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Thursday, June 25, 2020

 कनीना खंड के गांव झीगावन में टिड्डी दल ने धावा बाल दिया है। किसान सावधान रहे। डीजे/ढोल/बर्तन पीटकर भगाए।







हौसले की मिसाल 
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तपती धूप में पेड़ों के नीचे बैठकर विद्यार्थियों को ऑनलाइन पढ़ा रहे हैं शिक्षक

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कनीना। बेशक इन दिनों हर वर्ष ग्रीष्मावकाश चलते रहे हो, तापमान 40 डिग्री सेंटीग्रेड से ऊपर पहुंच गया हो परंतु शिक्षक इस वर्ष कोरोना का हालातों में स्कूलों में बैठकर ऑनलाइन शिक्षण कार्य करवा रहे हैं। चारों ओर कोरोना का डर, अधिकारी घर से बाहर निकलना गंवारा नहीं समझते किंतु शिक्षक बेशक 57 साल का हो या रिटायरमेंट के पास हो मजबूरन सरकार के आदेशों का पालन करते हुए स्कूलों में जा रहे हैं।  ग्रामीण क्षेत्रों में जहां बिजली न आने से कमरों के अंदर बैठना तो कठिन हो जाता है, महज पेड़ों की छाव में पेड़ों के नीचे बैठकर एसएमएस/व्हाट्सएप आदि के जरिए वीडियो, ऑडियो, टेक्स्ट आदि भेज कर न केवल बेहतरीन शिक्षण कार्य अपितु उनका फीडबैक लेकर उपलब्ध करवा रहे हैं। अप्रैल मास की कर्म जारी है।
कुछ निजी स्कूलों ने तो अवकाश भी घोषित किया हुआ है किंतु सरकारी स्कूल इस मामले में एक नंबर पर पहुंच गए हैं जो दिन रात एक किए हुए हैं और ग्रामीण क्षेत्रों के विद्यार्थियों को पढ़ा रहे हैं। ऑनलाइन शिक्षण कार्य थोड़ी जटिल प्रक्रिया है जिसमें वयोवृद्ध शिक्षकों को आधुनिक यंत्र चलाने में परेशानी हो रही है परंतु उनके हिम्मत का हौसला देखने से ही बनता है।  बेशक झज्जर जैसे जिलों में सभी शिक्षकों को एक साथ नहीं बुलाया जा रहा है किंतु जिला महेंद्रगढ़ में सभी शिक्षक विद्यालयों में मौजूद रहते हैं। यहां तक कि अधिकारी अपने कार्यालयों से निकालकर किसी स्कूल तक पहुंचना गवारा नहीं समझते हो परंतु ये शिक्षक बिना किसी लाग लपेट के बेहतरीन शिक्षण कार्य कर रहे हैं।     कनीना खंड के गांव खेड़ी तलवाना, गुढ़ा, कनीना तथा धनौंदा ऐसे स्कूल है जहां पर शिक्षण कार्य में बहुत अधिक उन्नति की है। यद्यपि सभी स्कूल ही शिक्षण कार्य कर रहे हैं स्कूलों में अधिक जोर दिया जा रहा है। प्राचार्य कृष्ण कुमार ने बताया कि सरकार के आदेशों के अनुसार व्हाट्सएप के अतिरिक्त एसएमएस के जरिए ऑनलाइन शिक्षण करवाना जरूरी है। इसकी प्रतिपुष्टि भी जाती है।
कनीना खंड शिक्षा अधिकारी अभय राम यादव त्जी जान से टूटे हुए हैं और प्रत्येक स्कूल की प्रतिपुष्टि लेकर उच्चाधिकारियों तक भेजते रहते हैं।  अधिकांश शिक्षकों के जीवन में यह पहला अवसर है जब यह ऑनलाइन शिक्षण कार्य करवाना पड़ रहा है।
 उल्लेखनीय है कि एक समय था जब सरकार ने स्कूलों में एक बार मोबाइल रखने पर प्रतिबंध लगा दिया था वो ही मोबाइल बेहतर सेवा का जरिया बना हुआ है। जो शिक्षक बेहतरीन मोबाइल नहीं खरीद पाते थे अब उन्होंने मोबाइल खरीदने पड़े हैं। यहां तक कि जो शिक्षक नेट/डाटा आदि की जानकारी नहीं रखते थे और अब प्रतिमाह डाटा खर्च करने को बाध्य हो गए हैं। कुल मिलाकर नई तकनीकी ज्ञान हुआ है वहीं विद्यार्थियों में भी नई तकनीकी कौशल का अभ्यास बढ़ाना पड़ा है। अभिभावक भी विद्यार्थियों से संपर्क में रहकर शिक्षण कार्य करवा रहे हैं। बेशक इस पद्धति का परिणाम कुछ भी आए पर एक तीर से कई निशाने साध दियेे हैं।
विद्यार्थी सुरेश, दिनेश, कर्मवीर आदि अपने मां-बाप के फोन लेकर शिक्षण कार्य करते हैं। उनकी देखरेख में कार्य को पूर्ण किया जाता है। कुल मिलाकर पूर्ण तंत्र अर्थात शिक्षक, विद्यार्थी अभिभावक, अधिकारी सभी सतर्क हो गए हैं और आधुनिक शिक्षा पद्धति को आधुनिक तकनीकों से पढऩे को मजबूर हैं।
फोटो कैप्शन दो: पेड़ों की छांव में ऑनलाइन शिक्षण करवाते शिक्षक।







