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Saturday, November 7, 2020

 
   
रविवार को नहीं होगी बाजरे की खरीद 

21 नवंबर तक का शेड्यूल जारी

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कनीना। रविवार को कनीना अनाज मंडी में बाजरे की कोई खरीद नहीं होगी। रविवार को बाजार खुले रहेंगे लेकिन बाजरा नहीं खरीदा जाएगा।
21 नवंबर तक का शेड्यूल जारी-
 हैफेड मैनेजर सतेंद्र यादव ने बताया कि किसानों की सुविधा को देखते हुए अब 21 नवंबर तक खरीद बढ़ा दी है।  उन्होंने कहा कि किसानों का सारा बाजरा खरीदने के लिए यह निर्णय लिया गया है।  अब तक 15 नवंबर तक का ही शेड्यूल जारी किया गया था किंतु वह बढ़ाकर शेड्यूल 21 नवंबर तक कर दिया गया है।
500 किसान आते हैं कनीना मंडी-
प्रतिदिन 500 किसानों तक का बाजरा खरीदा जा रहा है। वास्तव में कनीना में दो खरीद केंद्र 27 अक्टूबर से शुरू कर दिए गए थे। 1 अक्टूबर से खरीद शुरू हुई, 27 अक्टूबर को दो खरीद केंद्र हो गए जिससे खरीद में तेजी आई है।
सोमवार को टूट जाएगा रिकार्ड-
कनीना में विगत वर्ष 2.55 लाख क्विंटल बाजरा खरीदा जबकि शनिवार तक इस वर्ष 2.49 लाख क्विंटल बाजरा खरीदा जा चुका ह।ै सोमवार को खरीद के बाद पिछला रिकार्ड टूट जाएगा।
492 किसानों का खरीदा बाजरा-
 कनीना अनाज मंडी के दोनों खरीद केंद्रों पर 492 किसानों का 14184 क्विंटल बाजरा खरीदा गया। अब तक 8503 किसान अपना बाजरा बेच चुके हैं जबकि कुल किसानों की संख्या 12700 के पार है। अभी करीब 4200 किसान बाजरा बेचने का इंतजार कर रहे है। कुल खरीद 249192 क्विंटल की हो चुकी है जबकि लिफ्टिंग 23501बैग की की गई। इस प्रकार कुल 444366 बैग बाजरे की लिफ्टिंग की हो चुकी है।अब तक 64948 बैग फड़ों पर पड़े हुए ह।ैं तीन डेरिया मानदंडों को पूरा कर करने पर रिजेक्ट कर दी गई है।
अभी शेड्यूल और बढऩे की संभावना-
21 नवंबर तक का शेड्यूल जारी कर दिया गया है किंतु इस प्रकार खरीद 11 हजार किसानों के करीब पहुंच जाएगी फिर भी करीब 1700 किसान बाजरा बेचने से वंचित रह जाएंगे। इस प्रकार शेड्यूल 21 नवंबर के बाद और आगे बढ़ाने की संभावना है।
 फोटो कैप्शन: 9 और 10: बाजरे की खरीद करते हुए।


नहीं आया कोई कोरोना पोजिटिव 

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कनीना। शनिवार को कनीना उपमंडल के लिए शुभ रहा। डा धर्मेंद्र सिंह ने बताया कि कनीना क्षेत्र में कोई भी कोरोना पाजिटिव नहीं आया।


