कोटा एवं सीकर के लिए कोचिंग करने जाते हैं सैकड़ों विद्यार्थी
-क्षेत्र में बेहतर कोचिंग संस्थान का है अभाव
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कनीना। यद्यपि शिक्षा को हब का रूप देने में महेंद्रगढ़ स्थित शिक्षण संस्थानों ने अहम भूमिका अदा की है किंतु अभी तक बेहतरीन कोचिंग संस्थान का अभाव है। हरियाणा राज्य से प्रतिवर्ष हजारों विद्यार्थी नीट एवं इंजीनियरिंग आदि में सफलता पाने के लिए सीकर और कोटा की ओर दौड़ रहे हैं। विभिन्न घरों से दसवीं पास करने के बाद विद्यार्थियों के अभिभावक बेहद परेशान हो जाते हैं और उसे कोचिंग देने वाले संस्थानों में दाखिला करवाते हैं। यहां तक कि अभिभावक अपने बच्चों के साथ कोटा या सीकर जाने को मजबूर हैं। जहां कोटा कोचिंग देने में एक नंबर पर माना जाता है वहीं सीकर के संस्थान भी कुछ कम नहीं हैं। यदि एमबीबीएस करना हो या अन्य कोई डाक्टरी लाइन का कोर्स करना है तो कड़ी स्पर्धा नीट की चलती है और इस नीट में बहुत अधिक मेहनत करने के लिए विद्यार्थी कोचिंग करने जाते हैं।
क्षेत्र के विभिन्न अभिभावकों राजवीर, सुनीता, संजय, धर्मेंद्र, विजय कुमार, सुनील, पंकज, दिनेश आदि से बात की तो उन्होंने बताया कि क्षेत्र के गांव और शहर से भारी संख्या में विद्यार्थी कबारहवीं करने के पश्चात कोचिंग के लिए सीकर या कोटा जा रहे हैं। जहां बेहतरीन शिक्षण दिया जाता है और बहुत से विद्यार्थी एमबीबीएस में चयनित हो जाते हैं। हर अभिभावक की यही इच्छा है कि उनका बेटा या बेटी एमबीबीएस करें । यही कारण है कि नीट की परीक्षा के लिए सीकर और कोटा की ही नहीं दिल्ली, गुरुग्राम तथा अन्य राज्यों में भी भेजकर कोचिंग दिलवाई जाती है तथा नीट की आयोजित परीक्षा को बेहतर ढंग से पास करने का प्रयास किया जाता है। यही कारण है कि कभी किसी घर में एमबीबीएस करने वाले दूर-दूर आज तक नजर नहीं आते थे अब विभिन्न घरों में एमबीबीएस करने वाले जरूर मिल जाते हैं। यहां तक कि विदेशों से भी एमबीबीएस करने का सिलसिला जारी है।
अब तो गांवों में भी अनेकों विद्यार्थी एमबीबीएस कर गए हैं। यही कारण है कि स्पर्धा बढ़ती ही जा रही है।
क्या कहते हैं विद्यार्थी -
विद्यार्थी हर्ष, सुजल, अमीश, दिनेश, महेश आदि ने बताया कि वे नीट की परीक्षा में बैठना चाहते हैं परंतु अच्छी तरह से तैयारी करके ही इस परीक्षा में बैठना चाहते हैं। यही कारण है कि वे कोटा और सीकर आदि क्षेत्रों में कोचिंग लेने के लिए जा रहे हैं। ऐसे में अब जिला महेंद्रगढ़ जो शिक्षण संस्थान में एक नंबर पर रहा है कोचिंग संस्थान की जरूरत महसूस कर रहा है। यदि इस प्रकार की बेहतरीन कोचिंग संस्थान स्थापित हो जाए तो विद्यार्थियों का भला हो सकता है। यद्यपि छोटे कोचिंग सेंटर शहरों में स्थापित होने लग गए हैं।
धनौंदा स्कूल में लगी विज्ञान प्रदर्शनी