अंधड़ ने तोड़े पेड़

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कनीना। कनीना क्षेत्र में दोपहर बाद आये अंधड़ ने जगह जगह पेड़ तोड़ दिये हैं वहीं टीनशेड आदि उड़ा दिये हैं। किसान बारिश का इंतजार कर रहे थे किंतु महज बूंदाबांदी हुई। अभी भी गर्मी पड़ रही है।


शहीदों को याद किया 

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कनीना। गलवान घाटी में शहीद हुए हमारे भारतीय सैनिकों को भारतीय जनता कार्यकर्ता मोर्चा ने पुष्प अर्पित करके श्रद्धांजलि दी और शहीदों की याद में 2 मिनट का मौन धारण किया।   कनीना शहीद स्मारक पर जाकर उन शहीदों को याद किया गया। उन्होंने कहा कि इन शहीदों की कुर्बानी कभी नहीं भुलाई जाएगी जिन्होंने चीन के सैनिकों को मारकर प्राण न्यौछावार किये हैं। जिसमें भारतीय जनता कार्यकर्ता मोर्चा के प्रदेश सचिव दीपक वशिष्ठ ए जिला उपाध्यक्ष विजेंद्र चौहान, सर्व जन युवा वाहिनी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नानकराम भारद्वाज, पवन राठौड़, कृष्ण, दीपांशु, नवीन व कुलदीप दहिया मौजूद रहे।
फोटो कैप्शन 1: कनीना शहीद स्मारक पर शहीदों को याद करते हुए।



 
शहीदों को याद किया 

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कनीना। गलवान घाटी में शहीद हुए हमारे भारतीय सैनिकों को भारतीय जनता कार्यकर्ता मोर्चा ने पुष्प अर्पित करके श्रद्धांजलि दी और शहीदों की याद में 2 मिनट का मौन धारण किया।   कनीना शहीद स्मारक पर जाकर उन शहीदों को याद किया गया। उन्होंने कहा कि इन शहीदों की कुर्बानी कभी नहीं भुलाई जाएगी जिन्होंने चीन के सैनिकों को मारकर प्राण न्यौछावार किये हैं। जिसमें भारतीय जनता कार्यकर्ता मोर्चा के प्रदेश सचिव दीपक वशिष्ठ ए जिला उपाध्यक्ष विजेंद्र चौहान, सर्व जन युवा वाहिनी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नानकराम भारद्वाज, पवन राठौड़, कृष्ण, दीपांशु, नवीन व कुलदीप दहिया मौजूद रहे।
फोटो कैप्शन 1: कनीना शहीद स्मारक पर शहीदों को याद करते हुए।



