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Sunday, March 16, 2025


 

हरियाणा बजट में अपेक्षाएं
-स्वास्थ्य सेवाओं में हो वृद्धि
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कनीना की आवाज।
 हरियाणा बजट 17 मार्च को आ रहा है। जिसको लेकर कनीनावासियों में स्वास्थ्य सेवाएं सड़कों की मरम्मत करने, एलपीजी सिलेंडर की कीमत घटना बच्चों की पढ़ाई के लिए उचित व्यवस्था करना, शिक्षक को की भर्ती करना आदि प्रमुख मांग है और अपेक्षाएं हैं। इस संबंध में क्या कहते हैं लोग-
**स्वास्थ्य सेवाओं में वृद्धि होनी चाहिए। विभिन्न सड़क मार्ग जर्जर पड़े हैं उनकी मरम्मत के लिए बजट जारी हो। सरकारी स्कूलों पर ध्यान देकर बच्चों की पढ़ाई की उचित व्यवस्था करना, शिक्षकों की भर्ती की जाए,अस्पतालों में सभी जरूरी मशीनें उपलब्ध करवाई जाएं।
-- डा. अजीत शर्मा
महंगाई बढ़ती जा रही है जिससे घरेलू बजट भी बढ़ रहा है। किसान भी परेशान हैं। किसानों को खाद उचित मूल्य पर हर समय उपलब्ध करवाया जाए, एलपीजी सिलेंडर की कीमत घटाई जाए, बिजली दरों को घटाया जाए तथा गृहणियों के लिए छोटे उद्योग धंधे स्थापित करने के लिए कुछ योजनाएं चलाई जाए और बजट जारी हो।
-- अनिल परदेशी
फोटो कैप्शन: डा.अजीत शर्मा एवं अनिल परदेशी





