नाम कमा रही अजीत कुमार की बेरी
-पेड़ छोटा किंतु फलों से लदा, पाइपों से रोका गया है
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कनीना की आवाज। कनीना के किसान अजीत कुमार के खेत में खड़ी बेरी आकर्षण का विषय बन गई है। चर वर्ष पुरानी इस बेरी पर इतने अधिक फल लगते हैं कि अपने ही वजन से वह टूट जाती है। अति नर्म एवं रसीले बेर न केवल देखने में अपितु खाने में भी स्वादिष्ट लगते हैं।
किसान अजीत कुमार ने बताया कि उनके खेत में यह बेरी तीन वर्ष पूर्व लगाई थी जिस पर पहले ही वर्ष से बेर लगने लग गए थे। हर वर्ष इसके बेरों की संख्या बढ़ती ही जा रही है। किसान ने इसकी टहनियों को पाइपों के सहारे टूटने से बचा रखा है। उन्होंने कहा कि इसकी टहनियां वजन के कारण टूट जाती हैं। उनकी बेरी को देखने के लिए लोग आते हैं।
यूं तो कितने ही किसानों के यहां बेरी के पौधे लगे हैं और मधुर फल दे रहे हैं किंतु अजीत कुमार के खेत की बेरी के फल बहुत अधिक रसीले एवं मधुर हैं। बेरों का वजन अधिक होने के अलावा मधुरता एवं अति नर्म होने के कारण लोग फल खाकर उनका दीवाना हो जाता है। कृषि कार्यालय के डा देवराज का कहना है कि यह उत्तम दर्जे की बेरी है और उन्हें इनाम दिलवाने के प्रयास किए जाएंगे।
फोटो कैप्शन 3: कनीना के अजीत कुमार की बेरी के लदे बेर।
दुलेंडी पर लगा मेला, महाराज ने स्वयं खेली होली
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कनीना की आवाज। बाबा उधोदास मंदिर पर होली मेला लगा। बाबा उधोदास की याद में वर्षों से विशाल मेला लगता आ रहा है। भक्तों की भीड़ यहां जमा होती है वहीं संत लालदास स्वयं भक्तों के संग होली खेलते हैं।
रणधीर सिंह भक्त ने बताया कि कनीना से नौ किमी दूर बाबा उधोदास का भव्य मंदिर स्थित है। इसी मंदिर के सामने बाबा की समाधि तथा बाबा के बाद में आए उनके शिष्यों की समाधियों वाला मंदिर है। इन समाधियों में सबसे पहले बाबा उधोदास की समाधि है। इस समाधि के ऊपर की ओर झांक कर देखे तो सैकड़ों वर्ष पुरानी पेंट व ब्रुश से की हुई कलाकारी दिखाई पड़ती है जो आज भी अपनी आब नहीं खो पाई है। यह वही स्थान है जहां अनवरत पूजा अर्चना का सिलसिला चलता रहता है तथा दीप जलते रहते हैं।
होली के दिन भजन-कीर्तन के समय यहां भारी भीड़ जुटती है। प्रत्येक पूर्णिमा के दिन यहां का नजारा देखने लायक होता है जब प्रवचन, भजन एवं कीर्तन का आगाज किया जाता है किंतु रंगों के त्योहार होली की रात को यहां विशेष जागरण चलता है तथा दिन के समय ढोल एवं नगाड़ों के बीच होली जमकर खेली जाती है। महंत लालदास के साथ होली खेलते भक्तों को देखा गया। यहां पर हरियाणा ही नहीं अपितु दूसरे राज्यों के भक्तजन भी आकर मन्नतें मांगते हैं। माना जाता है कि उनकी मन्नत पूर्ण हो जाती है जिसके चलते वे दंपति यहां गठ जोड़े की जात देने आते हैं। गांव जैनाबाद के पास से कंशावती नदी बहती थी। इसी नदी के किनारे पर उधोदास का जन्म हुआ। उधोदास धुन के पक्के और मन के सच्चे थे। उनके गुरू का नाम दाताराम था। उधोदास ने कंशावती नदी के किनारे एक वृक्ष के नीचे तप और ध्यान लगाते हुए दु:खियों के दर्द को मिटाया।
बाबा उधोदास की समाधि बनी हुई है जहां अनवरत दीपक जलता रहता है। ढफ और नगाड़ों के बीच हर्षोल्लास के साथ महंत लालदास जी धुलेंडी खेली। बाबा लालदास ने गायों के लिए बाबा के नाम पर एक गौशाला बनवाई हुई है। संत लालदास की देखरेख में गांव ही नहीं अपितु मंदिर को चार चांद लग चुके हैं।
