सौभाग्यवती महिलाओं का पर्व-गणेश चतुर्थी
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कनीना। 13 जनवरी को कनीना क्षेत्र में गणेश चतुर्थी का व्रत पर्व आयोजित किया जा रहा है। इसे विभिन्न नामों से जाना जाता है।
कनीना के ज्योतिषाचार्य सुरेंद्र शर्मा ने बताया कि माघ माह की कृष्ण चतुर्थी को सौभाग्यवती महिलाओं का पर्व गणेश चतुर्थी मनाया जा रहा है जिसे ग्रामीण क्षेत्रों में संकटहरण चतुर्थी, तिल कुटनी तथा गणेश चतुर्थी आदि नामों से जाना जाता है। सर्दी के माह में आने वाले इस पर्व का विशेष महत्व माना जाता है। यह व्रत पति, पुत्र की मंगलकामना, धन एवं धान्य के लिए किया जाता है जिसका समापन चन्द्रदेव को अघ्र्य देकर पूर्ण किया जाता है।
इस पर्व पर तिलों को कुटकर तथा चासनी में डालकर बनाई गई विशेष प्रकार की केक खाकर मनाया जाता हे इसलिए इसे तिल कुटनी का व्रत भी कहते हैं। यह व्रत विवाहित एवं अविवाहित दोनों के लिए ही फलदायक माना जाता है। अविवाहित महिलाएं अपने सुपति की कामना से तो विवाहित महिलाएं अपने पुत्र, भाई एवं पति की मंगलकामना के लिए व्रत करती हैं। चांद को देखकर तथा उसे अघ्र्य देकर ही इस व्रत का समापन किया जाता है जिसके पीछे माना जाता हे कि महिलाएं चांद जैसी शीतलता एवं चमक अपने इष्टïदेव में देखना चाहती हैं। इस दिन श्रीगणेश की पूजा करने का विशेष विधान है।
एक बार एक युद्ध में शिवभोले ने बारी-बारी से कार्तिकेय और गणेशजी से देवताओं का सेनापति बनने के बारे में पूछा। दोनों ही अपने को देवताओं का संकट हरने के लिए तैयार थे और एक दूसरे से शक्तिशाली, ज्ञानवान एवं तर्कशील बताने लगे। ऐसे में शिवभोले ने दोनों की परीक्षा लेनी चाही और दोनों को आदेश दिया कि दोनों ही पृथ्वी के तीर्थ स्थलों के चक्कर लगाकर आओ। जो भी पहले आएगा उसे ही देवताओं का सेनापति नियुक्त किया जाएगा। इतना सुनकर कार्तिकेय अपने मयूर पर सवार होकर पवन के वेग से तुरंत पृथ्वीलोक की ओर चल दिया और तीर्थों के चक्कर लगाने लगा।
उधर श्रीगणेश आराम से अपने स्थान पर बैठा रहा और कुछ समय उपरांत अपने माता-पिता के चारों ओर सात चक्कर लगाकर उन्हें प्रणाम करके बैठ गया। जब कार्तिकेय अपने मयूर पर सवार होकर तीर्थों के सात चक्कर लगाकर शिवभोले और माता पार्वती के पास पहुंचा तो अपने को पहले पहुंचने वाला बताया। जब गणेश से पूछा गया कि आपने सात तीर्थों का चक्कर ही नहीं लगाया जबकि आप पहले आने की बात कह रहे हो तो श्रीगणेशजी ने कहा-माता-पिता से बड़ा कोई तीर्थ इस जगत में नहीं होता है। श्रीगणेश ने देवताओं के सभी संकट दूर किया। तभी से श्रीगणेश जैसा पुत्र पाने के लिए महिलाएं व्रत रखती हैं। पार्वती भी इस व्रत को रखती थी और गणेश जी की पूजा करती थी।
बाबा भैया सेवा दल ने किया स्वयंसेवक खिलाडिय़ों को सम्मानित
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कनीना। ककराला ग्राम की समाजसेवी संस्था बाबा भैया सेवा दल क्षेत्र में पर्यावरण संरक्षण में अग्रणी भूमिका निभाते हुए रविवार को अपनी कार्यकारिणी मीटिंग में गांव में लगाए पेड़ पौधों की देखभाल के लिये आगे आए खिलाडिय़ों को खेल यूनिफार्म देकर सम्मानित किया। ककराला ग्राम में मकर संक्रांति के अवसर पर खेलों का आयोजन किया जाएगा जिसमें क्षेत्र के खिलाड़ी प्रतिस्पर्धा में हिस्सा लेंगे।
संस्था के प्रधान राकेश कुमार ने सभी खिलाड़ी स्वयंसेवकों को इन खेलों के लिये शुभकामनाएं दी। उन्होंने बताया कि खेलों का हमारी जिंदगी में बहुत महत्व है, इनसे स्वास्थ्य में तो लाभ मिलता ही है साथ में इस तरह के आयोजन से समाज में भाईचारा बढ़ता है। प्रतिस्पर्धा से खिलाडिय़ों की प्रतिभा निखरती है। इन युवाओं की ऊर्जा गांव की पीढ़ी के लिये नई ज्योति जला रही है ताकि एक खुशहाल नई पीढ़ी को आगमन हो।
ग्राम सरपंच कृष्ण सिंह, जगदेव यादव एवं रामेश्वर दयाल ने कहा हमें खेलों के प्रोत्साहन के लिये हर सम्भव प्रयास होने चाहिए। उन्होंने बताया खेलों के प्रति युवा जागरूक होंगे तो मानव जीवन सुखमय बन सकेगा और हम भविष्य में एक स्वस्थ व खुशहाल पीढ़ी को बढ़ावा देते हैं। उन्होंने बताया बिना मनोबल के सफलता के शिखर के पहुंचना असंभव है। हमें किसी भी विषय पर विस्तार से राय लेकर उस पर आगे बढऩा चाहिए।
