Not sure how to add your code? Check our installation guidelines **KANINA KI AWAZ **कनीना की आवाज**

Sunday, June 26, 2022

 
 गजराज मोड़ी ने उगाए एक एक किलो से अधिक वजनी बैंगन
-अंदर से है कच्चे
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 कनीना की आवाज। कनीना उपमंडल के गांव मोड़ी निवासी गजराज सिंह किसान यूं तो वर्षों से कृषि पर प्रयोग कर रहे हैं और समय-समय पर भारी और वजनी सब्जी उगाकर नाम कमाते रहे हैं। विगत दिनों एक-एक किलोग्राम के टिंडा पैदाकर नाम कमाया है। हाल ही में उनके खेत में करीब एक एकड़ में बैंगन लगे हुए हैं। उन्होंने पत्रकारों के समक्ष दिखाया कि पांच बैंगन 5 किलो 490 ग्राम के है। यद्यपि देखने में यह पक्के लगते हैं किंतु उन्होंने काट कर दिखाया कि सभी बैंगन अंदर से बिल्कुल सब्जी योग्य कच्चे हैं। उन्होंने बताया कि सिर्फ 2 दिन में ही इनका वजन इतना बढ़ जाता है, यदि 100 ग्राम का बैंगन छोड़ दिया जाए तो आगामी 2 दिनों में एक किलो तक बढ़ जाते हैं। इसके बाद अंदर से पकने शुरू हो जाते हैं और फिर उनका वजन घटने लग जाता है। गजराज सिंह ने बताया कि उनका पूरा परिवार सब्जी उगाने में जिनमें अजय और कांता प्रमुख रूप से भूमिका निभा रहे हैं। बाजार में भारी-भरकम बैंगनों की कोई कदर नहीं होती, खरीदार नहीं मिलते। ये गौशाला को ही भेज दिए जाते हैं ताकि गायों के काम आए।
 फोटो कैप्शन 01: 5 किलो बैंगन  5 किलो 490 ग्राम के दिखाते हुए
दो: अंदर से कच्चे हैं, काटकर दिखाते हुए गजराज मोड़ी।





सम्पूर्ण हरियाणा एनसीआर दिल्ली में  जिला महेंद्रगढ़ का अधिकतम तापमान अधिक
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कनीना की आवाज। पिछले कई दिनों से मानसून की गतिविधियों में सुस्ती देखने को मिल रही थी ।लेकिन जल्द ही एक बार फिर से सुस्त मानसून रफ्तार पकडऩे की संभावनाएं बन रही है। सम्पूर्ण मैदानी राज्यों राजस्थान पंजाब उत्तर प्रदेश हरियाणा एनसीआर दिल्ली में राहत की झमाझम बारिश की प्रबल संभावनाएं बन रही है।
   राजकीय महाविद्यालय नारनौल के मौसम विशेषज्ञ डॉ चंद्रमोहन ने बताया कि करीब एक सप्ताह से सम्पूर्ण मैदानी राज्यों राजस्थान हरियाणा एनसीआर दिल्ली और विशेषकर जिला महेंद्रगढ़ में वर्तमान परिप्रेक्ष्य में पश्चिमी शुष्क और गर्म हवाओं का प्रभाव से तापमान में बढ़ोतरी के साथ उमस व पसीने वाली गर्मी अपना आगाज किये हुए है। जिसकी वजह मानसून गतिविधियों में सुस्ती देखने को मिल रही है।परन्तु जल्द ही सम्पूर्ण इलाके से पश्चिमी हवाओं का रूख बदल जाएगा और सम्पूर्ण इलाके पर बंगाल की खाड़ी से नमी वाली दक्षिणी पूर्वी हवाओं का रुख का आधिपत्य हों जाएगा । जिसकी वजह आगामी दिनों में बंगाल की खाड़ी से आने वाली पूर्वी हवाएं प्रभावी होने से मानसून के आगे बढऩे के लिए परिस्थितियां अनुकूल बन जाएगी और मानसून  रफ्तार  पकडऩे की संभावनाएं बन रही है साथ ही उत्तरी मध्य प्रदेश और दक्षिणी उत्तर प्रदेश पर एक निम्न वायु दबाव का क्षेत्र बनने की संभावना बन रही है। जिसकी वजह से उत्तरी मैदानी राज्यों में राजस्थान  पंजाब हरियाणा एनसीआर दिल्ली में आगामी 3-4 दिनों  के बाद मानसून गतिविधियों  में तेजी दर्ज की जाएगी। 28 जून से ही हरियाणा एनसीआर दिल्ली में अधिकतर स्थानों पर हवाओं का रूख बदल जाएगा और सम्पूर्ण इलाके पर पूर्वी नमी वाली हवाओं की वजह से बादल अपना डेरा जमा लेंगे। हालांकि एक कमजोर पश्चिमी विक्षोभ की वजह से 29 तारिख को  हरियाणा  और एनसीआर दिल्ली में बारिश की गतिविधियां देखने को मिलेगी साथ ही साथ इन गतिविधियों से 30 जून को हरियाणा एनसीआर के अधिकतर स्थानों पर बारिश की गतिविधियां देखने को मिलेगी इन सभी कारणों से जुलाई के पहले सप्ताह की शुरुआत से ही सम्पूर्ण हरियाणा एनसीआर दिल्ली सम्पूर्ण मैदानी राज्यों में धीरे धीरे मानसून रफ्तार पकडऩे की प्रबल संभावनाएं बन रही । आज रविवार को हरियाणा एनसीआर दिल्ली में अधिकतर स्थानों पर अधिकतम तापमान 37.0 डिग्री सेल्सियस से  44.3  डिग्री सेल्सियस के बीच दर्ज किया गया है जबकि हरियाणा एनसीआर में अधिकतर स्थानों पर न्यूनतम तापमान 25.0 डिग्री सेल्सियस और  29.0डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया है। आज जिला महेंद्रगढ़ में सुबह से सूर्य देव की उष्ण किरणों का असर देखने को मिला साथ ही साथ दोपहर बाद स्थानीय मौसमी प्रणाली की वजह से जिला महेंद्रगढ़ पर आंशिक बादलवाही और तेज़ गति से धुल भरी हवाएं देखने को मिलीं परन्तु मौसम शुष्क और गर्म बना हुआ रहा साथ ही तापमान में बढ़ोतरी दर्ज हुई है और सम्पूर्ण जिला महेंद्रगढ़ में आमजन उमस और पसीने वाली गर्मी से रूबरू होना पड रहा है। आज जिला महेंद्रगढ़ में नारनौल और महेंद्रगढ़ का अधिकतम तापमान क्रमश:  43.0 डिग्री सेल्सियस और 44.3 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया है।जो सामान्य तापमान से 5.0 डिग्री सेल्सियस उपर दर्ज किया गया है। जबकि जिला महेंद्रगढ़ में नारनौल और महेंद्रगढ़ का न्यूनतम तापमान क्रमश: 27.6 डिग्री सेल्सियस और  26.0 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया है।  पश्चिमी पवनों के प्रभुत्व से  जिला महेंद्रगढ़ में दिन और रात फिर से उष्ण और गर्म बने हुए हैं । इसी प्रकार की मौसम स्थितियां रहने की वजह से अगले दोनों तक  जिला महेंद्रगढ़ में एक बार फिर से हीट बेव लू की आशंकाएं भी बन रही है। परन्तु अगले दो तीन दिनों के बाद सम्पूर्ण हरियाणा एनसीआर दिल्ली और विशेषकर जिला महेंद्रगढ़ में पूर्वी हवाओं का रूख होने पर सम्पूर्ण इलाके से उमस और पसीने वाली गर्मी का सफाया हो जायेगा  और विपरीत हवाओं के मिलन से सम्पूर्ण इलाके पर बादल अपना डेरा जमा लेंगे और राहत भरी बारिश की बूंदे आमजन को राहत पहुंचाने की प्रबल संभावनाएं बन रही है।






नशे की लत जिसने डारी अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारी-मा.राजेश उन्हाणी
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कनीना की आवाज। अंतर्राष्ट्रीय नशा निरोधक दिवस पर लोगों को जागरूक करते हुए शिक्षक व स्वतंत्रता सेनानी उत्तराधिकारी उन्हाणी निवासी मा. राजेश ने कहा कि नशा मनुष्य जीवन का नाश करता है। बेहतर जीवन के लिए नशे से दूर रहना ही समझदारी है।नशा करने वाला व्यक्ति स्वयं अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारने का बेदर्दी से भरा कार्य करता है।
राजेश ने जानकारी देते हुए बताया की संयुक्त राष्ट्र की आम सभा ने 42/112 संकल्प को पारित कर हर साल 26 जून को अन्तरराष्ट्रीय नशा मुक्ति निवारण दिवस मनाने का फैसला किया इस दिवस का उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहयोग बढ़ाते हुए उन प्रयासों को मजबूत बनाना है जिससे अंतरराष्ट्रीय समाज पूरी तरह से नशा मुक्त हो सके.