मेरा शिक्षा का सफर पुस्तक से साभार-109
 -जंगली फल खाने में सदा दिखाई रुचि, याद आते हैं वो दिन और वो फल
-कनीना के रक्षकों ने ही जंगल उजड़वा डाले
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कनीना की आवाज।
 कनीना निवासी डा. होशियार सिंह यादव विश्व रिकार्डधारक लंबे समय तक शिक्षा विभाग में सेवा देकर 30 अप्रैल 2024 को सेवानिवृत्त हो चुके हैं। उनका जीवन सदा सादगी से भरा रहा, इतनी अधिक सादगी की कोई व्यक्ति यह नहीं कह सकता कि यह इंसान शिक्षक भी रहा होगा। सादगी की सदा चर्चा ही रही है लोग उनकी सादगी के कायल रहे हैं। परंतु उनके साथ लोगों ने किए गए धोखे की सदा चर्चित हैं। वे पढ़ाई लिखाई, गाय चराना, दुकानदारी करना, लेखन कार्य करना आदि साथ-साथ करते आये हैं। वे जब भी कभी घूमने के लिए जंगल में जाते तो जंगली फलों को खाने में बड़ी रुचि दिखाते रहे हैं। यही कारण है कि अब भी वे जंगल में कभी जाते तो उन पेड़ पौधों और उन फलों को ढूंढते हैं जो जंगल में उपलब्ध होते हैं। आइये सुनते हैं होशियार सिंह की कहानी उन्हीं की जुबानी ---
***जब मैं पढ़ाई करता था और कभी बीच में रविवार को मौका मिलता तो जंगलों में जाता था। जंगलों में जब चने की खेती बहुत अधिक होती थी क्योंकि चेने को तोड़कर कच्चा साग, मिर्च-नमक-लहसुन से खाया जाता था। परंतु महज मिर्च-नमक पीसकर, वह भी पत्थर पर/सिलावटे पर पीसकर कागज कागज में रख,जेब में डालकर ले जाता था। लंबे समय तक जंगल में चने तोड़कर साग खाता था। किसान नाराज नहीं साग तोडऩे से खुश होते थे परंतु आज के दिन तो किसी के खेत में पैर रखना भी गुनाह होता है। आज भी साग तोड़कर खाया है परंतु जो स्वाद  उस जमाने में आता था वह शायद आज नहीं आता है, हो सकता है हमारे मुंह का स्वाद बदल गया हो या चने की तासीर बदल गई हो। यह भी सत्य है कि उस जमाने में जब गायों को एवं भैंस आदि चराने जंगल में जाते तब छाछ चटनी और सूखी रोटी पेड़ की छाया में बैठकर खाते तो तो जो स्वाद आता उसे बयान कर पाना कठिन है। आज के दिन छाछ पीते हैं परंतु न तो चटनी में वह स्वाद है और न छाछ में कोई मजा आता है। उस वक्त जंगल में जाते तो जाल के पेड़ पर पील लगती तो जी भरकर पील खाते, सिंडारे में पील तोड़कर घर लाते और मजे से खाते थे। तेज धूप में पील खाने में मजा ही कुछ और आता था। पीली, लाल हरी,सफेद अनेक रंगों की पील जंगल में खाई हैं। आज के दिन पील नहीं होती। जहां कैर के फल पीचू पक जाते तो उनको बड़े चाव से खाते थे। आज कोई पीचू उपलब्ध नहीं हो पाते हैं। जंगल कनीना के लोगों ने खत्म कर डाले हैं। अब पील, पीचू खत्म हो चुके हैं। बेर एक ऐसे जंगली फल हैं जो बहुत अधिक बेरी पर लगे होते थे। लंबे समय तक पके हुए बेर मार्च माह के बाद खाते थे और इसके बाद जब वे बेर सूख जाते तो सूखे भी उठा उठा कर बड़े चाव से खाते थे जिन्हें आम भाषा में छुहारा बोलते थे परंतु वे छुहारा नहीं हैं सूखे बेर हैं। आज ने तो वे बेरी बची हैं और न सूखे बेर। झींझ जाटी पर लगने वाले फल होते थे। सांगर की सब्जी और सूखने पर झींझ जमकर खाते थे। झींझ इकट्ठी करके सिरस के पेड़ पर टांग देता था। आज भी याद आता है वह सिरस का पेड़। जहां आज कान्ह सिंह धर्मशाला है यह हमारा घर होता था। यहां एक मेरे पिताजी जयनारायण द्वारा लगाया हुआ सिरस का बहुत ऊंचा पेड़ होता था। बाद में जिसको वोट दिए, इसने प्रधान बनकर हमें हमें बेघर कर डाला। जिसे हम कभी नहीं भूला पाएंगे।  सिरस के पेड़ पर झींझ को टांग देता और जब वर्षा होती तो उनका मजा ही बढ़ जाता था। आज न तो सांगर है न झींझ है। इसके अतिरिक्त जंगली फल पलपोटा खोते थे। आज जिनको रसभरी कहते हैं। आम भाषा में पलपोटन बोलते हैं । यह बहुत अधिक होते थे। जंगल में पके हुए पलपोटन जी भरकर खाते थे। आज भी पलपोटन होते हैं परंतु लोग उनको खाने से डरते हैं जबकि ये बड़े स्वादिष्ट और सेहतमंद होते हैं, विटामिनों से भरपूर होते हैं। जंगलों में होला, गेहूं की बालियां भूनकर भी खाने का आनंद लिया है परंतु अब चने पैदावार नहीं देते हैं।
जंगलों में बहुत लंबे समय तक किसी जोहड़ के किनारे पीपल के पेड़ की बंटी खाते थे। पीपल के पेड़ पर चढ़कर पकी हुई बंटी का मजा लेते थे। जब सूख जाती तो सूखी बंटी को भी बड़े चाव से खाते थे। आज न तो पीपल के पेड़ हैं और न बंटी। अधिकांश पीपल उखड़ गये हैं। कनीना स्व. मंगल सिंह ने बहुत से पेड़ लगाए थे इसी प्रकार भी  दीपचंद पहलवान ने लगाए थे जो या तो खत्म हो गए हैं या कुछ बचे हैं वहां पीपल के फल खाने से भी लोग हिचकिचाने लगे हैं। ये औषधिय फल हैं जिनका कोई मुकाबला नहीं होता। जंगली आम जमकर खाते थे। आज जंगली आम अर्थात नीम के पेड़ के फल कोई खाने से हिचकिचाते हैं।  एक विशेष आकार के सरकंडे से जंगली आम एवं गरीबों के आम, सबसे छोटे आम निंबोरी को तोड़ते थे और बड़े चाव से खाते थे। आज निंबोरी लगती है लेकिन उनको खाने से भी लोग डरते हैं। ऐसे कितने और फल थे जिनका मजा लेते थे। आज स्वस्थ शरीर से जी रहे हैं ,बस अब तो वो फल यादें रह गई है। न तो फल है ने हरी पत्तेदार सब्जियां हैं। उसे जमाने में वौलाई भरपूर मात्रा में होती थी, आज चौलाई की जगह चोलावा होता है। यहां तक की खट्टा पालक बहुत खाते थे, चटनी बनाते थे आज खट्टा पालक ढूंढने से भी नहीं मिलता। बथुआ बहुत खाते थे, बथुआ आज भी कुछ उपलब्ध है। जंगली टिंडा टिंडसी बोलते थे जंगली मतीरा, कचरी इतने अधिक होते थे कि खूब खाते थे। कचरी तो लंबे समय तक खाते थे। पकी हुई कचरी, जंगली कचरा खूब खाते थे। झूंडों में छुपे मिलते थे और हम उनको ढूंढ कर खा जाते थे। आज कचरी उपलब्ध तो होती है पर उनको खाते नहीं परंतु सब्जी वगैरह में जरूर डालकर खाते हैं। हमारे वक्त पकी हुई कचरी को बड़े चाव सेे खाते थे, कचरा बड़े चाव से, मातिरा ,जंगली मतीरा बहुत अधिक मधुर स्वाद का होता था। टिंडसी की सब्जी अलग स्वाद की होती थी। आज उन्हें भूलाना ही जरूरी है क्योंकि वे जंगल में होती नहीं। जंगल और वन समाप्त कर दिए हैं। यूं ही लोग जंगलों के पीछे लगे रहे तो भविष्य में इन चीजों को ढूंढने के लिए कहीं दूसरे जंगलों में जाना पड़ेगा।




