कनीना उप-नागरिक अस्पताल के एसएमओ ला रहे हैं हरिद्वार से कांवड़
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कनीना की आवाज। कनीना उप-नागरिक अस्पताल में वर्तमान में कार्यरत एसएमओ डा. सुंदरलाल अपनी तीसरी कावड़ देवनागरी हरिद्वार से लेकर आ रहे हैं। वे अपनी कांवड़ दड़ोली आश्रम में अर्पित करेंगे।
फोन पर उन्होंने बताया कि भगवान भोलेनाथ के प्रति उनकी अगाध आस्था है जिसके चलते तीसरी बार कावड़ लेकर आ रहे हैं। अपने एक साथी कर्मचारी के साथ कांवड़ लेकर आ रहे ताकि अपने इष्टदेव को 15 जुलाई शिवरात्रि को अर्पित की जा सके। गहन आस्था न केवल डाक्टरों अपितु लेखकों, पत्रकारों, नेताओं में भी देखने को मिल रही है। कई समाजसेवी अपनी कावड़ लेकर गंतव्य स्थान की ओर जा रहे हैं। जहां इन कावडिय़ों के लिए 15 जुलाई तक शिविर आयोजित किए गए हैं। तत्पश्चात शिविर शिविर का समापन हो जाएगा।
इस बार विगत वर्षों की तुलना में अधिक कांवड़ा रही है तथा अगाध आस्था देखने को मिल रही है। सावन के माह में चारों ओर बम बम भोले के जयकारे गूंज रहे हैं। अनेकों शिविर लगाए गए जहां भक्तों की अच्छी सेवा की जाती है। 2 साल कोरोना की मार पड़ी थी। विगत वर्ष से पुन: कांवड़ आ रही है किंतु विगत वर्ष की तुलना में इस बार कांवड़ अधिक आ रही हैं। कांवड़ लाने वाले सुमेर सिंह चेयरमैन, मिंटू बॉस, वेद प्रकाश, भरत सिंह,प्रदीप कुमार आदि ने बताया इस बार लगातार रास्ते में बारिश हो रही है और बारिशमय मौसम में वे कांवड़ लेकर बाघेश्वर धाम पर अर्पित कर चुके हैं।
फोटो कैप्शन 07: कांवड़ लेकर आते हुए एसएमओ कनीना सुंदरलाल अपने साथी कर्मी के साथ।
विश्व युवा स्किल दिवस 15 जुलाई
अपनी हस्थकला के कारण दूर दराज तक विख्यात है युवा सुरेश कुमार पेंटर
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कनीना की आवाज। करीरा गांव का एक पूरा परिवार न केवल पेंटिंग को समर्पित है अपितु दर्जनों युवाओं को भी पेंटिंग की ट्रेनिंग दे चुका है।
कनीना से महज दो किमी दूर स्थित जवाहर नवोदय विद्यालय वाला गांव करीरा का निहाल सिंह परिवार पूर्ण रूप से पेंटिंग को समर्पित है। मुखिया निहाल सिंह 55 वर्षों से तो उनका पुत्र सुरेश कुमार 30 वर्षों से पेंटिंग के काम से न केवल रोटी रोजी कमा रहा है अपितु एक दर्जन युवाओं को अल्प ट्रेनिंग दी है।
पेंटर निहाल सिंह ने बताया कि एक जमाना था जब लोग उन्हें ढूंढते फिरते थे किंतु समय नहीं होता था। रात को सोने का समय भी नहीं मिलता था। वर्तमान में तो किसी मंदिर, स्कूलों में कमरे में बच्चों के लिए कार्टून बनाने तथा द्वार आदि पर लिखाई के लिए ही अधिक याद किया जाता है। निहाल के पुत्र सुरेश कुमार का कहना है कि उनके पिता के एक बार सख्त बीमार होने के कारण उन्होंने घर की रोटी रोजी चलाने के लिए पेंटिंग का काम करने की सोची थी और वे सफल रहे। उस वक्त वे आठवीं कक्षा में पढ़ते थे।