इस कार्यकारिणी मीटिंग में गांव के अन्य महत्वपूर्ण सामाजिक विषयों को लेकर चर्चा की गई। जिसमें सभी ग्रामीणों और सदस्यों ने अपने विचार सांझा किए।
इस अवसर पर ग्राम सरपंच कृष्ण सिंह, जगदेव यादव, रामेश्वर दयाल, विकास कमेटी के प्रधान कंवर सिंह , प्रताप सिंह व अन्य कमेटी सदस्य, बाबा ढालोड़ युवा दल के सदस्य भी पहुंचे। इस मौके पर बाबा भैया सेवा दल के सदस्य व ग्रामीण व सभी स्वयंसेवक मौजूद थे।
फोटो कैप्शन 1: खिलाडिय़ों को खेल यूनिफार्म वितरित करते क्लब पदाधिकारी।
रक्तदान शिविर सोमवार को
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कनीना। राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय दड़ौली में जिला महेंद्रगढ़ एवं चरखी दादरी के एनसीसी कैडेट्स का 10 दिवसीय शिविर जारी है। जहां सोमवार 13 जनवरी को रक्तदान शिविर आयोजित किया जाएगा।
विस्तृत जानकारी देते हुए कैंप कमांडर टीएस भंडारी ने बताया कि इस रक्तदान शिविर में रेवाड़ी के डाक्टरों की टीम पहुंचेगी जबकि इस कैंप का समापन 15 जनवरी को होगा।
रविवार को जहां अंतर कालेज खेल प्रतियोगिता आयोजित की गई वहीं विद्यार्थियों को स्वच्छता के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई। विद्यार्थियों ने दड़ौली स्थित श्री कृष्ण आश्रम की सफाई की वही उन्हें एकता और भाईचारे में रहने की प्रेरणा दी गई।
प्रभातफेरी निकालकर किया लोगों को जागरूक
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कनीना। राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय धनौंदा में चल रहे सात दिवसीय शिविर में रविवार को एनएसएस स्वयंसेवकों ने प्रभातफेरी निकाली एवं रन फार यूनिटी कार्यक्रम आयोजित किया गया।
इस मौके पर प्रभातफेरी को महिपाल सिंह ने हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। इस अवसर पर स्वामी विवेकानंद जयंती पर रन फार यूनिटी कार्यक्रम भी आयोजित किया गया और युवा शक्ति दिवस मनाया गया। धनौंदा स्थित स्टेडियम में स्वयंसेवकों ने दौड़ लगाकर स्वामी विवेकानंद को उनके महान कार्यों के लिए याद किया।
तत्पश्चात प्रभात फेरी निकाली। विद्यार्थी अपने हाथों में बैनर लिए हुए नारे लगाते हुए गांव की गलियों से गुजरे। उन्होंने शराब, व्यसन, बाल विवाह दहेज प्रथा, भू्रण हत्या आदि ज्वलंत मुद्दों को अपने पोस्टरों और बैनरों पर उकेरा हुआ था और गांव में नारे लगाते हुए गुजरे और वापस विद्यालय पहुंचे।
इस अवसर पर अनूप सिंह प्राध्यापक गाहड़ा कार्यक्रम अधिकारी ने उन्हें दहेज न लेने की शपथ दिलाई। उन्होंने कहा कि समाज को खोखला करने में दहेज एक बड़ी भयंकर समस्या बनती जा रही है। जिन परिवारों में दहेज का सामथ्र्य नहीं होता उन्हें अपनी बच्ची की शादी में भारी दहेज देना पड़ता है। यहां तक कि दहेज के लोभी दहेज के लिए हत्या करने पर उतारू हो जाते हैं। यही नहीं बाल विवाह जैसी कुरीति समाज में अभी भी प्रचलित है। जिसे समूल नष्ट करना चाहिए। उन्होंने कहा कि बीड़ी सिगरेट शराब का आदि ऐसे व्यसन बन गए हैं जिनमें युवा पीढ़ी भी फंसी हुई है। एक बार इन की लत पड़ जाती है तो छोड़ नहीं पाते। यह उनको बर्बाद करके ही दम लेती है। ऐसे में इन बुराइयों को आस पास के लोगों को छुड़वाने की शपथ दिलवाई। उन्होंने कहा कि समाज में लिंग जांच, भ्रूण हत्या जैसे अपराध बढ़ गए हैं जिनपर सरकार ने प्रतिबंध लगा रखा है फिर भी चोरी-छिपे कुछ लोग लिंग जांच करवाते हैं और बच्चियों की गर्भ में हत्या कर देते है। उन्होंने इस पाप से बचने के लिए भी शपथ दिलाई और कहा कि भविष्य में वे युवा बनेंगे परिवार चलाएंगे तो इन बुराइयों को कभी पनपने नहीं देंगे। विद्यार्थियों ने भी आश्वस्त किया कि वे कभी इन बुराइयों को पास से नहीं गुजरने देंगे। इस अवसर पर सूबे सिंह कंप्यूटर विशेषज्ञ, महिपाल सिंह कनीना ने भी अपने विचार रखे और विद्यार्थियों को सामाजिक बुराइयों से बचकर रहने की प्रेरणा दी। इस मौके पर जयपाल सिंह प्राध्यापक ने भी अपने विचार रखे।
फोटो कैप्शन दो: रन ऑफ द डे की रैली निकालते एनएसएस स्वयं सेवक।
बच्ची के जन्मदिन पर लगाया पौधा, आयोजित किया हवन
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कनीना। कनीना के वरिष्ठ प्राध्यापक राजेश कुमार कनीनवाल ने अपनी बच्ची के जन्मदिन पर जहां एक पौधा लगाया वही हवन आयोजित किया गया।
