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Friday, March 8, 2024
यूरो स्कूल मे अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस व महाशिवरात्रि का पर्व धूमधाम से मनाया
--शिव विवाह से अवगत कराया
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कनीना की आवाज। यूरो स्कूल एक बेहतर शिक्षा के साथ-शाथ बच्चों में हमारी सभ्यता, संस्कृति व संस्कारों के संवर्धन के लिए कर्तव्यबद्ध है। आज स्कूल प्रांगण में अंतर्राष्ट्रीय महिला विकास व महाशिवरात्रि पर एक विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ स्कूल प्राचार्य सुनील यादव ने दीप प्रज्वलित कर किया। उन्होंने बताया कि हमारे देश में प्राचीन काल से ही महिलाओं का मान-सम्मान होता रहा है तथा स्त्री ने अपने सभी रूपों से हमेशा समाज पर उपकार किया है। एक स्त्री प्रेम, दया, करूणा और त्याग की प्रतिमूर्ति है। साथ ही उन्होंने महाशिवरात्रि की शुभकामनाएं देते हुए शिव विवाह के बारे में भी अवगत कराया। कार्यक्रम के अंत में प्राचार्या ने स्कूल में कार्यरत सभी महिलाओं को स्मृति चिह्न देकर सम्मानित किया और ढेर सारी शुभकामनाएं दी। इस शुभावसार पर उप-प्राचार्य मंजू यादव, का-र्डिनेटर संजू यादव, सुमन यादव, तन्नू गुप्ता, बिरेन्द्र सिंह और समस्त अध्यापकगण उपस्थित रहे।
फोटो कैप्शन 11: स्कूल में महिला दिवस मनाते हुए।
शिव भोले के जयकारे के साथ, 362वें दिन जारी रहा धरना
-अनिश्चितकालीन धरने पर हैं किसान
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कनीना की आवाज। राष्ट्रीय राजमार्ग 152डी पर सेहलंग -बाघोत के बीच कट के लिए अनिश्चितकालीन धरना जारी है। शुक्रवार को धरने की अध्यक्षता रामभज बाघोत ने की और उन्होंने बताया कि धरना स्थल पर बैठे ग्रामीण बाबा शिव भोले के पक्के भक्त हैं, जब तक कट का काम शुरू नहीं होगा, तब तक धरना जारी रहेगा।
धरना संघर्ष समिति के अध्यक्ष विजय सिंह चेयरमैन ने बताया कि धरने को चलते 362 दिन हो गए है लेकिन आज तक कट का काम शुरू नहीं किया गया है। धरना स्थल पर बैठे ग्रामीणों में राज्य सरकार और केंद्र सरकार के प्रति आक्रोश है, उनका गुस्सा प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। केंद्र सरकार किसानों की पीड़ा को समझे और उनकी मांग पर अमल करके जल्द से जल्द आगे की कार्रवाई की जाए। इस क्षेत्र के 40 -50 गांवों का विकास राष्ट्रीय राजमार्ग 152डी पर कट बनने के बाद ही संभव है।
इस मौके पर पहलवान रणधीर सिंह, नरेंद्र शास्त्री, मुंशीराम, चेयरमैन सतपाल,ओम प्रकाश, सीताराम, रामकिशन, राजू उर्फ राजेश, सूबेदार हेमराज अत्री, पूर्व सरपंच सतवीर सिंह, पहलवान धर्मपाल, दाताराम, सुरेंद्र सिंह, वेद प्रकाश, मास्टर विजय सिंह, ओम प्रकाश, सत्य प्रकाश, कृष्ण कुमार पंच, मनफूल, सब इंस्पेक्टर रामकुमार, प्यारेलाल, धर्मपाल, डा राम भक्त, मास्टर विजयपाल, पूर्व सरपंच हंस कुमार, प्रधान कृष्ण कुमार, रोशन लाल आर्य, अशोक व गणमान्य लोग मौजूद थे।
फोटो कैप्शन 09: अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे किसान।
शहीद सुजान सिंह पार्क का सौंदर्यीकरण का कार्य जोरों पर