-31 विभिन्न माडल प्रस्तुत किए
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कनीना। कनीना उपमंडल के धनौंदा स्थित राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में कक्षा छह से आठ तक की विज्ञान प्रदर्शनी लगाई जिसमें 31 विभिन्न माडल प्रस्तुत किए। मुख्य अतिथि प्राचार्य कृष्ण सिंह थे जबकि विशिष्ट अतिथि मुख्याध्यापक महिपाल सिंह थे।
इस अवसर पर कृष्ण सिंह प्राचार्य ने विभिन्न माडल ने केवल देखें अपितु विद्यार्थियों से गहन प्रश्न पूछे जिनका उत्तर विद्यार्थियों ने दिया। इस मौके पर कृष्ण सिंह प्राचार्य ने कहा कि विज्ञान प्रदर्शनी विद्यार्थियों में विज्ञान पढ़ाने का सरल जरिया है जो विद्यार्थियों के दिल में गहन जगह बना लेते हैं। प्रयोग द्वारा आसानी से सीख सकते हैं। इस अवसर पर उन्होंने सभी भाग लेने वाले विद्यार्थियों को बधाई दी तथा कहा कि भविष्य में सभी विद्यार्थी कक्षा 6 से 8 के विज्ञान प्रदर्शनी में भाग ले तो सबसे सुंदर कार्य होगा। इस अवसर पर महिपाल सिंह विशिष्ट अतिथि ने कहा कि विज्ञान प्रदर्शनी में विद्यार्थियों को न केवल कला अपितु विज्ञान के प्रति रुचि जागृत की है जो उनके मन पर अंतर्मन पर गहन प्रभाव छोड़ जाएगी। उन्होंने इस प्रकार की प्रदर्शनी समय-समय पर आयोजित करने की मांग की। इस मौके पर निर्णायक मंडल प्राध्यापक हंसराज, प्राध्यापक रविंद्र कुमार, प्राध्यापक सतन सिंह ने 31 मॉडल ने केवल गहनता से अध्ययन किया अपितु उनसे जुड़े सभी अनेक सवाल पूछे। इस मौके पर निर्णायक मंडल ने योगेंद्र सिंह का वाटर कूलर माडल सर्वश्रेष्ठ घोषित किया जो केवल कम खर्च में बनाया हुआ था। उन्होंने आरओ में लगी हुई नलियों का उपयोग करके बनाया था।
दूसरे स्थान पर दिव्या कक्षा 8 विषय चुना गया जिनका इलेक्ट्रानिक स्पाइडर तथा ड्रिप सिस्टम था। उन्होंने बताया कि इस प्रकार की ड्रिप सिंचाई न केवल कम पानी वाले क्षेत्रों में उपयोगी है अपितु किसानों के लिए वरदान भी साबित हो रही है।
दक्षिण हरियाणा देश क्षेत्रों में पानी की कमी है वहां यह विधि सर्वोत्तम मानी जाती है। उधर कक्षा 6 से रितिका का दाब पर आधारित प्रयोग अति सराहनीय रहा। उन्होंने गुब्बारे की सहायता से दाब का प्रभाव प्रदर्शित कर रखा था।
इस मौके पर हाइड्रोलिक सिस्टम, स्वच्छ वातावरण, सोलर सिस्टम, पवन चक्की, पवन चक्की से बनने वाली बिजली को बहुत सुंदर ढंग से दर्शाया था।
इस अवसर पर स्वच्छता एवं पर्यावरण माडल पर यश को सांत्वना पुरस्कार दिया गया। इस मौके पर समस्त स्टाफ दिन में प्राध्यापक अनूप कुमार प्राध्यापक, श्रुति आर्या एबीआरसी, महिपाल सिंह,राजवीर सिंह, सूबे सिंह, राजकरण, महिपाल सिंह करीरा सहित समस्त स्टाफ ने न केवल प्रदर्शनी को का अवलोकन किया अपितु अति सराहा। इस मौके परन समस्त स्टाफ मौजूद था। फोटो कैप्शन 3 एवं 4 विज्ञान प्रदर्शनी का अवलोकन करते शिक्षक।