विश्व की गम्भीर समस्याओं में प्रमुख है नशीले पदार्थों का उत्पादन, तस्करी और सेवन की निरंतर हो रही वृद्धि। नई पीढ़ी इस जाल में बुरी तरह कैद हो चुकी है। आज हर तीसरा व्यक्ति किसी न किसी नशे का आदी हो चुका है। नशीले पदार्थों के छोटे-छोटे पाउच से लेकर तेज मादक पदार्थों, औषधियों तक की सहज उपलब्धता इस आदत को बढ़ाने का प्रमुख कारण है। इस दीवानगी को ओढऩे के लिए प्रचार माध्यमों ने भी भटकाया है।
आगे उन्होंने कहा की नशा करने वाला व्यक्ति अपना कितना धन व सम्मान नशे में खो देता है, उसे स्वयं ही मालूम नहीं होता। नशे की लत छूटने उपरांत उसे इसके दुष्परिणामों का एहसास होता है तथा पश्चाताप करता है कि उसने यह नशे की लत पहले ही क्यों नहीं छोड़ी। उन्होंने कहा कि व्यक्ति शौक के तौर पर नशीली वस्तुओं का सेवन करने लग जाता है तथा उसको स्वयं नही पता चलता कि उसका यह शौक कब आदत में तबदील हो गया।
भावी पीढ़ी को नशा मुक्त समाज प्रदान करना है,हमें  भी एकजुट हो कर इसको समाप्त करना होगा। नशे के परिवार के सभी सदस्यों को परेशानी होती है दूसरी तरफ यह दुर्घटना का कारण भी बनता है आज आए दिन जो सड़क दुर्घटनाएं होती है उसका मुख्य कारण नशा है। नशा भले ही शान और लत के लिए किया जाता हो, पर यह जिंदगी की बेवक्त आने वाली शाम का भी मुख्य कारण है, जो कब जीवन में अंधेरा कर जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। आप इसका मजा भले ही दिनभर के कुछ सेकंड के लिए लेते हैं, लेकिन यह मजा, कब आपके लिए जिंदगी भर की सजा बन जाए, आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते।
पिछले कुछ सालों में भारत के साथ ही पूरे विश्व भर में नशा करने और उससे पीडि़त लोगों की संख्या में लगातार इजाफा हुआ है जो बेहद चिंता का विषय है । इस गंभीर लत ने कई लोगों को मौत का ग्रास तक बना दिया। इनके गंभीर परिणामों को देखते हुए नशे के नुकसान के प्रति जागरुक करने के लिए कई संस्थाएं भी आगे आई हैं हम सब को भी नशा के नुकसान के बारे में लोगों को जागरूक करना चाहिए ।
फोटो कैप्शन: राजेश कुमार





लारी की जगह का अवैध कब्जा छुड़वाने के लिए दी सीएम विंडो पर शिकायत
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कनीना की आवाज। कनीना उपमंडल के गांव भडफ़ के बस स्टैंड की एक कनाल जगह जो लारियों अर्थात बसों के ठहराव के लिए छोड़ी हुई है जिस पर अवैध कब्जे कर डाले हैं। भडफ़ के ओमप्रकाश ने सीएम विंडो पर शिकायत दर्ज करवाई है। उन्होंने बताया कि उनकी यह पहली बार नहीं अपितु पहले भी सीएम विंडो पर शिकायत दर्ज करवा चुके हैं। हाल ही में उन्होंने जिला उपायुक्त सहित उच्च अधिकारियों को पत्र लिखा है जिसमें कहा है खसरा नंबर 146 जो लारियों की जगह है, पर अतिक्रमण हो गया है जिसके चलते आवागमन और वाहनों के ठहराव को समस्या बन गई है। दुर्घटनाएं बढ़ गई हैं। उन्होंने अविलंब इस जगह को खाली करवाने की मांग की है ताकि लारी वहां से आ जा सके, खड़ी हो सके।



धारावाहिक-08
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एक दर्शनीय स्थल के रूप में उभर रहा है बाबा मोलडऩाथ आश्रम
-कनीना के प्रमुख संत हुये हैं मोलडऩाथ            
 डा होशियार सिंह यादव/कनीना की आवाज
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  संत शिरोमणि बाबा मोलडऩाथ को बालक नाथ, ओघड़ बाबा नाम से जाना जाता है वही कनीनावासी खेड़ा वाला नाम से भी जानते हैं। कनीना का कुल गुरु बाबा मोलडऩाथ है। बस स्टैंड के पास भरने वाले मेले की तैयारियां पूर्ण हो चुकी है। रंग रोगन किया जा चुका है। इस मेले में पूरे ही कस्बा के लोग शक्कर का प्रसाद अर्पित करते हैं ऊंट और घोडिय़ों की दौड़ पूरे प्रदेश में विख्यात है। विक्रमी संवत 2006 में संत शिरोमणि बाबा मोलडऩाथ ने सिरसवाला जोहड़ में समाधि लगाई थी और वे स्वस्थ होकर  समाधिस्थ तो गए थे। उनकी याद में हर वर्ष यहां भारी भीड़ जुटती है और मेला लगता है। अब तो कनीना का बाबा मोलडऩाथ आश्रम श्रद्धा एवं भक्ति का आश्रम बन गया है। इसके आसपास कम से कम एक दर्जन अन्य मंदिर स्थापित हो गए हैं जिसके चलते यह दर्शनीय स्थल भी बन गया है। इसी स्थान पर छह मार्च को शक्कर मेला लगने जा रहा है। कबड्डी तथा ऊंट घोड़ों की दौड़ के अलावा यहां दंगल भी आयोजित होते हैं। यह मेला कनीना के पूर्वजों ने चलाया था जो आज भी चला आ रहा है।
बाबा मोलडऩाथ बाल साधु एंव तपस्वी थे।  बाबा को अपनी आंखों से देखने वाले अनेकों व्यक्ति जीवित हैं। प्रत्यक्षदर्शियों अनुसार जहां आज मन्दिर है वहां कभी विशालकाय जाल का वृक्ष था और पास में विशाल जंगल था। तपस्वी ने विशाल जाल के नीचे ही अपना निवास एवं तप स्थल बनाया। जब से उन्होंने यहां पदार्पण किया तभी से किसी प्रकार के रोग तथा आपदायें नहीं आई।
 बताया जाता है कि हैजे के रोग तथा ओलावृष्टि को भगाने की शक्ति थी। यही कारण है कि आज की भी ये रोग फैलने की आशंका होती है तो उन्हीं का नाम श्रद्धा से लिया जाता है। बाबा उस वक्त विचरने वाले गीदड़ों तथा मोरों को चुग्गा देतेे थे। विक्रमी सवंत 2006 में बाबा ने ठण्डे पानी की समाधि लगायी। कई घण्टे पानी में रहने के कारण उन्हें ठंड लग गई और वे अस्वस्थ रहने लगे। फाल्गुन एकादशी को उन्होंने चोला त्याग दिया। चोला त्यागने से पूर्व उन्होंने इच्छा जाहिर की थी कि जिस भी अवस्था में प्राण त्यागे जाये उसी अवस्था में दफनाना। पूरे कस्बा में बाबा की झांकियां निकाली और मन्दिर स्थल पर दफनाया गया। तभी से उन्हीं की याद में प्रत्येक वर्ष फाल्गुन एकादशी को विशाल मेला लगाता है। बाबा मोलडऩाथ जिन्हें बालकनाथ नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने मांदी, कांवी भोजावास, रोड़वाल, मानसरोवर, नीमराणा आदि स्थानों पर भी तप किया किंतु उनका प्रमुख स्थल कनीना में ही है।
