दाल रोटी गरीबों का नहीं प्यारे अमीरों का है खाना
-आज के दिन दाल बनाने की सभी कच्ची सामग्री महंगी
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कनीना की आवाज। एक वक्त था जब दाल रोटी गरीब व्यक्ति प्रेम से खाते थे। जब भी रोटी रोजी की कोई चर्चा चलती थी तो यही शब्द कहते सुना जाता था कि दाल रोटी का जुगाड़ हो रहा है। दाल रोटी कभी होटल में अधिक प्रसिद्ध होती थी। दाल मुफ्त में मिलती थी रोटी के पैसे देने पड़ते थे। समय-समय की बात है आज के दिन दाल रोटी कोई गरीब नहीं खा सकता। अगर खाता है तो वह बहुत अमीर है क्योंकि दाल बनाने के लिए टमाटर सो रुपये किलो से कम नहीं है, प्याज 70 रुपये किलो से कम नहीं है, लहसुन 350 रुपये किलो से कम नहीं है, तेल 150 रुपये लीटर पहुंच गया है, वही दाल एक सौ रुपये से 140 रुपये किलो चल रही है। यही नहीं दाल में अगर देशी घी डाल दे तो जायका तो बदल जाएगा किंतु एक हजार रुपये किलो से कम नहीं है। और भी कुछ आइटम डालते हैं तो वो भी सस्ते नहीं हैं। ऐसे में दाल बनाना बहुत कठिन कार्य हो गया है। अब तो फिर से चटनी रोटी का युग आ गया है।
एक वक्त था जब अकसर ग्रामीण क्षेत्रों में चटनी, दूध और रोटी खाई जाती थी जबकि सुबह के वक्त चटनी, छाछ एवं रोटी खाई जाती थी और वो बड़े मजे के साथ खाते थे। परंतु आजकल न तो घरों में दूध रहा और न ही छाछ रही, बहुत कम लोग हैं जिनके घरों में दूध एवं छाछ मिलेगी, वो खुशनसीब हैं। देशी घी के भाव 1000 रुपये किलो से अधिक पहुंच गए हैं। ऐसे में दूध,घी एवं छाछ अब दुर्लभ हो गए हैं। एक वक्त था जब कहावत थी- देसा में देस हरियाणा जित दूध-दही का खाना। अभी कहावत भी धीरे-धीरे धूमिल होती जा रही है। न तो छाछ रही और न दूध रहा। अब तो सब्जियों के भाव आसमान छू रहे हैं। ऐसे में लोग सब्जी खाने से परहेज करने लगे हैं। बाजार में कोई भी सब्जी आज के दिन सस्ती नहीं कहीं जा सकती, अभी कुछ समय लगेगा फिर पर्याप्त मात्रा में सर्दियों की सब्जी पैदा हो जाएगी और फिर से ये सब्जियां गरीब इंसान को नसीब होंगी। अभी तक तापमान अधिक होने के कारण सब्जियां पैदा नहीं हो रही है। घीया एवं तोरई भी अब समाप्त होने के कगार पर हैं।
द्वादशी पर चेलावास में दादा ठाकुर महाराज के मंदिर प्रांगण में हुआ हवन यज्ञ
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कनीना की आवाज। उपमंडल के गांव चेलावास में आराध्य देव दादा ठाकुर महाराज के मंदिर प्रांगण में चांदनी द्वादशी अवसर पर विश्व कल्याण हेतु हवन यज्ञ का आयोजन किया गया। मंदिर कमेटी के प्रधान विनोद ने जानकारी देते बताया कि मुख्य यजमान महेंद्र सिंह धर्मपत्नी इंद्रावती देवी रहे। आचार्य पवन शर्मा ने हवन यज्ञ संपूर्ण करवाया। महेंद्र सिंह ने जानकारी देते हुए बताया कि गांव में चांदनी द्वादशी को यह हवन यज्ञ किया जाता है। ठाकुर जी महाराज