Not sure how to add your code? Check our installation guidelines **KANINA KI AWAZ **कनीना की आवाज**

Tuesday, June 18, 2024


 


 1000 वर्ग फुट में पेड़ पौधों की वर्षा जल से सेव कर रहे हैं डाक्टर विनोद कुमार
-वर्षा जल संरक्षण के लिए बना रखा है बड़ा हौद
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कनीना की आवाज। कनीना निवासी डाक्टर विनोद कुमार न केवल जल संरक्षण कर रहे हैं अपितु वर्षा जल से अपने बगीचे को संवार रहे हैं। विगत वर्षों उन्होंने प्रशासन की पहल पर अपने घर में एक 20 बाइ 20 फीट तथा 3 फुट गहरा गड्ढा बनवाया और सभी छतों का वर्षा का जल एक पाइप द्वारा हौद तक पहुंचाया है। वर्षा के समय इनका हौद लबालब भर जाता है। यही नहीं अधिक वर्षा का जल उनके बगीचे को सींचता है। बगीचे के सभी पेड़ पौधे वर्षा जल से सिंचित होते हैं और गर्मी के दिनों में भी सुंदर  बगीचा बना रखा है जिसमें नाना प्रकार के फूल, पेड़ पौधे, फलदार पौधे लगाए हुए हैं। उन्होंने बताया कि घर की नालियों का पानी भी रिचार्ज कर रहे हें तथा बगीचें के काम आ रहा है।
डाक्टर विनोद कुमार ने बताया कि क्षेत्र में पानी की समस्या के चलते और वर्षा जल के अनावश्यक रूप से बहाने के कारण उनके मन में एक इच्छा हुई क्यों न वर्षा जल का संरक्षण किया जाए । ऐसे में सभी छतों का जो जल इकट्ठा होकर नालियों से होकर आता है उसे एक पाइप की सहायता से हौद तक पहुंचाया है ताकि हौद में पानी जमा हो जाए। हौद के ओवरफ्लो होने पर पानी पेड़ पौधों में चला जाता है जिससे शानदार पेड़ पौधे लगे हुए हैं। उन्होंने बताया कि इस वक्त हौद की सफाई कर दी गई है तथा आने वाले मानसून में उनका यह हौद पूरा भर जाएगा। उनका हौद नीचे से कच्चा रखा गया है ताकि पानी का रिचार्ज हो सके। उनका कहना है कि भूमिगत जल नीचे गहराता जा रहा है और उनका एकमात्र विकल्प वर्षा जल संरक्षण है। अपने-अपने घरों में रिचार्ज बोर बनाये जाए ताकि वर्षा जल का संरक्षण करके उसे सदुपयोग में ले सके।
विनोद कुमार अपने परिवार सहित बगीचे में जुटे मिलते हैं। उनका कहना है कि यदि सभी इंसान इसी प्रकार वर्षा जल का संरक्षण करेंगे तो आने वाले समय में निसंदेह भूमिगत जल की बढ़ोतरी होगी।
यूं तो क्षेत्र के विभिन्न लोग धीरे-धीरे वर्षा जल संरक्षण के लिए प्रयासरत एवं जागरूक हो गए हैं और प्रयास कर रहे हैं। यही कारण है की वर्षा जल संरक्षण के चलते कनीना क्षेत्र के करीब एक दर्जन लोग महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं।
 फोटो कैप्शन 5 से 7: वर्षा जल संरक्षण करके पेड़ पौधे लगाते हुए डा. विनोद कुमार
साथ में डा.विनोद कुमार पासपोर्ट






एक तो भीषण गर्मी उस पर बिजली कट
--लोग हुए परेशान
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कनीना की आवाज।दिया है। विगत तीन दिनों से जहां बिजली काटो की संख्या बढ़ती ही जा रही है वहीं तापमान 45 डिग्री पार कर गया है। मंगलवार को कनीना में 4 घंटे का बिजली कट लगा जिसके कारण लोग परेशान हो गए। राम रतन जेई गोमली ने बताया कि धनौंदा पावर हाउस में कोई तकनीकी खराबी के कारण बिजली आपूर्ति नहीं हुई जिसके कारण कनीना में सप्लाई बाधित रही। उधर गर्मी तलख तेवर दिखा रही है, तापमान 45 डिग्री पार कर गया है। आने वाले समय में तापमान और बढऩे की संभावना है। पेयजल जल की समस्या भी बढ़ती जा रही है वहीं लोग परेशान हो चले हैं। पहली बार इतना तापमान लोग झेल रहे हैं।