अहोई अष्टमी रविवार को
-कुछ लोगों ने मनाई अहोई अष्टमी

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कनीना। कनीना क्षेत्र में शनिवार को अहोई अष्टमी का पर्व मनाया गया। इस मौके पर महिलाओं ने अपने परिवार की मंगल कामना के लिए सेई माता की पूजा की, व्रत रखा, दान पुण्य करके कहानी सुनी।
  क्षेत्र में अहोई अष्टमी का पर्व वर्षों से चला आ रहा है। इस दिन सेई माता की पूजा करने का विधान है। ग्रामीण क्षेत्रों में इस दिन सेई माता की मूर्ति बाजार से लाकर पूजा की जाती है। महिलाएं व्रत रखा और दान पुण्य करके अहोई मां की कहानी सुनी।
  यह व्रत संतान के बेहतर जीवन एवं लंबी उम्र के लिए किया जाता है। इस व्रत में स्याऊं मां की पूजा की जाती है। माना जाता है कि इस पूजा से परिवार के सभी रोग नष्ट हो जाते हैं और लंबी उम्र प्राप्त होती है। दिनभर दानपुण्य की परंपरा चलती रही। महिलाओं ने स्याऊं मां की पूजा की, व्रत रखा तथा कहानी सुनी
कौन सी कहानी सुनाई जाती है-
 सुरेंद्र वशिष्ठ ज्योतिषाचार्य के अनुसार इस व्रत में सेठ सेठानी की कहानी सुनाई जाती है जिसमें एक सेठानी के हाथों से अनजाने में एक सेही के बच्चे मिट्टी खोदते वक्त मर जाते हैं। जब सेही अपने बच्चों को मृत देखती है तो मारने वाले को श्राप दे देती है जिसके चलते सेठानी के बच्चे भी मर जाते हैं। सेठ व सेठानी तप करने और शरीर को गलाने के लिए चल पड़ते हैं। अंत में वे थक जाते हैं तो आकाशवाणी होती है कि तुम अगले इसी पर्व तक दान दक्षिणा देना, दया रहम दिखाना तब कहीं जाकर तुम्हें पुत्र होंगे। अंतत: सेठ एवं सेठानी ने वैसा ही किया और वे पुत्रवान हो गए।
तभी से यह व्रत चला आ रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में इस पर्व के प्रति गहन लगाव है। गांवों में मिलकर महिलाएं कथा सुनी।
रविावार को भी मनेगी अहोई अष्टमी-
 रविवार को भी कनीना क्षेत्र में अहोई अष्टमी का पर्व मनाया जा रहा है।
  इस पर्व को लेकर बाजार में अहोई माता की तस्वीर एवं सेई माता उपलब्ध हैं। इस दिन व्रत रखने, पूजा अर्चना करने तथा कहानी सुनने की परंपरा है। करवा चौथ से महज चार दिन बाद अहोई अष्टमी का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। इसी कड़ी में व्रत एवं पर्व को लेकर बाजार में अहोई अष्टमी का सामान मिलने लगा है। बाजार में कई प्रकार की मूर्तियां एवं व्रत विधान का सामान उपलब्ध है।

आ अब लौट चलें.......
लौटने लगे नगरपालिका के नए परिसर में 

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 कनीना। कनीना नगर पालिका का 4 करोड़ छह लाख की लागत से नया भवन बनकर तैयार ही नहीं अपितु उद्घाटन भी हो चुका है। आखिरकार नगर पालिका के कर्मियों ने सामान उठाकर नए भवन में ले जाने का कार्य शुरू कर दिया है। सभी कर्मचारी सामान को उठा उठा कर ट्रैक्टर ट्राली द्वारा नए भवन परिसर में पहुंचा रहे हैं जहां सभी सुविधाएं उपलब्ध होंगी।
   कनीना पालिका प्रधान सतीश जेलदार ने बताया कि 2 से 3 दिनों में लगभग सारा सामान उठाकर नए भवन में ले जाने की पूरी संभावना है। उन्होंने काफी पुराना भवन परिसर अब रेन बसेरा के लिए काम आएगा वहीं सफाई का कार्य एवं नियंत्रण से होगा। उन्होंने कहा कि अतिक्रमण द्वारा उठाया गया सामान भी लाकर पुराने भवन में डाला जाएगा वहीं सफाई से संबंधित गतिविधि का संचालन किया जाएगा। अधिकारी एवं कर्मचारी राहत की सांस ले रहे हैं। सबसे बड़ी खूबी है कि खंड विकास अधिकारी कार्यालय कार्यालय एसडीएम कार्यालय, न्यायिक परिसर एवं उपमंडल कार्यालय के सामने ही यह भवन बनाया गया है। यहां किसी प्रकार की कोई समस्या नहीं होगी। सभी अधिकारी और कर्मचारी एक ही छत के नीचे कार्य करेंगे। सभी के लिए बैठने की व्यवस्था की गई है।
 शिवचरण शर्मा ने बताया कि उन्हें लंबे समय पुराने नगर पालिका भवन में सेवा करने का मौका मिला। अब थोड़े समय के लिए चाहते हैं नए भवन परिसर में भी कार्य किया जाए। सभी कर्मचारी नए भवन पर निर्भर करेंगे।
फोटो कैप्शन 8: सामान को उठाकर नए भवन परिसर में ले जाते हुए।

