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Monday, November 9, 2020

 
पुलिस ने पकड़ी भारी मात्रा में शराब 

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कनीना। शराब बेचने की शिकायत मिलने पर की गई कार्रवाई जिसमें भारी मात्रा में शराब पकड़ी। मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है।
 मुख्यमंत्री उडऩदस्ता रेवाड़ी ने एसआई सतवीर सिंह को फोन पर सूचना दी कि मुंडिया खेड़ा गांव में होटल पर एक व्यक्ति शराब बेच रहा है। पुलिस बल ढाबा पर पहुंचा। अशोक कुमार ढाबा संचालक फरार हो गया। वहां मुख्यमंत्री उडऩदस्ता टीम हाजिर थी। होटल की तलाशी ली गई तो एक पेटी जिसमें 7 बोतल देसी शराब, बाकी संतरा मसालेदार देसी मिली। पुलिस ने अशोक कुमार ढाबा संचालक के विरुद्ध एक्साइज एक्ट के तहत मामला दर्ज कर लिया है।

सरकारी कार्य में बाधा डालने का मामला दर्ज 

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 कनीना। धनौंदा से पाली 132 केवी की लाइन का काम करने वाले कर्मियों के साथ मारपिटाई करने पर पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया है।
मिली जानकारी अनुसार धनौंदा से पाली के बीच बिजली की लाइन बिछाने का काम चल रहा है।  मिली जानकारी के अनुसार दीपक धनौंदा तथा 8-9 अन्य आदमी आए और उन्होंने स्कीपर नामक कंपनी  सुपरवाइजर कर्मवीर एवं लेबर को मारने पिटने लगे।  ट्रैक्टर छीन लिया और सामान जलाने की धमकी देने लगे और कहा कि अधिकारियों को बुलाओ वरना उन्हें बांध कर रखेंगे।  इस दौरान लेबर के कई आदमियों को चोट आई। जब जेई ने फोन पर विद्युत प्रसारण निगम लिमिटेड के एसडीओ को सूचना दी तो एसडीओ ने  पुलिस को फोन किया। पुलिस आने की सूचना पर ये  लोग इधर-उधर भाग खड़े हुये। उन्होंने इन लोगों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई की मांग की है। पुलिस मौके पर पहुंची उस समय कोई भी व्यक्ति मौजूद नहीं था। एसडीओ संजय यादव कंस्ट्रक्शन रेवाड़ी ने उन्हें एक दरखास्त दी इसके तहत सरकारी कार्य में बाधा डालने वालों के विरुद्ध विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज कर लिया है।
 
पुलिस तैनाती के साथ साथ कर रही है वृक्षारोपण

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कनीना। कनीना पुलिस अपनी तैनाती के साथ-साथ थाने को भी चमकाने में लगी हुई है। कनीना थाने की पुलिस में अगर कोई छोटी सी भी शिकायत लेकर आता है तो उस पर ये पुलिस कर्मी बिना देरी किए कार्रवाई कराते है लेकिन इसके साथ-साथ उक्त पुलिस कर्मी थाने में पड़ी फालतू जगह में पौधारोपण व घास का लान लगाने का कार्य कर रही है। थाने के मुंशी सुनील कुमार ने बताया कि लोगों की समस्या निपटाना हमारा कार्य है लेकिन जिस जगह हम रहते है उसको सुधारना व संवारना हमारा कर्तव्य बनता है। इसी लिए थाने के आस पास पड़ी जगह में वृक्षारोपण के साथ-साथ घास का लान लगाने जा रहा है ताकि आने वाले लोगों को बैठने उठने की सही सुविधा मिल सके।
 
टूटा पिछला रिकार्ड......
खरीद पहुंची 264000 क्विंटल
- पिछले वर्ष का रिकार्ड 255000 क्विंटल था 

