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Monday, January 27, 2025
कनीना पालिका के चुनाव.....
डोर टू डोर जनसंपर्क के साथ-साथ चल रहा है पोस्टर युद्ध
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कनीना की आवाज। कनीना पालिका के चुनावों की तिथि निर्धारित नहीं हो पाई है किंतु प्रधान पद के लिए अधिक मारामारी है। जहां पहले डोर टू डोर कार्यक्रम चला तो अब प्रधान पद के दावेदारों ने पोस्टर युद्ध चला दिया है। कोई गली और मोहल्ला आज के दिन नहीं बचा जहां कोई ना कोई प्रधान पद का चुनाव लडऩे वाला नहीं पहुंच रहा हो। जिन गलियों में दिन के समय भी लोग जाने से हिचकिचाते थे वहां आज रात के समय भी चुनाव लडऩे वाले पहुंच रहे हैं। पोस्ट युद्ध तो ऐसा छिड़ा हुआ है कि एक किसी भावी प्रत्याशी ने पोस्टर लगा दिया वहीं दूसरा प्रत्याशी भी जरूरी पोस्टर लगा रहा है वहीं पर तीसरा प्रत्याशी भी कोशिश करके अपना पोस्टर लगा रहा है और ऐसा लगता है जैसे कि यह चुनाव सबसे कठिन होंगे क्योंकि जिस त्वरित गति से पोस्टर युद्ध और गली-गली में वोट मांगे जा रहे हैं उसे साफ जाहिर है कि इस बार प्रधान पद का चुनाव कठिन डगर साबित होगा। वैसे तो अभी तक प्रधान पद के जितने भी दावेदार थे वो धीरे-धीरे चुनाव प्रचार कर रहे थे किंतु सरिता बबलू के मैदान में आ जाने से मैदान में एक नई जान फूक दी है। अब तो जिसको भी देखो वह पोस्टर युद्ध और गली-गली वोट मांगने की कार्रवाई में जुट गया है। यहां तक की देखने में आ रहा है कि एक प्रत्याशी जिस गली में चला जाता है उसमें दूसरा प्रत्याशी भी अगले दिन तक पहुंच जाता है। यहां तक कि यह भी शह रखते हैं कि किस प्रत्याशी ने किसको क्या कहा और क्या-क्या वादा किया है। मिली जानकारी अनुसार एक प्रत्याशी ने तो युवा वर्ग को 3100 रुपये खेलों के लिए दे दिए फिर तो चर्चा का विषय बन गया कि इस प्रत्याशी ने 3100 रुपये बच्चों को दिए फिर तो लाइन लगी हुई है दूसरे प्रत्याशी भी कोशिश कर रहे हैं कि उनको 3100 रुपये से अधिक राशि दे। अभी चुनाव की तिथि घोषित नहीं हुई है और लोगों का कहना है कि इस बार शायद चुनाव जून- जुलाई में ही हो पाएंगे परंतु जो भी कुछ हो अब तो पोस्टर युद्ध छिड़ा हुआ है। उससे नहीं लगता कि चुनाव अभी कोसों दूर हैं।
जसवंत बबलू तथा सरिता बबलू अब तो वादे करते हुए लोगों से मिल रहे हैं और हर युवा वर्ग और बुजुर्ग को लुभाने लगे हैं। उनका एक ही कथन प्रचलित हो रहा है कि अब वो कनीना की जमकर सेवा करेंगे तथा जीतने के बाद प्रत्येक वार्ड से 10-10 युवा वर्ग को नौकरी देंगे। यह नौकरी आप फैक्ट्री हो या कंपनियों में दिलवाएंगे। साथ में गुरुग्राम में उनका बिजनेस रहा है इसलिए वो कहते हुए नहीं थक रहे की गुरुग्राम की भांति कनीना को चमका देंगे। उनके लोक लुभावने वादों से लोग खुश है तथा इस बार युवा वर्ग सरिता बबलू के साथ जुड़ता जा रहा है। आने वाला वक्त बता पाएगा कौन किसको पटखनी दे पाता है। बहरहाल कठिन और कांटे की टक्कर अभी से नजर आने लग गई है।
मेरा शिक्षा का सफर पुस्तक से साभार-95
कभी कक्षा में गाइड-कुंजी न तो पढ़ाई और न लाने के लिए विद्यार्थियों से कहा
