Not sure how to add your code? Check our installation guidelines **KANINA KI AWAZ **कनीना की आवाज**

Wednesday, December 3, 2025



 

अब फेस रिकग्निशन हाजिरी लागू हुई हरियाणा शिक्षा विभाग में
-चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात
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कनीना की आवाज।
 हरियाणा सरकार ने स्कूलों में सभी कर्मियों की फेस रिकग्निशन उपस्थिति लगानी जरूरी कर दी है। इस संबंध में एक पत्र भी जारी कर दिया है। यद्यपि शिक्षा विभाग में समय-समय पर कई बार आधार कार्ड पर आधारित हाजिरी लगनी शुरू की गई थी जो एक के बाद एक दम तोड़ गई हैं। चंद दिनों तक गर्माहट रहती है और हाजिरी लगाई जाती है तत्पश्चात फिर से उसे भुला दिया जाता है। जिस प्रकार बायोमेट्रिक मशीन भी लुप्त हो गई है या अभी भी स्कूलों में खराब हालत में पड़ी हैं ऐसे ही अब फेस रिकग्निशन हाजिरी लगेगी। तत्पश्चात सभी मशीन यूं ही कबाड़ बना दी जाएंगी। जब तक कठोर कार्रवाई नहीं होती तब तक यही हालत जारी रहने के आसार हैं।  अधिकांश कर्मचारी भी नहीं चाहते इस प्रकार की हाजिरी लगाई जाए इसलिए इससे बचने के कोई उपाय ढूंढते रहते हैं।



 एक एक घर में बसे हुये हैं 10-10 किरायेदासर परिवार
-कोई पूछने वाला नहीं
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कनीना की आवाज।
 यद्यपि कनीना प्रशासन ने जागरूकता दिखाते हुए सभी घरों के मालिको/ दुकानों के मालिक को जिन्होंने अपनी दुकान या मकान किराए पर दे रखे हैं किरायेदारों के लिए पुलिस वेरिफिकेशन करवाना जरूरी कर दिया है किंतु बहुत से ऐसे मलिक हैं जो यहां रहते ही नहीं या दूर दराज रहते हैं। उन तक इस संबंध में सूचना तक नहीं है। ऐसे में उनके कबाडऩुमा/ खंडारलुमा घरों में 10-10 परिवार बसे हुए हें जो न केवल पेयजल को चूसते हैं अपितु सीवर व्यवस्था को भी ठप तक करने में अहम योगदान है। ऐसे में जब तक प्रशासन घर-घर जाकर जांच नहीं करेगा तब तक ये लोग मस्ती से किराए के मकानों में बिजली, पानी और शिविर का दुरुपयोग करते रहेंगे। एक अनुमान है कि कनीना में कम से कम 2000 व्यक्ति किराए के मकानों और दुकानों और अन्य जगह रह रहे हैं। ऐसे में वो पुलिस वेरिफिकेशन नहीं करवा रहे है और न ही घरों और दुकानों के मालिक इस और ध्यान दे रहे हैं। जरूरत है घर-घर जाकर इनकी की जांच करने और पुलिस वेरिफिकेशन की। वरना आने वाले समय में कोई बड़ा हादसा होने से इनकार नहीं किया जा सकता है।






