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Sunday, February 21, 2021

 कनीना में कृषि मेला 25 को
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 कनीना। 25 फरवरी को कनीना के फुटबाल ग्राउंड में आत्मा स्कीम के तहत कृषि मेला आयोजित किया जाएगा। विस्तृत जानकारी देते हुए कृषि विस्तार अधिकारी डा देवराज ने बताया कि कृषि मेले में कृषि आदानों की प्रदर्शनी लगेगी जिनमें खाद, बीज आदि प्रमुख हैं। उन्होंने बताया कि मेले में विभिन्न विभागों के अधिकारी एवं विभिन्न कृषि वैज्ञानिक पहुंच रहे हैं जो किसानों की मौके पर ही विभिन्न समस्याओं का समाधान करेंगे तथा उनको नए उत्पादों, बेहतर पैदावार तथा पैदावार बढ़ाने के बारे में जानकारी देंगे।



गेहूं की सुनहरी बालियों को देखकर किसान प्रसन्न
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 कनीना। कनीना क्षेत्र में जहां सरसों पकान के पूरे वेग पर चल रही है वहीं गेहूं में सुनहरी बालियां दिखाई पडऩे लगी हैं। गेहूं की सुनहरी बालियों को देखकर किसान प्रसन्न हैं। अभी दो बार खेतों में और पानी दिया जाएगा तथा अप्रैल के प्रथम सप्ताह में गेहूं की कटाई होने की संभावना जताई जा रही है।
 इस बार अभी तक मौसम अनुकूल चलने से बंपर पैदावार होने की उम्मीद है। किसान राजेंद्र,कृष्ण कुमार, अजीत कुमार, महेश कुमार दिनेश कुमार, उमेद सिंह आदि ने बताया कि गेहूं में 6 से 7 बार पानी देना पड़ता है। पानी किसानों को या तो अपनी ट्यूबवेल से देना पड़ता है या एक तिहाई भाग गेहूं उत्पाद के बदले किसी ट्यूबवेल मालिक से पानी लेना पड़ता है।
 किसान अब तक गेहूं फसल में चार पानी दे चुके हैं। उन्होंने बताया कि अभी एक से दो बार पानी और लगाना पड़ेगा। फसल पकान की ओर अग्रसर है। कनीना क्षेत्र में दो प्रकार की खेती की हुई है। अगेती फसल पर सुनहरी बालियां आने लग गई हैं। पछेती फसल अभी इस स्थिति में नहीं पहुंची है। वैसे तो खेत से पकी हुई कुछ बालिया होली दहन में भूनकर खाने के पश्चात ही लावणी का कार्य शुरू होता है और इस बार 27 मार्च को होलिका दहन होने जा रहा है। गेहूं खुले बाजार में 1900 रुपये प्रति क्विंटल से बिक रहा है जबकि इस बार समर्थन मूल्य 1975 रुपये प्रति क्विंटल रखा गया है।
कृषि वैज्ञानिक ने कृषि अधिकारी वैज्ञानिक मानते इस बार मौसम सही रहा तो बंपर पैदावार होगी जिसको देखकर किसान प्रसन्न हैं।
कितनी की गई बीजाई-
कृषि विभाग कनीना कृषि विभाग की ओर से प्राप्त विवरण अनुसार रबी फसल 2020-21 में कनीना क्षेत्र में 30,406 हेक्टेयर पर बिजाई की गई है जिनमें से सरसों 19370 हेक्टेयर, गेहूं 10590 हेक्टेयर, चारा 400 हेक्टेयर, चना 6 हेक्टेयर तथा जौ 40 हेक्टेयर पर उगाया गया है।
 फोटो कैप्शन 8: गेहूं में पानी देता हुआ किसान।