शांति कुंज अनाथालय आश्रम की की सफाई
-पौधों की देखभाल भी की
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कनीना। गांव मोड़ी में आईसीटीएम ग्रुप के कार्यकर्ताओं ने अनाथ व्यक्तियों और बच्चों के लिए शांति कुंज अनाथालय आश्रम में सफाई की गई और पौधे लगाए और पुराने पौधो की देखभाल की गई। जल्द ही इसका उद्घाटन किया जाएगा। एक एकड़ में बना हुआ यह भवन जिसमें 8 कमरे बरामदों सहित, स्नान घर और शौचालय और एक एकड़ में चारदीवारी के साथ में है। पंचायत और ग्रामवासियों के सहयोग से आई सी टी एम ग्रुप ने शान्तिकुंज आश्रम का संचालन किया है। आश्रम में अनाथ व्यक्ति, बच्चे और वृद्धों के लिए रहने और खाने पीने की पूरी व्यवस्था की गई है। संस्था के संचालक पवन कुमार ने बताया की सर्व समाज के सहयोग से हम इस काम को कर रहे है। इसमें व्यक्ति अपनी मनो इच्छा से संस्था के साथ आगे आ रहे है और स्वेच्छा से दान कर रहे हैं। समाज के लोग क्षेत्र में इस आश्रम को अच्छा प्रयास और सराहनीय बता रहे हैं। संचालक महोदय ने बताया की संस्था शिक्षा और पर्यावरण में काम कर रही है लेकिन अब उनके साथ अब अनाथ व्यक्तियों के लिए शांति कुंज अनाथालय आश्रम की भी शुरूवात कर दी है। मौजूद कुलदीप दहिया ने बताया की कही भी किसी को भी कोई अनाथ मिलता है उसको संस्था में पहुंचने की कृपा करे हम उनके आभारी रहेंगे। और संस्था में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति का मेडिकल चेकअप कराया जायेगा और उनकी सूची जिला अधिकारियों में संस्था पहुचायेगी।
संस्था का मुख्य उद्देश्य मानवता धर्म, जागरूकता, पर्यावरण और शिक्षा को बढ़ावा देना है। इस मौके पर सोनू मोड़ी, राहुल मंदोला, प्रदीप सेहलंग, कुलदीप दहिया आदि लोग मौजूद थे।
फोटो कैप्शन 2: शांतिकुंज मोड़ी में विभिन्न मुद्दों पर चर्चा करते पदाधिकारी।
जरूरत है वृक्ष मित्रों की
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कनीना। कनीना क्षेत्र की 52 हजार हेक्टेयर भूमि पर कभी विशालकाय कीकर,नीम,जाटी आदि के पेड़ पौधे होते थे जिनमें जो अब समाप्त होने की कगार पर हैं। वृक्ष माफिया गिरोह की नजर बड़े पेड़ों पर मिलती है। वे मालिक के पास जाकर पेड़ की कीमत लगाकर खरीद लेते हैं।
किसानों के यहां जाटी के पेड़ बहुत बड़े और मोटे आकार में मिलते थे किंतु धीरे-धीरे वे भी समाप्त हो गए हैं। कनीना क्षेत्र में पेड़ लगाने वालों में दीपचंद पहलवान उन्हानी के ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने कनीना के स्कूलों में भारी संख्या में पेड़ लगाए और आज भी बहुत बड़े बड़े वृक्ष बने हुए हैं। मंगल सिंह नगर पालिका कनीना में कार्यरत थे जिन्होंने पेड़ लगाकर वास्तव में बहुत नाम कमाया। जोहड़ो तालाबों और स्कूल श्मशान घाट आदि विभिन्न स्थानों पर पेड़ लगाने में अग्रणी रहे। दोनों आज इस दुनिया में नहीं है। उन्हाणी के जगमाल सिंह जिन्होंने पेड़ लगाने में बहुत नाम कमाया। युवा पीढ़ी में बहुत कम लोग पेड़ों को बचाने में आगे आ रहे हैं। रामबास के मनोज कुमार इसी लाइन में हाजिर है जो पेड़ों को लगाने में कसर नहीं छोड़ रहे हैं। इसी प्रकार मेघनवास के मनोज कुमार भी पेड़ लगाने की शृंखला में आगे है।
