कहा कि इसी प्रकार सर्दी पड़ती रही तथा मौसम अनुकूल रहा तो सरसों की रिकार्ड पैदावार होगी।
फोटो कैप्शन 3: सरसों की खड़ी फसल।
कीटनाशक दवाइयां मिले बीज दवा छिड़के पत्ते खाने से पक्षियों की हो रही है मौत
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कनीना। कनीना उप-मंडल के गांवों में जहरीले दाने व दवा छिड़की फसल के पत्ते खाने से पक्षियों की मौत हो रही है। चील, गिद्ध एवं कौवे दुर्लभ होते जा रहे हैं।
मिली जानकारी के अनुसार उपमंडल के गांवों बीजाई के समय पक्षी मर जाते हैं चूंकि दानों को दवा में भिगोकर बिजाई करनी पड़ती है वहीं अब बड़ी फसल पर जहरीली दवा छिड़क देने से उनके पत्ते खा लेने से पक्षी मर जाते हैं। मोर मरने के पीछे एक कारण किसानों द्वारा खेतों में की जा रही बीजाई दौरान कई प्रकार के कीटनाशक मिलाकर बुआई की जाती है तथा जो बीज उस वक्त जमीन से बहार पड़ा रह जाता है उसे यह पक्षी खा लेता है। यदि लगातार पक्षी मरते रहे तो जंगल राष्ट्रीय पक्षियों एवं अन्य पक्षियों से रहित हो जाएंगे। वहीं इस बारे में कृषि विभाग के पूर्व अधिकारी डा देवराज से बात की गई तो उनका कहना था कि किसान द्वारा जो बीजाई कि जाती है उसमें कीटनाशक दवाइयां मिली होती है जिसका बीजाई के समय बीज बहार रह जाता है और उसे कोई भी पक्षी द्वारा खाने पर वह अवश्य ही बीमार पड़ जाएगा तथा अगर उसको समय रहते हुए नही संभाला गया तो उसकी मौत भी हो जाती है। दवा छिड़के पत्ते खाने से भी पक्षी मर जाते हैं। पशु डाक्टर का यह भी कहना है कि ऐसी पोजीशन में पक्षी को एट्रोपीन नामक इंजेक्शन दिलवाना चाहिए जिससे वह बच सकता है और किसान द्वारा बीजाई चार सेन्टीमीटर गहरी करनी चाहिए जिससे कि वह बीज बहार न रहे और इस प्रकार के हादसे से पक्षियों को बचाया जा सके। बार बार फसलों में दवा का छिड़काव नहीं करना चाहिए।
फोटो कैप्शन 2: खेतों से दाने ढूंढते राष्ट्रीय पक्षी।
फल सब्जियां महंगी होने से किचन गार्डन की ओर बढ़ा रुझान
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कनीना । फल एवं सब्जियों की महंगाई की मार के चलते अब घरों में भी फल एवं सब्जियां उगाने का सिलसिला जोर पकडऩे लगा है। गृहणियां भी अब अपने घरों में या छत पर फूलदार पौधे उगाने के अलावा हरी सब्जियां भी उगाने लगी हैं। कृषि विभाग भी इस काम को वरीयता दे रहा है।
वैसे तो घरों में हरी सब्जियां उगाने व फूलदार पौधे उगाकर घरों को सजाने में महिलाएं आगे आती हैं। कनीना की संतरा, नीलम, आशा, रविंद्र कुमार आदि ने अपने घर आंगन में फल, फूल, औषधि एवं अन्य पौधे गमलों को महका दिया है। उन्होंने अपने आंगन में ही विभिन्न सग्जियां उगाई हुई जिनमें गाजर, मूली, शलजम, चुकंदर, पालक, धनिया, मेथी, आलू आदि प्रमुख हैं। विभिन्न प्रकार के फूलदार पौधे उगाए हुए हैं जिन पर फूल लगे हैं। तुलसी का बाग लगाया हुआ है। उनका कहना है कि सब्जी हो या सामान्य सर्दी जुकाम वे घर पर उगे हुए पेड़ पौधों से ही काम चला लते हैं।
रवींद्र कुमार ने कहा कि वे दीपावली के दिन पटाखों आदि पर खर्चा न करके पौधे लाकर उगाते हैं जिससे घर आंगन की बगिया महक उठती है। उन्होंने कहा कि घर में देर सवेरे आए मेहमान को ताजा हरी पत्तेदार सब्जी पकाकर खिलाते हैं। उनकी हाबी घर में सब्जी उगाने को देखकर लोग बहुत प्रभावित हैं।
रवींद्र कुमार का कहना है कि अगर हर गृहणि या जन थोड़ा सा समय अपने आंगन में या छत पर हरी सब्जी उगाने में लगाए तो न केवल जहरीली सब्जियों को खरीदकर खाने से बच सकते हैं अपितु धन की बचत होगी वहीं सेहत भी बेहतर होगी।
गृहणियों ने बताया कि जब भी उनके पास फुरसत होती है तो वे अपना खुरपा लेकर इन फसलों में तथा सब्जियों की देखरेख एवं नई सब्जी उगाने में लग जाते हैं। उनका समय भी बीत जाता है और घर पर ही बेहतर सब्जी पैदा हो जाती हैं। उनका कहना है कि अपने घर पर मनपसंद सब्जी उगाई जा सकती है।
क्या कहते हैं कृषि अधिकारी-
पूर्व खंड कृषि अधिकारी डा देवराज का कहना है कि किचन वेजिटेबल पर सरकार जोर दे रही है। सतय समय पर बीज भी उपलब्ध करा रही है ताकि घरों में सब्जी उगाई जा सके और सेहत को सुधारा जा सके। उन्होंने गृहणियों के किचन गार्डन की सराहना भी की।
फोटो कैप्शन 6: किचन गार्डन में सब्जियों एवं फूलदार पौधे।
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Wednesday, December 8, 2021
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