इस साल नहीं आएंगी कांवड़, निराशा
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कनीना। विगत वर्ष की भांति इस वर्ष कांवड़ यात्रा नहीं चलेगी। भक्तों को दूसरे साल भी निराशा हाथ लगी है। उत्तराखंड सरकार ने कांवड़ यात्रा पर रोक लगा दी है। शिवभक्त बेहद मायूस हैं। कुछ दिन पूर्व कांवड़ आने की संभावनाएं जगी थी वो मंगलवार को निराशा में बदल गई जब उत्तराखंड सरकार ने कांवड़ यात्रा को पूर्णरूप से रद्द कर दिया।
हरी मिर्च उगाने वाले हुए खुश
-थोक में हुये 35 से 40 रुपये किलो के भाव
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कनीना। क्षेत्र के हरी मिर्च उगाने वाले किसानों ने कोरोना काल में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। जहां कोरोना काल में अच्छी मांग रही तत्पश्चात इतने भाव इस कद्र गिरे कि 7 से 8 रुपये किलो मिर्च बेची गई किंतु एक बार फिर से हरी मिर्च के भाव में तेजी आ गई और हरी मिर्च के भाव 35 से 40 रुपये प्रति किलो थोक में पहुंच गए हैं।
परंतु मौसम में बदलाव होने से मिर्च की पैदावार घट गई है। किसानों को विश्वास है कि भविष्य में कुछ और भाव बढ़ेंगे। मिर्च उत्पादक अजय कुमार, गजराज सिंह, कांता देवी आदि ने बताया कि विगत दिनों उनके 7 रुपए किलो के भाव में मिले थे और वह बेहद मायूस थे क्योंकि मिर्च की तुड़ाई पर खर्चा अधिक आ रहा था परंतु एक बार भाव में तेजी आने से किसानों के चेहरे पर खुशी की रेखाएं नजर आई। उन्होंने बताया कि थोक में अब हरी मिर्च 35 से 40 रुपये प्रति किलो बिक रही है। यही नहीं इस बार लाल मिर्च के भाव घटे है किंतु हरी मिर्च तेज है। गजराज सिंह ने बताया की पिछले समय में गिरे हुए भावों की भरपाई इस समय हो रही है। उन्होंने कहा कि अब उन्हें बेहतर भाव मिल पाएंगे।
कोरोना काल में मिर्च अधिक प्रयोग की गई है। हरी मिर्च खाने से उनमें विटामिन सी की पूर्ति होने की डॉक्टर सलाह देते हैं। यही कारण है कि हरी मिर्च की मांग अच्छी खासी रही किंतु एक दौर ऐसा आया पैदावार बढ़ गई और मिर्च के भाव धड़ाम से गिर गए थे किंतु एक बार फिर से भाव ऊंचाइयों को छू रहे हैं।
फोटो कैप्शन 7 व 8: मोड़ी का किसान गजराज सिंह हरी मिर्च दिखाते हुए।
15 जुलाई को दौंगड़ा अहीर के खेल परिसर में होगी जिला स्तरीय एथलेटिक्स प्रतियोगिता
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कनीना। 10 वीं हरियाणा राज्य स्तरीय जूनियर प्रतियोगिता का आयोजन 17 व 18 जुलाई को करण स्टेडियम करनाल में होगी। इस प्रतियोगिता के लिए टीम का चयन 15 जुलाई को खेल परिसर दौंगड़ा अहीर में सुबह नौ बजे किया जाएगा। जिला एथलेटिक संघ के सचिव प्रदीप कुमार व खेल अकादमी के संचालक संजय घोड़ा ने संयुक्त रूप से बताया कि इस प्रतियोगिता में लड़के व लड़कियां भाग ले सकते हैं। भाग लेने वाले खिलाडिय़ों का जन्म 2002,2003,2004 व 2005 इन वर्षों में होना चाहिए। भाग लेने वाले खिलाड़ी अपने साथ जन्म प्रमाण पत्र व आधार कार्ड अवश्य साथ लेकर आए।
उपमंडल का कार्यभार संभालने के बाद एसडीएम ने ली अधिकारियों की बैठक