खुद पावर हाउस के कर्मी भी बिजली अभाव के कारण टीन शेड में बैठे दिखाई दिए। कनीना क्षेत्र में जहां गर्मी के कारण गरीब व्यक्ति बेहद परेशान है। उनके पास एसी और कूलर तक नहीं है। महज पंखों के नीचे गुजर बसर कर रहे हैं।
 कस्बा कनीना तो अब धीरे-धीरे दूसरे राज्यों से आए हुए लोगों की भरमार हो गई है। कम से कम 2000 व्यक्ति दूसरे राज्यों के आए हुए हैं जो इधर-उधर बंद पड़े घरों में जहां दिन में भी लोगों को डर लगता है उनमें रह रहे हैं। यही नहीं यहां महज पंखों की हवा से गुजर बसर कर रहे हैं। ये लोग दिन भर रेहड़ी लगाते हैं या मजदूरी करते हैं और ऐसे घरों में रहते हैं जहां पानी बिजली तक का भी प्रबंध नहीं है जो सस्ते में मिल जाते हैं।  धीरे धीरे अपने राशनकार्ड एवं वोटर कार्ड बनवा लेते हैं। जहां गर्मी के कारण समस्या बढऩे लगी है लोग बेहद परेशान हो चले हैं। सरकार से लोगों ने मांग की है की बारिश आने तक लगातार बिजली आपूर्ति की जाए ताकि कम से कम पंखे एवं  कूलर से आराम मिल सके।





अगर भूमिगत जल बचाना है तो शिफ्ट में की जाए बिजली आपूर्ति -गजराज सिंह
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कनीना की आवाज। मोड़ी के अग्रणी और सरकार द्वारा सम्मानित किसान गजराज सिंह ने बताया कि दिनों दिन भूमिगत जल गहराता जा रहा है। महेंद्रगढ़ डार्क जोन घोषित हो चुका है। ऐसे में अगर पानी की को बचाना है तो बिजली आपूर्ति शिफ्ट में दी जाए। अगर 8 घंटे बिजली आपूर्ति रात के समय दी जाती है तो उसे 4 घंटे किया जाए तथा 4 घंटे दिन में दी जाए। उनका कहना है कि किसानों ने आटोमेटिक स्टार्टर लगा रखे हैं। रात के समय लाइन को लगाकर घर आ जाते हैं और लाइन 8 घंटे चलती रहती है।  पानी की जहां 8 घंटे आपूर्ति की आवश्यकता नहीं है फिर भी रात के कारण किसान खेत में जाने से कतराते हैं। ऐसे में अगर 4 घंटे बिजली दी जाए तो खेतों में 4 घंटे में एक लाइन में पानी की आपूर्ति हो जाएगी। दूसरी शिफ्ट में किस मजबूरन अपनी लाइन को बदल देगा। इस प्रकार पानी की काफी बचत होगी। वैसे भी किसानों को समझाया जाए कि सड़क और रास्तों को अधिक पानी से भिगोते रहते हैं। अपने फवारा सेट सही नहीं करते जिसके कारण अपने खेत की सिंचाई की बजाय रास्ते की सिंचाई या सड़कों की सिंचाई करते नजर आते हैं। उन्होंने कहा कि पानी की एक-एक बूंद बचना भी जरूरी है। इसलिए किसानों को भी इस और ध्यान देना होगा। वरना भविष्य में पानी की बहुत बड़ी किल्लत हो जाएगी।






मानसून में लगाए फलदार पौधे-डा. प्रेम सिंह
-अप्रूवड नर्सरी से ले पौधे
