आर्य समाज का वार्षिक उत्सव 9 व 10 नवंबर को
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कनीना की आवाज। आर्य समाज कनीना का वार्षिक उत्सव 9 व 10 नवंबर को कनीना में आयोजित होगा। इस संबंध में 13 अक्टूबर को आर्य समाज परिसर में एक बैठक आयोजित की गई है। विस्तृत जानकारी देते हुए आर्य समाज के प्रधान राव मोहर सिंह ने बताया कि आर्य समाज में 13 अक्टूबर को हवन होगा तत्पश्चात सभी पदाधिकारियों व सदस्यों की बैठक आयोजित होगी। इस बैठक में वार्षिकोत्सव के स्थान के बाबत निर्णय लिया जाएगा साथ में यह भी निर्णय लिया जाएगा की कार्यक्रम में मुख्य अतिथि किसे बनाया जाए?
प्रत्याशियों ने और कर्मियों में खूब उतारी अपनी नींद व हार
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कनीना की आवाज। एक ओर जहां कई दिनों से नेता आधी अधूरी नींद ले रहे थे वही कर्मचारी की भी कई दिनों से तैनातियां लग रही थी और अभी 8 अक्टूबर तक भी तैनाती रहेगी। ऐसे में अवकाश का दिन होने के कारण और मतदान पूर्ण होने के कारण कर्मियों और प्रत्याशियों ने अपनी नींद उतारी। यह सत्य की कर्मचारी भी मतदान से डरते हैं किंतु मतगणना में कोई उनको दिक्कत नहीं होती है यही कारण है कि जब भी तैनाती आती है तो वह परेशान हो जाते हैं। उस पर 2022 के पंचायत चुनावों का पारिश्रमिक भी अभी तक नहीं दिया गया है। 2022 में पंचायत चुनाव में जहां कई कई तैनातियां दीपावली पर्व पर दी थी परंतु अफसोस आज तक जिला महेंद्रगढ़ में उन्हें पारिश्रमिक में नहीं मिला है। बार-बार मांग कर रहे हैं।
मां के पांचवें रूप की करें पूजा विधान से
स्कंदमाता की पूजा से मिलता है अमिट फल
-विधि विधान से करें पूजा-आचार्य दीपक
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कनीना की आवाज। नवरात्रि के पांचवे ंदिन मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप की पूजा की जाती है जिसका नाम स्कंदमाता है। कार्तिकेय की माता के कारण इन्हें स्कंदमाता का नाम दिया गया है भगवान स्कंद बाल बाल रूप में माता की गोद में विराजमान है। ये विचार आचार्य दीपक कौशिक ने व्यक्त किये।
दीपक कौशिक ने पूजा अर्चना की विधि बताते हुए कहा कि सबसे पहले माता के लिए चौकी पर स्कंदमाता की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करनी चाहिए इसके बाद शुद्धिकरण करने के लिए पंचगव्य तैयार करना चाहिए जिसके लिए हमें गोमूत्र गाय का गोबर, गाय का घी, गाय का दही, गाय का दूध एक पात्र में एकत्रित करके पंचगव्य तैयार करें और जिस स्थान में पूजा कर रहे उस स्थान में भी इसका छिड़काव करें और माता रानी के लिए चौकी के बगल में चांदी या मिट्टी के घड़े में जल भरकर कलश की स्थापना करनी चाहिए। इसके बाद हमें मन में संकल्प लेना चाहिए कि है माता यथाशक्ति यथा भक्ति पूजा कर रहे हैं। जो हमारा सामर्थ है उस हिसाब से हम आपकी सेवा में हाजिर हुए हैं, अपना बालक मानकर हमें क्षमा करें। वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों के द्वारा स्कंदमाता सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें माता का आवाहन करना चाहिए। जिसके लिए