राजेश कुमार कनीनवाल ने बताया कि उनका लड़का दीक्षु एक वर्ष का हो गया है जिनका जन्मदिन है वही उनकी लड़की 11 वर्ष की सीया हो गई है। इसलिए दोनों का जन्म एक ही दिन होने के कारण एक पौधा लगाया और हवन आयोजित किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि उनकी इच्छा है कि हर वर्ष उनके जन्मदिन पर पौधे लगाए जाएंगे। उन्होंने कहा कि जहां बच्चे का जन्मदिन भी याद रहेगा वहीं ये पौधे बड़े होकर भी उनकी याद दिलाते रहेंगे। जब यह बच्चे बड़े हो जाएंगे तो उन्हें पता लगेगा कि जब वे छोटे थे तो उनके जन्मदिन पर ये पौधे लगाए गए थे। उन्होंने कहा कि पेड़-पौधे से ही यह धरती तथा पर्यावरण सुरक्षित रह सकता है। इसलिए वे इस मुहिम को आगे बढ़ाएंगे।
राजेश कुमार कनीनवाल ने बच्ची सीया के 11 वें जन्मदिन पर हवन भी आयोजित करवाया। उन्होंने कहा कि हवन से जहां पर्यावरण शुद्ध होता है वहीं पेड़ पौधे भी वातावरण को शुद्ध करते हैं। उनका कहना है कि हर इंसान का फर्ज बनता है कि वो पर्यावरण की सफाई में अपना योगदान दें और इस योगदान में कम से कम पेड़ लगाकर पर्यावरण को सुरक्षित रख सकते हैं।
इस हवन में जहां कनीना मार्केट कमेटी के चेयरमैन राजकुमार कनीनवाल, कृष्ण प्रकाश हेडमास्टर, दीपक एडवोकेट, विक्रम सिंह, भगत सिंह समाजसेवी, कप्तान सुमेर सिंह, संदीप यादव एडवोकेट, रितु यादव आदि कई अन्य गणमान्य जन पहुंचे और हवन में आहुति डालकर वातावरण को शुद्ध बनाने की शपथ ली।
फोटो कैप्शन 3: पौधारोपण करते हुए राजेश कनीनवल तथा उनके साथ लड़की सीया एवं उनका लड़का दीक्षु सहित अन्य।
इनकम टेक्स में बचत की सीमा बढ़ाई जाए
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कनीना। यद्यपि सरकार द्वारा कर्मियों को सातवें वेतन आयोग देकर आय बढ़ाने कर प्रशंसा हो रही है किंतु अभी भी कर्मियों पर इनकम टैक्स की वर्तमान रेंज भारी पड़ रही है। सरकार द्वारा इनकम टैक्स में बदलाव कर देने के बाद भी अधिक लाभ नहीं मिल पा रहा है। जहां वर्तमान में आयकर की छूट सीमा पांच लाख कर देने तथा निवेश के साथ अब साढ़े छह लाख तक कोई टैक्स नहीं दिए जाने को राहत पूर्ण कदम माना जा रहा है। कर्मियों के लिए मानक कटौती 40000 से बढ़ाकर 50000 करना भी सराहनीय कदम माना जा रहा है किंतु अभी कर्मी एवं पूर्व कर्मी संतुष्ट नहीं हैं। इस संबंध में विभिन्न कर्मियों एवं अधिकारियों के विचार भिन्न भिन्न हैं।
पूर्व उप जिला शिक्षा अधिकारी डा रामानंद यादव का कहना है कि कर्मचारियों को बचत की आदत डालनी चाहिए और सरकार को भी चाहिए कि कर्मचारियों को बचत की आदत डलवाए। ऐसे में इनकम टैक्स में बचत की सीमा कम से कम पांच लाख कर देनी चाहिए। जिस अनुरूप कर्मचारियों का वेतन बढ़ा है उसी अनुरूप इनकम टैक्स की सीमा बढ़ा देनी चाहिए। उन्होंने कहा कि आज के दिन अधिकांश कर्मचारी इनकम टैक्स के दायरे में हैं। ऐसे में इनकम टैक्स का बोझ घटाने के लिए इनकम टैक्स की रेंज बढ़ानी चाहिए। वही बचत की बचत की सीमा भी बढ़ाकर कम से कम पांच लाख की जानी चाहिए।
उधर बनवारी लाल राज्य शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित प्राध्यापक का कहना है कि कर्मचारी वर्तमान में भी बेहतर जीवन नहीं जी पा रहे हैं। उनको अभी भी कम से कम एक माह का वेतन इनकम टैक्स में देना पड़ रहा है। कहने को तो 12 माह का वेतन मिलता है किंतु एक माह का वेतन इनकम टैक्स में देना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि यदि आयकर की सीमा बढ़ा दी जाए तो कर्मचारियों को राहत मिल सकती है। यहां तक कि कहा कि पहले कर योग्य आय पर टैक्स 5 प्रतिशत, 10 प्रतिशत तत्पश्चात 20 प्रतिशत होता था किंतु अब टैक्स 5 प्रतिशत के बाद सीधा 20 प्रतिशत पर बढ़ा दिया है। उन्होंने कहा कि फिर से कर योग्य आय पर टैक्स 5 प्रतिशत के बाद 10 प्रतिशत और उसके बाद 20 प्रतिशत किया जाना चाहिए।
उधर सुनील कुमार यादव हसला प्रधान का कहना है कि शिक्षा पर कर पहले दो प्रतिशत होता था जिसे बढ़ाकर चार फीसदी किया हुआ है जिसका कर्मचारियों पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। उन्होंने कहा कि शिक्षा कर फिर से 2 प्रतिशत किया जाए तो अधिक लाभ मिल सकता है। उन्होंने शिक्षा कर एक बार फिर से चार फीसदी से दो फीसदी किया जाए।
फोटो कैप्शन: बनवारीलाल, डा रामानंद यादव सुनील कुमार
14 जनवरी मकर संक्रांति पर.......