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 कनीना। कनीना अनाज मंडी में बाजरे की खरीद 39 वें दिन भी जारी रही। सोमवार को खरीद दो लाख 64 हजार क्विंटल पहुंच गई है। जिसके चलते विगत वर्ष का 255000 क्विंटल का रिकार्ड भी टूट चुका है। अभी खरीद 21 नवंबर तक होगी। 9009 किसानों का बाजरा खरीदा जा चुका है।
 विस्तृत जानकारी देते हुए सतेंद्र यादव हैफेड मैनेजर ने बताया कि कनीना मंडी में सोमवार को 353 किसानों का 10457 क्विंटल बाजरा खरीदा। इस प्रकार कुल खरीद 216208 क्विंटल पहुंच गई  है जबकि लिफ्टिंग 15000 बैग हुई। कनीना मंडी में 404434 बैग का उठान किया जा चुका है जबकि 27982 बैग फड़ों पर पड़े हैं।  एक ढऱी मानदंडों को पूरा न करने पर रिजेक्ट कर दी गई। उधर कनीना की गौशाला रोड पर 153 किसानों का  4437 क्विंटल बाजरा खरीदा। गौशाला रोड पर 47843 क्विंटल बाजरा खरीदा जा चुका है। यहां पर कुल 75932 बैग का उठान किया गया।  19754 बैग फड़ों पर पड़े हैं। एसडीएम कनीना रणबीर सिंह ने कनीना मंडी का दौरा किया और हिदायतें दी।
फोटो कैप्शन 10:कनीना अनाज मंडी का दौरा करते हुए एसडीएम।

नौ करोना संक्रमित मिले

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कनीना। कनीना क्षेत्र में कोरोना के नौ कस मिले। कनीना उपमंडल कार्यालय की ओर से आगामी कार्रवाई कर दी गई है। डा धर्मेंद्र यादव एसएमओ ने बताया कि त्योहारों के दृष्टिगत सावधानी जरूरी है।

अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी को लेकर कनीना में रोष

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कनीना। अर्णब  गोस्वामी की गिरफ्तारी को लेकर कनीना कस्बे में अधिवक्ताओं व समाजसेवियों ने महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ रोष जताते हुए उन्हें अविलंब रिहा करने की मांग की है। मांग करने वालों में वरिष्ठ समाजसेवि अधिवक्ता ओमप्रकाश यादव रामबास, मनीष कौशिक अधिवक्ता, वरिष्ठ समाजसेवि विजयपाल यादव मोड़ी, श्रीकिशन अधिवक्ता, विक्रम अधिवक्ता, मनोज तंवर खेडी, रोशनलाल रामबास के अलावा अन्य सैकड़ों लोगों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मांग करते हुए कहा है कि वह इस मामले में महाराष्ट्र सरकार के खिलाफ कार्रवाई करे तथा श्री गोस्वामी को रिहा कराए।


प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर योजना के तहत 61 पात्र, वितरित किए ऋण सर्टिफिकेट 

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कनीना। प्रधानमंत्री आत्मनिर्भर योजना के तहत दस हजार रुपये लोन रेहड़ी/ठेला लगाने वालों के लिए योजना में 61 पात्र पाए गए। कनीना पालिका कार्यालय में पालिका प्रधान सतीश जेलदार, उपप्रधान अशोक ठेकेदार लेखाकार शिवचरण शर्मा ने उन्हें सर्टिफिकेट वितरित किए।
विस्तृत जानकारी देते हुए पालिका प्रधान सतीश जेलदार ने बताया कि सरकार द्वारा चलाई गई योजना के तहत 61 लोगों ने आवेदन किया था जो पात्र पाए गए हैं। अब सरकार ने उनके पास सूची भेजी है जिसके तहत उन्हें वांछित बैंक से दस हजार रुपये का लोन मामूली से ब्याज दर पर मिलेगा। जब यह एक साल के अंदर भुगतान कर देंगे तो फिर से इन्हें लोन मिल सकता है। उन्होंने कहा कि इसके लिए सर्वे भी हुई थी।
 चमनलाल एमई ने बताया लाभ पात्रों को आज कार्यालय में बुलाकर सर्टिफिकेट वितरित किए। अब यह सभी लाभ पात्र अपना बैंक से लोन ले पाएंगे और अपनी रेहडी/ठेला लगाने का कार्य चला पाएंगे। लोन एक साल में पूरा कर देंगे तो दोबारा सिंह ने लोन उपलब्ध हो जाएगा। उन्होंने कहा कि यह योजना फल सब्जी आदि लगाने वालों के लिए कारगर सिद्ध होगी।
इस योजना से जहां रेडी और ठेला लगाने वालों में खुशी है ताकि वे समय पर अपना सामान खरीद कर भेज कर पैसे वापस कर सके इस योजना का लाभ केवल ठेला/रेहड़ी लगाने वालों के लिए ही मिलता है।
 फोटो कैप्शन 9: लाभ पात्रों को ऋण सर्टिफिकेट वितरित करते सतीश जेलदार
 
