Not sure how to add your code? Check our installation guidelines **KANINA KI AWAZ **कनीना की आवाज**

Saturday, February 17, 2024


 

 राष्ट्रीय बैटरी दिवस- 18 फरवरी
-बैटरी के बिना जीवन अधूरा-देवेंद्र
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कनीना की आवाज। बैटरी के बिना जीवन कठिन है। प्रौद्योगिकी का आनंद लेने के लिए बिजली का होना जरूरी है रहना परंतु यदि बैटरी है तो बिजली स्रोत के बिना भी जुड़ सकते हैं।  बिजली के  बिना टीवी उपकरण भी देखे जा सकते हैं।  बिजली के बिना मोबाइल के उपकरण भी प्रयोग किए जाते हैं, बल्ब जला सकते हैं। इटली के वैज्ञानिक वोल्टा ने सबसे पहले बैटरी बनाने का काम किया था और उन्होंने दो छड़ों को अमल में डुबोकर विद्युत धारा उत्पन्न की थी। बैटरी की कुछ जानकारी यही से मिली। इसके बाद डेनियल वैज्ञानिक ने डेनियल सेल का आविष्कार किया। सबसे पहले बैटरी 1896 में उपलब्ध हो पाई। बैटरी  को बाद में घड़ी, आटोमोबाइल, मोबाइल फोन, डेस्कटाप, टेलीविजन, रेडियो कैलकुलेटर, मशीनरी, सौर पैनल, पावर बैंक, रिमोट कंट्रोल, अलार्म घड़ी आदि में भी बैटरी प्रयोग की जाने लगी। अगर बैटरी को कमरे के ताप से कम रखें तो बेहतर होगा किंतु अधिक ताप होने से बैटरी  की गुणवत्ता कम हो जाती है। पुरानी बैटरी के साथ नई बैटरी इक_ी नहीं रखनी चाहिए। बैटरी को किसी धातु के कंटेनर में न रखिए। बैटरी को क्षतिग्रस्त न करें।
 इस संबंध में विज्ञान के जानकारी देवेंद्र कुमार से बात हुई। उन्होंने बताया कि बैटरी एक ऐसा उपकरण है जो रासायनिक ऊर्जा को इक_ा करता है तथा इसे वोल्टेज के रूप में विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित करता है। बैटरी दो प्रकार की होती हैं। प्राथमिक बैटरी  जिसे चार्ज नहीं किया जा सकता जबकि सेकेंडरी बैटरी इसे चार्ज किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि वोल्टा नामक वैज्ञानिक ने तांबे और जस्ट की छड़ों को अमल में डुबोकर सबसे पहले बिजली बनाई थी। तत्पश्चात प्लांटे नेे बैटरी का आविष्कार किया दुनिया की है पहले रिचार्जेबल बैटरी थी, जो आज भी कई कारों में प्रयोग की जाती है। तत्पश्चात इसमें अनेकों नये सुधार होते चले गए। 1970 में स्टेनली ने वर्तमान में प्रयोग होने वाली रिचार्जेबल लिथियम बैटरी बनाई। भविष्य में बैटरी पर लोग अधिक निर्भर रहेंगे।
फोटो कैप्शन: देवेंद्र कुमार