घट गया है बुजुर्गों को जगाने का रिवाज घट गया है
संवाद सहयोगी, कनीना। वर्तमान में भी ग्रामीण क्षेत्रों में सूर्यपर्व मकर संक्रांति प्रासंगिक है। कनीना क्षेत्र में सोमवार 14 जनवरी को मकर संक्रांति का पर्व पूरे धूमधाम से मनाया जा रहा है। इस मौके पर दिनभर दान पुण्य, धर्म-कर्म एवं उत्सव चलता रहता है। दाल चूरमा प्रमुख रूप से खाया जाता है।
मकर संक्रांति अनेक सद्भावों से जुड़ा हुआ एक ऐतिहासिक पर्व है। बहनों को याद करना, कुछ जगह पतंगबाजी करना, दान पुण्य करना, गायों की सेवा करना, रातभर आग जलाना, मूंगफली, गुड़ व खांडसारी की बनी रेवडिय़ां एवं गजक खाना, सुबह जल्दी उठकर स्नान करना, शकरकंदियों का भाग लगाना जैसी अनेक परम्पराओं को अपने में समेटे हुए होता है। इस त्योहार से एक दिन पूर्व पंजाब प्रांत का प्रसिद्ध पर्व लोहड़ी भी आता है।
प्राचीन समय में सर्वोत्तम माना जाने वाला भाई बहन के प्यार को प्रगाढ़ पूर्ण बनाने के लिए इस त्योहार का विशेष योगदान रहा है। इस मौके पर भाई बहन को याद करता है और उपहार स्वरूप उन्हें रुपये-पैसे और गुड़ भेंट करता है। इस मौके पर भाई बहन से मिलने जाता है और बहन भी भाई को याद करती है। आधुनिक भागदौड़ के युग में भी यह पर्व सार्थक बना हुआ है। इस पर्व का वर्णन अनेकों स्थानों पर मिलता है।
दान पुण्य की शृंखला में बड़े बूढ़ों को जगाने की प्रथा इस त्योहार से जुड़ी हैं। बहुएं अपने सास व ससुर को जगाकर दान पुण्य करती हैं और उन्हें नए वस्त्र भेंट कर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। दानी सज्जन दान पुण्य करते हैं। शहरों में एक निर्धारित स्थान पर गुड़ व चारा आदि डाल दिए जाते हैं और पशुओं को सामूहिक रूप से वहां चारा चराया जाता है। रातभर जागने की प्रथा में गली व मोहल्लों में बूढ़े बड़े एकत्रित होकर खुशियां मनाते हैं। आग जलाकर रातभर बैठे रहते हैं। जनसमूहों की टुकडिय़ां इस रात मूंगफली और गजक तथा शकरकंदियों का उपभोग करती हैं। यहां तक की एक जाति विशेष के लोग तो इस दिन एक ही थाली में इक_ïे बैठकर खाना खाते हैं। गांवों में इस दिन देशी घी का चूरमा तथा खीर का भोजन प्रमुख रूप से पकाया जाता है। चूरमे को दाल के साथ परोसने की प्रथा भी चली आ रही है। मकर संक्रांति का पौराणिक महत्व भी है। माना जाता है कि इसी दिन पितामह भीष्म ने अपने प्राण शरशैया पर लेटे हुए त्यागे थे। उतरायणकाल इसी दिन से शुरू होता है। यही कारण है कि आज भी सूर्य की पूजा के रूप में पर्व मनाया जाता है।
ग्रामीण क्षेत्रों में तो इस दिन अपना प्रमुख भोजन दाल-चूरमा बनाकर पूरा परिवार ही भोग लगाता है। दाल-चूरमा एक दूसरे को खिलाया जाता है। दाल चूरमा खाने के बाद खेल खेले जाते हैं या फिर जगाने की प्रथा में व्यस्त देखे जा सकते हैं। ग्रामीण लोग इस दिन पुण्य करने में सुबह से ही देखे जा सकते हैं। रातभर जहां ईंधन को जलाकर उसके चारों ओर लोग बैठे देखे जा सकते हैं वहीं गायों के लिए विशेष स्थान पर गुड़ एवं चारा डाल दिया जाता है जहां गाय मीठा भोजन व चारा आसानी से प्राप्त करती हैं। कई जगह पतंग उड़ाकर खुशी मनाने की प्रथा भी चली आ रही है।
कई यादें जुड़ी हें लोहड़ी पर्व से
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कनीना। सोमवार13 जनवरी को देशभर में लोहड़ी का त्योहार बड़े उत्साह के साथ मनाया जाएगा। यह त्योहार पंजाब और हरियाणा के लोग ज्यादा मनाते हैं। इस त्यौहार पर कोई व्रत या पूजा करने जैसा कोई नियम नहीं होता है लेकिन कई लोक कथाएं जरूर जुड़ी हैं। क्षेत्र में लोहड़ी का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है जो पंजाबी समुदाय के विशेष होता है।
इस पर्व से जुड़ी यादों के बारे में सुभाषचंद धींगड़ा ने बताया कि पर्व लोहड़ी से पंजाब में दुल्ला भट्टी का नाम जुड़ा है। इनका जिक्र लोहड़ी से जुड़े हर गीत में भी किया जाता है। कहा जाता है कि मुगल काल में बादशाह अकबर के समय में दुल्ला भट्टी ना
म का एक युवक पंजाब में रहता था। कहा जाता है कि एक बार कुछ अमीर व्यापारी कुछ समान के बदले इलाके की लड़कियों का सौदा कर रहे थे। तभी दुल्ला भट्टी ने वहां पहुंचकर लड़कियों को व्यापारियों के चंगुल से मुक्त कराया। और फिर इन लड़कियों की शादी हिन्दू लड़कों से करवाई। इस घटना के बाद से दुल्हा को भट्टी के नायक की उपाधि दी गई और हर बार लोहड़ी पर उसी की याद में कहानी सुनाई जाती है।