भडफ़ गांव के चंद्र सिंह 76 वर्षीय किंतु आज भी उनकी पेड़ों से संबंधित बातें सुनकर मन खुश हो जाता है। एक जमाने में चंद्र सिंह पशु पालने में अग्रणी नाम था। पशु खरीदने बेचने का भी लंबे समय तक उन्होंने काम किया। वे पशओं को पेड़ों की छांव में बांधते रहे हैं। उनका भी पेड़ लगाने से बड़ा शौक हैं। उनके घर के सामने खड़ा हुआ जाटी का विशालकाय पेड़ लोगों को आकर्षित कर रहा है। कनीना क्षेत्र में जहां पड़तल में बहुत पुराना जाटी का पेड़ देखने को मिल सकता है। वही भडफ़ के इसके साथ इसके घर के सामने खड़ा जाटी का पेड़ पेड़ काटने वालों का एक वाक्या सुनाते हैं। वृक्ष माफिया गिरोह गत दिवस आया और कहा कि तुम्हारा यह जाटी का पेड़ बेच दो? उन्होंने कहा कि बिल्कुल बेच देंगे लेकिन अभी नहीं। वृक्ष माफिया ने पूछा तो कब आऊं?
उन्होंने कहा कि मेरी मौत का इंतजार करो तभी इस पेड़ को कोई बेच सकता है। उनकी बात सुनकर पेड़ माफिया गिरोह के सदस्य खड़े हुए। उन्होंने कहा कि अधिक जिद की तो पुलिस में पकड़वा दूंगा। इतना सुन वृक्ष माफिया गिरोह भाग खड़ा हुआ। इस प्रकार के लोगों की क्षेत्र में जरूरत है ताकि पेड़ पौधों को बचाया जा सके।
फोटो कैप्शन 5: अपने जाटी के पेड़ के नीचे खड़ा चंद्र।
किसान जुटे कृषि कार्यों में
-रबी फसल की तैयारियों में जुटे
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कनीना। किसान एक बार फिर से खरीफ रबी की तैयारियों में लग गए हैं। खरीफ फसल पैदावार लेने के बाद सरसों की बीजाई की तैयारी में लग गये हैं। खेतों में खाद डालने का काम शुरू कर दिया है।
वैसे तो किसानों की प्रमुख फसल गेहूं एवं सरसों की है। किसान गेहूं को खाने के लिए सबसे अधिक प्रयोग करते हैं वहीं सरसों की फसल बेचने के लिए अधिक उपजाया जाता है। खरीफ फसल बाजरा की सरकार ने खरीद नहीं की है। ऐसे में बेहतर पैदावार लेने की तैयारियों में जुट गया है। इस बार बारिश ने खरीफ फसल खराब की वहीं मूंग उगाकर किसान पछता रहा है। इस बार किसानों का रुझान सरसों की ओर अधिक है। सरसों ने इस बार बेहतर भाव दिये हैं।
अब किसान रबी फसल की तैयारी में लग गया है। खेतों में खाद डालने विशेषकर उर्वरक, गोबर का खाद डालकर उसे बिखेरने मेें लगा है। किसान गर्मियों में अपनी ऊंटगाड़ी, ट्रैक्टर एवं ट्राली से खाद खेतों में डालते हैं।
