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Wednesday, October 23, 2024
नशीले पदार्थ गांजे सहित 2 गिरफ्तार, 1 किलो 990 ग्राम गांजा बरामद
-दोनों व्यक्ति स्याणा गांव के बताये जाते हैं
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कनीना की आवाज। एचएसएनसीबी रेवाड़ी यूनिट की टीम ने कल महेंद्रगढ़ क्षेत्र से नशीला पदार्थ गांजा बरामद किया और दो आरोपितों को गिरफ्तार किया। आरोपितों की पहचान रमेश कुमार निवासी स्याना व हवासिंह निवासी स्याना के रूप में हुई। आरोपितों के पास से 1 किलो 990 ग्राम गांजा बरामद हुआ। आरोपितों को न्यायालय में पेश कर पुलिस रिमांड पर लिया गया है। एचएसएनसीबी रेवाड़ी यूनिट की टीम गस्त के दौरान आदलपुर बस स्टैंड महेन्द्रगढ-दादरी रोड पर मौजूद थी, टीम को गुप्त सूचना मिली कि रमेश कुमार निवासी स्याना व हवासिंह निवासी स्याना नशीला पदार्थ गांजा बेचने का काम करते हैं, जो आज अपनी मोटरसाइकिल पर नशीला पदार्थ गांजा लेकर जिले सिंह निवासी खरखड़ा हाल आबाद आदलपुर को देने के लिए आ रहे हैं, मेन रोड से आदलपुर की ढाणी की तरफ टाईल वाले रास्ते पर नाकाबंदी की जाए तो दोनो को गांजा सहित पकड़ा जा सकता है। सूचना पर टीम ने बतलाए हुए स्थान पर नाकाबंदी कर चेकिंग शरू कर दी, जो कुछ समय बाद एक मोटरसाईकिल आती दिखाई दी, जो पुलिस पार्टी को देखकर वापिस मोड़कर भागने की कोशिश करने लगे। जिनको टीम ने काबू करके नामपता पूछा तो मोटरसाइकिल चालक ने अपना नाम रमेश कुमार व पीछे बैठे व्यक्ति ने अपना नाम हवा सिंह उपरोक्त बतलाया। तलाशी लेने पर रमेश कुमार से एक व 4000 रुपये मिले व हवा सिंह के पास से बरामद पालीथिन से नशीला पदार्थ गांजा व एक मोबाइल मिला। पालीथिन सहित नशीला पदार्थ गांजा का कुल वजन 1 किलो 990 ग्राम हुआ। पुलिस ने नशीले पदार्थ को जब्त कर लिया और आरोपितों के खिलाफ थाना सदर महेंद्रगढ़ में एनडीपीएस एक्ट के तहत मामला दर्ज कर कार्रवाई शुरू कर दी।
सीएम और पीएम विंडो पर शिकायत करने का नहीं रहा कोई लाभ
-6 महीने से कई बार शिकायत की, परिणाम शून्य
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कनीना की आवाज। एक वक्त था जब सीएम और पीएम विंडो पर शिकायत करने पर समस्या का समाधान हो जाता था किंतु अब तो इन समस्याओं का समाधान सीएम और पीएम विंडो से नहीं होता। न कोई अन्य समाधान बताया जा रहा है। सबसे बड़ी समस्या उन कर्मचारियों की है जो जिनकी इनकम अधिक दर्शा रखी है। ऐसे में उनकी इनकम परिवार पहचान पत्र में चढ़ा दी लेकिन अब जब वो सेवानिवृत्त हुए लंबा समय हो गया पेंशन या तो है ही नहीं, है भी तो मामूली सी फिर भी उनकी इनकम कम नहीं की जाती ।ऐसे सेवानिवृत्त कर्मचारी और अन्य लोग न केवल विभिन्न कार्यालय के चक्कर लगा रहे हैं अपितु सीएम और पीएम विंडो में भी शिकायत कर रहे हैं परंतु परिणाम कुछ भी नहीं आ रहा है। जब से आचार संहिता लगी थी उससे कुछ दिनों पहले तक बताया जाता है कि इनकम दुरुस्त कर दी जाती थी लेकिन जब से आचार संहिता लगी तब से लेकर आज तक किसी की इनकम दुरुस्त नहीं की गई। अब जब सरकार बन चुकी है और आचार संहिता भी समाप्त हो गई है तो इस पर कोई अधिकारी गौर नहीं कर रहा है। आए दिन कर्मचारी उच्च अधिकारियों संपर्क कर रहे हैं।