लोहड़ी के दिन आग जलाने को लेकर माना जाता है कि यह अग्नि राजा दक्ष की पुत्री सती की याद में जलाई जाती है। एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ करवाया और इसमें अपने दामाद शिव और पुत्री सती को आमंत्रित नहीं किया। इस बात से निराश होकर सती अपने पिता के पास आकर पूछा कि उन्हें और उनके पति को इस यज्ञ में निमंत्रण क्यों नहीं दिया गया। इस बात पर अहंकारी राजा दक्ष ने सती और भगवान शिव की बहुत निंदा की। इससे सती बहुत आहत हुईं और क्रोधित होकर खूब रोईं। उनसे अपने पति का अपमान देखा नहीं गया और उन्होंने उसी यज्ञ में खुद को भस्म कर लिया। सती के मृत्यु का समाचार सुन खुद भगवान शिव ने वीरभद्र को उत्पन्न कर उसके द्वारा यज्ञ का विध्वंस करा दिया। तब से माता सती की याद में लोहड़ी को आग जलाने की परंपरा है।
लोहड़ी की रात को साल की सबसे लंबी रात माना जाता है। इस त्योहार से कई आस्थाएं भी जुड़ी हुई हैं। माना जाता है कि लोहड़ी पर अग्नि पूजन से दुर्भाग्य दूर होते हैं और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
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कनीना। 13 जनवरी को कनीना क्षेत्र में गणेश चतुर्थी का व्रत पर्व आयोजित किया जा रहा है। इसे विभिन्न नामों से जाना जाता है।
कनीना के ज्योतिषाचार्य सुरेंद्र शर्मा ने बताया कि माघ माह की कृष्ण चतुर्थी को सौभाग्यवती महिलाओं का पर्व गणेश चतुर्थी मनाया जा रहा है जिसे ग्रामीण क्षेत्रों में संकटहरण चतुर्थी, तिल कुटनी तथा गणेश चतुर्थी आदि नामों से जाना जाता है। सर्दी के माह में आने वाले इस पर्व का विशेष महत्व माना जाता है। यह व्रत पति, पुत्र की मंगलकामना, धन एवं धान्य के लिए किया जाता है जिसका समापन चन्द्रदेव को अघ्र्य देकर पूर्ण किया जाता है।
इस पर्व पर तिलों को कुटकर तथा चासनी में डालकर बनाई गई विशेष प्रकार की केक खाकर मनाया जाता हे इसलिए इसे तिल कुटनी का व्रत भी कहते हैं। यह व्रत विवाहित एवं अविवाहित दोनों के लिए ही फलदायक माना जाता है। अविवाहित महिलाएं अपने सुपति की कामना से तो विवाहित महिलाएं अपने पुत्र, भाई एवं पति की मंगलकामना के लिए व्रत करती हैं। चांद को देखकर तथा उसे अघ्र्य देकर ही इस व्रत का समापन किया जाता है जिसके पीछे माना जाता हे कि महिलाएं चांद जैसी शीतलता एवं चमक अपने इष्टïदेव में देखना चाहती हैं। इस दिन श्रीगणेश की पूजा करने का विशेष विधान है।
एक बार एक युद्ध में शिवभोले ने बारी-बारी से कार्तिकेय और गणेशजी से देवताओं का सेनापति बनने के बारे में पूछा। दोनों ही अपने को देवताओं का संकट हरने के लिए तैयार थे और एक दूसरे से शक्तिशाली, ज्ञानवान एवं तर्कशील बताने लगे। ऐसे में शिवभोले ने दोनों की परीक्षा लेनी चाही और दोनों को आदेश दिया कि दोनों ही पृथ्वी के तीर्थ स्थलों के चक्कर लगाकर आओ। जो भी पहले आएगा उसे ही देवताओं का सेनापति नियुक्त किया जाएगा। इतना सुनकर कार्तिकेय अपने मयूर पर सवार होकर पवन के वेग से तुरंत पृथ्वीलोक की ओर चल दिया और तीर्थों के चक्कर लगाने लगा।
उधर श्रीगणेश आराम से अपने स्थान पर बैठा रहा और कुछ समय उपरांत अपने माता-पिता के चारों ओर सात चक्कर लगाकर उन्हें प्रणाम करके बैठ गया। जब कार्तिकेय अपने मयूर पर सवार होकर तीर्थों के सात चक्कर लगाकर शिवभोले और माता पार्वती के पास पहुंचा तो अपने को पहले पहुंचने वाला बताया। जब गणेश से पूछा गया कि आपने सात तीर्थों का चक्कर ही नहीं लगाया जबकि आप पहले आने की बात कह रहे हो तो श्रीगणेशजी ने कहा-माता-पिता से बड़ा कोई तीर्थ इस जगत में नहीं होता है। श्रीगणेश ने देवताओं के सभी संकट दूर किया। तभी से श्रीगणेश जैसा पुत्र पाने के लिए महिलाएं व्रत रखती हैं। पार्वती भी इस व्रत को रखती थी और गणेश जी की पूजा करती थी।
बाबा भैया सेवा दल ने किया स्वयंसेवक खिलाडिय़ों को सम्मानित
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कनीना। ककराला ग्राम की समाजसेवी संस्था बाबा भैया सेवा दल क्षेत्र में पर्यावरण संरक्षण में अग्रणी भूमिका निभाते हुए रविवार को अपनी कार्यकारिणी मीटिंग में गांव में लगाए पेड़ पौधों की देखभाल के लिये आगे आए खिलाडिय़ों को खेल यूनिफार्म देकर सम्मानित किया। ककराला ग्राम में मकर संक्रांति के अवसर पर खेलों का आयोजन किया जाएगा जिसमें क्षेत्र के खिलाड़ी प्रतिस्पर्धा में हिस्सा लेंगे।
संस्था के प्रधान राकेश कुमार ने सभी खिलाड़ी स्वयंसेवकों को इन खेलों के लिये शुभकामनाएं दी। उन्होंने बताया कि खेलों का हमारी जिंदगी में बहुत महत्व है, इनसे स्वास्थ्य में तो लाभ मिलता ही है साथ में इस तरह के आयोजन से समाज में भाईचारा बढ़ता है। प्रतिस्पर्धा से खिलाडिय़ों की प्रतिभा निखरती है। इन युवाओं की ऊर्जा गांव की पीढ़ी के लिये नई ज्योति जला रही है ताकि एक खुशहाल नई पीढ़ी को आगमन हो।