के कारण गांव में आज तक कोई अप्राकृतिक घटना नहीं घटी है उन्हीं कर उपलक्ष में यह हवन यज्ञ किया जाता है। इस दौरान खीर चूरमा का भोग लगाया जाता है। गांव में कोई भी कार्य होता है तो सबसे पहले ठाकुर जी महाराज के मंदिर में धोक लगाकर उसे कार्य का शुभारंभ किया जाता है। इस दौरान उप प्रधान सुनील कुमार,लाल सिंह भगत जी, संदीप, कपूर सिंह, विनोद तुंडवाल, रणबीर सिंह, मढ़ती देवी, कमला देवी , मुन्नी देवी, मीनाक्षी पंच, संतरा देवी, ऋतिक, पूर्व पंच राजेश, कृष्ण कुमार, कुलदीप, अनिल कुमार सहित अन्य मौजूद रहे।
फोटो कैप्शन 05: हवन यज्ञ करते हुए ग्रामीण।
आधार कार्ड वाले बच्चों को ही मिलेगा राशन -मनीष यादव
-ट्रेनिंग में स्पष्ट कर दिया गया था
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कनीना की आवाज। सभी कार्यों को समय पर पूरा करना तथा राशन सभी पात्र बच्चों को ही मिलना चाहिए। ये विचार महिला एवं बाल विकास विभाग की सुपरवाइजर मनीष यादव ने अपने सर्किल की सभी हेल्पर व वर्कर को उन्हाणी केंद्र पर एक बैठक के दौरान संबोधित करते हुए व्यक्त किये। उन्होंने कहा कि पिछली 8 अक्टूबर को विभाग द्वारा हमें एक दिन की ट्रेनिंग देकर बताया गया था कि राशन लेने वाले पात्र बच्चों को सही समय पर राशन दिया जाए तथा राशन देते वक्त उनकी सही पहचान की जाए ताकि पात्र बच्चों को ही उनका हक मिल सके। राशन उन्हीं बच्चों को दिया जाए जिनके आधार कार्ड है तथा आधार कार्ड आनलाइन हैं। उन्होंने बताया कि मेरे सर्कल में नौ गांव है जिसमें गाहड़ा ,रसूलपुर, गुढ़ा, इसराना, नांगल मोहनपुर, चेलावास, कोका और उन्हाणी प्रमुख हैं। इन गांवों से आई वर्कर व हेल्पर को यह भी बताया कि उन्होंने किस प्रकार अपने रजिस्टर पूरे करने हैं, किस प्रकार हाजिरी लगानी है, किस प्रकार पोषण ट्रैकर के बारे में कार्य करना है? किस अवसर पर कैलाश, निर्मला, मंजू जयंती, जुगनी, अंजू, मंजू, सुनीता ,सुषमा, विमल ज्योति, रजनी, विद्याबाई, सोनम, रतन, पूनम, संतोष, राजबाला, रीना, अनीता आदि उपस्थित रहे।
फोटो कैप्शन 01: वर्कर एवं हेल्पर को जानकारी देते हुए सुपरवाइजर मनीषा यादव
पिछले 5 महीने से वेतन न मिलने के कारण सफाई कर्मी परेशान
-अधिकारी ने कहा कि अब बजट आ गया
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कनीना की आवाज। पिछले 5 माह से सफाई कर्मियों को वेतन न मिलने के कारण सफाई कर्मियों के बच्चे भूखो मरने की कगार पर पहुंच गए हैं। दर्जनों सफाई कर्मी सत्यवान की अध्यक्षता में सोमवार को खंड विकास एवं पंचायत कार्यालय पहुंचे। उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि हम सभी सफाई करने, गांव की गंदगी उठाने का कार्य करते हैं, इसके बदले में मिलने वाली पगार को आज 5 महीने बीत गए हैं लेकिन सही समय पर तनख्वाह नहीं मिलने के कारण हमारे घर में