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Sunday, January 10, 2021

 अज्ञात चोरों ने तीन दुकानों में सेंध लगाने का किया प्रयास
- तोड़े हुये ताले एवं कुछ नकदी ले उड़े चोर
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 कनीना। शनिवार की रात को अज्ञात चोरों ने कनीना बस स्टैंड पर दो दुकानों में सेंध लगाने का प्रयास किया जिसमें उन्हें अधिक माल एवं नकदी हाथ नहीं लगा। पुलिस मामले की जांच कर रही है। पुलिस तक सूचना जरूर दी गई किंतु लिखित शिकायत नहीं पहुंची है।
 अज्ञात चोर एक दुकान के ताले तोड़ कर ले गए वहीं एक दुकान का शटर तोड़ गए तथा तीसरी दुकान का ताला ही काट पाये।
मिली जानकारी के अनुसार अज्ञात चोरों ने एक  बिजली के सामान विक्रेता की दुकान का शटर तोड़ डाला लेकिन उसके यहां किसी प्रकार के सामान एवं नकदी की चोरी नहीं हो पाई एक पेंट की दुकान के ताले काट ले गए और कुछ नकदी भी ले उड़े। गाहड़ा रोड के सामने भी एक दुकान के ताला तोड़कर तोडऩे का प्रयास किया किंतु वहां से भी कोई माल एवं नकदी न ले जाने की सूचना मिली है।
करीना बस स्टैंड चौकी के पास बिजली के सामान विक्रेता की दुकान का शटर तोड़ डाला। दुकान के चालक पूर्व पार्षद रोशन ने बताया कि अज्ञात चोर उनकी दुकान के शटर को तोडऩे में कामयाब हुए लेकिन सामान लेकर नहीं गए। उन्होंने बताया कि वे शनिवार को दुकान का ताला लगाकर घर आये थे। उनको रात्रि करीब साढ़े ग्यारह बजे पुलिस की सूचना मिली कि उनकी दुकान का शटर किसी अज्ञात चोरों ने तोड़ दिया है। वे मौके पर पहुंच कर रात भर दुकान की रखवाली करते रहे लेकिन अज्ञात चोर अंदर से कुछ भी नहीं ले जा सके। दूसरी ओर पशु अस्पताल के पास की एक पेंट की दुकान के ताले तोड़कर ले गये तथा कुछ नकदी भी ले गये और शटर बंद करके चले गये। दुकान संचालक नवीन कुमार ने बताया कि उनके अज्ञात चोर ताले भी तोड़ ले गया और 8 से दस हजार के बीच की नकदी भी अंदर से ले गये। उधर गाहड़ा रोड के पास भी एक दुकान के ताले तोडऩे में का प्रयास किया गया किंतु अज्ञात चोर कुछ भी नहीं ले जा सके।
 फोटो कैप्शन 10 एवं 11: कनीना बस स्टैंड के पास दुकान का तोड़ा हुआ शटर।

विभिन्न पर्वों के दृष्टिगत बाजार में आये मूंगफली,रेवड़ी, तिल एवं गजक
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कनीना। विभिन्न पर्वों के दृष्टिगत बाजार में मूंगफली,गुड़, गजक शक्कर, शकरकंदी, रेवड़ी, तिल आदि की बहार आ गई है। बाजारों में जहां भी देखे ठेलों पर तथा सब्जी की दुकानों पर ये पदार्थ सजे मिलते हैं। 13 जनवरी को लोहड़ी का पर्व आ रहा है जब रेवड़ी एवं मूंगफली जमकर खाई जाती हैं। वहीं 14 जनवरी को मकर संक्रांति पर गुड़, मूंगफली, शक्कर, शकरकंदी, गजक जमकर खाई जाती हैं वहीं 31 जनवरीर को तिल कुटनी का व्रत आ रहा है जब महिलाएं व्रत रखती हैं तथा तिल कूटकर खाती हैं।
लोहड़ी-
13 जनवरी को देशभर में लोहड़ी का त्योहार बड़े उत्साह के साथ मनाया जाएगा। यह पर्व पंजाबी समुदाय के विशेष होता है।
इस पर्व से जुड़ी यादों के बारे में सुभाषचंद धींगड़ा ने बताया कि पर्व लोहड़ी से पंजाब में दुल्ला भट्टी का नाम जुड़ा है। इनका जिक्र लोहड़ी से जुड़े हर गीत में भी किया जाता है। कहा जाता है कि मुगल काल में बादशाह अकबर के समय में दुल्ला भट्टी नाम का एक युवक पंजाब में रहता था। कहा जाता है कि एक बार कुछ अमीर व्यापारी कुछ समान के बदले इलाके की लड़कियों का सौदा कर रहे थे। तभी दुल्ला भट्टी ने वहां पहुंचकर लड़कियों को व्यापारियों के चंगुल से मुक्त कराया। और फिर इन लड़कियों की शादी हिन्दू लड़कों से करवाई। इस घटना के बाद से दुल्हा को भट्टी के नायक की उपाधि दी गई और हर बार लोहड़ी पर उसी की याद में कहानी सुनाई जाती है।