ग्राम सरपंच कृष्ण सिंह, जगदेव यादव एवं रामेश्वर दयाल ने कहा हमें खेलों के प्रोत्साहन के लिये हर सम्भव प्रयास होने चाहिए। उन्होंने बताया खेलों के प्रति युवा जागरूक होंगे तो मानव जीवन सुखमय बन सकेगा और हम भविष्य में एक स्वस्थ व खुशहाल पीढ़ी को बढ़ावा देते हैं। उन्होंने बताया बिना मनोबल के सफलता के शिखर के पहुंचना असंभव है। हमें किसी भी विषय पर विस्तार से राय लेकर उस पर आगे बढऩा चाहिए।
इस कार्यकारिणी मीटिंग में गांव के अन्य महत्वपूर्ण सामाजिक विषयों को लेकर चर्चा की गई। जिसमें सभी ग्रामीणों और सदस्यों ने अपने विचार सांझा किए।
इस अवसर पर ग्राम सरपंच कृष्ण सिंह, जगदेव यादव, रामेश्वर दयाल, विकास कमेटी के प्रधान कंवर सिंह , प्रताप सिंह व अन्य कमेटी सदस्य, बाबा ढालोड़ युवा दल के सदस्य भी पहुंचे। इस मौके पर बाबा भैया सेवा दल के सदस्य व ग्रामीण व सभी स्वयंसेवक मौजूद थे।
फोटो कैप्शन 1: खिलाडिय़ों को खेल यूनिफार्म वितरित करते क्लब पदाधिकारी।
रक्तदान शिविर सोमवार को
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कनीना। राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय दड़ौली में जिला महेंद्रगढ़ एवं चरखी दादरी के एनसीसी कैडेट्स का 10 दिवसीय शिविर जारी है। जहां सोमवार 13 जनवरी को रक्तदान शिविर आयोजित किया जाएगा।
विस्तृत जानकारी देते हुए कैंप कमांडर टीएस भंडारी ने बताया कि इस रक्तदान शिविर में रेवाड़ी के डाक्टरों की टीम पहुंचेगी जबकि इस कैंप का समापन 15 जनवरी को होगा।
रविवार को जहां अंतर कालेज खेल प्रतियोगिता आयोजित की गई वहीं विद्यार्थियों को स्वच्छता के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई। विद्यार्थियों ने दड़ौली स्थित श्री कृष्ण आश्रम की सफाई की वही उन्हें एकता और भाईचारे में रहने की प्रेरणा दी गई।
प्रभातफेरी निकालकर किया लोगों को जागरूक
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कनीना। राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय धनौंदा में चल रहे सात दिवसीय शिविर में रविवार को एनएसएस स्वयंसेवकों ने प्रभातफेरी निकाली एवं रन फार यूनिटी कार्यक्रम आयोजित किया गया।
इस मौके पर प्रभातफेरी को महिपाल सिंह ने हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। इस अवसर पर स्वामी विवेकानंद जयंती पर रन फार यूनिटी कार्यक्रम भी आयोजित किया गया और युवा शक्ति दिवस मनाया गया। धनौंदा स्थित स्टेडियम में स्वयंसेवकों ने दौड़ लगाकर स्वामी विवेकानंद को उनके महान कार्यों के लिए याद किया।
तत्पश्चात प्रभात फेरी निकाली। विद्यार्थी अपने हाथों में बैनर लिए हुए नारे लगाते हुए गांव की गलियों से गुजरे। उन्होंने शराब, व्यसन, बाल विवाह दहेज प्रथा, भू्रण हत्या आदि ज्वलंत मुद्दों को अपने पोस्टरों और बैनरों पर उकेरा हुआ था और गांव में नारे लगाते हुए गुजरे और वापस विद्यालय पहुंचे।
इस अवसर पर अनूप सिंह प्राध्यापक गाहड़ा कार्यक्रम अधिकारी ने उन्हें दहेज न लेने की शपथ दिलाई। उन्होंने कहा कि समाज को खोखला करने में दहेज एक बड़ी भयंकर समस्या बनती जा रही है। जिन परिवारों में दहेज का सामथ्र्य नहीं होता उन्हें अपनी बच्ची की शादी में भारी दहेज देना पड़ता है। यहां तक कि दहेज के लोभी दहेज के लिए हत्या करने पर उतारू हो जाते हैं। यही नहीं बाल विवाह जैसी कुरीति समाज में अभी भी प्रचलित है। जिसे समूल नष्ट करना चाहिए। उन्होंने कहा कि बीड़ी सिगरेट शराब का आदि ऐसे व्यसन बन गए हैं जिनमें युवा पीढ़ी भी फंसी हुई है। एक बार इन की लत पड़ जाती है तो छोड़ नहीं पाते। यह उनको बर्बाद करके ही दम लेती है। ऐसे में इन बुराइयों को आस पास के लोगों को छुड़वाने की शपथ दिलवाई। उन्होंने कहा कि समाज में लिंग जांच, भ्रूण हत्या जैसे अपराध बढ़ गए हैं जिनपर सरकार ने प्रतिबंध लगा रखा है फिर भी चोरी-छिपे कुछ लोग लिंग जांच करवाते हैं और बच्चियों की गर्भ में हत्या कर देते है। उन्होंने इस पाप से बचने के लिए भी शपथ दिलाई और कहा कि भविष्य में वे युवा बनेंगे परिवार चलाएंगे तो इन बुराइयों को कभी पनपने नहीं देंगे। विद्यार्थियों ने भी आश्वस्त किया कि वे कभी इन बुराइयों को पास से नहीं गुजरने देंगे। इस अवसर पर सूबे सिंह कंप्यूटर विशेषज्ञ, महिपाल सिंह कनीना ने भी अपने विचार रखे और विद्यार्थियों को सामाजिक बुराइयों से बचकर रहने की प्रेरणा दी। इस मौके पर जयपाल सिंह प्राध्यापक ने भी अपने विचार रखे।
फोटो कैप्शन दो: रन ऑफ द डे की रैली निकालते एनएसएस स्वयं सेवक।
बच्ची के जन्मदिन पर लगाया पौधा, आयोजित किया हवन
