भारी संख्या में रह गई सीटें खाली
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कनीना। कनीना एवं उन्हाणी के राजकीय कालेजों में काफी सीटें खाली रह गई हैं। एक बार फिर से आवेदन के लिए पोर्टल खोल दिया गया है। प्रवेश समन्वयक डा हरिओम भारद्वाज ने बताया कि राजकीय कालेज कनीना में
बीए कुल सीट 640 में से 308 भर पाई तथा 332 खाली रह गई हैं वहीं बीएससी नान मेडिकल कुल सीट 320 हैं जिनमें से 190 भर पाई तथा 130 सटें खाली रह गई हैं।
बीएससी मेडिकल कुल सीट 80 हैं जिनमें से 41 भर चुक हैं तथा 39 खली रह गई। बीकाम कुल सीट 160 में से 41 भर पाई हैं तथा 119 खाली रह गई हैं। उधर प्राचार्य डा विक्रम सिंह ने बताया कि राजकीय महिला कालेज उन्हाणी में बीए कुल सीट 160 हैं जिनमें से 94 भर चुकी हैं तथा 66 खाली हैं। बीएससी कुल सीट 80 जिनमें से 40 भर चुकी हैं तथा 40 खाली हैं। बीकाम कुल सीट 80 जिनमें से 07 भर चुकी हैं तथा 73 सीटें खाली हैं।
फिर से खोला गया है पोर्टल-
उन्हाणी कालेज के प्राचार्य डा विक्रम सिंह ने बताया कि जो सीटें खाली रह गई हैं उन पर प्रवेश के लिए पुन: आवेदन मांगे गये हैं। 29 अक्टूबर तक नये आवेदन कर सकते हैं वहीं कालेज या कोर्स परिवर्तन करना चाहे तो किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त जिन विद्यार्थियों ने किसी कारण से फीस नहीं भरी और इच्छुक हैं तो वो अपना आवेदन अपडेट कर सकता है।
फोटो कैप्शन एक: कनीना कालेज
दो: उन्हाणी कालेज।
सर्दी ने दी दस्तक
-रजाई भरने का काम शुरू
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कनीना। सर्दी के दस्तक देते ही ऊनी कपड़ों की मांग शुरू हो गई है वहीं रजाई, गद्दे भरने का कार्य भी शुरू हो गया है। कस्बा कनीना में जहां रजाई भरने का कार्य कई स्थानों पर होता है किंतु एक रजाई भरने वाला पांच से सात रजाई प्रति दिन भर देता है। यही नहीं रजाई भरने के अतिरिक्त रजाई में धागे डालने का कार्य भी वे ही करते हैं। रजाई भरने और धागे डालनेे का खर्चा 120 रुपये तक ले रहे हैं। कोटपूतली से आकर यह काम करने वाले पप्पू और शकील ने बताया कि दोनों केवल इसी मौसम में आकर रजाई भरने का काम
करते हैं और एक दिन में पांच और अधिक दबाव हो तो 7 तक गद्दा/रजाई भर लेते हैं। यह कार्य कई वर्षों से कर रहे हैं। इस कार्य में जहां जान का भी जोखिम होता है।
क्या कहते हैं प्रदूषण के जानकार-
प्रदूषण के जानकार रविंद्र कुमार ने बताया कि इस कार्य में जहां ऊन की धुनाई की जाती है जिससे बहुत अधिक धूल कण उड़ते हैं और यह धूल कण उड़कर फेफड़ों में जमा हो सकते हैं। जिसका कुप्रभाव पड़ता है। उन्होंने कहा कि ये कार्य बहुत सावधानी से करना चाहिए। मुंह पर बेहतर मास्क लगाकर ही यह कार्य करना चाहिए।
फोटो कैप्शन 12: रजाई में धागा डालता पप्पू।
जल रिसाव को ठीक करने के लिए खोद दी सड़क
-बाजरा बेचने वाले किसान परेशान
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कनीना। कनीना अनाज मंडी से गुजरने वाली नहर के पुल से जल रिसाव को ठीक करने के लिए जहां बीएसएनएल तथा जन स्वास्थ्य विभाग मिलकर सड़क की खोदाई कर दी है और जल रिसाव को दूर करने में प्रयासरत है किंतु सड़क को बीच में खोद देने से किसानों को भारी परेशानी हो रही है। यह कार्य किसी अवकाश वाले दिन किया जाता तो बेहतर होता।