45 वर्षीय सुरेश कुमार तो अपने पिता से भी आगे जा चुके हैं। वर्तमान में करीब 200 विभिन्न सरकारी और गैर सरकारी स्कूलों में मंदिरों में पेंटिंग एवं मोटो लिखने का लिखने का कार्य कर चुके हैं। कहीं भी जाते हैं तो हिंदी और अंग्रेजी के शब्दों पर ध्यान देते हैं। सुरेश कुमार ने बताया कि उनके जीवन में उनके शिक्षकों का योगदान रहा है। उनका कहना है कि आज भी महेंद्रगढ़, रोहतक, झज्जर, रेवाड़ी तथा राजस्थान में जाते हैं और पेंटिंग का काम करते हैं। सुरेश कुमार की लिखने की अदा एवं चित्रकारी लाजवाब है वहीं देशभक्तों की तस्वीरों को अपनी रंगों से इस कद्र उकेर देते हैं कि मुंह बोलती तस्वीर नजर आती हैं।
अपने पेशे से आज भी संतुष्ट हैं। यद्यपि उनके पिता 12वीं तक पढ़े हैं और वे स्वयं दसवीं कक्षा अच्छे अंकों से पास करके इस पेशे में उतरे हैं। उनकी मुंह बोलती तस्वीरों को देखकर सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि सुरेश कुमार में कितना बड़ा हुनर है। स्किलफुल व्यक्ति की समाज में बेहतर मांग है तथा सम्मान मिलता है।
फोटो कैप्शन 8/9/10: सुरेश कुमार पेंटर की विभिन्न स्कूलों में पेंटिंग एवं चित्रकारी।
अनिश्चितकालीन धरने का का रहा 124वां दिन
-कट बनने से खुल जाएंगे विकास के रास्ते
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कनीना की आवाज। राष्ट्रीय राजमार्ग 152-डी पर बाघोत -सेहलंग के बीच कट बनवाने के लिए अनिश्चितकालीन धरना जारी है। चल रहे धरने की अध्यक्षता नरेंद्र कुमार शास्त्री छिथरोली ने की। श्री शास्त्री ने बताया कि हमारी मांग जायज है। एनएच 152डी पर बाघोत -सेहलंग के बीच कट बनने से 50 गांवों के विकास के रास्ते खुल जाएंगे। सरकार को हमारी मांग पर जल्द कार्रवाई करनी चाहिए।
धरना संघर्ष समिति के अध्यक्ष चेयरमैन विजय सिंह ने बताया कि धरने को चलते आज 124 दिन हो गए हैं। हम शांतिपूर्वक ढंग से धरने पर बैठे हुए हैं। सरकार ने अब तक एनएच-152डी पर बाघोत-सेहलंग के बीच कट बनवाने के लिए कोई कार्यवाही शुरू नहीं की है। जब तक कट का काम शुरू नहीं होगा तब तक हमारा धरना जारी रहेगा।
संघर्ष समिति के सदस्य पहलवान रणधीर सिंह बाघोत ने बताया कि यह कट एनएच 152डी बाघोत -सेहलंग के बीच बाघेश्वर धाम में बनना है, जहां पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु कांवड़ लेकर बाबा शिव भोले पर कांवड़ चढ़ा कर, उनके दर्शन करके, आशीर्वाद लेने के लिए पहुंचते हैं। बाबा के दरबार में जो अपनी मांग लेकर पहुंचता है, उसकी मुराद अवश्य पूरी होती है। शिव भक्तों की यह मांग है कि एनएच 152डी पर कट बने, बाबा भोले भक्तों को निराश नहीं करेंगे उनकी मांग जरूर पूरी की जाएगी। इस मौके पर पहलवान धर्मपाल, चेयरमैन सतपाल, डॉ लक्ष्मण सिंह, डॉ कृष्ण कुमार डेंटल सेहलंग, विनय कुमार बंसल, जय सिंह पंच, मीर सिंह बाल रोड, दाताराम, सीताराम, वेद प्रकाश,बाबूलाल, मनोज कुमार कऱीरा, कृष्ण प्रधान, राम भक्त, हंस कुमार, भोले साहब, ठेकेदार शेर सिंह, ओम, मनोज, सूबे सिंह, मास्टर विजय सिंह, शेर सिंह व गणमान्य लोग मौजूद रहे।
फोटो कैप्शन 05: कट की मांग को लेकर धरना देते ग्रामीण।
नशे के विरुद्ध स्कूल ने चलाया कार्यक्रम