हमें आसन, आचमन,स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, बिल पत्र, दूर्वा, सिंदूर, आभूषण, पुष्प हरा पुष्प माता को प्रिय है। हरा पुष्प चढ़ाना चाहिए सुगंधित द्रव्य धूप में फल और माता से क्षमा याचना करनी चाहिए तत्पश्चात वितरण करके पूजा संपन्न करें पंचमी तिथि की अष्टधातु देवी स्कंदमाता हैं जिन व्यक्तियों को संतान का अभाव हो वे माता की पूजन अर्चन तथा मंत्र जाप कर लाभ उठाएं। स्कंदमाता संतान को प्राप्ति देने वाली हैं। निश्चय ही स्कंदमाता की पूजा करने से हमारी मनोरथ सफल होती है। माता को भोग एवं प्रसाद स्कंदमाता को केले का भोग लगाना चाहिए और यह प्रसाद गौ ब्राह्मण को देना चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य की बुद्धि का विकास होता है। हमारे मन को शांति मिलती है और माता रानी अति शीघ्र प्रसन्न होती हैं हमारे जीवन के सभी कष्टों को नाश करती हैं और हमारे परिवार का कल्याण करते हैं इसीलिए हमें स्कंदमाता की मन मानसिक शांत चित्त से स्थिर मन से माता की पूजा करनी चाहिए।
फोटो कैप्शन : आचार्य दीपक कौशिक
दीपावली की तैयारियों में जुटे लोग
-कबाडिय़ों की हुई मौज
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कनीना की आवाज। 3 नवंबर को दीपावली मनाई जाएगी, वही दीपावली को लेकर घरों की साफ-सफाई करने में, मिठाई बनाने वाले मिठाई बनाने में, घरों में रंग पेंट करने वाले व्यस्त हो गये हैं तथा उनके पास किसी के भी पास कोई फुर्सत नहीं है। साल में एक बार यह पर्व आता है जिस पर इन मजदूरों की मांग अधिक होती है। क्षेत्र में जहां रंग पेंट की विशेष मांग है। पुताई करने वाले इस समय फुर्सत में नहीं है। पेंटर ने बताया सुरेश और मोनू पेंटर ने बताया कि उनके पास इस समय दीपावली तक कोई फुर्सत नहीं है तत्पश्चात ही कुछ वक्त निकल पाएगा। वर्षभर कूड़ा कचरा घरों में जमा होता रहता हैं उसे भी वर्ष में एक बार साफ किया जाता है तथा अब कबाड़ी घर घर घूमने लग गए हैं ताकि उन्हें अधिक से अधिक कबाड़ मिल सके। दीपावली के बाद देव उठावनी एकादशी 11 नवंबर से ही विवाह शादियां शुरू होंगी। ऐसे में कुछ लोग जहां विवाह शादियों के दृष्टिगत तो बहुत अधिक लोग दिवाली के दृष्टिगत घरों में पेंटिंग रंग आदि कर रहे हैं। रंग रोगन के चलते आप घर साफ-सुथरे नजर आने लग गए हैं। रवि, दिनेश, सुरेश एवं महेश आदि ने बताया कि रंग पेंट वर्ष में कम से कम एक बार तो जरूर करवा लेना चाहिए ताकि घर लंबे समय तक चल सके। रंगाई पुताई के भी हजारों रुपये खर्च हो जाते हैं।
दीपावली पास आने से कबाड़ी खुश--
दीपावली नजदीक आने से घरों की सफाई करने से कबाड़ी खुश हैं। घरों से भारी मात्रा में कबाड़ का सामान निकाला जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि दीपावली के पर्व पर सफाई करने से प्रत्येक घर से कबाड़ी का सामान निकलता है जिसे कबाड़ के भाव बेच दिया जाता है। कबाड़ी इस सामान को सस्ते में खरीद लेते हैं और दीपावली पर अच्छी दिहाड़ी बना लेते हैं। कबाड़ी दीपावली पर इतना सामान खरीदते हैं जिससे कई माह का गुजारा संभव हो पाता है। एक ओर जहां कबाड़ी सफाई में अहं भूमिका निभा रहे हैं वहीं वे अपने परिवार का पालन पोषण आसानी से करने की क्षमता रखते हैं।