नौसेना दिवस-04 दिसंबर
1971 के युद्ध को याद करके आज भी सैनिक आ जाते जाते हैं जोश में
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कनीना की आवाज।
 4 दिसंबर को भारतीय नौसेना दिवस मनाया जाता है। 1971 भारत-पाक युद्ध के दौरान आपरेशन ट्राइडेंट के शुरू होने की याद में यह दिवस मनाया जाता है। भारतीय नौसेना वालों को सम्मानित करने, योगदान को याद करने एवं मारे गये सैनिकों को श्रद्धांजलि के विशेष दिन के रूप में मनाया जाता है। भारतीय नौसेना ने इस युद्ध में एक महान भूमिका निभाई थी। अपने प्राणों की आहुति देकर देश की आन बान एवं शान बचाई थी। कुछ नौसेना के जवानों से इस संबंध में बात हुई जिनके विचार इस प्रकार हैं-
भारतीय नौसेना की स्थापना 1612 में ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा की गई थी। 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध हुआ था। पाकिस्तान ने 3 दिसंबर को भारतीय हवाई अड्डा पर हमला किया। हमले के जवाब में भारतीय नौसेना ने चार- पांच दिसंबर की रात को हमले की योजना बनाई थी।  भारतीय नौसेना के पूरे अभियान का नेतृत्व किया था। भारतीय नौसेना की सफलता का जश्न मनाने के लिए हर साल इंडियन नेवी डे 4 दिसंबर को मनाया जाता है। 1972 में वरिष्ठ नौसेना अधिकारी सम्मेलनों में, 1971 भारत-पाक युद्ध के दौरान भारतीय नौसेना के प्रयासों और उपलब्धियां को स्वीकार करते हुए 4 दिसंबर को नौसेना दिवस मनाने का निर्णय लिया। तभी से यह दिवस मनाया जाता है। इस युद्ध में भारी संख्या में सैनिक काम आए थे। युद्ध को यादकर आज भी सैनिक जोश में आ जाते हैं। वे जनवरी 1982 में कनिष्ट अधिकारी भर्ती हुए थे। वर्तमान में 63 वर्ष के हो चुके हैं। जब 1997 में सेवानिवृत्त हुए तब कनिष्ठ अधिकारी के रूप में जाने जाते थे।
--राजकुमार यादव झूक, पूर्व कनिष्ठ अधिकारी नौसेना
1971 के जमीन पाकिस्तान पर शानदार जीत भारतीय नौसेना ने हासिल की थी। इसके कारण से इतिहास में भारतीय सेवा ने अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में दर्ज करवाया। इस युद्ध में 93000 पाकिस्तान सेना के जवानों ने भारतीय सेना के सामने हथियार डाल दिये थे। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़ा आत्म समर्पण का युद्ध था।  वो बताते हैं कि उन्होंने मुक्तिवाहिनी के रूप में सिविल ड्रेस में बंगला देश में जाना पड़ा था। वे सर्जिकल स्ट्राइक करने के लिए पूर्व पाकिस्तान के भाग बंगला देश में जाते थे।  युद्ध महज आठ दिन चला था किंतु बगला देश को आजाद करा दिया गया। वे एक जुलाई 1965 में भर्ती तथा 31 जुलाई 2000 को सेवानिवृत्त हुए हैं। बाद में उन्होंने आपरेशन पवन में भी भाग लिया जो श्रीलंका में एलटीटीई के विरुद्ध चला था। करीब दो माह उन्होंने सेवा दी थी।
--हरिश्चंद्र यादव कनीना, पूर्व चीफ पेटी आफिसर
1971 का युद्ध सदा याद रहेगा जब पाकिस्तान के सैनिकों को उनकी ही जमीन पर हराया था। उन्हें बंदी बनाया था। चाहे यह युद्ध महज 8 दिन ही चला हो किंतु इस युद्ध के परिणाम सार्थक एवं भारत के पक्ष में आये थे। पाकिस्तान को करारी हार का सामना करना पड़ा था। उस युद्ध को आज भी याद कर मन जोश से भर जाता है।
--राजकुमार कनीना, पूर्व पेटी आफिसर
फोटो कैप्शन 04: हरिश्चंद्र यादव कनीना, पूर्व चीफ पेटी आफिसर, राजकुमार झूक, पूर्व कनिष्ठ अधिकारी नौसेना,  राजकुमार कनीना, पूर्व पेटी आफिसर






संत लालगिरी की प्रतिमा स्थापना 5 को
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कनीना की आवाज। 
कनीना के संत लालगिरी की प्रतिमा की स्थापना नजदीक कनीना कालेज लालगिरी आश्रम में विधिवत रूप से 5 दिसंबर को पूर्ण की जाएगी। विस्तृत जानकारी देते हुए मोहन पार्षद ने बताया कि तीन दिन चलने वाले पूजा पाठ के लिए विधिवत पूजन शुरू हो गया है। पांच दिसंबर को मूर्ति स्थापना की जाएगी उससे पहले सुबह कलश यात्रा निकाली और बाबा की मूर्ति की कनीना कस्बा में झांकी निकाली जाएगी। उसके बाद मूर्ति स्थापना की जाएगी।