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कनीना की आवाज। कनीना निवासी डा. होशियार सिंह यादव करीब 40 वर्षों की सेवा शिक्षा के क्षेत्र में देकर 30 अप्रैल 2024 को सेवानिवृत्त हो चुके हैं। यूं तो उनका नाम विश्व रिकार्ड बुक में दर्ज हो चुका है किंतु उनका एक नहीं कई बातों को लेकर विश्व रिकार्ड बुक में नाम दर्ज करवाने योग्य माना जा रहा है। जहां एक और 36 सालों से साइकिल चला रहे हैं वहीं कभी किसी कक्षा में गाइड और कुंजी का सहारा न तो लिया और न ही विद्यार्थियों को लेने दिया। आइये उनकी गाइड और कुंजियां से संबंधित कहानी होशियार सिंह की जुबानी सुनते हैं।
मैंने 1984 में शिक्षण कार्य शुरू कर दिया था, चाहे वह शिक्षण कार्य बतौर ट्यूशन ही शुरू किया गया था लेकिन उस समय से लेकर 30 अप्रैल 2024 तक एक भी विद्यार्थी यह नहीं कह सकता कि किसी दिन उन्होंने कक्षा कक्ष में बुक के अतिरिक्त गाइड-कुंजी प्रयोग की हो या कोई एक भी विद्यार्थी नहीं कर सकता कि उन्होंने किसी समय गाइड या कुंजी का उपयोग करने की सलाह दी हो। अगर मेरे पास पढ़ा हुआ विद्यार्थी यह कह दे कि होशियार सिंह ने कभी गाइड कुंजी का सहारा लिया या पढऩे के लिए कहा या खरीदने के लिए कहा तो उसे बड़ी इनाम दी जाएगी। गाइड या कुंजी सभी विषयों की इकट्ठी होती थी परंतु जब किसी विद्यार्थी के पास कोई गाइड या कुंजी मिल जाती जो तो उनकी जमकर धुनाई हुई। सिर्फ यह कहा कि अगर तुम्हें प्रयोग भी करनी है तो अपने घर पर प्रयोग करो क्योंकि विद्यार्थी एक ही बात कहते थे कि सर, आपके लिए नहीं यह दूसरे विषय के लिए हमने खरीदी है। तो मेरा यही कहना होता था कि इन गाइड और कुंजियां को घर पर तो रख सकते हो। यहां अगर किसी के पास मिल गई तो उसका बुरा हाल कर दिया जाएगा। यही कारण है कि कभी भी विद्यार्थी विज्ञान की गाइड या कुंजी अपने पास थैले में न तो रखते थे और न ही उनकी इच्छा होती थी। जब मैं सरकारी स्कूल में पढ़ा रहा था तो एक दिन कुछ विद्यार्थी मेरे पास ट्यूशन लिए आए, मैंने पूछा कि किस विषय का ट्यूशन करना है। उन्होंने कहा कि विज्ञान का ट्यूशन तो हम करेंगे नहीं क्योंकि कक्षा कक्ष में इतना अधिक काम दे दिया जाता है, बेहतर ढंग से पढ़ा दिया जाता है कि उसकी तो जरूरत नहीं अन्य विषय गणित आदि का ट्यूशन चाहिए। उल्लेखनीय है कि जब तक मैं सरकारी सेवा में नहीं था तब तक ट्यूशन किया और जिस दिन सरकारी सेवा में आया उस दिन ट्यूशन बंद कर दिया। 6 अप्रैल 1005 को सेवा में आया और उस समय जितने भी ट्यूशन के बैच थे उन्हें परीक्षा होने तक ही पढ़ाया। मेरा यह भी मानना है कि गुरु या शिक्षक आदि नाम से जाने जाने वाला आधुनिक अध्यापक स्वयं ही गाइड होता है। गाइड का अर्थ होता है पथ प्रदर्शक और यदि शिक्षक गाइड या कुंजी का प्रयोग करता है इसका मतलब है वह सामथ्र्यवान नहीं है अर्थात वह इतना कमजोर है कि वह पुस्तक पढ़ कर नहीं आता और वह किसी दूसरे शिक्षक/गाइड का सहारा लेकर विद्यार्थियों को पढ़ाकर उनके साथ अन्याय कर रहा है। इसलिए गाइड और कुंजी प्रयोग करना सदा मना ही थी और इसे पूरे शिक्षक कार्यकाल दौरान बखूबी से निभाया। आज विद्यार्थी एक बात सरेआम कहेंगे कि विज्ञान की गाइड कुंजी की कभी न तो जरूरत पड़ी और न शिक्षक ने कभी खरीदने के लिए कहा। वैसे भी सरकार के आदेशानुसार गाइड या कुंजी विद्यार्थी थैले में नहीं रख सकता। समय समय पर सरकार के पत्र भी आते रहते थे कि गाइड या कुंजी किसी कक्षा में पाई गई तो शिक्षक के विरुद्ध कार्रवाई की जाएगी।
