सब कुछ सही रहा तो जल्द ही उपमंडल एवं न्यायिक परिसर निर्माण कार्य हो सकता है शुरू
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कनीना। कनीना में न्यायिक परिसर एवं उपमंडल कार्यालय निश्चित होने तथा भवन निर्माण के लिए आई राशि को प्रयोग करने के लिए सभी विकल्प तलाशे जा रहे हैं। समय समय पर विभिन्न साइट देखे जा चुके हैं तथा न्यायिक परिसर की नींव भी विगत वर्ष रख दी गई थी। यदि सब कुछ ठीक रहा तो जल्द ही निर्माण कार्य कनीना में शुरू हो सकते हैं।
उल्लेखनीय है कि कनीना की वर्तमान न्यायिक परिसर के पास जगह पर जहां सामान लाने ले जाने के लिए रास्ता तलाशा जा रहा है। खंड विकास एवं पंचायत अधिकारी कार्यालय के रास्ते में कोई दुकान आदि नहीं लगती जिसके चलते महज दीवार को तोड़कर भवन निर्माण सामग्री को लाया ले जाया जा सकता है। इस संबंध में विधायक अटेली सीताराम यादव तथा पालिका प्रधान सतीश जेलदार ने भी वैकल्पिक मार्ग तलाशने तथा भवन निर्माण करवाने की बात की पुष्टि की। दीवार हटाकर मार्ग बनाने की बात उच्च अधिकारियों तक बात पहुंची हुई है। यदि सब कुछ ठीक रहा तो गेट की दीवार तोड़ मार्ग चौड़ा करके सामान को लाया ले जाया जाया जा सकता है और भवन निर्माण कार्य यही निर्मित हो सकते हैं। अभी तक भवन निर्माण कार्य 8 सालों से अधर में लटके हुए हैं। इसके लिए लंबा संघर्ष भी किया है अभी तक अस्थाई कार्यालय में न्यायिक परिसर और उपमंडल कार्यालय चल रहे हैं।
संघर्ष की दास्तान.....
2013 में कांग्रेस शासन में एवं तत्कालीन सीपीएस एवं अटेली विधायक अनीता यादव के भरसक प्रयासों के उपमंडल का दर्जा दिया गया। जहां प्रारंभ में पीपल वाली बणी/जंगल में पर तत्पश्चात कालर वाली जोहड़ पर तत्पश्चात खंड विकास पंचायत अधिकारी कार्यालय के पीछे भवन बनाए जाने की चर्चा जोर शोर से चली। अटेली विधायक संतोष यादव के समय पीपलवाली बणी में कार्यालय निर्माण के लिए राशि भी आ गई थी। वर्ष 2013 के बाद खंड विकास एवं पंचायत अधिकारी कार्यालय में उपमंडल कार्यालय अस्थायी रूप से स्थापित करवा दिया गया जो आज तक वहीं चल रहा है। वर्ष 2017 में न्यायिक परिसर उन्हाणी गांव में बनाए जाने की चर्चा चलते ही 67 दिन एसडीएम कार्यालय समक्ष धरना प्रदर्शन चला। 21 फरवरी 2017 एवं 27 फरवरी 2017 को तत्पश्चात अगस्त 2018 को महापंचायत आयोजित करवाई गई ताकि सभी कार्यालय कनीना में ही बनवाए जाए। एसडीएम से बार बार मिले, 21 फरवरी से लगातार धरना जारी रहा जुलूस चला, कनीना बंद रखा गया,उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों लोग मिले, जिला उपायुक्त से तत्कालीन समय में लोग मिले, अनशन जारी रहा यहां तक कि कनीना में ही सभी कार्यालय बनाए जाने को लेकर के वर्ष 2017 में 13 पार्षदों में से 12 ने सामूहिक इस्तीफा दे दिया। 6 जुलाई 2015 को मनोहर लाल खट्टर ने कनीना कालेज में एक जनसभा आयोजित करते हुए फायर ब्रिगेड, सब्जी मंडी, उप मंडल कार्यालय परिसर, स्टेडियम सभी कनीना में बनाए जाने की घोषणा की थी तब से लोग चैन से नहीं बैठे हैं। आखिरकार अब दोनों भवन कनीना में बनाये जाने को अंतिम रूप दिया हुआ है।
न घर और न छत किंतु रोटी बनाए झटपट