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कनीना। कनीना के वरिष्ठ प्राध्यापक राजेश कुमार कनीनवाल ने अपनी बच्ची के जन्मदिन पर जहां एक पौधा लगाया वही हवन आयोजित किया गया।
राजेश कुमार कनीनवाल ने बताया कि उनका लड़का दीक्षु एक वर्ष का हो गया है जिनका जन्मदिन है वही उनकी लड़की 11 वर्ष की सीया हो गई है। इसलिए दोनों का जन्म एक ही दिन होने के कारण एक पौधा लगाया और हवन आयोजित किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि उनकी इच्छा है कि हर वर्ष उनके जन्मदिन पर पौधे लगाए जाएंगे। उन्होंने कहा कि जहां बच्चे का जन्मदिन भी याद रहेगा वहीं ये पौधे बड़े होकर भी उनकी याद दिलाते रहेंगे। जब यह बच्चे बड़े हो जाएंगे तो उन्हें पता लगेगा कि जब वे छोटे थे तो उनके जन्मदिन पर ये पौधे लगाए गए थे। उन्होंने कहा कि पेड़-पौधे से ही यह धरती तथा पर्यावरण सुरक्षित रह सकता है। इसलिए वे इस मुहिम को आगे बढ़ाएंगे।
राजेश कुमार कनीनवाल ने बच्ची सीया के 11 वें जन्मदिन पर हवन भी आयोजित करवाया। उन्होंने कहा कि हवन से जहां पर्यावरण शुद्ध होता है वहीं पेड़ पौधे भी वातावरण को शुद्ध करते हैं। उनका कहना है कि हर इंसान का फर्ज बनता है कि वो पर्यावरण की सफाई में अपना योगदान दें और इस योगदान में कम से कम पेड़ लगाकर पर्यावरण को सुरक्षित रख सकते हैं।
इस हवन में जहां कनीना मार्केट कमेटी के चेयरमैन राजकुमार कनीनवाल, कृष्ण प्रकाश हेडमास्टर, दीपक एडवोकेट, विक्रम सिंह, भगत सिंह समाजसेवी, कप्तान सुमेर सिंह, संदीप यादव एडवोकेट, रितु यादव आदि कई अन्य गणमान्य जन पहुंचे और हवन में आहुति डालकर वातावरण को शुद्ध बनाने की शपथ ली।
फोटो कैप्शन 3: पौधारोपण करते हुए राजेश कनीनवल तथा उनके साथ लड़की सीया एवं उनका लड़का दीक्षु सहित अन्य।
इनकम टेक्स में बचत की सीमा बढ़ाई जाए
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कनीना। यद्यपि सरकार द्वारा कर्मियों को सातवें वेतन आयोग देकर आय बढ़ाने कर प्रशंसा हो रही है किंतु अभी भी कर्मियों पर इनकम टैक्स की वर्तमान रेंज भारी पड़ रही है। सरकार द्वारा इनकम टैक्स में बदलाव कर देने के बाद भी अधिक लाभ नहीं मिल पा रहा है। जहां वर्तमान में आयकर की छूट सीमा पांच लाख कर देने तथा निवेश के साथ अब साढ़े छह लाख तक कोई टैक्स नहीं दिए जाने को राहत पूर्ण कदम माना जा रहा है। कर्मियों के लिए मानक कटौती 40000 से बढ़ाकर 50000 करना भी सराहनीय कदम माना जा रहा है किंतु अभी कर्मी एवं पूर्व कर्मी संतुष्ट नहीं हैं। इस संबंध में विभिन्न कर्मियों एवं अधिकारियों के विचार भिन्न भिन्न हैं।
पूर्व उप जिला शिक्षा अधिकारी डा रामानंद यादव का कहना है कि कर्मचारियों को बचत की आदत डालनी चाहिए और सरकार को भी चाहिए कि कर्मचारियों को बचत की आदत डलवाए। ऐसे में इनकम टैक्स में बचत की सीमा कम से कम पांच लाख कर देनी चाहिए। जिस अनुरूप कर्मचारियों का वेतन बढ़ा है उसी अनुरूप इनकम टैक्स की सीमा बढ़ा देनी चाहिए। उन्होंने कहा कि आज के दिन अधिकांश कर्मचारी इनकम टैक्स के दायरे में हैं। ऐसे में इनकम टैक्स का बोझ घटाने के लिए इनकम टैक्स की रेंज बढ़ानी चाहिए। वही बचत की बचत की सीमा भी बढ़ाकर कम से कम पांच लाख की जानी चाहिए।
उधर बनवारी लाल राज्य शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित प्राध्यापक का कहना है कि कर्मचारी वर्तमान में भी बेहतर जीवन नहीं जी पा रहे हैं। उनको अभी भी कम से कम एक माह का वेतन इनकम टैक्स में देना पड़ रहा है। कहने को तो 12 माह का वेतन मिलता है किंतु एक माह का वेतन इनकम टैक्स में देना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि यदि आयकर की सीमा बढ़ा दी जाए तो कर्मचारियों को राहत मिल सकती है। यहां तक कि कहा कि पहले कर योग्य आय पर टैक्स 5 प्रतिशत, 10 प्रतिशत तत्पश्चात 20 प्रतिशत होता था किंतु अब टैक्स 5 प्रतिशत के बाद सीधा 20 प्रतिशत पर बढ़ा दिया है। उन्होंने कहा कि फिर से कर योग्य आय पर टैक्स 5 प्रतिशत के बाद 10 प्रतिशत और उसके बाद 20 प्रतिशत किया जाना चाहिए।
उधर सुनील कुमार यादव हसला प्रधान का कहना है कि शिक्षा पर कर पहले दो प्रतिशत होता था जिसे बढ़ाकर चार फीसदी किया हुआ है जिसका कर्मचारियों पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। उन्होंने कहा कि शिक्षा कर फिर से 2 प्रतिशत किया जाए तो अधिक लाभ मिल सकता है। उन्होंने शिक्षा कर एक बार फिर से चार फीसदी से दो फीसदी किया जाए।
फोटो कैप्शन: बनवारीलाल, डा रामानंद यादव सुनील कुमार
14 जनवरी मकर संक्रांति पर.......