फोटो कैप्शन 04: रंगाई /पुताई करते हुए मजदूर।
किसान ले रहे हैं त्वरित गति से बाजरे की पैदावार
- फसल पैदावार लेने के साथ-साथ रबी फसल की कर रहे हैं तैयारी
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कनीना की आवाज। कनीना क्षेत्र के किसान त्वरित गति से बाजरे की पैदावार ले रहे हैं साथ में बाजरे की सरकारी खरीद जारी होने के कारण नई अनाज मंडी चेलावास में उसे बेचने के लिए भी जा रहे हैं। सोमवार को फिर से खरीद होगी। चुनावों के दृष्टिगत लगता है खरीद लेट होगी। कनीना क्षेत्र में जानकारी 47 हजार हेक्टेयर पर बाजरा उगाया गया था जिसकी त्वरित गति से पैदावार किसान ले रहे हैं। कपास की पैदावार भी किसान तेजी से ले रहे हैं। किसान मजदूरों की सहायता से पैदावार ले रहे हैं। कनीना में प्रतिदिन शिव चौक पर 300 के करीब दूसरे प्रांतों से आये मजदूर खड़े रहते हैं। वैसे भी मजदूर 6 हजार रुपये प्रति एकड़ फसल कटाई तो 400 रुपये प्रति एकड़ फसल निकालने के ले रहे हैं। किसान स्वयं अपना काम नहीं करते और मजदूरों की सहायता लेते हैं। अच्छी पैदावार लेकर किसान प्रसन्नचित नजर आ रहे हैं किंतु साथ में रबी फसल की तैयारी में भी जुटे हुए हैं। इस वर्ष जहां रबी फसल की तैयारी के लिए पर्याप्त समय नहीं बचा है।
कृष्ण कुमार, योगेश कुमार, रोहित कुमार, अजीत सिंह, सूबे सिंह दिनेश कुमार, महेश कुमार आदि किसानों ने बताया कि बाजरे की अच्छी पैदावार हुई है, कड़बी की भी अच्छी पैदावार मिली है। अभी से ही किसान रबी फसल की तैयारी में जुट गए हैं। वैसे भी सरकारी खरीद 2625 रुपये प्रति क्विंटल चल रही है। रबी फसल की तैयारियों में किसान जुटा है जिसके बारे में कृषि अधिकारियों से चर्चा की।
क्या कहते हैं कृषि अधिकारी -
पूर्व कृषि अधिकारी डा. देवराज बताते हैं कि गेहूं एक नवंबर से 25 नवंबर के बीच बीजाई की जाती है जिसके लिए 21 डिग्री ताप जरूरत होती है जो 145 दिनों में पक जाती है। जबकि सरसों की बिजाई का 10 अक्टूबर से 25 अक्टूबर के बीच बेहतर समय होता है जिसके लिए 28 डिग्री ताप की जरूरत होती है। यह डेढ़ सौ दिन में पककर तैयार हो जाती है। रबी फसल की अवधि में दो से तीन बार वर्षा भी हो जाती है वरना सिंचाई से ही यह फसल तैयार की जाती है।
फोटो कैप्शन 03: बाजरे की पैदावार लेता किसान।
साथ में डा. देवराज कृषि अधिकारी
झरोखे से
मतगणना के बाद आएगी दीपावली
-मतगणना का बेसब्री से इंतजार
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कनीना की आवाज। इस बार के विधानसभा चुनावों में जीत के बाद नेता दीपावली मनाएंगे तो वर्ष 2009 के चुनावों में दीपावली मना लेने के बाद ही मतगणना हुई थी। अटेली विधानसभा से वर्ष 2014 के चुनाव वर्ष 2009 के चुनावों से मिलते जुलते हैं। जहां 2009 में 18 प्रत्याशी मैदान में थे तो 2014 में भी अटेली से 18 प्रत्याशी ही मैदान में थे।