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कनीना। कनीना के एसडीएम सुरेंद्र सिंह ने मंगलवार को नगर पालिका में सभी विभागों के अधिकारियों की एक बैठक ली। एसडीएम ने सभी विभागों के अधिकारियों को जनता के कार्य त्वरित गति से करने के आदेश दिए। एसडीम सुरेंद्र सिंह ने बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि सभी कार्यालयों में आने वाले किसी भी नागरिक को काम के लिए बार बार चक्कर न लगाना पड़े। एसडीएम ने नगर पालिका के अधिकारियों को विशेष रूप से निर्देश देते हुए कहा कि बरसात का मौसम है इसलिए शहर की सफाई व्यवस्था की तरह विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। एसएचओ उमर मोहम्मद को निर्देश देते हुए कहा कि कनीना में जाम की स्थिति बनती है उसे सुधारा जाए। उन्होंने एसएचओ को कोविड-19 से बचाव के लिए मास्क के लिए भी विशेष अभियान चलाने के निर्देश दिए। एसडीएम ने एसएचओ से उपमंडल में स्थित थाने चौकियों के बारे में जानकारी ली और इसके साथ-साथ पुलिस गश्त बढ़ाने के निर्देश दिए। एसडीएम ने बीईओ सत्यवान सिंह को निर्देश देते हुए कहा कि 16 जुलाई से खुल रहे स्कूलों में बच्चों के स्वास्थ्य से किसी प्रकार का खिलवाड़ नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने बीईओ को निर्देश देते हुए कहा कि स्कूलों में सैनिटाइजर और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन किया जाना चाहिए। इसके साथ-साथ उन्होंने सरकार द्वारा जारी एसओपी का स्कूल संचालकों को पूर्ण पालन करने के निर्देश दिए। उन्होंने शिक्षा अधिकारी से खंड केे स्कूलों के बारे में जानकारी भी ली। खाद्य आपूर्ति विभाग के अधिकारियों को निर्देश देते हुए एसडीएम ने कहा कि अक्सर लोगों की डिपो होल्डरों के प्रति शिकायत रहती है इस तरह विशेष ध्यान दिया जाए और सभी लाभार्थियों को राशन समय पर वितरित किया जाए। इसके साथ ही उन्होंने नए राशन कार्ड बनने संबंधी जानकारी भी ली। बिजली विभाग से संबंधित अधिकारियों को निर्देश देते उन्होंने कहा कि लोगों को बिजली विभाग से जो शिकायतें आती है उन्हें प्राथमिकता के आधार पर हल किया जाना चाहिए। जन स्वास्थ्य विभाग के एसडीओ से विभाग संबंधित जानकारी ली और लोगों को पर्याप्त मात्रा में पेयजल उपलब्ध कराने के निर्देश दिए। मीटिंग में पहुंची बाल विकास सुपरवाइजर से संबंधित विभाग की जानकारी ली गई। पंचायत विभाग अधिकारियों से भी उनके द्वारा चल रहे विकास कार्यों के बारे में जानकारी ली। मार्केट कमेटी के अधिकारियों से जानकारी लेते हुए उन्हें भी चल रहे कार्यों को समय पर पूरा करने के निर्देश दिए। इस अवसर पर एसडीएम सुरेंद्र सिंह ने नगर पालिका के अधिकारियों को विशेष रूप से निर्देश देते हुए कहा कि बरसात के मौसम को देखते हुए कस्बे के सभी नाले और नालियों की सफाई जल्द से जल्द करवाई जाए। इस अवसर पर बैठक में स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों से चल रही स्वास्थ्य सुविधाओं के बारे में जानकारी ली। एसडीएम ने स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी को निर्देश देते हुए कहा कि वैक्सीनेशन से संबंधित पूरी जानकारी उपलब्ध कराई जाए। उन्होंने कहा कि सभी लोगों को वैक्सीन लगाने का जो लक्ष्य है उसे समय रहते पूरा किया जाना चाहिए। इस मीटिंग में पत्रकारों ने एसडीएम से कनीना में एआईपीआरओ अधिकारी के लिए भवन उपलब्ध कराने की मांग की। एसडीएम ने पत्रकारों को आश्वासन दिया की जल्द हे उनकी मांग पर विचार करते हुए हल निकाला जाएगा ।
फोटो कैप्शन 6: एसडीएम सुरेंद्र सिंह बैठक लेते हुए।