इसी आश्रम में जहां 7 मार्च की रात को भजन कीर्तन चले वहीं भंडारा भी लगा। रात्रि के समय भक्तिसागर ग्रंथ की पूजा भी की गई तथा विधि विधान ग्रंथ को वापस स्थापित किया गया। दिनभर भंडारा चलता रहा।
फोटो कैप्शन 9: जैनाबाद का उधोदास आश्रम।
आय का बेहतर स्रोत है गरीबों के सेब
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कनीना की आवाज। गरीबों के सेब गरीब लोगों के लिए बेहतर आय का स्रोत बन गए हैं। तीन माह तक ये बाजार में उपलब्ध होते हैं। कई जन इन बेरों से अपनी रोटी रोजी कमा रहे हैं।
कनीना क्षेत्र में रेहडिय़ों पर भारी मात्रा में बेर उपलब्ध हैं। बेर जैसे रसीले फल गरीबों के सेव कहलाते हैं। बेर नामक वो फल हैं जिसका स्वाद तो भगवान् श्रीराम ने भी भीलनी के हाथों से लिया था। बेरों का ग्रामीण क्षेत्रों में जमकर उपभोग किया जाता है यहां तक कि अधिक मात्रा में उत्पन्न बेरों को सूखा लिया जाता हैं और वर्ष भर खाया जाता है। गरीब जन जो महंगे दामों पर सेव नहीं खरीद सकते हैं वे अपने बेर खाकर विटामिन सी की आपूर्ति कर लेते हैं। सर्दी के मौसम में बेर को जमकर खाया जा सकता है जो लाभकारी साबित होता है। ग्रामीण क्षेत्रों में तो ये बेर खूब उपलब्ध हैं। किसान के खेतों में दोनों ही प्रकार के बेर उगाए जाते हैं जो किसान के लिए अतिरिक्त आय का स्रोत बन सकते हैं। शहरी किसान तो इन बेरों को बेचकर आय कमा रहे हैं किंतु ग्रामीण किसान आज भी बाजार तक उन्हें बेचने से कतराते हैं। यूं तो पूरे देश में ही बेरी का पौधा उगाया जाता है और उसके मधुर फलों का स्वाद लिया जाता है किंतु रेतीले क्षेत्रों में बेर अधिक पैदा हो रहा है।
बेर बेचने वाले जगमाल सिंह ने बताया कि वे दूसरे प्रांत से आकर महज यहां रेहड़ी पर बेर बेचकर प्रतिदिन 300 रुपये तक कमा लेते हैं। किसान राजेंद्र सिंह, अजीत कुमार ने बताया कि बेर मार्च माह तक पर्याप्त मात्रा में खेतों में स्वयं पैदा हो जाते हैं। बाजार में अब एक सौ ग्राम तक के बेर आए हुए हैं। इन्हें अमरूदी बेर कहा जाता है।
फोटो कैप्शन 1 एवं 2: बड़े बेर बेचते हुए कनीना बस स्टैंड का एक दुकानदार।
सरसों अधिक उगाई, चने की पैदावार शून्य
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कनीना की आवाज। इस बार किसानों ने सरसों की फसल अधिक उगाई है किंतु भ्रसक प्रयासों के बावजूद भी चने की खेती नहीं बढ़ पा रही है। विगत वर्ष की तुलना में भी सरसों अधिक उगाई है। सरकार द्वारा किसानों को सरसों के बेहतर दाम दिए जाने के चलते सरसों की फसल की तरफ फिर से बढ़ता ही जा रहा है। इस वर्ष क्षेत्र में सरसों की फसल की बिजाई में 1000 हेक्टेयर अधिक क्षेत्रफल में सरसों की बिजाई की गई है। वहीं क्षेत्र में गेहूं व चने की बिजाई में गिरावट दर्ज की गई है। चने की किसी किसान ने पैदावार नहीं ली।
खंड कृषि अधिकारी मनोज कुमार ने बताया कि खंड में पिछले वर्ष करीब 19500 हेक्टेयर क्षेत्रफल में सरसों की फसल की बिजाई की गई थी। लेकिन इस वर्ष करीब 20500 हेक्टेयर क्षेत्रफल में सरसों की फसल की बिजाई की गई है। गेहूं की फसल के लिए पिछले वर्ष 11000 हेक्टेयर क्षेत्र में बिजाई की गई थी व इस वर्ष 10000 हेक्टेयर क्षेत्रफल में ही गेहूं की बिजाई की गई है।
