Not sure how to add your code? Check our installation guidelines **KANINA KI AWAZ **कनीना की आवाज**

Monday, June 27, 2022

 
हरियाणा विज्ञान मंच का 16वां द्विवार्षिक सम्मेलन संपन्न
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कनीना की आवाज। हरियाणा विज्ञान मंच का 16वां द्विवार्षिक सम्मेलन कर्मचारी भवन रोहतक में हुआ। जिला महेन्द्रगढ़ से धर्मपाल शर्मा जिला संयोजक हरियाणा विज्ञान मंच के नेतृत्व में विजय भार्गव प्रवक्ता रसायन विज्ञान, विजयपाल यादव गणित अध्यापक, अजीत यादव, रोहतास गोठवाल, प्रियकान्त गौड़,प्रोफेसर वनस्पति विज्ञान ने भाग लिया।
धर्मपाल शर्मा ने बताया कि  मुख्य वक्ता डॉ रणवीर सिंह दहिया अध्यक्ष हरियाणा ज्ञान विज्ञान समिति ने हरियाणा विज्ञान मंच का सफर एवं भविष्य की चुनौतियां पर प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए कहा कि हरियाणा विज्ञान मंच अपने स्थापना 1987 से ही विज्ञान लोकप्रियकरण, समाज से अंधविश्वासों व कुरीतियों को हटा आम जन में वैज्ञानिक चेतना के लिए कार्य कर रहा है। उन्होंने कहा कि ज्ञान का समस्त भंडार जनता की धरोहर है। विज्ञान कोई सिद्धांत अथवा सूत्र नहीं है जिसे किताबों से रटकर याद किया जाये बल्कि यह जीवन के प्रति दृष्टिकोण है। वेदप्रिय जी ने राजनीति और विज्ञान पर चर्चा रखते हुए कहा कि वैज्ञानिक के सामाजिक और राजनैतिक सरोकार होते हैं जिससे उस दौर की शासन व्यवस्था प्रभावित होती है। ऐसा न्यूटन, चाल्र्स डार्विन, आइंस्टीन जैसे वैज्ञानिकों की खोज से सामाजिक परिवर्तन हुए हैं। प्राकृतिक विज्ञान की खोजें क्रांति लाती हैं तो एप्लाइड विज्ञान की खोज सामाजिक परिवर्तन लाती हैं। कृष्ण वत्स द्वारा दो वर्ष के कार्यों की रिपोर्ट व भविष्य के कार्यक्रमों की रूपरेखा के साथ लेखा जोखा भी रखा गया। इस अवसर पर नयी कार्यकारिणी व सचिव मंडल का गठन भी किया गया।सचिव मंडल में
प्रो. विनीता शुक्ला अध्यक्ष, वेदप्रिय व कृष्ण मलिक उपाध्यक्ष, सतबीर नागल सचिव, डॉ पवन व चित्रा सिंह सहसचिव, डॉ शीशपाल कोषाध्यक्ष व कृष्ण वत्स इनके साथ कार्यकारिणी में अजमेर चौहान, राजेंद्र अग्निहोत्री, रमेश चंद्र, बबीता, सुभाष, रणसिंह, प्रमोद गौरी, राजेन्द्र सिंह, चंद्रप्रकाश, कुलदीप पंघाल, मुकेश यादव, मंजू वशिष्ट, डॉ दहिया व स्पेशल आमंत्रित संदीप जंडा शामिल किए। नव चयनित अध्यक्षा प्रो विनीता शुक्ला ने भविष्य के कार्यों पर विस्तार से बात रखते हुए कहा कि अनुभवी व युवा टीम के साथ विज्ञान संचार व वैज्ञानिक चेतना को आमजन तक पहुंचाने के लिए साहित्य व अन्य टूल का प्रयोग किया जायेगा।







यूरो स्कूल के दो विद्यार्थियों ने पास की केवीपीवाइ परीक्षा
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कनीना की आवाज। हाल ही में घोषित राष्ट्रीय स्तर की किशोर वैज्ञानिक प्रोत्साहन योजना परीक्षा के परिणाम में यूरो स्कूल कनीना के दो विद्यार्थियों ने सफलता हासिल की है। परीक्षा परिणाम आते ही विद्यालय में खुशी की लहर दौड़ गई। छात्र हेमित कनीना तथा छात्रा कंचन मोहलड़ा ने सफलता का परचम लहराया है। विद्यालय के प्राचार्य सुनील यादव ने इस विशेष उपलब्धि पर विद्यार्थियों, अध्यापकों एवं अभिभावकों को बधाई दी। प्राचार्य ने बताया कि यह परीक्षा भारत सरकार द्वारा संचालित एक राष्ट्रीय स्तर की फैलोशिप परीक्षा है, जिसे इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस बैंगलोर द्वारा आयोजित किया जाता है जिसका उद्देश्य विद्यार्थियों का साइंस के रिसर्च फील्ड में अपना कैरियर बनाने के लिए प्रोत्साहित करना है। यूरो गु्रप के डायरेक्टर डॉ राजेन्द्र यादव ने विद्यार्थियों एवं यूरो टीम को बद्याई दी तथा बताया किस इस परीक्षा में सफलता प्राप्त कर विज्ञान विषय में स्नातक एवं स्नातकोत्तर करने वाले  विद्यार्थियों को सरकार द्वारा प्रतिमाह पांच हजार रुपये छात्रवृत्ति एवं वार्षिक बीस हजार  से 28,000 रुपये तक आकस्मिक निधि के रूप में दिया जाता है जो कि पीएचडी में रजिस्टे्रशन होने तक लगातार मिलती है। यूरो ग्रुप के चेयरमैन सत्यवीर यादव एवं निदेशक नितिन यादव ने सफल विद्यार्थियों को बधाई दी एवं उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना की।
फोटो कैप्शन: छात्र हेमित कनीना तथा छात्रा कंचन मोहलड़ा।





कांग्रेस ने खोला अग्निपथ के खिलाफ मोर्चा, सत्याग्रह के तहत राष्ट्रपति के नाम सौंपा ज्ञापन
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कनीना की आवाज। कांग्रेस ने देशभर में केंद्र सरकार की अग्निपथ योजना के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। पार्टी केंद्र सरकार की अग्नि पथ योजना के खिलाफ संघर्ष की मुहिम को सत्याग्रह नाम दिया है। सोमवार को कनीना में पूर्व विधायक राव बहादुर सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस पदाधिकारी व कार्यकर्ताओं ने अर्धनग्न हो कर शांतिपूर्ण प्रदर्शन करते हुए एसडीएम सुरेंद्र सिंह को राष्ट्रपति के नाम ज्ञापन सौंपा। सबसे पहले कस्बे स्थित डॉ भीमराव अंबेडकर चौक पर तकरीबन 1 घंटे धरना देकर वहां से कांग्रेस कार्यकर्ता अर्धनग्न हो कर विरोध प्रदर्शन करते हुए एसडीएम कार्यालय पहुंचे। वहीं प्रशासन की और से सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे।  पूर्व विधायक कांग्रेस नेता राव बहादुर सिंह ने कहां की भाजपा सरकार कोई भी योजना बिना सोचे समझे जनता पर लाद देती है। पहले जीएसटी से परेशान किया। उसके बाद नोटबंदी ने देश का बुरा हाल किया। कुछ समय पहले किसानों को परेशान करने के बाद अब देश के जवानों को अग्नि पथ योजना के जरिए धोखे में रखा जा रहा है। कांग्रेस इस योजना को किसी कीमत पर लागू नहीं होने देगी। उन्होने कहा कि हम इस योजना में संशोधन भी बर्दाश्त नहीं करेंगे। जिला अध्यक्ष सुनीता मावता ने कहा कि कांग्रेस चाहती है कि अग्नि पथ योजना पूरी तरह से वापस ली जाए। इस योजना से युवा पढ़ाई और नौकरी दोनों से ही वंचित रह जाएंगे। उन्होंने भाजपा नेताओं के उस बयान पर भी निंदा की जिसमें कहा गया है कि अग्निवीरों को भाजपा कार्यालय में गार्ड की नौकरी दे दी जाएगी। उन्होंने कहा कि फौजियों ने अपने शादी के कार्ड में भी स्थायी नौकरी लिखना शुरू कर दिया है। कितनी शर्मनाक बात है कि देश की रक्षा करने वाले जवान को शर्मिंदा करने में यह सरकार कोई कसर नहीं छोड़ रही है। भाजपा वन रैंक वन पेंशन का नारा देकर सत्ता में आई थी, लेकिन अब नो रैंक नो पेंशन की स्थिति सबके सामने है।