घट गया है बुजुर्गों को जगाने का रिवाज घट गया है
संवाद सहयोगी, कनीना। वर्तमान में भी ग्रामीण क्षेत्रों में सूर्यपर्व मकर संक्रांति प्रासंगिक है। कनीना क्षेत्र में सोमवार 14 जनवरी को मकर संक्रांति का पर्व पूरे धूमधाम से मनाया जा रहा है। इस मौके पर दिनभर दान पुण्य, धर्म-कर्म एवं उत्सव चलता रहता है। दाल चूरमा प्रमुख रूप से खाया जाता है।
मकर संक्रांति अनेक सद्भावों से जुड़ा हुआ एक ऐतिहासिक पर्व है। बहनों को याद करना, कुछ जगह पतंगबाजी करना, दान पुण्य करना, गायों की सेवा करना, रातभर आग जलाना, मूंगफली, गुड़ व खांडसारी की बनी रेवडिय़ां एवं गजक खाना, सुबह जल्दी उठकर स्नान करना, शकरकंदियों का भाग लगाना जैसी अनेक परम्पराओं को अपने में समेटे हुए होता है। इस त्योहार से एक दिन पूर्व पंजाब प्रांत का प्रसिद्ध पर्व लोहड़ी भी आता है।
प्राचीन समय में सर्वोत्तम माना जाने वाला भाई बहन के प्यार को प्रगाढ़ पूर्ण बनाने के लिए इस त्योहार का विशेष योगदान रहा है। इस मौके पर भाई बहन को याद करता है और उपहार स्वरूप उन्हें रुपये-पैसे और गुड़ भेंट करता है। इस मौके पर भाई बहन से मिलने जाता है और बहन भी भाई को याद करती है। आधुनिक भागदौड़ के युग में भी यह पर्व सार्थक बना हुआ है। इस पर्व का वर्णन अनेकों स्थानों पर मिलता है।
दान पुण्य की शृंखला में बड़े बूढ़ों को जगाने की प्रथा इस त्योहार से जुड़ी हैं। बहुएं अपने सास व ससुर को जगाकर दान पुण्य करती हैं और उन्हें नए वस्त्र भेंट कर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। दानी सज्जन दान पुण्य करते हैं। शहरों में एक निर्धारित स्थान पर गुड़ व चारा आदि डाल दिए जाते हैं और पशुओं को सामूहिक रूप से वहां चारा चराया जाता है। रातभर जागने की प्रथा में गली व मोहल्लों में बूढ़े बड़े एकत्रित होकर खुशियां मनाते हैं। आग जलाकर रातभर बैठे रहते हैं। जनसमूहों की टुकडिय़ां इस रात मूंगफली और गजक तथा शकरकंदियों का उपभोग करती हैं। यहां तक की एक जाति विशेष के लोग तो इस दिन एक ही थाली में इक_ïे बैठकर खाना खाते हैं। गांवों में इस दिन देशी घी का चूरमा तथा खीर का भोजन प्रमुख रूप से पकाया जाता है। चूरमे को दाल के साथ परोसने की प्रथा भी चली आ रही है। मकर संक्रांति का पौराणिक महत्व भी है। माना जाता है कि इसी दिन पितामह भीष्म ने अपने प्राण शरशैया पर लेटे हुए त्यागे थे। उतरायणकाल इसी दिन से शुरू होता है। यही कारण है कि आज भी सूर्य की पूजा के रूप में पर्व मनाया जाता है।
ग्रामीण क्षेत्रों में तो इस दिन अपना प्रमुख भोजन दाल-चूरमा बनाकर पूरा परिवार ही भोग लगाता है। दाल-चूरमा एक दूसरे को खिलाया जाता है। दाल चूरमा खाने के बाद खेल खेले जाते हैं या फिर जगाने की प्रथा में व्यस्त देखे जा सकते हैं। ग्रामीण लोग इस दिन पुण्य करने में सुबह से ही देखे जा सकते हैं। रातभर जहां ईंधन को जलाकर उसके चारों ओर लोग बैठे देखे जा सकते हैं वहीं गायों के लिए विशेष स्थान पर गुड़ एवं चारा डाल दिया जाता है जहां गाय मीठा भोजन व चारा आसानी से प्राप्त करती हैं। कई जगह पतंग उड़ाकर खुशी मनाने की प्रथा भी चली आ रही है।
कई यादें जुड़ी हें लोहड़ी पर्व से
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कनीना। सोमवार13 जनवरी को देशभर में लोहड़ी का त्योहार बड़े उत्साह के साथ मनाया जाएगा। यह त्योहार पंजाब और हरियाणा के लोग ज्यादा मनाते हैं। इस त्यौहार पर कोई व्रत या पूजा करने जैसा कोई नियम नहीं होता है लेकिन कई लोक कथाएं जरूर जुड़ी हैं। क्षेत्र में लोहड़ी का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है जो पंजाबी समुदाय के विशेष होता है।
इस पर्व से जुड़ी यादों के बारे में सुभाषचंद धींगड़ा ने बताया कि पर्व लोहड़ी से पंजाब में दुल्ला भट्टी का नाम जुड़ा है। इनका जिक्र लोहड़ी से जुड़े हर गीत में भी किया जाता है। कहा जाता है कि मुगल काल में बादशाह अकबर के समय में दुल्ला भट्टी ना
म का एक युवक पंजाब में रहता था। कहा जाता है कि एक बार कुछ अमीर व्यापारी कुछ समान के बदले इलाके की लड़कियों का सौदा कर रहे थे। तभी दुल्ला भट्टी ने वहां पहुंचकर लड़कियों को व्यापारियों के चंगुल से मुक्त कराया। और फिर इन लड़कियों की शादी हिन्दू लड़कों से करवाई। इस घटना के बाद से दुल्हा को भट्टी के नायक की उपाधि दी गई और हर बार लोहड़ी पर उसी की याद में कहानी सुनाई जाती है।
लोहड़ी के दिन आग जलाने को लेकर माना जाता है कि यह अग्नि राजा दक्ष की पुत्री सती की याद में जलाई जाती है। एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ करवाया और इसमें अपने दामाद शिव और पुत्री सती को आमंत्रित नहीं किया। इस बात से निराश होकर सती अपने पिता के पास आकर पूछा कि उन्हें और उनके पति को इस यज्ञ में निमंत्रण क्यों नहीं दिया गया। इस बात पर अहंकारी राजा दक्ष ने सती और भगवान शिव की बहुत निंदा की। इससे सती बहुत आहत हुईं और क्रोधित होकर खूब रोईं। उनसे अपने पति का अपमान देखा नहीं गया और उन्होंने उसी यज्ञ में खुद को भस्म कर लिया। सती के मृत्यु का समाचार सुन खुद भगवान शिव ने वीरभद्र को उत्पन्न कर उसके द्वारा यज्ञ का विध्वंस करा दिया। तब से माता सती की याद में लोहड़ी को आग जलाने की परंपरा है।
लोहड़ी की रात को साल की सबसे लंबी रात माना जाता है। इस त्योहार से कई आस्थाएं भी जुड़ी हुई हैं। माना जाता है कि लोहड़ी पर अग्नि पूजन से दुर्भाग्य दूर होते हैं और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
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