वर्ष 2009 में जहां 13 अक्टूबर को चुनाव संपन्न हुए थे तो 17 अक्टूबर की दीपावली मनाने के बाद 22 अक्टूबर को मतगणना हुई थी। उस वर्ष दीपावली मनाने के बाद ही हंसी खुशी से परिणाम देखने गए थे। किंतु वर्ष 2014 में जहां 15 अक्टूबर को चुनाव संपन्न हो गये थे तो मतगणना 19 अक्टूबर को हुई थी। वहीं 23 अक्टूबर की दीपावली आई थी। फर्क इतना है कि वर्ष 2009 में दीपावली के बाद मतगणना हुई थी तो 2014 में मतगणना के बाद दीपावली आई थी।
वर्ष 2019 के चुनावों में जहां 15 प्रत्याशी अटेली से थे तो चुनाव 21 अक्टूबर को संपन्न हुये थे। मतगणना 24 अक्टूबर को हुई थी तथा दीपावली 29 अक्टूबर को आई थी। कहने का अर्थ है दीपावली बाद में आई थी। वर्ष 2024 भी 2019 की भंाति चलेगा। जहां 8 प्रत्याशी मैदान में हैं वहीं चुनाव 5 अक्टूबर को संपन्न हो चुके हैं वहीं मतगणना 8 अक्टूबर को होगी वहीं दीवाली 3 नवंबर को मनाई जाएगी। हार जीत देखने के बाद ही इस वर्ष दीपावली आएगी।
हार जीत के लिए छिडऩे लगी है बहस
-हार जीत के लगने लगे हैं सट्टे
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कनीना की आवाज। पांच अक्टूबर को चुनाव संपन्न होने के बाद क्षेत्र में प्रत्याशियों की हार-जीत के लिए जंग छिड़ गई है। सभी अपने-अपने प्रत्याशियों की जीत का दावा कर रहे हैं। शर्त एवं सट्टे लगने लगे हैं। अटेली से आठ प्रत्याशी मैदान में थे जिनमें से सुनील राव आप पार्टी ने समर्थन अनीता यादव कांग्रेस को दे दिया था। अब कांग्रेस की अनीता यादव, भाजपा की आरती राव तथा बसपा+इनेलो के अतरलाल की हार जीत की चर्चाएं आम हो गई हैं।
मतदान के बाद जहां प्रत्याशियों का भाग्य मशीनों में बंद हो चुका है किंतु अब उनकी हार-जीत के दावे शुरू हो गए हैं। फोन, सभा, किसी उत्सव या हुक्के की गुडग़ुड़ाहट पर बस प्रत्याशियों के पक्ष में डाले गए वोटों का आंकलन कर रहे हैं। कांग्रेस, भाजपा एवं बसपा+इनेलो के बीच मुकाबला था और आज भी उन्हीं के बीच हार-जीत के सट्टे लग रहे हैं।
मतगणना 8 अक्टूबर को निर्धारित है। मतगणना के बाद न जाने कितनों के सट्टे की हार होगी तो कितनों के सट्टों की जीत होगी।
समाचार सुनने के लिए जहां रेडियो को भी सूबे सिंह, राजेंद्र सिंह, बनवारीलाल ककराला जैसे किसान नहीं भूला पाए हैं और गांवों में आज भी इसी का वर्चस्व कायम है वहीं टीवी के युग में लोग टीवी पर प्रसारण देखने के लिए लालायित हैं। पुराने टीवी एवं रेडियो को कारगर बनाया जा रहा है।
उधर आधुनिक इंटरनेट का जमाना होने के कारण इंटरनेट से भी हार जीत का पता लगाने के लिए इसका उपयोग भी बहुत से लोग करने की तैयारी में जुटे हुए हैं।
5 अक्तूबर को मतदान होने के बाद भी न तो प्रत्याशी चैन से बैठ पा रहे हैं और मतदाता। अब सट्टों का बाजार शुरू हो गया है। हार जीत पर जहां आपसी विवाद छिड़ रहा है वहीं विवाद झगड़े का रूप भी ले रहा है। घर हो या चौपाल, स्कूल हो या कार्यालय बस हार जीत पर बहस छिड़ी देखी जा सकती है। चुनाव तैनाती देकर आने वाले भी अपने अपने बूथ का हाल एवं पार्टी की हवा आ अनुमान दे रहे हैं जिनके आधार पर हार जीत का अनुमान लगाया जा रहा है।