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कनीना। 'न घर और न छत किंतु रोटी बनाए झटपट। यह कथन अनेकों परिवारों पर लागू होता है। शहरों के आस पास कितने ही परिवार आज भी बिना छत के गुजर बसर कर रहे हैं और उनके रह सहन के अंदाज ही अलग हैं। खानाबदोश जाति के लोगों के अलावा, कूड़े से उपयोगी पदार्थ ढूंढने वाले और रेवड़ के साथ चलने वाले लोग आज भी आंधी, बारिश एवं सर्दी-गर्मी में आसमान के नीचे ही अपना सभी काम करते हैं। इन्हें घर की कोई चिंता नहीं होती है।
शहरों के आस पास पड़े हुए सैकड़ों परिवार बिना छत के और आसमान के नीचे ही अपना जीवन यापन कर रहे हैं। इनको वोट डालने की चिंता भी नहीं है और न ही इनको घर बनाने की चिंता है। ये लोग अपनी मस्ती में मस्त रहते हैं। सबसे अधिक अजीब लोग तो भेड़ बकरी अर्थात रेवड़ व गायों को चराने वाले हैं। राजस्थान से आए अमीन, रसीद एवं सुलेमान ने बताया कि वे तो किसानों के खेतों में रेवड़ को रातभर बैठाकर अपना गुजारा करते हैं। जिस खेत में वे रेवड़ बैठाते हैं उस खेत के मालिक से अपने रेवड़ के लिए जल, अपने लिए आटा लेते हैं और थोड़ा बहुत धन लेते हैं। दूर दराज तक रेवड़ को चराकर किसानों के खेतों में उन्हें बैठाते हैं। इसी प्रकार के लोग गाय चराने वाले हैं। ये लोग बताते हैं कि गाय एवं रेवड़ उनके अपने नहीं हैं अपितु कुछ अमीर लोगों के होते हैं। वे तो भोजन के लिए और कुछ धन पाने के लिए ही उन्हें राजस्थान से हरियाणा में लाते हैं। जब फसल कटती है तभी इनकी संख्या अधिक देखने को मिलती है।
खानाबदोश लोग भी बिना छत के ही इधर उधर घूमते रहते हैं। उनके बच्चे किसी स्कूल व शिक्षण संस्थान की ओर कम और दिनभर कूड़े से उपयोगी पदार्थ इक_े करके उन्हें कबाड़ की दुकान तक बेचने का काम करते हैं। कहने को ये लोग गरीब होते है किंतु इनके पास टीवी, मोबाइल एवं अन्य सभी सुविधाएं मिलती हैं। ये लोग बैटरी से ही टीवी एवं यंत्र चलाते हैं। कबाड़ का सामान बेचने वाले कबाइली बच्चों से शिक्षा पाने के बारे में पूछे जाने पर उनका कहना था कि पढ़ाई में पैसे नहीं मिलते। प्रतिदिन वे दो सौ से 300 रुपये तक कमा लेते हैं। ऐसे में वे पढऩे के इच्छुक कम नजर आए।
इन लोगों को देखकर लगता है कि इंसान का मुख्य काम पेट भरने तक ही सीमित रह गया है। ये लोग अपने पेट पालने के अलावा अन्य किसी कार्य में रुचि नहीं दिखाते। इन्हें छत व झोपड़ी की चिंता नहीं है। एक ओर लोग जंगली जीवों एवं जहरीले कीटों से डरते हैं किंतु इन लोगों को धरती पर ही सोना होता है और किसी रोग व जंगली जीवों को कोई भय नहीं होता है।
फोटो कनीना 9: खुले में भोजन बनाती एक घुमंतू जाति की महिला।
नंबरदारों के आयुष्मान कार्ड बनाने और मोबाइल फोन देने की की मांग
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कनीना। नंबरदार एसोसिएशन विचार मंच के वेद प्रकाश नंबरदार ने सरकार से अपील की है कि काफी लंबे समय से नंबरदारों की जो मांगे लंबित हैं उन्हें पूरा करें। नंबरदारों को मोबाइल फोन देने और आयुषमान कार्ड बनाने की मैांग पुरानी है जिसे पूरा नहीं किया है, सरकार ने घोषणा कर दी है। परंतु अभी तक मोबाइल फोन नहीं मिले हैं। उन्होंने नंबरदारों का बकाया मानदेय भी जल्द से जल्द पूरा करने की मांग की है।