कनीना अनाज मंडी से में सैकड़ों किसान प्रतिदिन अपने वाहनों से बाजरा लेकर आते हैं किंतु नहर के पुल पर विगत दिनों से हो रहे जल रिसाव को मिटाने के लिए बीएसएनएल और जन स्वास्थ्य विभाग के कर्मी नहर के पास पुल के पास सड़क खोदाई कर रिसाव दूर करने में लगे हुए हैं जिससे सड़क मार्ग अवरुद्ध सा हो गया है।
किसान धर्मेंद्र, भूपेंद्र, भीम सिंह, जगमाल सिंह आदि ने बताया कि उन्हें बाजरा बेचने के लिए आने जाने में बड़ी दिक्कत आ रही है। यहां किसी भी बड़ी दुर्घटना से इंकार नहीं किया जा सकता है। बीएसएनल कर्मियों ने बताएं रात के समय यह कार्य संभव नहीं हो सकता था इसलिए मजबूरन दिन के समय काम शुरू किया है किंतु किसी अवकाश के दिन यदि यह कार्य किया जाता तो ज्यादा बेहतर होता।
फोटो कैप्शन 11: नहर के पास खोदाई कार्य कर जल रिसाव को ठीक करते कर्मी
आधुनिक हो गए हैं लोहार
-लाखों रुपए लगाकर कमा रहे हैं रोटी रोजी
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कनीना। कनीना के गाहड़ा रोड पर जहां लोहार आधुनिक मशीनों से कृषि उपकरण बनाकर बेच रहे हैं। एक वक्त था जब भाड़ झोंककर दरांती, खुरपा, कस्सी आदि कृषि के उपकरण ठीक करते थे और बेचते थे। जिसमें लंबा समय लगता था और मेहनत भी अधिक होती थी। किंतु अब आधुनिक मशीनें आई हुई है।
लोहार धर्मवीर, विक्रम, बाला, अरुण, सुनील तरुण आदि ने बताया कि एक लाख रुपये की आधुनिक मशीन खरीदी थी। इस मशीन से अधिक काम कर लेते हैं। यहां तक कि किसान खुरपा, परांत, दरांत, दरांती आदि को ठीक करवाने के लिए आते हैं। उनका काम अच्छा चल जाता है। अब वे आसानी से कम समय में कृषि उपकरण बना लेते हैं। उनका कहना है कि फसल के समय उनकी कृषि उपकरणों की मांग अधिक होती है। बाकी समय उनके उपकरणों को कोई खरीदता नहीं इसलिए बाकी समय के लिए वे कृषि उपकरण बनाकर गांव-गांव जाकर बेचते हैं ताकि रोटी रोटी कमा सके। उन्होंने बताया कि कभी-कभी तो उन्हें आधा भूखा सोना पड़ता है और कभी-कभी भरपेट खाना मिल पाता है। मशीनी युग में हुए भी मशीनों से काम करते हैं और उन्हें बहुत आराम मिल रहा है।
फोटो कैप्शन 12: आधुनिक मशीन से कृषि उपकरण बनाता लोहार।
जल रिसाव को ठीक करने के लिए खोद दी सड़क
-बाजरा बेचने वाले किसान परेशान
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कनीना। कनीना अनाज मंडी से गुजरने वाली नहर के पुल से जल रिसाव को ठीक करने के लिए जहां बीएसएनएल तथा जन स्वास्थ्य विभाग मिलकर सड़क की खोदाई कर दी है और जल रिसाव को दूर करने में प्रयासरत है किंतु सड़क को बीच में खोद देने से किसानों को भारी परेशानी हो रही है। यह कार्य किसी अवकाश वाले दिन किया जाता तो बेहतर होता।
कनीना अनाज मंडी से में सैकड़ों किसान प्रतिदिन अपने वाहनों से बाजरा लेकर आते हैं किंतु नहर के पुल पर विगत दिनों से हो रहे जल रिसाव को मिटाने के लिए बीएसएनएल और जन स्वास्थ्य विभाग के कर्मी नहर के पास पुल के पास सड़क खोदाई कर रिसाव दूर करने में लगे हुए हैं जिससे सड़क मार्ग अवरुद्ध सा हो गया है।
