Not sure how to add your code? Check our installation guidelines **KANINA KI AWAZ **कनीना की आवाज**

Sunday, June 22, 2025


 





जानकारी
पीचू को बड़े चाव से खाते थे
-अब लुप्त होने की कगार पर
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कनीना की आवाज।
 एक वक्त था जब आसपास क्षेत्रों में वनों में झाड़ीनुमा पौधे पाए जाते हैं। इनको कैर नाम से जानते हैं। इनके फल टींट आज भी किसी गली चौराहे पर बिकतेे देखे जा सकते हैं। पेट के लिए ये रामबाण औषधि है क्योंकि बहुत कम पानी में पैदा होते हैं। जहां भी पाए जाते हैं अचार तथा सब्जी बनाने के लिए काम में लेते हैं। वर्षों से बुजुर्ग सब्जी बनाने के काम में लेते रहे परंतु जहां वर्तमान में वातावरण दूषित होने के कारण कैर पर टींट कम से कम लगते हैं। टींट  से पहले इसका फूल बाडिय़ा नाम से जाना जाता है। बाडिय़ा की सब्जी बनाकर खाई जाती है। कैर एक ऐसा पौधा है जिसके पत्ते या तो होते ही नहीं या बहुत छोटे-छोटे नुकीले होते हैं। जब टींट काम में लेते हैं तो पहले छाछ/मट्ठा में डुबो दिया जाता है, तत्पश्चात इसका कड़वाहट खत्म हो जाता है और काम में लेते हैं परंतु पक जाते हैं उस समय इनका रंग हरे से पहले पीला फिर लाल हो जाता है। बिल्कुल लाल रंग का दूर से नजर आता है। इस पीचू को कितने ही पक्षी जंगल में खाकर अपना पेट भरते हैं लेकिन किसी वक्त बुजुर्ग इस पीचू को खाते थे क्योंकि जब यह पक जाता है तो उन्होंने मिठास आ जाता है और मीठे फलों के रूप में इनको खाया जाता है। आज का युवा और बच्चे को पीचू के बारे में बताया जाए या इस विषय में जानकारी दी जाए तो वह अनभिज्ञ मिलेगा। टींट तो कभी देखे हो परंतु पीचू शायद उन्होंने कहीं कभी देखे हो। पीचू खाकर पेट की बीमारियों को दूर किया जा सकता है। आज न तो जंगल बचे हैं और न कैर बचे हैं। और कैर मिल भी जाए तो उन पर टींट बहुत कम होते हैं क्योंकि प्रदूषण बहुत अधिक बढ़ गया है। राजस्थान जैसे क्षेत्रों में आज भी कैर, टींट एवं पीचू मिल जाते हैं। पीचू के विषय में अगर बुजुर्गों से पूछा जाए तो झटपट स्वीकार करेंगे कि उन्होंने पीचू खाए हैं। जिस प्रकार अंगूर की बजाय पील, लेहसुआ, गोंदिया, रसभरी आदि खाते थे। आज कैर को बचाने की जरूरत है। किसी जमाने में मधानी के रूप में कैर की लकड़ी ही प्रयोग की जाती थी जिससे दूध मथा जाता था। खूंटे के रूप में भी कैर की लकड़ी अधिक कारगर मानी जाती है क्योंकि इस पर दीमक और कीटों का कम प्रभाव पड़ता है। पीचू उसी प्रकार लाल होते हैं जैसे बेर लाल हो जाते हैं। जिस प्रकार बेर में एक गुठली होती है वहीं पीचूं में कई हल्की-हल्की गुठलियां होती है। कभी जंगल में जाए तो पपीचू आदि के विषय में जरूर जानकारी हासिल करें।