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कनीना की आवाज। जिला हार्टिकल्चर अधिकारी डा. प्रेम सिंह ने बताया कि मानसून आने में कुछ समय बाकी है। मानसून में किसानों को फलदार पौधे जरूर लगाने चाहिए ताकि ये फलदार पौधे न केवल फल देंगे अपितु पर्यावरण को सुरक्षित भी रखेंगे। उन्होंने बताया कि फलदार पौधे किसी मान्यता प्राप्त नर्सरी, राजकीय नर्सरी या राज्य सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त नर्सरी से ही खरीदे। उनसे जब इस संबंध में चर्चा की गई तो उन्होंने बताया जिला महेंद्रगढ़ में कोई भी राज्य सरकार से मान्यता प्राप्त नर्सरी नहीं है। रोहतक हिसार आदि क्षेत्रों से ये पौधे मंगवाये जा सकते हैं। यदि किसान चाहे तो मिलकर अपनी मांग उन्हें दे सकते हैं ताकि इसके लिए पौधों को का प्रबंध सुंदरह आदि में किया जा सके। उन्होंने बताया कि अधिकांश नर्सरी चल रही हैं वे सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है। अच्छे पौधों के लिए मान्यता प्राप्त नर्सरी की बेहतर विकल्प होता है।






अब सब्जी खाना हो गया है कठिन
-आलू ,प्याज एवं टमाटर हुए महंगे
-गर्मी के कारण झुलस गए हैं पौधे
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कनीना की आवाज। गर्मी के मौसम में जहां महज एक महीने पहले आलू टमाटर और प्याज काफी सस्ते थे। ये 10 से 15 रुपये किलो मिलते थे जो अब आकाश छूने लगे हैं। आज के दिन जहां टमाटर और प्याज 40 रुपये किलो पहुंच गये है वहीं आलू 30 रुपये किलो पहुंच गया है।
 दुकानदार योगेश कुमार और रोहित कुमार ने बताया कि इस समय थोक में टमाटर और प्याज ही 36 रुपये मिल रहे हैं जो कि 40 रुपये किलो बेचने पड़ रहे हैं। आलू भी 25 रुपये किलो थोक में मिलते हैं, दिन में अधिकांश खराब निकल जाते हैं 30 रुपये किलो तक बेचने पड़ रहे हैं। यदि यही हालत चलती रही तो आने वाले समय में इनकी कीमत आसमान छूएगी। आलू ,टमाटर और प्याज से ही मुख्य रूप से गरीब आदमी आलू की सब्जी बनाकर खाता रहा है। दाल तो एक सौ रुपये किलो से अधिक महंगी चल रही हैं। दाल की बजाय आलू की सब्जी खाना भी अब सरल कार्य नहीं है।  आलू एक ऐसी सब्जी है जो हर जगह प्रयोग की जाती है। यहां तक की समोसा, आलू चिप्स ,फिंगर चिप्स और न जाने कितनी सब्जियों में एवं फास्ट फूड बनाने के काम आते हैं परंतु अब लगता है कि आलू ,टमाटर ,प्याज खरीदना बहुत कठिन हो जाएगा। आने वाले समय में बड़ी समस्या बन सकता है। प्याज ने तो 1998 में सरकार की आंखों में आंसू ला दिये थे। कहीं वैसे ही हालात न बन जाये।
 क्या कहते डीएचओ नारनौल-
डा. प्रेम सिंह डीएचओ नारनौल बताते हैं कि आलू ,टमाटर अप्रैल और मई तक ही चल पाते हैं। इसके बाद खुदाई पूर्ण हो चुकी होती है और धीरे-धीरे गर्मी की वजह से यह सडऩे लग जाते हैं। इनको स्टोर करना कठिन हो जाता है। क्योंकि जब तक बेहतर स्टोरेज नहीं होंगे, निश्चित ताप पर नहीं रखा जाएगा तब तक ये चीज सडऩी शुरू हो जाएंगी। यही कारण है कि गर्मी के चलते और  किसानों के पास अच्छी स्टोरेज न होने के कारण आलू, प्याज खराब होने शुरू हो गए हैं और ये महंगाई की ओर बढ़ रहे हैं। वैसे भी गर्मी का कुप्रभाव भी पड़ रहा है। हर वर्ष कुछ समय के लिए ये महंगे हो जाते हैं।
तरबूजों की बहार-