मिलिये वार्ड दो के पार्षद दीपक चौधरी से
-जनसेवा के लिए हैं तैयार
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कनीना की आवाज।
नगरपालिका में अगर किसी परिवार की तीसरी पीढ़ी वर्चस्व बनाये हुए हैं तो वह दीपक चौधरी हैं। इनके दादा एवं पिता का दबदबा रहा है। दीपक चौधरी ने कहा कि वार्ड के लोगों ने उन पर विश्वास  जताया  है।  उसके  लिए दीपक  चौधरी  वार्ड  की  जनता  का  आभारी रहेगा। वार्ड  में  जो  भी  विकास  के  कार्य  होने  है ,उनको  करवाने  के लिए दीपक  चौधरी  हर  सम्भव  प्रयास  करेगा। इन कार्यों में सारे  वार्ड  में  सीसीटीवी कैमरे लगवाये  जाएंगे, स्ट्रीट लाइट  नई  लगाई  जाएगी, वार्ड  में सीवर की सफाई  करवाई  जाएगी, सफाई व्यवस्था  पर  पूरा  ध्यान  दिया  जाएगा, वार्ड  में पुरानी  जर्जर  इमारतों  को चिन्हित  किया जाएगा जो अचानक बरसातों  के   गिरने  की आशंका  बनी रहती  है,  उनको  गिरने  की  अनुमति ली जाएगी और सभी विकास कार्य करवाएं जाएंगे।
फोटो कैप्शन: दीपक चौधरी