तीन दिनों तक चलता मेला चलता है जिसमें मेले की पूर्व संख्या पर जागरण, अगले दिन मेला तत्पश्चात संतों को भोजन करवाकर तीसरे दिन भेजा जाता है।
होशियार सिंह का योगदान-
यूं तो बााबा मोलडऩाथ की संपूर्ण जीवनी कनीना के लेखक होशियार सिंह का नाम प्रसिद्ध है वहीं उन्होंने कनीना के भीम सिंह को प्रेरित कर बाबा की प्रतिमा लगवाई। होशियार सिंह ने बाबा मोलडऩाथ पर छह पुस्तकें जिनमें से एक आइएसबीएन नंबर की निकाली वहीं बाबा चालीसा, बाबा कैलेंडर, बाबा करी आरती आदि भी निकाली हैं तथा बाबा के लिए आज भी समर्पित हैं। पहली बाबा की पुस्तक 2005 में आई थी।
बाबा मोलडऩाथ बाल साधु एवं तपस्वी थे।  बाबा को अपनी आंखों से देखने वाले अनेकों व्यक्ति जीवित हैं। प्रत्यक्षदर्शियों अनुसार जहां आज मन्दिर है वहां कभी विशालकाय जाल का वृक्ष था और पास में विशाल जंगल था। तपस्वी ने विशाल जाल के नीचे ही अपना निवास एवं तप स्थल बनाया। जब से उन्होंने यहां पदार्पण किया तभी से किसी प्रकार के रोग तथा आपदायें नहीं आई।
 बताया जाता है कि हैजे के रोग तथा ओलावृष्टि को भगाने की शक्ति थी। यही कारण है कि आज की भी ये रोग फैलने की आशंका होती है तो उन्हीं का नाम श्रद्धा से लिया जाता है। बाबा उस वक्त विचरने वाले गीदड़ों तथा मोरों को चुग्गा देतेे थे। फाल्गुन एकादशी को उन्होंने चोला त्याग दिया। चोला त्यागने से पूर्व उन्होंने इच्छा जाहिर की थी कि जिस भी अवस्था में प्राण त्यागे जाये उसी अवस्था में समाधि दी जाए। पूरे कस्बा में बाबा की झांकियां निकाली और मन्दिर स्थल पर समाधि दी जाये। तभी से उन्हीं की याद में प्रत्येक वर्ष फाल्गुन एकादशी को विशाल मेला लगाता है। बाबा मोलडऩाथ जिन्हें बालकनाथ नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने मांदी, कांवी भोजावास, रोड़वाल, मानसरोवर, नीमराणा आदि स्थानों पर भी तप
  विक्रमी संवत 2006 फाल्गुन शुक्ल एकादशी को उन्होंने चोला त्याग दिया। जिस स्थान पर उन्होंने चोला त्यागा उसी स्थान पर बाबा को समाधि दी गई। आज बाबा की समाधि पर कनीना के समाजसेवी भीम सिंह द्वारा निर्मित करवाई हुई उनकी प्रतिमा शोभा बढ़ा रही है। बाबा की मूर्ति का निर्माण भीम सिंह ने 2007 में करवाया।
    उधर बाबा के मेले के दिन ही सुबह सवेरे सिहोर मार्ग  पर भीड़ जुटने लग जाती है। दूसरे राज्यों से आने वाले घोड़ी दौड़ व ऊंट दौड़ के प्रतिभागी अपना जौहर दिखाते हैं। शक्कर को बांटने के लिए आने वाले श्रद्धालु बाबा के नाम पर पास से ही मिट्टïी छांटते हैं और जय बाबा की पुकारते हैं।
  हरियाणा, राजस्थान एवं वर्तमान उत्तराखंड में कई स्थानों पर तप करने वाले बाल ब्रह्मचारी एवं बाल तपस्वी संत थे जिनकी वाणी से निकला हुआ एक-एक शब्द अमृतमय एवं शत् प्रतिशत सत्य साबित हुआ। ऐसे महान संत पर सबसे पहले कनीना के लेखक होशियार सिंह यादव ने वर्ष 2005 में  संत शिरोमणि बाबा मोलडऩाथÓ नाम से पहली पुस्तक प्रकाशित करवाई जिसमें उन्होंने बाबा के उदात गुणों एवं चरित्र का विस्तार से वर्णन करते हुए बाबा की विस्मृतियों को स्मरण पटल पर लाकर सराहनीय कार्य किया। तत्पश्चात उनकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हुई।  दर्शनीय स्थल के रूप में उभरा -
कनीना का बाबा मोलडऩाथ आश्रम एक दर्शनीय स्थल के रूप में उभर रहा है। एक दर्जन मंदिर बाबा आश्रम के पास में निर्मित हो चुके हैं। बाबा मोलडऩाथ आश्रम पर फरवरी-मार्च में फाल्गुन एकादशी को विशाल मेला लगता है।
 बाबा स्थल को चार चांद लगाने के लिए बाबा के स्थल के पास ही अनेकों धार्मिक स्थलों का निर्माण होता जा रहा है। बाबा के आश्रम के पास ही 21 फुट ऊंची शिव प्रतिमा वाला शिवालय स्थित है। इस शिवालय का निर्माण शिवभक्त भरपूर सिंह ने निर्मित करवाया है  पास में सीताराम मंदिर का निर्माण किया जा रहा है। सीताराम मंदिर के पास ही राधाकृष्ण का मंदिर बना हुआ है। बाबा आश्रम के पीछे सती समाधि भी बनी हुई है। पास में पानी से भरा जोहड़ है जहां कभी बाबा जल समाधि लेते थे।  
   बाबा आश्रम के नीचे वर्तमान में प्रकटीनाथ का आश्रम बना हुआ है जो बाबा के एक कमरे के निर्माण के वक्त प्रकट हुए थे।  बाबा के पास ही बाबा डूंगरमल की समाधि, खागड़ आश्रम, मंगलदेव की कुटिया, शहीद सुजान सिंह पार्क, बाबा हनुमान की 11 फुट ऊंची प्रतिमा वाला मंदिर, बाबा हनुमान का पुराना मंदिर, बाबा भैया स्थल, शनिदेव मंदिर, मां मंदिर, माता स्थल , माता स्थल, शिरड़ी मंदिर, खाटू श्याम मंदिर, राधाकृष्ण, सीताराम मंदिर बने हुए हैं जहां समय-समय पर लोगों का तांता लगा रहता है। बाबा आश्रम के पास ही बस स्टैंड का होना भी अहं भूमिका निभा रहा है। शहीद सुजान सिंह ने 1994 में जम्मू कश्मीर में आतंकवादियों का सफाया करते हुए शहादत दी थी जिन्हें मरणोपरान्त अशोक चक्रÓ से सम्मानित किया गया है। पार्क विभिन्न प्रकार के ंफूलों तथा घास के मैदान से सुशोभित है जो दर्शकों को आकर्षित कर लेते हैं। इसी पार्क में पुराना हनुमान मन्दिर स्थित है जहां मंगलवार को श्रद्धालुओं का तांता लगता है और प्रसाद चढ़ाया जाता है।
 संत आश्रम परिसर में 20 फरवरी 2010 को शनिदेव मंदिर बनकर तैयार हुआ वहीं सात मई 2002 को हनुमान मंदिर स्थापित हुआ। करीब 20 लाख रुपये की लागत से शिरड़ी मंदिर स्थापित किया गया जिसका निर्माण आलोक गोयल, सन्नी गेरा, विजेंद्र गर्ग, अंशुल गुप्ता, हेमंत मित्तल, रोहताश सिंगला आदि ने करवाया जो आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। संजीत कनीना एवं साथियों ने 2012 में मां शेरावाली का भव्य मंदिर निर्मित करवा।  उधर खटू श्याम मंदिर की 2015 में नींव रखी तथा 27 अप्रैल 2018 को स्थापित हो गया। अभी भी कितने ही छोटे छोटे मंदिर बनाये जा रहे हैं। बाबा मोलडऩाथ आश्रम के अंदर एक छोटा शिवालय भी बनाया गया है।