 लोहड़ी के दिन आग जलाने को लेकर माना जाता है कि यह अग्नि राजा दक्ष की पुत्री सती की याद में जलाई जाती है। एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ करवाया और इसमें अपने दामाद शिव और पुत्री सती को आमंत्रित नहीं किया। इस बात से निराश होकर सती अपने पिता के पास आकर पूछा कि उन्हें और उनके पति को इस यज्ञ में निमंत्रण क्यों नहीं दिया गया। इस बात पर अहंकारी राजा दक्ष ने सती और भगवान शिव की बहुत निंदा की। इससे सती बहुत आहत हुईं और क्रोधित होकर खूब रोईं। उनसे अपने पति का अपमान देखा नहीं गया और उन्होंने उसी यज्ञ में खुद को भस्म कर लिया। सती के मृत्यु का समाचार सुन खुद भगवान शिव ने वीरभद्र को उत्पन्न कर उसके द्वारा यज्ञ का विध्वंस करा दिया। तब से माता सती की याद में लोहड़ी को आग जलाने की परंपरा है।
मकर संक्रांति-
 14 जनवरी को मकर संक्रांति पर्व मनाया जाएगा। इस पर्व पर  गजक, शकरकंदी एवं मूंगफली अधिक मांग रहती है तथा रात भर लोग ईंधन जलाकर उस के समीप बैठे इन पदार्थों का सेवन करते हैं।
  कनीना के बाजार में मूंगफली, गजक और रेवड़ी का भी बोल बाला है। मूंगफली, गजक, रेवड़ी जैसे पदार्थ 13 जनवरी 14 जनवरी को जम कर खाए जाते हैं। पूरी रात लोग आग के पास बैठे रहते हैं और मूंगफली, गजक, शकरकंदी आदि का उपयोग करते हैं। ऐसा माना जाता है कि इस दिन सुबह सवेरे जल्दी उठकर स्नान किया जाना भी बेहद लाभकारी हैं। इस दिन दान पुण्य की परंपरा चलती रहती है। इस पर्व पर दिनभर गुड़ का चूरमा एवं दाल खाई जाती है जो पुराने समय से चली आ रही है।
मूंगफली, गजक, रेवड़ी बेचने वाले रोहित कुमार तथा योगेश कुमार ने बताया कि पर्वों को ध्यान में रखते हुए इन पदार्थों को अधिक मात्रा में रखा जाता है ताकि उनकी बिक्री हो सके और वे अपनी रोटी रोटी कमा सके। इस बार विगत वर्ष की तुलना में मूंगफली एवं गजक, रेवाड़ी करीब 15 रुपये किलो महंगी। मूंगफली एक सौ रुपये प्रति किलो तक बेच रहे हैं। राम बाबू ठेले पर काम करने वाले ने बताया कि कच्ची मूंगफली विगत वर्ष 52 से 55 रुपये मिलती थी किंतु इस बार 66 रुपये प्रति किलो तक मिल रही हैं।
तिल कुटनी-
क्षेत्र में 31 जनवरी को तिल कुटनी का व्रत आ रहा है जिसमें तिल एवं गुड़ की मांग अधिक होती है। इस पर्व पर तिलों को कुटकर तथा चासनी में डालकर बनाई गई विशेष प्रकार की केक खाकर मनाया जाता है। अविवाहित महिलाएं अपने सुपति की कामना से तो विवाहित महिलाएं अपने पुत्र, भाई  एवं पति की मंगलकामना के लिए व्रत करती हैं। चांद को देखकर तथा उसे अघ्र्य देकर ही इस व्रत का समापन किया जाता है। ऐसे में बाजार में तिल आ गये हैं जो विवाहित लड़कियों तक उसके परिजन पहुंचाने जा रहे हैं जिसे त्योहारी नाम से जाना जाता है।
ठेले एवं दुकानों पर सजे सामान-
जहां सब्जी की दुकानों पर शकरकंदी भारी मात्रा में आ रही हैं जो 35 रुपये किलो तक बिक रही हैं। विगत वर्ष 20 रुपये किलो तक भाव था। ठेले पर रेवड़ी लगाने वाले शिव कुमार, देवेश कुमार, नरेश कुमार ने बताया कि 125 रुपये किलो तक रेवड़ी बेची जाती हैं। रेवड़ी एवं गजक के लिए रेवाड़ी एवं रोहतक मशहूर हैं जहां से बनकर आती हैं। मार्केट में वर्तमान में कुछ दिनों तक इन्हीं पदार्थोंे का जोर रहेगा। ग्राहक भी खूब आ रहे हैं। इनसे रोटी रोजी भी सैकड़ों ठेले वाले कमा रहे हैं।
फोटो कैप्शन 7/ 8 व 9:मूंगफली, गजक, रेवड़ी, तिल बेचते हुए।जागरण

अभी नहीं मिल पाई बर्खास्त पीटीआई को राहत
- नहीं मिले हैं नियुक्ति पत्र