दूसरे राज्यों से  आकर कनीना में रहने वालों को दिखाना होगा पहचान पत्र- सीटी इंचार्ज

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कनीना। दूसरे राज्यों से आकर कस्बे व इसके आसपास के क्षेत्र में रहने वालों को अपना आधार कार्ड व पहचान पत्र साथ रखना होगा और जिसके पास ये नहीं होंगे उसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
ये विचार सीटी इंचार्ज गोबिंद सिंह ने दूसरे राज्यों के लोगों के ठिकानों पर जाकर उनकी जांच पड़ताल के बाद पत्रकार वार्ता में व्यक्त किए। श्री यादव ने बताया कि उच्च अधिकारियों के आदेश पर हमें इस प्रकार की कार्रवाई करनी पड़ रही है ताकि कोई संदिग्ध व्यक्ति न रह रहा हो। वही उन्होंने यह भी बताया कि  सामाजिक प्राणी है इस लिए ये हमारी जिम्मेवारी भी बनती है कि अगर हमारे आस-पास कोई इस प्रकार का संदिग्ध व्यक्ति रहता हो तो इसकी जानकारी पुलिस को देकर अवगत कराए।


पिछले दो माह से कनीना-दादरी मार्ग अधूरा पड़ होने से क्षेत्र वासियों में रोष

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कनीना। कनीना से दादरी जाने वाली सड़क में धनौन्दा नहर पर लगभग आधा किलोमीटर का टुकड़ा अधूरा होने के कारण लोगों को भारी समस्याओं से जूझना पड़ रहा है लेकिन प्रशासन व ठेकेदार इसे पूरा नहीं कर रहे हैं। गांव धनौन्दा के पूर्व सरपंच रतन सिंह, अशोक कुमार प्रधान, नम्बरदार राजेन्द्र सिंह, विजय पाल,  देशराज, महिपाल सिंह एवं अन्य समाजसेवियों ने जानकारी देते हुए बताया कि कनीना दादरी सड़क को बनानी सहमति(एग्रीमेंट) सितम्बर माह तक का था जिसमें ठेकेदार द्वारा कनीना से चिडिय़ा तक की सड़क को बनाना था। जिसमें प्रशासन व ठेकेदार द्वारा सड़क का कार्य किया गया लेकिन इसी सड़क में धनौन्दा गांव के पास लगभग आधा किलोमीटर का टुकड़ा बीच में ही अधूरा छोड़ देने के कारण इस सड़क मार्ग से निकलने वालों को भारी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है लेकिन इसकी जर्जर हालत पर प्रशासन व ठेकेदार द्वारा अब तक कोई कार्रवाई नहीं कर रहे है जिसके कारण इस जगह अब तक लगभग आधा दर्जन दुर्घटनाएं घट चुकी हैं लेकिन प्रशासन व ठेकेदार कि सेहत पर कोई फर्क पड़ता नजर नही आ रहा है। लोगों ने मुख्य मंत्री मनोहर लाल खट्टर से मांग कर इस सड़क को बनाने वाले ठेकेदारों को अविलंब इसे पूरा करने का आदेश दें।