यूथ कांग्रेस के हल्का अध्यक्ष नीरज यादव ने कहा कि सरकार ने अग्निपथ योजना लागू करके युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया है।  बिना विचार-विमर्श के थोपी गई अग्निपथ योजना के खिलाफ कांग्रेस अपनी आवाज बुलंद करती रहेगी। इस दौरान विजय चेयरमैन, कांग्रेस नेता राजकुमार यादव, हरीश भडफ़,  जय वीर, रामनिवास, जय किशन, राज सिंह, सतपाल, सुभाषचंद्र, धर्म देव सिंह, जयवीर सिंह, कुलविंदर सिंह, सुभाष चंद्रभान सहित भारी संख्या में कांग्रेसी मौजूद रहे।
फोटो कैप्शन 01: अर्धनग्र होकर एसडीएम को ज्ञापन देते कांग्रेसी
            02: संबोधित करते राव बहादुर सिंह पूर्व एमएलए।





करीब साढ़े तीन किलो गांजा छापामारी कर बरामद, एक के विरुद्ध मामला दर्ज
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कनीना की आवाज। कनीना पुलिस को मुखबिरी के आधार पर सूचना मिली की भोजावास में एक चाय विक्रेेता जिले सिंह नशीला पदार्थ बेच रहा है। पुलिस ने दलबल सहित दुकान पर छापेमारी की तथा नोटिस देकर दुकान की तलाश ली। डॉ राजीव कुमार राजकीय पशु चिकित्सालय बाघोत को ड्यूटी मजिस्ट्रेट बनाकर कार्रवाई की गई। एएसआई एवं पुलिस ने दुकान की तलाशी ली गई तो बेसमेंट में एक पैकिंग थैली  बरामद की जिसमें गांजा मिला। इलेक्ट्रॉनिक कांटे पर पैकिंग को तोला गया तो करीब 3 किलो 600 ग्राम निकला। दुकानदार जिले सिंह से परमिट मांगा तो कुछ भी पेश नहीं कर पाया। इसलिए उसके खिलाफ नशीला पदार्थ बेचने के आरोप में  20-61-85 एनडीपीएस एक्ट के तहत मामला दर्ज कर लिया है।





उमस एवं गर्मी जमकर सताने लगी है लोगों को
-30 जून को बारिश की है संभावना
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कनीना की आवाज। वर्तमान परिदृश्य में मैदानी राज्यों में विशेषकर राजस्थान हरियाणा एनसीआर दिल्ली  और जिला महेंद्रगढ़ में अधिकतर स्थानों पर अभी उमस और पसीने वाली भीषण गर्मी अपने तीखे तेवरों से आगाज किये हुए है जिसकी वजह से सम्पूर्ण इलाके में आमजन को आफ़त भरी गर्मी से रूबरू होना पड़ रहा है। राजकीय महाविद्यालय नारनौल के मौसम विशेषज्ञ डॉ चंद्रमोहन ने बताया कि अभी हरियाणा एनसीआर दिल्ली के आमजन को दो दिनों(28-29जून) तक भीषण उमस और पसीने वाली गर्मी से राहत नहीं मिलने वाली है क्योंकि अभी भी सम्पूर्ण इलाके पर पश्चिमी शुष्क और गर्म हवाओं का प्रभाव जारी है जिसकी वजह से हरियाणा एनसीआर दिल्ली में तापमान में उछाल जारी है। साथ ही साथ कमजोर नमी वाली हवाओं का आना भी जारी हो गया है मौसम में अस्थिरता बनी हुई है जिसकी वजह से कभी कभी हल्की बादल वाही और तेज़ गति से धूल भरी हवाएं चलने और एक दो स्थानों छिटपुट बूंदाबांदी भी देखने को मिल रही है। जिसकी वजह से सम्पूर्ण इलाके में जबरदस्त उमस और पसीने वाली गर्मी अपने रंग दिखा रही है। परन्तु जल्द ही हरियाणा एनसीआर दिल्ली से पश्चिमी गर्म और शुष्क हवाओं का प्रभाव समाप्त हो जाएगा और नमी वाली दक्षिणी पूर्वी हवाओं का आधिपत्य स्थापित होने की प्रबल संभावनाएं बन रही है। जैसे ही दक्षिणी पूर्वी नमी वाली हवाओं का रुख मैदानी राज्यों राजस्थान हरियाणा एनसीआर दिल्ली पर मजबूती प्रदान करेगा वैसे ही  सुस्त मानसून रफ्तार पकडऩे लगेगा और हरियाणा एनसीआर दिल्ली में  राहत की झमाझम बरसात देखने को मिलेगी। और सम्पूर्ण मैदानी राज्यों राजस्थान पंजाब हरियाणा एनसीआर दिल्ली में आफ़त भरी गर्मी भीषण उमस और पसीने वाली गर्मी  का सफाया हो जाएगा। हरियाणा एनसीआर दिल्ली में 28 जून  शाम बाद से ही उत्तरी पूर्वी  हिस्से में  बादल वाही देखने को मिलेगी और 29 जून को कमजोर पश्चिमी विक्षोभ के प्रभाव से हरियाणा एनसीआर दिल्ली में विपरीत हवाओं के मिलन से बादल अपना डेरा जमा लेंगे और कुछ स्थानों देर शाम रात्रि से ही 40 -50 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से हवाएं चलने और बारिश  के साथ सिमित स्थानों पर  गरज चमक के साथ ओलावृष्टि की गतिविधियां शुरू होने की संभावनाएं बन रही है। साथ ही साथ 30 जून सुबह से ही सम्पूर्ण हरियाणा एनसीआर दिल्ली में अधिकतर स्थानों पर रुकरुक कर बारिश का फैलाव बढ़ेगा और आगे जुलाई के शुरुआत से ही हरियाणा एनसीआर दिल्ली में मानसून गतिविधियों में तेजी और रफ्तार पकडऩे की प्रबल संभावनाएं बन रही है। आज हरियाणा एनसीआर दिल्ली में अधिकतर स्थानों पर अधिकतम तापमान  36.0  डिग्री सेल्सियस से   44.0   डिग्री सेल्सियस के बीच दर्ज किया गया है । आज जिला महेंद्रगढ़ भीषण पसीने और उमस भरी गर्मी का आगाज देखने को मिला। दोपहर बाद मौसम की  अस्थिरता की वजह से हल्की बादल वाही देखने को मिलीं साथ ही साथ तेज़ गति से धुल भरी हवाएं चलीं। जिला महेंद्रगढ़ में अभी दो दिन इसी प्रकार का मौसम रहने वाला है 29  जून की रात्रि और 30 जून अलसुबह से ही हरियाणा एनसीआर दिल्ली के साथ जिला महेंद्रगढ़ में अधिकतर स्थानों पर राहत की बारिश देखने को मिलेगी जिसकी वजह से भारतीय मौसम विभाग ने सम्पूर्ण इलाके पर येलो अलर्ट जारी कर दिया है। आज सोमवार को भी हरियाणा एनसीआर दिल्ली में सबसे अधिक उच्चतम तापमान जिला महेंद्रगढ़ का रहा है । पहले स्थान पर महेंद्रगढ़ 43.8  डिग्री सेल्सियस और दुसरे पायदान पर नारनौल 42.4 डिग्री सेल्सियस के साथ काबिज है। साथ ही साथ सम्पूर्ण हरियाणा एनसीआर दिल्ली में आज न्यूनतम तापमान में भी जिला महेंद्रगढ़ प्रथम पायदान पर रहा है। आज जिला महेंद्रगढ़ में नारनौल और महेंद्रगढ़ का न्यूनतम तापमान क्रमश: 31.3 डिग्री सेल्सियस और 29.8 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया है।