बाबा के  जोहड़ के पास मंगलदेव कुटिया बनी हुई है। मंगलदेव तपस्वी साधुजन हुए हैं जिन्होंने कुअंा खुदवा कर पेय जल का प्रबंध करवाया था। मोलडऩाथ स्थल के पास बनवाया गया खागड़ आश्रम भी मनमोहक है। बाब डूगंरदास की समाधि भी बनी हुई है।  पास में विशाल खाटू श्याम मंदिर एवं साई मंदिर बरबस लोगों का मन मोह रहा है। यहां भी बाबा मोलडऩाथ मेले के साथ साथ मेला लगता है। पास में साईं बाबा का मंदिर सुशोभित है जो आम जन के लिए खुला हुआ है। अनेकों अन्य धार्मिक स्थल भी यहां पर निर्मित किये जा चुके हैं। इस प्रकार कई धार्मिक स्थानों से परिपूर्ण बाबा मोलडऩाथ आश्रम दर्शनीय स्थल के रूप में उभर रहा है। मोलडऩाथ की प्रतिमा भीम सिंह कनीना ने निर्मित करवाई थी किंतु बाबा पर छह पुस्तकें कनीना के लेखक एचएस यादव की आ चुकी हैं। वर्तमान में बाबा मोलडऩाथ का प्राचीन जोहड़ फिर से खोदाई कर साफ पानी से भरा जा रहा है जिसका काम 32 लाख रुपये की लागत से करीब पूर्ण होने को है।
32 लाख रुपये की लागत से बनकर तैयार है संत मोलडऩाथ नामक जोहड़, मेले को लेकर जगमगाने लगा है
-बाबा मोलडऩाथ यहां करते थे तप
  कस्बा कनीना ऐतिहासिक जोहड़ का अब पुनरुद्धार लगभग हो चुका है। सैकड़ों वर्षों से वर्षा जल को सहेजा था, बाद में मलिन पानी भर दिया किंतु अब इसे वर्षा जल के अलावा साफ पानी से भरा जाएगा और संत शिरोमणि बाबा मोलडऩाथ आश्रम नाम से जाना जाएगा। तत्पश्चात सैलानियों को भी आश्रम एवं जोहड़ आकर्षित करेगा। कभी यहां छोटी बणी होती थी जिसकी एक दर्जन जाल आज भी पौराणिकता को इंगित करती हैं।
जोहड़ का सौंदर्यीकरण का काम लगभग पूर्ण हो चुका है। 32 लाख लागत आई है। मोलडऩाथ आश्रम के पास के करीब एक दर्जन धार्मिक स्थलों को सीधे जोहड़ से जोड़ा गया है। जिस प्राकृतिक जोहड़ के पास बैठकर तप करते थे उसको एक बार फिर से पानी से भरा जा रहा है। इस बार पक्की चारदीवारी भी बनाई जा चुकी है। इस जोहड़ की ऐतिहासिकता को देखते हुए साफ पानी से भरने के लिए दो साल पूर्व एक मुहिम शुरू की थी जिसके तहत पालिका प्रधान ने जोहड़ का पुनरुद्धार शुरू करवाया था। छह माह से अधिक समय से इस जोहड़ पर काम चलता रहा । अब इसकी चारदीवारी बनाकर साफ पानी से भरने का निर्णय लिया है।
मोलडऩाथ का तप स्थल है जोहड़-
 जाल के पेड़ों से आच्छादित यह जंगल में जोहड़ होता था। लेखक डा एचएस यादव की पुस्तक संत शिरोमणि बाबा मोलडऩाथ के अनुसार संत मोलडऩाथ इस जोहड़ के किनारे बैठकर तप करते थे। यह जोहड़ साफ पानी से भरा होता था। जीव जंतु यहां विचरित करते थे। 72 साल पहले यहां मोर और गीदड़, कबूतर, चिडिय़ा और नाना प्रकार के जीव जंतु बाबा के आसपास घूमते रहते थे। संत इसी जोहड़ का पानी पीता था। इसी पानी से स्नान करता था। जब जल समाधि लेनी होती तो समाधि भी लेते थे। कालांतर में बणी समाप्त कर दी।
परंतु कनीना बस स्टैंड स्थापना के बाद इस जोहड़ को मलिन कर दिया था और अब इसका पुनरुद्धार किया गया है। जोहड़ और बाबा की आस्था को ध्यान में रखते हुए इसका पुनरुद्धार किया गया है ताकि आने वाले समय में लोग जोहड़ के दर्शन कर सके और बाबा की यादों में खो जाए। वर्तमान में इस जोहड़ की खुदाई करके चारदीवारी बनाई जा चुकी है। यहां पास में ही खाटू श्याम मंदिर 2019 में निर्मित हुआ था जिसके लिए खाटू तालाब की आवश्यकता होती है। ऐसे में यह जोहड़ खाटू श्याम मंदिर के तालाब का काम भी करेगा।
सांस रोकने की क्षमता थी बाबा में-
बाबा मोलडऩाथ विक्रमी संवत 2006 में ब्रह्मलीन हो गये थे किंतु संत  को पानी में समाधि लगाने की क्षमता थी। समाधि लगाकर लंबे समय ठहरने की होड़ सिरसवाला जोहड़ में लगी थी। जहां बाबा रामेश्वरदास जोहड़ से जल्दी बाहर आ गये थे और बाबा मोलडऩाथ अधिक देर रहे थे जिसके चलते उन्हें निमोनिया हो गया था। बाद में वे ब्रह्मलीन हुये।
क्या क्या हैं योजनाएं-
यह जोहड़ साफ पानी से भरने की योजना है जो पानी को सहेजेगा। इसके पेंदे में एक बोर करवाया गया है  ताकि जल का रिचार्ज होता रहे। करीब 28 लाख की लागत से नगरपालिका इस जोहड़ को एक तरफ से खाटू श्याम तो दूसरी ओर से शिवालय,सीताराम मंदिर, हनुमान मंदिर, शिर्डी के मंदिर, शनिदेव मंदिर, माता मंदिर, मोलडऩाथ आश्रम, राधाकृष्ण मंदिरों को जोहड़ के किनारे उतरने का प्रबंध किया जाएगा। आपस में एक पुल से जोड़ा गया है ताकि कोई भी श्रद्धालु आये वो तालाब के दर्शन कर सके। नहर से जोहड़ को जोडऩे के प्रयास किये जाएंगे। यह पानी को सहेजेगा, रिचार्ज भी करेगा तथा पानी को विभिन्न कामों में लिया जाएगा। लाखों लीटर पानी स्टोर होगा।
क्या कहते हैं पालिका प्रधान-
पालिका प्रधान सतीश जेेलदार ने बताया कि यह पौराणिक जोहड़ विभिन्न धार्मिक स्थानों की सुंदरता बढ़ाएगा, शुद्ध जल को सहेजेगा तथा रिचार्ज भी करेगा। खाटू मंदिर के तालाब की भूमिका भी निभाएगा तथा मोलडऩाथ का पुराने जोहड़ के रूप में भी जाना जाएगा। करीब 32 लाख रुपये के करीब खर्चा आया है। इसमें बारिश का साफ पानी भी भरा होगा वहीं नहर के पानी से जोडऩे का प्रयास भी किया जाएगा। नहर करीब दो किमी दूर कनीना मंडी से गुजरती है। उन्होंने बताया कि मेले के दृष्टिगत इसे बोर के पानी से भरा जा रहा है। चारों ओर लाइट लगा दी गई हैं ताकि मेले पर जोहड़ जगमग करता नजर आये।
कैसे त्यागे थे संत ने प्राण--
विक्रमी संवत 2006 में संत शिरोमणि बाबा मोलडऩाथ ने सिरसवाला जोहड़ में समाधि लगाई थी और वे स्वस्थ होकर  समाधिस्थ तो गए थे। उनकी याद में हर वर्ष यहां भारी भीड़ जुटती है और मेला लगता है। अब तो कनीना का बाबा मोलडऩाथ आश्रम श्रद्धा एवं भक्ति का आश्रम बन गया है। इसके आसपास कम से कम एक दर्जन अन्य मंदिर स्थापित हो गए हैं जिसके चलते यह दर्शनीय स्थल भी बन गया है।