 कनीना और आसपास सड़क के किनारे या मंडियों में तरबूजों की बहार आ गई है। भारी भरकम तरबूज इकट्ठे रखे जाते हैं और उनकी देखरेख की जाती है। तरबूज की कीमत भी कम नहीं हुई है। 40 रुपये किलो तक बिक रहे हैं। डाक्टर भी तरबूज विभिन्न रोगों में खाने की सलाह देते हैं वहीं पानी की पूर्ति भी करते हैं। ऐसे में तरबूजों के ढेर नजर आने लगे हैं।
फोटो कैप्शन 03: प्याज व  04: तरबूज की कनीना में बहार।







दिनभर चला निर्जला एकादशी का पर्व
--कलश यात्रा निकाली, भजनोपदेश हुए, छबीलें लगी
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कनीना की आवाज। मंगलवार को कनीना एवं आस पास क्षेत्रों में निर्जला एकादशी का पर्व मनाया गया। दिनभर सड़क चौराहों पर मीठे पानी की छबीले लगाई गई वहीं  लोगों एवं राहगीरों को मीठा पानी पिलाया गया। मीठे जल के अतिरिक्त तरबूज, प्रसाद एवं फल खिलाए गए। यहां तक कि रास्ते से तभी गुजरने दिया गया जब उन्होंने मीठा जल पी लिया। मीठा पानी पिलाने का सिलसिला पूरे जून माह तक चलता रहेगा।
गर्मी के इस मौसम में मंगलवार को निर्जला एकादशी के दिन सुबह से ही सड़कों पर मीठा पानी पिलाने व फल खिलाने की होड़ लग गई थी। जगह जगह बच्चे एवं बूढ़े जल पिला रहे थे। कनीना के बाबा मोलडऩाथ आश्रम में भक्तों ने प्रसाद चढ़ाया। यहां पर प्रति शुक्ल एकादशी को अपार भीड़ जुटती है। शिवालय पर भी भक्तों की भीड़ रही। प्याऊ में सुबह से घड़े जल से भरकर रखे गए।
  भीषण गर्मी के चलते आमजन लोगों को गर्मी से राहत पहुंचाने के लिए छबीले लगाई गयी थी। हर वर्ष निर्जला एकादशी को भारी संख्या में छबीले लगाई जाती है। छबीलों के दौरान मीठा ठंडा जल पीने वालों की कोई कमी नहीं देखी गई। इस मौके पर अनेक लोगों ने अपना सहयोग देकर धर्म में शामिल होकर लोगों को छबीले पिलाने का कार्य किया।  
  उधर संत लालदास महाराज ने कहा कि वैसे तो शुभ कर्म कभी भी किए जाए वह कभी निष्फल नही जाते लेकिन किसी पर्व पर किए गए शुभ कर्मों का फल अलग ही मिलता है जैसे निर्जला एकादशी के दिन किए गए शुभ कर्मों का विशेष ही महत्व होता है। इस लिए इस दिन अन्न, फल, जल तथा वस्त्र आदि दान करने के अलावा गायों को भोजन कराने का विशेष अवसर माना जाता है।
भजनोपदेश चले-
कनीना के संत मोलडऩाथ आश्रम पर भेजनोपदेश चले। प्रवेश पंडित ने निर्जला एकादशी का महत्व बताते हुए कहा कि वेद व्यास ने एक दिन पांडवों को इस दिन का महत्व समझाया था। तब पांडव भीम ने पूछा-गुरूदेव, में तो बगैर खाए पीए नहीं रह सकता। मेरे लिए व्रत करना तो अति कठिन होगा। मुझे कोई मार्ग सुझाओ ताकि स्वर्ग प्राप्त हो सके। वेद व्यास ने अविलंब कहा-आप एक दिन का व्रत अर्थात निर्जला एकादशी व्रत करके भी स्वर्ग प्राप्त कर सकते हैं। कहते हैं कि भीमसेन ने भी यह व्रत रखा और तभी से इसे भीमसेन एकादशी नाम से जाना जाता है। भीमसेन द्वारा चलाई गई प्रथा आज भी चली आ रही है।
  उन्होंने कहा कि निर्जला एकादशी का व्रत अन्य 24 एकादशियों में सर्वोत्तम एवं श्रेष्ठ फल देने वाला होता है। महर्षि की प्रेरणा से भीमसेन द्वारा चलाया गया व्रत भीमसेन एकादशी व्रत का आज भी उतना ही महत्व है।