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कनीना की आवाज। शहीद सुजान सिंह पार्क के सौंदर्यीकरण का काम जोरों पर चल रहा है। इस पार्क को मनमोहक एवं घूमने फिरने के लिए अनुकूल बनाया जा रहा है। शहीद सुजान सिंह पार्क का मुद्दा कई बार उठाया जिसका संज्ञान लेते हुए एसडीएम सुरेंद्र सिंह ने अपनी देखरेख में पार्क को विकसित करवाने का काम शुरू कर दिया है।
संत मोलडऩाथ आश्रम ट्रस्ट के प्रधान दिनेश कुमार ने बताया कि बस स्टैंड के नजदीक होते इस पार्क में हजारों की संख्या में लोग घूमने फिरने के लिए आते हैं। अब उनको बैठने घूमने फिरने की कुछ सुविधाएं मिलेंगी। उन्होंने प्रशासन से अपील की है कि इस पार्क में टायलेट तथा पीने के पानी की व्यवस्था भी की जाए ताकि आने वाले लोगों को किसी तरह की समस्या ना हो। इसके लिए उन्होंने एसडीएम सुरेंद्र सिंह का धन्यवाद किया।
उल्लेखनीय है कि यह पार्क कनीना के परम संत मोलडऩाथ आश्रम के समक्ष है। यहां वर्षभर कई बार मेले लगते रहते हैं जिसके चलते पार्क होना जरूरी था। जहां पास में खाटू श्याम मंदिर है वहीं एकादशी को मंदिरों में भारी भीड़ होती हैं। ऐसे में पार्क उनके लिए बेहतर साबित हो सकेगा।
इस मौके पर उनके साथ रमेश कुमार, लाल सिंह, अशोक डीपी, शिवकुमार व अन्य लोग उपस्थित रहे।
फोटो कैप्शन 10: शहीद सुजान सिंह पार्क की बदलती हुई तस्वीर दिखाने ग्रामीण।
महाशिवरात्रि की रही धूम
-विभिन्न स्थानों पर लगे भंडारे एवं मेले, शिवालयों में रही भीड़
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कनीना की आवाज। कनीना एवं आस पास क्षेत्रों में महाशिवरात्रि का पर्व धूमधाम से मनाया गया। शिवालयों में दिनभर पूजा अर्चना का सिलसिला चलती रहा। सबसे अधिक भीड़ प्राचीन शिवालय बाघोत स्थित बाघेश्वर धाम पर रही। कई जगह भंडारे आयोजित किए गए।
महाशिवरात्रि के पर्व पर मंदिरों में भारी भीड़ रही। कनीना के 21 फुट ऊंचे शिव प्रतिमा वाले शिवालय पर दिनभर तांता लगा और भक्तजन गाजर, बेर, फूल एवं फलों से अर्चना करते देखे गए। महिलाओं की संख्या बहुत अधिक थी। उन्होंने आज व्रत किया और शिवलिंग का जलाभिषेक किया। पुराने शिवभक्त भरपूर सिंह, उनकी पत्नी शकुंतला देवी तथा बच्चे सुबह से शिवालय में पूजा अर्चना करते देखे गए।
उधर विश्व में प्रसिद्ध कनीना से 13 किमी दूर स्थित बाघेश्वरी धाम पर अपार जनसमूह उमड़ पड़ा। बाघोत में मेला आयोजित हुआ जिसमें भारी भीड़ जुटी। भक्तों ने स्वयंभू शिवलिंग का अभिषेक किया।
बाघोत का पुराना नाम हरयेक वन था। यहां पीपलाद ऋषि का आश्रम भी तो यहीं था। उनके कुल में राजा दलीप के कोई संतान नहीं थी। वे दु:खी थे और दुखी मन से अपने कुलगुरु वशिष्ठ के पास गए। उन्होंने अपना पूरा दु:ख का वृतांत मुनिवर को सुनाया। वशिष्ठ ने उन्हें पीपलाद ऋषि के आश्रम में नंदिनी नामक गाय एवं कपिला नाम की बछिया निराहार रहकर चराने का आदेश दे दिया। राजा ने गाय व बछिया को निराहार रहकर चराते वक्त एक दिन भगवान् भोलेनाथ ने बाघ का रूप बनाकर राजा की परीक्षा लेने का निर्णय लिया। बाघ ने बछिया पर धावा बोल दिया। गाय को बचाने के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने को राजा तैयार हुए। परंतु जब वे ऐसा करने लगे तो बाघ के स्थान पर शिवभोले खड़े थे। बाघ के कारण ही गांव का नाम बाघोत पड़ा। प्रारंभ में बाघेश्वर शिवालय का निर्माण कणाणा के राजा कल्याण सिंह रैबारी ने करवाया था जिसका समय समय पर उद्धार होता रहा है।