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 कनीना। हरियाणा सरकार ने कोर्ट के आदेशों के चलते 1980 पीटीआई बर्खास्त कर दिये थे। जहां करीब 6 माह पहले बर्खास्त किये पीटीआई को लंबे समय तक संघर्ष जारी रहा। आखिरकार शिक्षा विभाग में समायोजित करने के लिए प्रक्रिया शुरू की। उनके आवश्यक कागजात तसदीकीकरण, काउंसलिंग आदि शुरू की गई जिसके चलते उनके चेहरे पर मुस्कान लौट आई थी किंतु अभी तक उन्हें स्टेशन अलाट नहीं किये गये हैं जबकि स्टेशन मांगे हुये दो माह से अधिक समय बीत गया है।
 पीटीआई जोगेंद्र सिंह, मनीष कुमार, सुनील कुमार, रघुवीर सिंह, बलजीत सिंह, संतोष कुमार, सुरेंद्र कुमार आदि ने बताया कि अभी तक उन्हें यह स्पष्ट नहीं था कि उन्हें कब तक समायोजित किया जाएगा। उनके काउंसलिंग शुरू होने और उनके कागजात जांच करने की कार्रवाई शुरू होने पर  विश्वास हो गया था कि उनकी छीनी हुई रोटी रोजी फिर से बहाल होने जा रही है। जिला महेंद्रगढ़ के 89 बर्खास्त पीटीआई को जिले में ही समायोजित किए जाएंगे बाकी कुछ दूसरे जिलों में भी जाएंगे। उन्होंने बताया करीब 2 माह पहले आनलाइन आवेदन मांगे थे, स्टेशन भी भरवा दिए गए थे। काउंसलिंग भी संपन्न हो चुकी है। अब तक बर्खास्त पीटीआई घुट घुट कर जी रहे हैं। उल्लेखनीय  कुछ  बर्खास्त पीटीआई तो ऐसे थे कि अपनी रोटी रोजी कमाने के लिए पशु पालने तक का ही धंधा शुरू कर दिया था। परंतु अब सरकार पर नजरें टिकी हैं कि वो उन्हें कब तक स्टेशन अलाट कर उनके चेहरे पर खुशी लौटा पाएगी। अभी तक नये साल पर नियुक्ति पत्र मिलने की संभावना थी किंतु नये साल को शुरू हुये दस दिन जा चुके हैं। उन्होंने अविलंब नियुक्ति पत्र देने की मांग की है।
उल्लेखनीय है कि शिक्षा के क्षेत्र में जहां वर्ष 2019 में जहां 1983 शारीरिक शिक्षकों ने अपनी नौकरी गंवा दी जिनमें से जिला महेंद्रगढ़ से 100 के करीब शिक्षक थे। यद्यपि उन्हें पुन: नौकरी में लिया जा रहा है लेकिन अभी तक उन्हें नियुक्ति पत्र नहीं मिले हैं। शारीरिक शिक्षकों को समायोजित करने की प्रक्रिया अंतिम चरण में बताई जा रही है। उन्हें 24000 रुपये प्रति माह वेतन दिया जाएगा।


बेची हुई सरसों के पेमेंट न मिलने से किसानों में रोष
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 कनीना। करीब ढाई माह पहले किसानों ने हैफेड कनीना खरीद केंद्र पर आढ़तियों के मार्फत बाजरे की बिक्री की थी लेकिन बहुत से किसानों के पैसे उनके खाते में न आने से रोष पनप रहा है। अकेले कनीना से 500 से किसान बताए जा रहे हैं जिनका जिनके खाते में उनकी राशि नहीं डाली है।
एक अक्टूबर से 2020 से बाजरे की खरीद कनीना अनाज मंडी में हैफेड द्वारा की गई थी। तत्पश्चात दो खरीद केंद्र बना दिए थे जिनमें से दूसरा खरीद केंद्र श्रीकृष्ण गौशाला के पास था। करीब 12750 किसानों ने अपना बाजरा बेचा था जिनमें से पांच सौ के करीब किसानों के खाते में राशि अभी तक न आने से अब किसानों में रोष पनपने लगा है। वे आढ़तियों के पीछे लगे हुए हैं कि उनकी राशि दिलवाई जाए। आढ़तियों का रोल बाजरे को खरीद कर हैफेड तक पहुंचाना था। ऐसे में आढ़ती असमर्थ नजर आ रहे हैं।
 किसानों प्रकाश, राहुल, पूनम रसूलपुर, प्रभाती लाल, सुरेंद्र कुमार कनीना, सरदार सिंह, अंकित चेलावास, राजेश, जगत सिंह, विक्रम ककराला तथा नरेश नांगल मोहनपुर आदि ने बताया कि उन्होंने बाजरे की बिक्री सरकारी दर 2150 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से हैफेड को बेची थी किंतु उनके खाते में पैसे नहीं पहुंचे हैं। यदि पोर्टल उनके खाते की राशि के अपडेट के बारे में देखते हैं तो या तो पेमेंट फेलियर या पेमेंट इन प्रोसेस लिखा हुआ आ रहा है। विगत कई दिनों से किसान पोर्टल पर नजरें टिकाये हुये हैं किंतु परिणाम शून्य रहता है।