सांगर को देखकर किसान चकित

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कनीना। बिन बादल बरसात हो या बिन मौसम के फल एवं सब्जियां हो देखकर इंसान चकित होना स्वाभाविक होता है। कनीना क्ष्ेत्र में इन दिनों किसान के सुख दु:ख का साथी कहे जाने वाले जाटी पेड़ पर भारी मात्रा में सांगर फल लगे हुए हैं। अकसर गर्मी के दिनों में सांगर के फल लगते हैं किंतु इस बार सर्दी के दिनों में फल लगे देखकर किसान भी परेशान हैं। किसान इसे अपशकुन बताते हुए कह रहे हैं कि फसल बेहतर नहीं होगी।
  उल्लेखनीय है कि गर्मी के दिनों में जब लू चलती है तो जाटी पेड़ पर किसानों के खेतों में सांगर फल लगा मिलता है जो बहुत ही महत्वपूर्ण सब्जी मानते हुए एवं प्रोटीन का बेहतर स्रोत मानकर किसान विभिन्न प्रकार की सब्जी बनाते हैं। लेकिन उन दिनों बहुत कम सांगर देखने को मिलता है।
 इस बार मौसम में बदलाव कहे या फिर पौधों में आए किसी बदलाव को कहा जाए कड़ाके की सर्दी में सांगर बहुत अधिक मात्रा में लगा हुआ है। इस वक्त जाटी के पेड़ पर पत्ते कम हैं और सांगर अधिक लगा हुआ है।
  किसान राजेंद्र सिंह, सूबे सिंह, कृष्ण कुमार, योगेश कुमार आदि ने बताया कि सर्दी के मौसम में सांगर देखकर वे चकित हैं किंतु वे इन फलों को सब्जी के रूप में प्रयोग करने लगे हैं। बाजार में सब्जियां महंगी होती हैं। ऐसे में ये प्राकृतिक सब्जियां बेहतर साबित हो रही है।
 क्या कहते हैं वनस्पतिशास्त्री-
कनीना के विक्की पंसारी का कहना हैं कि सांगर पशुओं के रोगों में कम और उनके पशु आहार में अधिक काम में लाया जाता है। यह शरीर के लिए ठंडा होता है।
  उधर वनस्पतिशास्त्री रवींद्र कुमार का कहना है कि सर्दी के मौसम में सांगर नहीं खाना चाहिए। यह शरीर को ठंडक अधिक प्रदान करेगा। उनका कहना है कि वर्तमान में सभी पेड़ों पर दो बार फल लगते हैं। उन्होंने कहा कि बेर हो या फिर सांगर या फिर कीकर के पेड़ इन पर वर्ष में दो बार सर्दियों व गर्मियों में फल लगते हैं।
फोटो कैप्शन 6: जाटी के पेड़ पर सांगर दिखाता किसान।  

लाखों रुपए की जन-सुविधा बनी है दुविधा
-दीवाली तक शुरू होने की संभावना

