गायब होते संस्कार, बिखरता परिवार
**होशियार सिंह, कनीना***
जब-जब गायब होंगे संस्कार
तब तब बिखरेगा हर परिवार,
हर क्षेत्र में सुनिश्चित होगी हार
बुरे परिणाम खातिर रहो तैयार।
आज इंसान भागदौड़ की दुनिया में जी रहा है। इंसानियत की बजाय धन दौलत से प्यार है। जिस देश में संस्कारों के बल पर पूरे विश्व में भारत की पहचान थी, आज वहां युवा पीढ़ी और बच्चों में संस्कार गायब होते जा रहे हैं। यहां तक कि जो परिवार एकजुट होकर क्षेत्र में मिसाल होते थे वे भी बिखरते जा रहे हैं। न तो अब संस्कार रहे और न ही संयुक्त परिवार रहे। संस्कार माता-पिता, बड़े-बूढे एवं गुरुजनों से दिए जाते हैं, लेकिन उस जमाने में जब माता-पिता अपने बच्चों को संस्कारित करते थे वे भविष्य में बड़े होकर देश में नाम रोशन करते थे। अब न तो माता पिता के पास अपने बच्चों को संस्कारित करने का कोई वक्त है और न उन पर वे ध्यान दे पा रहे हैं। उनके बच्चे कहां रहते हैं क्या खाते हैं? कहां जाते हैं और कब जाते हैं, का कुछ भी पता नहीं है।
अब जब पहले वाले वो संस्कार नहीं रहे तो भविष्य कैसा होगा महज कल्पना की जा सकती है। एक जमाना था जब माता-पिता और बड़े बूढ़े पूरे परिवार को संगठित रखते थे। शाम के समय पूरा परिवार अपने माता-पिता और गुरुजनों और बड़े बूढ़ों के विचार सुनने के लिए लालायित रहता था। उस जमाने में जो टीवी एवं रेडियो या फिर मोबाइल आदि की संस्कृति नहीं थी। अगर रेडियो, टीवी या मोबाइल का काम कोई करता था तो वे बुजुर्ग ही थे। तब माता-पिता और गुरुजन उनके लिए टीवी और रेडियो का कार्य करते थे। नाना नानी की कहानियां उनके लिए मोबाइल से कम नहीं होती थी। उस जमाने में माता अपने बच्चों को छोटी उम्र में ही देशभक्ति की कहानियां सुनाते थे जिसके चलते युवा भविष्य में या तो देशभक्त बनते थे या अपने प्राणों को न्योछावर कर के मातृभूमि की रक्षा करते थे। ऐसे महान व्यक्ति पूरे विश्व में नाम कमाते थे। पुराने वक्त में कितने ही महान व्यक्ति हुए जिन्होंने पूरे विश्व में नाम कमाया।
यही कारण है कि शिक्षा का केंद्र भारत होता था और भारतीय संस्कार सीखने के लिए लोग विदेशों से भारत में आते थे। जब बच्चा अपने घर से निकलता था तो अपने माता-पिता को प्रणाम करके उनके पैर छूकर बाहर निकलता था। माता-पिता उसे लंबी उम्र का आशीर्वाद देते थे जिससे उनकी आयु, विद्या, यश और बल दूरदराज तक फैलता था। उस जमाने में जब हम दृष्टि डालते हैं श्रवण कुमार जैसे पितृभक्त हुए हैं जिनके सामने देवता भी नतमस्तक होते थे। जो अपने माता पिता को अपने कंधे पर कावड़ के रूप में तीर्थों की यात्रा करवाने निकले तो देवता फूल बरसा रहे थे। उनके त्याग और तपस्या की पूरे ब्रह्मांड में चर्चा हो रही थी और उन्होंने उनकी सेवा करते करते ही अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। अपने संस्कारवान पुत्र के वियोग में माता पिता ज्ञानवंती एवं शांतनु ने प्राण न्यौछावर कर दिए।
यही नई प्रथम पूजन के अधिकारी देव गणेश जी महाराज को जब उनकी मां ने द्वार पर पहरा देने के लिए छोड़ दिया तो शिव भोले को भी अंदर नहीं आने दिया और यहां तक कि अपने प्राणों की बाजी लगा दी। यह वही देश है जहां नचिकेता जैसे बालक को वाजश्रवस नामक उनके पिता ने यमराज को दान दे दिया था और नचिकेता हंसते-हंसते यमराज के द्वार पहुंचा था और अपने माता-पिता की लंबी उम्र की कामना की। इस दुनिया में जब तक धरती और आकाश रहेगा श्रीराम का नाम रहेगा जिन्होंने अपनी सौतेली मां केकैई को कभी हेय दृष्टि से नहीं देखा। यद्यपि केकैयी ने राजा दशरथ से वरदान मांग कर राम को 14 वर्ष का वनवास भेज दिया फिर भी राम कतई विचलित नहीं हुए और अपनी मां कौशल्या के समान ही केकैयी मां को आदर देते थे। शांत रहकर वनों को जाते हुए अपने छोटे भाइयों को सांत्वना दी और पूरे विश्व में नाम कमाया।
