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Thursday, December 9, 2021

 
श्रमिक बनवा सकते हैं नि:शुल्क ई-श्रम कार्ड
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 कनीना। कनीना के सभी  सेवा केंद्रों









पर श्रमिकों के ई-श्रम कार्ड निशुल्क बन रहे हैं। विस्तृत जानकारी देते हुए कनीना के सीएससी केंद्र के संचालक छोटूराम मेहरा कोटिया ने बताया कि श्रमिकों को विभिन्न प्रकार की आर्थिक सहायता को बीमा सुरक्षा प्रदान करने हेतु ई- श्रम कार्ड बनाए जा रहे हैं जो वहां यहां निशुल्क बनाए जाते हैं। उन्होंने बताया कि ई-श्रम कार्ड का मुख्य उद्देश्य सरकार के विभिन्न योजनाओं का फायदा श्रमिकों तक पहुंचाना है। सरकार की योजना के अनुसार श्रमिकों को दो लाख रुपये तक का बीमा है, दिव्यांग होने पर एक लाख तक की आर्थिक सहायता सामाजिक सुरक्षा एवं कल्याणकारी योजनाओं का लाभ श्रमिकों को निशुल्क मुहैया कराया जाता है। उन्होंने कहा कि श्रम कार्ड बनवाने के लिए श्रमिकों का अपने साथ आधार कार्ड, मोबाइल नंबर, बैंक की पासबुक साथ लानी होगी तथा किसी भी कार्य दिवस पर अपना ई-श्रम कार्ड बनवा सकता है जिसके लिए 16 वर्ष से 59 वर्ष तक की उम्र निर्धारित की गई है। रजिस्ट्रेशन पूर्ण रूप से निशुल्क है।




लड़की को अंजान लड़के से छुड़वाने की एक पिता ने लगाई गुहार
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 कनीना। कनीना थाने के गांव बवाना में एक व्यक्ति सत्यवीर सिंह ने अपनी 21 वर्षीय पुत्री को एक अंजान लड़के से छुड़वाने की गुहार लगाई है। लड़के ने शादी करने की फोन पर धमकी दी है।
सत्यवीर सिंह ने पुलिस में दी शिकायत में कहा है कि उसकी लड़की 8 दिसंबर की सुबह से ही लापता है। पीडि़त की दूसरी लड़की के पास एक अंजान लड़की का फोन आया जिसमें लड़के ने कहा कि उनकी लड़की उनके साथ है और वे शादी करने वाले हैं। कनीना पुलिस से उन्होंने लड़की को छुड़ाने की गुहार लगाई है। कनीना पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है।




चीफ इंजीनियर ने सुनी समस्याएं
-मौके पर ही किया निवारण
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कनीना। चीफ इंजीनियर नवीन कुमार वर्मा ने कनीना सब-डिवीजन पावर हाउस में औचक निरीक्षण किया और उपभोक्ताओं की समस्या सुनकर मौके पर ही निवारण किया। उन्होंने अधिकारियों और कर्मचारियों के साथ भी बैठक की। इस मौके पर कार्यकारी अभियन्ता महेंद्रगढ़ बुधराम पवार,कनीना उपमण्डल अधिकारी मनोज कुमार वशिष्ठ, बूचावास उपमण्डल अधिकारी अमित,महेंद्रगढ़ सब अर्बन उपमण्डल अधिकारी दीपक यादव, महेन्द्रगढ़ सिटी उपण्डल अधिकारी सतपाल, व एचएसइबी वर्कर यूनियन के प्रदेश मुख्य संगठनकर्ता महावीर पहलवान, सर्कल सचिव टीएस गुडगांव  जेई रामरतन शर्मा गोमली, सीए लखेन्द्र यादव, पूर्व प्रधान विकास जागड़ा, सब-डिवीजन कनीना एवं समस्त कर्मचारी हाजिर रहे।
फोटो कैप्शन 2: चीफ इंजीनियर कनीना पावर हाउस में समस्याएं सुनते हुए।