करीब 20 वर्ष पहले किसानों का चना उगाने में बहुत उत्साह दिखाता था किंतु अब चने उगाना ही भूल गया है। उस वक्त चने को अन्न, भुगड़े, सब्जी बनाने, विवाह शादी में, देसी सब्जियां बनाने तथा चारे के रूप में प्रयोग किया जाता था। किसानों के गले से नहीं उतर रहा है। किसान हरे चने के पत्तों की चटनी बनाने के लिए एकाध क्यारी में चने लगाते हैं और उसी से चटनी, होला आदि बनाकर खा लेते हैं।
रामानंद यादव ने बताया कि वे अब भी बेहतर चने की पैदावार ले लेते हैं। विगत वर्ष भी चने की खेती की थी।
फोटो कैप्शन 3: चने की खेती करता रामानंद।
शांति से मनाया प्रेम एवं भाईचारे का पर्व धुलेंडी
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कनीना की आवाज। कनीना में धुलेंडी का पर्व होली धूमधाम से संपन्न हुआ। होली के पर्व पर किसी अप्रिय घटना का समाचार नहीं मिला है। दिन भर लोग रंग गुलाल से होली खेलते नजर आए।
उल्लेखनीय है कि युवा वर्ग में पहली बार देखने को मिला कि पानी की बचत कर रहे थे तथा प्राकृतिक रंग एवं गुलाल आदि से होली खेल रहे थे। कृष्ण कुमार, सुरेंद्र कुमार, सुनील कुमार ने बताया कि उन्होंने पहली बार हल्दी, टेसू के फूल, चुकंदर का रस, पत्तों के रस एवं मेहंदी आदि से होली खेली और पानी को बचत की पहली बार क्षेत्र में सूखी होली खेलने को मिली। वहीं यदाकदा कुछ लोग पानी बिखेरते भी नजर आए। वहीं दुुलेंडी के दिन तो दिन भर सड़कों, गलियों में होली खेलते लोग नजर आए। क्षेत्र में भडफ़ एवं जैनाबाद,सीहा, निमोठ, बवानिया आदि गांवों में मेले लगे वहीं जैनाबाद आश्रम में लाल दास महाराज ने होली खेली और भक्तों पर रंग डाला। भक्तों ने भी महाराज पर रंग डाला। होली का पर्व धूमधाम से विभिन्न संस्थाओं में भी मनाया गया। होली खेलते महिलाएं, पुरुष एवं बच्चे देखे गए।
कनीना के सामान्य बस स्टैंड पर तथा अनाज मंडी में सभी दुकानें बंद रही और वे होली खेलते देखे गए। विभिन्न संस्थानों एवं समाजसेवियों के अनुरोध पर इस बार कम पानी का प्रयोग हुआ। बच्चे एवं युवा ही अधिक संख्या में होली खेलते मिले।
दुलेंडी पर अकसर लड़ाई झगड़ा होता रहा है किंतु इस बार शांतिपूर्वक पर्व संपन्न हो गया। पत्रकार, समाजसेवी, नेता एवं सामान्य जन बढ़ चढ़कर गुलाल लगा रहे थे। कनीना में धुलेंडी का पर्व होली का पर्व धूमधाम से संपन्न हुआ। होली के पर्व पर किसी अप्रिय घटना का समाचार नहीं मिला है। दिन भर लोग रंग गुलाल से होली खेलते नजर आए।
उल्लेखनीय है कि युवा वर्ग में पहली बार देखने को मिला कि पानी की बचत कर रहे थे तथा प्राकृतिक रंग एवं गुलाल आदि से होली खेल रहे थे। अजीत कुमार, सूबे सिंह, राजेंद्र सिंह आदि ने बताया कि उन्होंने पहली बार हल्दी, टेसू के फूल, चुकंदर का रस, पत्तों के रस एवं मेहंदी आदि से होली खेली और पानी को बचत किया पहली बार क्षेत्र में सूखी होली खेलने को मिली। वहीं यदाकदा कुछ लोग पानी बिखेरते भी नजर आए। विगत वर्षों से कनीना क्षेत्र में गंदे पानी डालने कीचड़ में डालने आदि की घटनाएं घटती रहती थी किंतु इस बार होली पर ऐसी कोई घटना नहीं देखने को मिली। सरकारी स्कूलों में होलिका दहन के दिन अवकाश न होने के कारण शिक्षण संस्थाओं में रंगों की होली खेलते नजर आए। वहीं दुुलेंडी के दिन तो दिन भर सड़कों, गलियों में होली खेलते लोग नजर आए। क्षेत्र में भडफ़ एवं जैनाबाद,सीहा, निमोठ, बवानिया आदि गांवों में मेले लगे वहीं जैनाबाद आश्रम में लाल दास महाराज ने होली खेली और भक्तों पर रंग डाला। भक्तों ने भी महाराज पर रंग डाला। होली का पर्व धूमधाम से विभिन्न संस्थाओं में भी मनाया गया। होली खेलते महिलाएं, पुरुष एवं बच्चे देखे गए।