बहुमत वाले पंच को बनाया गया कार्यवाहक सरपंच 

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कनीना। कनीना खंड के गांव सिगड़ी के सरपंच को जहां जिला उपायुक्त ने विगत दिनों निलंबित कर दिया था। उनकी जगह बहुमत वाले पंच को कार्यवाहक सरपंच चुना गया है।
मिली जानकारी अनुसार जोगेंद्र सिंह पंच को सरपंच बनाया गया है। सोमवार को सरपंच बनाए जाने की तिथि घोषित कर दी गई थी, एसडीएम के पास सिगड़ी गांव के सात में चार पंचों सहित योगेंद्र सिंह एसडीएम कार्यालय पहुंचे। जहां उन्होंने अपना बहुमत सिद्ध कर दिया। जिसके चलते उन्हें सरपंच का पदभार संभाल लिया है। सरपंच बनने के बाद उनका फूल मालाओं एवं रंग गुलाल से स्वागत किया गया।
फोटो कैप्शनल 9: एसडीएम के समक्ष बहुमत सिद्ध करता जोगेंद्र सिंह।
            10: सारपंच बनने के बाद रंग गुलाल से स्वागत करते हुए।

जाटी पेड़ों पर लगा सांगर, किसान कर रहे हैं प्रयोग

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कनीना। इन दिनों कनीना क्षेत्र में इन दिनों किसान के सुख दु:ख का साथी कहे जाने वाले जाटी पेड़ पर भारी मात्रा में सांगर फल लगे हुए हैं। अकसर गर्मी के दिनों में सांगर के फल लगते हैं किंतु इस बार सर्दी के दिनों में फल लगा देखकर इसका प्रयोग शुरू कर दिया है।
  उल्लेखनीय है कि गर्मी के दिनों में जब लू चलती है तो जाटी पेड़ पर किसानों के खेतों में सांगर फल लगा मिलता है जो बहुत ही महत्वपूर्ण सब्जी मानते हुए एवं प्रोटीन का बेहतर स्रोत मानकर किसान विभिन्न प्रकार की सब्जी बनाते हैं। लेकिन उन दिनों बहुत कम सांगर देखने को मिलता है।
 इस बार मौसम में बदलाव कहे या फिर पौधों में आए किसी बदलाव को कहा जाए सर्दी में सांगर बहुत अधिक मात्रा में लगा हुआ है। इस वक्त जाटी के पेड़ पर पत्ते कम हैं और सांगर अधिक लगा हुआ है।
  किसान राजेंद्र सिंह, सूबे सिंह, कृष्ण कुमार, योगेश कुमार आदि ने बताया कि सर्दी के मौसम में सांगर देखकर वे चकित हैं किंतु वे इन फलों को सब्जी के रूप में प्रयोग करने लगे हैं। बाजार में सब्जियां महंगी होती हैं। ऐसे में ये प्राकृतिक सब्जियां बेहतर साबित हो रही है।
 क्या कहते हैं वनस्पतिशास्त्री-
कनीना के विक्की पंसारी का कहना हैं कि सांगर पशुओं के रोगों में कम और उनके पशु आहार में अधिक काम में लाया जाता है। यह शरीर के लिए ठंडा होता है।
  उधर वनस्पतिशास्त्री रवींद्र कुमार का कहना है कि सर्दी के मौसम में सांगर अधिक नहीं खाना चाहिए। यह शरीर को ठंडक अधिक प्रदान करेगा। उनका कहना है कि वर्तमान में सभी पेड़ों पर दो बार फल लगते हैं। उन्होंने कहा कि बेर हो या फिर सांगर या फिर कीकर के पेड़ इन पर वर्ष में दो बार सर्दियों व गर्मियों में फल लगते हैं।
फोटो कैप्शन 8: जाटी के पेड़ पर सांगर दिखाता किसान।  