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 कनीना। कनीना के पूर्व एसडीएम संदीप सिंह द्वारा कनीना में जहां वर्ष 2017-18 में ई-टायलेट, फ्रेंडली टायलेट, इको फ्रेंडली टायलेट आदि कई नामों से जन-सुविधाएं (शौचालय)स्थापित करवाये थे किंतु इनमें से ई-टायलेट अब दुविधा बन चुके हैं। तीन अलग अलग स्थानों पर करीब 6-6 लाखे रुपये की लागत वाली ई-टायलेट बनवाई थी किंतु स्थापित होने के बाद से खराब पड़ी हैं।
ये तीन ई-टायलेट पशु अस्पताल, तहसील कार्यालय कार्यालय, उप नागरिक अस्पताल में स्थापित किये गये थे। अब जन सुविधा लोगों के लिए दुविधा बन रही है। तीनों टायलेट काम नहीं कर रहे हैं। पशु अस्पताल में तो पहले से ही द्वार के पास जहां पशुओं के पीने के लिए पानी की खेल तथा पुराने टायलेट बनी हुई थी जिन्हें खत्म करके ई-टायलेट बनाया गया है। जब से ई-टायलेट स्थापित हैं तब से तीनों बेकार पड़े हैं। पूर्णता स्वचालित जन-सुविधा जहां अनेकों विशेषताओं से परिपूर्ण मानी जाती थी किंतु अनेकों खामियों से परिपूर्ण बन गई है।  
यह पूर्ण स्वचालित टायलेट इंसान के प्रवेश करने पर अपने आप बंद हो जाते थे और दूसरा व्यक्ति उसमें प्रवेश नहीं कर सकता था। इंसान जब इसका उपयोग कर लेता था पानी अपने आप चलता था जो सेंसर पर आधारित थे।
डा अजीत कुमार का कहना है कि कभी यहां पुराने समय की जन-सुविधा थी जो लोगों के काम आ रही थी। उसको तोड़कर यह आधुनिक दर्जे की जन-सुविधा बना तो दी किंतु काम ही नहीं कर रही जिसके चलते लोग इधर-उधर पेशाब करने को मजबूर है। महिलाएं तो बहुत परेशान है।
 उधररविकुमार दुकानदार का कहना है कि जन सुविधा के नाम पर परेशानी मिल रही है। लघु शंका के लिए भी उन्हें बहुत दूर जाना पड़ता है। जहां दुकान का काम छोड़कर दूर जाने से दुकानदारी भी खराब हो जाती है। उन्होंने नगर पालिका से मांग की है कि इसे तुरंत चालू करवाया जाए ताकि लोगों को सुविधा प्राप्त हो सके।
क्या कहते हैं नगरपालिका प्रधान-
 नगर पालिका प्रधान सतीश जेलदार से इस संबंध में बात की तो उन्होंने बताया कि ई टायलेट बनाने वाली कंपनी के अधिकारियों को बुलया गया था जिन्होंने पांच हजार रुपये प्रति माह रख रखाव का खर्चा देने की बात कही है। पालिका ने यह स्वीकार कर लिया है। ऐसे में दीपावली तक ये तीनों ई-टायलेट शुरू होने की पूरी संभावना है।
 फोटो कैप्शन 4: ई-टायलेट जो बंद पड़ी है साथ में रवि कुमार, डा अजीत शर्मा, पालिका प्रधान सतीश जेलदार।