किसान धर्मेंद्र, भूपेंद्र, भीम सिंह, जगमाल सिंह आदि ने बताया कि उन्हें बाजरा बेचने के लिए आने जाने में बड़ी दिक्कत आ रही है। यहां किसी भी बड़ी दुर्घटना से इंकार नहीं किया जा सकता है। बीएसएनल कर्मियों ने बताएं रात के समय यह कार्य संभव नहीं हो सकता था इसलिए मजबूरन दिन के समय काम शुरू किया है किंतु किसी अवकाश के दिन यदि यह कार्य किया जाता तो ज्यादा बेहतर होता।
फोटो कैप्शन 11: नहर के पास खोदाई कार्य कर जल रिसाव को ठीक करते कर्मी
जल रिसाव को ठीक करने के लिए खोद दी सड़क
-बाजरा बेचने वाले किसान परेशान
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कनीना। कनीना अनाज मंडी से गुजरने वाली नहर के पुल से जल रिसाव को ठीक करने के लिए जहां बीएसएनएल तथा जन स्वास्थ्य विभाग मिलकर सड़क की खोदाई कर दी है और जल रिसाव को दूर करने में प्रयासरत है किंतु सड़क को बीच में खोद देने से किसानों को भारी परेशानी हो रही है। यह कार्य किसी अवकाश वाले दिन किया जाता तो बेहतर होता।
कनीना अनाज मंडी से में सैकड़ों किसान प्रतिदिन अपने वाहनों से बाजरा लेकर आते हैं किंतु नहर के पुल पर विगत दिनों से हो रहे जल रिसाव को मिटाने के लिए बीएसएनएल और जन स्वास्थ्य विभाग के कर्मी नहर के पास पुल के पास सड़क खोदाई कर रिसाव दूर करने में लगे हुए हैं जिससे सड़क मार्ग अवरुद्ध सा हो गया है।
किसान धर्मेंद्र, भूपेंद्र, भीम सिंह, जगमाल सिंह आदि ने बताया कि उन्हें बाजरा बेचने के लिए आने जाने में बड़ी दिक्कत आ रही है। यहां किसी भी बड़ी दुर्घटना से इंकार नहीं किया जा सकता है। बीएसएनल कर्मियों ने बताएं रात के समय यह कार्य संभव नहीं हो सकता था इसलिए मजबूरन दिन के समय काम शुरू किया है किंतु किसी अवकाश के दिन यदि यह कार्य किया जाता तो ज्यादा बेहतर होता।
फोटो कैप्शन 11: नहर के पास खोदाई कार्य कर जल रिसाव को ठीक करते कर्मी
सभी किसानों का बाजरा अविलंब खरीदा जाए
-मंथर गति से चल रही है खरीद
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कनीना। स्वराज इंडिया पार्टी के अध्यक्ष योगेंद्र यादव शुक्रवार कनीना अनाज मंडी पहुंचे। किसानों से बात की, बाजरे की ढेरियां जांची तथा मार्केट कमेटी सचिव से फोन के जरिए बात की।
स्वराज इंडिया पार्टी के अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने कनीना पहुंचकर विभिन्न किसानों, दुकानदारों तथा आसपास के लोगों से खरीदद के बारे में जानकारी हासिल की। कनीना अनाज मंडी के मुख्य द्वार पर खड़े होकर लोगों एवं किसानों से बाजरे की जानकारी हासिल की। बाजरे की खरीद की जानकारी पाकर वे संतुष्ट नहीं हुये। उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया कि 120 किसानों की प्रतिदिन बाजरे की खरीद की जाती है। इससे तो 4 से 5 महीने में 12500 किसानों का बाजरा खरीदा जाएगा। उन्होंने यह संख्या बढ़ाकर 500 किए जाने की बात कही। तत्पश्चात कनीना अनाज मंडी में पड़ा हुआ बाजरे का ढेर देखा। बाजरे की गुणवत्ता जांच की तथा मार्केट कमेटी के सचिव उपलब्ध न होने पर फोन के जरिये बात की।