यहां तक की गाइड और कुंजी देने के लिए जब कोई पब्लिशर स्कूल में आता था तो उनकी गाइड/ कुंजी लेकर अलमारी में बंद कर दी जाती थी या साफ मना कर दिया जाता था कि हमें जरूरत नहीं है। मेरे पास पढ़ा हुआ कोई विद्यार्थी नहीं कह सकता कि कभी उन्होंने कक्षा में गाइड या कुंजी प्रयोग की हो या गाइड कुंजी पढऩे के लिए प्रेरित किया हो या गाइड कुंजी विज्ञान की उन्होंने प्रयोग की हो। अगर किसी ने अगर प्रयोग की हो तो हो सकता है कि अपने घर पर प्रयोग की हो स्कूल में सख्त मनाही थी। चूंकि गाइड/ कुंजी सभी विषयों की इकट्ठी/कंबाइंड आती है। जब भी किसी अन्य विषय की गाइड या कुंजी किसी विद्यार्थी के पास मैंने देखी तो उसको खूब पीटा, धमकाया और गाइड कुंजी उठाकर बाहर फेंक दी। भविष्य में वह विद्यार्थी अपने बैग में या तो गाइड कुंजी लेकर नहीं आया या फिर छुपाकर रखा है ताकि दूसरे विषयों में प्रयोग कर सके।ऐसे में जहां लेखन कार्य में, साइकिल चलाने में, गाइड कुंजी न प्रयोग करने में तथा कक्षा कक्ष में हमेशा खड़े होकर शिक्षण कार्य करने के कारण मेरा नाम विश्व रिकार्ड बुक में दर्ज होना ही चाहिए था और हो भी चुका है।
मैंने जहां केंद्रीय विद्यालय,कालेज, नवोदय विद्यालय, प्राइवेट स्कूल, ट्यूशन और हरियाणा के सरकारी स्कूलों में शिक्षण कार्य किया है और कहीं मैंने गाइड कुंजी का उपयोग नहीं किया और न प्रयोग करने दिया क्योंकि मैं पुस्तक पर ज्यादा विश्वास करता था, विशेष कर एनसीईआरटी की पुस्तक बहुत सराहनीय होती है ,उन्हीं को खरीदने के लिए सलाह देता था और वो ही स्वयं प्रयोग की गई क्योंकि गरीब विद्यार्थी गाइड/कुंजी वैसे भी नहीं खरीद सकते, ऐसे पुस्तक जो एनसीईआरटी की होती है सस्ते में मिल जाती है और इन्हें प्रयोग करने की सदा सलाह दी है और मैं आज भी सलाह दे रहा हूं कि यदि उन्हें सफलता हासिल करनी है तो एनसीईआरटी की पुस्तकों का अध्ययन अच्छी प्रकार करना चाहिए।
रिटायर्ड कर्मचारी संघ हरियाणा की बैठक 29 को
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कनीना की आवाज। रिटायर्ड कर्मचारी संघ हरियाणा जिला महेन्द्रगड़ की अति आवश्यक बैठक यादव धर्मशाला नारनौल में श्री घनश्याम शर्मा की नेतृत्व में 29 जनवरी 2025 को प्रात: 10 बजे आयोजित की जाएगी बैठक में राज्य कार्यकारिणी के द्वारा किए गए फसलों से सभी सदस्यों को अवगत कराया जाएगा और आगे की संघर्ष की रणनीति तैयार की जाएगी।इसकी जानकारी देते हुए राज्य प्रेस सचिव धर्मपाल शर्मा ने बताया की राज्य कमेटी के निर्णय अनुसार 1 से 15 फरवरी तक सदस्यता पखवाड़ा मनाते हुए सर्व कर्मचारी संघ हरियाणा के आह्वान पर दिनांक 1-2 फरवरी शनिवार, रविवार व 8-9 फरवरी शनिवार,रविवार को अपने अपने हल्के के एमएलए को ज्ञापन दिया जाने में हम भी अपना मांग पत्र देंगे तथा 15-16 फरवरी को कैम्प कार्यालय कुरुक्षेत्र में 48 घण्टे का पड़ाव में शामिल होंगे इस कार्यक्रम की तैयारी के लिए महेन्द्रगड़ जिला के सभी सदस्यों की बैठक बुलाई गई है।