खत्म कर दी है बुर्जी और सेहदा
-लाल पत्थर भी इक्का-दुक्का नजर आता है 

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कनीना। 1962 में चकबंदी के समय हर 5 एकड़ एवं 10 एकड़ पर स्थापित किए गए लाल पत्थर, दो गांवों की सीमा पर स्थापित बुर्जी, तीन गांवों की सीमा पर स्थापित सेहदा धीरे-धीरे किसानों ने खत्म कर दिया। अब जब पैमाइश होती है तो इनके अभाव में भारी परेशानी उठानी पड़ती है। कभी-कभी तो दो गांवों की सीमा विवाद के चलते धरती को खोदना पड़ता है और बनाई गई बुर्जी को देखना होता है।
चकबंदी के समय में पूर्व से पश्चिम दिशा में हर 5 एकड़ पर तथा उत्तर से दक्षिण पर दिशा में 10 एकड़ पर लाल पत्थर नाम से पत्थर गाड़े गए थे। गहराई तक गाड़े गये ये पत्थर आज भी वैसे के वैसे मिल सकते हैं। यह सत्य है कि किसानों ने उनको इसलिए काट दिया या तोड़ डाला क्योंकि वे हल चलाने में या ट्रैक्टर द्वारा जुताई करने में समस्या बन रहे थे परंतु जब भी पैमाइश की जाती है तीन लाल पत्थरों का ही सहारा लिया जाता है। यदि इन पत्थरों की दूरी में कहीं फर्क भी पाया जाता है तो उसे किले से काट दिया जाता है। ये चकबंदी की बेहतरीन व्यवस्था थी। जब पैमाइश की गई, खेत का रास्ता छोड़ा गया था बहुत ही सूझबूझ से काम लिया गया था। पैमाइश के लिए, भविष्य के लिए भी लाल पत्थर छोड़े गए थे। दो गांवों की सीमाओं पर बुर्जी बनाई गई थी ताकि दूर से और नजर आए। वहीं तीन गांवों की सीमा पर सेहदा बनाए जाते थे और आज वो सेहदा नजर नहीं आते और लाल पत्थर भी नजर नहीं आते। यही हालात बुर्जियों की है।
दो गांव की सीमा पर बुर्जी स्थापित की जाती थी और जो गहराई पर स्थापित की जाती थी। कच्चा कोयला भरकर चूना से बनाई जाती थी। ऊपर लाल पत्थर या बुर्जी बनाई जाती थी ताकि दूर से दिखाई दे कि यह दो गांव की सीमा है और उन सीमाओं पर दोनों गांव के लोग पेड़ पौधे लगाते थे। विवाह शादी के समय भी इन सीमाओं पर रस्म अदा की जाती थी।
तीन गांव की सीमा हो वहां पेयजल सप्लाई  टैंक जैसा सेहदा बनाया जाता था। यह भी  6-7 फुट गहराई तक गाड़ा जाता था। दूर से दिखाई देता था कि यहां 3 गांवों की सीमा लगती है।
ये बुर्जी और सेहदा खसरा एवं गिरदावरी में नोट किये जाते थे। जब भी पैमाइश की जाती है तीन लाल पत्थरों से मिलान करके की जाती है। यदि कहीं अंतर आता है तो किले से काटने की परंपरा है।
 क्या कहते हैं उमेद सिंह जाखड़ पटवारी-
 उमेद सिंह जाखड़ पटवारी का कहना है कि बुर्जी, सेहदा,लाल पत्थर चकबंदी की निशानी ही नहीं भविष्य में की जाने वाली पैमाइश का आधार होती है। इनके साथ छेड़छाड़ करना अपराध है। यदि इनके साथ छेड़ करता है तो उसकी एफआईआर दर्ज कराई जा सकती है। नियम अनुसार ऐसे व्यक्ति को सजा का प्रावधान है।
विवाह शादी में निभाई जाती है परंपरा-
 विवाह शादी करके दुल्हन को गाड़ी में लाया जाता है तो वह अपने साथ एक लाल कपड़े से बंधेे हुए करवे में मिठाई तथा पैसे आदि डालकर लाते हैं। जब अपने गांव की सीमा में प्रवेश करते है तो इसे फेंक दिया जाता है। यद्यपि इसके पीछे माना जाता है कि जंगली जीव इस मिठाई को खाएंगे और वह भी खुश हो जाएंगे।
कौन-कौन सी सीमाएं लगती है-
 कनीना की कुल 2383 हेक्टेयर भूमि है जिसके चारों ओर कोटिया, करीरा, भडफ़, उन्हाणी, चेलावास, ककराला, गाहडा आदि गांवों की सीमाएं लगती हैं। लगभग सारे पत्थर और बुर्जी सेहदा आदि तोड़ दिए हैं या भूमि में दबे हुए हैं। जब कभी गांवों की सीमा का विवाद हो जाता है तो बुर्जी को भूमि से खोदकर ढूंढा जाता है। परंतु ऐसा भी होता है कि कई बार ये नहीं मिलती।
 फोटो कैप्शन 1 और 2: लाल पत्थर एवं लाल पत्थर को दिखाता किसान देशराज कोटिया।
 