और तो और परिवार पहचान पत्र साइट पर सुधार की रिक्वेस्ट डालते हैं और रद्द कर दी जाती है। सीएससी सेंटरों पर से सुधार की रिक्वेस्ट डाली जाती है तो भी परिणाम शून्य रहता है। सबसे बड़ी कमी है कि लिखित शिकायत करने पर भी कोई जवाब नहीं आता। खुद होशियार सिंह ने इस संबंध में तीन बार शिकायत कर दी और उनका कोई जवाब नहीं आया। सीएम और पीएम विंडो में शिकायत लगाई कोई समाधान नहीं निकला। एडीसी कार्यालय से आए हुए कर्मचारियों से बार-बार निवेदन किया कोई निष्कर्ष नहीं निकला। यहां तक की सीएससी सेंटरों पर पांच बार शिकायत सुधार की डाली, सभी रद्द कर दी गई। अब तो लगता है कि कोई समाधान निकालना मुश्किल हैं। लोग, पूर्व कर्मचारी परेशान घूम रहे हैं सरकार को चाहिए इस प्रकार की शिकायतों पर गौर हो।
कनीना मंडी में छठे दिन में 200 किसानों से खरीदा 4761 क्विंटल बाजरा
-आवक घटने लगी
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कनीना की आवाज। हरियाणा स्टेट वेयरहाउस के बाद विगत छह दिनों से हैफेड द्वारा बाजरे की खरीद की जारी है। पांचवें दिन नई अनाज मंडी कनीना स्थित चेलावास में 200 किसानों से खरीदा 4761 क्विंटल बाजरा खरीदा गया। इस प्रकार कुल 2135 किसानों से 52552 क्विंटल बाजरा खरीद लिया है। 37000 बैग बाजरे का उठान भी किया जा चुका है। विस्तृत जानकारी देते हुए हैफेड के भरपूर सिंह ने बताया कि अब हैफेड द्वारा ही बाजरे की खरीद जारी है। मंगलवार को 5 हजार बैग बाजरे का उठान किया गया। भरपूर सिंह ने कहा कि किसान अपनी बाजरे की पैदावार को अच्छी प्रकार सुखाकर लाये ताकि बेचने में किसी प्रकार की कोई समस्या आड़े न आए। उन्होंने कहा कि हैफेड किसानों की बाजरे की फसल खरीदने के लिए तैयार है।
ग्रामीण क्षेत्रों में सिर चढ़कर बोलता है अहोई अष्टमी का पर्व
--चांदी की बनवाई जाती है अहोई
- माता पार्वती का ही रूप होती है अहोई,व्रत 24 अक्टूबर को
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कनीना की आवाज। कनीना के ग्रामीण क्षेत्रों में अहोई अष्टमी का त्योहार दिवाली से पहले मनाया जाता है। त्योहार दिवाली से एक सप्ताह पहले मनाया जाता है जो ग्रामीण क्षेत्रों में सिर चढ़कर बोलता है। प्रत्येक घर में चांदी की बनी हुई अहोई होती है इसे माता पार्वती का ही रूप कहा जाता है। साथ में जितने परिवार के सदस्य होते हैं उतने चांदी के मनके भी धागों में पिरोये जाते हैं। सबसे पहले स्याऊ माता की फोटो चांदी की लगाई जाती है।
जिस घर में संतान दुख दर्द झेलती रही हो उस घर में तो जरूर नियम अनुसार स्याऊ का पूजन किया जाता है। माना जाता है कि माता सभी के दुख दर्द दूर कर देती है। स्याऊ की दीपावली पर्व से पहले पूजा की जाती है, कहानी सुनाने का प्रावधान है। ग्रामीण क्षेत्रों में इसे कमोई का व्रत भी कहती है। दिन भर व्रत किया जाता है और रात को यह व्रत पूर्ण किया जाता है।
अहोई पूजन का क्या अर्थ है-
ग्रामीण क्षेत्र के लोग बताते हैं की अहोई का अर्थ है माता पार्वती। माता पार्वती सभी का पालन पोषण करती है। जिस प्रकार शिव भोले सभी का पालन पोषण करते हैं उसी प्रकार माता पार्वती को सभी परिवारों के बच्चे बहुत पसंद है और उनका पालन पोषण करती है। यही कारण है कि बच्चों के पालन पोषण के लिए, अच्छी शिक्षा दिलवाने के लिए महिलाएं दिनभर का व्रत करती है रात को व्रत पूर्ण करती हैं। अहोई हर घर में टंगी होती है जिसे आमतौर पर स्याऊ माता कहा जाता हैं। यह एक परिवार में एक बार ही बनवाई जाती है जो चांदी की बनी होती है। परिवार के जितने सदस्य होते हैं उतने ही स्याऊ माता के मनके लगे होते जो सभी चांदी के बनाए जाते हैं। परिवार में जब कोई सदस्य बढ़ जाता है तो उतने ही मनके और बढ़ा दिए जाते हैं। एक वक्त था जब संयुक्त परिवार होते थे उस समय स्याऊ माता बहुत लंबी चौड़ी होती थी परंतु धीरे-धीरे हम दो हमारे दो पर सिमट कर परिवार रह गए। इसलिए मनके अधिकतम चार ही पाए जाते हैं। अहोई अष्टमी के दिन पूजा करने वाली महिलाएं इस माला को अपने गले में पहनती और विधि विधान से पूजा करती है। पूजा करने के बाद फिर से उसी स्थान पर रख दिया जाता है जहां इसे से उठाया है।