   निर्जला एकादशी को प्रचंड गर्मी रही।  किंतु इस दिन ग्रामीण क्षेत्रों में ठंडा मीठा जल सुबह से ही जगह-जगह पिलाना शुरू हो गया जो देर शाम तक चला।  स्त्री व पुरुष सुबह से शाम तक व्रत रख दान पुण्य करते नजर आए। गांवों में बर्फ, कुल्फी, तरबूज, खरबूजा आदि बांटकर जन हर्षित हुए और अपने को धन्य समझा। यही कारण है कि ग्रामीण जन इसे मीठली ग्यायस नाम से भी जानते है।
तरबूज एवं खरबूजों के भाव बढ़ाये-
विगत दो दिनों से तरबूजों एवं खरबूजों के भाव बढ़ा दिये हैं। तरबूज 30 रुपये किलों तो खरबूज 40 रुपये किलो बिके। बर्फ की सिली मुश्किल से मिल पाई चूंकि बिजली कट बढऩे से बर्फ जम नहीं पा रही हैं। मुंहमांगे पैसों में बर्फ मिली।
निकाली कलश यात्रा-
कनीना के संत मोलडऩाथ से एक कलश यात्रा निकाली जो पूरे कस्बा से होकर वापस मोलडऩाथ आश्रम पहुंची। डीजे सहित कम से कम 500 महिलाओं ने भाग लिया। हर वर्ष निर्जला एकादशी को इस प्रकार की यात्रा निकाली जाती है। संत रामनिवास , प्रधान दिनेश कुमार ने अहम भूमिका निभाई।
फोटो कैप्शन 01: कलश यात्रा निकालते हुए
             02:प्रवचन करते प्रवेश पंडित।


























नेशनल रीडिंग डे -जून 19
दिनों-दिन विद्यार्थियों में घट रही है पढऩे की क्षमता
-पुस्तकें जरूर पढ़े-डा राजेंद्र सिंह
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कनीना की आवाज। एक वक्त था जब गर्मियों की अवकाश में सुबह से लेकर रात तक विभिन्न प्रकार की पुस्तकें पढ़ी जाती थी। उसके ज्ञान का स्रोत मानी जाती थी। बुजुर्ग भी अपने बच्चों को ज्ञान प्राप्त करने के लिए पुस्तकें पढऩे के लिए प्रेरित करते थे। वह स्वर्णिम युग था। किंतु धीरे-धीरे विज्ञान की क्रांति आई और मोबाइल के अविष्कार के बाद तो मोबाइल क्रांति में विद्यार्थी डूब गए। आज अगर विद्यार्थियों से कुछ पूछना चाहे तो नहीं बता सकते, महज अपने फोन पर देखकर कुछ बता सकते हैं। वास्तव में पुस्तकों के पढऩे का उत्साह धीरे-धीरे कम हो रहा है। पुस्तकों के प्रति सबसे अधिक ध्यान जागृत किया था पीएन पेनिकर ने। उनकी याद में यह नेशनल रीडिंग डे मनाया जा रहा है। विद्यार्थियों से इस संबंध में बात की।
केरल में पुस्तकालय आंदोलन के पिता स्वर्गीय पीएन पेनिकर को सम्मानित करने के लिए यह दिन मनाया जाता है। उन्होंने 47 ग्रामीण पुस्तकालयों की स्थापना की थी। उनकी मृत्यु 19 जून 1995 को हुई इसलिए उनका को याद करने के लिए आज भी रीडिंग डे मनाया जाता है। क्या कहते शिक्षाविद एवं विद्यार्थी -
**अब पुस्तकों से कम अध्ययन किया जाता है। स्कूलों में भी जहां टैब दिए है उसी प्रकार विद्यार्थियों को आनलाइन स्टडी करनी पड़ती है। इसलिए पुस्तकों की बजाए विज्ञान की क्रांति के जरिए शिक्षा पा रहे हैं। पुस्तकों के प्रति लगाव घटा है। उनका कहना है कि जब वे छोटे थे तब पुस्तकों के प्रति उनकी रुचि थी किंतु जब से मोबाइल क्रांति आई है पुस्तकों से थोड़ा दूर होते जा रहे हैं।
---अमीश कुमार