बाबा मोलडऩाथ बाल साधु एंव तपस्वी थे।  बाबा को अपनी आंखों से देखने वाले अनेकों व्यक्ति जीवित हैं। प्रत्यक्षदर्शियों अनुसार जहां आज मन्दिर है वहां कभी विशालकाय जाल का वृक्ष था और पास में विशाल जंगल था। तपस्वी ने विशाल जाल के नीचे ही अपना निवास एवं तप स्थल बनाया। जब से उन्होंने यहां पदार्पण किया तभी से किसी प्रकार के रोग तथा आपदायें नहीं आई।
 बताया जाता है कि हैजे के रोग तथा ओलावृष्टि को भगाने की शक्ति थी। यही कारण है कि आज की भी ये रोग फैलने की आशंका होती है तो उन्हीं का नाम श्रद्धा से लिया जाता है। बाबा उस वक्त विचरने वाले गीदड़ों तथा मोरों को चुग्गा देतेे थे। विक्रमी सवंत 2006 में बाबा ने ठण्डे पानी की समाधि लगायी। कई घण्टे पानी में रहने के कारण उन्हें ठंड लग गई और वे अस्वस्थ रहने लगे। फाल्गुन एकादशी को उन्होंने चोला त्याग दिया। चोला त्यागने से पूर्व उन्होंने इच्छा जाहिर की थी कि जिस भी अवस्था में प्राण त्यागे जाये उसी अवस्था में दफनाना। पूरे कस्बा में बाबा की झांकियां निकाली और मन्दिर स्थल पर दफनाया गया। तभी से उन्हीं की याद में प्रत्येक वर्ष फाल्गुन एकादशी को विशाल मेला लगाता है। बाबा मोलडऩाथ जिन्हें बालकनाथ नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने मांदी, कांवी भोजावास, रोड़वाल, मानसरोवर, नीमराणा आदि स्थानों पर भी तप किया किंतु उनका प्रमुख स्थल कनीना में ही है। बाबा पर कनीना के डा. होशियार सिंह यादव ने तीन पुस्तकें प्रकाशित कर बाबा की जीवनी आम जन तक पहुंचाई वहीं भीम सिंह कनीना मंडी ने बाबा की प्रतिमा स्थापित करवाई। लियाकत अलि ने बाबा पर आरतियां एवं भजन बनाकर दूर दराज तक नाम किया। मंदिर को सजाकर तैयार कर दिया है।
50 वर्षों से जन सेवा में रत है-सत्संग मंडल
 हरियाणा प्रांत के दक्षिण में राजस्थान सीमा से सटे महेन्द्रगढ़ जिला के सुदूर पूर्व में एक छोर पर 'नाभा रियासत का कस्बा कनीना है जहां विगत 50 वर्षो से निस्वार्थ भाव से मोलडऩाथ सत्संग मंडल कार्यरत है जो प्राचीन भारतीय संस्कृति को जीवित रखने व उसका प्रचार प्रसार करता आ रहा है।
    बाबा मोलडऩाथ यहां महान तपस्वी हुए हैं जिनकी याद में होली के त्योहार पर विशाल मेला लगता है। वर्ष 1963 में राव मेहरचन्द ने बाबा की स्मृति में मोलडऩाथ सत्संग मंडल की स्थापना की जो भजन, शब्द, कीर्तन द्वारा जीव कल्याण मुक्ति मार्ग, गहन सत्य, आत्मज्ञान, शांति एवं सद्भाव का प्रचार कर रहा है।
    करीब एक दर्जन व्यक्तियों का समूह  सामान सहित कुआं पूजन, छठी की रात, भजन तथा अन्य उत्सवों पर सरल व मधुर भाषा, मुक्तकंठ अमृतमय वचनों की बौछार करता है वचनों से विभोर होकर जो दानी सज्जन श्रद्धा से बाबा के नाम पर दान दक्षिणा देते हैं उसे इकट्ठा कर 'जन सेवा में खर्च किया जाता है। अब तक सत्संग मंडल ने दो नि:शुल्क आंखों के कैम्प, बाबा आश्रम निर्माण, राजकीय स्कूल में एक कमरा व बरामदा बनवा चुका है। स्कूल में ही 50 गुणा 40 फुट का हाल व बरामदा बनवाया है।
    वर्तमान में सत्संग मंडल डा0 मेहर चन्द की अध्यक्षता में महत्वपूर्ण कार्य किये है। बाबा आश्रम में गुफा निर्माण, प्रकटनाथ स्थल निर्माण, बाबा मोलडऩाथ आश्रम जीर्णोद्धार बाबा डूंगरदास स्थल निर्माण जैसे महत्वपूर्ण कार्य एवं विकास कर बाबा स्थल की छटा को चार चांद लगा दर्शनीय स्थल के रूप में उभारा है।
    बाबा मोलडऩाथ सत्संग मंडल अकेले कस्बा कनीना में ही नहीं अपितु समीपी ग्रामों में सत्संग का आगाज करता रहा है। मंडल मेले के वक्त एकता सौहार्द बनाने तथा प्रबंध करने का कार्य करता है, मेले में विभिन्न स्पर्धाओं में ईनाम के वक्त महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है तथा बाबा स्थल पर साधुओं के खान पान का प्रबंध भी करता है।
    वर्तमान में बाबा आश्रम के प्रति लोगों में अगाध आस्था पनपी है। सभी महत्वपूर्ण कार्यों के प्रारम्भ में बाबा स्थल पर धोक लगा प्रसाद चढ़ाया जाता है।
    सत्संग मंडल के डा मेहरचन्द ने एक भेंटवार्ता में बताया कि राजकीय वशिष्ठ माडल स्कूल में बनाये गये हाल की लिपाई-पुताई का कार्य पूर्ण करवा लिया गया है 30 हजार रुपये की लागत आई है। विद्यार्थियों, प्राचार्य व कस्बावासियों की बेहद मांग पर यह निर्माण कार्य पूरा करवाया गया है। हाल में खेल का अभ्यास जैसे बाक्सिंग व कुश्ती कराई जा सकती है। उन्होंने बताया कि बाबा मोलडऩाथ आश्रम पर हाल ही में निर्माण कार्य पूर्ण करवाया है।
श्रद्धालु एवं बाबा सत्संग मंडल के सदस्य ओमप्रकाश यादव का कहना है कि कस्बा कनीना का यह मंडल रजत वर्ष पार करते हुये अपार लोकप्रिय हो गया है जिसकी मांग समीप गांवों में भी होने लगी है। प्रत्येक माह मेें दो या तीन दिन कस्बा से बाहर सत्संग करने जाना पड़ता है। कुछ सज्जन तो प्रत्येक सत्संग में भाग लेते हैं।
 विगत 50 वर्षों से संत शिरोमणि बाबा मोलडऩाथ सत्संग मंडल जन सेवा करती आ रही है। रात को विभिन्न अवसरों पर जाकर प्राप्त धन को जन सेवा में खर्च करने के अलावा संत आश्रम को चार चांद लगाने में व्यस्त है।
   प्राप्त विवरण के अनुसार कनीना के निवासी मेहरचंद नामक जो डाक्टर नाम से जाने जाते हैं ने वर्ष 1963 में कनीना के प्रसिद्ध संत मोलडऩाथ के नाम पर एक सामाजिक संस्था की स्थापना की थी जो आज भी जनसेवा में जुटी हुई है। यह मंडल प्रारंभ से ही अपने कुछ सदस्यों की सहायता से विभिन्न सामाजिक अवसरों पर विशेष कर छटी की रात को सत्संग करके प्राप्त राशि को संत आश्रम के विकास ही नहीं अपितु विभिन्न स्थानों पर जनसेवा कर रही है।
   इस संस्था ने न केवल मुफ्त आंखों के कैंप लगवाए अपितु स्कूल में कमरे एवं बड़ा हाल बनवाकर जन सेवा की। इस मंडल में जहां एक व्यक्ति हारमोनियम का वादन करता है वहीं बोतल एवं घड़ों को वाद्य यंत्र बनाकर प्रयोग किया जा रहा है। ये लोग रात भर विभिन्न प्रकार के भजनों विशेषकर खंडन मंडन पर प्रहार करते हैं और समाजसेवा करते हैं। यह मंडल आम जनता को नई दिशा दिखाता आ रहा है। इस मंडल के जन नि:स्वार्थ भाव से जन सेवा करते हैं।