चूल्हा तक नहीं जल रहा है। लेकिन प्रशासन व सरकार कोई ध्यान नहीं दे रही है। उनका कहना है कि समय पर वेतन नहीं मिलने के कारण बिजली का बिल नहीं भरा गया जिसके कारण विभाग ने उनके कनेक्शन ही काट दिये है। जिसके कारण परेशानी और बढ़ गई है। वहीं स्कूल में बच्चों की फीस नहीं भरी गई तो बच्चों को पढ़ाई से वंचित कर देने का अंदेशा बना हुआ है। आखिर क्या किया जाए ताकि घर का काम सुचारु रूप से चल सके। वहीं इसके बारे में जब बीडीपीओ कनीना नवदीप से बात की गई तो उनका कहना था इनका बजट नहीं आने के कारण इनकी वेतन समय पर नहीं डाला जा सका है। अब बजट आ गया है जल्द ही इनकी वेतन डाल दिये जाएंगे और इनको परेशान नहीं होने दिया जाएगा।
फोटो कैप्शन 02: सफाई कर्मी बीडीपीओ कनीना से मिलते हुए।
जल है अनमोल रतन इसे बचाने का करो जतन- रोहित कुमार
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कनीना की आवाज। केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही जल संरक्षण स्कीम के तहत आज धनौंदा गांव में भूजल योजना के तहत कार्य करने वाले रोहित कुमार एवं जन स्वास्थ्य कर्मियों द्वारा वाटर लेवल की जांच की। जानकारी देते हुए जन स्वास्थ्य कर्मियों ने बताया केंद्र सरकार द्वारा निर्देश दिया गया है कि गांव-गांव जाकर वाटर लेवल की जांच कर और जल बचाने के लिए लोगों को जानकारी दें।
वहीं समाजसेवी कैलाश गोयल ग्रामीणों को संबोधित करते हुए कहा कि जल है अनमोल रतन इसे बचाने का जतन करो। जल बचाने के लिए हमें पूरा प्रयास करना चाहिए क्योंकि आने वाले समय में जल की भारी कमी हो जाएगी और लोगों को ऐसी कमी झेलनी पड़ेगी कि पीने के लिए पानी भी दुर्लभ हो जाएगा। इसलिए हमें समय-समय पर जल बचाने के प्रयास करते रहने चाहिए। इस अवसर पर ब्रह्मचारी श्रीकृष्णानंद ट्रस्ट के व्यवस्थापक कैलाश गोयल, वरिष्ठ सदस्य आनंद सिंगल, डा. फतेहचंद शर्मा, विजय कुमार आर्य, ठाकुर कर्मवीर सिंह के अलावा अन्य लोग भी उपस्थित रहे।
फोटो कैप्शन 03: कर्मी वाटर लेवल जांचते हुए।
अभी किसान सरसों की बिजाई ना करें -अजय एसडीओ
-डीएपी की बजाय प्रयोग कर सकते हैं एनपीके-डाक्टर
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कनीना की आवाज। हर जगह डीएपी खाद की मारामारी चल रही है। डीएपी खाद कहीं एकाध केंद्र पर उपलब्ध होता है उसे चंद ही मिनटों में किसान खरीद ले जाते हैं। हालात यह है कि किस दूर दराज तक किसान पूछते देखे गए कि डीएपी उपलब्ध है? क्योंकि इस समय सरसों की बिजाई की जाती है जिसमें डीएपी की अधिक जरूरत पड़ती है।