बाघोत स्थित शिवालय उन भक्तों के लिए भी प्रसिद्ध माना जाता है जिनके कोई संतान नहीं होती है। मेले में आकर दंपति अपने हाथों से एक विशाल वटवृक्ष को कच्चा धागा बांधकर सुंदर संतान होने की कामना करता है। जब संतान हो जाती है तो यहां आकर ही धागा खोलता है। यही कारण है कि शिवलिंग के पास ही खड़ा एक वटवृक्ष कच्चे धागों से लदा मिलता है।
हरियाणा सरकार की पुस्तकों में भी बाघोत का छोटा उल्लेख है वहीं लेखक एचएस यादव की कृति में संपूर्ण इतिहास दिया गया है।
बाघोत के शिवालय का शिवलिंग स्वयंभू होने के कारण यहां अपार भीड़ भक्तों की वर्षभर चलती है। छोटा सा गांव है किंतु ठहरने के लिए अनेक धर्मशालाएं हैं। प्राकृतिक शिवलिंग के भक्त दर्शन कर प्रसन्न हो जाते हैं।
बाघोत स्थित स्वयंभू शिलिंग के दर्शन हजारों वर्ष पूर्व राजा कल्याण सिंह रैबारी ने यहां स्थित जंगल में सर्वप्रथम किए थे। तत्पश्चात यहां अपार जनसमूह प्रतिवर्ष उमड़ता है। बाघेश्वरी धाम नि:संतानों के लिए आस्था का केंद्र बन चुका है। राजा दलीप ने यहीं पर तप एवं व्रत करके संतान प्राप्त की थी। यहीं कारण है कि इस मेले में एक प्राचीन पीपल के पेड़ पर अपनी आस्था एवं मन्नत के परिणित संतान प्राप्ति हेतु कच्चा धागा बांधते हैं और जब उनकी मन्नत पूर्ण होती है तो उस कच्चे धागे को अपने कमलों से हटाने का रिवाज चला आ रहा है। कई कारणों एवं आस्थाओं के चलते बाघेश्वरी धाम पर अपार भीड़ रहती है। वैसे भी प्रत्येक सोमवार को यहां भक्तों का तांता लगता है। विभिन्न गांवों में शिवालयों में भारी भीड़ रही। सोमवार के दिन भी शिवभोले की पूजा की जाती है तथा व्रत रखा जाता है। विभिन्न गांवों में भंडारा आयोजित किया गया जहां भक्तों की भीड़ रही। लंबी भीड़ जुटी। एक एक घंटे में जलाभिषेक करने के लिए इंतजार करना पड़ता है। गांवों में भी शिवालयों पर रही भीड़।
फोटो कैप्शन 4 से 8: स्वयंभू शिवलिंग पर जल अर्पित करते हुए भक्त एवं मेला
बेर एवं गाजर की रही मांग
-अर्पित किये शिवालयों में
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कनीना की आवाज। आज महाशिवरात्रि पर बेर, गाजर एवं फलों की मांग रही। गाजर जो 20 रुपये किलो मिलती थी आज 30 रुपये किलो बिकी। बेरों की मांग कम होती थी उसमें आज इजाफा हो गया। झाड़ी के बेर 50 रुपये तो बागोवाले बेर 80 रुपये किलो बिके। केले भी 80 रुपये दर्जन बिके।
आज महाशिवरात्रि के दिन गाजर एवं बेरों की अधिक मांग रही जिसके चलते दोनों ही चीजों के भावों में बढ़ोतरी कर दी गई। गाजर 30 रुपये प्रति किलो के भाव से बिकी। किसानों ने खेतों से आज गाजर को उखाड़ा गया और उन्हें बाजार में बेचकर आय कमाई। ये वस्तुएं शिव भोले को अर्पित की जाती हैं।
किसान अजीत सिंह, सूबे सिंह, राजेंद्र सिंह, कृष्ण सिंह आदि ने बताया कि किसी वक्त इस क्षेत्र में किसान काले रंग की भारी मात्रा में गाजर उगाई जाती थी जिसे न केवल पशुओं के लिए अपितु खाने के काम में लेते थे किंतु अब किसान स्वयं गाजर खरीदकर लाते हैं। यही कारण है कि गाजर के भाव बढ़ रहे हैं।