बहुमत वाले पंच को बनाया गया कार्यवाहक सरपंच

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 कनीना। कनीना खंड के गांव सिगड़ी के सरपंच को जहां जिला उपायुक्त ने विगत दिनों निलंबित कर दिया था। उनकी जगह बहुमत वाले पंच को कार्यवाहक सरपंच चुना गया है।
मिली जानकारी अनुसार जोगेंद्र सिंह पंच को सरपंच बनाया गया है। सोमवार को सरपंच बनाए जाने की तिथि घोषित कर दी गई थी, एसडीएम के पास सिगड़ी गांव के सात में चार पंचों सहित योगेंद्र सिंह एसडीएम कार्यालय पहुंचे। जहां उन्होंने अपना बहुमत सिद्ध कर दिया। जिसके चलते उन्हें सरपंच का पदभार संभाल लिया है। सरपंच बनने के बाद उनका फूल मालाओं एवं रंग गुलाल से स्वागत किया गया।
फोटो कैप्शनल 9: एसडीएम के समक्ष बहुमत सिद्ध करता जोगेंद्र सिंह।
            10: सारपंच बनने के बाद रंग गुलाल से स्वागत करते हुए।


एसडीएम ने कनीना अनाज मंडियों का किया दौरा
-दी महत्वपूर्ण हिदायतें

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कनीना। एसडीएम कनीना रणबीर सिंह ने कनीना अनाज मंडियों का दौरा करके उपस्थित अधिकारियों और कर्मियों को जरूरी हिदायतें भी दी। इस मौके पर उन्होंने बाजरे की ढेरियों का निरीक्षण किया।
उन्होंने हैफेड मैनेजर सत्येंद्र यादव तथा अन्य कर्मचारियों को समझाते हुए बताया कि किसी भी प्रकार से बाहर का बाजरा कनीना में न बिकने पाये। बार-बार बाजरे की जांच की जाए। ऐसे में किसी प्रकार का घटिया और बाहर का बाजरा न खरीदा जाए। उन्होंने कहा कि साफ-सफाई पर ध्यान देना जरूरी है। उन्होंने दोनों खरीद केंद्रों का दौरा किया।
 उन्होंने किसानों एवं आढ़तियों से भी बात की।
उन्होंने कहा कि किसान जी जान एक करके एक-एक दाना उगाते हैं और उन्हें बाजार तक बड़ी ही आशा के साथ लाते हैं। उनकी भावनाओं को किसी प्रकार की कोई ठेस नहीं पहुंचनी चाहिए, ऐसे में अन्नदाता इस धरती के लोगों का पेट भरते हैं। यदि उनके साथ किसी प्रकार की कोताही बरती जाती है तो किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं होगी। उन्होंने इस मौके पर कुछ और भी हिदायतें दी। इस मौके पर नायब तहसीलदार सत्यवीर उनके साथ थे।
फोटो कैप्शन 07: बाजरे जांच करते एसडीएम कनीना रणवीर सिंह।