कनीना के किसान अजीत सिंह, योगेश कुमार, रोहित कुमार ने बताया कि खरीफ फसल पैदावार लेने के तुरंत बाद किसान अपनी रबी फसल में लग जाता है। इस दौरान गेहूं, सरसों एवं कपास आदि उगाते हैं। किसानों ने बताया कि रबी फसल पूर्णरूप से बारिश या ट्यूबवेलों पर आश्रित है। विगत दिनों अच्छी बारिश होने से रबी फसल के बेहतर हो का अंदेशा है।
किसान पशु पालक होने के कारण पशुओं के गोबर से खाद बनाते हैं या फिर गोबर से कंपोस्ट व केंचुआ खाद बनाकर खेतों में डालने लगे हैं। किसान मेहनती है और गर्मी में भी खेतों में खाद डाल रहे हैं।
क्या कहते हैं कृषि अधिकारी
पूर्व कृषि विस्तार अधिकारी देवराज यादव ने कहा है कि किसानों को सरसों (तिलहन) की बिजाई करने में अगेती फसल बीज उपचार कार्य करने के बाद, उन्नत किस्में प्रयोग करनी चाहिए तथा जिप्सम जरूर डालना चाहिए। उनके अनुसार बीज उपचार के लिए 2 ग्राम बावस्टीन प्रति किलोग्राम बीज उपचार करें एवं जिप्सम डाले। जिप्सम से पैदावार और तेल की मात्रा बढ़ती है, इसलिए 200 किलोग्राम जिप्सम एक एकड़ जमीन में डालना चाहिए। वसुंधरा, स्वर्ण, ज्योति, गीता, लक्ष्मी आदि अच्छी अगेती पैदावार के लिए किस्में है इसके अलावा 75 किलोग्राम सिंगल सुपर फास्फेट या 35 किलोग्राम डीएपी प्रति एकड़ खाद डालना चाहिए। उन्होंने ताकि 10 अक्टूबर से 25 अक्टूबर के बीच सरसों की बिजाई कर देनी चाहिए। इसी प्रकार गेहूं की उन्नत किस्में बीज उपचार करके अगेती रूप में बोई जा सकती है। 10 नवंबर से 25 नवंबर तक यह फसलें उगानी चाहिए जिसमें डब्ल्यूएच 711, डीबीडब्ल्यू-17, यूपी 2338 प्रमुख हैं। साथ में साथ में डेढ़ एमएल क्लोरोपाइरीफास, 2 ग्राम वावस्टीम प्रति किलोग्राम बीज उपचारित करके खेत में उगाए । खरपतवार पर विशेष ध्यान दें और निकाले। उन्होंने कहा कि जौ की प्रमुख उन्नत किस्मों में बीएच 393, बीएच-75 बीएच-902 प्रमुख हैं जिन्हें 10 अक्टूबर से 30 अक्टूबर के बीच बतौर बरानी बोया जा सकता है जो 30 किलोग्राम बीज प्रति एकड़ होना चाहिए जबकि सिंचित खेती के तहत 35 किलोग्राम बीज प्रयोग करना चाहिए। बीज को उपचारित करना चाहिए। 6 एमएल प्रति किलोग्राम क्लोरोपाइरीफास तथा 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज बविष्टिन 4 लीटर पानी में उपचारित कर के ही बोने चाहिए।
उन्होंने कहा कि यदि समय पर बीज उपचार, खरपतवारनाशी और जिप्सम डालने से सरसों में पैदावार बढ़ती ही चली जाएगी।
फोटो कैप्शन : डा देवराज
विश्व पशुधन दिवस
पशुधन कम होते जा रहे हैं और दूध की मांग बढ़ती जा रही है
-दूध, पनीर एवं मावा जितना चाहिए बाजार में उपलब्ध है
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कनीना। धीरे धीरे पशुधन कम होते जा रहे हैं जबकि गर्मी एवं सर्दी के मौसम में विवाह शादियों एवं आम उपभोक्ता की मांग बढ़ जाती है। बुजुर्ग बताते हैं कि पुराने वक्त में पशुधन ज्यादा होते थे दूध,छाछ, घी खाने को अधिक होता था परंतु अन्न कम होता था।