फिल्म इंडस्ट्रीज के महान नायक सतीश कौशिक की धर्मपत्नी ने गांव धनौंदा का किया दौरा
- मेरा गांव धनौंदा बहुत अच्छा -शशि कौशिक
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कनीना की आवाज। देश के जाने-माने विख्यात फिल्म इंडस्ट्रीज के निर्माता निर्देशक सतीश कौशिक के परिवार द्वारा आज उनके पैतृक गांव धनौंदा में आकर गांव की मिट्टी को प्रणाम किया तथा अपने गांव की गलियों का भ्रमण भी किया। यहां गौरतलब है कि भारतीय फिल्म इंडस्ट्रीज के महान नायक सतीश कौशिक कनीना के निकटवर्ती ग्राम धनौंदा की मिट्टी में जन्मे थे जिन्होंने धनौंदा गांव की मिट्टी में खेल कर अपना बचपन शुरू किया था। उनके परिवार में उनके भाई ब्रह्मदत्त कौशिक, उनके दूसरे भाई अशोक कौशिक तथा उनकी धर्मपत्नी शशि कौशिक ने गांव धनौंदा का दौरा कर गांव में स्थित बाबा दयाल के मजार पर मन्नत मांगी वहीं गांव में स्थित ब्रह्मचारी कृष्णानंद धाम पर जाकर मन्नत मांगी।
इस अवसर पर फिल्म इंडस्ट्रीज के महान नायक सतीश कौशिक के भाई अशोक कौशिक ने जानकारी देते हुए बताया कि हम सब भाई इसी गांव की मिट्टी में पैदा हुए थे जिसके कारण हमारा इस मिट्टी से आज भी पूरा प्रेम है। उन्होंने यह भी बताया सतीश कौशिक ने फिल्म इंडस्ट्रीज में आकर जो नाम कमाया उसमें देश प्रदेश में जिले के साथ उनके पैतृक ग्राम धनौंदा का भी नाम ऊंचा हुआ है। जिसके कारण आज हमारे पैतृक गांव धनौंदा को अपने प्रदेश व देश में ही नहीं जहां तक सतीश कौशिक की फिल्में गई वहां तक पहुंचने का आयाम स्थापित हुआ। सतीश कौशिक अपने गांव से बड़ा लगाव रखते थे और इसी के कारण उन्होंने गांव में करोड़ों रुपये सरकार द्वारा खर्च करवा कर गांव को एक नई दिशा देने का कार्य किया। उन्होंने यह भी बताया की श्री कौशिक द्वारा गांव धनौंदा में बहुत बड़ा खेल स्टेडियम बनाकर गांव को सौंप दिया ताकि गांव में विभिन्न प्रकार के खेलों में भाग लेने वाले खिलाड़ी देश व प्रदेश में अपना नाम ऊंचा कर सके। सतीश कौशिक का एक सपना था कि वह जिस मिट्टी में पैदा हुए हैं उस गांव का नाम अपने देश में ही नहीं बल्कि विदेशों तक पहुंचने का कार्य करेंगे लेकिन परमात्मा को कुछ और ही मंजूर था।
फिल्म इंडस्ट्रीज के महान नायक सतीश कौशिक की धर्मपत्नी शशि कौशिक ने बताया मुझे कई बार अपने पति के गांव आने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। मुझे भी अपने गांव की तरह अपने पति का गांव धनौंदा काफी अच्छा लगता है और भविष्य में भी हम लोग अपने गांव को याद रखेंगे तथा अपने गांव के मान सम्मान के लिए प्रयास करते रहेंगे ताकि हमारे गांव धनौंदा का नाम जिले प्रदेश में ही नहीं बल्कि देश में ऊपर उठ सके। वही गांव के ग्रामीणों द्वारा गांव में पहुंचने पर श्री कौशिक के परिवार का भव्य स्वागत किया गया। गांव के ठाकुर रतन सिंह तोमर, ठाकुर राजेंद्र सिंह नंबरदार, वीर सिंह परमार, पूर्व पंच घनश्याम सिंह, ठाकुर कृष्णपाल सिंह, ठाकुर कर्मवीर सिंह, विजय कुमार आर्य, डाक्टर फतेहचंद दायमा, पूर्व पंच सुनील कुमार, डॉ मुकेश तंवर, पृथ्वी सिंह, ठाकुर जसवंत सिंह, पूर्ण सिंह तंवर, दीपांशु तंवर ,नरेंद्र शर्मा, रवि शर्मा, सतपाल शर्मा के अलावा अन्य ग्रामीणों ने बताया की सतीश कौशिक जी का गांव धनौंदा से बड़ा ही गहरा लगाव रहता था। वह फिल्म इंडस्ट्रीज में जाने के उपरांत भी समय-समय पर गांव घरौंदा पहुंचते थे और ग्रामीणों से बेबाक खुलकर के मिलते थे तथा गांव में किसी भी तरह की समस्या ग्रामीणों द्वारा उनके सामने रखी जाती तो वह उसका तुरंत निराकरण करने में बढ़-चढ़कर के भाग लेते थे।