 डा मेहरचंद-
सत्संग मंडल के संस्थापक मेहरचंद जी का कहना है कि वर्ष 1963 में जन सेवा एवं समाज में व्याप्त बुराइयों को समाप्त करने के उद्देश्य से सत्संग मंडल बनाया था। जब प्रारंभ में कुछ राशि प्राप्त हुई तो उन्होंने पांच सदस्यीय एक कमेटी बनाई जिसका उद्देश्य बाबा मोलडऩाथ आश्रम का उद्धार करना था।  बाद में इसमें मुखराम शर्मा, प्रहलाद शर्मा, गोसाई जी, मां. कंवर सिंह, प्रो. हंसराज, महेंद्र सिंह, रामस्वरूप साहब, होशियार सिंह, राजेंद्र प्रसाद, प्रताप सिंह, प्रभातगिरि, ख्यालीराम चेलावास, ठेकेदार मातादीन, मदन मणियार, रणजीत सिंह ठेकेदार, मुंशीराम, ओमप्रकाश यादव आदि जुड़ते चले गए।
उस वक्त इकतारा, घड़वा, खुरताल, चिमटा, मंजीरा और बाद में हारमोनियम शामिल किया गया जो साज बाज में सहायक थे। जब सत्संग मंडल बना तब इकतारा डा मेहरचंद, मुंशीराम घड़वा व सिंहराम परांत बजाते थे। अब तो सत्संग मंडल किसी पर्व पर किंतु पहले किसी भी वक्त किसी के बलाए जाने पर उनके घर जाकर साकार एवं निराकार भगवान् की वाणी या शब्द सुनाते थे जो छह घंटों तक कार्यक्रम चलता था। कबीरदास, नित्यानन्द, रैदास, मीराबाई या किसी अन्य संत के शब्द सुनाए जाते थे। उद्देश्य केवल बुराई छुड़वाना था किंतु अब वो बात देखने को नहीं मिल रही है। उस जमाने में डा मेहरचंद ने कनीना के लगभग हर घर में जाकर शब्दवाणी की थी।
कनीना का मां मंदिर
मंदिर की नींव 2009 में रखी थी तथा 2012 में बनकर तैयार हो गया। इसका निर्माण कार्य संजीत यादव कनीना के निवासी की देखरेख में संपन्न हुआ है। इस मंदिर के चारों ओर द्वार एवं विशाल सीढिय़ां हैं। दूर से ही आकर्षित करता हुआ माता मंदिर वर्तमान में विख्यात है। आधुनिक वास्तुकला का प्रदर्शन किया गया है। नवरात्रों में भीड़ रहती है।
   मंदिर की भव्य मूर्ति 51 हजार रुपये में जयपुर के प्रसिद्ध कारीगरों द्वारा निर्मित करवाकर विधि विधान से इस मंदिर में स्थापित करवाई गई थी। प्रत्येक नवरात्रों के समय मां के मंदिर को सजाया जाता है। भारी संख्या में भक्तजन यहां आते हैं। इस मंदिर की भव्यता ही इसका आकर्षण है। नवरात्रों पर समीपी गांवों के भक्तजन आते हैं और अपने साथ नारियल, मां की चुनरी, प्रसाद, मां की ध्वजा लेकर आते हैं और विधि विधान से पूजा करके ध्वजा को अर्पित कर देते हैं। करीब 61 फुट ऊंचे इस मंदिर में आकर पूजा अर्चना करते हैं। शहर का यह एकमात्र मां शेरावालीं का मंदिर है। संत शिरोमणि बाबा मोलडऩाथ आश्रम परिसर में बने इस मंदिर में भक्तजन अधिक आने के पीछे मंदिरों  का एक समूह विकसित होना है। पास में विभिन्न देवी देवताओं के एक दर्जन मंदिर बने हैं। आकर्षण का कारण शहीद प्रतिमाओं के पास होना भी है। पार्कों से सुसज्जित दस मंदिर को दूर दराज से भी देखा जा सकता है।
भक्तों का तांता-
नवरात्रों के दिनों में यहां सेकड़ों भक्तजन आते हैं और मां के दर्शन करते हैं। इस मंदिर की देखरेख का काम भी कनीना के संत शिरोमणि बाबा मोलडऩाथ आश्रम पर रहने वाले संत ही करते हैं। प्राचीन बाबा मोलडऩाथ आश्रम जोहड़ के किनारे पर स्थित इस मंदिर तक पहुंचना आसान है क्योंकि पास में सामान्य बस स्टैंड स्थित है। वर्ष में दो बार आने वाले नवरात्रों पर भीड़ एक मेले का रूप ले लेती है।
कई नामों से जाना जाता है बाबा-
कनीना के महान संत बाबा मोलडऩाथ कई नामों से जाने जाते हैं। उन्हें बालकनाथ, मोलडऩाथ, खेड़ावाला बाबा के नामों से भी जाना जाता है। उन्होंने रोड़वाल, मानसरोवर, मांदी, कांवी भोजावास, ढाणी बाठोठा सहित एक दर्जन गांवों में रहते हुए तप किया था।  बालपन से ब्रह्मचारी एवं तपस्वी थे। बाबा गणेशनाथ उनके गुरू थे। कनीना में विक्रमी संवत 2006 में ब्रह्मलीन हुए थे। कनीना एवं आस पास के लोग जब भी कोई नया काम करते हैं तो बाबा का नाम लेते हैं।
बस स्टैंड के पास संत मोलडऩाथ आश्रम में संत की प्रतिमा देखने से ही लगती है। यह प्रतिमा कनीना मंडी के निवासी भीम सिंह एवं उनके परिजनों ने फरवरी 2007 में स्थापित करवाई थी। इससे पूर्व तो बाबा की कोई प्रतिमा भी नहीं थी। बाबा के जीवन एवं चमत्कारों पर एचएस यादव की पुस्तक भी प्रकाशित हो चुकी है तथा प्रतिवर्ष बाबा के कलेंडर प्रकाशित किए जाते हैं।  
    बाबा स्थल को चार चांद लगाने के लिए बाबा के स्थल के पास ही अनेकों धार्मिक स्थलों का निर्माण होता जा रहा है। बाबा के आश्रम के पास ही 21 फुट ऊंची शिव प्रतिमा वाला शिवालय स्थित है। इस शिवालय का निर्माण शिवभक्त भरपूर सिंह ने निर्मित करवाया है जो हरिद्वार से कई कावड़ लाकर शिवालय बाघोत में चढ़ा चुके हैं।  शिवरात्रि के दिन यहां तांता लगता है। शिव मंदिर के पास ही पेयजल टंकी बनी हुई है। पास में सीताराम मंदिर का निर्माण किया जा रहा है। सीताराम मंदिर के पास ही राधाकृष्ण का मंदिर बना हुआ है। बाबा आश्रम के पीछे सती समाधि भी बनी हुई है। पास में पानी से भरा जोहड़ होता है जहां कभी बाबा जल समाधि लेते थे।  इस जोहड़ को अटवाकर यहां विशाल खाटू मंदिर का निर्माण किया जा रहा है। यह मंदिर जल्द ही बन जाने की उम्मीद है।
   बाबा आश्रम के नीचे वर्तमान में प्रकटीनाथ का आश्रम बना हुआ है जो बाबा के एक कमरे के निर्माण के वक्त प्रकट हुए थे। एक सुंदर गुफा का भी निर्माण करवाया हुआ है। बाबा के पास ही बाबा डूंगरमल की समाधि, खागड़ आश्रम, मंगलदेव की कुटिया, शहीद सुजान सिंह पार्क, बाबा हनुमान की 11 फुट ऊंची प्रतिमा वाला मंदिर, बाबा हनुमान का पुराना मंदिर, बाबा भैया स्थल, शनिदेव मंदिर, मां मंदिर, माता स्थल , राधाकृष्ण मंदिर बने हुए हैं जहां समय-समय पर लोगों का तांता लगा रहता है। बाबा आश्रम के पास ही बस स्टैंड का होना भी अहं भूमिका निभा रहा है।