संकुल स्तरीय परीक्षा में कपूरी स्कूल की रिया ने मारी बाजी -खुडानिया
--विजेताओं को किया गया पुरस्कृत
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कनीना की आवाज। संकुल स्तरीय प्रतियोगिता का  आयोजन माडल स्कूल कनीना में संपन्न हुआ। एबीआरसी ओमरति ने बताया कि विभिन्न स्कूलों से आए लगभग दो दर्जन विद्यार्थियों ने संकुल स्तरीय प्रतियोगिता में शामिल हुये जिनमें जीपीएस कपूरी स्कूल की छात्रा रिया तथा जीएमएस ककराला के विश्वास ने प्रथम तथा जीजीपीएस कनीना मंडी की छात्रा भावना द्वितीय स्थान पर रही।
माडल स्कूल कनीना के प्राचार्य सुनील खुडानिया ने बताया कि इस तरह की प्रतियोगिता करने का मुख्य कारण बच्चों का लेवल चेक करना तथा बच्चों के मन में आए डर को दूर करना होता है ताकि सरकारी स्कूल में पढऩे वाले बच्चे आगे जाकर बड़ी परीक्षाओं को आसानी से पार कर सके। यह भी बताया कि आज की इस परीक्षा से यह बात साबित होती है कि सरकारी स्कूलों में पढऩे वाली  छात्र-छात्राएं स्कूलों में पढऩे वाले बच्चों से काम नहीं है। केवल उनका मनोबल बढ़ाने की आवश्यकता है।  इस प्रतियोगिता में जीएसपीएस ककराला के प्रियांशु व जीएमएस कनीना के विनय कुमार तृतीय स्थान पर रहे। इस प्रतियोगिता में 24 छात्र छात्राओं ने भाग लिया। एबीआरसी मैडम ओमरती ने बताया कि इस प्रतियोगिता में प्रथम व द्वितीय तथा तृतीय स्थान पर आने वाले सभी विद्यार्थियों को पारितोषिक देकर सम्मानित किया। साथ में इस प्रतियोगिता में अच्छा स्थान प्राप्त करने वालों के अलावा परीक्षा में आने वाले सभी छात्र-छात्राओं को भी इनाम दिया गया ताकि छात्र-छात्राओं का मनोबल ऊंचा उठ सके। इस अवसर पर प्राचार्य सुनील खुडानिया, ओम रति एबीआरसी, नरेश प्रवक्ता हिंदी, डा ममता यादव उमेद सिंह नरेश कुमार सीताराम सुनील कुमार गुलशन सिंह तथा मीना देवी जीपीएस कनीना मंडी उपस्थित रहे।
 फोटो कैप्शन 07:प्रथम व द्वितीय तथा तृतीय स्थान पर आने वाले बच्चों को पारितोषिक वितरण करते हुए






ताप बढऩे से सरसों के जल्दी लावणी आने के आसार
-एक मार्च से लावणी संभावित, मजदूर आने लगे
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कनीना की आवाज। क्षेत्र में ताप बढ़ जाने से गेहूं की फसल पर कुप्रभाव पड़ेगा। गेहूं की कटाई अप्रैल के प्रथम सप्ताह से शुरू होती है जबकि सरसों की लावणी अक्सर सात से 15 मार्च के बीच होती है किंतु इस बार एक मार्च से लावणी के आसार बन गये हैं।  अभी गेहूं की बालियां आ चुकी हैं जिनमें गेहूं का दाना मिल्किंग स्टेज पर है जिसे ठंड की जरूरत होती है।
  करीब 20,000 हेक्टेयर पर उगाई गई सरसों की फसल पकने के कगार पर है। फरवरी के अंतिम या मार्च के प्रथम सप्ताह में कटाई शुरू होने की संभावना है। सरसों तो जैसे तैसे पक गई है किंतु गेहूं की पैदावार लेने में काफी कठिनाइयां सामने आ रही हैं। किसानों का कहना है कि ताप 30 डिग्री से अधिक हो जाने से गेहूं की फसल इस वर्ष बेहतर वृद्धि नहीं कर पा रही है। दिन में गर्मी अधिक होना ही पैदावार कम कारण हो सकते हैं।
   किसान अजीत कुमार, सूबे सिंह, राजेंद्र सिंह से इस संबंध में चर्चा करने पर उन्होंने बताया कि इस वक्त गेहूं की फसल की सिंचाई की जरूरत है। गत दिनों थोड़ी सी बूंदाबांदी हुई थी किंतु अब किसानों को सिंचाई की जरूरत पड़ रही है। 12 हजार हेक्टेयर पर गेहूं की खेती की गई है।
  किसान सूबे सिंह, योगेश कुमार, कृष्ण सिंह, मनोज कुमार आदि ने बताया कि प्रत्येक वर्ष फसल किसी न किसी मौसम की मार झेलकर कम पैदावार वाली बन जाती है। इस बार एक माह तक सूरज नहीं दिखाई दिया तो अब तेज धूप खिलती है जिससे गेहूं के पौधों की वृद्धि घट जाने की संभावना है। किसान मानते हैं कि सरसों पककर तैयार है तथा एक मार्च से लावणी की पूरी संभावना है जबकि लावणी होली के पास होती आई है। इस बार होली 25 मार्च की है तथा लावणी काफी पहले शुरू हो जाएगी।
पहुंचने लगे हैं मजदूर-
सरसों एवं गेहूं की लावणी के दृष्टिगत मजदूर इस क्षेत्र में आने लग गये हैं। ये मजदूर अपनी रोटी रोजी लावणी से ही कमाते हैं। उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार, राजस्थान आदि राज्यों से मजदूर चार माह के लिए इस क्षेत्र में आते हैं और रोटीरोजी कमाकर वापस अपने घरों को लौट जाते हैं।
क्या कहते हैं कृषि अधिकारी-
उधर इस संबंध में कृषि विज्ञान केंद्र महेंद्रगढ़ के वरिष्ठ संयोजक डा. रमेश कुमार से बात हुई। उन्होंने बताया कि अकसर सरसों की लावणी सात से 15 मार्च के बीच शुरू होती है किंतु खेत के स्वभाव एवं वातावरण का भी प्रभाव पड़ता हे। अगैती फसल पहले लावणी आ जाएगी।
फोटो कैप्शन 6: गेहूं की फसल साथ में डा रमेश कुमार।