क्या कहते हैं आढ़ती-
कनीना मंडी के आढ़ती रविंद्र बंसल, ओम प्रकाश लिशानिया आदि ने बताया कि जो किसान उनके जरिए बाजरा बेचकर गए और उनके खाते में राशि नहीं आई है उनके पास आकर पैसे मांगते हैं जबकि पैसे की जिम्मेवारी हैफेड की होती है। वे तो आढ़ती की भुमिका निभाते रहे हैं जो जे नामक फार्म भरकर किसानों को उपलब्ध करवाते रहे हैं।
क्या कहते हैं हैफेड मैनेजर -
कनीना हैफेड मैनेजरसत्येंद्र यादव ने बताया कि कुछ किसानों के खाते में राशि न आने के पीछे खाते में जीरो समस्या बना हुआ है। जब किसानों ने फसल रजिस्ट्रेशन करवाया उस समय विभिन्न कंप्यूटर जीरो को नहीं पकड़ रहे थे। खाता संख्या जीरो से स्टार्ट होती है। और जीरो न लग पाने के कारण रजिस्ट्रेशन तो हो गया किंतु अब जब पेमेंट डालते हैं तो दिक्कत आ रही है। खाता संख्या गलत दिखाकर पेमेंट वापस लौट जाती है। उन्हें अपडेट करवाया जा रहा है और आगामी 5 से 7 दिनों में यह समस्या हल कर दी जाएगी। उन्होंने कहा कि रोजाना किसान उनके पास आ रहे हैं उन्हें समझाया भी जा रहा है। किसानों को अपने खाते को अपडेट करना चाहिए क्योंकि उनके खाते में आने वाली राशि वापिस चली गई जो पुन: डाली जाएगी।



समाजसेवी ने हिंदी दिवस पर लगाए पौधे
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 कनीना। इसराना के समाजसेवी मोहित यूं तो समय-समय पर तुलसी पौधे वितरण करने में अग्रणी भूमिका निभाते हैं किंतु हिंदी विश्व हिंदी दिवस पर उन्होंने न केवल हिंदी के बारे में जानकारी दी अपितु बच्चों के साथ पौधारोपण किया और उनमें पानी भी दिया।
 उन्होंने कहा कि विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर मोहित ईसराना ने बताया कि वैसे तो सभी भाषाएं महत्वपूर्ण होतीं है लेकिन मातृभाषा की बात ही अलग होती है। किसी भी देश की अस्मिता की पहचान उसकी अपनी मातृभाषा होती है । जो देश अपनी मातृभाषा को भूला देता है वह अपना इतिहास मिटा देता है। ठीक उसी प्रकार हिंदी भाषा भी भारत का गौरव है प्रत्येक भारतीय जनमानस को आपस में एक सूत्र में पिरोने का कार्य करती है साथ ही सभ्य और  विशाल साहित्य की जननी भी है। आधुनिक युग में तकनीकी क्षेत्र में भी हिंदी अपना प्रभाव जमा रही है। आज हिंदी विश्व की शीर्ष भाषाओं में शामिल है यह हम सब के लिए गर्व का विषय है।
  इस मौके पर उन्होंने तुलसी के पौधे वितरित किये एवं कुछ पौधे लगाये। पौधों को पानी भी दिया।
फोटो कैप्शन 6: मोहित इसराना बच्चों के संग पौधा रोपण करते हुए।

पूरे दिन रही कनीना में जाम की समस्या
-वैकल्पिक मार्गों से निकाले वाहन
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 कनीना। उपमंडल कनीना के बस स्टैंड समक्ष गुजरने वाले महेंद्रगढ़-रेवाड़ी हाइवे पर रविवार को दिनभर जाम की समस्या रही। ग्राम सचिव की परीक्षा के चलते अधिक समय लगा जाम। रेवाड़ी तथा महेंद्रगढ़ जाने वाले इस मार्ग से गुजरे हैं। आए दिन यही हालात रहती है। भारी संख्या में वाहन दिन भर गुजरते रहते हैं जिसके चलते सड़क पार करने में भी 5 से 7 मिनट का इंतजार करना पड़ता है।
 महेश बोहरा, कुलदीप सिंह, दिनेश कुमार, सुरेश कुमार आदि ने बताया कि जब कभी कनीना मंडी से महेंद्रगढ़ या रेवाड़ी की ओर जाना हो तो काफी समय इंतजार करने पर ही रास्ता मिलता है। यहां तक कि दुर्घटना घटने की आशंका बनी रहती है। पहले भी बस स्टैंड के आसपास आधा दर्जन दुर्घटनाएं घट चुकी है। उन्होंने अविलंब बाईपास बनाने की मांग की है। उन्होंने बताया कि शनिवार एवं रविवार को तो ग्राम सचिव के लिए चयन परीक्षा हुई जिसके चलते जाम अधिक समय तक देखने को मिला। एक किमी लंबा जाम देखने को मिला। उस लोहड़ी एवं मकर संक्रांति का पर्व भी आ रहा है।