बाघेश्वर धाम में शिव परिवार मूर्ति प्राण प्रतिष्ठा, वीरवार को लगेगा महाभंडारा
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कनीना। बाघेश्वर धाम बाघोत में पैदल यात्री कांवड़ संघ श्री गंगानगर राजस्थान द्वारा
बाघेश्वर धाम शिव परिवार मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा की गई। तीन दिवसीय पूजा कार्यक्रम भक्तिमय माहौल में संपन्न हुआ। बाघेश्वर धाम मंदिर कमेटी सदस्य महीपाल नंबरदार बाघोत ने बताया
तीसरे दिन 21 पंडितों द्वारा पूजा बागेश्वर धाम के मठाधीश महंत रोशन पुरी महाराज के सानिध्य में संपन्न हुआ। केसरिया पहने श्रद्धालुओं ने बाबा भोले के जयकारे लगाए। श्रद्धालुओं ने शंकर भगवान के भजन कीर्तन भी किए। बागोत पैदल कांवड यात्रा संघ के प्रधान नरेश सपरिवार, श्याम सुन्दर, पवन गोयल, विक्की हनुमानगढ, मुकेश शास्त्री गंगानगर, जगदीश शास्त्री हनुमानगढ़, द्वारा विभिन्न प्रकार के पुष्प फल मिष्ठान एवं ओषधियों द्वारा अधिवास करवाया गया। बुधवार को मूर्ति महास्नान कांवड गंगाजल से नगर परिक्रमा करवाई जायेगी। वीरवार को महाभण्डारा किया जायेगा।
फोटो कैप्शन 4: शिव परिवार मूर्ति की पूजा करते हुए महंत रोशन पुरी महाराज व अन्य।
नहीं हुई अच्छी बारिश
-किसान अभी भी परेशान
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कनीना। कनीना क्षेत्र में लंबे समय से किसान बारिश आने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। मई, जून और जुलाई में महज इतनी बारिश हुई है की फसल तो उगा ली किंतु वह सूखने के कगार पर पहुंच गई है। विगत दिनों से क्षेत्र मानसून सक्रिय हुआ वह भी कनीना क्षेत्र के लिए शुभ दायक नहीं साबित हुआ है। मानसून सक्रिय होने पर बहुत कम बारिश हुई है जिसके चलते किसानों की समस्याएं बढ़ गई है। अभी भी खेतों में फसल पानी का इंतजार कर रही है। यह पहला अवसर है जब किसानों ने फसल उगाई है किंतु बारिश समय पर न होने से सूखने के कगार पर पहुंच गई। यहां तक कि हजारों हेक्टेयर जमीन पर बारिश अभाव में किसान अभी तक फसल नहीं उगा पाया है। एक ओर जहां सरकार मूंग अरहर आदि की फसलें उगाने पर जोर दे रहे है वहीं इतनी भी बारिश नहीं हुई है कि ये फसलें उगाई जा सके। वर्ष 1995 में कनीना क्षेत्र में बाढ़ आई थी, तत्पश्चात कभी इतनी बारिश न तो कनीना क्षेत्र में हुई है और नहीं होने की कोई संभावना लग रही है। हर वर्ष बारिश घटती जा रही है, किसान चिंतित है जल स्तर गिरता जा रहा है। यदि यही हाल रहा तो आगामी समय में किसानों के लिए जल की बहुत बड़ी समस्या खड़ी हो जाएगी, किसान फसल तक नहीं उगा पाएगा।
जीवन मरण एक शाश्वत सचाई-सतेंद्र आर्य
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कनीना। जीवन-मरण एक शाश्वत सच्चाई है। जन्म के बाद मृत्यु और मृत्यु के बाद जन्म निश्चित है। उक्त विचार आर्य समाजी सतेंद्र आर्य ने कोटिया गांव में कार्यरत शास्त्री राजेश कुमार नेताजी की माता रामरति की मृत्यु पश्चात गृह शुद्धिकरण के अवसर पर हवन उपरांत व्यक्त किये। रामरति का 7 जुलाई, 2021 को निधन हो गया था। वे करीब 75 साल की थी और विगत दिनों से बीमार चल रही थी। अचानक उनका निधन हो गया।