किसान और आम आदमी के दिमाग में एक ही बात घर कर रही है कि डीएपी डालना बेहतर होगा। यही कारण है कि डीएपी को किसान कई दिनों पहले से ही खरीद कर घर में रखना शुरू कर देते हैं। हालात यह होती है कि इस समय आकर डीएपी खाद की कमी नजर आती है। इसकी जगह किसान एनपीके उर्वरक प्रयोग कर सकते हैं जो कीमत में महज 20 रुपये प्रति बोरा अधिक है परंतु किसी भी प्रकार से डीएपी की मुकाबले कम नहीं होता। भविष्य में भी डीएपी की कमी रहेगी। बीज विक्रेता महेश कुमार, कुलदीप बोहरा ने बताया कि डीएपी 1350 रुपये प्रति बोरा जबकि एनपीके 1370 रुपये प्रति बोरा मिलता है। वास्तव में कौन सा ज्यादा कारगर है संबंध में एसडीओ कृषि विभाग डा. अजय कुमार से चर्चा की गई-
डॉक्टर अजय कुमार ने बताया कि डीएपी की अंतरराष्ट्रीय मार्केट रेट अधिक है इसलिए डीएपी की कमी रहने के आसार हैं। उन्होंने का बताया कि भारत सरकार डीएपी कंपनियों से लेती है, खुद नहीं बनाती इसके लिए टेंडर छोड़ती है और कंपनियां डीएपी उपलब्ध करवाती है। कंपनियों को एक बोरे पर 300 से 350 रुपये नुकसान उठाना पड़ता है। यही कारण है कि वह डीएपी अधिक मात्रा में सप्लाई नहीं कर पाते और डीएपी की कमी रहती है और भविष्य में भी रहने के आसार हैं। एसडीओ बताते हैं कि इसकी जगह एनपीके खाद प्रयोग करना चाहिए क्योंकि डीएपी में नाइट्रोजन और फास्फोरस 18 और 46 प्रतिशत में मिलते हैं जबकि एनपीके खाद में तीन पोषक तत्व नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम मिलते हैं जिनकी मात्र 12, 32 और 16 प्रतिशत होती है। उन्होंने बताया कि एनपीके किसी भी प्रकार से फसलों के लिए डीएपी के मुकाबले कम नहीं है। हां तिलहन जाति की फसलें उगने उगाते वक्त सल्फर तत्व की जरूरत होती है। वैसे भी किसान लंबे समय से अपने खेतों में सरसों उगाते समय सल्फर अलग से बिजाई करते आए हैं। उन्होंने बताया कि किसानों को एनपीके एक बैग प्रति एकड़ बोना जरूरी है। किसानों की आदत होती है कि पूरा बोरा एनपीके प्रति एकड़ नहीं डालते जिसका परिणाम अच्छा नहीं हो सकता। साथ में 10 किलो सल्फर प्रति एकड़ उन्हें डालना जरूरी होता है ताकि तिलहन जाति की फसलें उगाई जा सके। सरसों तिलहन जाति की फसल है लेकिन गेहूं में सल्फर डालने की जरूरत नहीं होती। उन्होंने बताया कि किसानों को अभी सरसों की बिजाई से परहेज करना चाहिए जब तक तापमान 25 डिग्री तक नहीं आ जाता। अधिक ताप पर बिजाई करने से अगर बीज अंकुरित हो जाता है तो उसमें सफेद रतुवा रोग होने की ज्यादा संभावना होती है। साथ में बीज उपचार करके ही बिजाई करें। उन्होंने बताया कि 2 ग्राम प्रति किलोग्राम सरसों में बावस्टीन दवा से उपचारित करना चाहिए लेकिन याद रहे कि यह दवा सूखे पाउडर के रूप में आती है, पानी आदि न मिलाये, सीधा सूखा उपचार करना चाहिए। इससे पैदावार में लाभ और रोगों से बचा जा सकेगा।
फोटो कैप्शन: डा. अजय कुमार यादव एसडीओ कृषि विभाग महेंद्रगढ़
हस्त प्रक्षालन दिवस-15 अक्टूबर
कम से कम 30 सेकंड और अधिकतम 1 मिनट हाथों को धोना चाहिए