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कनीना की आवाज। राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय अगिहार प्रार्थना सभा में शुक्रवार को नशे के विरुद्ध जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया कार्यक्रम की अध्यक्षता विद्यालय की प्राचार्या पूनम यादव ने की। उन्होंने विद्यार्थियों को नशे के कुप्रभावों के बारे में विस्तार से बताया विद्यालय में अंग्रेजी के प्रवक्ता मदन मोहन कौशिक ने बताया कि नशा समाज में एक बहुत बड़ी बुराई है तथा यह अंधकार के द्वार खोल देता है जो व्यक्ति नशा करता है उसका पतन निश्चित है। उन्होंने विद्यार्थियों का आह्वान किया कि वे आजीवन इस बुराई से दूर रहें। इस अवसर विद्यालय के छात्र-छात्राओं ने जीवन में कभी भी नशा न करने की शपथ ली तथा पूरे गांव में नशे के खिलाफ एक प्रभातफेरी भी निकाली। विद्यालय की छात्राओं अर्चना तथा पल्लवी ने नशे के खिलाफ पोस्टर बनाकर सभी से नशे से दूर रहने की अपील की।
इस अवसर पर विद्यालय के प्रवक्ता अजय बंसल , राजेंद्र,कटारिया ,निशा , पूनम कुमारी, धर्मेंद्र डीपी, रतनलाल, चंद्र शेखर, व प्रमोद कुमार सहित समस्त विद्यालय का स्टाफ एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे।
फोटो कैप्शन 06: नशे के विरुद्ध अभियान चलाते स्कूली विद्यार्थी।
सिमट गए हैं सावन के झूलें
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कनीना की आवाज। सावन माह में डाले जाने वाले झूलें भी अब विज्ञान की चकाचौंध में गुम होते जा रहे हैं। कभी हर घर में झूलें देखने को मिलते थे वे महज अब कुछ घरों तक ही सिमटकर रह गए हैं। सावन के गीतों की गूंज भी अब मंद पड़ गई है और सावन के प्रति लोगों में वो उत्साह नहीं देखा जा सकता है।
एक वक्त था जब सावन माह आते ही घरों में बड़े वृक्षों पर झूलें डाल दिए जाते थे जहां बच्ची हो या बूढ़ी औरत सभी मिलकर झूला झूलती थी। नव विवाहितों के लिए तो झूलें अपना समय बिताने का अच्छा साधन होते थे। मोटे-मोटे रस्सों को बड़े पेड़ से टांगकर उस पर बैठने के लिए लकड़ी की तख्ती लगाई जाती थी। इस झूले पर प्राय: एक ही युवती बैठती थी और दूसरी उसे आगे पीछे झूलाती थी। एक के बाद दूसरी द्वारा झूलाने का यह क्रम अनवरत चलता रहता था। गीतों की गूंज पींग पर सुनाई पड़ती थी।
समय के साथ-साथ सावन के झूलों में भी बदलाव आ रहा है। अब यहां वहां एक या दो ही झूलें दिखाई पड़ सकते हैं। पींग का प्रचलन लगभग समाप्त हो रहा है। उस जमाने में जब पींग का प्रचलन था, घरों में मोटे रस्से मिलते थे जिनसे कुएं का पानी खींचा जाता था। अब न तो कुओं से पानी खींचने की ही जरूरत रही है और न ही पींग की जरूरत रही है।
ऐसा लगता है कि विज्ञान के इस युग में पींग का महत्व घटा है। पींग के बारे में वर्तमान बच्चियां तो शायद ही जानती हो। झूले ही नहीं सिमटे अपितु भागदौड़ की जिंदगी में पींग पर झूलने की भी किसी के पास फुरसत नहीं होती है। कुल मिलाकर पींग का युग समाप्त हो रहा है। अब तो स्कूलों में पींग डालकर पुराने वक्त के झूलों की जानकारी भी दी जाती है।
6 स्थानों पर मच्छरों के लारवा मिले, दिये गये 6 को नोटिस