जो सामान्य तापमान से 6.0 डिग्री सेल्सियस अधिक बना हुआ है। यानि जिला महेंद्रगढ़ के दिन और रात दोनों ही गर्म बने हुए हैं और साथ ही कमजोर नमी वाली हवाओं की वजह से पसीने और उमस भरी गर्मी अपने तीखे तेवरों से  जिला महेंद्रगढ़ पर आगाज किये हुए है और सम्पूर्ण इलाके का आमजन को आफ़त भरी गर्मी से रूबरू होना पड रहा है।
फोटो साथ हैं।







हरियाणा पावर  कॉरपोरेशन अनुसूचित जाति व पिछड़ा वर्ग कर्मचारी यूनियन की परिचय बैठक का आयोजन
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कनीना की आवाज। सोमवार को कार्यकारी अभियंता दक्षिण हरियाणा बिजली वितरण निगम नारनोल से हरियाणा पावर  कॉरपोरेशन अनुसूचित जाति व पिछड़ा वर्ग कर्मचारी यूनियन की परिचय मीटिंग बड़े सौहार्द पूर्ण माहौल में संपन्न हुई। इस बारे में जानकारी देते हुए राजेंद्र कपूरी ने बताया कि इस मीटिंग की अध्यक्षता  सर्कल सचिव  राजेंद्र सिंह कपूरी एवं सर्कल ऑर्गेनाइजर जय सिंह ने की । यूनिट प्रधान वेद प्रकाश जेई व यूनिट सचिव सुनील कुमार निनानिया ने कर्मचारियों की मुख्य  समस्याओं पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर अधिकारी ने कर्मचारियों की समस्याओं का निवारण  समय रहते हुए करने का आश्वासन दिया । यूनिट वरिष्ठ उप प्रधान महेश गोमला, उप प्रधान इंद्रजीत सिंह, उप प्रधान वीर सिंह, फोरमैन खजांची गोकल चंद, सब यूनिट सचिव लखनलाल, संगठन कर्ता राजेश कुमार रामपुरा, सचिव सत्यवान, बाबूलाल सब यूनिट खजांची, राजेश कुमार श्यामपुरा, प्रेस सचिव वेद प्रकाश, शंकर लाल जेई संगठन करता यूनिट एवं सतपाल आदि कर्मचारी उपस्थित रहे। इस अवसर पर कार्यकारी अभियंता ने समय रहते सभी समस्याओं के निवारण का आश्वासन दिया।
फोटो कैप्शन 5: परिचय में कर्मियों का सम्मान करते हुए पावर कर्मी।




धारावाहिक-09
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दूर-दराज तक विख्यात कनीना का खाटूश्याम धाम
-2018 में स्थापित हुई थी मूर्ति
डा होशियार सिंह यादव/कनीना की आवाज
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प्रदेश के प्रसिद्ध संत, संत शिरोमणि बाबा मोलडऩाथ आश्रम के बिल्कुल पास उत्तर दिशा में करीब पौने दो करोड़ की लागत से खाटूश्याम धाम बनाया गया है। इसकी नीव 6 दिसंबर 2014 को रखी और महज 4 सालों में बनकर तैयार हो गया जिसमें मूर्ति की स्थापना 27 अप्रैल 2018 को की गई। वास्तव में धाम की नींव की ईंट सूबेदार दुलीचंद के हाथों रखी गई। इस मौके पर ललित मोहन आचार्य महेश चंद पथसारिया आदि मौजूद थे। तब से लेकर आज तक खाटू श्याम मंदिर लोगों को आकर्षित करता आ रहा है। भारी संख्या में प्रतिदिन आरती के समय भक्त पहुंचते हैं। प्रदीप कुमार शास्त्री वर्ष 2018 से मंदिर में पूजा अर्चना करते आ रहे हैं।
 कैसे आया खाटू श्याम बनाने का विचार-
 खाटू धाम बनाने के पीछे खाटू शिविर लगाया जाना माना जा रहा है। श्याम सेवा मंडल द्वारा चार शिविर फागुन के समय खाटू श्याम मेले के वक्त भक्तों के लिए लगाए। इन शिविरों में भक्तों की भीड़ बढ़ती ही चली गई जिसको देखते हुए श्याम सेवा मंडल ने यहां एक धार्मिक स्थल खाटूधाम बनाने की सोची। तत्पश्चात इसके लिए एक कमेटी का गठन किया जिसका नाम सेवक श्री श्याम मंडल रखा गया। जब शिविर लगाए जाते थे उस समय सूबेदार दुलीचंद, अनिल सिंगला, रामपाल, कैलाश और विकास महज 5 सदस्य टीम होती थी। किंतु बाद में प्रधान संदीप माहेश्वरी की अध्यक्षता में 25 सदस्य कमेटी का गठन किया गया जो इस वक्त धाम के रखरखाव ,देखरेख निर्माण कार्य,भक्तों के आवागमन, उनकी सेवा करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है।
किसने निर्मित किया खाटूधाम-
 करीब 11000 स्क्वायर फीट क्षेत्रफल  में बने इस खाटूश्याम मंदिर को मिस्त्री सूबे सिंह ठेकेदार तथा फूल सिंह ठेकेदार द्वारा निर्मित किया गया। जब मंदिर निर्मित हो गया तत्पश्चात बड़ा जागरण आयोजित किया गया तथा श्याम शीश को जयपुर से लाया गया। जबकि मंदिर में चार स्थानों पर स्थापित राधा कृष्ण मंदिर, हनुमान जी मंदिर, गणेश जी मंदिर, शिव परिवार को गोला का बास बांदीकुई के पास से लाया गया। जयपुर से खाटू शीश को खाटू श्याम नगरी खाटू धाम ले जाया गया जहां से इसे कनीना लाया गया तथा ज्योति प्रज्वलित करके से कनीना तक आदर एवं सम्मान के साथ पहुंचाया गया। इस प्रकार कनीनावासियों, आसपास के लोगों के अतिरिक्त कमेटी के फल स्वरूप वर्तमान भव्य खाटूधाम बनकर तैयार है। जहां हर वर्ष 27 अप्रैल स्थापना दिवस पर विशाल जागरण होता है वही जन्माष्टमी,निशान यात्रा ,फागुन एकादशी पर शिविर लगाया जाता है जहां हजारों भक्त यहां धाम में रुकते हैं, शीश के दानी के दर्शन कर आगे गुजरते हैं। जिनकी बेहतर सेवा की जाती है।
श्याम कुंड-