बाबा आश्रम के सामने शहीद सुजान सिंह पार्क है। शहीद सुजान सिंह ने 1994 में जम्मू कश्मीर में आतंकवादियों का सफाया करते हुए शहादत दी थी जिन्हें मरणोपरान्त 'अशोक चक्रÓ से सम्मानित किया गया है। पार्क विभिन्न प्रकार के फूलों तथा घास के मैदान से सुशोभित है जो दर्शकों को आकर्षित कर लेते हैं। कड़ाके की धूप में यहां बैठकर राहत मिलती है। इसी पार्क में पुराना हनुमान मन्दिर स्थित है जहां मंगलवार को श्रद्धालुओं का तांता लगता है और प्रसाद चढ़ाया जाता है।
    ्रत्येक एकादशी को जब ''बाबा पर प्रसाद चढ़ाया जाता है तो हनुमान मन्दिर में भी श्रद्धालु पहुंचते हैं। यह भी बाबा की रौनक बढ़ा रहा है। बाबा स्थल के बिल्कुल पीछे सती समाधि है जहां श्रद्धालु मेले के दिन मिट्टी छांटते हैं। बासौड़ा के दिन महिलायें सती स्थल पर पूजा अर्चना करती हैं। समाधि के पास पास मंगलदेव कुटिया बनी हुई है। मंगलदेव तपस्वी साधु जन हुए हैं जिन्होंने कुअंा खुदवा कर पेय जल का प्रबंध करवाया था।
मोलडऩाथ स्थल के पास बनवाया गया खागड़ आश्रम भी मनमोहक है। खागड़ की सीमेन्ट व लोहे की बनी प्रतिमा उधर से गुजरने वालों का मन बरबस आकर्षित कर लेती है। मुंह बोलती प्रतिमा कभी कभी यथार्थ का आभास कराती हैं। बच्चे तो जीवित खागड़ की भूल कर बैठते हैं। खागड़ के पास ही पशुओं की प्यास बूझाने के लिए 'खेल बनी हुई है। खागड़ प्रतिमा के बिल्कुल सामने बाबा डूंगरदास निवास है। बाब डूगंरदास जो दिन रात मिट्टी से खेलते नजर आते थे। बाबा डूंगर बोलते कम थे, मेहनत ज्यादा करते थे। देर रात तक वे मिट्टी की समाधि अपने निवास समक्ष बनाते थे तथा उसे फिर ढहा देते थे। किसी को यह मालूम नहीं था कि ये किस चीज का निर्माण करते थे और उन्हें स्वयं ही नष्ट क्यों कर देते थे? अपने समीप किसी गन्दगी को देखना उनकी आदत नहीं थी और वे निठल्ले व्यक्तियों के लिए शिक्षा देते नजर आते थे। 27 मई 2000 को उन्होंने चोला त्यागा था। उनको जोहड़ के किनारे ही दफनाया गया है।   यहां पर शनिदेव मंदिर एवं माता का विशाल मंदिर भी दशनीय हैं। श्रद्धालु बस द्वारा आकर बाबा स्थल के दर्शन कर सकते हैं। जिला महेन्द्रगढ़ के दर्शनीय स्थलों में से एक बाबा मोलडऩाथ बनता जा रहा है।
शिव के  प्रति अगाध आस्था ने बनवाया शिवालय
-शिवरात्रि पर किया जाता जल अर्पित
 कभी-कभी आस्था भी इंसान को बड़े से बड़ा काम करने के लिए प्रेरित कर देती है। ऐसा ही उदाहरण जिला महेंद्रगढ़ के कनीना के शिवभक्त भरपूर सिंह निर्बाण ने कर दिखलाया है। शिव के प्रति आस्था जागृत हुई फिर कावड़ लाने का सिलसिला शुरू किया तत्पश्चात उन्होंने कनीना में ही विशाल शिवालय का निर्माण करवाया।
  कनीना के मोदीका मोहल्ले का रहने वाला भरपूर सिंह पेशे से एक छोटा सा दुकानदार है किंतु उनकी आस्था विशाल है। अच्छी आमदनी न होते हुए भी उन्होंने शिव के प्रति विश्वास नहीं छोड़ी। अपने एक साथी तथा कनीना में सर्वाधिक कावड़ लाने का रिकार्ड कायम करने वाले सुमेर सिंह चेयरमैन से वे इतने प्रभावित हुए कि नीलकंठ एवं हरिद्वार से कावड़ लाने का सिलसिला शुरू कर दिया। वे लगातार 13 वर्षों तक कावड़ लाते रहे। अपनी दुकान का काम छोड़कर भी वे कावड़ लाते और कावड़ लाकर कनीना के गांव बाघोत स्थित बाघेश्वरी धाम पर चढ़ा देते। वे शिव के प्रति इतने आशक्त हो गए कि उन्होंने अपने खून पसीने की पूंजी से कनीना में विशालकाय शिवालय बनवाने का निर्णय लिया।
 कनीना के बाबा मोलडऩाथ मंदिर के पास ही भरपूर सिंह ने 21 फुट ऊंची प्रतिमा वाले शिवालय का निर्माण शुरू करवा दिया। पूरे एक वर्ष तक काम चलने और लाखों रुपये खर्च करके उनका शिवालय पूर्ण हो गया। आखिरकार शिवरात्रि के दिन वर्ष 2001 में यह शिवालय आमजन के लिए खोल दिया गया।  यहां उल्लेखनीय है कि भरपूर सिंह के इस शिवालय पर जो भी खर्चा आता है वह स्वयं वहन करता है। चढ़ावे के रूप में जो अन्न आता है उसे वह बोरों में भरकर या तो गौशाला को दान कर देता है या फिर गायों को चरा देता है।
  इस शिवालय पर प्रतिदिन सुबह सवेरे सबसे पहले भरपूर सिंह की पत्नी शकुंतला देवी, उनका पुत्र रोहित कुमार अक्सर शिवालय पर आकर पूजा करते हैं। भरपूर सिंह भी सबसे पहले अपनी दुकान पर जाने की बजाय शिवालय पर आकर पूजा करता है।
  जब-जब शिवरात्रि आती है तो यहां छोटा मेला लगता है। कनीना क्षेत्र में पहले इतना विशाल मंदिर नहीं था ऐसे में शिवरात्रि तथा सोमवार को पूजा अर्चना करने वाले भक्तजन इसी शिवालय में आते हैं। शिव के प्रति आस्था बढऩे का सिलसिला जारी है।
शुद्ध पानी को सहेजेगा ऐतिहासिक जोहड़
-संत मोलडऩाथ करते थे जोहड़ पर तप

 कस्बा कनीना ऐतिहासिक जोहड़ का अब पुनरुद्धार हो रहा है। सैकड़ों वर्षों से वर्षा जल को सहेजते आ रहा है। अब इसे वर्षा जल के अलावा साफ पानी से भरा जाएगा और संत शिरोमणि बाबा मोलडऩाथ आश्रम नाम से जाना जाएगा। तत्पश्चात सैलानियों को भी आश्रम एवं जोहड़ आकर्षित करेगा। कभी यहां छोटी बणी होती थी जिसकी एक दर्जन जाल आज भी पौराणिकता को इंगित करती हैं।
जोहड़ का सौंदर्यीकरण किया जा रहा है। 32 लाख लागत आएगी। मोलडऩाथ आश्रम के पास के करीब एक दर्जन धार्मिक स्थलों को सीधे जोहड़ से जोड़ा जाएगा। जिस प्राकृतिक जोहड़ के पास बैठकर तप करते थे उसको एक बार फिर से पानी से भरा जाएगा। इस बार पक्की चारदीवारी भी बनाई जा चुकी है। इस जोहड़ की ऐतिहासिकता को देखते हुए साफ पानी से भरने के लिए  दो साल पूर्व एक मुहिम शुरू की थी जिस पर पालिका प्रधान तक यह बात पहुंचाई गई थी और आखिरकार पालिका प्रधान ने जोहड़ का पुनरुद्धार शुरू करवा दिया है। छह माह से अधिक समय से इस जोहड़ पर काम चल रहा है। अब इसकी चारदीवारी बनाकर साफ पानी से भरने का निर्णय लिया है।
मोलडऩाथ का तप स्थल है जोहड़-