ट्रैफिक नियमों का पालन न करने वालों को किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा-रावत
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कनीना। बिना कागजात, बिना हेलमेट तथा बिना सीट बेल्ट के वाहन चलाने वालों को किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाएगा। ये विचार ट्रैफिक पुलिस इंस्पेक्टर रामानंद रावत ने अवैध रूप से वह बिना कागजों के चल रहे वाहनों पर शिकंजा कसने के उपरांत पत्रकार वार्ता में व्यक्त किये। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि सरकार, व प्रशासन बार-बार मानव जीवन को सुरक्षित करने के लिए ट्रैफिक नियमों का पालन करवा रहा है लेकिन लोग है कि मानते ही नहीं। इसी बात को लेकर हमारी टीम ने आज इस तरह के वाहन चालकों पर शिकंजा कसा है जिसमें दर्जनों वाहनों के चालान काटे हैं ताकि मानव जीवन को सुरक्षित रखने के लिए उनको सीख मिले। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार व प्रशासन बार-बार लोगों द्वारा ट्रैफिक नियमों का पालन करने की बात कह रहा है लेकिन ये लोग किसी भी बात को महत्व नहीं देते जिसको लेकर इन पर पुलिस प्रशासन द्वारा शिकंजा कसा गया है। सरकार व प्रशासन चाहता है कि सभी लोग ट्रैफिक नियमों का पालन करें जिससे अन्य वाहन चालकों का भी नुकसान नहीं होगा। सरकार बार-बार इन को जागरूक करने के लिए कैंप लगा रही है तथा पुलिस प्रशासन द्वारा बार-बार बताया जा रहा है परंतु कुछ एक व्यक्ति इस बात को समझने का प्रयास ही नहीं कर रहे हैं जिसके कारण आए दिन दुर्घटनाओं में वृद्धि हो रही है। इस अवसर पर इनके साथ ट्रैफिक पुलिस के के अन्य कर्मचारी उपस्थित रहे।
फोटो कैप्शन 10: वाहनों की चेकिंग करते पुलिस इंस्पेक्टर रावत।
फिर लौटने लगा है साइकिल का जमाना
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कनीना। इतिहास अपने आपको दोहराता है कि कहावत सचमुच साइकिलों पर लागू होती है। एक बार फिर से साइकिलों का प्रचलन बढ़ गया है। सेहत के लिए बेहतर मानी जाने वाली साइकिल एक्सरसाइज का अच्छा साधन भी है। यही कारण है कि साइकिलों की मांग बढ़ गई है तथा साइकिलों की कीमतें भी बढ़ रही हैं। विभिन्न शहरों में साइकिल चलाने वाले नेताओं को भी विगत वर्षों सम्मानित किया गया था।
उल्लेखनीय है कि रोगों के बढऩे व पेट्रोल कीमतों में भी बढ़ोतरी होने के कारण लोग अब महंगे वाहनों के साथ-साथ साइकिल चलाने लगे हैं। वे मानते हैं कि साइकिल उनकी सेहत के लिए बेहतर होती है। साइकिलों के नए-नए माडल व आकार बाजार में महंगे दामों पर उपलब्ध हैं। लोग छोटी दूरियां तो साइकिल से ही तय करना बेहतर समझते हैं। ऐसे में एक बार पुन: साइकिलों की मांग बढ़ गई है। सुबह सवेरे तो कुछ लोग व बच्चे साइकिलों पर घूमते नजर आते हैं।