सचिन ने उन्हें फोन पर बताया कि प्रतिदिन 120 किसानों का बाजरा जा रहा है और एक हजार के करीब किसानों से बाजरा खरीदा जा चुका है जबकि 12525 किसान बाजरा बेचने के लिए रजिस्टर्ड हैं। योगेंद्र यादव ने कहा कि अगर किसानों की संख्या बढ़ाकर प्रतिदिन 500 नहीं की गई और किसानों की समस्या जल्दी हल नहीं की तो वे आंदोलन करेंगे। उल्लेखनीय है कि योगेंद्र यादव ने किसानों के लिए एक अभियान चलाया हुआ है जिसके तहत वे किसानों की समस्या सुनते आ रहे हैं। इसी कड़ी में शुक्रवार को वे कनीना पहुंचे। उन्होंने चिंता व्यक्त की कि सरकार मंथर गति से किसानों का बाजार खरीद रही है। उन्होंने किसानों की समस्या सुनी जिसमें किसानों ने बाजरा न बिकने कीी शिकायत की। इस अवसर पर उनके साथ राजबाला कार्यकारिणी सदस्य हरियाणा, दीपक लांबा राज्य महासचिव, प्रदीप कुमार, सोनू रामबास इत्यादि साथ थे।
फोटो कैप्शन 8: योगेंद्र यादव कनीना मार्केट कमेटी जाते हुये
9: बाजरे की ढेरी से बाजरा जांचते हुए
10 किसानों से समस्या जानते हुए
अच्छी पैदावार दे रहे हैं बैंगन
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कनीना। एक ओर जहां नवरात्रे शुरू हो रहे हैं वहीं गाहड़ा निवासी मनेंद्र शर्मा अपने खेत से लगातार बैंगन की पैदावार ले रहे हैं। दो कनाल में उन्होंने बैंगन उगाये हैं। उनका कहना है कि अभी भाव बेहतर चल रहे हैं, बाजार में सब्जी की मांग है। वैसे तो खुदरा मूल्य पर बैंगन 30 रुपये किलो मिल गए किंतु उनके थोक में 5 रुपये किलो बिक रहे हैं।
महज 2 महीने में ही बैंगन पैदावार देने लग गए हैं। अभी प्रतिदिन करीब 1 क्विंटल तक बैंगन पा रहे हैं और निकट भविष्य में इनकी मात्रा बढ़ जाएगी। लोग अब तो उनके खेत से ही बैंगन ले जाने लगे हैं। उनका कहना है कि खेती की बजाय बैंगन सब्जी उगाये तो बेहतर लाभ मिल सकता है। कृषि अधिकारी डा देवराज मानते हैं कि बैंगन उगाना लाभप्रद है। कम समय में और अधिक पैदावार देते हैं। यहां तक कि पौधा दो-तीन वर्षों तक भी चल सकता है।
फोटो कैप्शन 5: बैंगन की पैदावार लेते हुए मनेंद्र गाहड़ा।
आवारा गाय व बंदर बिखेरते हैं कूड़ादानों का कूड़ा
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कनीना। क्षेत्र में आवारा गायों एवं बंदरों से परेशानी बढ़ती जा रही है। जहां बंदर भी परेशानी बन रहे हैं वहीं कूड़े कचरे को भी बिखेर देते हैं। इसके अलावा भी भारी मात्रा में नुकसान कर रहे हैं।
नगर पालिका द्वारा दुकानों के सामने डिवाइडर पर कूड़ेदान लटकाए हुए हैं जिनमें दिन भर दुकानदार कूड़ा कचरा डालते हैं। रात्रि के समय जहां आवारा गाये इनको उड़ेल देती है वही बंदर भी इनमें सामान ढूंढने के लिए कूड़े को इधर-उधर बिखेर जाते हैं जिससे बड़ी परेशानी हो रही है।
नगर पालिका को कूड़ा कचरा इक_ा करने में दिक्कत आती है वही ये आवारा गाय दुर्घटनाओं का कारण भी बनती है। यही हालात बंदरों के कारण हो रही है। अब तक जहां आधा दर्जन व्यक्तियों को बंदरों ने पांच वर्षों में घायल किया है वही आवारा गायों के कारण 2018 में एक व्यक्ति की मौत हो चुकी है।