आवारा जंतुओं से किसान परेशान
-रात रातभर जागकर खेतों की, की जाती है रखवाली
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कनीना की आवाज।
सर्दी के मौसम में आवारा जंतु किसानों के लिए सिरदर्द बनते जा रहे हैं। नील गाय उनमें से एक हैं। ये फसल का दस फीसदी भाग नष्ट कर देती हैं। किसानों की सबसे प्रमुख फसल भी रबी की होती है जिसमें सरसों एवं गेहूं प्रमुख हैं।
 किसान की फसल का बहुत कुछ हिस्सा आवारा जंतुओं का निवाला बन जाता है। चूहे,मोर, नील गाय, कुछ गौवंश, पक्षी, कीट, बंदर और शशक आदि  किसान के लिए सिरदर्द बनते जा रहे हैं। किसान को तो इन जीवों से फसल को बचाए रखने के लिए भारी धन खर्च करना पड़ रहा है। आवारा जंतुओं से फसल को बचाने के लिए रखवालें भी रखने पड़ते हैं जो रखवाली के बदले अनाज लेते हैं। कनीना क्षेत्र में फसल के रखवाले हर वर्ष रखे जाते हैं तो रात को तैनाती देते हैं और बदले में अनाज लेते हैं।
   किसान राजेंद्र सिंह, सूबे सिंह, अजीत सिंह, कृष्ण कुमार आदि ने बताया कि नील गाय और आवारा गायें सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है। नील गाय झुंड के रूप में चलती हैं और जिस किसी खेत में घुस जाती हैं उसे तबाह करके ही दम लेती हैं।  किसान को सबसे अधिक रखवाली इन्हीं जीवों से करनी होती है। इन्हीं जीवों से फसल को बचाने के लिए रखवालों का प्रबंध भी करना पड़ता है। आवारा गायों और नील गायों से बचने के लिए खेत में रखवाली के बावजूद भी ये गाएं फसल को नुकसान पहुंचाए बगैर नहीं रह सकती हैं। फसल को नुकसान पहुंचाने में आवारा गाएं, सुअर जैसे कितने ही जीव न केवल खेत में खड़ी अपितु काटकर डाली गई फसल को नुकसान पहुंचाते हैं।
क्या कहते हैं किसान-
**नील गाय और आवारा गायें सबसे बड़ी समस्या बनी हुई है। नील गाय झुंड के रूप में चलती हैं और जिस किसी खेत में घुस जाती हैं उसे तबाह करके ही दम लेती हैं।  किसान को सबसे अधिक रखवाली इन्हीं जीवों से करनी होती है। इन्हीं जीवों से फसल को बचाने के लिए रखवालों का प्रबंध भी करना पड़ता है। आवारा गौवंश और नील गायों से बचने के लिए खेत में रखवाली के बावजूद भी ये नील गायें फसल को नुकसान पहुंचाए बगैर नहीं रह सकती हैं।
   ---किसान अजय
फसल को नुकसान पहुंचाने में आवारा गाएं, सुअर जैसे कितने ही जीव न केवल खेत में खड़ी अपितु काटकर डाली गई फसल को नुकसान पहुंचाते हैं। दुपहिया वाहनों की दुर्घटनाओं में भी इन जीवों का अहं योगदान रहा है। वाहनों की दुर्घटनाओं में नील गाय एक समस्या बने हुए हैं। फलदार पौधे हो या फसली सभी को नष्ट कर जाते हैं। चाहे कितनी ही रखवाली की जाए फिर भी मौका देखकर फसल को नष्ट कर जाते हैं।
------कांता देवी महिला किसान
नील गाय उनकी फसल को बहुत नुकसान पहुंचाती हैं। बाकी जानवर मिलकर जितना नुकसान नहीं पहुंचाते उतना नील गायें पहुंचा रही हैं। किसान फलदार पौधे उगाते थे किंतु अब ये फलदार पौधे उगाने बंद कर दिए है क्योंकि फलदार एवं सब्जियों को नीलगाय खत्म कर जाते हैं।
   ----महिपाल किसान
यूं तो पूरे हरियाणा की ही यह समस्या है और समस्या अधिक विकराल दक्षिण हरियाणा की है जहां मेहनत अधिक करके ही किसान फसल उगाता है और उस पर पानी फेर नील गाय चंपत हो जाती है। सर्दी से बचने के लिए किसान जब घर में जाता है तभी ये नील गाय नुकसान पहुंचा जाती है। इनका नुकसान भारी है जो दस फीसदी को पार कर जाता है। जब ये नील गाय खेत से दौड़ती है तो उनके पैरों से सरसों की खड़ी फसल टूट जाती है। ये जीव खाते कम हैं और खराब अधिक करते हैं।
--पूर्व कृषि अधिकारी डा देवेंद्र
फोटो कैप्शन 05: फसलों को नुकसान पहुंचाती नीलगाय
साथ में महिपाल, कांता एवं अजय एवं डा. देवेंद्र



बदला मौसम,धुंध पड़ी
- कनीना क्षेत्र में हल्का पाला जमा
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कनीना की आवाज।
कनीना क्षेत्र में जहां गत दिनों से ठंड पड़ रही है वहीं बुधवार को अचानक मौसम बदल गया। सुबह सवेरे छोटी छोटी वनस्पतियों एवं घास फूस पर हल्का पाला जमा देखा गया। वहीं कनीना के कई गांवों में धुंध पड़ी, ठंड भी बढ़ गई।  ठंड पडऩा सरसों और गेहूं फसल के लिए लाभप्रद माना जाता है। कनीना क्षेत्र में विगत वर्ष के करीब 20 हजार हेक्टेयर पर सरसों उगाई गई है।
कनीना उपमंडल के गांव गोमला, गोमली, भोजावास आदि में हल्की धुंध देखने को मिली। विगत वर्ष भी दिसंबर के पहले सप्ताह में धुंध पडऩी शुरू हो गई थी और इस बार भी दिसंबर के पहले सप्ताह में धुंध पडऩी शुरू हो गई है।  कृषि विभाग के पूर्व अधिकारी डा. देवराज का कहना है कि इस प्रकार का मौसम फसलों के लिए लाभप्रद होता है। इससे फसल के लिए नमी की आपूर्ति हो जाती है।
फोटो कैप्शन 0 2 व 03: कनीना के गांवों में धुंध पड़ती हुई तथा उदय होता सूर्य