 यूं तो देश के दो प्रसिद्ध खाटू धाम हैं जिनमें रींगस से 17 किलोमीटर आगे खाटूधाम में सबसे पुराना धाम है जहां कई लाख भक्त दर्शन के लिए पहुंचते हैं वहीं हुडिय़ा जैतपुर में भी पुराना खाटू धाम स्थित है जहां पर भारी संख्या में भक्त पहुंचते हैं किंतु शीश के दानी खाटू के प्रति अगाध आस्था और भक्तों की संख्या बढ़ती चली जा रही है जिसके चलते विभिन्न गांवों में खाटू धाम बनाए जाने लगे हैं। इसी कड़ी में खाटू धाम तथा हुडिय़ा जैतपुर धाम से प्रभावित होकर कनीना का खाटू धाम बनाया गया है। वास्तव में मंदिर को अंदर
 बेहद सुंदर निर्मित किया गया है।  खाटू श्याम का शीश दूर दराज से भक्तों को आकर्षित करता है। जहां पूजा के लिए बड़ा स्थान, दूर-दराज तक घंटियों की आवाज, आरती के समय भक्तों का जुटना तथा जेहन में आस्था देखने को मिलती है। खाटू धाम वास्तव में मन को मोह लेता है और जब फागुन एकादशी आती है उस समय न केवल कनीना का संत मोलडऩाथ मेला लगता है अपितु खाटू धाम के लिए भारी संख्या में लोग इधर से गुजरते हैं और अपने को धन्य समझते हैं। खाटू धाम अपने आप में निराला है और लोगों को आकर्षित करने वाला है।
 श्याम कुंड और श्याम बगीची खाटू धाम के अहम अंग माने जाते हैं। श्याम बगीची अभी निर्मित की जा रही है जबकि श्याम कुंड 32 लाख रुपये की लागत से निर्मित हो चुका है। वास्तव में यह कुंड कभी तड़ाग का रूप लिए हुए था। इस जोहड़ में विक्रमी  संवत 2006 तक और इसके कुछ साल बाद तक साफ पानी भरा होता था। यहां कहने को तो  छोटी बणी होती थी जो सीहोर- छितरौली रोड, कनीना के राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, कालरवाली जोहड़ तथा बस स्टैंड, बीडीपीओ कार्यालय आदि सभी इसी के बणी के तहत आते थे। विशालकाय जाल के पेड़ मन को मोह लेते थे। इसी जगह एक जाल के नीचे संत शिरोमणि बाबा मोलडऩाथ ने अपना आश्रम निर्मित किया था। उनका तालाब/जोहड़ आज भी चला रहा है जो संत की याद दिलाता है। यह जोहड़ कनीना पालिका प्रधान सतीश जैलदार द्वारा पक्का करवाया है तथा इसे मोलडऩाथ जोहड़ तथा श्यामकुंड सम्मिलित नाम दिया जा रहा है। यह जोहड़/कुंड अंदर से पक्का किया गया है तथा इसमें अधिक मात्रा में भरा हुआ पानी बोर द्वारा भूमिगत हो जाएगा तथा इसमें जितना पानी आवश्यकता है उतना भरा जा सकेगा। वर्तमान में यह तड़ाग बनकर तैयार है किंतु इसमें अभी तक पानी नहीं भरा गया है। इसमें नहर से पानी लाने की योजना बनाई जा रही है। कनीना मंडी से गुजरने वाली नहर करीब डेढ़ किलोमीटर दूरी पड़ती है वहां से पानी लाने की योजना बनाई जा रही है जो अभी तक सिरे नहीं चढ़ी है। यह योजना सिरे नहीं चढ़ पाई तो इसे साफ पानी से भरा जाएगा। तब तो क्षेत्र और मनमोहक बन जाएगा। एक और जहां बाबा मोलडऩाथ आश्रम लोगों के भक्ति और श्रद्धा का केंद्र है और इसके पास एक दर्जन विभिन्न धार्मिक स्थान हैं और उनमें सर्वोपरि खाटू धाम आता है। पास में बस स्टैंड होना  यात्रियों के लिए यहां पहुंच का सबसे सुलभ मार्ग बनता है। पूर्व पालिका प्रधान के समय जोहड़ को गंदे पानी से भर दिया गया था किंतु व नगर पालिका द्वारा ही सुुध लेकर इसका गंदा पानी निकाल दिया गया और साफ पानी भरने की योजना बनाई है। पास में बस स्टैंड और खाटू धाम मंदिर के बीच में कुछ जगह गंदगी का साम्राज्य है जिसे राज्य परिवहन विभाग मिट्टी से भरवाकर बेहतरीन बनाने की योजना बन रही है।
 आने वाले समय में यह खाटू धाम लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र होगा। क्योंकि पास में तालाब/कुंड बहुत सुंदर निर्मित किया गया है इसके चारों ओर लाइट का प्रबंध किया है, घूमने फिरने, बुजुर्गों के लिए भी इसके चारों ओर सुबह सवेरे घूमने का मार्ग बनाया गया है। कुल मिलाकर बाबा मोलडऩाथ आश्रम आने वाले समय में हरियाणा का ही नहीं अपितु भारत का एक अग्रणी दर्शनीय स्थल होगा।                 
               श्री खाटू श्याम का जीवन परिचय
  द्वापर युग में जब विष्णु भगवान् श्रीकृष्ण रूप में पृथ्वी लोक पर पापों एवं पापी जनों का अंत करने के लिए आए तब एक दिन श्रीकृष्ण अपनी पत्नी सत्यभामा से किसी मुद्दे पर वार्तालाप कर रहे थे तो इंद्र देव ने आकर सूचना दी कि प्रागज्योतिषपुर(वर्तमान आसम) के राजा नरकासुर ने देव माता अदिति के कुंडल एवं वरुण देव का छत्रक चोरी कर लिया हे। इन दोनों का धारण करके वे कुंआरी कन्याओं का स्त्रीत्व नष्ट करने पर आमादा है। उन्होंने 16,100 कन्याएं भी बंदी बना ली थी।
  इंद्र देव ने नरकासुर के सेनापति के बारे में भी जानकारी दी जो अति बुद्धिमान एवं मायावी था। उन्होंने नरकासुर के साम्राज्य की सुरक्षा के लिए आकाशीय बिजली को पकड़ कर बांध रखा था तथा कटारें लगा रखी थी। कोई भी इन विद्युत रश्मियों को काटने में सक्षम नहीं था। इस प्रकार नरकासुर का किला अभेद था। इसके अतिरिक्त सेनापति मूर अति शक्तिशाली था। मूर की पुत्री मौरवी जिनका वास्तविक नाम कामकटंककटा था, मां कामाख्या देवी से प्राप्त वरदानों के बल पर अति  ताकतवर थी।
                     कुंडल और छत्रक की कर चोरी, नरकासुर बना बलशाली,
                     मूर सेनापति का बुद्धि बल, अभेद किले की करे रखवाली।
ऐसे समय में श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा को सूर्य देव का वरदान मिला हुआ था कि वह आकाशीय बिजली को भी प्रभावहीन करके उसे काट सकती थी। श्रीकृष्ण के आदेश पर सत्यभामा ने नरकासुर के साम्राज्य की सीमा पर बंधी कटारों तथा आकाशीय बिजली को काट डाला। तत्पश्चात दैत्यराज नरकासुर का श्रीकृष्ण ने वध कर डाला। इसके बाद नरकासुर का सेनापति मूर, श्रीकृष्ण से युद्ध करने के लिए आगे बढ़ा तो उनका भी वध श्रीकृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से कर डाला जिसके चलते श्रीकृष्ण का नाम मुरारी पड़ा। उधर नरकासुर द्वारा बंदी बनाई गई कन्याओं को मुक्त कराया।
                  नरकासुर का वध किया, मार डाला मूर,
                  मूर का संहार करने से, श्रीकृष्ण बने मुरारी।