भारतीय सेना के महानायक के निधन पर क्षेत्रवासियों ने किया शोक व्यक्त
- हादसे की खुली जांच कराने की गुहार
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कनीना। भारतीय सेना के सीडीएस विपिन रावत की हेलीकाप्टर  दुर्घटना में मृत्यु पर क्षेत्रवासियों ने गहरा शोक व्यक्त किया है। शोक व्यक्त करने वालों में राजपूत सभा के पूर्व प्रधान सवाई सिंह राठौड़ सभा के संरक्षक ठाकुर रतन सिंह तंवर, राजपूत समाज के वरिष्ठ नेता ठाकुर दलीप सिंह तंवर, वरिष्ठ समाजसेवी राजकुमार सिंह शेखावत, राजपूत समाज के वरिष्ठ सदस्य सत्येंद्र शेखावत, कुंवर धीरेंद्र सिंह शेखावत, ठाकुर राजेंद्र सिंह नंबरदार, ठाकुर किशन पाल सिंह, ठाकुर अजय कुमार तंवर, ठाकुर सुनील कुमार पूर्व पंच, घनश्याम सिंह, डा फतेहचंद दायमा, ठाकुर कर्मबीर सिंह, भाजपा नेता आनंद सिंगल, भाजपा के वरिष्ठ नेता मुनेश छोकर, घनश्याम शास्त्री, वरिष्ठ समाजसेवी बलवान आर्य, विजय कुमार आर्य, वरिष्ठ समाजसेवी कैलाश सेठ, नरेंद्र शर्मा, डॉ मुकेश तंवर, ठाकुर पृथ्वी सिंह, सूबेदार जीवन सिंह, प्रदीप चौहान, वरिष्ठ समाजसेवी सतीश रामबास, युवा नेता गौरव दायमा ,ठाकुर वीर सिंह पूर्व सरपंच तलवाना यशपाल सिंह, देवेंद्र शर्मा के अलावा अन्य क्षेत्र वासियों ने शोक जताया। उन्होंने कहा कि सीडीएस जर्नल विपिन रावत व उनकी धर्मपत्नी के अलावा इस दुर्घटना में अन्य जवानों की शहादत को कभी भुलाया नहीं जा सकता। श्री रावत की क्षति को पूरा कर पाना बहुत मुश्किल कार्य है।
उन्होंने कहा कि श्री रावत भारत की आन बान और शान थे, उनकी सेवा को कभी भुलाया नहीं जा सकता।  उन्होंने यह भी कहा श्री रावत के सेना के छोटे से छोटे जवान से लेकर बड़े से बड़े अधिकारी तक सब उनका सम्मान करते थे जिसके कारण आज हमारी सेना संसार की बुलंदियों को छू रही है। उन्होंने यह भी कहा कि आखिर यह हादसा हुआ कैसे इसकी पुलिस जांच सरकार की बड़ी से बड़ी एजेंसी द्वारा कराई जानी चाहिए ताकि समाधान निकल सके। उन्होंने कहा कि जिनकी गर्ज के सामने चीन एवं पाकिस्तान जैसे देशों के पसीने छूटने लगते थे। उन्होंने यह भी कहा  हेलीकाप्टर के चलने से पहले भी चेक होता है और उतरने के बाद भी एजेंसियों द्वारा उसको चेक किया जाता है आखिर उसमें तकनीकी क्या कमी आई?