प्रतिभा के धनी हैं लेखक होशियार सिंह

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-कनीना निवासी होशियार सिंह यादव ने केवल शिक्षक अपितु लेखन कार्य में एक विशेष प्रतिभा लिए हुए हैं। वे लंबे समय से शिक्षा जगत से जुड़े वह लंबे समय से ही लेखन कार्य से जुटे हुए हैं। कई विषयों में एमए एमएससी किए हुए होशियार सिंह यादव शोध कार्य में जुटे हुये हैं।सबसे बड़ी खूबी है कि देखने में सीधे-साधे हैं किंतु विलक्षण प्रतिभा लिये हुये हैं। उन्होंने उस वक्त कनीना के संत शिरोमणि बाबा मोलडऩाथ पुस्तक निकाली जब संत शिरोमणि बाबा मोलडऩाथ की  आश्रम में कोई मूर्ति स्थापित नहीं हुई थी। लोग बाबा के विषय में बहुत कम जानते हैं थे। पूरा इतिहास दूरदराज से जाकर लिखने वाले होशियार सिंह हैं। तत्पश्चात तो बाबा के बारे में हर अखबार पत्रिका में उनके द्वारा लिखी हुई समस्त जानकारी प्रकाशित की जाने लगी। यहां तक कि कनीना क्षेत्र के शहीदों को उसने उन्होंने सबसे पहले सम्मान दिया और विभिन्न शहीदों को पर एक पुस्तक शहीद स्मारिका निकाली। इन पुस्तकों पुस्तकों के प्रकाशन के बाद उनका नाम स्वर श्रेष्ठ लेखकों में होने लगा। धीरे-धीरे उनका नाम रोशन होता चला गया और आज भी लेखन कार्य में जुटे हुए हैं, उनकी कई पुस्तकें अभी भी प्रकाशित होने वाली है।
कनीना में जन्मे होशियार सिंह के पिता  जयनारायण एक गरीब किसान थे जो पशुपालन का कार्य अधिक करते थे। मां गृहणी थी। दोनों याद स्वर्ग सिधार चुके हैं परंतु दुर्भाग्य उस समय हुआ जब उन्होंने देरी से शादी की और उनकी पत्नी का भी चंद वर्षों में देहांत हो गया। होशियार सिंह जितने सरल स्वभाव के हैं, उतने ही गूढ़ रहस्य को उजागर करने वाले हैं। जहां तक लेखन कार्य में बहुत लंबे समय से उनका अनुभव है। वही एक के बाद एक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा भी उनकी पुस्तकों को अनुदान मिला है।
उल्लेखनीय है कि  होशियार सिंह राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय धनौंदा में विज्ञान अध्यापक बतौर कार्यरत है। उनकी अब तक विभिन्न मुद्दों पर 24 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है तथा उनकी 4 पुस्तकें हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा अनुमोदित हैं। समय-समय पर उन्हें विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है। करीब 5 दर्जन संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया है तथा महर्षि नारद पुरस्कार राज्यपाल हरियाणा से भी सम्मानित है। महेंद्रगढ़ न्यायाधीश द्वारा रजत पदक तथा अरुंधती वशिष्ठ अनुंसधान पीठ द्वारा देशभर से आयोजित निबंध लेखन में एक्सीलेंस अवार्ड से पुरस्कृत हैं। वे पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ से गोल्ड मेडलिस्ट है।
  उनकी देश के विभिन्न समाचार पत्र एवं पत्रिकाओं में कविताएं, लेख,बाल कहानियां तथा समीक्षा प्रकाशित  होती रहती हैं। अभी तक  उनके तीन शोध पत्र भी प्रकाशित हो चुके हैं। हरियाणा शिक्षा बोर्ड द्वारा आयोजित कहानी लेखन में वे प्रथम पुरस्कार पा चुके हैं। सम्मानित किया गया है ।
उल्लेखनीय है कि बाबा मोलडऩाथ की मूर्ति का निर्माण भीम सिंह ने तथा बाबा चालीसा व बाबा की तीन पुस्तकें होशियार सिंह लेखक कनीना की प्रकाशित हो चुकी हैं।
कनीना निवासी लेखक होशियार सिंह एवं उनकी पत्नी आशा यादव को उनकी चार पांडुलिपियों को वर्ष 2014-15 का अनुदान हरियाणा साहित्य अकादमी पंचकुला द्वारा प्रदान किया गया है। उनकी 24 पुस्तकें अभी तक प्रकाशित हो चुकी हैं। हाल ही में हरियाणा साहित्य अकादमी ने वर्ष 2014 एवं 2015 के लिए चयनित पांडुलिपियों की सूचि जारी की है।