वर्षों से होलीवाला सड़क के गंदे पानी का नहीं हो पाया प्रबंध
 -जल्द ही जोहड़ में भी लोग कर लेंगे कब्जा
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कनीना की आवाज।
कनीना में होली दहन स्थल तक वर्षों से गंदा पानी जमा होने की समस्या का कोई समाधान नहीं निकला है। एक पार्षद के घर के पास ही जब यह हालात होगी तो कस्बा की बदहालात का अंदाजा लगाना कठिन है। पानी वर्षा के अतिरिक्त होलीवाला जोहड़ का आता है। जब-तक नल नहीं आते तब तक गली में गंदा न के बराबर होता है किंतु नल आते ही गली में गंदा पानी भर जाता है। वर्षा होती है तो गली गंदे पानी से भर जाती है। लोगों का आवागमन इसी गंदे पानी से होता है। कई घर भी इसकी चपेट में आ रहे हैं। जब गंदा पानी बढ़ जाता है तो इंजन से पानी निकालकर सीवर ट्रिटमेंट प्लांट/एसटीपी तक पानी पहुंचाया जाता है। प्रशासन इस जोहड़ का स्थायी समाधान नहीं निकाल पाया किंतु अब लोगों ने इसका समाधान ढूंढ लिया है। कुरड़ी डालकर तथा रोड़े पत्थर डालकर, र्इंधन डालकर कब्जा करने की होड़ लग गई है, आने वाले चंद माह में इसका नामोनिशान मिटा सकते हैं।
इस गली का समाधान पाने के लिए हर अधिकारी से जहां पंकज एडवोकेट, वेद प्रकाश बाबूजी, कृष्ण कुमार तथा समीपी गांवों के भारी संख्या में लोग समय-समय पर मिले हैं किंतु कोई समाधान नहीं निकाल पाया।  इसी गली को पुन निर्मित कर देने से समस्या कम हो गई है किंतु स्थायी समाधान नहीं निकला है।  
लोगों की मांग है कि इस जोहड़ का गंदा पानी साफ करवाकर या तो इसे दर्शनीय स्थल के रूप में विकसित किया जाए या मत्स्य पालन केंद्र स्थापित किया जाए।
इस संबंध में नगरपालिका इंजन चलवाकर  सड़क पर खड़ा गंदा जल की निकासी कर देती है।
फोटो कैप्शन 06: गली में खड़ा गंदा पानी



रामबास के राजेश कुमार की मोटरसाइकिल चोरी, मामला दर्ज
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कनीना की आवाज।
 कनीना उप-मंडल के गांव रामबास के राजेश कुमार नामक व्यक्ति की मोटरसाइकिल अज्ञात चोर चोरी कर ले गए। उन्होंने पुलिस में बताया कि 14 मार्च को शाम 6 बजे रामबास था, उस समय उनकी बजाज मार्क की मोटरसाइकिल अज्ञात चोर चोरी कर ले गया। कनीना पुलिस ने मोटरसाइकिल चोरी का मामला दर्ज कर लिया है।




रुलाने वाला खुद अपनी बेकद्री पर रो रहा है
--लहसुन 80 रुपये किलो, विगत दिनों बिका 600 रुपये किलो
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कनीना की आवाज।
 जहां विगत समय में लहसुन 600 किलो तक बिका तो उपभोक्ताओं ने प्रयोग करना कम कर दिया था वहीं आज के दिन 80 रुपये किलो बाजार में मिल रहा है। जब लहसुन की कमी थी तो एक अलग प्रकार का लहसुन भी बाजार में उपलब्ध हुआ। लोगों में चर्चाएं भी चली कि चीन देश का लहसुन है। लोगों में लहसुन के प्रति रुझान घट गया था। बिना लहसुन के ही लोग सब्जी बनाने लगे थे, विशेष कर दाल भात बनाते समय दाल में लहसुन डालते हैं। ग्रामीण क्षेत्र के लोग ग्रामीण सब्जी खाटा का साग तथा अन्य सब्जियों में जमकर लहसुन डालते हैं। उनके लिए बड़ी दिक्कत रही उन्होंने प्याज का प्रयोग किया। प्याज अभी तक जहां 30 से 40 रुपये किलो बिक रहा है वहीं लहसुन के भाव धीरे-धीरे गिरते जा रहे हैं। एक बार फिर से लोग लहसुन की ओर आकर्षित होने लगे हैं। सब्जी विक्रेता इंद्रजीत शर्मा ने बताया कि लहसुन 600 रुपये किलो तक बिक चुका है किंतु अब इसके भाव गिरते ही जा रहे हैं। वर्तमान में 80 रुपये किलो खुले में बिक रहा है जबकि थोक में भाव और भी कम हैं। लहसुन के संबंध में लोगों से चर्चा की जिनके विचार इस प्रकार हैं-
बाजार में आज के दिन सब्जी मंडी में सस्ते भाव पर लहसुन मिल रहा है इसलिए लहसुन सस्ते में बेचा जा रहा है क्योंकि लोग दाल बनाते समय लहसुन प्रयोग करते हैं। वैसे तो लहसुन अधिक मात्रा में प्रयोग नहीं किया जाता फिर भी लोगों का रुझान घटता चला गया था। जहां पहले लहसुन की बिक्री घट गई थी और फिर से लहसुन की बिक्री में तेजी आ गई है।
-- योगेश कुमार, दुकानदार
दाल भात जो उत्तर प्रदेश एवं बिहार से आए हुए लोग अधिक प्रयोग करते हैं तथा होटलों में दाल फ्राई बनाई जाती है, लहसुन भी अधिक प्रयोग करते हैं लेकिन देसी सब्जियां खाटा का साग, लहसुन की चटनी आदि में लहसुन प्रयोग किया जाता है। अब फिर से लहसुन सस्ता होने से लोगों का रुझान बढ़ा है, फिर से लोग लहसुन खरीदने लगे हैं क्योंकि बाजार में पर्याप्त मात्रा मिल रहा है।
-- कमला देवी गृहणि
अब लहसुन की नई पैदावार आने से भाव घटना स्वाभाविक रूप से घटता है। दो-तीन महीने पहले लहसुन की कमी थी, इसलिए भाव तेज थे, अब लहसुन की पैदावार आ चुकी है इसलिए लहसुन के भाव घटते जा रहे हैं। अभी तो लहसुन के भाव और भी घट सकते हैं क्योंकि किसानों ने भारी मात्रा लहसुन उगाया है।
-डा. देवराज पूर्व कृषि अधिकारी
फोटो कैप्शन 01: लहसुन सब्जी मंडी में
 साथ में योगेश कुमार, कमला देवी तथा डा. देवराज