 जाल के पेड़ों से आच्छादित यह जंगल में जोहड़ होता था। संत मोलडऩाथ इस जोहड़ के किनारे बैठकर तप करते थे। यह जोहड़ साफ पानी से भरा होता था। जीव जंतु यहां विचरित करते थे। 72 साल पहले यहां मोर और गीदड़, कबूतर, चिडिय़ा और नाना प्रकार के जीव जंतु बाबा के आसपास घूमते रहते थे। संत इसी जोहड़ का पानी पीता था। इसी पानी से स्नान करता था। जब जल समाधि लेनी होती तो समाधि भी लेते थे। कालांतर में बणी समाप्त कर दी।
परंतु कनीना बस स्टैंड स्थापना के बाद इस जोहड़ को मलिन कर दिया था और अब इसका पुनरुद्धार किया जा रहा है। जोहड़ और बाबा की आस्था को ध्यान में रखते हुए इसका पुनरुद्धार किया जा रहा है ताकि आने वाले समय में लोग जोहड़ के दर्शन कर सके और बाबा की यादों में खो जाए। वर्तमान में इस जोहड़ की खुदाई करके चारदीवारी बनाई जा चुकी है। यहां पास में ही खाटू श्याम मंदिर 2019 में निर्मित हुआ था जिसके लिए खाटू तालाब की आवश्यकता होती है। ऐसे में यह जोहड़ खाटू श्याम मंदिर के तालाब का काम भी करेगा।
सांस रोकने की क्षमता थी बाबा में-
बाबा मोलडऩाथ विक्रमी संवत 2006 में ब्रह्मलीन हो गये थे किंतु संत  को पानी में समाधि लगाने की क्षमता थी। समाधि लगाकर लंबे समय ठहरने की होड़ सिरसवाला जोहड़ में लगी थी। जहां बाबा रामेश्वरदास जोहड़ से जल्दी बाहर आ गये थे और बाबा मोलडऩाथ अधिक देर रहे थे जिसके चलते उन्हें निमोनिया हो गया था। बाद में वे ब्रह्मलीन हुये।
क्या क्या हैं योजनाएं-
यह जोहड़ साफ पानी से भरने की योजना है जो पानी को सहेजेगा। इसके पेंदे में एक बोर करवाया जाएगा ताकि जल का रिचार्ज होता रहे। करीब 28 लागत से नगरपालिका इस जोहड़ को एक तरफ से खाटू श्याम तो दूसरी ओर से शिवालय,सीताराम मंदिर, हनुमान मंदिर, शिर्डी के मंदिर, शनिदेव मंदिर, माता मंदिर, मोलडऩाथ आश्रम, राधाकृष्ण मंदिरों को जोहड़ के किनारे उतरने का प्रबंध किया जाएगा। आपस में एक पुल से जोड़ा जा रहा है ताकि कोई भी श्रद्धालु आये वो तालाब के दर्शन कर सके। नहर से जोहड़ को जोडऩे के प्रयास किये जाएंगे। यह पानी को सहेजेगा, रिचार्ज भी करेगा तथा पानी को विभिन्न कामों में लिया जाएगा। लाखों लीटर पानी स्टोर होगा।
क्या कहते हैं पालिका प्रधान-
पालिका प्रधान सतीश जेेलदार ने बताया कि यह पौराणिक जोहड़ विभिन्न धार्मिक स्थानों की सुंदरता बढ़ाएगा, शुद्ध जल को सहेजेगा तथा रिचार्ज भी करेगा। खाटू मंदिर के तालाब की भूमिका भी निभाएगा तथा मोलडऩाथ का पुराने जोहड़ के रूप में भी जाना जाएगा। करीब 32 लाख रुपये के करीब खर्चा आएगा। इसमें बारिश का साफ पानी भी भरा होगा वहीं नहर के पानी से जोडऩे का प्रयास ाी किया जाएगा। नहर करीब दो किमी दूर कनीना मंडी से गुजरती है।
 दो संतों की याद दिलाता है शिरीषवाला जोहड़
-लंबे समय से सहेजे हुए है पानी
 कनीना का शिरीषवाला जोहड़ दो परम संतों की याद दिलाता है। करीब 800 सालों से यह जोहड़ सिरसवाला नाम से प्रसिद्ध है। बड़ी बणी नामक स्थान पर स्थित है जो रेलवे स्टेशन के करीब है। यहां वर्तमान में विभिन्न शिक्षण संस्थान भी बने हुए हैं किंतु प्राचीन समय में यहां केवल सिरस का पेड़ होता था जिसके कारण यह जोहड़ सिरस वाला नाम से जाना जाता रहा है।
बड़ी बणी में कनीना नगर पालिका की सबसे अधिक जगह होती थी जहां दूर-दराज तक जाल के पेड़ होते थे। धीरे-धीरे बड़ी बणी का विनाश हो गया किंतु यहां के जोहड़ का बाद में कायाकल्प कर दिया गया। कनीना बसासत के समय का यह जोहड़ चला आ रहा है। कनीन गोत्र के कान्ह   सिंह जब यहां आए थे तभी से यह  जोहड़ स्थित था। कालांतर में इस में बारिश का पानी भरा जाता था और विभिन्न जीव जंतु, जंगली जीव जल पीकर  प्रसन्न हो जाते थे। लंबे समय से यह जोहड़ यही स्थित है कालांतर में यहां रामेश्वर दास नामक संत का आगमन हुआ और उन्होंने तप स्थल यही बनाया। उधर कनीना की छोटी-बणी में संत शिरोमणि बाबा मोलडऩाथ जोहड़ पर तप करते थे किंतु एक दूसरे के पास उनका आवागमन होता रहता था। दोनों संत समय समय पर सिरस वाला जोहड़ पर बैठते थे तो कभी रामेश्वर दास भी मोलडऩाथ आश्रम पर जाकर ज्ञान की चर्चा करते थे। सिरस वाला जोहड़ दोनों संतों की याद दिलाता है जहां का भी दोनों संतों ने इसी जोहड़ के पानी में समाधि लगाई थी और होड़ लगी थी। बुुजर्ग बताते हैं कि रामेश्वर दास जोहड़ से जल्दी बाहर आ गए थे किंतु संत शिरोमणि मोलडऩाथ लंबे समय तक इसी जोहड़ में समाधि लिए बैठे रहे। सर्दी के दिन होने से उनको निमोनिया हो गया था और  उन्होंने समाधि ले ली।
सिरसवाला जोहड़ बहुत लंबे समय से जन्माष्टमी के मेले के लिए प्रसिद्ध है। गोगा और जन्माष्टमी पर्व पर जहां जल में जाटी और गोगा नामक पौधे बहाने की परंपरा चली आ रही है। समय बदला इसी जोहड़ पर जहां रामेश्वर दास के शिष्य राधे दास ने भी तप किया और उन्होंने भी समाधि ले ली। इस जोहड़ का लंबा इतिहास चला आ रहा है। जहां समय-समय पर मेलेे भी लगते हैं तथा भंडारे भी चलते हैं। जोहड़ का पानी कभी साफ होता था किंतु बाद में इसे मलिन कर दिया गया। यह कच्चा जोहड़ पूर्व एसडीएम संदीप सिंह ने पक्का बनवा दिया गया। किंतु नहर इसके पास से गुजरने वाली नहर से जोड़ देने के कारण सदा पानी भरा रहता है ऐसे में यह जोहड़ कनीना के इतिहास की याद दिलाता है वही संतों की रमणीक स्थली की भी याद दिलाता है। यह जोड़ लंबे समय से पानी को सहेजे हुए हैं।
क्या है शिरीष-
 सिरस/शिरीष/सिरसा का बड़ा पेड़ होता है जिसके फूल बहुत कोमल होने से उन्हें सुकुमार कहा जाता है। यह अति औषधीय पौधा होता है। इस जोहड़ के तट पर भी कभी यह पेड़ मिलता था। इसी के कारण जोहड़ का नाम पड़ा है।

























































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धारावाहिक -09
धारावाहिक -09 में पढ़ेंगे कनीना का खाटू श्याम मंदिर का इतिहास




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