गाहड़ा गांव में निधि समर्पण अभियान पूर्ण
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कनीना। श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास के लिए चल रहे निधि समर्पण एवं संपर्क अभियान गाहड़ा गांव का पूर्ण हो गया। ग्रामीणों ने निधि विभागमंत्री को सौंप दी है।
गाहड़ा गांव के लोगों ने एक कार्यक्रम आयोजित कर विभाग मंत्री सुरेंद्र सिंह और सह अभियान संयोजक दिलावर सिंह को निधि समर्पित की। इस अवसर पर ग्रामीणों ने कहा कि गांव का प्रत्येक घर से निधि प्राप्त की गई है। गाहड़ा गांव का एक भी घर ऐसा नहीं है जिसने निधि समर्पित ना की हो। इस अवसर पर विभाग मंत्री सुरेंद्र सिंह ने कहा कि यह एक बहुत ही हर्ष का विषय है कि गाहड़ा गांव से सभी परिवारों से निधि का समर्पण कर एक उदाहरण पेश किया है।
 सभी घरों से 62880 रुपये की निधि प्राप्त की। प्राप्त की और बताया कि श्री राम मंदिर हमारे लिए स्वाभिमान का विषय है क्योंकि जिस तरह से राम मंदिर निर्माण हो रहा है इसके लिए एक लंबी लड़ाई लड़ी गई है। राम मंदिर के लिए 76 लड़ाइयां लड़ी गई 77वें संघर्ष में सौभाग्य प्राप्त हुआ है कि अपने हाथों से राम मंदिर का निर्माण कार्य में अपना सहयोग कर रहे हैं। यह सौभाग्य की बात है कि हम अपनी आंखों से राम मंदिर बनता हुआ और राम मंदिर के दर्शन करेंगे। राम मंदिर भारत की सांस्कृतिक राजधानी बनने जा रहा है। जिसमें हम सब का योगदान है। सह संयोजक दिलावर ने इस कार्य में अपना सहयोग देने के लिए सभी ग्रामीणों का हृदय से आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर अभियान टोली प्रमुख रामस्वरूप सिंह पतराम आर्य, सूबेदार राम सिंह, प्रधान आर्य समाज, महावीर प्रसाद, घीसाराम, सुरेंद्र पाल, सुरेश चंद राजवीर, पूर्व सरपंच सहीराम, बालमुकुंद ईश्वर सिंह, जगदीश, रोशनलाल, बस्तीराम और अनिल परदेसी मुख्य रूप से उपस्थित रहे।
फोटो कैप्शन 8:गाहड़ा से इकट्ठी की निधि सुरेंद्र कुमार को सौंपते हुये।


धरने पर बैठे दुकानदार अपने आंदोलन को और कड़ा करेंगे
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 कनीना। पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय से पंचायत समिति कनीना की दुकानों में बैठे दुकानदारों का केस चलने के उपरांत अवमानना नोटिस जारी करने के बाद भी 14 दिन से दुकानदार दुकानें बंद कर अनिश्चितकालीन धरने पर हैं। अभी वे अपना आंदोलन और कड़ा करेंगे। व्यापारी एकता मंच के प्रधान महेश बोहरा ने बताया कि सोमवार से 5-5 दुकानदार क्रमिक भूख हड़ताल करेंगे जो प्रात. दस बजे से शाम पांच बजे तक रोजाना चलेगी। यदि आवश्यक हुआ तो और भी कड़े कदम भविष्य में उठाए जाएंगे।
जहां धरने पर बैठे दुकानदारों की मध्यस्थता करने कुछ लोग समय समय पर पहुंचे किंतु दुकानदारों का कड़ा रुख देखकर अब मध्यस्थता करने की कोई हिम्मत नहीं कर रहा है। सरकार की ओर से अब तक कोई आश्वासन देने नहीं आया है। उधर कनीना नगर पालिका ने प्रस्ताव पारित कर पुराने नगर पालिका भवन के पास कांप्लेक्स बनाकर देने की बात कही गई है। प्रधान सतीश जेलदार ने कहा कि किसी दुकानदार की दुकान टूटती है तो कांप्लेक्स में दुकानें बनाकर देने के लिए पालिका तैयार है।