ग्रामीण महिला संतरा, शकुंतला, नीलम देवी आदि ने बताया कि ग्रामीण क्षेत्रों में स्याऊ माता का व्रत एक प्रमुख पर्व है। इस दिन हर घर में यह पर्व मनाया जाता है, व्रत रखा जाता है, पूजा की जाती है और फिर स्याऊ माता को यथा स्थान पर रख दिया जाता है। स्याऊ माता सभी के हितकारी और मंगलकारी होती है। यदि परिवार का कोई सदस्य अलग हो जाता है तो उसकी स्याऊ माता अलग से बनवानी पड़ती है। जिसमें एक चौकोर आकृति की मां पार्वती की प्रतिमा लगी होती है। वही उसके ऊपर दो भागों में मनके लगे होते हैं या मनको को गिनकर पता लगाया जा सकता है कि इस परिवार में कितने सदस्य होंगे।
अक्सर इस दिन एक छोटी मटकी ली जाती है। जो इस दिन पूजा के काम में लाई जाती है। बाद में यह मटकी घर में प्रयोग की जाती है। इसमें पानी आदि प्रयोग करते हैं। पाना जाता है इसका पानी स्वास्थ्य के लिए बेहतर होता है। ग्रामीण क्षेत्रों में पुरानी समय इस पर्व के प्रति लगाव है। अपने पुत्र और बच्चों की दीर्घायु की कामना लेकर के माता पार्वती की पूजा की जाती है। वैसे तो स्याऊ माता के साथ-साथ बच्चों की चित्र बनवाने का भी प्रावधान है किंतु ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक ध्यान मनके बनवाने पर दिया जाता है। इस दिन अष्टमी का व्रत कहा जाता है और पूजा करने के अलावा कहानी सुनाने का प्रावधान है।
कैसे की जाती इसकी पूजा-
स्वामी घनश्याम गिरि महाराज भक्ति मन्दिर आश्रम बताते हैं कि इसकी पूजा करने के लिए एक मटकी में पानी भर लिया जाता है। स्याऊ माता को साथ रखा जाता है। रोली, दूध, चावल आदि से माता की विधि विधान से पूजा की जाती है। यह कलश का पानी पवित्र माना जाता है। ग्रामीण क्षेत्रों में इस दिन की खीर बनाई जाती है और गरीबों को खिलाई जाती है। अलग-अलग पकवान बनाने का रिवाज है।
कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष अष्टमी को अहोई का व्रत करते हैं। जिस वार की बड़ी दीवाली होती है उसी वार को अहोई का व्रत करते हैं । पहले दीवार पर अहोई रंगों से बनाते है। फिर दो घड़े,मोली बांधकर रोली से स्वस्तिक चिह्न बनाकर, जल भरकर अहोई के सामने रखते हैं। दोनों घड़ों पर पांच-पांच बतासे या पूड़े व पांच पांच सिंघाड़े रखते हैं। अहोई के दोनों सिरों पर आटे से नाल की माला लगाते हैं। बीच में आटे से ही एक रुपया भी चिपका देते हैं। दोनों घड़ों/दोघट को चांदी की माला स्याऊ मनकों वाली पहनाते हैं । दोघट के आगे गेहूं की ढेरी लगाते हैं। ढेरी पर एक तेल का दीपक जगाते हैं। एक लोटा जल भरकर रखते हैं। मोली बांधकर स्वस्तिक चिह्न करके, अपने माथे पर भी टिक्की लगाते हैं । फिर अहोई के आगे बैठकर हाथ में गेहूं के सात दाने लेकर और कहानी सुनकर गेहूं से धोक लगाते हैं । फिर विनायक बाबा की कहानी भी कहते हैं। तारे देखकर तारों को अर्घ देते हैं। चौदह पूड़े या गुलगुले या गुलाबजामुन, फल, रुपये रखकर बायना निकालते हैं। पानी गमले में देते हैं। फिर व्रत खोलते हैं। बायना/अछूता चावल, चीनी का अपनी सास को दिया जाता है या किसी अन्य बुजुर्ग को दिया जाता है।