वैकल्पिक मार्गों से वाहन भेजे--
रेवाड़ी मोड़ से अटेली मोड़ तक करीब डेढ़ किमी लंबा जाम लगा रहा जिसके चलते आवागमन ठप रहा। साइकिल सवार भी तेज रफ्तार की वैन से आगे निकलते देखे गये। वाहन चालक जाम से बचने के लिए वैकल्पिक मार्गों से जाते देखे गये। रेवाड़ी मार्ग से महेंद्रगढ़ मार्ग तक कस्बा कनीना के अंदरूनी मार्ग प्रयोग किये गये। लोग उचित दिशा में जाने के बारे में बार बार पूछते देखे गये। दो दिनलों से यही समस्या चली है।  
 इससे पहले बाईपास के संबंध में उच्चाधिकारियों को भी महेश कुमार बोहरा एवं कुलदीप सिंह ने पत्र भेजा था जिस पर संज्ञान लेते हुए कार्रवाई भी चली थी। सांसद महेंद्रगढ़-भिवानी चौ धर्मवीर सिंह ने राजकुमार कनीनवाल मार्केट कमेटी अध्यक्ष के घर पर प्रेस वार्ता में बाईपास जल्द ही बनाए जाने की चर्चा की थी किंतु आज तक बाईपास नहीं बना है।
कनीना के रवि कुमार का कहना है कि कनीना बस स्टैंड के समक्ष बढ़ते हुए वाहनों के दाब के चलते जल्द से जल्द बाईपास का निर्माण करवाया जाए ताकि कनीना वासियों तो कुछ राहत मिल सके। उन्होंने कहा कि अक्सर देखने में आया है कि वाहन  इस कदर चलते हैं कि छोटे बच्चे तो दूर बड़े लोग भी लंबे समय तक इंतजार करके रास्ता पार करते हैं। उधर कुलदीप कुमार ने बताया कनीना बस स्टैंड वैसे ही जाम का घर बना हुआ है यहां से वाहन गुजरना तो दूर कई बार पुलिस के वाहन तथा एंबुलेंस जाम में फंसी देखी जाती है। भारी वाहनों का का जमघट बना रहता है जो रास्ता नहीं देते जिससे जान-माल की नुकसान होने की संभावना बनी रहती है। अतिक्रमण वाहनों का आवागमन इस समस्या को बढ़ा रहा है।
 पिंकी यादव का कहना है कि बस स्टैंड पर जाम की समस्या से निजात दिलाने का केवल बाईपास ही समाधान है वरना समाधान नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि कनीना बस स्टैंड से जहां चरखी दादरी, नारनौल, अटेली, दिल्ली, रोहतक, भिवानी के मार्ग है जिसके कारण भीड़ का दबाव बढ़ता ही जा रहा है।
उन्होंने अविलंब बाईपास बनाकर इस समस्या का समाधान करने लोगों को राहत दिलाने की मांग की है।
फोटो कैप्शन 3 व 4: कनीना बस स्टैंड समक्ष रेवाड़ी-महेंद्रगढ़ मार्ग पर जाम का नजारा।
5 सालों से कर रहे मटर की खेती
-सरसों के मुकाबले मिल रही है बेहतर दाम
संवाद सहयोगी, कनीना। कनीना क्षेत्र से सैकड़ों एकड़ भूमि पर किसानों ने मटर की खेती की है जो बेहतर आय दे रही है। किसान दो प्रकार की मटर की खेती कर रहे हैं जिनमें एक सूखी तो दूसरी हरी मटर बेचने वाले शामिल हैं।
कनीना उपमंडल के गांव मोड़ी में जहां गजराज सिंह, कांता अजय कुमार विगत 5 सालों से मटर की कांट्रैक्ट खेती तथा निजी स्तर पर खेती कर रहे हैं जिससे हर वर्ष सरसों और गेहूं के मुकाबले ज्यादा लाभ कमा रहे हैं। कॉन्ट्रैक्ट खेती 5 सालों से उगाते आ रहे है। मटर की खेती सरसों के मुकाबले बेहतर आय प्रदान कर रही है।  
कांट्रैक्ट खेती -
गजराज सिंह मोड़ी ने बताया कि वे गोल्डन नामक कंपनी से कोंटे्रक्ट पर खेती करते हैं। 3000 रुपये प्रति 30 किलोग्राम बीज कंपनी देती है। जिसको उगाकर सूखे मटर आठ क्विंटल प्रति एकड़ के हिसाब से 5400 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से कंपनी वापस लेती है। जबकि पैदावार 10 से 12 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। उन्होंने बताया कि कंपनी ने अब तक हर वर्ष लाभ दिया है। महज एक साल कंपनी ने उनके बीज नहीं खरीदे जिसके चलते उन्हें परेशानी उठानी पड़ी थी और 3800 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से बाजार में बेचने पड़े थे। गजराज सिंह ने बताया कि कांट्रेक्ट खेती कनीना क्षेत्र के सैकड़ों किसान करते आ रहे हैं।