फिरनी पर भरा है पानी, राहगीर परेशान
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कनीना। कनीना खंड के विशाल गांव पाथेडा़ के पश्चिमी भाग की  फिरनी पर सदा पानी भरा रहता है जिससे आसपास रहने वाले लोग नारकीय  जीवन जी रहे हैं।
गांव पाथेडा़ से झूक गांव को जाने वाले मार्ग पर अवैध कब्जा करने व सदा पानी भरे रहने की ग्रामीणों ने शिकायत की है ।
उल्लेखनीय
कनीना खंड के विशाल गांव पाथेडा़ के पाथेडा़ से झुक गांव को जाने वाले मार्ग पर अवैध कब्जा करने व सदा गंदा पानी भरा रहता है तथा लोग पशुओं को ही गली में बांध देते हैं।
  है कि गांव पाथेडा़ के रामनिवास ने बताया कि गांव के पश्चिमी भाग की फिरनी पर सदा पानी भरा रहता है जिससे आसपास के रहने वाले लोग बहुत परेशान रहते हैं। पाथेड़ा से गांव झूक को जाने वाला मार्ग जो साढ़े 27 फुट का है उस पर लोगों ने अवैध कब्जा कर रखा है आसपास रहने वाले लोग रास्ते में पशु बांधते हैं व अपना ईंधन डालकर रास्ते को अवरुद्ध कर रखा है। उन्होंने बताया कि वे इस संबंध में अपनी लिखित शिकायत खंड विकास अधिकारी कनीना व जिला उपायुक्त को भी कर चुके हैं लेकिन प्रशासन इस तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा है । गांव के ग्रामीणों रामनिवास ,सुनील कुमार, सत्यवान, राजेंद्र ,संजीव, रामेश्वर, मदन सिंह आदि ने मुख्य मार्ग से अवैध कब्जा हटवाने व पानी निकासी की उचित व्यवस्था करवाने की प्रशासन से मांग की है। एक तरफ तो प्रदेश की सरकार गांवों का विकास व सुविधाएं शहरों की तर्ज पर देना चाहती है वहीं पाथेडा़ के लोग नारकीय जीवन को मजबूर हैं।
फोटो कैप्शन 6: पाथेड़ा-झूक मार्ग पर मुख्य फिरनी में भरा गंदा पानी।

कड़ी मशक्कत से भागते हैं बंदर
-पटाखे,पोटाश आदि चलाकर भगाते हैं लोग
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कनीना। कनीना क्षेत्र में बंदर एक बड़ी समस्या बन कर उभर रहे हैं। बंदरों को भगाने के लिए दिनभर कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। पटाखे, गुलेल, पोटाश आदि से उनको भगाया जाता है। पिछले दो साल में करीब आधा दर्जन व्यक्तियों को बंदरों ने काटा है। सब्जी, फल, अंडे एवं ठेले पर विभिन्न खाद्य पदार्थ बेचने वाले बेहद तंग हैं। कस्बा कनीना से लगती किसानों की खेती को भी नुकसान पहुंचाते हैं। शिव कुमार केलेवाला, विकास, बागड़ी बताते हैं कि उनके फल नजर हटते ही बंदर उठा ले जाते हैं जबकि वे समय समय पर बंदरों के लिए केले उन्हाणी या नया गांव में भिजवाते हैं।
कनीना क्षेत्र में करीब 200 बंदर विभिन्न स्थानों पर घूमते रहते हैं। बंदरों को भगाने के लिए दिनभर प्रयास किए जाते हैं। यह बंदर इतने शरारती है कि पानी की टंकी, एंटीना, तार आदि को तोड़ कर ही दम लेते हैं। इन बंदरों अगर भगाने का प्रयास करें तो काट खाते हैं। महिलाओं सहित करीब आधा दर्जन व्यक्तियों को अब तक बंदरों ने काटा है। बंदरों को भगाने के लिए विभिन्न प्रयास किए जाते किंतु असफल रहते हैं। बंदरों को पकड़वाने के लिए शिव कुमार अग्रवाल कनीना मंडी में बार-बार प्रयास किया है और उनके बार-बार आरटीआई के चलते अब तक एक बार ही करीब एक सौ बंदरों को पकड़वाकर दूर छुड़वाया गया है। एक बार दूर छोड़ आते हैं तो अगले दिन फिर आ खड़े होते हैं। एक बार फिर से बंदरों को पकड़वाकर दूर भिजवाने की मांग उठ रही है। कनीना पालिका प्रधान सतीश जेलदार का कहना है कि बंदरों को पकड़वाकर दूर छुड़वाने के लिए पालिका प्रयास कर रही है। जल्द ही कोई समाधान निकल आने की संभावना है। एक बंदर को पकड़कर दूर छोडऩे के नाम पर हजारों रुपये मांगे जा रहे हैं। उन्हाणी जैये गांवों में तो एक निश्चित क्षेत्र में बंदरों के लिए भोजन पानी डाला जाता है ताकि वे गांव में न घूमे। रेवाड़ी जिला के बहाला,नया गांव बंदरों के लिए मशहूर हैं जहां हजारों बंदर रहते हैं।