सतीश कौशिक के चले जाने की क्षति उनके परिवार को ही नहीं समूचे गांव धनौंदा के साथ हरियाणा प्रदेश को भी है। सतीश को कभी भुला नहीं पाएगा। ग्रामीणों ने उनके परिवार को आश्वासन दिया कि वह जब भी गांव धनौंदा आएंगे गांव के 36 बिरादरी के लोग उनका दिल से स्वागत करेंगे।
फोटो कैप्शन 03: सतीश कौशिक के भाई वह उनकी धर्मपत्नी
हृदय, नेत्र रोग एवं सामान्य रोग चिकित्सा का 72वां शिविर रविवार को
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कनीना की आवाज। कनीना अनाज मंडी स्थित लाला शिवलाल धर्मशाला में सेवा भारती हरियाणा प्रदेश शाखा कनीना की ओर से 72वां हृदय, नेत्र रोग, जांच एवं परामर्श शिविर 10 मार्च को आयोजित किया जाएगा। इस मौके डा अश्विनी यादव हृदय रोग तथा डा. राहुल नेत्र रोग विशेषज्ञ उपस्थित रहेंगे।
विस्तृत जानकारी देते हुए सेवा भारती के योगेश अग्रवाल ने बताया कि इस मौके पर ईसीजी, ब्लड प्रेशर, ब्लड शुगर आदि की जांच की जाएगी वही हृदय रोग विशेषज्ञ, नेत्र रोग विशेषज्ञ एवं सामान्य रोग विशेषज्ञ उपलब्ध रहेंगे। उल्लेखनीय की लंबे समय से सेवा भारती की ओर से इस प्रकार के कैंप आयोजित किए जा रहे हैं। अब तक 71 निशुल्क शिविर आयोजित किए जा चुके हैं जिसमें हजारों लोगों ने लाभ उठा लिया है। उन्होंने बताया कि सेवा भारती लगातार जन सेवा में जुटी हुई है। उन्होंने कहा कि प्राय हृदय रोगों की जांच उन लोगों को करवानी चाहिए जिनकी सांस फूलती हो, अत्यधिक मोटापा, अत्यधिक पसीना आता हो, उम्र 40 वर्ष से अधिक हो, तंबाकू-धूम्रपान सेवन करने वाले, रक्तचाप से पीडि़त, अत्यधिक घबराहट बेचैनी, हृदय संबंधित पारिवारिक रोग प्रवृत्ति, आलसी जीवन शैली वाले जरूर इस शिविर का में जांच करवाएं।
गेहूं की सुनहरी बालियों को देखकर किसान प्रसन्न
-अप्रैल में होगी गेहूं की लावणी
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कनीना की आवाज। कनीना क्षेत्र में जहां सरसों की लावणी पूरे वेग पर चल रही है वहीं गेहूं में सुनहरी बालियां दिखाई पड़ रही हैं। गेहूं की सुनहरी बालियों को देखकर किसान प्रसन्न हैं। अभी दो बार खेतों में और पानी दिया जाएगा तथा अप्रैल के दूसरे सप्ताह तक गेहूं की कटाई शुरू होने की संभावना जताई जा रही है।
इस बार अभी तक मौसम प्रतिकूल चलने से कम पैदावार होने की उम्मीद है। किसान राजेंद्र,कृष्ण कुमार, अजीत कुमार, महेश कुमार दिनेश कुमार, उमेद सिंह आदि ने बताया कि गेहूं में 6 से 7 बार पानी देना पड़ता है। पानी किसानों को या तो अपनी ट्यूबवेल से देना पड़ता है या एक तिहाई भाग गेहूं उत्पाद के बदले किसी ट्यूबवेल मालिक से पानी लेना पड़ता है।