सब्जी वाले मटर---
 किसान अजय कुमार और कांता मोड़ी ने बताया कि वे 1 से 2 एकड़ भूमि पर प्रतिवर्ष हरे मटर उगाते हैं जिनका उद्देश्य सब्जी होता है। जनवरी माह में पैदावार शुरू हो जाती है जो करीब 1 महीने चलती है। करीब 50 क्विंटल प्रति एकड़ पैदा हो जाती है। बाजार में भाग 10 से 15 रुपये प्रति किलों के हिसाब से 50 से 60 हजार रुपये प्राप्त हो जाते हैं जबकि मटर उखाडऩे के बाद मक्का उगाई जाती है। जबकि सरसों से प्रति एकड़ 40 हजार रुपये प्रति एकड़ मिलते हैं जबकि एक एकड़ में 10 से 12 क्विंटल सरसों पैदावार होती है।  
कनीना क्षेत्र के अनेकों किसान मटर की खेती कर रहे हैं। अजय इसराणा महाबीर सिंह आदि भी मटर उगाते हैं।
क्या कहते हैं किसान ---
अजीत कुमार किसान का कहना है कि वे कांट्रैक्ट पर मटर की खेती करते आए हैं। कंपनी जितना बीज वापस लेने का वादा करती है उस अनुसार वापस करके बचे हुए मटर को घर पर प्रयोग करते हैं। उन्हें पानी में भिगोकर वर्षभर सब्जी के रूप में काम में लेते है। कुछ आसपास के लोगों को दे देते हैं तथा यदि बाजार में भाव अच्छे हो तो खुले बाजार में भी मटर बेच देते हैं। इस प्रकार सारे उत्पादित मटर प्रयोग में आते हैं।
गजराज सिंह का कहना है कि वे कंपनी से बीज लेते हैं लेकिन कंपनी निश्चित मात्रा में आठ क्विंटल ही प्रति एकड़ के हिसाब से वापस लेती है जबकि पैदावार 12 क्विंटल तक पहुंचती है। इसलिए बचे हुए मटर को या तो सब्जी के रूप में प्रयोग करते हैं या पशु रखते हैं, पशुओं को खिलाते हैं। बाजार से पशुओं का खल, बिनौला, चूरी आदि लाने पड़ते हैं। उनकी बचत हो जाती है और उन्हें खिला कर उन्हें खुशी होती है। उन्होंने कहा कि कंपनी अलग-अलग समय में अलग-अलग रुपए में खरीदती है। पहले वर्ष 4800 रुपये दूसरे वर्ष 4000 रुपये, तीसरे वर्ष 5200 रुपये चौथे वर्ष 6000 रुपये वापस लिये हैं और इस वर्ष 5400 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से वापस लेगी। बचे हुए मटर को घर पर ही प्रयोग करें।
किसान कांता का कहना है कि वे अधिकांश कांट्रैक्ट पर खेती करते हैं जो या तो हरे रूप में मटर को बाजार में बेच दिया जाता है तथा कंपनी के 8 क्विंटल प्रति एकड़ के हिसाब से वापस कर दिए जाते हैं तो कुछ बचे हुए उनकी गाय के चारे के रूप में काम आते हैं। गाय के लिए बेहतर सांद्र चारा बनता है। उनका कहना है कि कंपनी पर ही हमें निर्भर नहीं रहना पड़ता अपितु बाजार में अच्छे भाव तो हरी मटर बेच दी जाती है, यदि वहां से भी अच्छे भाव नहीं मिलते तो उन सभी को पकाकर सुखाकर पैदावार लेकर खुले बाजार में बेच दिया जाता है। कई रूपों में मटर प्रयोग करते हैं।
क्या कहते हैं अधिकारी --
बागवानी विभाग गुरुग्राम के विषय वस्तु विशेषज्ञ डा मनदीप यादव ने बताया की मटर की खेती के लिए दक्षिण हरियाणा विशेषकर महेंद्रगढ़ जिले की भूमि और जल उचित है। यहां किसान प्रति एकड़ 50 से 60 हजार रुपये तक कमा लेते हैं। मटर दलहन जाति की फसलों में शामिल हैं।  भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ा देते हैं। उन्होंने बताएं महेंद्रगढ़ जिले में प्रतिवर्ष करीब 1500 एकड़ पर मटर उत्पादन किया जाता है। किसान हरी मटर और सूखी मटर बेचते हैं। जिले में तीन कलस्टर मटर उत्पादन के है जिनमें पहला कलस्टर सतनाली, सुरेहती, डालनवाला, माधोगढ़ है जबकि दूसरे कलस्टर में करीरा,भडफ़,कपूरी कोटिया आदि आते हैं जबकि तीसरे कलस्टर में पटिकरा,शोभापुर,कोजिंदा शामिल किए गए हैं। उन्होंने बताया कि सरकार मटर की खेती पर अनुदान भी देती है। अलग-अलग प्रकार का है का अनुदान दिया जाता है। उन्होंने बताया कि 5 करोड रुपए की लागत से सबसे बड़ा मटर पर आधारित किसान उत्पादन समूह नारनौल के पटिकरा में लगाया गया है जहां किसानों को 80 प्रतिशत तक सब्सिडी मिलेगी। यहां मटर पर आधारित विभिन्न पदार्थ तैयार किए जा सकेंगे। मटर की खेती किसानों के हित बताया।
 फोटो कैप्शन 4 एवं 5: क्षेत्र में मटर की खेती करता मोड़ी का किसान। साथ में कांता, अजय, गजराज एवं डा मंदीप

अभी नहीं मिल पाई बर्खास्त पीटीआई को राहत
- नहीं मिले हैं नियुक्ति पत्र
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 कनीना। हरियाणा सरकार ने कोर्ट के आदेशों के चलते 1980 पीटीआई बर्खास्त कर दिये थे। जहां करीब 6 माह पहले बर्खास्त किये पीटीआई को लंबे समय तक संघर्ष जारी रहा। आखिरकार शिक्षा विभाग में समायोजित करने के लिए प्रक्रिया शुरू की। उनके आवश्यक कागजात तसदीकीकरण, काउंसलिंग आदि शुरू की गई जिसके चलते उनके चेहरे पर मुस्कान लौट आई थी किंतु अभी तक उन्हें स्टेशन अलाट नहीं किये गये हैं जबकि स्टेशन मांगे हुये दो माह से अधिक समय बीत गया है।
 पीटीआई जोगेंद्र सिंह, मनीष कुमार, सुनील कुमार, रघुवीर सिंह, बलजीत सिंह, संतोष कुमार, सुरेंद्र कुमार आदि ने बताया कि अभी तक उन्हें यह स्पष्ट नहीं था कि उन्हें कब तक समायोजित किया जाएगा। उनके काउंसलिंग शुरू होने और उनके कागजात जांच करने की कार्रवाई शुरू होने पर  विश्वास हो गया था कि उनकी छीनी हुई रोटी रोजी फिर से बहाल होने जा रही है। जिला महेंद्रगढ़ के 89 बर्खास्त पीटीआई को जिले में ही समायोजित किए जाएंगे बाकी कुछ दूसरे जिलों में भी जाएंगे। उन्होंने बताया करीब 2 माह पहले आनलाइन आवेदन मांगे थे, स्टेशन भी भरवा दिए गए थे। काउंसलिंग भी संपन्न हो चुकी है। अब तक बर्खास्त पीटीआई घुट घुट कर जी रहे हैं। उल्लेखनीय  कुछ  बर्खास्त पीटीआई तो ऐसे थे कि अपनी रोटी रोजी कमाने के लिए पशु पालने तक का ही धंधा शुरू कर दिया था। परंतु अब सरकार पर नजरें टिकी हैं कि वो उन्हें कब तक स्टेशन अलाट कर उनके चेहरे पर खुशी लौटा पाएगी। अभी तक नये साल पर नियुक्ति पत्र मिलने की संभावना थी किंतु नये साल को शुरू हुये दस दिन जा चुके हैं। उन्होंने अविलंब नियुक्ति पत्र देने की मांग की है।
उल्लेखनीय है कि शिक्षा के क्षेत्र में जहां वर्ष 2019 में जहां 1983 शारीरिक शिक्षकों ने अपनी नौकरी गंवा दी जिनमें से जिला महेंद्रगढ़ से 100 के करीब शिक्षक थे। यद्यपि उन्हें पुन: नौकरी में लिया जा रहा है लेकिन अभी तक उन्हें नियुक्ति पत्र नहीं मिले हैं। शारीरिक शिक्षकों को समायोजित करने की प्रक्रिया अंतिम चरण में बताई जा रही है। उन्हें 24000 रुपये प्रति माह वेतन दिया जाएगा।


बेची हुई सरसों के पेमेंट न मिलने से किसानों में रोष
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कनीना। करीब ढाई माह पहले किसानों ने हैफेड कनीना खरीद केंद्र पर आढ़तियों के मार्फत बाजरे की बिक्री की थी लेकिन बहुत से किसानों के पैसे उनके खाते में न आने से रोष पनप रहा है। अकेले कनीना से 500 से किसान बताए जा रहे हैं जिनका जिनके खाते में उनकी राशि नहीं डाली है।