पहले भी बहुत कुछ खोया कनीना ने
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संवाद सहयोगी, कनीना। जिस न्यायिक परिसर और उपमंडल कार्यालय के कनीना में निर्माण के लिए बेशक कस्बावासियों ने जी जान की बाजी लगाकर 67 दिन धरना दिया हो किंतु अब वो कस्बावासियों के हाथों से खिसकते नजर आने लगे हैं। दुकानदारों का धरना उन पर हावी होने लगा है। अगर कोई समाधान नहीं निकला तो माना जा रहा है कि ये प्रशासनिक भवन और न्यायिक परिसर भी ठीक उसी प्रकार कनीना से दूसरे गांव में जाएंगे जैसे पहले भी फायर ब्रिगेड, कनीना का महिला कालेज, कनीना अनाज मंडी, कनीना की सब्जी मंडी,औषधीय पार्क आदि अन्यत्र चले गये। इससे पहले भी कस्बा वासियों ने बहुत कुछ खोया है जहां जेबीटी सेंटर भी किसी जमाने में होता था वही कनीना एक विधानसभा क्षेत्र होता था जिसको भी कनीना ने खो दिया है। वास्तव में कस्बा वासियों ने बहुत कुछ खोया है पाया कम है। उपमंडल कार्यालय बनने में विगत 7 वर्षों का इंतजार कर रहे थे वह उपमंडल कार्यालय भी अब कनीना वासियों के हाथों से खिसकने की संभावना नजर आ रही है। ऐसे भी कई लोग नजर आने लगे हैं जो यही चाहते हैं कि किसी प्रकार का कनीना का प्रशासनिक भवन और न्यायिक परिसर किसी अन्य गांवों में चले जाए, चाहे अप्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से अपना पूरा जोर लगा रहे हैं। अब तो कस्बा कनीना में न्यायिक परिसर उपमंडल कार्यालय को रोकते हुए बहुत कम लोग नजर आने लगे हैं। परिणाम कुछ भी हो पर अभी तक जो धरना दुकानदारों का चल रहा है वह कस्बा वासियों के लिए भारी पड़ सकता है।
फोटो कैप्शन 4: कनीना में 14वें दिन आंदोलनरत दुकानदार। जागरण