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कनीना की आवाज। क्षेत्र में जहां बारिश के मौसम में मच्छरों के पनपने एवं लारवा पैदा होने की समस्या बढ़ती बढ़ जाती है। जिसको लेकर एसएमओ डा जितेंद्र मोरवाल उप नागरिक अस्पताल कनीना की अध्यक्षता में कस्बा के विभिन्न 30 स्थानों पर पानी से भरे टबो, कूलर, आदि को एमपीएचडब्ल्यू कनीना सुनील कुमार एवं एचआई शीशराम ने चेक किया।
उन्होंने बताया कि कुछ घरों में पानी के टब, जीवों के लिए रखे सिकोरे एवं कूलरों में भरे पानी को सप्ताह में एक बार भी न बदलने के कारण लारवा पैदा हो जाते हैं। ऐसे में 30 विभिन्न घरो, फैक्ट्रियों एवं दुकानों आदि में ऐसे यंत्रों को चेक कारने पर छह में लारवा पाये गये तथा उन्हें नोटिस जारी कर दिये गये हैं। उन्होंने बताया कि बारिश के समय इन बर्तनों में पानी खड़ा हो उनकी सफाई करनी जरूरी है, वरना मच्छर पनपते चले जाते हैं। यही नहीं उन्होंने कनीना कस्बे में सघन अभियान चला रखा है इसके तहत हर गांव गली हर मोहल्ले में जाते हैं पानी खड़ा रहने और लारवा पनपने वाले स्थानों की निरीक्षण कर मालिक को सूचित करते हैं।
डा जितेंद्र मोरवाल ने बताया कि लापरवाही बरतने से मलेरिया एवं डेंगू फैल सकता है। इनसे बचने के लिए पानी के बर्तनों को साफ करना चाहिए तथा कूलर आदि का पानी सप्ताह में एक बार जरूर साफ करें। खड़े जल में जहां मच्छर पनपते हो वहां तेल आदि छिड़क देना चाहिए। बगैर डाक्टर की सलाह के स्वयं गोली न ले।
फोटो कैप्शन 03: नोटिस लेते हुए घर का मालिक
04: डेंगू एवं मलेरियां की जानकारी देते एमपीएचडब्ल्यू सुनील कुमार।
शिवरात्रि पर बाघोत में लगेगा विशाल मेला
-पौराणिक इतिहास समेटे हैं बाघोत
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कनीना की आवाज। कनीना उपमंडल के गांव बाघोत पर 16 जुलाई को शिवरात्रि मेला लगेगा। इसे कांवड़ मेला भी कहते है। वर्ष में दो बार मेला लगता है। सावन त्रयोदशी शिवरात्रि पर कावड़ मेला लगता है। बाघोत जिसे बाघेश्वर धाम नाम से पूरे भारत में जाना जाता है,का पौराणिक महत्व एवं अपने अंदर इतिहास समेटे हुए है। मंदिर का इतिहास करीब 1690 वर्ष पुराना माना जाता है। इस शिवालय के पास खड़े कदंब के पेड़, तालाब एवं स्वयंभू शिवलिंग ऋषि मुनियों की तप स्थली होने की याद दिलाते हैं। महाशिवरात्रि पर कांवड़ कम अर्पित की जाती हैं।
बाघोत का नाम बाघ के आधार पर पड़ा है-
बाघोत का पुराना नाम हरयेक वन था। यहां दधि ऋषि के पुत्र पीपलाद ने भी तप किया। उनका आश्रम भी तो यहीं था। उनके कुल में राजा दलीप के कोई संतान नहीं थी। वे दु:खी थे और दुखी मन से अपने कुलगुरु वशिष्ठ के पास गए। उन्होंने अपना पूरा दु:ख का वृतांत मुनिवर को सुनाया। वशिष्ठ ने उन्हें पीपलाद ऋषि के आश्रम में नंदिनी नामक गाय एवं कपिला नाम की बछिया निराहार रहकर चराने का आदेश दे दिया। राजा ने गाय व बछिया को निराहार रहकर चराते वक्त एक दिन भगवान् भोलेनाथ ने बाघ का रूप बनाकर राजा की परीक्षा लेने का निर्णय लिया। बाघ ने बछिया पर धावा बोल दिया। गाय को बचाने के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने को राजा तैयार हुए। परंतु जब वे ऐसा करने लगे तो बाघ के स्थान पर शिवभोले खड़े थे। बाघ के कारण ही गांव का नाम बाघोत पड़ा जो आज बाघेश्वर धाम नाम से जाना जाता है। बाघोत स्थित शिवालय का निर्माण कणाणा के राजा कल्याण सिंह रैबारी ने करवाया था। राजा को शिवभोले ने दृष्टïांत दिया था। महाराज ने खुश होकर स्वयंभू शिवलिंग पर शिवालय का निर्माण करवाया। स्वयं गंगाजल लाकर शिवलिंग का अभिषेक किया।