गाड़ी बुकिंग कीे, चालक को बंधक बनाया और कनीना के पास पटक कर गाड़ी ले भगे

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 कनीना। कनीना-अटेली फाटक के पास शिफ्ट डिजायर गाड़ी के चालक को पटक कर कुछ लोग गाड़ी ले भगे। पुलिस मामले की जांच कर रही है।
 मिली जानकारी अनुसार अवधेश, इटावा उत्तर प्रदेश का रहने वाला है तथा गुरुग्राम में ओला उबर कंपनी में कार्य करता है। वह कंपनी की गाड़ी चलाता है। रविवार की रात को करीब एक बजे तीन लोगों ने महेंद्रगढ़ के लिए उनकी गाड़ी बुक की। अभी कुछ दूर चले ही थे कि उन लोगों ने बंधक बनाकर गाड़ी में डाल दिया और स्वयं गाड़ी चलाने लगे।
 पीडि़त का कहना है कि रात भर उसे  इधर-उधर घुमाते फिरे। रात को अटेली फाटक के पास गाड़ी से धक्का देकर चले गए। एएसआई गोबिंद सिंह पीडि़त को लेकर पेट्रोल पंप  से फुटेज आदि लेते रहे। अभी तक चोरों का पता नहीं चल पाया है। पुलिस मामले की तह तक जाने का प्रयास कर रही है। उनका कहना है कि मामले की सच्चाई पता लगने में जुटी है।  पुलिस का कहना है किदोषियों को नहीं बख्शा जाएगा।
 