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कनीना की आवाज। 15 अक्टूबर को हस्तप्रक्षालन/हस्त धावन दिवस मनाया जा रहा है। इस दिन लोगों को हाथ धोने के प्रति जागरूकता उत्पन्न कराई जाती है हाथ धोना बहुत महत्वपूर्ण है। भारतीयों के लिए तो विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि हाथों से खाना खाने की संस्कृति है। मल त्याग के बाद तथा बाहर से आने पर हाथों को जरूर धोना चाहिए। इससे अनेकों रोगाणु जो हाथों से चिपके होते हैं नष्ट हो जाते हैं। हाथों की स्वच्छता हर संक्रमण से बचाती है। इस संबंध में डा विनय शर्मा उप-नागरिक अस्पताल कनीना से हाथ धोने की विषय में बात हुई।
** हाथों को कम से कम से कम 30 सेकंड और अधिकतम 1 मिनट तक धोना चाहिए। हाथों को सीधा, फिर उल्टा, फिर नाखून फिर हथेली, फिर अंगूठा ,और फिर बाजू छह सोपानों से होकर हाथों को धोना चाहिए। हाथों को धोने से बीमारी फैलने वाले वायरस और जीवाणु जो नंगी आज से नहीं दिखाई देते, नष्ट हो जाते हैं। हाथों को धोने से अनेक बीमारियों से बचा जा सकता है। जब-जब मलमूत्र त्याग करते हैं, बाहर कहीं घूम कर आते हैं या कोई गंदगी आदि उठाकर आते हैं, सुबह, शाम दोपहर जब भी हाथों से कोई खाने पीने का कार्य करते हैं उसे समय हाथों को धोना जरूरी होता है। हाथों को यदि नहीं धोया जाए तो बीमारियां घर कर जाती है। बीमारियों से बचने का सबसे सरल उपाय हस्त प्रक्षालन या हैंड वॉश, हाथ धोवन नाम से जाना जाता है। खाना बनाने से पहले, बाथरूम इस्तेमाल करने पर, खाना खाते समय अपने हाथों को जरूर साफ करना चाहिए जिससे कई बीमारियों से बचा जा सकता है। वर्ष 2008 में विश्व हस्त प्रक्षालन दिवस की शुरुआत की गई थी तब से लगातार लोगों को जागरूक किया जा रहा है। हाथों को अच्छी प्रकार धोने से दस्त एवं निमोनिया सहित कई बीमारियों का खतरा कम हो जाता है। एक अन्वेषण के दौरान पता लगाया कि हाथों के धोने से बच्चों में दस्त से होने वाला खतरा 40 फीसदी कम हो जाता है। लोगों को हाथ धोने के बारे में जानकारी देने से स्वास्थ्य का अच्छा बनाने में मदद मिलती है। न केवल लीवर संबंधी समस्या का समाधान होता है बल्कि सर्दी, बुखार एवं वायरल आदि दूर हो जाते हैं। कई बार ऐसे जीवाणु और विषाणु जो नग्न आंखों से नहीं देखे जा सकते हैं, मोबाइल फोन या टूथ ब्रश में सबसे ज्यादा पाए जाते हैं, ऐसे में खाने से पहले नियमित रूप से हाथ धोना जरूरी है। अच्छी तरह हाथ धोने से खसरा, चिकन पाक्स के चकते आदि इन्फेक्शन नहीं होता क्योंकि ये संक्रमण जानलेवा हो सकते हैं। हर समय कोई काम करते हैं और खाने पीने का काम हाथों करते हैं उस समय हाथों को धो लेना चाहिए।
-- डा. विनय शर्मा
फोटो कैप्शन: डा विनय शर्मा
अंतर्राष्टीय ग्रामीण महिला दिवस- 15 अक्टूबर
हर क्षेत्र में नाम कमा रही
है ग्रामीण महिलाएं और लड़कियां