कनीना में गौशाला बनी हुई है किंतु गौशाला में गायों को नहीं पहुंचाया जा रहा है। यदि इन बंदरों को पकड़वा कर दूर भेज दिया जाए और आवारा गायों को गौशाला भेज दिया जाए तो समस्या से निजात पाया जा सकता है।
क्या कहते हैं नगरपालिका प्रधान-
नगर पालिका प्रधान सतीश जेलदार का कहना है कि आवारा गायों को हम प्रयास कर सकते हैं कि गौशाला भिजवा दें किंतु बंदरों को पकड़वाने बहुत कठिन हो गया है। एक बंदर को पकडऩे के लिए 2000 रुपये प्रति बंदर पकडऩे के नाम पर मांगे जा रहे हैं। एक बार नगरपालिका ने बंदरों को पकड़वाकर दूर भिजवाया था किंतु फिर से वापस आ जाते हैं। उन्होंने कहा जल्दी कोई समाधान बंदरों का और गायों का निकालेंगे।
फोटो कैप्शन 7: आवारा सांड सड़क पर
6 कूड़े कचरे से खाद्य सामग्री ढूंढती आवारा गाय
पूर्व विद्यार्थियों की मदद से घर पर विद्यार्थियों को दिए जाएंगे शिक्षा के गुर
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कनीना। जवाहर नवोदय विद्यालय करीरा के प्राचार्य तथा स्टाफ पूर्व विद्यार्थियों (एलमनी) की मदद से विद्यालय में पढ़ रहे विद्यार्थियों को घर पर ही विभिन्न शिक्षण जानकारी उपलब्ध करवाएगा। विािन्न अधिकारियों कीी मदद लेने की बात चल रही हैं जिसे जल्द ह अमली रूप दिया जाएगा।
इस संबंध में अधिकारियों एवं पूर्व विद्यार्थियों की आनलाइन जोडऩे की कार्रवाई शुरू कर दी है। अब प्रत्येक पूर्व विद्यार्थी के तहत दो या तीन आसपास के छात्रों को जोड़ा जाएगा ताकि वे उनके घर जाकर उन्हें शिक्षा के गुर दे सके। प्राचार्य जवाहर नवोदय विद्यालय करीरा सुरेश कुमार ने बताया किस संबंध में त्वरित कार्रवाई चल रही है। जवाहर नवोदय विद्यालय जयपुर संभाग के तहत आता है वहां के उच्च अधिकारियों ने मिलकर यह योजना बनाई है कि कोरोना काल में विद्यार्थियों को कैसे घर बैठे गुर सिखाए जाए? उन्होंने बताया कि पूर्व विद्यार्थियों ने भी सहमति जताई है कि वे अपने आसपास के कुछ विद्यार्थियों को या तो फोन के जरिए/आनलाइन या फिर घर जाकर विभिन्न प्रकार की जानकारी उपलब्ध करवाएंगे।
इससे शिक्षा का स्तर भी बढ़ेगा एवं विद्यार्थी घर बैठे कोरोना काल में परेशान नहीं होंगे।
एक ग्रुप बनाया जा रहा है जिसमें पूर्व कि शिक्षक तथा अन्य समाजसेवियों को भी जोड़ा जाएगा जो विभिन्न प्रकार की जानकारी उपलब्ध करवाएंगे। जिस क्षेत्र से संबंधित अधिकारी होगा अपने क्षेत्र की जानकारी विद्यार्थियों को उपलब्ध करवाएगा ताकि भविष्य में विद्यार्थी सफल हो सके।
नवरात्रे 17 से---
नौ रूपों में पूजा होती है दुर्गा की
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कनीना। 17 अक्टूबर से शारदीय नवरात्र प्रारंभ हो रहे हैं। वर्ष में दो बार आने वाले नवरात्रों में माता के मंदिरों को सजाया जाता है वहीं दिनभर व्रत आदि करके नौ दिनों तक माता की पूजा की जाती है।
इन नवरात्रों का सौभाग्यवती महिलाओं के लिए विशेष महत्व होता है। प्राचीन ग्रंथों में दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती आ रही है। ये नौ रूप महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती, योगमाया, रक्तदंतिका, शाकुंभरी देवी, दुर्गा, भ्रामरी देवी तथा चंडिका प्रमुख हैं। इन नौ रूपों को शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री नामों से जाना जाता है। इन नौ रूपों के दर्शनों के लिए मंदिरों में जाकर पूजा की जाती है।