जिला संगठन मंत्री बने विक्रांत यदुवंशी 

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कनीना। विक्रांत यदुवंशी को भारतीय जनता कार्यकर्ता मोर्चा महेंद्रगढ़ का जिला  संघठन मंत्री नियुक्त किया गया है।
     कार्यकर्ता मोर्चा के नवनियुक्त  जिला संगठन मंत्री विक्रांत यदुवंशी ने अपनी नियुक्ति पर कार्यकर्ता मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पवन पंडित, हरियाणा के प्रदेश उपाध्यक्ष जितेन्द्र जोनी और  हरियाणा के प्रदेश मिडिया प्रभारी मयंक तंवर का आभार जताते हुए कहा कि कार्यकर्ता मोर्चा को संगठनात्मक एवं वैचारिकता के आधार पर देश व प्रदेश में युवाओं तक पहुंचा कर मजबूती के साथ संवाद से समर्थन और समर्थन से सम्मान की बात की जाएगी। सामान्य कार्यकर्ता संगठन के लिए अपना जीवन समर्पित कर देते हैं उनके महत्व को समाज में सम्मान दिलाना संगठन का मुख्य कार्य रहेगा।
    भारतीय जनता कार्यकर्ता मोर्चा के  जिला संगठन मंत्री विक्रांत यदुवंशी ने जानकारी देते हुए बताया कि उन्होंने भारतीय जनता कार्यकर्ता मोर्चा अपने राजनीतिक भविष्य को देखते हुए ज्वाइन किया है और जिले एवं पूरे प्रदेश के हर क्षेत्र में संगठन के विचारों का प्रचार प्रसार एवं संगठनात्मक गतिविधियां शुरू की जाएंगी और युवाओं को राष्ट्रभक्ति की ओर आकर्षित करेंगे और पूरे जिले और प्रदेश के युवाओं को राष्ट्र निर्माण में अपना योगदान देने के लिए प्रेरित करेंगे ।

83 थैली ढैंचा बीज उपलब्ध

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संवाद सहयोगी, कनीना। कनीना क्षेत्र के किसान ढैंचा उगाकर हरी खाद बना रहे हैं। जो भूमि पैदावार कम देने लग जाती है उसमें कृषि वैज्ञानिक ढैंचा उगाने की सलाह देते हैं। 12 -12 किलों की 83 थैलियां ढैंचा की कनीना में उपलब्ध हैं। खंड कृषि अधिकारी गजानंद शर्मा ने बताया कि जो किसान ढैंचा बोना चाहते हैं वे अपना आधार कार्ड की प्रति सहित सरकारी बीज केंद्र से ढैंचा ले सकता है। 130 रुपये में थैली उपलब्ध है।
ढैंचा से बनाते हैं हरी खाद--
कनीना क्षेत्र के किसान ढैंचा उगाकर हरी खाद तैयार कर रहे हैं। यह खाद बेहतर खाद मानी जाती है। जिन खेतों में पैदावार घट जाती है, नमी की मात्रा अधिक हो वहां पर ढैंचा उगाकर मिट्टी पलट हल द्वारा हरे पेड़ पौधों कोई मिट्टी में दबा दिया जाता है जो हरी खाद का कारण बनते हैं। यह खाद बेहतर पैदावार के लिए जाना जाता है।
ढैंचा उगाकर हरी खाद बनाकर बेहतर पैदावार लेना ही उद्देश्य होता है। वैसे भी तीन प्रकार के खाद जिन्हें हरा खाद, गोबर का खाद तथा कंपोस्ट खाद नाम से खाद जाने जाते हैं जिन में हरा खाद अच्छा खाद माना जाता है जो प्रदूषण रहित होता है। कृषि वैज्ञानिक भी हरी खाद की सलाह किसानों को देते हैं। लगातार फसल पैदावार से खेत में पैदावार घटती चली जाती है, ऐसे में ढैंचा उगाना बेहतर है। पूर्व कृषि अधिकारी डा देवराज यादव का कहना है कि फसल पैदावार के लिए ढैंचा जैसी फसलें उगाकर उन्हें भूमि में दबा दिया जाता है जो हरी खाद बन जाता है। उनका कहना है कि प्रदेश सरकार ढैंचा के बीज अनुदान पर उपलब्ध करवा रही है ताकि उससे ढैंचा उगाकर किसान पैदावार बढ़ा सके।