श्रीकृष्ण द्वारा मूर सेनापति का वध कर देने के बाद मूर की बलशाली पुत्री नाग कन्या मौरवी(कामकटंककटा)श्रीकृष्ण से युद्ध करने मैदान में आई। श्रीकृष्ण से भयंकर युद्ध करने के बाद जब कामख्या देवी की खडग़ से श्रीकृष्ण पर प्रहार करना चाहा तो श्रीकृष्ण ने उनका वध सुदर्शन चक्र से करना चाहा किंतु उस वक्त कामख्या देवी प्रकट हुई और श्रीकृष्ण से उन्हें माफ करने की प्रार्थना की। कामख्या देवी ने मौरवी से कहा-श्रीकृष्ण ही तुम्हारे भावी ससुर होंगे। तीनों लोकों के स्वामी को प्रणाम करो। मौरवी ने तब श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी और उनसे एक सुंदर पति ढूंढने की प्रार्थना की। श्रीकृष्ण ने उन्हें वचन दिया कि वे उनके लिए एक अति बलशाली एवं बुद्धिमान पति जल्द ही ढूंढकर ला देंगे।
                     माफ किया मौरवी को, वचन दिया अमर,
                     बुद्धि और बलशाली सा ,ला देंगे एक वर।
उधर हिडिंबा राक्षसी जो अति मायावी थी और दस हजार हाथियों के बल वाले भीम की एक संतान घटोत्कच अब जवानी की ओर कदम रख चुका था। श्रीकृष्ण ने घटोत्कच को नाग कन्या अहिलावती या मौरवी के पास जाकर उनको बुद्धि एवं बल द्वारा हराने एवं उनसे शादी करने का आदेश दिया। घटोत्कच कामदेव द्वारा बसाई हुई अति सुंदर नगरी प्राज्ञज्योतिषपुर गया तो बड़ा प्रसन्न हुआ। उन्होंने निश्चय किया कि इस नगरी की मौरवी को जरूर बुद्धि एवं बल से हराएंगे और उनसे विवाह करेंगे।
जब मौरवी से आमना सामना घटोत्कच का हुआ तो मौरवी ने उनकी बुद्धि एवं बल की परीक्षा लेने के लिए कुछ प्रश्न किए जिनका घटोत्कच ने उत्तर दे दिया। अब बारी प्रश्न पूछने की घटोत्कच की थी। घटोत्कच में अपनी मां हिडिंबा की बुद्धि एवं पिता भीम का बल था। उन्होंने मौरवी को हरा दिया। इसके बाद दोनों के बीच युद्ध चला जिसमें भी मौरवी को हार हाथ लगी जिसके चलते मौरवी ने उनसे विवाह करना पड़ा।
                   बुद्धि और बल में हार गई, मौरवी ने मानी हार,
                   घटोत्कच से हुई शादी, बढ़ गया उनका प्यार।।
मौरवी एवं घटोत्कच के एक सुंदर संतान हुई जिसके बाल अति घने एवं घुंघराले होने के कारण हिडिंबा ने उनका नाम बर्बरिक रखा जो संस्कृत शब्द से लिया गया है। बर्बरिक को चंडील, हारे का सहारा, लख दातार, नीले घोड़े वाला,तीन बाण धारी, खाटू श्याम आदि नामों से जाना जाता है। जब बर्बरिक का जन्म हुआ तभी एक दिन महर्षि वेद व्यास ने हिडिंबा को बताया कि उनका पुत्र अति पराक्रमी होगा जिसके चलते उनके कुल का नाम तीनों लोकों में सम्मान से लिया जाएगा। इतना सुनकर उनका लालन पालन उनकी मां मौरवी ने बड़े ही प्यार से किया। जब बर्बरिक युवा अवस्था की ओर अग्रसर हुआ तो हिडिंबा ने उन्हें हर प्रकार की अस्त्र-शस्त्र विद्या प्रदान की। मां एवं दादी के शिक्षा देने से बर्बरिक अति बलशाली बन गया। वह नीले घोड़े की सवारी करने लगे।
                      नीले घोड़े पर सवार हो, बर्बरिक बना बलशाली,
                       हर योद्धा उनसे हारा, वार ना गया कभी खाली।
 एक दिन बर्बरिक ने अपनी मां मौरवी तथा दादी हिडिंबा से तीनों लोकों में अजय होने की शिक्षा मांगी। उन्होंने जगत में एकमात्र श्रीकृष्ण को यह शिक्षा देने में सक्षम बताया। बर्बरिक श्रीकृष्ण के पास यही प्रश्न लेकर गया। श्रीकृष्ण ने उन्हें तीनों लोकों में विजय पाने के लिए एक ब्राह्मण गुरू विजय सिद्धसेन के पास जाने का आदेश दिया। बर्बरिक ने श्रीकृष्ण को यहीं से प्रथम गुरू मान लिया और समय आने पर गुरुदक्षिणा देने का वचन दिया।
                        राह दिखाई श्रीकृष्ण ने, पहुंचा सिद्धसेन के पास,
                        दिल में उमंग लिए हुए थे, अजय होने की थी आश।
जब विजय सिद्धसेन से बर्बरिक मिला तो विजयसेन ने उन्हें उनके पास आने का कारण पूछा। बर्बरिक ने उन्हें श्रीकृष्ण द्वारा भेजा हुआ और शिक्षा लेने के लिए आया बताया। उन्होंने विश्व में अजय होने की शक्ति प्रदान करने की प्रार्थना की। सिद्धसेन ने उन्हें अपना शिष्य एक शर्त पर बनाने का वचन दिया-अगर तुम मेरी सात दिन एवं सात रात राक्षसों से रक्षा करके मेरी तपस्या पूर्ण करवा देंगे तो वे सहर्ष शिष्य बना लेंगे। उस वन में मांसभक्षी राक्षसों का जोर था किंतु बर्बरिक के सामने एक भी राक्षस नहीं टिक सका। आखिरकार विजय की विजय हुई और तप पूरा होने पर उन्हें मां चामुंडा ने उन्हें वरदान दिया। तत्पश्चात विजय सिद्धसेन ने बर्बरिक को अपना शिष्य बना लिया और घोर तप करने का आदेश दिया। तीन वर्षों तक घोर तप करने के बाद ही चामुंडा देवी ने बर्बरिक को तीन बाण दिए जिनके बल पर वो विश्व में सबसे बलशाली वीर बन गया। यहीं से बर्बरिक का नाम तीन बाणधारी पड़ गया। एक अन्य प्रसंग के अनुसार शिवभोले की घोर आराधना करने के बाद ही बर्बरिक को विश्व विजेता बनने के लिए तीन बाण प्राप्त हुए। एक अन्य प्रसंग के अनुसार तीन वर्षों तक नव दुर्गा की महीसागर में उपासना एवं तप करने के बाद ही भगवती मां ने उन्हें तीन बाण देकर अजय बना दिया था। साथ में अग्रि देव ने उन्हें धनुष दिया। तीनों लोकों पर विजय प्राप्त करने में सक्षम होने के कारण उन्हें 'चंडीलÓ नाम दिया गया। वे ताउम्र ब्रह्मचारी रहे और महाभारत के युद्ध के बाद वैराग्य धारण कर लिया।
                          घोर तप करके, बर्बरिक को मिला एक वरदान,
                           अजय जगत में हो गए, शीश दे दिया जब दान।