चने के हरे पौधे भी बिकने लगे हैं दुकानों पर रहे
-चाव से खरीद रहे हैं लोग
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कनीना की आवाज। किसान जौ एवं चने की खेती करना भूलते जा रहे हैं। गर्मियों के मौसम में चने के भुगड़े बनाते थे और चाव से खाते थे। अब तो चने के हरे पेड़ भी हर सब्जी की दुकान पर बिक रहे हैं।
  करीब 40 वर्ष पूर्व जब कनीना क्षेत्र में हजारों एकड़  में जौ एवं चने की खेती की जाती थी। अब वो चने कहीं दूसरे राज्यों से ही मंगवाएं जा रहे हैं। चने की पैदावार ही न होने से किसानों ने इसकी खेती छोड़ दी है।
  किसान कृष्ण, रोहित, मनोज, दिनेश, महेंद्र आदि ने बताया कि एक वक्त था जब हर घर में चने की खेती की जाती थी जिसे पूरी गर्मी आनंद से रोटी एवं अन्य रूपों में प्रयोग किया जाता था। अब जमाना लद गया है।  जौ-चने की रोटी खाने के लिए या फिर धानी एवं भुगड़ा बनवाने के लिए दूसरे क्षेत्रों से जौ  एवं चनेखरीदकर लाते हैं। कनीना क्षेत्र में कोई चना नहीं उगाया है। हरा चना भी राजस्थान से लेकर आते हैं।
हरे चने भी बिकने लगे---
 चने की खेती न होने से चने के रहे पेड़ भी बिकने लग गए हैं। चने के पेड़ों पर लगे फल से हरे चने निकाल कर जहां हरी सब्जियां बनाते हैं वही चटनी आदि के काम में भी लेते हैं। यही कारण है कि हरे चनों की मांग बढ़ती जा रही है और कुछ व्यक्ति विशेष तो हरे चनों से अपनी रोटी रोजी कमा रहे हैं। कुछ लोग तो गाडिय़ां भर कर चने लाते हैं और उन्हें बेचते हैं। मिली जानकारी अनुसार नांगल चौधरी तथा राजस्थान क्षेत्रों से भारी मात्रा में हरे चने लाए जा रहे हैं और यह पौधे युक्त चने बाजार में बेचे जा रहे हैं।
क्या कहते हैं खंड कृषि अधिकारी-
पूर्व खंड कृषि अधिकारी कनीना का कहना है कि या तो बरानी खेती चने की होती है या फिर मीठे पानी की जरूरत होती है। नहरों के जल से तो चना पैदा किया जा सकता है। क्षेत्र का जल साल्टी होने से चने नहीं हो पा रहे हैं।
 फोटो कैप्शन 05: हरे चनों जो बिकते हैं।





25 हजार रुपये की कुश्ती बराबरी पर छूटी
-मेला एवं सांग भी संपन्न
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कनीना की आवाज। कनीना उपमंडल के गांव सेहलंग में विगत दिनों से चला आ रहा माता खिमज मेला तथा खेल प्रतियोगिताएं संपन्न हो गई।  
 मेले में हरियाणा कला परिषद हिसार के सौजन्य से दो दिवसीय सांग भी मेले के साथ ही संपन्न हो गया। सांग के दूसरे दिन सांगी धर्मबीर भगाना ने बणदेवी के सांग का सफल मंचन किया। दर्शकों ने साज बाज और कलाकारों की बहुत प्रशंसा की।
खिमज माता के मेले में कबड्डी की प्रतियोगिता में प्रथम  25000 रुपये का पुरस्कार आदमपुर ने जीता वहीं द्वितीय पुरस्कार 18000 रुपये भिवानी की टीम ने प्राप्त किया। बालीवाल में प्रथम पुरस्कार 25000 रुपये चांदवास की टीम ने जीता वहीं द्वितीय पुरस्कार 18000 रुपये धूप सिंह एकेडमी,चांदवास ने जीता। कुश्ती में 50 रुपये से 25000 रुपये तक के 35 मुकाबले हुए। इनमें दो मुकाबले लड़कियों के भी हुए। मेघा,डीघल तथा अक्षिता, गोठड़ा ने 1000-1000 रुपयेके मुकाबले जीते। जबकि 25000 रुपये की कुश्ती बलजीत,बाघोत तथा सुरेन्द्र,रोहतक के बीच हुई और बराबरी पर छूटी।
इस मौके पर मेला कमेटी के प्रधान सूबेदार, महाबीर कैशियर मास्टर विजयपाल, डा.लक्ष्मण, रामनिवास, निहाल सिंह, धर्मपाल,अशोक, सत्यबीर, बलबीर,सुरेश आदि मौजूद रहे।
फोटो कैप्शन 03: सांग का प्रदर्शन करते हुए सांगी।