गुरुओं से लिया जाएगा आशीर्वाद, इसके बाद शुरू हो जाती है कावड़ यात्रा
-कावड़ लाने वाले हुए सक्रिय
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कनीना की आवाज।
10 जुलाई को गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाएगा। तत्पश्चात 11 जुलाई से सावन माह लग जायेगा।
 गुरु पूर्णिमा के पर्व पर जहां पुराने समय से विधान है कि गुरु करीब 4 महीने एक ही जगह बैठकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं और सभी अंधकार दूर कर देते हैं इसलिए गुरु की पूजा की जाती है।
विस्तृत जानकारी देते हुए आचार्य दीपक कौशिक ने बताया की महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास जिन्हें वेदव्यास भी कहा जाता है, का जन्मदिन इसी दिन हुआ था उन्होंने चारों वेदों की रचना की थी। उन्हें आदिगुरु कहा जाता है इसलिए गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है और इस दिन को व्यास वेद व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है। भक्ति काल के समय संत घीसा राम जो कबीर दास के शिष्य थे का भी जन्म इसी दिन हुआ था।
 गुरु पूर्णिमा के दिन जहां हरिद्वार के गंगा में डुबकी लगाने लाखों लोग पहुंचते हैं। हजारों की संख्या में भक्त हरिद्वार रवाना हो चुके हैं।
विधि विधान से पूर्ण करें गुरु पूर्णिमा पर्व-
मान्यता है कि गुरु पूर्णिमा के ही दिन महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था, यही वजह है कि इस दिन को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी मनाया जाता है। शास्त्रों के अनुसार संसार के प्रथम गुरु भगवान शिव को माना जाता है जिनके सप्तऋषि गण शिष्य थे। उसके बाद गुरुओं की परंपरा में भगवान दत्तात्रेय का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।
 गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु के आशीर्वाद से धन संपत्ति, सुख शांति और वैभव का वरदान पाया जा सकता है. हिन्दू धर्म में गुरु पूर्णिमा का विशेष महत्व बताया गया है. माना जाता है कि गुरु का स्थान सर्वश्रेष्ठ होता है। गुरु भगवान से भी ऊपर होता है। ऐसा इसलिए क्योंकि वो गुरु ही होता है जो व्यक्ति को अज्ञानता के अंधकार से उबारकर सही रास्ता दिखाता है।
  भक्त निजी साधनों से हरिद्वार रचवाना हो चुके हैं। 11 जुलाई को गंगा में डुबकी लगाकर वापस चलेंगे। उधर कांवड़ लाने के लिए भी भक्त रवाना हो रहे हैं।
व्रत करने वालों के लिए शुभ-दीपक कौशिक ने बताया कि सावन के सोमवार को व्रत रखने वालों के लिए शुभ समय होता है। सावन का प्रथम सोमवार 14 जुलाई का होगा तत्पश्चात 21 जुलाई, 28 जुलाई व चार अगस्त को सावन के सोमवार होंगे वहीं सावन कृष्ण त्रयोदशी 22 जुलाई को होगी जब बाघेश्वरधाम पर सबसे बड़ा मेला लगता है।
क्या कहते हैं कांवड़ लाने वाले-
कनीना में सबसे अधिक कांवड़ लाने वाले सुमेर सिंह 71 वर्षीय 44वीं कांवड़ हरिद्वार से लाएंगे। उनका कहना है कि कांवड़ लाकर मन प्रसन्नचित रहता है तथा मनोकामना पूर्ण होती है। उन्होंने कांवड़ लाने की तैयारियां शुरू कर दी हैं।
फोटो कैप्शन: दीपक कौशिक एवं सुमेर सिंह






चोर साहब के कारनामे - 05
 जमकर धुना है एक नेता ने
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कनीना की आवाज।
 कनीना के लेखक होशियार सिंह के प्लाट पर यहां गमले, ईंट पत्थर आदि उठाकर ले जाने में चोर साहब कका बड़ा योगदान है। एक बार लेखक के पत्थर चोरी हो गए उन्होंने एक पोस्टर अपने घर के दरवाजे पर टांग दिया कि मेरे पत्थर चोरी हो गए, किसी भाई ने देखा हो कि चोर कौन है, तो बताइए। तभी फेसबुक पर एक पोस्ट नजर आई जिसमें गाड़ी के अंदर और बाहर की फोटो दी गई थी। मेरे पास भी भेजी और लिखा था अंदर बाहर से चेक कर लो, कभी हम पर तो शक नहीं करते हो? तब मेरे मन में एक विचार आया कि चोर की दाढ़ी में तो तिनका होता है। हमने किसी पर इल्जाम नहीं लगाया, हमें नहीं मालूम कि चोर कौन है किंतु चोर की दाढ़ी में तिनका जरूर होता है, की कहावत, अकबर बीरबल के समय से चली आ रही है। खैर चोर साहब तेज गाड़ी चला कर उसके नीचे किसी को कुचलने का प्रयास भी करते आए हैं। कनीना के एक नेता पर चोर साहब ने तेज चला कर गाड़ी मारना चाहा, किस्मत अच्छी थी सामने खंभा था जिसकी वोट में वह नेता खड़ा हो गया। इससे पहले भी एक ग्रामीण पर गाड़ी चढाने का प्रयास किया है, वह भी व्यक्ति बच निकला। जब नेता पर गाड़ी चढ़ाने का प्रयास किया तो वह क्रोधित हो गया और उसने चोर साहब की गाड़ी खोली और जमकर धुन दिया। तब कहीं जाकर चोर साहब की अकल दुरुस्त हो गई। कहावत है कि जो बातों से नहीं मानते उन्हें लातों से मनाना ही जरूरी होता है। मुझ में यह गुण कभी नहीं था कि किसी को लातों से मारा जाए परंतु कितने दिन सहन सहन करें? चोर साहब के कारनामे सिर चढ़कर बोलते हैं। क्योंकि मैं अमन चैन से जी रहा हूं और भविष्य में भी जीता रहूंगा, पर मेरी सोच है कि किसी से झगड़ा नहीं किया जाए, नहीं कभी किसी से झगड़ा करने का प्रयास किया। अगर कोई झगड़ा करने पर उतारू हो जाता है तो वह हमारी मजबूरी हो जाती है। चोर साहब ने मेरे को कई बार भला बुरा कहा है फिर भी मेरे दोस्तों के कहने से मैं चुप रहा क्योंकि लोगों का कहना है जिसकी बुद्धि भ्रमित हो तो उससे बचकर रहना ही अच्छा होता है। ऐसे आदमी का कुछ नहीं बिगड़ता, बिगड़ता है तो शरीफ इंसान का। इसलिए हम जो भी घटना घटती है प्रभु पर छोड़ देते हैं कि कम से कम वह/ ऊपर वाला जरूर देख रहा है। एक दिन इंसाफ करेगा।