जब तक सृष्टि रहेगी तब तक भीष्म पितामह की प्रतिज्ञा सदा सदा धरती पर उनके पितृभक्त होने की याद दिलाएगी। जिन्होंने अपने पिता शांतनु की खुशी की खातिर पूरे जीवन ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा की और ताउम्र प्रतिज्ञा पर दृढ़ रहे। और अपनी मां सत्यवती को आदर सहित मां का दर्जा दिया। उनकी प्रतिज्ञा सदा रहेगी। यही नहीं यज्ञ शर्मा, वेद शर्मा, विष्णु शर्मा, धर्म शर्मा आदि कितने ही ऐसे उदाहरण हैं जब उन्होंने माता-पिता की सेवा करते हुए कठोर कष्टों एवं यातनाओं को सहन किया। इस जगत में जहां माता-पिता का श्रेष्ठ स्थान है वही गुरुओं का बहुत बड़ा स्थान है। गुरुओं के कारण ऐसे ऐसे शिष्य हुए हैं जिनका नाम सदा सदा के लिए धरा पर तारे की भांति चमकता रहेगा। इस धरती पर जहां एकलव्य जैसे गुरु भक्त हुए वही उपमन्यु जैसे गुरु भक्त भी हुए है। जहां एकलव्य ने अपने गुरु के मांगने पर सहर्ष सपना अंगूठा गुरु को दान कर दिया वहीं उपमन्यु ने धौम्य ऋषि के आश्रम में भूखो प्यासे रहकर वह शिक्षा एवं ज्ञान अर्जित किया जिसे पूरा विश्व याद रखेगा। महर्षि उत्तंग का नाम गुरु भक्तों में कभी नहीं भुलाया जा सकेगा। गुरु गोविंद सिंह के 5 शिष्य जिन्होंने हंसते-हंसते अपने जीवन की बलि दे दी और पंज प्यारे कहलाए, उनको कभी जगत नहीं भुला पाएगा।
ऐसा देश जहां संस्कारों की कदर होती थी जहां बड़े बूढ़ों की कदर होती थी, जहां माता-पिता और गुरुओं को सम्मान दिया जाता था, बच्चा संस्कारवान होता था, आज वहीं बच्चा बचपन से ही उद्दंड मिलता है। वो न तो माता-पिता को कुछ समझता और न गुरुओं को कुछ समझता। माता पिता को मम्मी और डैड कहकर पुकारता है वहीं उनके संस्कारों से ऐसा लगता है कि शायद माता-पिता और गुरु भी उन्हें संस्कार देने से कहीं भटक गए हैं। आज की युवा पीढ़ी में तो संस्कार विहीन हो गई है वहीं युवा दिग्भ्रमित हो गए है। और लगता है भावी पीढ़ी संस्कार विहीन होगी।
जब तक यह सृष्टि रहेगी,
संस्कार यूं ही पनपते रहेंगे
जब दिलों में आदर रहेगा
संस्कार यूं ही छलकते रहेंगे।
उधर अगर परिवारों पर दृष्टि डाली जाए तो संयुक्त परिवार आज टुकड़ों में बंटते जा रहे हैं। जो परिवार कई कई सदस्यों को इकट्ठा रखकर एक जगह खाना पकाते थे, सारे मिलकर एकजुटता की निशानी होते थे वहां आज सभी परिवार के सदस्य अलग-अलग जगह खाना खाते देखे गए हैं। जो परिवार एकल परिवार थे वह आज बिखरे हुए परिवार के रूप में जाने जाते हैं। संयुक्त परिवार जो कभी घर घर की निशानी होते थे आज यदा-कदा ही हजारों में एक नजर आता है। परिवारों के बिखराव में सबसे बड़ा कारण भी संस्कार विहीन होना है। आज जिस भी युवा वर्ग की शादी हो जाती है तो उसकी पत्नी आते ही पहले अलग चूल्हा रखने की सोचती है। अपने सास-ससुर की सेवा करने की बजाय उनसे नाक भौं चढ़ाती है। परिवार के सदस्य भी बड़े बूढ़ों का आदर भूलते जा रहे हैं। यही कारण है कि संयुक्त परिवार आज एकल परिवार में बदलते जा रहे हैं।