एसटीपी का पानी फैल गया है पीपल वाली बणी में दूर दराज तक
-टेंडर लगाने की बात कह













रहे हैं अभियंता
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कनीना की आवाज। कनीना के सीवर ट्रीटमेंट प्लांट का साफ किया जल अब कनीना की पीपलवाली बणी को लीलने के कगार पर पहुंच गया है। दूर दराज तक पानी ही पानी हे गया है। एक और जहां अतिक्रमण की शिकार हो चुकी है चारों ओर कई कई एकड़ जमीन पर लोगों ने अवैध कब्जा कर लिया है और नगरपालिका मौन है वही यहां जमा किया गया साफ पानी दूर दराज तक फैल गया है। कहने को तो 7 एकड़ जमीन बणी की दी गई है किंतु जल पूरी बणी में फैल चुका है। करीब एक वर्ष से यही हालात है।
 उल्लेखनीय है कि कनीना का सीवर ट्रीटमेंट प्लांट/एसटीपी नाहड़ रोड पर स्थित है जहां से  साफ किया हुआ जल करीब 2 किलोमीटर दूर पीपलवाली बणी में ले जाकर डालने का प्रावधान किया गया था। साफ किया हुआ जल यह सोचकर 7 एकड़ में जमा किया जाना था ताकि इसका सदुपयोग किसान सिंचाई में उठा सके, अपने खेतों की सिंचाई कर सके। वही भूमिगत जल में वृद्धि हो सके। लेकिन इस ओर ध्यान न दिए जाने के कारण यह साफ किया हुआ जल दूषित हो ही गया है वही दूर दराज तक फैल गया है। पीपल वाली बनी में किसी भी कोने से अंदर प्रवेश करें केवल पानी ही पानी नजर आता है। यहां तक की आने जाने का रास्ता भी बंद होने के कगार पर चला गया है। अभी तक न कोई किसान इस जल का उपयोग कर रहा है और न ही विभाग इस और ध्यान दे रहा है। त्वरित कार्रवाई नहीं हुई तो यह फैलने वाला जल सैकड़ों वर्ष पुराने जाल के वृक्षों को लील सकता है। यह सत्य है कि कनीना की सीवर संबंधी समस्या कुछ हल जरूर हुई है किंतु पेड़ पौधे और आवागमन रास्तों में दिक्कत हो रही है।
 क्षेत्र के कृष्ण कुमार, रवि कुमार, सुरेश कुमार, योगेश कुमार, रोहित कुमार, भरपूर सिंह, मनोज कुमार आदि ने मांग की है कि अविलंब इस पीपलवाली बणी की पैमाइश करवाई जाए और पैमाइश करवाने के बाद 7 एकड़ जमीन में बंध बनाकर पानी को रोका जाए।
 उल्लेखनीय की पीपलवाली बनी एक  125 कनाल यानी 15 एकड़ 5 कनाल पर स्थित है किंतु हकीकत में जाकर देखा जाए तो आधी भी नहीं बची है।
 क्या कहते हैं कनिष्ठ अधिकारी -
इस संबंध में पवन कुमार कनिष्ठ अभियंता से से बात हुई। उन्होंने बताया कि इस बणी के टेंडर लगा दिये गये हैं। 7 एकड़ में माटी को खोदकर जोहडऩुमा बनाया जाएगा तथा खोदी गई माटी ही चारों ओर 7 एकड़ में लगा दी जाएगी जिससे यह जल जमीन सोख सके। करीब 29 उिदन पूर्व कनिष्ठ अभियंता ने 10 दिन के अंदर अंदर एक छोटा बंध बनाकर इस पानी को रोक देने की बात कही थी किंतु अभी तक बंध बनाना तो दूर टेंडर भी नहीं खुले हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह जल किसानों के लिए उपलब्ध है किंतु अभी तक किसी किसान ने इस जल को प्रयोग नहीं किया है। वहीं उन्होंने बताया कि भूमिगत जल में बढ़ोतरी होगी।
 फोटो कैप्शन 01: पीपलवाली बणी में दूर दराज तक फैला हुआ जल।

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