किसान अब तक गेहूं फसल में चार पानी दे चुके हैं। उन्होंने बताया कि अभी एक से दो बार पानी और लगाना पड़ेगा। फसल पकान की ओर अग्रसर है। कनीना क्षेत्र में दो प्रकार की खेती की हुई है। अगेती फसल पर सुनहरी बालियां आई हुई हैं। वैसे तो खेत से पकी हुई कुछ बालिया होली दहन में भूनकर खाने के पश्चात ही लावणी का कार्य शुरू होता है और इस बार 24 मार्च को होलिका दहन होने जा रहा है। होली के दहन में गेहूं/जौ की बालियों को भूनकर खाने के बाद ही लावणी होने की संभावना है। गेहूं के मुकाबले दोगुने क्षेत्रफल पर सरसों उगाई गई है।
कृषि वैज्ञानिक ने कृषि अधिकारी वैज्ञानिक मानते इस बार मौसम ठीक नहीं रहने का कुप्रभाव पैदावार पर पड़ सकता है।
उधर व्यापार मंडल प्रकोष्ठ के उपाध्यक्ष रविंद्र बंसल ने बताया कि इस बार गेहूं का एमएसपी 2275 रुपये तो सरसों प्रति 5650 रुपये प्रति क्विंटल रखा गया है। सरसों के प्रति किसानों में अच्छा रुझान देखने को मिल रहा है।
फोटो कैप्शन 02: गेहूं की लहलहाती फसल।
किसान सभी कार्य करवा रहे हैं मजदूरों से
--किसानों के पास वक्त का अभाव
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कनीना की आवाज। कनीना क्षेत्र में सरसों की फसल कटाई शुरू हो गई हैं। किसान अपनी फसल कटाई स्वयं कम करते हैं और मजदूरों से अधिक करवा रहे हैं। दूसरे राज्यों से भारी संख्या में मजदूर आए हुए हैं जो 2500 प्रति एकड़ के हिसाब से फसल कटाई करते हैं। किसान अपने खेतों में फसल कटाई सरसों निकालना, यहां तक कि आने वाले समय में गेहूं की कटाई और भंडारण भूसे का भंडार आदि सभी कार्य इन मजदूरों से करवाते हैं। आलम यह है कि किसान अपने खेतों में जबसे फसल उगाता है तभी से उसकी रखवाली का कार्य भी मजदूरों पर छोड़ता रहा है। मजदूर निश्चित राशि में फसलों की देखभाल करते हैं। फसलों की आवारा जंतुओं से देखरेख के लिए अलग से रखवाले भी रखे जाते हैं। ये रखवाले रात को आवारा जंतु जैसे नीलगाय से फसल की सुरक्षा करते हैं।
किसानों ने बताया कि एक जमाना था जब परिवार के सदस्यों की संख्या अधिक होती थी उस समय मजदूरों की जरूरत कम पड़ती थी किंतु अब प्रत्येक घर में सदस्य की संख्या कम होती है। एक और जहां चल रही हैं विद्यार्थी अपने स्कूल में परीक्षा देने जाते हैं वही किसान अपने खेतों में लावणी का कार्य करते हैं। लेकिन ऐसे बहुत कम किसान है जो अपने खेत की लावणी स्वयं करते हैं। मजदूरों पर ही लावणी का कार्य निर्भर करता है।
मिली जानकारी अनुसार राजस्थान, बिहार ,उत्तर प्रदेश तथा अन्य राज्य से मजदूरों के ग्रुप आए हुए हैं। ये ग्रुप दस से लेकर के 30 की संख्या में मिलते हैं। एक साथ मिलकर कार्य करते हैं। फसल कटाई का काम जो दिनों में पूरा होना चाहिए कुछ ही घंटों में पूरा कर जाते हैं। यही कारण है किसान मौसम को देखते हुए तथा मौसम बदलाव के चलते हुए इन मजदूरों से कटाई करवाता है। यहां तक सरसों निकालना आदि का कार्य भी मजदूरों से करवा भंडारण तक का कार्य भी मजदूरों से करवाता है। एक और मजदूरों को अपनी रोटी रोजी मिल रही है वही किसान भी इन मजदूरों से काम करवा कर प्रसन्न नजर आ रहे हैं। किसानों का कहना है कि घर गृहस्थी के काम में फुरसत नहीं मिलती जिसके चलते मजदूरों से काम करवाते हैं। दूसरे प्रांतों में दैनिक मजदूरी प्रदेश से कम है।
फोटो कैप्शन 01: सरसों की लावणी का नजारा।
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