योग अभ्यास कराने वालों का कहना है कि साइकिल से भी समस्त अंगों का अभ्यास होता है ऐसे में साइकिल चलाना सेहत के लिए अच्छा होता है क्योंकि यह भी एक अभ्यास होता है। साइकिलों की कीमत देखे तो आज चार हजार रुपये के आस पास पहुंच चुकी है। ऐसे में गरीब व्यक्ति के लिए साइकिल खरीद पाना भी तो सरल कार्य नहीं है। साइकिल का जमाना कभी साइकिल के आविष्कार के बाद बढ़ा था या फिर अब रोग बढऩे से साइकिलों का जमाना एक बार फिर लौट आया है। सड़कों पर सबसे अधिक साइकिल ही चलते देखे जा सकते हैं।
क्या कहते हैं साइकिल विक्रेता-
साइकिल विक्रेता सुरेश कुमार का कहना है कि अब साइकिल के बेहतर माडल पाने के लिए उनके पास आते हैं किंतु इस क्षेत्र ज्यादा कीमती साइकिल न होने से रेवाड़ी तथा अन्य शहरों की ओर जाकर उपभोक्ता साइकिल ला रहे हैं। गांवों में प्रतिदिन पांच साइकिल तक बिक जाती हैं। जो व्यक्ति मोटरसाइकिल पर चलते थे वे अब साइकिल की सोच रहे हैं। बिना प्रदूषण का तथा बिना पेट्रोल का सबसे बेहतर साधन है। थोड़ी दूरी व गैस सिलेंडर लाने में इनका अहं योगदान है।
साइकिल चलाने वाले-
पर्यावरण प्रेमी राजेंद्र सिंह का कहना है कि जब से वे साइकिल चला रहे हैं अपने को तंदरुस्त महसूस कर रहे हैं। उनके पास मोटरसाइकिल तो हैं किंतु उनकी सबसे पसंदीदा सवारी साइकिल ही है। उन्होंने का कि हमारे समाज की नीति कुछ अलग है। जिस किसी के पास धन नहीं है या गरीब व्यक्ति साइकिल पर चलने की धारणा मानते हैं किंतु उनका का कहना है कि जो आलसी, रोगों से पीडि़त एवं हर काम में जल्दी व हावल तावल मचाने वाले जन ही मोटरसाइकिल या अन्य साधनों को अधिक पसंद करते हैं। उनका कहना है कि जब बड़े-बड़े देश साइकिल पर आ गए हैं तो भारत के लोग साइकिल क्यों नहीं चलाते हैं? सुमेर सिंह चेयरमैन, राव मोहर सिंह कनीना लंबे समय से साइकिल चलाते हैं।
क्या कहते हैं पर्यावरणविद-
पर्यावरणविद रवींद्र कुमार का कहना है कि भागदौड़ की जिंदगी में कार आदि से सौ गुणा बेहतर साइकिल है। साइकिल से न केवल स्वास्थ्य बना रहता है अपितु वायु, ध्वनि प्रदूषण से बचा जा सकता है। पेट्रोलियम की बचत होती है वहीं ओजोन पर्त में छेद होने से बचा जा सकता है। उन्होंने कहा कि साइकिल हर दृष्टि से बेहतर साधन है।
पहली से तीसरी कक्षा के स्कूल खुलेंगे 20 से
-स्कूलों में विद्यार्थी प्रात: नौ से बारह बजे तक रहेंगे
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कनीना. कनीना क्षेत्र में पहली से तीसरी कक्षा तक के प्राथमिक स्कूल कोरोना काल के बाद 20 सितंबर से खुल खुलेंगे। विद्यार्थियों को प्रात: 9 से दोपहर 12 बजे तक आना होगा जबकि विद्यालयों में शिक्षकों को प्रात: साढ़े आठ से दोपहर पश्चात डेढ़ बजे तक ठहरना होगा। शिक्षा विभाग ने चार अलग अलग समय में विभिन्न कक्षाएं एवं स्कूल खोले हैं।
उल्लेखनीय है कि नौवीं से 12वीं तक के स्कूल स्कूल 12 जुलाई से तथा कक्षा 6 से 8 के स्कूल 23 जुलाई से खुल चुके हैं। कक्षा तीसरी से पांचवीं तक के स्कूल एक सितंबर से खुल चुके हैं। यदि अभिभावक चाहे तो यह अपने बच्चों को स्कूल भेज सकते हैं ऐसे में माता-पिता की अनुमति से ही स्कूलों में विद्यार्थी जा सकते हैं।
अब कक्षा प्रथम से 12वीं तक सभी निजी एवं सरकारी स्कूल खोले जा चुके हैं। विद्यार्थी कुछ स्कूलों में अधिक तो कुछ में कम आ रहे हैं।
गणेश की मूर्ति को किया विसर्जित, दस दिनों से की जा रही थी पूजा