तीन बाणों के बल पर बर्बरिक तीनों लोको को पर विजय प्राप्त कर सकते थे। उनके बाणों की विशेषता थी कि वे लक्ष्य को बेंधकर वापस तरकश में आ जाते थे। पहला बाण सभी छुपे हुए लक्ष्य को एकत्रित कर देता था और दूरा बाण उन्हें पल में समाप्त कर देता था। तीसरे बाण की तो जरूरत ही नहीं पड़ती थी। एक प्रसंग अनुसार पहला बाण उन सभी लक्ष्यों को ढूंढ लेता था जिन्हें बर्बरिक नष्ट करना चाहता था और दूसरा बाण उन्हें पल में नष्ट कर देता था। तीसरे बाण से उनको खात्मा किया जा सकता था जिनको अभी तब दोनों बाणों से बचे होते थे।
                     अभेद क्षमता थी बाणों की, खाली ना जाए वार,
                     जिस पर लक्ष्य साध दिया, होती सदा उसकी हार।
 इन बाणों को पाकर जहां विजय सिद्धसेन प्रसन्न हुए वहीं बर्बरिक अति प्रसन्न हुआ। अपार बुद्धि एवं भावी सोच रखने वाले विजय सिद्धसेन ने यह सोचकर कि कहीं इनका दुरुपयोग न हो जाए, बर्बरिक से दो वचन मांगे। पहले वचन में इन बाणों का उपयोग केवल युद्ध में ही करने और दूसरे वचन में केवल दुर्बल का पक्ष लेेना था। अपने गुरु विजय सिद्धसेन को बर्बरिक ने दोनों वचन अति निष्ठा से निभाने का वादा किया। तीन बाण लेकर बर्बरिक जब अपनी मां नाग कन्या मौरवी तथा हिडिंबा के पास गया तो उन्होंने बताया कि कुरुक्षेत्र में युद्ध होने की संभावना बढ़ गई है। ऐसे में बर्बरिक को अपने बाणों का प्रयोग करने का इससे बेहतर अवसर और कहीं नहीं मिल सकता था। हिडिंबा ने बताया कि यह जग का सबसे बड़ा युद्ध होगा जिसमें एक से बढ़कर एक बलशाली योद्धा लड़ेगा। ऐसा युद्ध भाई-भाई के बीच न कभी हुआ है और न कभी भविष्य में होगा। जब बर्बरिक ने यह सुना तो उनकी युद्ध देखने की तमन्ना और भी बलवती हो गई।
                      जगत में ऐसा भीषण युद्ध, हुआ न होगा कभी,
                      सोच-सोच परेशान हुए, रणक्षेत्र के योद्धा सभी।
 उधर शकुनी मामा अपनी बहन का अंधे धृतराष्ट्र के साथ गांधारी का विवाह करने का बदला लेने के लिए पासे फेंकने की तैयारी में था। वो अपनी बहन को अंधे के संग विवाह करने के लिए दोषी पांडु पुत्रों को मान रहे थे। वहीं हुआ जो नहीं होना चाहिए था। युधिष्ठिर धन, राज्य और आखिरकार पत्नी को भी पासों के दाव पर लगा सब कुछ हार चुका था। जैसे तैसे करके अज्ञात स्थान पर 13 वर्ष बिताने के बाद हस्तिनापुर का राज मांगा फिर पांच गांव मांगे और अंतत: एक सुई के बराबर भी जगह न देने पर विवाद बढ़ चुका था और यह विवाद युद्ध में तबदील हो गया। श्रीकृष्ण ने इस युद्ध को टालने का भरसक प्रयास किया किंतु सफलता नहीं मिली। वैसे तो युद्ध का अंदेशा पांचाली के चीर हरण से ही शुरूआत हो गई थी और एक के बाद एक महान हस्थी इस घटना को देखता रहा और मुख से एक शब्द भी नहीं कहा। अंतत: दोनों कौरव एवं पांडव कुरुक्षेत्र के मैदान में सेना सहित युद्ध के लिए तैयार हो गए। इसी जगह बर्बरिक अपने तीन बाण लेकर युद्ध के मैदान में पहुंच गया। जब श्रीकृष्ण की नजर बर्बरिक पर पड़ी तो श्रीकृष्ण ने युद्ध में आने का कारण पूछा।
जब बर्बरिक ने युद्ध करने के लिए आना बताया तो श्रीकृष्ण ने पूछा कि वे किसका साथ देंगे?
बर्बरिक ने अपने गुरू एवं अपनी मां को दिए गए वचन का स्मरण कराते हुए हारने वाले का पक्ष लेने की बात कही। श्रीकृष्ण ने उनके तीन बाणों की परीक्षा लेने का निर्णय लिया।
                           परीक्षा का निर्णय लिया, ली परीक्षा कठोर,
                           पेड़ के पात छेद दिए, अजय का बजा शोर।
    जब श्रीकृष्ण ने परीक्षा बतौर सामने खड़े एक वट वृक्ष के सभी पत्ते एक ही बाण से बेंधने के बारे में कहा तो बर्बरिक ने पहला बाण छोडऩे की तैयारी की। इसी बीच श्रीकृष्ण ने एक पत्ते को अपने पैर के नीचे छुपाकर यह देखने का प्रयास किया कि क्या किसी को अन्यत्र छुपाने से वो बच पाता है कि नहीं? पहले बाण ने अपना लक्ष्य निर्धारित कर दिया और दूसरा बाण छोड़ा तो सभी पत्ते बेंध डाले और बाण श्रीकृष्ण के पैर की ओर चलने लगा। बर्बरिक ने श्रीकृष्ण से निवेदन किया कि पैर को हटा ले। एक अन्य प्रसंग अनुसार बाण श्रीकृष्ण के पैर से पार होकर पत्ते को बेंधने में सफल हुआ और श्रीकृष्ण का पैर उस बाण से कमजोर हो गया। यहीं से श्रीकृष्ण की शक्ति क्षीण होने लगी थी। वैसे भी दुर्वासा ऋषि के वरदान अनुसार श्रीकृष्ण के पैर के अलावा सभी अंग किसी भी अस्त्र शस्त्र के प्रभाव से परे थे। महज उनके पैर ही कमजोर थे। अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित को बचाने में भी श्रीकृष्ण की आधी शक्ति क्षीण हो चुकी थी। यही कारण था कि मौसुला पर्व के समय जरा शिकारी श्रीकृष्ण के चमकते हुए पैर को हिरण समझकर निशाना लगा दिया और श्रीकृष्ण की मौत हो गई।
                     बर्बरिक के बाण से पड़ गया कमजोर पैर निशान,
                      जरा शिकारी के बाण से उड़ गए श्रीकृष्ण प्राण।
  आखिरकार श्रीकृष्ण ने समझ लिया कि अब युद्ध जीत पाना कठिन हो गया है क्योंकि जब तक बर्बरिक रहेंगे युद्ध नहीं जीता जा सकता।
जब श्रीकृष्ण ने पूछा कि वे किसका साथ देंगे तो बर्बरिक ने साफ शब्दों में बताया कि उनकी माता एवं गुरु को दिए गए वचन के अनुसार वे केवल दुर्बल पक्ष का साथ देंगे।
 श्रीकृष्ण ने बर्बरिक से कहा कि इसका अर्थ यह हुआ कि पहले माना पांडव कमजोर होंगे तो उनका साथ देंगे और कौरव कमजोर पड़े तो उनका साथ देंगे। इस प्रकार कभी पांडवों का तो कभी कौरवों का साथ देते हुए दोनों ओर के सभी वीर समाप्त हो जाएंगे और अकेला बर्बरिक बचेगा और उनका वचन ही उनके लिए श्राप बनकर रह जाएगा।
बर्बरिक ने जब श्रीकृष्ण के विचार सुने तो उसे सच्चाई का अहसास हुआ और श्रीकृष्ण से ही इसका उपाय पूछा। श्री कृष्ण ने जवाब दिया-या तो आप युद्ध से दूर चले जाओ या फिर एक ओर उपाय और अंतिम उपाय हे।
बर्बरिक ने जवाब दिया-आप मेरे पहले मार्गदर्शक एवं गुरू हो और मैं युद्ध से दूर नहीं जा सकता। ऐसे में दूसरा उपाय हो तो बताओ?