खत्म कर दी है बुर्जी और सेहदा
-लाल पत्थर भी इक्का-दुक्का नजर आता है

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 कनीना। 1962 में चकबंदी के समय हर 5 एकड़ एवं 10 एकड़ पर स्थापित किए गए लाल पत्थर, दो गांवों की सीमा पर स्थापित बुर्जी, तीन गांवों की सीमा पर स्थापित सेहदा धीरे-धीरे किसानों ने खत्म कर दिया। अब जब पैमाइश होती है तो इनके अभाव में भारी परेशानी उठानी पड़ती है। कभी-कभी तो दो गांवों की सीमा विवाद के चलते धरती को खोदना पड़ता है और बनाई गई बुर्जी को देखना होता है।
चकबंदी के समय में पूर्व से पश्चिम दिशा में हर 5 एकड़ पर तथा उत्तर से दक्षिण पर दिशा में 10 एकड़ पर लाल पत्थर नाम से पत्थर गाड़े गए थे। गहराई तक गाड़े गये ये पत्थर आज भी वैसे के वैसे मिल सकते हैं। यह सत्य है कि किसानों ने उनको इसलिए काट दिया या तोड़ डाला क्योंकि वे हल चलाने में या ट्रैक्टर द्वारा जुताई करने में समस्या बन रहे थे परंतु जब भी पैमाइश की जाती है तीन लाल पत्थरों का ही सहारा लिया जाता है। यदि इन पत्थरों की दूरी में कहीं फर्क भी पाया जाता है तो उसे किले से काट दिया जाता है। ये चकबंदी की बेहतरीन व्यवस्था थी। जब पैमाइश की गई, खेत का रास्ता छोड़ा गया था बहुत ही सूझबूझ से काम लिया गया था। पैमाइश के लिए, भविष्य के लिए भी लाल पत्थर छोड़े गए थे। दो गांवों की सीमाओं पर बुर्जी बनाई गई थी ताकि दूर से और नजर आए। वहीं तीन गांवों की सीमा पर सेहदा बनाए जाते थे और आज वो सेहदा नजर नहीं आते और लाल पत्थर भी नजर नहीं आते। यही हालात बुर्जियों की है।
दो गांव की सीमा पर बुर्जी स्थापित की जाती थी और जो गहराई पर स्थापित की जाती थी। कच्चा कोयला भरकर चूना से बनाई जाती थी। ऊपर लाल पत्थर या बुर्जी बनाई जाती थी ताकि दूर से दिखाई दे कि यह दो गांव की सीमा है और उन सीमाओं पर दोनों गांव के लोग पेड़ पौधे लगाते थे। विवाह शादी के समय भी इन सीमाओं पर रस्म अदा की जाती थी।
तीन गांव की सीमा हो वहां पेयजल सप्लाई  टैंक जैसा सेहदा बनाया जाता था। यह भी  6-7 फुट गहराई तक गाड़ा जाता था। दूर से दिखाई देता था कि यहां 3 गांवों की सीमा लगती है।
ये बुर्जी और सेहदा खसरा एवं गिरदावरी में नोट किये जाते थे। जब भी पैमाइश की जाती है तीन लाल पत्थरों से मिलान करके की जाती है। यदि कहीं अंतर आता है तो किले से काटने की परंपरा है।
 क्या कहते हैं उमेद सिंह जाखड़ पटवारी-
 उमेद सिंह जाखड़ पटवारी का कहना है कि बुर्जी, सेहदा,लाल पत्थर चकबंदी की निशानी ही नहीं भविष्य में की जाने वाली पैमाइश का आधार होती है। इनके साथ छेड़छाड़ करना अपराध है। यदि इनके साथ छेड़ करता है तो उसकी एफआईआर दर्ज कराई जा सकती है। नियम अनुसार ऐसे व्यक्ति को सजा का प्रावधान है।
विवाह शादी में निभाई जाती है परंपरा-
 विवाह शादी करके दुल्हन को गाड़ी में लाया जाता है तो वह अपने साथ एक लाल कपड़े से बंधेे हुए करवे में मिठाई तथा पैसे आदि डालकर लाते हैं। जब अपने गांव की सीमा में प्रवेश करते है तो इसे फेंक दिया जाता है। यद्यपि इसके पीछे माना जाता है कि जंगली जीव इस मिठाई को खाएंगे और वह भी खुश हो जाएंगे।
कौन-कौन सी सीमाएं लगती है-
 कनीना की कुल 2383 हेक्टेयर भूमि है जिसके चारों ओर कोटिया, करीरा, भडफ़, उन्हाणी, चेलावास, ककराला, गाहडा आदि गांवों की सीमाएं लगती हैं। लगभग सारे पत्थर और बुर्जी सेहदा आदि तोड़ दिए हैं या भूमि में दबे हुए हैं। जब कभी गांवों की सीमा का विवाद हो जाता है तो बुर्जी को भूमि से खोदकर ढूंढा जाता है। परंतु ऐसा भी होता है कि कई बार ये नहीं मिलती।
 फोटो कैप्शन 1 और 2: लाल पत्थर एवं लाल पत्थर को दिखाता किसान देशराज कोटिया।