संयुत परिवार में जब कभी परिवार का कोई बच्चा दूरदराज जाता था तो सारा परिवार अपने आशीर्वाद से उसे विदा करता था। सारे बड़े बूढ़ों का आशीर्वाद लेकर बच्चा घर से बाहर निकलता था और जब घर लौटकर आता था तो सभी की आंखों का तारा बन जाता था। आज जब कोई बच्चा दूरदराज शिक्षा ग्रहण करने जाता है तो यही नहीं पता चलता कि वह कब चला गया और कब घर में वापस आ गया। संयुक्त परिवारों में जहां एकता होती थी आज एकता छिन्न-भिन्न हो गई है। भाई भाई में बैर देखने को मिल रहा है। माता-पिता का निरादर हो रहा है। कोई किसी को समझता नहीं और परिवारों में फूट ही फूट नजर आती है।
आज के दिन जहां रेडियो, टीवी, मोबाइल आदि अनेकों सुविधाएं उपलब्ध है फिर भी परिवारों में एकता की बजाय अनेकता देखने को मिलती है। परिवारों को बिखेरने में जहां संस्कारों का न होना माना जा रहा है वहीं टीवी संस्कृति और मोबाइल संस्कृति ने भी परिवार को बिखेर कर रख दिया है। एक परिवार के 10 सदस्य हैं 10 के 10 अपने अपने मोबाइल में अलग-अलग कोनों में बैठे व्यस्त देखे जा सकते हैं। यदि परिवार का बड़ा बूढ़ा उन्हें खाने की कहता है तो वे झल्लाते हैं और मोबाइल से दूर नहीं होना चाहते। यहां तक कि मोबाइल में इतने खोए रहते हैं कि बार बार कहने पर भी उनका कहा नहीं मानते और आखिरकार वे इतने उद्दंड हो जाते हैं कि माता-पिता को और बड़े बूढ़ों को पीटने तक उतारू हो जाते हैं। आज शर्म से चेहरा झुक जाता है जब पढ़े लिखे जनों को माता पिता की धुनाई करते देखते हैं। संस्कार अभाव परिवारों को बिखेरने में एक अहम कारण बनता जा रहा है। संयुक्त परिवार कभी मिसाल होते थे वे आज परिवार एकल परिवार बनकर दूरदराज तक खुशबू की बजाय बदबू बिखेरते नजर आते हैं। परिवारों में बिखराव दिनों दिन बढ़ रहा है। आज अरेंज मैरिज की जगह कोर्ट मैरिज आ गई है जो बिखराव का कारण बनती है। आज बड़े बूढ़ों के आदर की बजाय अनादर होता है। आज संस्कारों की जगह संस्कार विहीन लोग आ गए हैं। कभी जो महिलाएं अपने पति को और बड़े बूढ़ों को भगवान के समान समझती थी आज वो ही महिला ससुराल में आते ही उन्हें हेय दृष्टि से देखने लग जाती है। परिवार में एकता की बजाय अनेकता देखने को मिलती है और बिखराव बढ़ता ही चला जाता है। परिवारों के बिखराव में बहुत से अन्य कारण भी देखे जा सकते हैं।
आधुनिक विज्ञान का युग हैं और बिखरे परिवार बनते जा रहे हैं। एक और जहां परिवारों को एकजुट होना चाहिए वहां बिखराव देखने को मिल रहा है। जहां महिलाओं के प्रति अनादर बढ़ गया है, जहां बड़ों के प्रति अनादर बढ़ता ही जा रहा है। मोबाइल ने जहां क्रांति ला दी है वहीं मोबाइल के कारण परिवारों को तोड़ कर रख दिया है। आज इंटरनेट की सुविधा होने से जहां घर में एकता संबंधी पाठ नहीं पढ़े जाते बल्कि किस प्रकार परिवार में फूट डाली जाए इसके संबंध में नाटक कविता और लेख पढऩे को मिल रहे हैं। इसमें अगर कोई दोषी है तो हम सभी हैं। माता-पिता गुरुजन और बड़े बूढ़े यदि चाहे तो फिर से परिवारों को एकजुटता में ला सकते हैं, वही परिवारों में संस्कार की भावना बढ़ा सकते हैं। जब परिवारों में संस्कार बढ़ जाएंगे तो अपने आप परिवार के सदस्य संस्कारयुक्त होकर संयुक्त परिवारों की ओर अग्रसर होंगे। वह युग फिर से आ सकता है जब रामराज्य देखने को मिल सकता है, संयुक्त परिवार घर घर मिल सकते हैं। यदि अभी भी नहीं संभले तो भविष्य बहुत दर्दीला होगा।
संभल जाओ अभी वक्त है ,वरना फिर पछताओगे
परिवार टूट बिखर गए, तो संस्कार कहां से लाओगे।
***होशियार सिंह, लेखक
वार्ड एक, मोहल्ला मोदीका
कनीना-123027
जिला-महेंद्रगढ़ हरियाणा
फोन 9416348400
No comments:
Post a Comment