वासंतीय नवरात्र चैत्र माह में आते हैं। इन नवरात्रों में वसंत ऋतु आती हैं और सर्दी से गर्मी के मौसम में प्रवेश होता है वहीं शारदीय नवरात्रों में गर्मी से सर्दी में प्रवेश किया जाता है साथ में फसल पैदावार लेने के बाद ये पर्व दो बार मनाए जाते हैं। खरीफ एवं रबी की फसल पैदावार के बाद उन्हें शरीर में ग्रहण करने से पूर्व पुराने अन्न को पूर्णरूप से शरीर से निकाला जाता है इसलिए व्रत किए जाते हैं। नौ दिनों में पुराना अन्न शरीर से निकल जाता है और नया अन्न ग्रहण किया जाता है जो एलर्जी आदि रोग नहीं करेगा।
क्या कहते हैं वैद्य-
वैद्य बालकिान एवं हरिकिशन करीरा ने बताया कि वैसे भी नवरात्रों में रातों में परिवर्तन आ जाता है। शारदीय नवरात्रों में गर्मी से सर्दी के मौसम में प्रवेश होना माना जाता है। नवरात्रों में जहां नौ रूपों में मां दुर्गा ने राक्षसों का संहार किया था उन नौ रूपों में नौ कन्याओं को नवरात्रे पूर्ण होने पर भोजन कराया जाता है। साथ में नवरात्रों में जौ उगाए जाते हैं जो समृद्धि के प्रतीक होते हैं। गंगा में जौ उगाना एक कहावत भी है। वैसे भी नौ दिनों में उगे हुए जौ को ऊपर से काटकर ज्वारे रस का पान किया जाए तो घातक रोगों में भी लाभकारी माना जाता है।
पर्व से जुड़ा है सांझी का पर्व-
ग्रामीण क्षेत्रों में इस पर्व को लेकर अति प्रसन्नता होती है वहीं दुकानदार सामान बेचने को लालायित रहते हैं। छह माह के बाद नवरात्रे आने से उनके सामान की बिक्री छह माह बाद ही नवरात्रों के सामान की हो पाती है। मंदिरों को ग्रामीण क्षेत्रों में सजाकर पूजा अर्चना करने का विशेष प्रावधान होता है। नवरात्रों में शुभ काम करने की प्रथा भी चली आ रही है। इसी के साथ ही शुरू हो जाती है सांझी पूजा। बच्चियां दीवार पर सांझी बनाकर उसकी नौ दिनों तक पूजा करती हैं। दशहरे के दिन सांझी को पानी में बहाया जाता है।
विधि विधान से करे पूजा-प्रदप शास्त्री
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कनीना।प्रदीप शास्त्री खाटू श्याम मंदिर कनीना का कहना है कि सम्पूर्ण जड़ पदार्थ भगवती का पहला स्वरूप हैं पत्थर मिट्टी जल वायु अग्नि आकाश सब शैल पुत्री का प्रथम रूप हैं। इस पूजन का अर्थ है प्रत्येक जड़ पदार्थ में परमात्मा को अनुभव करना।
जड़ में ज्ञान का प्रस्फुरण, चेतना का संचार भगवती के दूसरे रूप का प्रादुर्भाव है। जड़ चेतन का संयोग है। प्रत्येक अंकुरण में इसे देख सकते हैं।
भगवती का तीसरा रूप है यहाँ जीव में वाणी प्रकट होती है जिसकी अंतिम परिणति मनुष्य में बैखरी (वाणी) है।
अंडे को धारण करने वाली; स्त्री ओर पुरुष की गर्भधारण, गर्भाधान शक्ति है जो भगवती की ही शक्ति है, जिसे समस्त प्राणीमात्र में देखा जा सकता है। वही पुत्रवती माता-पिता का स्वरूप है अथवा प्रत्येक पुत्रवान माता-पिता स्कन्द माता के रूप हैं।
कात्यायनी के रूप में वही भगवती कन्या की माता-पिता हैं। यह देवी का छठा स्वरूप है।