 दो दिवसीय आर्य प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू
-18 फरवरी को होगा समारोह का समापन
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कनीना की आवाज। आर्य समाज मंदिर रसूलपुर का दो दिवसीय आर्य प्रशिक्षण सत्र रसूलपुर में शुरू हो गया है। सत्र की शुरुआत आर्य निर्मात्री सभा से आचार्य दयानंद ने हवन के साथ की। सत्र में मेरा जीवन क्या है, ईश्वर है या नहीं, धर्म क्या है ,भाग्य क्या है, भाग्य को कौन लिखता है, हमारा अपने राष्ट्र के प्रति क्या कर्तव्य है, हम पाखंड और व्यसनों से कैसे बच सकते आदि विषयों पर चर्चा की गई। सतीश आर्य रसूलपुर की प्रेरणा से आर्य प्रशिक्षण सत्र संचालित हो रहा है जिसमें आर्य समाज के विभिन्न सदस्यों का सहयोग रहा।
फोटो कैप्शन 04: आर्य समाज सत्र को संबोधित करते हुए आचार्य दयानंद।





 सरकारी स्कूल के विद्यार्थियों ने देखा स्ट्राबेरी फार्म
- स्ट्राबेरी फार्म संचालक राकेश कुमार ने दी जानकारी
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कनीना की आवाज। राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय धनौंदा के करीब 100 विद्यार्थियों ने धनौंदा के स्ट्राबेरी पार्क पहुंचकर न केवल स्ट्राबेरी पार्क को देखा अपितु स्ट्राबेरी लगाने की विधियां और स्ट्राबेरी के लाभों की जानकारी ली।  राजकीय वरिष्ठ में माध्यमिक विद्यालय धनौंदा के वरिष्ठ शिक्षक नरेश कुमार ने बताया
नई शिक्षा नीति को भविष्य में लागू किया जाएगा। इसी के दृष्टिगत विद्यार्थियों को हस्त संचालित विभिन्न लघु उद्योगों एवं कृषि आदि ीि जानकारी  प्री-वोकेशनल एक्स्पोजर कार्यक्रम से अवगत करवाया गया और इसी कड़ी में विद्यार्थियों को स्ट्राबेरी पार्क में समस्त स्टाफ सहित ले जाया गया। प्राचार्य सतीश कुमार ने बताया कि विद्यार्थियों को भविष्य में आत्मनिर्भर बनाने के लिए तथा अपना भविष्य में आत्मनिर्भर बनने के लिए चुना जाने वाले विषय से स्वागत करवाया जाना है। इसीलिए विद्यार्थियों को खुली छूट दी जाती है ताकि वे प्रत्येक हस्त संचालित कार्यक्रमों, कृषि विभिन्न ट्रेड आदि की जानकारी हासिल कर सके और भविष्य में उसे विषय को चुन सके। इसी कड़ी में विद्यार्थियों को स्ट्राबेरी पार्क ले जाया गया जिसमें पार्क के संचालक राकेश कुमार ने बताया कि हिमाचल प्रदेश से 25000 प्योद स्ट्राबेरी की लेकर आया था और अभी तक इन पर 3.50 लाख रुपये के करीब खर्चा आया जिसमें मलचिंग, ड्रीप सिंचाई तथा अन्य गतिविधियां चली है। विगत दो माह से करीब एक लाख रुपये की आय प्राप्त हो चुकी है। अप्रैल तक ये पौधे पैदावार देते रहेंगे। कनीना और आसपास क्षेत्र में कहीं भी कोई स्ट्राबेरी नहीं है। उनकी स्ट्रॉबेरी बहुत लोकप्रिय हो रही है तथा उन्होंने विद्यार्थियों को अवगत करवाया कि किस प्रकार भी स्ट्राबेरी लगा सकते हैं और किस प्रकार स्ट्राबेरी की प्योद तैयार की जा सकती है। इस प्रकार किसान अच्छा मुनाफा स्ट्राबेरी के जरिए ले सकते हैं जो उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में महत्वपूर्ण साबित होगा। उन्होंने कहा कि स्ट्राबेरी न केवल शरीर में रोग-रोधक क्षमता उत्पन्न करता है अपितु कोरोना काल में बहुत प्रसिद्ध हुआ था। यह विभिन्न रोगों से बचता ै तथा विटामिनों का अच्छा स्रोत है। यही कारण है कि हर इंसान को अधिकतम 5-6 स्ट्राबेरी प्रतिदिन खानी चाहिए इससे अधिक खाने से लाभ की जगह नुकसान हो सकता है। उन्होंने कहा कि स्ट्राबेरी पहली बार उन्होंने उगाई है।अब भविष्य में भी स्ट्राबेरी उगते रहेंगे क्योंकि ड्रिप सिंचाई, मल्चिंग आदि द्वारा इन पौधों की सुरक्षा करनी होती है और यह पैदावार लगातार देते रहते हैं। उन्हें विश्वास है कि अप्रैल महीने तक उनकी लागत पूरी हो चुकी होगी तथा कुछ मुनाफा भी कमा चुके होंगे। इस अवसर पर उन्होंने विद्यार्थियों को स्ट्राबेरी खिलाई और बताया इनका स्वाद बेशक खट्टा हो किंतु स्वास्थ्य के लिए अति लाभप्रद होती है।
 इस मौके पर प्राध्यापिका सीमा, रेनू, अर्चना सीमा ,प्रीति, पूनम मोरवाल, महिपाल सिंह, विनोद कुमार, सूबे सिंह, नरेश कुमार, रणवीर सिंह, मनीराम सहित समस्त स्टाफ हाजिर रहा।
फोटो कैप्शन 01: राकेश कुमार स्ट्राबेरी दिखाते हुए