फोटो कैप्शन 08: स्याऊ माता की तस्वीर
साथ में स्वामी घनश्याम गिरि
प्रदूषण रहित दीवाली मनाने का लिया संकल्प
-प्रदूषण से हो जाता है जीना हराम
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कनीना की आवाज। लोगों में धीरे धीरे आई जागरूकता के चलते इस बार प्रदूषण रहित दीवाली मनाने के लिए युवा एवं बुजुर्ग आगे आने लगे हैं। दीवाली के दिन दीये जलाकर, घर की मिठाई खाकर मनाएंगे। दीवाली को हंसी खुशी, भाईचारा एवं एकता के साथ एक दूसरे को मिठाई बांटकर मनाना चाहते हैं। इस बार दीवाली पर युवा एवं बुजुर्ग जागृत हैं और वे प्रदूषण के विषय में जानते हैं। मैत्रीभाव से मिलकर दीवाली मनाने का निर्णय लेने वालों की होड़ लगी हुई है। दीये जलाने व शहीदों की याद में एक एक दीया जलाने का निर्णय लिया है।
पटाखों से भारी प्रदूषण होता है जहां विगत वर्षों कोर्ट के आदेशों के चलते राहत मिली थी जिससे भी लोग जागरूक हुए हैं। यहां तक कि सांस लेना भी मुश्किल हो जाता है। ऐसे में वे पेड़ पौधे लगाकर तथा लोगों को सादगीपूर्ण दीवाली मनाने को प्रेरित करेंगे। प्रदूषण बहुत खल रहा है।
--समाजसेवी विजयपाल
प्रसिद्ध पर्व पर प्रदूषण क्यों करें? हवन आदि करके वातावरण को शुद्ध रखने का प्रयास किया जाएगा। लोगों को प्रेरणा देकर पटाखे न चलाने या बहुत कम चलाने पर बल दिया जाए। गले मिलकर मिठाई का आदान प्रदान करके ही दीवाली का आनंद आएगा। खुशियों का त्योहार है इसमें नाखुशी कैसे बर्दाश्त की जाए?
--राजेश कुमार, लूखी
प्रेम, भाईचारा, एकता का पर्व दीवाली है। इस पर्व पर प्रदूषण करके बुजुर्ग एवं रोगियों के लिए सांस लेने की तकलीफ पैदा हो जाती हैं। ऐसे में अगर प्रदूषणरहित दीवाली सबके मन को लुभाएगी। मिठाइयां बांटकर दीवाली मनाने पर बल दिया जाना चाहिए। मिठाई भी घर की बनी हुई होनी चाहिए। बाजार की मिठाई लेन देन में प्रयोग नहीं करेंगे।
-निर्मल कुमार, नांगल हरनाथ
देसी घी के दीये में डालकर दीपावली के दिन बुजुर्ग पुराने समय से जलाते आ रहे हैं। बुजुर्ग बहुत बुद्धिमान थे। पर्व पर तेल या मोमबत्ती जलाना अशुभ मानते थे। अब उन्हीं के कदमों पर चलकर वे इस बार दीवाली को देसी घी के दीयों से मनाएंगे और दूसरों को भी प्रेरित करेंगे। घी के दीये जलाने से वातावरण शुद्ध होता है।
---जसवंत सिंह समाजसेवी कनीना
देसी घी के दीये जलाकर हिंदुओं के महान पर्व को मनाना अति लाभदायक एवं फलदायक होता है। देसी घी के दीये जलाने प्रदूषण नामक बीमारी से बचा जा सकता है। वैसे भी घरों में पशुधन मिलता है और देसी घी भी आसानी से मिल जाता हे। ऐसे में इस पर्व पर देसी घी के दीये ही जलाएंगे।
-डा मुंशीराम, नांगल मोहनपुर
न केवल स्वयं देसी घी के दीये जलाएंगे अपितु दूसरों को भी इस बार देसी घी के ही दीये जलाने के लिए प्रेरित करेंगे। उनके अनुसार देसी घी के दीये जलाना एक हवन या यज्ञ के बराबर होता है। पर्यावरण का प्रदूषण दूर होता है तथा सुगंधित वातावरण बन जाता है। दीये का प्रकाश जहां तक जाता है वहां तक हानिकारक कीट नष्ट हो जाते हैं।
---महेश बोहरा
फोटो कैप्शन: राजेश कुमार, विजयपाल, निर्मल कुमार, महेश कुमार, जसवंत सिंह, डा मुंशीराम।
दीयों का स्थान ले लिया मोमबत्तियों ने
-तेल, घी एवं बाती महंगी हुई