एक बार झज्जर के नवाब फकरुद्दीन ने एक बार स्वयंभू शिवलिंग को ढ़ोंग समझकर इसे खुदवा फेंकने का आदेश अपने सैनिकों को दिया। परिणाम दुखद निकले। नवाब के पुत्र रहमुद्दीन को भी इस स्वयंभू शिवलिंग पर भरोसा नहीं था जिसके चलते उन्होंने जन मेले के स्थान पर पशु मेला भरवाने के आदेश ही दे डाले। महाराज की आंखें खुल गई और स्वयं गंगाजल लाकर शिवलिंग को अर्पित करके जन मेले की शुरुआत की।
बाघोत स्थित शिवालय उन भक्तों के लिए भी प्रसिद्ध माना जाता है जिनके कोई संतान नहीं होती है। मेले में आकर दंपति अपने हाथों से एक विशाल वटवृक्ष को कच्चा धागा बांधकर सुंदर संतान होने की कामना करता है। जब संतान हो जाती है तो यहां आकर ही धागा खोलता है। यही कारण है कि शिवलिंग के पास ही खड़ा एक वटवृक्ष कच्चे धागों से लदा मिलता है। यहां प्रतिदिन हजारों कांवड़ अर्पित की जाती हैं।
फोटो कैप्शन 01: बाघेश्वरी धाम शिवालय।
शिव के प्रति अगाध आस्था ने बनवाया शिवालय
-शिवरात्रि पर किया जाएगा जल अर्पित
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कनीना की आवाज। कनीना के शिवभक्त भरपूर सिंह निर्बाण की शिव के प्रति आस्था जागृत हुई फिर कावड़ लाने का सिलसिला शुरू किया तत्पश्चात उन्होंने कनीना में ही विशाल शिवालय का निर्माण करवाया।
कनीना के मोदीका मोहल्ले का रहने वाला भरपूर सिंह पेशे से एक छोटा सा दुकानदार है किंतु उनकी आस्था विशाल है। अच्छी आमदनी न होते हुए भी उन्होंने शिव के प्रति विश्वास नहीं छोड़ी। अपने एक साथी तथा कनीना में सर्वाधिक कावड़ लाने का रिकार्ड कायम करने वाले सुमेर सिंह चेयरमैन से वे इतने प्रभावित हुए कि नीलकंठ एवं हरिद्वार से कावड़ लाने का सिलसिला शुरू कर दिया। वे लगातार 13 वर्षों तक कावड़ लाते रहे। अपनी दुकान का काम छोड़कर भी वे कावड़ लाते और कावड़ लाकर कनीना के गांव बाघोत स्थित बाघेश्वरी धाम पर चढ़ा देते। वे शिव के प्रति इतने आशक्त हो गए कि उन्होंने अपने खून पसीने की पूंजी से कनीना में विशालकाय शिवालय बनवाने का निर्णय लिया।
कनीना के बाबा मोलडऩाथ मंदिर के पास ही भरपूर सिंह ने 21 फुट ऊंची प्रतिमा वाले शिवालय का निर्माण शुरू करवा दिया। पूरे एक वर्ष तक काम चलने और लाखों रुपये खर्च करके उनका शिवालय पूर्ण हो गया। आखिरकार शिवरात्रि के दिन वर्ष 2001 में यह शिवालय आमजन के लिए खोल दिया गया। यहां उल्लेखनीय है कि भरपूर सिंह के इस शिवालय पर जो भी खर्चा आता है वह स्वयं वहन करता है। चढ़ावे के रूप में जो अन्न आता है उसे वह बोरों में भरकर या तो गौशाला को दान कर देता है या फिर गायों को चरा देता है।
शिवरात्रि 15 जुलाई को यहां भारी भीड़ जुटती है तथा भक्त शिवलिंग का अभिषेक करते हैं। हर वर्ष छोटा मेला भी लगता है।
फोटो कैप्शन 02: कनीना का 21 फुट ऊंची प्रतिमा वाला शिवालय।
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