श्रीकृष्ण ने पांडवों से बर्बरिक को दूर रखते हुए वचन लिया कि वो जो भी उपाय बताएंगे वो गुरू दक्षिणा बतौर वो देंगे।
                    संशय में पड़ गया बर्बरिक, पूछा श्याम से उपाय,
                    पैरों में गिर पड़े तो, श्रीकृष्ण ने लिया गले लगाय।
 जब बर्बरिक वचनों में बंध गया तो श्रीकृष्ण ने उनका शीश मांग लिया। यहां एक अन्य प्रसंग के अनुसार एक बार जब बर्बरिक विगत जन्म में यक्ष के रूप में थे तो देव सभा में राक्षसों का अंत करने की बात चली तो ब्रह्मा जी ने विष्णु को धरा पर भेजने की बात कही किंतु यक्ष ने कहा कि यह काम तो वे पल में कर सकते हैं।  इस प्रकार सभा में अधिक बोलने पर ब्रह्मा ने उन्हें श्राप दिया था कि जब विष्णु भगवान् धरती के पाप मिटाने के लिए धरती पर श्रीकृष्ण का रूप लेंगे तो उनका शीश सबसे पहले धड़ से अलग करेंगे।
                            पूर्व जन्म में यक्ष थे, दिया ब्रह्मा ने अभिशाप,
                           पाप मिटाने विष्णु आएंगे, तब तक करना जाप।
शीश देने की बात सुनकर बर्बरिक संकोच में पड़ गये। श्रीकृष्ण के पूछने पर पर बर्बरिक ने उत्तर दिया-आप जैसे गुरू को प्राणों से कम अगर दक्षिणा दी जाए तो वो दान का अपमान होगा किंतु मैं यह युद्ध देखने का इच्छुक था। लगता है कि अब यह युद्ध मैं नहीं देख पाऊंगा।
श्रीकृष्ण ने इस अवसर पर जवाब दिया-तुम्हारा धड़ एवं शीश अलग होने पर भी शीश हर बात को सुनने, देखने, परखने की क्षमता होगी। माना जाता है कि शुक्ल पक्ष फाल्गुन माह के 12वें दिन मंगलवार के दिन बर्बरिक ने शीश दिया था। शीश देने के कारण ही बर्बरिक महात्मा बर्बरिक कहलाए।
                               वचनों में फंसकर ही, दिया शीश का दान,
                               महात्मा बन गए बर्बरीक, बढ़ी उनकी शान।
बर्बरिक की मायूसी तोडऩे व कारण का पता लगाने के बाद श्रीकृष्ण ने कहा-यदि आप युद्ध देखना चाहते हैं तो वह काम मैं करवाऊंगा। आपका शीश युद्ध का सारा हाल अति बारीकी से देख सकेगा और हर घटना को बखूबी से देख व सुन सकेगा। इतना सुनकर बर्बरिक ने अपना शीश देने के लिए श्रीकृष्ण के आगे झुक गए और कहा-आप मेरे शीश को ले सकते हैं।
 श्रीकृष्ण ने इस अवसर पर कहा-हे दानवीर, दान लिया नहीं जाता है अपितु दिया जाता है। ऐसे में आप स्वयं अपना शीश काटकर दे।
इतना सुनकर बर्बरिक ने अपना शीश धड़ से अलग करके श्रीकृष्ण् को दान दे दिया। तब कहीं जाकर पांडवों को युद्ध में जीत की संभावना नजर आने लगी।
                           दान दे दिया शीश, पांडव हुए सफल,
                           देंगे उत्तर युद्ध में, होने वाला है कल।
इसके बाद रणभूमि में प्रकट हुई 14 देवियों के द्वारा अमृत से सिंचित करके ऊंचे स्थान पर रखवाया गया था। बर्बरिक का सिर एक ऊंची पहाड़ी पर कुरुक्षेत्र के पास रख दिया जहां से बर्बरिक युद्ध का सारा हाल देख व सुन सकता था। तत्पश्चात शुरू हुआ जग का सबसे बड़ा और सबसे महान योद्धाओं के बीच युद्ध। इस युद्ध में लाखें महिलाएं बेवा हो गई और चारों ओर सन्नाटा छा गया। कर्ण, भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, दुर्योधन, जयद्रथ और कितने ही महान योद्धा एक के बाद एक मरते हुए देखे। भारी रक्तपात हुआ। चारों ओर धुआं और किलकारियां सुनाई पडऩे लगी। कहीं भीम को कौरवों का लहू पीते हुए देखा तो कहीं अभिमन्यु जैसे बालक पर एक नहीं अपितु सात-सात महारथियों द्वारा एक साथ वार करते और जान लेते हुए देखा।  
इतना भीषण युद्ध हुआ जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है। यह युद्ध अहंकार, अधर्म, अत्याचार ,अन्याय तथा न्याय, धर्म, एवं नम्रता के बीच चला। यह युद्ध 18 दिनों तक चलता रहा। इस युद्ध के शुरू होने से पूर्व एक बार श्रीकृष्ण ने सभी महारथियों से युद्ध समाप्त करने का समय पूछा था तो द्रोणाचार्य ने कहा था कि वे 25 दिन में युद्ध समाप्त कर देंगे। कर्ण ने यही युद्ध 24 दिनों में अर्जुन इसे 28 दिन में समाप्त करने की बात कर रहे थे किंतु बर्बरिक से जब युद्ध समाप्ति की अवधि पूछी तो उनका उत्तर था कि वे एक मिनट में युद्ध समाप्त कर सकते हें। इससे भी श्रीकृष्ण बर्बरिक से अति प्रसन्न हुए थे। यहीं पर श्रीकृष्ण के मुख से एक शब्द निकला-क्षत्रियों में सबसे बहादुर बर्बरिक था।
                       क्षत्रियों में सबसे बहादुर, श्रीकृष्ण ने किया उच्चार,
                       तीनों लोकों में सबसे धनुर्धर, नहीं होगी कभी हार।
जब युद्ध समाप्त हो गया तो सभी पांडव विजय श्री का श्रेय अपने सिर लेना चाहते थे। ऐसे में किसे सच्चा नायक कहा जाए , एक समस्या बनकर खड़ी हो गई। ऐसे में श्रीकृष्ण सहित सभी मिलकर इसका न्याय करवाने के लिए बर्बरिक के शीश के पास गए और सही नायक बताने की प्रार्थना की।
इस समय शीश ने कहा- इस युद्ध में केवल दो ही चीजें नजर आ रही थी। एक तो श्रीकृष्ण का सुदर्शन चक्र जो हर योद्धा के साथ था वहीं द्रोपदी का काल रूप लहू पीते नजर आया। इन दोनों के अलावा और कुछ भी नहीं था। बर्बरिक के सच्चे न्याय से श्रीकृष्ण अति प्रसन्न हुए और उनका शीश धड़ से जोड़कर पुन: जीवित कर गले से लगा लिया और कहा-कलियुग में आप मेरे नाम से ही पूजे जाएंगे और आप श्याम बाबा अर्थात खाटू श्याम नाम से प्रसिद्ध होंगे।