गौशाला बनने से फाटक बंद, नगरपालिका के तहत है जमीन

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 कनीना। कनीना में किसानों की खड़ी फसल को नुकसान पहुंचाने वाले पशुओं से निजात पाने के लिए बनाया गया फाटक अब जर्जर हो गया है। करीब 20 वर्षों से यह जर्जर हो चुका है। नगरपालिका ने इसकी कोई सुध नहीं ली है। कभी जंगल के पशुओं को यहां लाकर रोका जाता था किंतु अब लोग ही इस फाटक में अपने पशु बांधते हैं।
  कनीना पालिका के तहत पुराने समय से फाटक का निर्माण किया हुआ है जहां एक कमरा, आवारा पशुओं के लिए चारा डालने की नांद, पेयजल व्यवस्था, आवास का प्रबंध किया हुआ है। यहां पर एक कर्मचारी की भी तैनाती होती थी जो पशु को रखने व उसे मालिक द्वारा ले जाने का पूरा रिकार्ड रखता था। वर्ष 2000 में जब कनीना पालिका को तोड़ा गया तभी से यहां का कर्मी भी अन्यत्र शिफ्ट कर दिया गया और यह लाखों रुपये का भवन एवं प्रबंध जर्जर बनकर रह गया है।
  कभी किसान अपने खेतों में फसल उगाते थे तो कोई पशु फसल में घुस जाता था तो उसे खेत का मालिक इस फाटक तक पहुंचाता था। गेट कीपर उस पशु का रिकार्ड रखता था। जब उस पशु का मालिक अपने पशु को छुड़ा कर ले जाता था तो उससे पूरा पशु पर किया खर्चा लिया जाता था। जब पालिका तोड़ी गई उस वक्त यह बाड़ा समाप्ति के कगार पर पहुंच गया। यहां का स्टोर कीपर अन्यत्र भेज दिया गया। आज लाखों रुपये का भवन एवं चारदीवारी जर्जर हो चुकी है।
  कभी इस फाटक में आवारा पशुओं को रखा जाता था।  द्वार पर बना हुआ कमरा अति जर्जर हो चला है और कभी भी गिर सकता है। द्वार पर पशुओं के लिए बनाई गई नांद अब जर्जर हो चुकी है।
 कभी होती थी भारी आय-
इस फाटक से किसी वक्त भारी आय होती थी। जब किसी भी व्यक्ति की भैंस, गाय या फिर अन्य जीव खूंटा तुड़वाकर किसी किसान के खेत में घुस जाता था तो खेत का मालिक बिना किसी रहम किए तुरंत फाटक में पहुंचा देता था। इस प्रकार पशु का मालिक उसे छुड़ाने के लिए अता तो उससे जुर्माना वसूला जाता था।
बाद में आवारा जंतुओं को बंद करने लगे-
बाद में किसान अपने खेतों से आवारा गायों को खेत से घेरकर इसी फाटक में बंद कर देते थे किंतु उस वक्त फाटक का गेट कीपर नहीं होता था। बाद में कनीना में गौशाला बना देने पर फाटक का कोई औचित्य नहीं रहा था। प्रधान ने बताया कि कभी यहां भी अतिक्रमण ो गया था जिसको अब टाकर चारदीवारी बना दी ै।
क्या कहते हैं अधिकारी-
नगरपालिका प्रधान सतीश जेलदार का कहना है कि इस समय फाटक का कोई औचित्य नहीं रहा है। यहां पर गेट कीपर भी अन्यत्र भेजा जा चुका है। यहां पर बना 50 बाई 50 का भवन जर्जर हो चुका है जिसकी सरकार से अनुमति लेकर नीलामी की जा सकती है। करीब डेढ़ कनाल जमीन पर चारदीवारी करके नगरपालिका का कब्जा किया हुआ है।
फोटो कैप्शन 10: फाटक का जर्जर भवन।