भोजावास की किसान अपनी फसल गायों को फिर चराई
-गाय चराकर गेहूं की खेती में किया है नवाचार
-पिछले दो दशकों से चरा देते हैं पूरी फसल
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कनीना की आवाज। कनीना उपमंडल के गांव भोजावास निवासी किसान महेंद्र सिंह यादव ने हर वर्ष की भांति इस साल भी अपनी गेहूं की फसल से भोजावास गौशाला की 500 गायों को भोजन करवाया। कृषि का यह नवाचार वे पिछले दो दशकों से करते आ रहे हैं। उक्त जानकारी देते हुए किसान संचार के संयोजक कमलजीत ने बताया कि उनकी संस्था की देखरेख में रेवाड़ी तथा महेंद्रगढ़ जिले के गांवों में चल रही साप्ताहिक अहीरवाल शोध यात्रा के सीहा से ढ़ोसी रही।
इस दौरान इस शोध यात्रा के शोधार्थियों को महेंद्रगढ़ जिले के गांव भोजावास में एक अनोखा कृषि नवाचार इस्तेमाल करने वाला अनुभवी किसान मिला। यह किसान पशुपालन में राज्य स्तर पर हरियाणा सरकार का पुरस्कार पहले ही पा चुका है। वे घर पर गाय-भैंस पालने के अलावा घोड़ी रखने के भी शौकीन हैं। 65 वर्षीय किसान महेंद्र सिंह यादव प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के अवसर पर अपनी कई एकड़ की गेहूं की फसल में भोजावास गौशाला की सैकड़ों गाए चरने के लिए आमंत्रित करते हैं।
इस दिन वे इन गायों के साथ आने वाले ग्वालों को भी घी-चूरमा खिलाते हैं। महेंद्र सिंह यादव करीब पिछले 20 वर्षों से यह नवाचार कर रहे हैं। ये गाएँ ऊपर से गेहूं को चर जाती हैं तथा नीचे बचे गेहूं में फिर तेजी से फुटाव होता है। इससे उनकी फसल और भी जोरदार होती है। अब इससे प्रेरित होकर पिछले कुछ वर्षों से वे बाजरे की फसल में भी यह प्रयोग करने लगे हैं, जिसके अच्छे परिणाम सामने आए हैं। उन्होंने कई बार अन्य किसानों से ज्यादा गेहूं व बाजरे की पैदावार इसी नवाचार से प्राप्त की है। उनके इस कार्य में उनका पूरा परिवार तथा दोनों बेटे सोनू व अभिषेक भी मदद करते हैं।
इस बार यह आयोजन शोध यात्रा के समापन के अवसर पर 27 जनवरी को किया गया, जिसमें गौशाला की प्रतिनिधियों के अलावा ग्रामीणों ने भी भाग लिया। इस साप्ताहिक अहीरवाल शोध यात्रा के प्रभारी तथा कृषि शोधार्थी कमलजीत अब इस नवाचार को राष्ट्रव्यापी बनाने के लिए काम करेंगे। वे मानते हैं कि यह हमारे किसानों के अनुभव का अपना मौलिक नवाचार है।
एक तरफ जहां आज गाए बदहाल हैं, गोचर भूमि बची नहीं है, जिसके चलते भूखी आवारा गाएँ सड़कों व बाजारों में पॉलिथीन खाने पर विवश हैं, वहीं उनका यह कृषि नवाचार कई मायनों में महत्वपूर्ण है। हमारी गौशालाओं के संरक्षण एवं संवर्धन में भी अभी बहुत कुछ होना बाकी है। ऐसे माहौल में यदि ऐसे नवाचार गांव-गांव देशभर में किए जाए, तो भारतीय संस्कृति में विशेष दर्जा रखने वाली गायों का पेट भर जाएगा तथा किसानों को नुकसान भी नहीं होगा। सरकारी तौर पर भी इस नवाचार को बढ़ावा दिया जा सकता है।