-आयोजित किया यज्ञ
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कनीना। कनीना के पुराने ठाकुर मंदिर में गणेश उत्सव पर स्थापित मूर्ति की दस दिनों तक पूजा करने के बाद विधि विधान से रविवार को विसर्जित कर दिया गया। इस मौके पर हवन भी आयोजित किया गया।
पुजारी कंवरसेन वशिष्ठ ने बताया कि कनीना ठाकुर जी के मंदिर में गणेश जी की मूर्ति की 10 दिन पूर्व स्थापना की थी। प्रतिदिन सुबह शाम पूजा पाठ व कीर्तन करके गणेश जी का गुणगान किया गया व प्रसाद का वितरण किया गया। उन्होंने बताया कि गणेश जी की पूजा करने मनुष्य की सभी मनोकामना पूर्ण होती है। गणेश जी भगवान शंकर व मां पार्वती के पुत्र होने के कारण धन्य धान्य कि पूर्ण सिद्धि गणेश जी के पास थी जो इस कलियुग में भी पूर्ण रूप से सार्थक है। विगत 10 दिनों तक ठाकुर जी के मंदिर में प्रवेश जोशी ने मंत्र उच्चारण के साथ गणेश जी का पूजन किया। रविवार को हवन आयोजित किया गया जिसमें सैकड़ों नर नारियों ने यज्ञ में आहुति दी और गणेश जी की मूर्ति की श्रद्धा से आरती की गई। विधि विधान से गणपति बप्पा मोरिया के उद्घोष के साथ नहर में विसर्जित किया। इस मौके पर मदनलाल शर्मा, भारत विकास परिषद प्रधान मोहन कुमार , पवन कुमार शर्मा, पूर्ण शर्मा, कालिया शर्मा, रविंद्र यादव, राहुल शर्मा, वेद शर्मा, विक्की यादव, संदीप शर्मा कोटिया, नवीन वेद शर्मा, दुष्यंत शर्मा, दिनेश सिंगला, राहुल सिंगला, प्रतीक शर्मा, सौरभ शर्मा, विनोद शर्मा, सरोज देवी सैकड़ों जन मौजूद थे।
फोटो कैप्शन 6: गणेश विसर्जन सेक पूर्व हवन करते हुये भक्त।
पंच सुनील कुमार ने गरीब व्यक्ति को 20 सालों तक दिया परिवार जैसा प्यार
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कनीना। लोग इस आपाधापी के युग में लोग अपने मां बाप भाई बहन को मान सम्मान और इज्जत नहीं देते लेकिन गांव धनौंदा में एक शख्स ऐसा भी है जिसने बिहार के एक प्रहलाद नामक व्यक्ति को 20 वर्षों तक आपने पास रखा और उसकी भोजन, पानी, वस्त्र आदि से सेवा की है और परिवार के सदस्य की भांति रखा।
सुनील कुमार ने बताया कि प्रहलाद नामक एक व्यक्ति बिहार अकेला होने के कारण गांव धनौंदा में मेहनत मजदूरी करके अपना पेट भरने के लिए आया था। लेकिन एक दिन है गांव के सुनील कुमार से मिला तो पीडि़त व परेशान प्रहलाद ने अपनी बातें सुनील को बताई। जिस पर उन्होंने उनकी बातों को ध्यान से सुना और दया करते हुए उनको कहा कि आज से आपको कहीं भटकने की जरूरत नहीं है और आप हमारे साथ रहेंगे। एक घर के सदस्य की तरह और उस दिन से लेकर आज तक सुनील कुमार ने प्रहलाद को लगातार 20 वर्ष अपने घर पर रखकर उसकी सेवा की तथा पिछले दिन प्रहलाद बीमार पड़ गया था जिसको सुनील ने पर्याप्त इलाज करवाया किंतु प्रहलाद भगवान को प्यारा हो गया जिसको लेकर सुनील व उसके परिवार ने हिंदू रीति रिवाज से उसका दाह संस्कार कर सभी क्रिया कर्म किए।
पूर्व पंच सुनील कुमार ने लोगों को ब्रह्मभोज करा प्रहलाद को अंतिम विदाई दी। सुनील कुमार ने एक अनाथ आदमी की सेवा और सहायता कर यह मिसाल कायम की है आज भी समाज में सुनील जैसे अच्छे लोगों की कमी नहीं है जो अपने पराये में कोई भेद नहीं करते और सबको समान सम्मान देते हैं।