1971 के कनीना के शहीद को याद किया
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कनीना। कनीना नेताजी मेमोरियल क्लब कनीना में 1971 के कनीना के शहीद शेर सिंह को याद किया। उसके परिजनों नौरंग एवं लीलू आदि ने याद कर पुष्प अर्पित किये।
शहीद शेर सिंह जिन्होंने 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में अपने साहस का परिचय देते हुए दुश्मनों के छक्के छुड़ाए और देश के लिए मर मिटे। किंतु युद्ध से पीछे नहीं हटे। शहीद शेर सिंह का जन्म 20 जून 1940 को कनीना में एक गरीब मुस्लिम परिवार में हुआ था। अपने पिता फजर अली खान की सबसे बड़ी संतान थे। इसी कारण परिवार का पूरा बोझ बचपन में उनके कंधों पर आ गया था। वह आठ भाई बहन थे। परिवार की आर्थिक हालत अच्छी नहीं होने के कारण उन्होंने पढ़ाई बीच में ही छोडऩी पड़ी अपितु वो अपने पिता के साथ मजदूरी में हाथ बटाने लगे। जिंदगी में अचानक एक मोड़ आया और उनकी शादी हो गई। जिससे घर परिवार के खर्चे बढ़ गए। परिवार के खर्चों के लिए 20 जून 1963 को हुए 15 राजपूत रेजिमेंट में भर्ती हो गए 2 साल बाद ही पाकिस्तान ने भारत को ललकारा 1965 के इस युद्ध में राजपूत रेजिमेंट को मोर्चे पर भेजा गया। अपनी जिम्मेवारी को समझते हुए इस बटालियन ने पाकिस्तान के छक्के छुड़ा दिए। बटालियन के इस सपूत को जीएस मैडल -1947 ,नागा हिल्स, रक्षा मेडल -1965 से नवाजा गया। उसके बाद पांच वर्ष ही बीते थे की 1971 में पाकिस्तान ने एक बार फिर सर उठाया। सरकार ने फिर शेर सिंह की बटालियन को पुन: मोर्चे पर भेजा। वीर शेर सिंह को बहुत खुशी हुई और उन्होंने अपने घर पत्र लिखा जिसमें लिखा था की वे अपनी बटालियन के साथ बंग्लादेश ढ़ाका में जा रहे है। परिवार का ध्यान रखना मात्र कुछ दिनों बाद ही पाकिस्तान को नेस्तनाबूद करके युद्ध जीतकर 15 दिनों की छुट्टी आऊंगा। पूरा परिवार खुश था लेकिन किस्मत में क्या लिखा होता है यह तो भविष्य के गर्भ में होता है। उन्हें क्या मालूम था कि उनकी यह आखिरी यात्रा है जो देश के काम आनी है। 8 दिसंबर को युद्ध के मैदान में दुश्मन की गोली उनके मुंह को चीरती हुई पार निकल गई। बटालियन के साथियों ने उनको अस्पताल में भर्ती करवा दिया। लेकिन कुछ ठीक होने पर 9 दिसंबर को बंग्लादेश ढाका में जब वो दुश्मनों से लोहा ले रहे थे तभी एक दुश्मन का गोला उनके सिर पर आ गिरा और वीर शेर सिंह सदा सदा के लिए अपनी धरती मां की गोद में समा गए और अपने देश के नाम अमर हो गए। वह: अपने पीछे पत्नी भतेरी,2 लड़के और 2 लड़कियों को छोड़ गए। उनके बड़े लड़के लीलू कनीना बस स्टैंड पर फल और जूस की दूकान खोल रखी है और छोटा बेटा नौरंग दिल्ली पोस्ट ऑफिस में सेवा कर रहा है। कनीना के शहीद स्मारक पर जिन शहीदों के नाम लिखे हैं उनमें वीर शेर सिंह का नाम आज भी नौजवानों को वीरता और कुर्बानी की याद दिला रहा है।
इस मौके पर लीलूखान, अमर सिंह,               
पूर्व प्रधान राजेन्द्र लोढा, पप्पू, नौरंगखान, नितिन, मास्टर,नेमचंद,वार्ड नम्बर एक के पार्षद मा दलीप सिंह व शहीद परिवार के सदस्य मौजूद थे।
फोटो कैप्शन 3: शहीद शेर सिंह को शहीद स्मारक पर याद करते हुए।


गीता श्लोकोच्चारण में पाया नाम
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कनीना। गीता महोत्सव के अवसर पर जिला स्तर की प्रतियोगिताओं का आयोजन जिला शिक्षा अधिकारी नारनौल  द्वारा करवाया गया जिसमें खण्ड स्तर पर प्रथम व द्वितीय स्थान प्राप्त करने वाले सभी राजकीय व गैर राजकीय विद्यालयों के विद्यार्थियों ने भाग लिया।
रामचन्द्र पब्लिक स्कूल कनीना  खुशी  व निकिता कक्षा नौंवी की छात्राओं ने भगवान श्रीकृष्ण द्वारा दिये गए गीता के उपदेशों को संस्कृत भाषा में श्लोकों के माध्यम से  श्री कृष्ण - अर्जुन संवाद की प्रस्तुति दी। इस मौके पर उन्हें तृतीय स्थान प्राप्त किया।
 इस अवसर पर आरआरसीएम के चेयरमैन रोशनलाल ने दोनों छात्राओं को सम्मानित किया । उन्होंने कहा  कि गीता का महाभारत के समय जितना महत्व था आज भी उतना ही महत्व है क्योंकि सभी प्रकार का समाधान गीता में संभव है। प्राचार्य राकेश कौशिक ने बताया कि संस्कृत भाषा बहुत सरस व मधुर है। इस मौके पर सह संयोजक मनीषा यादव, रितु यादव , रवि कुमार , सतीश कुमार सहित समस्त स्टाफ  सदस्य मौजूद रहे।
फोटो कैप्शन 4: गीता श्लोक उच्चारण में अव्वल रही छात्राओं को सम्मानित करते आरसीएम के सदस्य।