बाजारों में बेशक पर्व को भूला दिया गया है किंतु राजनीति का ऐसा रंग चढ़ गया है कि पर्व की रौनक फीकी पड़ गई है। युवा हो या बुजुर्ग सभी चुनावी परिणाम में उलझ गए हैं। वैसे तो निर्णय 8 अक्तूबर को मतगणना के बाद ही हो पाएगा किंतु चुनाव परिणाम हर चौपाल पर मुफ्त में सुनाया जा रहा है। किसी और कहीं भी दो व्यक्ति मिल रहे हैं वे हाल चाल कम और परिणाम अधिक पूछ रहे हैं।
विशेषकर अटेली विधानसभा से 7 प्रत्याशियों को हार के गम में डूबो देगा और एक प्रत्याशी को जीत का ताज पहना देगा वहीं कितने सट्टे लगाने वालों के लाखों रुपये सट्टे में बह जाएंगे और तब पता चलेगा कि किसके घर में दीपावली की असली लक्ष्मी आएगी और किसके यहां दीपावली की अमावस्या का काला साया उन्हें मायूसी में डूबो देगा।
बहरहाल अटेली विधानसभा क्षेत्र से अनीता यादव, आरती राव, अतरलाल के चाहने वाले अपने अपने प्रत्याशियों के जीत के दावे कर रहे हैं। यह भी उल्लेखनीय है कि अटेली के अगिहार स्कूल में 82.34 प्रतिशत, जीपीएस इसराणा से 82.31 प्रतिशत, तो सबसे कम वोट राजकीय माडल स्कूल अटेली तथा जीपीएस दोंगड़ा जाट में दोनों में ही 54.6 फीसदी वोट पड़े हैं।
मानव नामक बच्चा निभा रहा है बाल राम की भूमिका
-नरेश कौशिक ने रखे विचार
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कनीना की आवाज। श्री आदर्श रामलीला कमेटी कनीना के तत्वावधान में चल रहे रामलीला मंचन में आज ताड़का वध का सुंदर मंचन किया गया। श्री रामायण की आरती से शुरू हुए कार्यक्रम में आज बतौर मुख्य अतिथि राजकीय कन्या उच्च विद्यालय के मुख्य अध्यापक नरेश कुमार कौशिक व वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी डा. जितेंद्र मोरवाल , नगर परिषद के एमइ दिनेश यादव तथा नगर पालिका लिपिक सुरेंद्र जोशी उपस्थित थे।
रामलीला के महत्व पर प्रकाश डालते हुए मुख्य अतिथि नरेश कौशिक ने अपने संबोधन में कहा कि आज हमें रामायण से सबसे बड़ी प्रेरणा यह मिलती है कि हम भाई भाई का प्यार आत्मसात करें आज के माहौल में भाई-भाई छोटी-छोटी चीजों के लिए झगड़ा करते हैं जबकि भगवान राम और भारत ने अपने भ्राता प्रेम के कारण अयोध्या जैसे विशाल साम्राज्य को एक पल बिना विचार किया त्याग दिया था। उन्होंने लोगों का आह्वान किया कि अपने बच्चों को आधुनिक चलचित्र न दिखाकर रामायण महाभारत व अन्य अन्य हिंदू धर्म ग्रंथो के बारे में जानकारी दें उन्होंने बताया कि कोरोना एक बहुत स्वभाव सर था जिसने भारतीय मानस में पुन: एक बार रामायण और महाभारत को जन-जन तक पहुंचाने का कार्य किया।
आज के रामलीला मंचन में ताड़का वध व-सुबाहू वध के अलावा महर्षि गौतम की पत्नी अहिल्या के श्राप मुक्ति का जीवंत मंचन किया।
आजको की तरफ से मुख्य अतिथियों को भगवान राम के राम दरबार की सुंदर संगमरमर मूर्तियां भेंट की गई आज के कार्यक्रम में मंच संचालन प्रवक्ता सचिन शर्मा ने किया।
फोटो कैप्शन 01: कनीना रामलीला मंचन का नजारा
दशहरे तक चलता है सांझी पर्व
-प्रतिदिन बच्चियां गीत गाकर प्रसन्न करती है सांझी को
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कनीना की आवाज। गांवों में दशहरे तक चलने वाला सांझी का पर्वÓ शुरू हो चुका है। एकता और भाईचारे का पर्व सांझी भगवान् राम के गुणों को बखान करने वाली रामलीला की भांति मनाया जाता है। गांवों में गोबर तथा सरकंडों से सांझी दिवार पर बनाई जाती है जिसे बच्चियां सिंझा