सतेंद्र आर्य ने कहा कि जिस दिन इंसान पैदा होता है उसी दिन उसकी मृत्यु भी निर्धारित हो जाती है। इस जग में कोई अमर नहीं है। इंसान अपने साथ बुराई या अच्छाई ले जाता है। उन्होंने कहा कि इंसान तेरा मेरा करते करते इस दुनिया से चला जाता है किंतु परहित के काम सदा याद रखे जाते हैं। इस मौके पर राजेश नेता का सुधांशु लड़का तथा दो लड़कियां प्रियंका व मोनिका भी उपस्थित थे।
फोटो कैप्शन 2: सतेंद्र आर्य हवन करवाते हुए।
असफलताओं से मत घबराइए बस प्रयासों की संख्या बढ़ाइए-मनोवैज्ञानिक सूर्यकांत
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कनीना। प्रत्येक व्यक्ति को जीवन में लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रयास करने पड़ते हैं। नतीजतन सफलता और असफलता से भी मुखातिब होना पड़ता है। अक्सर जो सफल होते हैं वही समाज की तथाकथित अग्रिम पंक्तियों में दिखाई देते हैं, शेष कहां रहते हैं समाज को इसकी चिन्ता नहीं होती। याद रखिए कि सिर्फ सफलता की ही नहीं बल्कि प्रयासों की भी अपनी सार्थकता होती है। केवल सफल होने वालों के ऊपर ही नहीं बल्कि कोशिश करने वालों पर भी ईश्वर की कृपा दृष्टि होती है और इसी कोशिश के अनवरत प्रयासों के बीच व्यक्ति का न जाने कब सफलता से सामना हो जाता है। इसलिए असफलता को एक चुनौती के रूप में स्वीकारते हुए,अपनी कमजोरियों को पहचाने फिर उन कमजोरियों में सुधार करते हुए,अपने आस-पास की सारी नकारात्मकता को नजरअंदाज करते हुए लक्ष्य प्राप्ति के अगले प्रयास में जुट जाएं। ये विचार उम्मीद कॉउंसलिंग सेंटर डाइट महेंद्रगढ़ के मनोवैज्ञानिक सूर्यकांत यादव ने बातचीत में व्यक्त किये।
क्या है असफलता के प्रति हमारा नजरिया-
मनोवैज्ञानिक ने कहा कि असफलता के प्रति हमारा जो नकारात्मक नजरिया है वो हमारी परवरिश, शिक्षा और परिवेश की देन है। दरअसल असफलता का सामना करना हमें सीखाया ही नहीं जाता या यूं कह लीजिए कि जिस वातावरण या परिवेश में हम रहते हैं, वहां केवल सफलता की घुट्टी पिलाई जाती है। अब जाहिर है कि जब असफलता से निपटना हमें सीखाया ही नहीं गया तो हमें पता ही नहीं होता कि असफलता के प्रति हमारी प्रतिक्रिया क्या होनी चाहिए। परिणामस्वरूप असफल होने पर हम भयभीत हो जाते हैं और हताश,निराश तथा कुंठित होकर बिखर जाते हैं। असल में सफलता और असफलता दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। हम बच्चों को स्कूल का काम न करने पर धमकाते हैं,नाराज हो जाने की धमकी देते हैं,असफल हो जाने का भय पैदा करते हैं। माता-पिता इस हद तक भय पैदा कर देते हैं कि भय से ग्रस्त बच्चा अपनी क्षमताओं और शक्तियों को विकसित करने की बजाय उनका विनाश करता चला जाता है और यहीं से बच्चे का बिलीफ सिस्टम निर्मित होता है।
उन्होंने कहा कि सफलता और असफलता की परिणति हमारे बिलीफ सिस्टम पर निर्भर करती है यदि हम असफलता को कमजोरी का प्रतीक मानते हैं तो हमें अपने बिलीफ सिस्टम को पुन: व्यवस्थित करने की आवश्यकता है। दुर्भाग्यवश हमारी वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में भी प्रयास के स्थान पर परिणाम को ही प्रोत्साहित किया जाता है। हमें यह भली भांति समझ लेना चाहिए कि हम प्रयास के लिए उत्तरदायी हैं, न कि परिणाम के लिए। इसलिए सफलता- असफलता की बात छोड़ो,प्रयासों का महत्व समझो।
फोटो कैप्शन: मनोवैज्ञानिक सूर्यकांत यादव
करीरा और खरखड़ाबास प्रसिद्ध हैं बैल गाडिय़ों के लिए
-तेल महंगा होने के चलते किसान कर रहे हैं बैलगाड़ी प्रयोग