कालरात्रि देवी भगवती का सातवां रूप है जिससे सब जड़ चेतन मृत्यु को प्राप्त होते हैं ओर मृत्यु के समय सब प्राणियों को इस स्वरूप का अनुभव होता है। भगवती के इन सात स्वरूपों के दर्शन सबको प्रत्यक्ष सुलभ होते हैं परन्तु आठवां ओर नौवां स्वरूप सुलभ नहीं है।
भगवती का आठवां स्वरूप महागौरी गौर वर्ण का है। भगवती का नौंवा रूप सिद्धिदात्री है। यह ज्ञान अथवा बोध का प्रतीक है, जिसे जन्म जन्मांतर की साधना से पाया जा सकता है। इसे प्राप्त कर साधक परम सिद्ध हो जाता है। इसलिए इसे सिद्धिदात्री कहा है।
मां दुर्गा पहले स्वरूप में शैलपुत्री के नाम से जानी जाती हैं. ये ही नव दुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं. पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लेने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा. इनका वाहन वृषभ है, इसलिए यह देवी वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं. इनके दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल सुशोभित है. यही सती के नाम से भी जानी जाती हैं। नवरात्रि के सर्वप्रथम हमें कलश स्थापना करके मां दुर्गा जी की प्रतिमा विराजमान करके पूजा पाठ प्रारंभ करना है।
फोटो कैपन: प्रदीप शास्त्री
हर इंसान दु:खी है दीमक के प्रकोप से
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कनीना। दीमक नामक कीट किसानों के लिए सिरदर्द बना हुआ है तथा हर इंसान के लिए समस्या बना हुआ है। हर प्रकार की फसल हो या फिर कोई भी लकड़ी हो दीमक उसका खात्मा पलों में कर देती है। किसान के लिए तो दीमक एक आफत बनकर उभर रही है।
घर हो या दफ्तर या फिर किसानों की फसल, रद्दी पड़ी हो या सूखी लकड़ी, दीवार हो या गिली लकड़ी, पौधे हो या फूलदार शाक हर जगह सफेद एवं पीले रंग का यह कीट अपनी पहुंच बनाकर धीरे-धीरे उन्हें तबाह कर देता है। प्रत्येक वर्ष लाखों रुपये की क्षति तो अकेला यह दीमक नामक कीट ही पहुंचा रहा है। किसान को जहां फसल बचाने के लिए जीवों एवं नील गायों के साथ संघर्ष करना होता है वहीं इन कीटों को मारने के लिए भरसक प्रयास करने होते हें किंतु इन कीटों को मार गिराना आसान काम नहीं है।
दीमक एक फौज के रूप में चलती है। सारा काम सैनिक दीमक करती हैं। दीमक जिस जगह पहुंच जाए वहां केवल मिट्टी ही मिट्टी दिखाई पड़ती है। दीमक जिस भी वस्तु को खाती है बस मिट्टी ही बनाकर दम लेती है। यही कारण है कि दक्षिण हरियाणा में तो दीमक प्रति वर्ष लाखों की क्षति पहुंचा देती है वहीं कागज एवं दफ्तरों की फाइलों का काम तमाम कर देती हैं।
क्या कहते हैं कृषि अधिकारी-
कनीना के पूर्व खंड कृषि अधिकारी डा देवराज यादव का कहना है कि दीमक अक्सर नमी वाले क्षेत्रों से दूर भागती है और नर्म स्थान एवं सूखे क्षेत्रों में बेहद परेशान करती है। यही कारण है कि जहां अधिक वर्षा होती है या फिर नहरों का पानी उपलब्ध है वहां दीमक नजदीक भी नहीं आती है वरना दक्षिण हरियाणा के लोगों को परेशान करके रख देती है। दीमक किसान की रबी एवं खरीफ की फसल में बेहद नुकसान पहुंचाती है। यह जड़ों को काट जाती है और जमीन में छुप जाती है। सबसे बड़ी बात तो यह है कि दीमक को मार पाना आसान काम नहीं है। इसकी सूंघने की क्षमता अत्याधिक होने के कारण दवा को दूर से सूंघकर जमीन में चली जाती है। जब दवा का असर कम होता है तो पुन: बाहर आ जाती है। दीमक मार्च, जून, सितंबर एवं दिसंबर माह में अधिक निकलती है और उस वक्त खेतों में फसल खड़ी होती है जिसे भारी नुकसान पहुंचाती है। दस फीसदी तक फसल दीमक खराब कर देती है।