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कनीना की आवाज। दीपावली पर खुशियों को व्यक्त करने के लिए परम्परागत रूप से जलाए जाने वाले दीयों का स्थान मोमबत्तियों ने ले लिया है। एक जाति विशेष कुम्हार जाति, के लोगों द्वारा दीये बनाकर अपनी रोटी रोजी कमाने वालों का तो मानो धंधा ही चौपट हो गया है। सस्ती, सुलभ तथा अविलंब प्रकाशमान होने वाली मोमबत्तियां दीपावली पर भारी संख्या में बिकती हैं।
दीपावली के आगमन से करीब एक माह पूर्व ही कुम्हार जाति के लोग मिट्टïी लाकर दीपक बनाते हैं तत्पश्चात उन्हें पकाकर घर-घर बेचते हैं। एक जमाना था जब दीपावली के शुभ दिन पर घी के दीये जलाते थे किंतु अब दीयों के प्रति रुझान भी बदल गया है। वैसे तो माना जाता हे कि श्रीराम के 14 वर्षों का वनवास पूरा करके, रावण पर विजय पाकर जब सीता सहित राम, लक्ष्मण व हनुमान अयोध्या लौटे थे तो लोगों ने खुशी के मारे घरों में घी के दीये जलाए थे और तत्पश्चात प्रति वर्ष उसी याद को दिल में संजोकर प्रतिवर्ष घी के दीये जलाते आ रहे हैं। समय के साथ-साथ दीये जलाने का रिवाज भी बदल गया है। अब तो लोग तेल के दीये भी नहीं जलाते अपितु मोमबत्ती जलाकर ही खुशी व्यक्त करते हैं। कुम्हार जाति के लोगों ने बताया कि एक वक्त था जब दीपावली के दिन इतने दीये बिकते थे कि उनके परिवार का गुजर बसर आसानी से हो जाता था किंतु अब तो रोटी रोजी के भी लाले पड़ गए हैं। अब तो दीये बनाकर पकाने का काम भी धीमा पड़ गया है और यहां तक कि कुछ कुम्हारों ने तो अपना यह धंधा ही बदल लिया है या फिर दीये खरीदकर लाते हैं और उन्हें घरों में बेचते हैं। उन्होंने खेद जताया कि अब तो लोग मोमबत्ती से ही गुजारा चला लेते हैं।
उधर दीपावली से कई दिन पूर्व ही दुकानों पर मोमबत्ती उपलब्ध हो जाती हैं। ये सस्ती भी मिलती हे ऐसे में लोग परम्परागत दीयों को भूला बैठे हैं। गृहणियों ने बताया कि दीयों को देशी घी से जला पाना कठिन हो गया है क्योंकि देशी घी का भाव भी 1000 रुपये से अधिक तक पहुंच गया है वहीं रुई की बाती बनानी पड़ती हैं और दीपकों को पानी में भीगोकर रखना पड़ता है ताकि वे घी कम चूसे। बाद में तेल के दीये जलाने की प्रथा चली क्योंकि तेल का भाव भी 150 रुपये किलो से कम नहीं होता है ऐसे में तेल के दीये जलाना भी आसान काम नहीं है। आदमी के आलसी होने के कारण तथा मेहनत से बचने के लिए मोमबत्ती को ही सुविधाजनक समझ लिया है और दीपावली के दिन मोमबत्तियां ही जलाई जा रही है। उधर मोमबत्ती महज एक रुपये से दस रुपये तक चल रही है। अकेलेा दीया 5 रुपये का पड़ रहा है।
वैसे तो भगवान् श्रीराम के अयोध्या लौटने के बाद देशी घी के दीये जलाने का सिलसिला शुरू हुआ था किंतु हालात ये बन गए हैं कि अब मोमबत्ती जलाकर ही काम चलाया जाता है। दीये जाने से स्वास्थ्य पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है जबकि मोमबत्ती जलाने से स्वास्थ्य पर कुप्रभाव पड़ रही है। वैसे भी मोमबत्तियों को जलाने के धंधे ने कुम्हारों का व्यवसाय छीन लिया है। आगे आने वाले समय में मोमबत्तियों का स्थान कौन लेता है वक्त ही बताएगा।
समय के साथ-साथ दिवाली मनाने के तौर तरीकों में भी बदलाव आ रहा है। यह सब विज्ञान का चमत्कार ही कहिए क्योंकि विज्ञान के कारण ही जहां पटाखे चलाने का रिवाज चला आ रहा है वहीं दीये जलाने के रिवाज में परिवर्तन भी आ गया है। कभी घी के दीये जलाए तांते थे फिर तेल के दीये जलाए गए। अब मोमबत्ती ही जलाकर खुशियां व्यक्त की जाती हैं यहां तक की कुछ लोग तो मोमबत्ती के स्थान पर छोटे-छोटे बल्ब जलाकर ही काम चलाते हैं।