दुलेंडी का पर्व धूमधाम से मनाया गया। इस बार रंगों का कम प्रयोग हुआ तथा गुलाल से होली खेलते देखे गए। पानी भी प्रयोग किया गया किंतु इस बार कम पानी प्रयोग किया। कई स्थानों पर मेले लगे तथा बाल उतरवाने की परंपरा पूर्ण की गई।
दिवस दुलेंडी का पर्व क्षेत्र में पूरे उत्साह के साथ मनाया गया। आपस में गुलाल लगाकर होली खेलते देखे गए। संत लालदास उधोदास आश्रम स्वयं भक्तों से होली खेलते देखे गए। कई स्थानों पर मेले लगे। जैनाबाद, कारोली तथा कई अन्य स्थानों पर होली के पर्व पर मेले लगे।
कनीना के सामान्य बस स्टैंड पर तथा अनाज मंडी में सभी दुकानें बंद रही और वे होली खेलते देखे गए। विभिन्न संस्थानों एवं समाजसेवियों के अनुरोध पर इस बार कम पानी का प्रयोग हुआ। बच्चे एवं युवा ही अधिक संख्या में होली खेलते मिले।
दुलेंडी पर अकसर लड़ाई झगड़ा होता रहा है किंतु इस बार शांतिपूर्वक पर्व संपन्न हो गया। पत्रकार, समाजसेवी, नेता एवं सामान्य जन बढ़ चढ़कर गुलाल लगा रहे थे।
फोटो कैप्शन
कनीना में संपन्न हुआ होलिका दहन
-भारी संख्या में औरतें पूजा करती हुई तथा युवक जौ भूनते देखे गये
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कनीना की आवाज। कनीना में होलिका दहन कार्य पूर्ण हो गया है। शाम ढलते ही युवा वर्ग होलिका दहन के लिए तैयार हो गए। महिलाएं बार-बार होलिका दहन बूझाती रही किंतु युवा वर्ग उसमें आग लगाता देखा गया। वास्तव में आग लगाने के पीछे माना जाता है कि ये युवा प्रहलाद भक्त को जलाना चाहते थे और महिलाएं इस देवी रूप में भक्त प्रहलाद को बचाती नजरअैाई जो आग को बुझा रही थी। किंतु मौका देखकर युवा वर्ग ने होलिका दहन कर ही दिया जिसमें महिलाएं पूजा करके भक्त पहलाद को बचाने की अर्चना करती रही। युवा वर्ग जौ की बाल भूनते नजर आए। लंबे समय से यह परंपरा चली आ रही है कि इस क्षेत्र के किसान जौ अधिक उगाते थे और जौ की एक बानगी लेकर होलिका दहन में भून कर पेूरा परिवार चखता था कि जौ अच्छी प्रकार पक गए हैं या नहीं। पकने के बाद इसकी लावणी का कार्य शुरू होता था। जौ की लावणी जल्दी होती है। अब तो किसानों ने जौ को उगाना ही भूला दिया है। किसान जौ के पौधे गेहूं के खेतों में ढूंढते नजर आए और होलिका दहन में भूनने की प्रथा को पूर्ण किया। होलिका दहन पर दिनभर जहां मेला लगा बाबू वेद प्रकाश द्वारा हर वर्ष की भांति भंडारा लगाया वहीं इस बार कनीना में वर्षों पुरानी भूली गई परंपरा खेलकूद फिर से शुरू की गई। खेलकूद भी आयोजित हुए जिन्हें होली के खेलकूद कहते हैं। होलिका दहन के बाद महिलाओं ने व्रत को पूर्ण किया। कनीना क्षेत्र में जहां होलिका दहन को लेकर एक माह पूर्व से ही कार्रवाई चल रही थी झंडा गाड़ कर उस पर ईंधन डाला हुआ था। आज सुबह से ही महिलाओं ने उस पर धार्मिक ले डालें और पूजा की। शाम के समय विधि विधान से ज्योतिष शास्त्र अनुसार होलिका दहन किया गया होलिका दहन पर भारी संख्या में लोग मौजूद थे। फोटो कैप्शन: होलिका दहन का नजारा
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