दूसरे राज्यों से आ रहे हैं मधुमक्खी पालक
-तीन माह तक चलता है व्यवसाय
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 कनीना। करीब तीन माह चलने वाला क्षेत्र में मधुमक्खी पालन का धंधा शुरू हो गया है। पीले फूलों से सजी संवरी सरसों मधुमक्खियों के लिए शहद निर्माण में अहं भूमिका निभा रही है। अधिक ठंड पडऩे से मधुमक्खियां मरने का डर रहता है।
  कनीना उपमंडल के विभिन्न गांवों में सड़क के किनारे ही नहीं अपितु किसी खेत में ठहरने की उचित व्यवस्था मिलते ही मधुमक्खी पालने वाले डेरा डाल देते हैं।  ग्रामीण परिवेश में लोग उनकी खुलकर मदद करते हैं।  पंजाब, हिमाचल प्रदेश आदि प्रांतों से लोग शहद का धंधा करने के लिए अस्थायी रूप से यहां आते हैं। चार-पांच लोगों का समूह किसी कुएं की कोठरी में डेरा डाल देते हैं और अपना धंधा शुरू कर देते हैं। इनके पास दस-बीस बड़े पीपे होते हैं तथा इन पीपों में ये लोग शहद इकट्ठा करते हैं। जहां खेत के मालिक को मधुमक्खियों से परागण क्रिया में बढ़ोतरी मिलने से पैदावार में बढ़ोतरी मिलती है वहीं इन बेरोजगार युवकों को रोजगार के अवसर मिलते हैं।
  सुदूर प्रदेश से आए मधुमक्खी का व्यवसाय करने वाले राजेंद्र, भोलू एवं केवल प्रकाश युवकों से इस व्यवसाय पर चर्चा हुई तो उन्होंने बताया कि 5 से 7 लाख रुपये की लागत से 120-125 डब्बे लाए जाते हैं जहां मधुमक्खियां शहद इकट्ठा करती हैं। अधिक फूल होने पर चार-पांच दिनों में ही पर्याप्त शहद इकट्ठा हो जाता है जिसे बड़ी-बड़ी कंपनियां खेत पर आकर खरीद ले जाती हैं। इस प्रकार पूरे व्यवसाय में लाखो रुपये की आमदनी होती है। उन्होंने बताया कि जब फूल कम होते हैं तो यह धंधा भी धीमा पड़ जाता है।
क्या कहते हैं वनस्पति शास्त्री-
  कनीना के वनस्पति शास्त्री रवींद्र कुमार का  कहना है कि मधुमक्खी पालन व्यवसाय का किसान को भारी लाभ होता है क्योंकि ये मधुमक्खियां सरसों में परागण क्रिया को बढ़ावा देकर पैदावार को बेहद बढ़ाती है। अत: इस व्यवसाय से किसानों को भी लाभ मिलता है।
मधुमक्खी पालन सर्दियों में आते हैं। उस वक्त सरसों पर भारी फूल खिले होते हैं। अब तो कुछ मधुमक्खी पालक खरीफ एवं रबह दोनों ही फसलों पर शहद के लिए आते हैं वहीं कुछ लोग बणी के आस पास वर्षभर अपना यह धंधा चलाते हैं।
 क्या कहते हैं मधुमक्खी पालक-
मधुमक्खी पालक धर्मवीर सिंह, कर्मवीर, अजय सिंह, संदीप, राजन ने बताया कि दो माह तक ये मधुमक्खियां खूब शहद बनाती हैं फिर कोई शहद नहीं बना पाएंगी और उन्हें भोजन के लिए भी चीनी का घोल देना पड़ रहा है। इसके बाद उत्तरप्रदेश राज्य में कई स्थानों पर तोडिय़ा नामक तिलहन पर फूल आ जाते हैं। फूल न होने पर कृत्रिम भोजन जिसमें चीनी का घोल प्रमुख रूप से दिया जा रहा है।  ठंड एवं पाला जमने से मधुमक्खी मर जाती हैं।  जिसके चलते यह व्यवसाय घाटे का सौदा बन रहा है। अगर मौसम साफ रहेगा तो ही उनको आय हो सकती है। वे मौसम में दिन के वक्त कुछ गर्मी होने का इंतजार करते हैं।
फोटो कैप्शन 1: शहद के डब्बों को निहारते मधुमक्खी पालक।


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