चने की खेती भूले, कनीना खंड में महज छह हेक्टेयर में उगाया
-चने के हरे पौधे भी बिकते हैं दुकानों पर
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 कनीना। किसान चने की खेती करना भूलते जा रहे हैं। गर्मियों के मौसम में चने को भूनकर(भुगड़े)खाते थे। अब तो चने के हरे पेड़ भी सब्जी की दुकानों पर 40 रुपये प्रति किलो बिक रहे हैं।
  एक वक्त था जब कनीना क्षेत्र में हजारों एकड़  में  चने की खेती की जाती थी। अब चने की पैदावार ही नहीं होने से किसानों ने इसकी खेती छोड़ दी है। अब इक्का दुक्का किसान ही अपने खेत में उगाता है। यहां तक चटनी आदि के लिए किसान एक या दो क्यारियों में ही चने उगाते हैं ताकि विभिन्न कार्यों में उपयोग कर सके।  
  किसान अजीत कुमार, सूबे सिंह एवं राजेंद्र सिंह ने बताया कि एक जमाना था जब हर घर में चने की खेती की जाती थी जिसे पूरी गर्मी आनंद से रोटी एवं अन्य रूपों में प्रयोग किया जाता था। अब जमाना लद गया है। जौ-चने की रोटी खाने के लिए या फिर भुगड़ा बनवाने के लिए दूसरे क्षेत्रों से जौ खरीदकर लाते हैं। कनीना क्षेत्र में करीब छह हेक्टेयर भू भाग पर चने की खेती की गई है। चने के पौधे के हरे पत्ते चटनी, खाटा का साग, कढ़ी आदि में डालते हैं वहीं हरे चने भी सब्जी एवं चटनी में काम में लेते हैं। हरे चने को भी तलकर ठेले वाले अपनी रोटी रोजी कमाते हैं।
क्या क्या बनाते हैं चने से-
 चने की खेती को आज भी किसान नहीं भूले हैं। हरे चने से सब्जियां,चटनी,तलकर, भूनकर खाते हैं।  चने से अनेक पकवान एवं मिठाइयां बनाई जाती हैं। सूखा चना 60 रुपये किलो तथा चने की दाल 70 रुपये किलो बिक रही है। होटलों, विवाह शादियों में मेसी रोटी प्रसिद्ध हो रही है वहीं चने के बेशन की कढ़ी ग्रामीण क्षेत्रों में बेहद प्रसिद्ध हो रही है। नहरी पानी तथा खेतों की सिंचाई करने से चने की खेती नहीं हो पा रही है। चने को उगाने के लिए एक बार की बारिश ही पर्याप्त मानी जाती थी।
हरे चने के उपयोग-
 बुजुर्ग बताते हैं कि चने के पौधों पर लगी टाट से हरे चने निकाल कर जहां सब्जियां बनाते हैं वही चटनी आदि के काम में भी लेते हैं। यही कारण है कि हरे चनों की मांग बढ़ती जा रही है और कुछ व्यक्ति विशेष तो हरे चनों से अपनी रोटी रोजी कमा रहे हैं। कुछ लोग तो गाडिय़ां भर कर चने के पौधे बेचते हैं। मिली जानकारी अनुसार नांगल चौधरी, सतनाली तथा राजस्थान क्षेत्रों से भारी मात्रा में हरे चने लाए जा रहे हैं और यह पौधे युक्त चने बाजार में बेचे जा रहे हैं। जिनकी भारी मांग है। खरीदने वालों की भी कोई कमी नहीं है।
क्या कहते हैं कृषि वैज्ञानिक-
 कृषि वैज्ञानिक डा देवेंद्र कुमार, मनोज कुमार आदि बताते हैं कि चने की खेती घटती जा रही क्योंकि चने को पानी की बहुत कम जरूरत होती है। बारिश आदि होने के बाद ही चने की पैदावार हो जाती थी। अब नहरी क्षेत्र होने तथा खेतों की सिंचाई करने से पैदावार घटती जा रही है। परंतु जिस खेत में चने उगाते हैं उस खेत में उर्वरा शक्ति बढ़ जाती है। उन्होंने समय समय पर फलीदार एवं दलहन जाती के पौधे उगाने पर बल दिया।
 फोटो कैप्शन 01 एवं 02: हरे चनों के पौधे दुकानों पर बिकते हुये।

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