कौन सी दवा का करें छिड़काव-
दवा विक्रेता महेश कुमार बोहरा, कुलदीप यादव ने बताया कि दीमक को भगाने के लिए जब देशी व अंग्रेजी दवाएं काम में लाई जाती हैं। इनमें दवा निमारीन, फोरेट, क्लोरोपाइरीफास जैसी दवा डाली जाती है तो दीमक उसे दूर से ही सूंघकर भूमि में गहराई पर चली जाती है। यह उस जगह जाकर बैठ जाती है जहां दवा की बदबू नहीं होती है वहां जाकर बैठ जाती है। जब फिर से बदबू का प्रभाव कम होता है तो दीमक झटपट बाहर आ जाती है। दवा से दीमक मरती तभी है जब उस पर दवा गिर जाए।
क्या कहते हैं किसान-
किसान रोहित कुमार, योगेश कुमार, राजेंद्र सिंह, अजीत कुमार, सूबे सिंह का कहना है कि दीमक को भगाने एवं नष्ट करने के लिए किसान का न केवल काफी समय बर्बाद होता है अपितु धन की बर्बादी भी होती है। किसान जब अपने खेत में बीजाई करता है तो दीमक धावा बोलकर बीजों को खराब कर देती है वहीं फसल खड़ी होने पर फसल की जड़ों को काट देती है। जब किसान अन्न को घरों में रखता है तो भी दीमक परेशान रखती है वहीं पर दीमक खेतों में पड़े चारे को भी खराब कर देती है।
क्या कहते हैं आम जन-
कनीना के राम सिंह, कृष्ण कुमार, रवि कुमार, सुरेश कुमार आदि ने बताया कि इमारती लकड़ी को भी खराब करती है वहीं खिड़की एवं दरवाजों के लिए भी आफत बन जाती है। फूलदार एवं फलदार पौधों की जड़ों को भी नष्ट कर देती है जिसके चलते ये पौधे पनप ही नहीं पाते हैं। किसान जब कभी खेत में लकड़ी का सामान रखकर भूल जाता है तो उसे भी नष्ट कर देती है। किसानों के खेतों में खड़े पेड़ पौधों की संख्या को घटाने में इनका भी योगदान होता है।
क्या कहते हैं पूर्व कर्मी एवं अधिकारी-
मदन कुमार, ईश्वर सिंह, राजेश कुमार आदि ने बताया कि व्हाइट आंट नाम से प्रसिद्ध इस जीव का आकार जहां छोटा होता है वहीं यह जीव किसान के लिए आफत बनकर उभर रहा है। किसी बड़ी समस्या से बचने का सरल उपाय दीमक है। रेत मिट्टी में फाइलों को रख दे तो तीन चार दिनों में ही दीमक चट करने लग जाती है। किसी भी दफ्तर में या कार्यालय में जाकर देखे तो पाइलों को सही सलामत नहीं रखते जिसके चलते दीमक का शिकार बनना पड़ता है। दक्षिण हरियाणा में तो इसका प्रकोप अधिक है। करोड़ों की संपत्ति ये जीव नष्ट कर देते हैं।
क्या कहते हैं जीव वैज्ञानिक -
जीव वैज्ञानिक रवींद्र कुमार का कहना है कि दीमक अपने खाने में सेलूलोज पसंद करती है। लकड़ी, पेड़, जड़, तना या किसी कागज को खाने के पीछे सेलूलोज प्राप्त करना है। इनके पेट में कोई भी पदार्थ जाते ही मिट्टी बन जाता है। ये हर इंसान के लिए सिरदर्द बन सकती है।
फोटो कैप्शन 3: पेड़ पर दीमक का प्रभाव
4: पक्की दीवार पर दीमक का प्रभाव।
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