कमलजीत बताते हैं कि अर्धमरुस्थलीय अहीरवाल क्षेत्र का किसान बेहद मेहनती है। प्रतिकूल परिस्थितियों तथा पानी की कमी की बावजूद वह अपने कौशल तथा मेहनत से बालू रेत में सोना उपजा जा रहा है। इस यात्रा के दौरान उन्हें अनेक प्रगतिशील किसानों के रचनात्मक पहलुओं की जानकारी मिली है, जिसे शीघ्र प्रकाशित व प्रसारित किया जाएगा। वे बताते हैं कि कार्बनिक खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार तथा सामाजिक संगठनों को आगे आना होगा, ताकि हम बीमारियों व पर्यावरण चुनौतियों से आने वाली पीढिय़ों को बचा सकें।
पहले दिन से ही इस टीम का हिस्सा रहे आयुर्वेद मर्मज्ञ दिलीप गुणवाल मानते हैं कि महेंद्र सिंह यादव जैसे नवाचारों तथा परंपरागत खेती के साथ किसानों को आय बढ़ाने के लिए समय के साथ कदमताल करते हुए कुछ नया करना होगा। अपनी खेती के प्राचीन समृद्ध ज्ञान का संरक्षण एवं संवर्धन जरूरी है, किंतु समय के साथ नई तकनीक तथा नवाचार भी जरूरी हैं। यात्रा में शामिल पर्यावरण प्रेमी सुधीर बिश्नोई का मानना है कि अहीरवाल के खेतों में बहुतायत में पाए जाने वाले पेड़ों का संरक्षण भी जरूरी है, जिनमें अहीरवाल का चंदन कहे जाने वाले जाटी के पेड़ उल्लेखनीय है।
देखना यह है कि 65 वर्षीय किसान महेंद्र सिंह यादव का यह नवाचार किसान संचार के माध्यम से कहां तक पहुंचता है तथा अहीरवाल शोध यात्रा के तहत इस तरह की कितनी नई जानकारियां जन-जन तक पहुंचती हैं।
फोटो कैप्शन 06: भोजावास गांव में किस महेंद्र सिंह के खेत में चरती गौशाला की गाएं
साथ में किसान महेंद्र सिंह
होने लगी है खाटू श्याम मेले की तैयारी
- हजारों की संख्या में जाते हैं भक्तजन कनीना से
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कनीना की आवाज। 28 फरवरी से 11 मार्च तक चलने वाले 12 दिवसीय फाल्गुनी मेले की तैयारी शुरू हो गई है। जहां कनीना में श्याम बाबा का मंदिर है वहीं कनीना से लोग राजस्थान के दो स्थानों पर पदयात्रा पर जाते हैं। एक और जहां हुडिय़ा जैतपुर जाते हैं वही खाटू श्याम धाम पर जाते हैं। भक्तजन ध्वज लेकर दोनों ही स्थानों पर जाते हैं। आजकल जहां हुडिय़ा जैतपुर का धाम बहुत प्रसिद्ध होता जा रहा है क्योंकि महज 30 किलोमीटर दूरी पर है। इसमें महिलाएं बढ़ चढ़कर पदयात्रा करती है। वैसे भी एक ही दिन में पदयात्रा पूर्ण हो जाती है, इसलिए भी हुडिय़ा जैतपुर का श्याम धाम प्रसिद्ध होता जा रहा है। वहीं जहां कनीना से करीब 190 किलोमीटर दूर राजस्थान में रिंगस से 17 किलोमीटर दूर खाटू धाम है। जहां सबसे अधिक बड़ा मेला लगता है। इस मेले में सभी गांव से सैकड़ों की संख्या भक्तजन पदयात्रा करते हैं। जगह-जगह उनके लिए जहां ठहरने के प्रबंध किए जाते हैं।
इस यात्रा की विस्तृत जानकारी देते हुए श्यामभक्त मनोज कुमार ने बताया कि उनका एक दल हर वर्ष पैदल जैतपुर जाता है वही सूबे सिंह और दुलीचंद साहब ने बताया कि वे कनीना के श्याम बाबा पर हर वर्ष भंडारा लगते हैं वहीं अखंड ज्योति जैतपुर ले जाते हैं। इस मेले को लेकर के तैयारियां जारी है।