आर्य समाज है देशभक्तों की खान
 -आर्य समाज उत्सव का दूसरा दिन
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कनीना की आवाज।
कनीना में चल रहे आर्य समाज के वार्षिकोत्सव के दूसरे दिन की शुरुआत यज्ञ में साथ की गई जिसने एडवोकेट विनय यादव ,सतीश शास्त्री व जितेंद्र सपत्नीक मुख्य यजमान रहे। यज्ञ को संपन्न आचार्य सोमदेव ने करवाया। इसके बाद चले सुबह के सत्र में परम विदुषी अंजलि आर्या , अंतरराष्ट्रीय कवि डा. मोहन मनीषी सारस्वत व आचार्य सोमदेव ने अपने भजनों व उपदेशों के माध्यम से समाज की कुरीतियों व आडंबरों पर गहरा प्रहार किया। आर्य समाज में ऋषि दयानंद की वैज्ञानिक शिक्षाओं पर प्रकाश डाला गया व बताया गया कि आर्य समाज राष्ट्रप्रेम व सनातनी संस्कृति का परिचायक है। हमें ज़्यादा से ज़्यादा आर्य समाज से जुडऩा चाहिए । कार्यक्रम में राष्ट्र की बेटियों को मजबूत करने पर बल दिया गया । अंतरराष्ट्रीय कवि डा. मोहन मनीषी सारस्वत ने अपनी ओजस्वी वाणी से जनजागरण किया व आचार्य सोमदेव ने वेदों को महिमा पर प्रकाश डाला। परम विदुषी अंजलि आर्या ने राष्ट्र प्रेम की भावना को सर्वोपरि रखने वाले भजन व उपदेश दिए। कार्यक्रम का संचालन कृष्ण प्रकाश ने किया। प्रवक्ता सचिन कुमार ने भी अपने विचार रखे। इस मौके पर भारी संख्या में गणमान्य जन उपस्थित रहे।
फोटो कैप्शन 04: आर्य समाज उत्सव में भजन उपदेश करते हुए।





भव्य जागरण के साथ हुआ नानीबाई के मायरे का समापन
--रातभर शमा बांधे रखा
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कनीना की आवाज।
कनीना में पहली बार आयोजित हो रहे नानीबाई के मायरे की कथा के तीसरे दिन नरसी भक्त व ठाकुर जी का वृतान्त नृत्य नाटिकाओं के माध्यम से बड़े ही मनमोहक अंदाज में प्रस्तुत किया गया । नानी बाई के मायरे में पहुंचकर भगवान श्रीकृष्ण ने भक्त की लाज रखी जिसको देखकर उपस्थित जनसमूह भाव विभोर हो गया । कथा का बड़े ही सुन्दर ढंग से चित्रण कर रहे आचार्य प्रवेश रसिक जी ने बताया कि जब जब भक्त किसी पीड़ा में होते है तो भगवान स्वयं अवश्य आते है  आचार्य प्रवेश रसिक जी के द्वारा श्याम मित्र मंडल के तत्वावधान में अनाज मंडी कनीना में चल रहे नानी बाई के मायरे में श्रद्धालुओं ने कथा का रस पान किया। आचार्य प्रवेश रसिक जी महाराज ने बताया कि कलियुग में कृष्ण भक्ति का अपना विशेष स्थान है। कथा में सनातनी संस्कृति , कन्या भ्रूण हत्या व बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर भी विशेष व्याख्यान दिए गए । कथा का समापन भव्य जागरण व भंडारे के साथ किया गया। जागरण में  अनुज पारिक ने सुन्दर भजनों के साथ बाबा को रिझाया। कार्यक्रम का मंच संचालन प्रवक्ता सचिन कुमार प्रवक्ता ने किया। इस अवसर पर श्याम मित्र मंडल के प्रधान अनिल गर्ग , प्रधान निरंजन मित्तल , विनोद मित्तल , रवींद्र बंसल , संजय गर्ग, पूर्व पार्षद रोशन लाल गोयल , विजेंदर भोजवासिया , विजय जिंदल ,मुकेश सिंगला व गणमान्यजन मौजूद रहे ।
फोटो कैप्शन 01: कनीना में नानीबाई का मायरा दृश्य प्रदर्शन करते हुए।
          02: मायरा में निकाली झाकंी का नजारा







कनीना की आवाज के समाचा







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कनीना की आवाज।
 कनीना की आवाज नामक गु्रप में प्रतिदिन तीन वर्षों से समाचार आ रहे हैं। यदि समाचार पाना चाहते हो तो कृपया मेरे फोन नंबर 9416348400 या 9306300700 पर संपर्क करें। अगर समाचार पसंद नहीं हैं तो स्वयं लेफ्ट हो जाए।




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