 
खत्म कर दी है बुर्जी और सेहदा
-लाल पत्थर भी इक्का-दुक्का नजर आता है 

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****** कनीना। 1962 में चकबंदी के समय हर 5 एकड़ एवं 10 एकड़ पर स्थापित किए गए लाल पत्थर, दो गांवों की सीमा पर स्थापित बुर्जी, तीन गांवों की सीमा पर स्थापित सेहदा धीरे-धीरे किसानों ने खत्म कर दिया। अब जब पैमाइश होती है तो इनके अभाव में भारी परेशानी उठानी पड़ती है। कभी-कभी तो दो गांवों की सीमा विवाद के चलते धरती को खोदना पड़ता है और बनाई गई बुर्जी को देखना होता है।
चकबंदी के समय में पूर्व से पश्चिम दिशा में हर 5 एकड़ पर तथा उत्तर से दक्षिण पर दिशा में 10 एकड़ पर लाल पत्थर नाम से पत्थर गाड़े गए थे। गहराई तक गाड़े गये ये पत्थर आज भी वैसे के वैसे मिल सकते हैं। यह सत्य है कि किसानों ने उनको इसलिए काट दिया या तोड़ डाला क्योंकि वे हल चलाने में या ट्रैक्टर द्वारा जुताई करने में समस्या बन रहे थे परंतु जब भी पैमाइश की जाती है तीन लाल पत्थरों का ही सहारा लिया जाता है। यदि इन पत्थरों की दूरी में कहीं फर्क भी पाया जाता है तो उसे किले से काट दिया जाता है। ये चकबंदी की बेहतरीन व्यवस्था थी। जब पैमाइश की गई, खेत का रास्ता छोड़ा गया था बहुत ही सूझबूझ से काम लिया गया था। पैमाइश के लिए, भविष्य के लिए भी लाल पत्थर छोड़े गए थे। दो गांवों की सीमाओं पर बुर्जी बनाई गई थी ताकि दूर से और नजर आए। वहीं तीन गांवों की सीमा पर सेहदा बनाए जाते थे और आज वो सेहदा नजर नहीं आते और लाल पत्थर भी नजर नहीं आते। यही हालात बुर्जियों की है।
दो गांव की सीमा पर बुर्जी स्थापित की जाती थी और जो गहराई पर स्थापित की जाती थी। कच्चा कोयला भरकर चूना से बनाई जाती थी। ऊपर लाल पत्थर या बुर्जी बनाई जाती थी ताकि दूर से दिखाई दे कि यह दो गांव की सीमा है और उन सीमाओं पर दोनों गांव के लोग पेड़ पौधे लगाते थे। विवाह शादी के समय भी इन सीमाओं पर रस्म अदा की जाती थी।
तीन गांव की सीमा हो वहां पेयजल सप्लाई  टैंक जैसा सेहदा बनाया जाता था। यह भी  6-7 फुट गहराई तक गाड़ा जाता था। दूर से दिखाई देता था कि यहां 3 गांवों की सीमा लगती है।
ये बुर्जी और सेहदा खसरा एवं गिरदावरी में नोट किये जाते थे। जब भी पैमाइश की जाती है तीन लाल पत्थरों से मिलान करके की जाती है। यदि कहीं अंतर आता है तो किले से काटने की परंपरा है।
 क्या कहते हैं उमेद सिंह जाखड़ पटवारी-
 उमेद सिंह जाखड़ पटवारी का कहना है कि बुर्जी, सेहदा,लाल पत्थर चकबंदी की निशानी ही नहीं भविष्य में की जाने वाली पैमाइश का आधार होती है। इनके साथ छेड़छाड़ करना अपराध है। यदि इनके साथ छेड़ करता है तो उसकी एफआईआर दर्ज कराई जा सकती है। नियम अनुसार ऐसे व्यक्ति को सजा का प्रावधान है।
विवाह शादी में निभाई जाती है परंपरा-
 विवाह शादी करके दुल्हन को गाड़ी में लाया जाता है तो वह अपने साथ एक लाल कपड़े से बंधेे हुए करवे में मिठाई तथा पैसे आदि डालकर लाते हैं। जब अपने गांव की सीमा में प्रवेश करते है तो इसे फेंक दिया जाता है। यद्यपि इसके पीछे माना जाता है कि जंगली जीव इस मिठाई को खाएंगे और वह भी खुश हो जाएंगे।
कौन-कौन सी सीमाएं लगती है-
 कनीना की कुल 2383 हेक्टेयर भूमि है जिसके चारों ओर कोटिया, करीरा, भडफ़, उन्हाणी, चेलावास, ककराला, गाहडा आदि गांवों की सीमाएं लगती हैं। लगभग सारे पत्थर और बुर्जी सेहदा आदि तोड़ दिए हैं या भूमि में दबे हुए हैं। जब कभी गांवों की सीमा का विवाद हो जाता है तो बुर्जी को भूमि से खोदकर ढूंढा जाता है। परंतु ऐसा भी होता है कि कई बार ये नहीं मिलती।
 फोटो कैप्शन 1 और 2: लाल पत्थर एवं लाल पत्थर को दिखाता किसान देशराज कोटिया।

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