उधर कनीना के सुरेश कुमार एवं रवि कुमार ने बताया कि वे इन मेलों में जाते हैं और श्याम बाबा के दर्शन करते हैं। जहां इन मेलों के प्रति हर वर्ष संख्या बढ़ती ही जा रही है। कनीना से 190 किलोमीटर दूर स्थित खाटू श्याम धाम पर सबसे अधिक भीड़ रहती है तथा करीब चार दिनों में यह सफर पूरा करना होता है। भक्त पूरे ही हरियाणा एवं पंजाब आदि से इस तरफ से गुजरते हैं और पदयात्रा पर खाटू श्याम धाम पर पहुंचते हैं। मनीष कुमार ने बताया कि वह एक दिन में पूरा होने वाले श्याम धाम जैतपुर जाते हैं और श्रद्धा भक्ति से वहां दर्शन करके वापस आते हैं। ऐसे में जहां 12 दिवसीय फाल्गुनी मिले की तैयारी शुरू हो गई है वहीं भक्तों में भारी उत्साह देखने को मिल रहा है।
फोटो कैप्शन 05: जैतपुरा का श्याम धाम।
बाबूलाल करीरा अपने व्यवहार सेे कमा रहे हैं नाम
-अपने पैसों से लगाते हैं पेड़ पौधे, करते हैं सेवा
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कनीना की आवाज। करीरा निवासी बाबूलाल सुख सहाय जहां शिक्षा विभाग में 24 सालों से सेवा दे रहे हैं वहीं वर्तमान में राजकीय कन्या उच्च विद्यालय कनीना में कार्यरत हैं। आज के दिन चाहे लोग काम से जी चुराते हैं किंतु वह पूरी लगाने से काम करते हैं तथा अपनी पैसों से पेड़ पौधे लगाकर विद्यालय का सौंदर्यीकरण में लगे हुए हैं। जहां उन्होंने अपने पैसों से पेड़ पौधे लगाए हैं वही फव्वारे लगाकर घास का लान तैयार कर रहे हैं। बाबूलाल से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि चाहे इंसान किसी भी पद पर हो किंतु उसे जी जान से मेहनत करनी चाहिए ताकि नाम कमा सके। यह हमारा फर्ज है। सरकार जब हमें वेतन देती है तो हमारा भी फर्ज बनता है कि हम जी जान से काम करें। परिवार की आर्थिक हालात ठीक होने के कारण अवकाश के दिन भी स्कूल में आ जाते हैं और काम में लगे रहते हैं। सौम्य स्वभाव के बाबूलाल जहां प्रांगण को सजाने में लगे हुये है वहीं शीत ऋतु आने पर उनके फूलदार पौधे नष्ट हो जाते हैं। उन्होंने बताया कि कई बार निज पैसों से पेड़ पौधे लाकर पेड़ लाकर प्रांगण सजाते हैं। अपने घर में उगे हुए फूलदार तथा फलदार पौधे भी लाकर लगाते हैं। जहां किचन गार्डन बनाना हो तो उसमें भी स्वयं अपने हाथों से किचन गार्डन तैयार करते हैं और बीज भी अपने पैसों से लाकर लगाते हैं। सबसे बड़ी बात है कि वर्तमान स्कूल के प्रार्थना सभा स्थल का घास का लान तैयार कर रहे हैं जिसमें उन्होंने खुद अपने पैसों से पाइपलाइन दबाकर उसमें फव्वारा सेट लगाए हुए हैं। उन्होंने बताया कि बार-बार बंदर फव्वारा सेट को तोड़ जाते हैं इसलिए भूमि के नीचे से पाइप दबाकर छोटे फवारा लगाए हैं। जब भी किसी भी प्रकार का कोई आदेश मिलता है उसे बखूबी से पालन करते हैं कि तथा सद्व्यवहार होने के कारण सभी स्टाफ सदस्य उन्हें चाहते हैं। ऐसे वैसे भी सुखसहाय का वेतन बहुत कम होता है किंतु जो भी मिलता है उसे अपनी खुशनसीबी समझ कर मेहनत में विश्वास करते हैं। उनके लान में सदा हरी औषधि की भरमार है। मुख्याध्यापक नरेश कौशिक भी उनके व्यवहार एवं कर्तव्यनिष्ठता की प्रशंसा करते हैं
फोटो कैप्शन 4: घास का लान तैयार करते बाबूलाल तथा बाबूलाल की पासपोर्ट
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