  लेखक होशियार सिंह जिनकी अभी तक 20 कृतियां प्रकाशित हो चुकी हैं। वर्ष 2014 के लिए उनकी पुस्तक आवाज को अनुदान के लिए चयनित किया गया है। इस पुस्तक में करीब 150 कविताएं तथा विभिन्न उत्सवों की छोटी कविताएं हैं। वहीं वर्ष 2015 के लिए उनकी बाल कहानियां बुद्धिमता का चयन अनुदान के लिए हरियाणा साहित्य अकादमी ने किया था। इस पांडुलिपि में उनकी 50 बाल कहानियां हैं।
  उल्लेखनीय है कि होशियार सिंह की देश एवं विदेश की पत्र पत्रिकाओं में कविता, लेख, कहानी, प्रेरक प्रसंग एवं अन्य साहित्यिक गतिविधियां प्रकाशित होती रहती हैं। पेशे से शिक्षक होशियार सिंह को सैकड़ों पुरस्कार मिल चुके हैं तथा लंबे समय से साहित्यिक कार्यों में योगदान दे रहे हैं। धार्मिक प्रकृति के होशियार सिंह शिवभोले की कांवड़ पदयात्रा एवं खाटू श्याम पदयात्रा में भी कई बार जाते रहते हैं। उनकी इस उपलब्धि पर उच्चाधिकारियों ने भी प्रशंसा की है।
गरीबी से उभरा है परिवार-होशियार सिंह के परिवार ने घोर गरीबी का समय देखा है। परिवार में दस सदस्य होने तथा उनके पिता जयनारायण रांझा पाली, लाठी चलाने एवं अलगोझा बजाने में लीन रहते थे। रांझा पाली होने के कारण आय अधिक नहीं थी। मां मिश्री देवी भी गृहणि होने के कारण धन दौलत न के बराबर थी। किंतु जब से कनीना में उनके पिता ने सबसे बड़ी डेयरी चलाई तभी से शिक्षा पाते हुए होशियार सिंह ने डेयरी में सहयोग किया।
बचपन से लिखने का शौक रहा-
होशियार सिंह का बचपन से ही लिखने का शौक रहा है। जब वे शिक्षण के क्षेत्र में आए तब तो उनकी प्रतिभा निखरकर सामने आने लगी। शिक्षा प्राप्त करते वक्त हमेशा ही कक्षा में टापर रहते थे। यही नहीं अपितु पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ में पीजी गांधीयन स्टडिज में टॉपर रहने पर गोल्ड मेडल मिला।
संघर्षमय जीवन-
उनका जीवन सदा ही संघर्षमय रहा है। देर से नौकरी मिली तथा देर से शादी की किंतु उनकी पहली पत्नी गंभीर बीमारी को झेलते हुए चल बसी। होशियार सिंह बतौर शिक्षक भी 20 सालों की नौकरी में 20 बार तबादले झेल चुका है। उनका अभी भी संघर्ष जारी है।
पहली पत्नी भी थी लेखिका-
होशियार सिंह की पहली पत्नी सुमन यादव प्रख्यात लेखिका एवं पत्रकार थी। उनकी भी दो पुस्तकें प्रकाशित होने के अतिरिक्त देशभर की पत्र पत्रिकाओं में लेख,कहानी एवं बाल कहानियां प्रकाशित होती रही हैं। नवंबर 2010 में मृत्यु के आगोश में समा जाने तक पत्रकार रही हैं। प्रदेश स्तरीय कहानी लेखन में उनका दूसरा स्थान रहने पर पुरस्कृत भी किया गया था।
बेहतर शिक्षक रहे हैं-
वर्ष 1995 में होशियार सिंह शिक्षण के क्षेत्र में आए तभी से शिक्षण में भी नाम कमाया है। कनीना शिक्षा समिति सहित विभिन्न संस्थाओं एवं अधिकारियों ने उन्हें बेहतर शिक्षक होने पर सम्मानित भी किया है। महेंद्रगढ़ न्यायाधीश द्वारा रजत पदक एवं शाल भेंटकर सम्मानित किया वहीं यादव सभा द्वारा भी सम्मानित किया गया है।
चर्चित पुस्तकें-
चर्चित पुस्तकों में संत शिरोमणि बाबा मोलडऩाथ, आस्था, प्रेरणा, काव्यलता, मानव बाडी कविताएं एवं बाल कविताएं, प्रेरणा, सहजोबाई, गुरू-शिष्य, शहीद स्मारिका, कष्टों की देवी, कांवड़ मेला, बाबा मोलडऩाथ कलेंडर, अनोखा परिवार, जयनारायण, खाटू श्याम, प्रेरक प्रसंग एवं लघु कथाएं, बाबा चालीसा, अनोखा धाम , बाबा सीडी प्रमुख हैं।
सम्मान-
हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड भिवानी द्वारा कहानी लेखन में प्रथम पुरस्कार सहित अनेकों सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा सम्मानित। महेंद्रगढ़ न्यायाधीश द्वारा रजत पदक से सम्मानित। अरुंधती वशिष्ठ अनुंसधान पीठ द्वारा देशभर से आयोजित निबंध लेखन में एक्सीलेंस अवार्ड मिल चुका है।
शोध कार्य में लीन-
होशियार सिंह अभी भी शिक्षा में शोध कर रहे हैं। उनके तीन शोधपत्र अन्तर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। दो शोध शिक्षा में तो एक शोध अरुंधती वशिष्ठ अनुंसधान पीठ कानपुर द्वारा प्रकाशित किया गया है।

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