खानपान में बदलाव आने का कारण उम्र घटी -मांगेराम शर्मा 

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 कनीना। खानपान में बदलाव करने से उम्र घटती जा रही है। जब पितामह भीष्म युद्ध कर रहे थे उस समय उनकी उम्र करीब 175 वर्ष थी। ये विचार मिट्टी एवं योग से रोग उपचार करने वाले समाजसेेवी मांगेराम शर्मा ने यहां व्यक्त किये।
 उन्होंने कहा कि आर्यव्रत में सभी जन यज्ञ तथा संध्या के उपरांत ही शुद्ध सात्विक भोजन करते थे करते थे जिसके चलते वे बलशाली एवं बुद्धिमान थे किंतु 6000 वर्ष पहले बदलाव आने लगा।  बाद में मुगलों का एवं अंग्रेजों का शासन रहा। उन्होंने आर्यव्रत में बहुत दिन में बदलाव लाने का प्रयास किया क्योंकि उन्हें मालूम था जब तक खानपान में बदलाव नहीं किया जाएगा तब तक आर्यव्रत के लोग किसी के काबू नहीं आ सकेंगे। बुद्धि और शक्ति में महान होंगे। जहां गायों मुगल शासकों ने आर्य लोगों से गायों को दूर करने का प्रयास किया वहीं अंग्रेजों ने शराब एवं चाय आदि मुफ्त में पिलाकर आर्यव्रत के लोगों को शुद्ध सात्विक भोजन से दूर कर दिया जिसका परिणाम है कि आज युवा भी बुजुर्ग नजर आते हैं।
 उन्होंने कहा कि आहार, निद्रा, ब्रह्मचर्य और परिश्रम पर यदि सही ध्यान दिया जाए तो उम्र ही नहीं अपितु बल और शक्ति में महानता मिलेगी। यदि इनमें बदलाव आ गया तो उम्र भी घटेगी, शरीर भी रोगी हो जाएगा। उन्होंने फिर से शुद्ध सात्विक भोजन करने, यज्ञ एवं संध्या करने पर बल दिया ताकि आर्यव्रत पुरानी सभ्यता और संस्कृति को पुन: हासिल कर सके।


इस बार कम उगाया गया है सफेद सोना














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 कनीना। सफेद सोने की ओर एक बार किसान का रुझान घटा है। खरीफ फसल बतौर कैश क्रोप के नाम से प्रसिद्ध कपास का रकबा इस बार विगत वर्षों से कम उगाया गया है। रबी फसल सरसों से बेहतर पैदावार देती है। कपास की बड़ी मंडी चरखी दादरी में ही हैं। इस वर्ष 5950 हेक्टेयर पर कपास की बीजाई की है जो विगत वर्ष यह 8200 हेक्टेयर पर की गई थी।
   विगत वर्षों केवल दो हजार हेक्टेयर भू भाग पर कपास की कृषि की गई तो तीन वर्ष पूर्व करीब पांच हजार हेक्टेयर पर कपास उगाई गई थी जबकि दो वर्ष पूर्व 7000 हेक्टेयर पहुंच गया था। विगत वर्ष 8200 हेक्टेयर पर बीजाई की गई थी। इस वर्ष आंकड़ा महज 5950 है। एक एकड़ में करीब दस से 12 क्विंटल कपास हो जाती है। साथ में इसके सूखे हुए तने भी सरसों की भांति जलाने के काम आते हैं। इसके पत्ते भी खाद का काम करते हैं और पौधे को जल भी अधिक नहीं चाहिए।
  किसानों राजेश, महेश, अजीत कुमार आदि ने बताया कि खरीफ फसल बतौर बाजरा या ग्वार उगाया जाता है जिनमें आवारा जीव भी अधिक लगते हैं। यह फसल कम पानी में भी बेहतर पैदावार देती है और आवारा जंतु भी कम लगते हैं।  नील गाय कपास की फसल को खाते नहीं अपितु उसे तोड़ जाते हैं। गर्मी में इस फसल को उगाकर जहां पानी देने में कोई विशेष कठिनाई भी नहीं होती है। कपास के पत्ते जो खाद बनाते हैं जिससे कपास के बाद अगली फसल बेहतर होती है।



 

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