दीपावली के दृष्टिगत बाजार में सजे हैं विभिन्न रूपों और रंगों के दीये --
दीपावली के इस पर्व पर जहां अधिकांश चाइनीज आइटम बाजार से गायब हैं। विगत वर्षों से सरकार भी इस मामले को लेकर प्रयासरत थी जिसके चलते इस सराहनीय कदम बताया जा रहा है, वहीं बाजार में इस बार अलग-अलग डिजाइन के दीयों की बहार आ गई है। विभिन्न रंग और रूप और देखने में मन को मोहने वाले दीये नजर आते हैं।
महेंद्र एवं जितेंद्र नामक व्यक्ति ने बताया कि ये दीये मिट्टी के बने हैं किंतु इनको शंख, गुलाब के फूल में दीये तथा विभिन्न डिजाइन रंगो एवं आकार के दीये बनाए गए हैं। जिनमें विभिन्न रंग लगाकर संजोकर इनको और भी शानदार बनाया गया है जिसके चलते ये मन को मोह लेते हैं। बाजार में इनकी कीमत बड़े दीये एक सौ रुपये तक जबकि छोटे दिए पांच रुपये तक मिल रहे हैं।
फोटो कैप्शन 05: दीयों की दुकानों पर बहार
स्पेशल कैम्पेन 4.0 के तहत पीएमश्री स्कूल में की साफ सफाई
-एक पेड़ मां के नाम के तहत पौधारोपण किया
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कनीना की आवाज। भारत सरकार के विद्यालय शिक्षा व साक्षरता विभाग की ओर से जारी दिशा निर्देशानुसार पीएम श्री जवाहर नवोदय स्कूल करीरा महेंद्रगढ़ में 31 अक्टूबर तक स्पेशल कैम्पेन 4 कार्यक्रम चलाया जा रहा है। विद्यालय के प्राचार्य राजीव कुमार सक्सेना ने बताया कि स्पेशल कैम्पेन 4 के तहत विभिन्न प्रकार की गतिविधियां आयोजित की जा रही है। इसमें एक पेड़ मां के नाम गतिविधि भी शामिल है। इस गतिविधि के तहत विद्यालय प्रांगण में विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधे जैसे काष्ठ के पेड़, फलदार पौधे व सजावटी पौधे लगाए गए। उन्होंने बताया कि इसके अलावा अन्य गतिविधि के तहत विद्यालय में सफाई अभियान चलाया गया जिसमें विधालय प्रांगण में भोजन कक्ष के पास का क्षेत्र, खेल मैदान तथा विद्यार्थियों के आवासों के आस-पास सफाई की। इन गतिविधियों में विद्यालय के शिक्षक स्टाफ, विद्यार्थियों व एनसीसी के प्रभारी गोविन्द नारायण सैन, स्काउट गाइड के प्रभारी विनोद कुमार, इको क्लब की प्रभारी सरला यादव, योगेश शर्मा, योगेन्द्र सिंह व अन्य स्टाफ सदस्यों द्वारा योगदान दिया जा रहा है। विद्यालय के प्राचार्य राजीव कुमार सक्सेना व उप-प्राचार्य धर्मेन्द्र आर्य ने इस कार्यक्रम के सफल संचालन के लिए सभी को धन्यवाद दिया।
फोटो कैप्शन 04:साफ-सफाई करते विद्यार्थी।
विश्व पोलियो दिवस-24 अक्टूबर
करीब शत प्रतिशत काबू पा लिया है पोलियो पर- डा. जितेंद्र
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कनीना की आवाज। दुनिया भर में जिस दर से पोलियों पर काबू पाने के प्रयास किये हैं उससे पोलियो का लगभग खात्मा हो गया है। वर्ष 1980 के बाद शत प्रतिशत के करीब पोलियो पर काबू पा लिया है। पोलियो के केस 1980 से पहले मिल सकते हैं किंतु वर्तमान में बाद 1980 के बाद जिला महेंद्रगढ़ से शायद ही कोई मामला हो। पोलियो टीकाकरण और पोलियो उन्मूलन के लिए जागरूकता बढ़ाई गई है जिसके कारण इस बीमारी के खिलाफ लड़ाई लड़ी गई और पूर्णतया काबू पा लिया है।
विश्व पोलियो दिवस जोनास साल्क की जयंती के रूप में मनाया जाता है। वो पहले व्यक्ति थे जिन्होंने पोलियो की वैक्सीन विकसित की थी। इस बीमारी के खिलाफ अभियान की शुरुआत रोटरी इंटरनेशनल द्वारा की गई थी जो अंतर्राष्ट्रीय सेवा संगठन ने दुनिया भर में कार्यक्रम चलाए गए। पोलियो की खुराक पिलाई गई जिसके कारण पोलियो पर काबू पा लिया है।