कहती हैं। प्रतिदिन गीत गाकर और भोजन कराकर बच्चियों का समूह अपने घर चला जाता है। दस दिनों तक शाश्वत चलने वाली क्रिया का अंत दशहरे पर होता है। राजस्थान का गणगौर का उत्सव इससे मिलता जुलता है।
सांझी को देवी मां की संज्ञा दी जाती है जो नवरात्रों में नौ रूपों में पूजी जाती है। गांवों में तो सांझी मनोरंजन का अच्छा साधन बन गया है। भाद्रपद अमावस्या के दिन गांवों में छोटे-छोटे बच्चे एवं बच्चियां मिलकर गोबर, चूड़ी के टुकड़े, कपड़ों की कतरन व कई साजोसामान से देवी मां की झलक देने वाली सांझी दिवार पर बना देती हैं। तत्पश्चात प्रतिदिन शाम के वक्त पास पड़ोस की बच्चियां इक_ïी होकर सांझी को खाना खिलाती हैं तथा गीत गाती हैं।
सांझी के निर्माण में बच्चियां अपनी बुद्धि व कौशल का परिचय देती हैं। जिस प्रकार सांझी मां के हाथ व पैरों को सजाया और संवारा जाता है। बाल कलाकारों की यह अनोखी कलाकारी मन को मोह लेती है। भोजन कराने की क्रिया अश्विन शुक्ल दशमी अर्थात दशहरे तक चलती है। दशहरे के दिन सांझी को भोजन कराकर एक मटकी में डाला जाता है और मटकी के किनारों पर छेद करके मोमबत्ती जलाकर अंदर रख दी जाती है। छुपते छुपाते किसी जोहड़ में सांझी को बहा दिया जाता है। जब बच्चियां सांझी को जोहड़ में प्रवाहित करने ले जाती हैं तो लड़कों का समूह मटकी को छीनकर तोडऩे का प्रयास करते हैं। यहां तक कि जोहड़ में तैरती हुई मटकी को भी तोडऩे का प्रयास किया जाता है। बच्चियां सांझी को बचाने के लिए लड़कों को मीठा भोजन कराती हैं किंतु लड़के मटकी को तोड़कर ही दम लेते हैं। वर्षों से यह अनोखी परम्परा चली आ रही है।
एक अनोखी परम्परा के अनुसार सांझी के समक्ष जितने भी बच्चे एवं बच्चियां मिलकर गीत गाते हैं वे प्रतिदिन अपनी बारी के अनुसार गीत समाप्त होने के बाद बाकली या बतासे बांटते हैं। बारी-बारी से प्रत्येक घर का बच्चा यह प्रसाद लाता है और बांटकर खाते हैं। सांझी को जोहड़ में प्रवाहित करने का फैसला भी सामूहिक होता है।
क्यों करते हैं नौ दिन पूजा-
मां जगदंबा के नौ रूप होते हैं। प्रतिदिन बच्चे मां के एक रूप को पूजते हुए उसे खाना खिलाते हैं और बाद में स्वयं खाना खाते हैं। यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है।
इस पर्व से जुड़ा है बच्चों का मनोरंजन तथा साथ में उन्हें एकता, सहयोग एवं गीतीकेय के गुण पैदा होते हैं। कनीना के सूबे सिंह एवं राजेंद्र सिंह का कहना है कि बच्चे मिलकर खाना खिलाते हैं और मां के गुणगान करते हैं इससे धार्मिक आस्था बढ़ती है वहीं सहयोग की ताकत पैदा होती है।
दशहरे के दिन किसी जलाशय जैसे जोहड़ आदि में बच्चियां मां को प्रवाहित करने जाती हैं तो कुछ बच्चे उनकी सांझी को तोडऩे का प्रयास करते हैं। गांव के बुजुर्ग मानते हैं कि ये बच्चे उन राक्षसों का रूप होते हैं जिन्होंने मां को सताने का प्रयास किया था किंतु मां के हाथों उनका वध हो गया था। आज भी बच्चे वो ही रोल करते हैं।
फोटो कैप्शन 02: दीवार पर बनी हुई सांझी
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