वर्तमान में उसके उलट हो गया। अनाज अधिक पैदावार होने लग गई किंतु पशुधन रखना ही बंद कर दिया परंतु आश्चर्य तब होता है जब बाजार में सस्ती दर पर मावा, पनीर और दूध उपलब्ध हो जाता है।
यदि बाजार में तुरंत प्रभाव से कोई दूध, मावा और पनीर लेना चाहे पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो सकता है। कुछ दुधिये भी दूध की सप्लाई करते हैं जिनसे मनमर्जी दूध की मात्रा मंगवाई जा सकती है। ये भी मांगे अनुसार दूध प्रदान करने के लिए तैयार हो जाते हैं।
स्वास्थ्य विभाग से प्राप्त आंकड़ों अनुसार दूध, पनीर और मावा आदि का लंबे समय से एक भी सैंपल नहीं भरा गया है। ऐसे में इंसान जहरीले पदार्थ खाने को मजबूर हो गया है।
पशुधन पर नजर डालें तो कनीना के लालचंद पशु चिकित्सक बताते हैं कि कनीना उपमंडल के तहत 8 पशु औषधालय आते हैं और सभी के तहत 9538 गाये 32315 भैंसे, 3498 भेंड, 4945 बकरियां,992 सुअर मिलाकर कुल 51288 पशुधन बनते हैं। गौशाला की गायें भी इनमें शामिल हैं। महज 30 से 40 प्रतिशत पशु दुधारू हैं। इतने पशुओं से इतना अधिक दूध प्राप्त करना कठिन हो जाता है जो सारी मांगें पूरी कर सके।
वर्तमान में बाजार में दूध का रेट 60 रुपये लीटर है जबकि कनीना क्षेत्र में अकेले 8 डेयरियां है जिनमें फेटअनुसार दूध लिया जाता है। अधिकांश पशुपालक अपना दूध डेयरियों में बेच रहे हैं जिसके चलते दूध की कमी है। परंतु दुधिये दूध की किसी भी समय कमी नहीं होने देते।
सत्य प्रकाश डेरी संचालक ने बताया कि उनकी डेयरी में प्रतिदिन 3.5 क्विंटल के करीब दूध आता है। गर्मियों में गायों का दूध बढ़ जाता है तो सर्दी में भैंस का दूध अधिक होता है। अगर 1 लीटर दूध से पनीर बनाए तो महज 200 ग्राम पनीर बनता है। सुनील कुमार हलवाई ने बताया कि 1 लीटर दूध को फाड़कर 200 ग्राम पनीर बनाया जा सकता है अर्थात 60 का 200 ग्राम पनीर बनता है जिस पर मेहनत अलग हैं परंतु दुकानों पर 40 रुपये का 250 ग्राम पनीर मिल रहा है। विवाह शादियों में भारी मात्रा में पनीर, दूध एवं मावा चाहिए। एक विवाह में एक सौ व्यक्तियों के लिए कम से कम 5 किलो पनीर,चाय के लिए 5 से 10 लीटर दूध, काफी के लिए 30 लीटर दूध चाहिए। उधर मावा,पनीर एवं दूध को को अधिक समय तक सुरक्षित नहीं रखा जा सकता है।
शिक्षा विभाग के
ज्वाइंट डायरेक्टर 5 अक्टूबर को करेंगे दौरा
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कनीना। हरियाणा शिक्षा विभाग पंचकूला से ज्वाइंट डायरेक्टर 5 अक्टूबर को कनीना क्षेत्र के पांच स्कूलों में प्रात: आठ बजे से दो बजे तक दौरा करेंगे जिनमें कनीना, गुढ़ा, बूचावास, झगड़ोली और बवानिया प्रमुख हैं। स्कूल प्रमुख है मिली जानकारी अनुसार इस दौरान वे स्कूल का संपूर्ण निरीक्षण करेंगे।
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