*** पोलियो एक विषाणु जनित रोग है जो एंटरोवायरल से फैलता है। यह विष्णु तांत्रिक संक्रामक बीमारी के रूप में परिभाषित होता है जो मुख्य रूप से छोटे बच्चों को अधिक प्रभावित करता है। जो अपंग बना देता है। यह घातक बीमारी जो तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करती है,यह दूषित भोजन और पानी के कारण फैलती है। तत्पश्चात रोगाणु तंत्रिका तंत्र तक चला जाता है। इस बीमारी में कुछ लोगों में बुखार, थकान, मचली, दर्द, नाक बंद होना, गले में खराश, खांसी, गर्दन पीठ में अकडऩ, हाथ पैरों में दर्द, कुछ लक्षण दिखाई देते हैं। यह रोगाणु मांसपेशियों को पूर्णत नष्ट कर देता है उसके कारण इंसान अपंग बन जाता है। केवल टीकाकरण से इसका इलाज संभव है। पालियो का टीका बच्चों के शरीर में पोलियो वायरस से लडऩे की क्षमता बढ़ाता है। इसकी आईपीवी और ओपीवी दोनों प्रकार की दवाई दी जाती है जो मुख के जरिए पिलाई जाती है। आजकल पोलियो की खुराक को टीकों में ही शामिल कर लिया गया है। डीपीटी का टीका लगाया जाता है जो इस रोग से बचाने में मददगार साबित होता है। मौखिक मौखिक रूप से दी जाने वाली दवा की खुराक 6 सप्ताह, 10 सप्ताह, 14 सप्ताह और बूस्टर 26, 16 से 24 महीने में दी जाती है।
पोलियो को समाप्त करने के लिए पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम चलाए गए जिनके कारण पोलियो पर काबू पा लिया है। अभी समय-समय पर सख्त उपाय और टीकाकरण की आवश्यकता है। उन्होंने बताया कि इस रोग से बचने का स्वच्छता एक तरीका है, जितना स्वच्छता पर ध्यान दिया जाए उतना ही रोग कम फैलेगा।
-- डा. जितेंद्र मोरवाल उप-नागरिक अस्पताल कनीना
सरकार बीसीजी, रोटा, आईपीवी आदि की तक लगती है या खुराक पिलाई जाती है। रोटा की 5 बूंद पिलाई जाती है जो टेटनस रोग पर काबू पाती है। वही पीसीबी पांच बीमारियों से बचाने वाला एक टीका है वही आईपीवी जिसे एंटी पोलियो वैक्सीन कहा जाता है। इसी प्रकार सरकार अनेक टीके लगाती है। जब बच्चा 5, 10 और 16 सप्ताह का होता है बीसीजी का टीका, पोलियो की खुराक पिलाई जाती है। डेढ़, ढाई और साढ़े तीन माह बाद बूस्टर डोज दी जाती है। बचपन में ही टीके लगाकर इस रोग पर काबू पाया जा सकता है।
कनीना उप नागरिक अस्पताल में पोलियो का कोई मरीज वर्तमान में नहीं आया है। 30 सालों से अधिक पहले कोई पोलियो का मरीज आते थे किंतु आप सरकार ने विभिन्न टीके एवं खुराक पोलियो से बचने की पिलाई जाती हैं।
-- शीशराम हेल्थ इंस्पेक्टर
फोटो कैप्शन 07: शीशराम एचआई एवं डाक्टर जितेंद्र मोरवाल।
कनीना उप-नागरिक अस्पताल को मिले प्रथम परामर्श इकाई का दर्जा
-जल्द ही पदाधिकारी मिलेंगे स्वास्थ्य मंत्री से
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कनीना की आवाज। कनीना एवं आस पास के करीब 50 हजार लोगों के लिए चिकित्सा सुविधा हेतु कनीना में बनाई गई उप- नागरिक अस्पताल चाहे मूलभूत सुविधाओं से वंचित है किंतु इसे प्रथम परामर्श इकाई एफआरयू का दर्जा देने की मांग की गई है। इस संबंध में कनीना की सेवा भारती हरियाणा प्रदेश, शाखा कनीना ने मुख्यमंत्री सहित स्वास्थ्य मंत्री हरियाणा सरकार को भी विगत दिनों पत्र भेजा था। एक बार फिर से पत्र भज रहे हैं। इसके साथ ही कनीना के उप नागरिक अस्पताल में डाक्टरों के क्वाटर बनाये जाये ताकि वो यहां निवास कार सके। जब सभी स्टाफ सदस्यों के लिए क्वाटर होंगे तो वे यहां निवास कर मरीजों को बेहतर सेवा दे पाएंगे।