एक अक्टूबर से 2020 से बाजरे की खरीद कनीना अनाज मंडी में हैफेड द्वारा की गई थी। तत्पश्चात दो खरीद केंद्र बना दिए थे जिनमें से दूसरा खरीद केंद्र श्रीकृष्ण गौशाला के पास था। करीब 12750 किसानों ने अपना बाजरा बेचा था जिनमें से पांच सौ के करीब किसानों के खाते में राशि अभी तक न आने से अब किसानों में रोष पनपने लगा है। वे आढ़तियों के पीछे लगे हुए हैं कि उनकी राशि दिलवाई जाए। आढ़तियों का रोल बाजरे को खरीद कर हैफेड तक पहुंचाना था। ऐसे में आढ़ती असमर्थ नजर आ रहे हैं।
 किसानों प्रकाश, राहुल, पूनम रसूलपुर, प्रभाती लाल, सुरेंद्र कुमार कनीना, सरदार सिंह, अंकित चेलावास, राजेश, जगत सिंह, विक्रम ककराला तथा नरेश नांगल मोहनपुर आदि ने बताया कि उन्होंने बाजरे की बिक्री सरकारी दर 2150 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से हैफेड को बेची थी किंतु उनके खाते में पैसे नहीं पहुंचे हैं। यदि पोर्टल उनके खाते की राशि के अपडेट के बारे में देखते हैं तो या तो पेमेंट फेलियर या पेमेंट इन प्रोसेस लिखा हुआ आ रहा है। विगत कई दिनों से किसान पोर्टल पर नजरें टिकाये हुये हैं किंतु परिणाम शून्य रहता है।
क्या कहते हैं आढ़ती-
कनीना मंडी के आढ़ती रविंद्र बंसल, ओम प्रकाश लिशानिया आदि ने बताया कि जो किसान उनके जरिए बाजरा बेचकर गए और उनके खाते में राशि नहीं आई है उनके पास आकर पैसे मांगते हैं जबकि पैसे की जिम्मेवारी हैफेड की होती है। वे तो आढ़ती की भुमिका निभाते रहे हैं जो जे नामक फार्म भरकर किसानों को उपलब्ध करवाते रहे हैं।
क्या कहते हैं हैफेड मैनेजर -
कनीना हैफेड मैनेजरसत्येंद्र यादव ने बताया कि कुछ किसानों के खाते में राशि न आने के पीछे खाते में जीरो समस्या बना हुआ है। जब किसानों ने फसल रजिस्ट्रेशन करवाया उस समय विभिन्न कंप्यूटर जीरो को नहीं पकड़ रहे थे। खाता संख्या जीरो से स्टार्ट होती है। और जीरो न लग पाने के कारण रजिस्ट्रेशन तो हो गया किंतु अब जब पेमेंट डालते हैं तो दिक्कत आ रही है। खाता संख्या गलत दिखाकर पेमेंट वापस लौट जाती है। उन्हें अपडेट करवाया जा रहा है और आगामी 5 से 7 दिनों में यह समस्या हल कर दी जाएगी। उन्होंने कहा कि रोजाना किसान उनके पास आ रहे हैं उन्हें समझाया भी जा रहा है। किसानों को अपने खाते को अपडेट करना चाहिए क्योंकि उनके खाते में आने वाली राशि वापिस चली गई जो पुन: डाली जाएगी।



समाजसेवी ने हिंदी दिवस पर लगाए पौधे
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 कनीना। इसराना के समाजसेवी मोहित यूं तो समय-समय पर तुलसी पौधे वितरण करने में अग्रणी भूमिका निभाते हैं किंतु हिंदी विश्व हिंदी दिवस पर उन्होंने न केवल हिंदी के बारे में जानकारी दी अपितु बच्चों के साथ पौधारोपण किया और उनमें पानी भी दिया।
 उन्होंने कहा कि विश्व हिंदी दिवस के अवसर पर मोहित ईसराना ने बताया कि वैसे तो सभी भाषाएं महत्वपूर्ण होतीं है लेकिन मातृभाषा की बात ही अलग होती है। किसी भी देश की अस्मिता की पहचान उसकी अपनी मातृभाषा होती है । जो देश अपनी मातृभाषा को भूला देता है वह अपना इतिहास मिटा देता है। ठीक उसी प्रकार हिंदी भाषा भी भारत का गौरव है प्रत्येक भारतीय जनमानस को आपस में एक सूत्र में पिरोने का कार्य करती है साथ ही सभ्य और  विशाल साहित्य की जननी भी है। आधुनिक युग में तकनीकी क्षेत्र में भी हिंदी अपना प्रभाव जमा रही है। आज हिंदी विश्व की शीर्ष भाषाओं में शामिल है यह हम सब के लिए गर्व का विषय है।
  इस मौके पर उन्होंने तुलसी के पौधे वितरित किये एवं कुछ पौधे लगाये। पौधों को पानी भी दिया।
फोटो कैप्शन 6: मोहित इसराना बच्चों के संग पौधा रोपण करते हुए।

















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