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कनीना। कनीना उपमंडल में करीरा और खरखड़ाबास तो ऐसे गांव है जहां आज भी बैलगाड़ी प्रयोग की जाती है, सैकड़ों की संख्या में यह बैल गाडिय़ां महिलाएं ही चलाती है। सुबह खेतों में काम के लिए बैलगाड़ी में चलती है, पशुओं के लिए चारा तथा अन्य सामग्री इसी में डाल कर वापस लाती हैं। कहते हैं इतिहास अपने आप को दोहराता है, फिर से वो धीरे धीरे लौटने लगा है। यद्यपि पुराने समय बैलगाड़ी दो बैलों से खींची जाती थी किंतु अब एक बैल की बैलगाड़ी का प्रचलन हो गया है जिसके टायर लगे होते हैं। पहले टायर के स्थान पर लकड़ी के पहिये लगे होते थे। अक्सर दोनों ही गांवों में महिलाएं बैलगाड़ी का प्रयोग करती है। एक बैल को गाड़ी पर जोड़कर महिलाएं उस गाड़ी को चलाती है। ऐसे में महिलाओं की शान की सवारी एक बैल की गाड़ी बन गई है।
इस संबंध में लोगों से बातचीत की गई। निरंजन कुमार, महावीर सिंह, महिपाल सिंह, नरेश कुमार आदि ने बताया कि उनके गांव में लंबे समय से एक बैल की गाड़ी प्रयोग की जाती है। एक बैल की गाड़ी में जहां महिलाएं अपने पशुओं के लिए चारा काट कर लाती है वही कूड़ा एवं गोबर आदि डाल कर लाती है घर से कूड़ा कचरा भी इसी बैलगाड़ी में ले जाकर खेतों में डाल देती है। उन्होंने बताया कि एक बैल पर अधिक खर्चा भी नहीं आता है। बैल खेत में जाकर घास चर लेता है तब तक महिलाएं चारा काट लेती हैं।
क्षेत्र में बैलों की बसों की संख्या बढ़ती जा रही है जिनका उपयोग नहीं होता है। एक बैल की बैलगाड़ी के चलते इन बैलों की मांग बढ़ी है वही महिलाएं इस कार्य को पूर्ण अंजाम देती है। इन गांवों की गलियों में यदि देखा जाए सुबह और शाम के समय महिलाएं घूंघट निकाल कर बैलगाड़ी पर सवार होती है और अपनी शान की सवारी को खेत से घर तथा घर से खेत तक ले जाती है। इस प्रकार इन महिलाओं की दिनचर्या पूर्ण होती है जो सेहत के लिए तथा प्रदूषण रोकने में कारगर साबित हो रही है। आवश्यकता आविष्कार की जननी भी कहा जा सकता है क्योंकि दो बैलों की गाड़ी जो पहिये लकड़ी के होते थे रेत में चलाना बहुत कठिन कार्य होता था किंतु एक बैल की गाड़ी जिसमें टायर लगे होते हैं चलाना सरल कार्य है और यह रेत में धंसती नहीं जबकि बैलगाड़ी जिसके लकड़ी के पहिये होते हैं मिट्टी में धंस जाते हैं।
कृषि वैज्ञानिक डॉ देवेंद्र यादव, डॉ देवराज यादव आदि ने बताया की आधुनिक विज्ञान की देन के चलते बैलगाड़ी कारगर साबित हो रही है क्योंकि इसमें टायर लगे होते हैं जो रेत में भी कार्य करते हैं। अधिकांश किसानों का कार्य रेतीली जमीन में होता है वहां तक पहुंचने के लिए दो बैलों की और लकड़ी की गाड़ी कारगर नहीं होती है। यही कारगर हैं और विशेषकर महिलाएं इसको संचालित कर अपनी दिनचर्या का हिस्सा बना रही हैं। क्षेत्र के लिए भी खुशी की बात है कि तेल की बचत होती है वही सेहत के लिए और पर्यावरण के लिए लाभप्रद साबित हो रही है।
फोटो कैप्शन 2: बैलगाड़ी को ले जाते हुए करीरा की महिलाएं।
सावन जैसा लगा झड़
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कनीना। कनीना एवं आस पास मंगलवार को सावन माह जैसा झड़ लग गया है। चार घंटों तक हल्के झड़ में महज दो एमएम बारिश हुई है। किसान अच्छी बारिश का इंतजार कर रहे हैं।
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