शाखा पदाधिकारियों का कहना है कि कनीना की मूलभूत आवश्यक चिकित्सा सुविधाएं स्वास्थ्य संबंधी समस्या है किंतु कनीना अप नागरिक अस्पताल में कोई सुविधा नहीं है। ना कोई बड़ी मशीन उपलब्ध है और ना कोई एमडी,एमएस या गाइनी डाक्टर उपलब्ध है। अस्पताल में सुविधा होने के कारण क्षेत्र वासियों को समय रहते इलाज न मिलने कारण अप्रिय घटना घट रही हैं। ऐसे में इसे प्रथम परामर्श इकाई फस्र्ट रेफरल यूनिट घोषित करने की मांग की गई है। अब तो जल्द हीपदाधिकारी अटेली विधायक एवं स्वास्थ्य मंत्री आरती सिंह राव से मिलेंगे और इस बात को प्रमुखता से उठाएंगे ताकि क्षेत्र का हित हो सके।
क्या कहते हैं पदाधिकारी --
जिला महेंद्रगढ़ की सबसे पुरानी प्रमुख मंडी कनीना है जो एक प्रमुख व्यापार का केंद्र बना हुआ है। जिसके तहत 53 गांव शामिल किए गए हैं। लोगों का प्रतिदिन आवागमन रहता है। वर्तमान में कनीना अस्पताल में 400 मरीजों की प्रतिदिन ओपीडी लगती है परंतु चिकित्सा सुविधा नहीं होने कारण उचित इलाज नहीं मिलता और लोगों को मजबूरन रेवाड़ी या नारनौल जाना पड़ता है। सचिवालय बनने के बाद यह संख्या और भी अधिक बढऩे की संभावना है। ऐसे में स्वास्थ्य संबंधित समस्या का सही निदान तभी संभव हो पाएगा जब इस प्रथम परामर्श इकाई का दर्जा मिल जाएगा। साथ में इस हरियाणा के बजट में स्टाफ क्वाटर भी बनाये जाए।
----सुरेश शर्मा अध्यक्ष, सेवा भारती हरियाणा प्रदेश शाखा कनीना
कनीना क्षेत्र विशेष कर चिकित्सा सुविधा में सदा पिछड़ता रहा है जबकि गरीब, मजदूर, किसान एवं पिछड़ा समाज से यह क्षेत्र भरा हुआ है जो इलाज के लिए दूर दराज जाने में सक्षम नजर नहीं आते। मजबूरीवश वे कनीना के अस्पताल आते जाते है किंतु यहां किसी प्रकार की कोई चिकित्सा संबंधित सुविधा नहीं मिल पाती जिसके कारण मरीजों के साथ अप्रिय घटना स्वाभाविक है। कनीना के उप नागरिक अस्पताल में भवन की कोई कमी नहीं है, बेहतरीन भवन बना हुआ है किंतु कमी है तो डॉक्टरों की। ऐसे में इसे एफआरयू घोषित कर दिया जाए तो क्षेत्र का के लोगों को लाभ मिल सकेगा। उन्होंने उप नागरिक अस्पताल के समस्त स्टाफ के लिए क्वाटर बनाने की मांग भी की है।
...योगेश अग्रवाल सेवा भारती, हरियाणा प्रदेश शाखा कनीना
क्षेत्र के कई हजार लोगों के हित की भावना को देखते हुए कनीना के उप नागरिक अस्पताल को अविलंब एफआरयू की सुविधा देनी चाहिए। चूंकि यहां गरीब तबके के लोग बड़ी आशा के साथ यहां आते हैं और सुविधा न मिलने के कारण निजी अस्पतालों में लुटते पिटते रहते हैं। जब सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं तो उनका लाभ क्षेत्र के लोगों को दिया जाना चाहिए।
--जगदीश आचार्य जिला अध्यक्ष, सेवा भारती हरियाणा
फोटो कैप्शन 01: कनीना का उप-नागरिक अस्पताल
03: साथ में योगेश अग्रवाल,जगदीश आचार्य तथा सुरेश शर्मा
लड़की गुम, गुमशुदगी का मामला दर्ज
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कनीना की आवाज। कनीना उप-मंडल के एक गांव से 20 वर्षीय लड़की घर से कहीं चली गई। उसके पिता ने कनीना पुलिस में गुमशुदगी का मामला दर्ज करवाया है। मामला दर्ज करवाते हुए पीडि़त ने कहा है कि उनकी पुत्री दस जमा दो पास है तथा 21 अक्टूबर को शाम 6 बजे से घर से बिना बताए कहीं चली गई। उन्होंने अपनी लड़की को तलाश करने की मां की है। कनीना पुलिस ने गुमशुदगी का मामला दर्ज कर लिया है।
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