कट के लिए 342वें दिन जारी रहा धरना
-अनिश्चिकालीन धरने पर हैं किसान
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कनीना की आवाज। राष्ट्रीय राजमार्ग 152डी पर सेहलंग -बाघोत के बीच कट के लिए ग्रामीणों का अनिश्वितकालीन धरना जारी है। धरने की अध्यक्षता डा लक्ष्मण सिंह सेहलंग  ने की और उन्होंने बताया कि हम पक्के इरादे के साथ धरना स्थल पर बैठे हुए हैं, जब तक केंद्र सरकार  राष्ट्रीय राजमार्ग 152डी पर बाघोत -सेहलंग के बीच कट का कार्य शुरू नहीं करती है तब तक यहीं पर डटे रहेंगे। कट को लेकर किसानों का हौसला बुलंद हैं। किसानों ने सोच रखा है, अपने उद्देश्य को पूरा करने के लिए हम हर परेशानी का सामना करने के लिए तैयार हैं। केंद्र सरकार के द्वारा राष्ट्रीय राजमार्ग 152डी पर बाघोत -सेहलंग के बीच कट  का काम  शुरू होने के बाद ही किसान चैन की सांस लेंगे।  
 धरना संघर्ष समिति के अध्यक्ष विजय सिंह चेयरमैन ने बताया कि उन्हेंआश्वासन भी दिया गया कि कट का काम जल्द शुरू हो जाएगा, लेकिन अभी तक धरातल पर कार्य शुरू नहीं किया गया है जिसका किसानों में आक्रोश है, केंद्र सरकार के प्रति गुस्सा है। केंद्र सरकार किसानों की पीड़ा को समझे और जितना जल्दी हो सके  राष्ट्रीय राजमार्ग 152डी पर बाघोत -सेहलंग के बीच कट का काम शुरू करवाया जाए। कट बनने के बाद ही इस क्षेत्र का विकास संभव है।
इस मौके पर आचार्य मक्खन लाल स्वामी,  नरेंद्र कुमार शास्त्री, पहलवान रणधीर सिंह, मास्टर विजय सिंह , ओम प्रकाश, मुंशी राम, रामफल सिंह, सूबेदार हेमराज अत्रि, पूर्व सरपंच हंस कुमार, पूर्व सरपंच सतबीर सिंह, पहलवान धर्मपाल, बाबूलाल, प्रधान कृष्ण कुमार, वेद प्रकाश, कृष्ण कुमार पंच,  इंस्पेक्टर सत्यनारायण,  पंडित मनीराम अत्री, रामकिशन, दाताराम, प्यारेलाल,  सीताराम,  सब इंस्पेक्टर रामकुमार , डा राम भक्त,  रोशन लाल आर्य व गणमान्य लोग मौजूद थे।
फोटो कैप्शन 02: धरने पर बैठे किसान।