                  दे दिया वरदान पूजे जाओगे कलियुग में श्याम,
                 शीश के दानी, महावीर तुमने कर दिया वो काम।
जब बर्बरिक को फिर से जीवन मिल गया तो उनकी दादी हिडिंबा एवं मां नाग कन्या मौरवी ने उन्हें घर पर चलने की प्रार्थना की किंतु उन्होंने अपने परिजनों को को अपने छोटे भाई मेघवान को सौंपते हुए कहा कि अब मेरा मन इतना भयंकर दृश्य देखकर ऊब चुका है और अब मैं तप करना चाहता हूं। श्रीकृष्ण ने एक बार फिर से मार्ग दर्शन करते हुए तप करने के लिए जंगलों में जाने की अनुमति दे दी। इसी से ही बर्बरिक एक महात्मा कहलाए।
                     उद्वेलित हुआ मन, बर्बरिक बन गए महात्मा,
                     युगों-युगों तक नाम रहेगा, परम पुनीत आत्मा।
एक अन्य प्रसंग के अनुसार युद्ध का असली नायक जब शीश ने बताया तो सभी ने उन्हें प्रणाम किया और भगवान् श्रीकृष्ण ने उन्हें प्रणाम करते हुए कलियुग में उनके नाम से पूजे जाने का वरदान दिया और शीश को एक नदी में बहा दिया जो बहकर वर्तमान खाटू श्याम में पहुंचा जहां आज भी पूजा की जाती है।
                           कलियुग के भगवान्, तीन बाणधारी,
                           हिडिंबा दादी थी, मौरवी मां प्यारी।
एक अन्य प्रसंग यह भी मिलता है कि जब शीश ने सच्चा न्याय करते हुए युद्ध का असली नायक बता दिया तो भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें खाटू में दफना दिया। श्रीकृष्ण ने कहा-वक्त आएगा जब तुम पुन: शीश के रूप में अवतार लोगे और तुम्हारी पूजा मेरे ही नाम के रूप में होगी।
 एक बार एक गाय उस स्थान पर खड़ी थी जहां खाटू श्याम का शीश दफनाया गया था। गाय के थनों से दूध स्वत: धारा के रूप में बह निकला। जब लोगों ने यह घटना देखी तो अचंभित हो गए और उस स्थान को खुदवाया गया। कई दिनों तक खुदाई चली तो उस जगह एक शीश निकला जो खाटू श्याम का अर्थात बर्बरिक का था। पूजा अर्चना करके एवं विधि विधान अनुसार उसे कार्तिक माह की एकादशी को मंदिर में रखा गया और उसी दिन को श्याम बाबा का जन्म दिन मानकर मनाया गया। इस भव्य मंदिर का निर्माण 1027 ई. में रूप सिंह चौहान एवं उनकी पत्नी नर्मदा कंवर ने बनवाया था किंतु वर्ष 1720 में मारवाड़ के ठाकुर के दीवान अभय सिंह ने जीर्णोद्धार करवाया गया जो आज तक चला आ रहा है।
                    सुनकर कथा बर्बरिक की, सिर श्रद्धा से झुक जाए,
                    मन्नत दिल में लेकर आए, वो खुश होकर लौट जाए।
खाटू श्याम जी नेपाल में यलांबार नाम से जाने जाते हैं। हिमाचल प्रदेश में मंडी जिले के कामरू पर्वत पर सुंदरनगर में वे कामरूनाग नाम से पूजे जाते हैं। पूरे विश्व में प्रसिद्ध एवं पूजे जाने वाले खाटू श्याम की महानता के किस्से हर इंसान की जुबान पर है जिसके चलते आज भी उन्हें श्रद्धा से याद करते हुए भक्तजन दूर दरज से आकर उनकी पूजा करते हैं और ध्वजा चढ़ाते हैं। उन सभी भक्तों की मनोकामना पूर्ण हो जाती है।
                       कई रूपों में पूजे जाए, विश्व में हैं विख्यात,
                        हारे का सहारा प्रभु, दुखिया का देता साथ।
आज भी श्याम बाबा को विभिन्न नामों से भक्तजन जानते हैं जिनमें 'श्याम प्यारेÓ, 'बरबरिकाÓ, 'कलियुग के अवतारीÓ, 'तीन बाणधारीÓ, 'खाटू नरेशÓ, 'लख दातारीÓ, 'शीश के दानीÓ, 'हारे का सहाराÓ आदि कई नाम प्रसिद्ध हैं। भक्तजन विभिन्न नामों से पुकारते हुए निशान लेकर अपने घर से चलते हैं और खाटू श्याम मंदिर पहुंचते हैं।
मंदिर के पास ही श्याम बगीची है जहां से भक्तजन फूल तोड़कर श्याम बाबा को अर्पित कर मन्नत मांगते हैं। इसी बगीची में श्याम बाबा के प्रसिद्ध भक्त आलू सिंह की समाधि बनी है। पास में ही गोपीनाथ एवं गौरीशंकर मंदिर हैं। ये मंदिर अति प्राचीन बताए जाते हैं। यूं तो यहां प्रतिदिन हजारों भक्तजन आते हें जिनमें विदेशी भी प्रमुख होते हैं। यहां पर मुंडन संस्कार आयोजित होते हैं वहीं नव विवाहित को आशीर्वाद लेने के लिए आना पड़ता है। विभिन्न पर्वों पर यहां भक्तजन खुशी मनाते हैं जिनमें कृष्ण जन्माष्टमी, होली, बसंत पंचमी एवं कुछ अन्य पर्व शामिल हैं। फाल्गुन मेले के पर्व पर श्याम कुंड में स्नान का अति महत्व बताया जाता है। इस कुंड से ही श्याम बाबा का शीश प्राप्त हुआ था। इस कुंड का जल कई रोगों में लाभकारी बताया जाता है। यूं तो बाबा मंदिर के द्वार खुलने का एक समय होता है किंतु फाल्गुन मेले पर द्वार 24 घंटे खुले रहते हैं। मेले में खीर एवं चूरमा का प्रसाद वितरित किया जाता है।
                          श्याम कुंड निराला, फाल्गुन मेला मतवाला,
                          बाबा का प्रसाद बांट दो, घर में हो उजाला।   
सावधान--
यह आलेख कापीराइट के तहत है। किसी प्रकार की फोटो एवं टैक्सट कापी करना दंडनीय अपराध एवं कापी राइट एक्ट के तहत जुर्म होगा। यह ब्लाग रजिस्टर्ड ब्लाग है।




































धारावाहिक -10
धारावाहिक -10 में पढ़ेंगे कनीना के हाथीखाने का इतिहास
सभी स्थलों की फोटो साथ हैं।


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