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कनीना की आवाज। कहने को तो ग्रामीण महिलाएं और लड़कियां है किंतु आज किसी से किसी प्रकार कम नहीं हैं। हर क्षेत्र में नाम कमा रही है जिसके चलते यह नहीं कहा जा सकता कि ग्रामीण महिलाएं पुरुषों से किसी प्रकार कम हैं। एक वक्त था जब लोग लड़कियों को पढ़ाना लिखाना कम चाहते थे किंतु आज लड़कियां पढ़ लिखकर लड़कों से भी आगे निकल चुकी है। नौकरी में हो या अंतरिक्ष में पहुंचने की बात हो या फिर किसी अन्य क्षेत्र की बातों लड़कियां और महिलाएं आगे मिलती हैं।
कनीना क्षेत्र की अनेक महिलाएं /लड़कियां आज उच्च पदों पर नाम कमा रही है। यहां तक की हर कार्य को लड़कियां बखूबी से पूरा रही है। ऐसी कुछ महिलाएं और लड़कियां जो क्षेत्र में नाम कमा रही है, बातचीत हुई।-
कांता देवी कृषि क्षेत्र में अग्रणी किसान भी महिलाएं है। मोड़ी की खेत के सभी कार्य अच्छे प्रकार कर लेती है तथा ट्रैक्टर चलाना सब्जी और फल पैदा करना यहां तक की अनाज पैदा करना सभी कार्यों में अग्रणी है। 20 सालों से कृषि कार्यों में जुटी हुई है और अपने इस क्षेत्र में नाम कमा रही है।
---कांता देवी, मोड़ी
रितिका ग्रामीण लड़की जो खेती-बाड़ी के काम में लगी रहती थी किंतु आज एमबीबीएस करके जन सेवा में जुट गई है। मां-बाप अधिक पढ़े-लिखे न होने के कारण भी लड़की ने नाम कमाया है और आज के दिन रोहतक से एमबीबीएस कर डाक्टर बन चुकी है। जनसेवा उनका ध्येय है। उनके पिता दिनेश कुमार एक किसान है।
-- डा रितिका यादव पुत्री दिनेश कुमार, कनीना
अंशिका ग्रामीण क्षेत्र संबंध रखते हुए भी एमबीबीएस तृती वर्ष रोहतक से कर रही है। उसमें सिद्ध कर दिया है कि घर परिवार में कोई बहुत पढ़ा लिखा न हो तब भी लड़कियां नाम कमा सकती है। यही कारण है कि अंशिका के मां-बाप को उन पर गर्व है और वह डाक्टरी का कोर्स कर रही है।
--अंशिका, कनीना
कनीना की एकता जो एसआई बनी है। घर परिवार के हालात बहुत बेहतरीन न होते हुए भी अपने ही दम पर इस पद तक पहुंची है। कड़ी मेहनत का परिणाम है जिसके कारण वह एसआई पद पर पहुंच पाई है। परिवार को उन पर नाज है। वर्तमान में झाड़ोदा से ट्रेनिंग समाप्त होने को है।
--एकता यादव,कनीना
रितिका यादव पुत्री सवाई सिंह ग्रामीण लड़की ने एमबीबीएस कर ली है तथा अब पीजी कर रही है। परिवार अधिक लिखा पढ़ा नहीं है तथापि उन्होंने अपनी मेहनत के बल पर नाम कमाया है और डाक्टरी की पढ़ाई पूरी करके पीजी कर रही है।
--डा. रितिका यादव पुत्री सवाई सिंह, कनीना
गरीब परिवार से उठकर कालेज के प्राध्यापक पद/सहायक प्रोफेसर पद तक कनीना की शर्मिला यादव पहुंची है। वर्तमान में रोहतक में शिक्षण का कार्य कर रही है। उनके पिता एक सामान्य दुकानदार हैं। उनकी मेहनत के बल पर ऐसा संभव हो पाया है।
- डा शर्मिला
फोटो कैप्शन: अंशिका, कांता, रितिका, डा. शर्मिला, एकता ,रितिका यादव
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