6 अक्टूबर तक चलेंगे श्राद्ध
- पितरों को खुश करने का सही समय-सुरेंद्र शर्मा
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कनीना। क्षेत्र में 20 सितंबर से पितरों को खुश करने के लिए श्राद्ध प्रारंभ हो रहे हैं। पितरों के प्रति कृतज्ञता अभिव्यक्त करने के लिए ये पर्व चलते हैं। कनीना के ज्योतिष आचार्य सुरेंद्र शर्मा का कहना है कि पूर्वजों के कारण हम आज अस्तित्व में है, उनके गुण व कौशल आदि हमें विरासत में मिले हैं। हमें उनका ऋण जरूर चुकाना चाहिए और इस ऋण को चुकाने के लिए उन्हें हर वर्ष श्राद्ध या तर्पण कर्म किये जाते हैं। उनका कहना है कि देवताओं को प्रसन्न करने से पहले पितरों को प्रसन्न करना जरूरी होता है।
मार्कंडेय पुराण में कहा गया है कि रुचि नाम का ब्रह्मचारी साधक वेदों के अनुसार साधना कर रहा था। जब 40 वर्ष का हुआ तब उसे अपने चार पूर्वजों जो मनमाना आचरण शास्त्र विरुद्ध साधना करके पितर बने हुए थे तथा वे कष्ट भोगते दिखाई दिए। पितरों ने उससे कहा कि बेटा रुचि शादी करवा कर हमारे श्राद्ध निकाला करो। यद्यपि रुचि तर्पण में विश्वास नहीं करता था किंतु पितरों के कष्ट को दूर करने के लिए श्राद्ध निकाले। पितरों में नाना-नानी, माता-पिता, दादा-दादी या उनसे पहले उत्पन्न हुए पितर भी शामिल किए जाते हैं। उन्होंने कहा कि 20 सितंबर को पूर्णिमा के दिन से ही श्राद्ध प्रारंभ हो जाएंगे जो 6 अक्टूबर तक लगातार चलेंगे। 6 अक्टूबर को पितृ अमावस्या आएगी। तत्पश्चात 7 अक्टूबर से नवरात्रि प्रारंभ हो जाएंगे।
सुरेंद्र शर्मा ने बताया कि 20 सितंबर को सुबह 5:30 बजे से पूर्णिमा प्रारंभ हो जाएगी और इसी दिन से श्राद्ध प्रारंभ होते हैं। श्राद्ध पूरे 16 दिन चलते हैं। कभी-कभी एक श्राद्ध दो दिनों तक चल सकता है। इस बार 20 सितंबर से शुरू होकर 6 अक्टूबर तक लगातार श्राद्ध चलते रहेंगे। उन्होंने कहा कि घर एवं परिवार की समस्याओं के निराकरण के लिए भी श्राद्ध निकालना उचित माना जाता है। इस दौरान पिंड दान, दर्पण कर्म और ब्राह्मणों को भोजन प्रसन्नता पूर्वक खिलाया जाता है। पितृ पक्ष भाद्रपद मास की पूर्णिमा से शुरू होकर आश्विन मास की अमावस्या तक चलते हैं। पूर्णिमा के दिन उन लोगों का श्राद्ध किया जाता है जिनका निधन पूर्णिमा की तिथि के दिन हुआ हो। चाहे किसी व्यक्ति की मृत्यु शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष में हुई हो किंतु जिस तिथि को मृत्यु हुई है उसी तिथि को श्राद्ध निकाला जाता है। उन्होंने कहा कि जिन व्यक्तियों को अपने पूर्वजों की देहांत की तिथि नहीं मालूम उन्हें आश्विन अमावस्या को श्राद्ध कर्म करना चाहिए। इसके अलावा अकाल मृत्यु या किसी दुर्घटना का शिकार हुये लोगों का श्राद्ध चतुर्दशी तिथि को किया जाता है।
प्रतिदिन इस अवधि में गायों , पक्षियों एवं ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है वहीं दान दक्षिणा भी चलती रहती है। ग्रामीण क्षेत्रों में इन्हें श्राद्ध को कनागत नाम से जाना जाता है।
फोटो कैप्शन: सुरेंद्र शर्मा
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