दुर्घटना में दो घायल, मामला दर्ज
-अज्ञात गाड़ी ने मारी मोटरसाइकिल को टक्कर
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कनीना की आवाज। मोटरसाइकिल पर सवार लोगों को अज्ञात गाड़ी ने पीछे से टक्कर मार दी जिससे मोटरसाइकिल पर सवार दो लोग घायल हो गये। दोनों को कनीना अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां से उन्हें हायर सेंटर रेफर कर दिया गया।
रामचंद्र ने पुलिस में दी गई शिकायत में कहा है कि वह तथा उसकी पत्नी आठ फरवरी को लक्ष्मी रेवाड़ी से अपने काम करके बाघोत जा रहे थे। शाम के करीब 7 बजे भडफ़ बस स्टैंड के करीब से कनीना की तरफ करीब 2 किलोमीटर दूरी पहुंचे तो पीछे से आ रही ना मालूम गाड़ी ने मोटरसाइकिल को टक्कर मार दी जिससे दोनों गिर गए। गाड़ी चालक अपनी गाड़ी को भगा ले गया। लोगों ने उन्हें कहीं कनीना अस्पताल में दाखिल करवाया जहां से उन्हें हायर सेंटर रेफर कर दिया। अब इलाज पूरा करवा कर उन्होंने अज्ञात गाड़ी चालक के विरुद्ध मामला दर्ज करवा दिया है।





कैसे करें परीक्षा की तैयारी




















सतत मेहनत ही सफलता का है राज - राजेश कुमार
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कनीना की आवाज। धनौंदा के वरिष्ठ प्राध्यापक राजेश ककराला परीक्षा की तैयारी के विषय में बताते हैं कि परीक्षा की तैयारी दौरान प्रतिदिन 8 घंटे  सोते है तो परीक्षा के समय 6 घन्टे की नींद अवश्य लेनी चाहिए । अगर आप नींद कम ले रहे हैं तो इसमें आप फायदा कम और नुकसान ज्यादा होगा। क्योंकि कम नींद से हमारी चिंतन एवं स्मरण  शक्ति कम होती है। एक ही बार में लंबे समय तक पढऩे से बचें। मनोरंजन के लिए समय जरूर रखें इसे दो या तीन हिस्सों में बांट सकते हैं। सुबह उठते ही एक कागज पर अपने दिनचर्या जिसमें पढ़ाई संबंधी बातें लिखे। अगर आप एक दिन में एक विषय को पढ़े या एक से अधिक विषय  को साथ लेकर चले यह अपनी प्रकृति के अनुसार तय करना चाहिए।
अपने दिन को दो तीन विषयों में  विभाजित कर पाते हैं और ऐसी प्रणाली में सहज महसूस करते हैं तो यही व्यवस्था अपनाइए। अपनी समय सारणी का समय परीक्षा की समय सारणी से विपरीत रखें इसका अर्थ यह है कि जो प्रश्नपत्र जितना बाद में होगा उसे आप उतने ही पहले तैयार कर रख ले।  अनिवार्य प्रश्नों को बिना समय गवाएं तेजी से हल करना चाहिए ।
 तथ्यों को एक दूसरे से संबंध कर ले। ऐसे में उन्हें याद करना आसान होगा। तथ्यों को याद करने का तरीका यह है कि उन्हें लिखकर याद करें।  तीसरा सुझाव यह दिया जाता है कि कुछ विषय असंबंध प्रकृति के होते हैं। उन्हें याद करने के लिए फार्मूला तैयार कर ले। नकारात्मक स्वभाव के लोगों से यथासंभव दूरी बनाए रखें। गरिष्ठ  भोजन लेते हैं तो कुछ दिनों के लिए छोड़ दें। तैयारी जितनी भी कम या अधूरी हो तनाव लेने से बचें।
फोटो कैप्शन: राजेश कुमार प्राध्यापक करकराला


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