पुस्तक ज्ञान का अमिट स्रोत होता है किंतु पुस्तकों के प्रति लगाव कम होता जा रहा है। आज के दिन यदि पुस्तकों के प्रति लगाव देखा जाए तो बहुत कम विद्यार्थी  पुस्तकें पढ़ पाते हैं। किंतु पुस्तकों के प्रति लगाव अत्यंत जरूरी है। उन्होंने कहा कि आज की युवा पीढ़ी तो पुस्तकों से दूर होती जा रही है।
--हर्ष कुमार विद्यार्थी
उनका जमाना था जब वह गर्मी की छुट्टियों में कामिक्स पढ़ते थे। सुबह पढऩा शुरू करते थे और रात तक कामिक्स में लगे रहते थे। यहां तक कि स्कूलों में भी किताबों को पढऩे पर जोर दिया जाता था। अध्यापक किताब पढऩे के लिए प्रेरित करते थे और किताबों से ही वो ज्ञान प्राप्त करते थे। उस जमाने में फोन की क्रांति नहीं थी, इंटरनेट की कल्पना कैसे कर सकते थे। यही कारण है कि उनका जमाना आधुनिक जमाने से भिन्न है। उन्होंने कहा आज के दिन पुस्तकों के प्रति विद्यार्थियों का बहुत कम लगाव होता है। यही कारण है कि आज के दिन विद्यार्थी कम पढ़ते हैं।
---महेंद्र शर्मा कवि
पठन-पाठन से बच्चों को लिखित एवं तथ्यात्मक विचारों को समझने के कौशल में विकास होता है। उन्हें पढऩे के लिए प्रोत्साहित करें। बच्चे की गलतियों पर धैर्य रखें तथा उसकी कहानी पर ध्यान दें। पाठ को दूसरी बार, तीसरी बार फिर से पढ़ें इससे अभिव्यक्तियों से परिचित होने मैं मदद मिलेगी। किताबें हमारी सबसे अच्छी दोस्त हैं। ये हमारी समस्या का सबसे अच्छा समाधान हैं। फ्रांसिस बेकन सही थे जब उन्होंने कहा था-कुछ किताबें चखने के लिए होती हैं, कुछ निगलने के लिए और कुछ चबाने व पचाने के लिए।
प्रश्न उठता है : बच्चे पठन - पाठन से दूर क्यों भाग रहे हैं - छोटी उम्र में ही मोबाइल, लैपटाप इस्तेमाल करेंगे तो अत्यंत उपयोग के शिकार बन जाएंगे। परीक्षा के डर से पढऩा, रट्टा लगाकर पढऩा साथ ही घर का वातावरण भी प्रभाव डालता है। मां-बाप का अत्यधिक समय फोन पर जाना भी एक कारण बनता है। बच्चों को लक्ष्य के साथ जोडि़ए। पढ़ाई को रुचिकर बनाइए। बच्चे में पढ़ाई का डर पैदा मत कीजिए। इससे सकारात्मक परिणाम आएंगे।
--डा. रामानंद यादव शिक्षाविद
किताब विमान की मित्र है गुरु है पथ प्रदर्शक हैं यहे आगे बढ़ाने में सहायक दिमाग को बैलेंस बनाने में मदद करती है। जब हम किताबों के साथ होते तो किसी और की जरूरत नहीं पड़ती परंतु साथ मोबाइल के दौर में किताबों की जरूरत कम होती जा रही है। बच्चों को नहीं बड़ों भी मोबाइल में गैजेट्स की लक्ष्मी आ चुके हैं तो सभी को सोचने पर मजबूर होना होगा। पूरे संसार में  सुप्रसिद्ध लेखक ने अपने विचारों के शब्दों में प्रयोग कर किताबें बनाई हैं। पूरे संसार की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक और व्यावहारिक दिशाएं दी है, वैचारिक दृष्टि से अपने आप को ऊंचा उठाने के लिए किताबें पढऩा उतना ही जरूरी है जितना कि शरीर के लिए खान-पान। हमें प्रयास करना चाहिए बच्चे मोबाइल में सोशल मीडिया से दूरी बनाकर अच्छी किताबें पढ़े।
---डाक्टर राजेंद्र सिंह शिक्षाविद
फोटो कैप्शन: अमीश कुमार, हर्ष कुमार, महेंद्र शर्मा, डा राजेंद्र सिंह डा रामानंद यादव




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