जन्मदिन पर पौधारोपण कर पर्यावरण संरक्षण का दिया संदेश वृक्षमित्र ने
--मनोज रामबास ने लगाये हें हजारों पौधे
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कनीना की आवाज।
समाज में जागरूकता फैलाने और पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से मनोज कुमार रामबास ने अपने जन्मदिन के अवसर पर पौधारोपण किया। यह पहल गांव रामबास में आयोजित की गई, जहां मनोज कुमार रामबास ने परिवार और दोस्तों के साथ मिलकर विभिन्न प्रकार के पौधे बिजलीघर से लेकर पशु अस्पताल तक व पशु अस्पताल परिसर में फलदार पौधे लगाए है । मनोज कुमार वृक्षमित्र नाम से जाना जाता है। जिन्होंने हजारों पेड़ पैधे निस्वार्थभाव से लगाये हैं।
इस अवसर पर मनोज कुमार ने कहा, जन्मदिन पर उपहार लेने से बेहतर है कि हम प्रकृति को कुछ दें। हर व्यक्ति को अपने खास दिन पर एक पौधा अवश्य लगाना चाहिए, जिससे पर्यावरण को लाभ मिले और भविष्य की पीढिय़ों को शुद्ध वायु मिल सके। साथ ही बताया की समस्त ग्रामवासियों के सहयोग से फरवरी से अब तक 200 से ज्यादा पौधे  लगा चुके हैं
कार्यक्रम में स्थानीय लोगों ने वृक्षारोपण के महत्व पर चर्चा की। उपस्थित लोगों ने इस पहल की सराहना की और संकल्प लिया कि वे भी अपने जन्मदिन पर पौधारोपण करेंगे।
इस पहल से न केवल पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि समाज में हरित वातावरण विकसित करने की प्रेरणा भी मिलेगी।
फोटो कैप्शन 02: मनोज कुमार पौधारोपण करते हुए।



दिव्यांग व्यक्ति से की मारपीट, मामला दर्ज
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कनीना की आवाज।
 कनीना उप-मंडल के गांव सीहोर निवासी संतोष कुमार ने कनीना पुलिस में उसके साथ मारपीट किए जाने का मामला साहिल नामक युवक के विरुद्ध  दर्ज करवाया है। पुलिस में संतोष कुमार ने बताया कि वह दिव्यांग है और 13 मार्च को अपने गांव के खेल के मैदान में कुर्सी पर बैठकर कबड्डी का मैच देख रहा था। अचानक साहिल पास आया और कुर्सी को धक्का मारा, कुर्सी से नीचे गिरा दिया। लात गुस्सों से पिटाई की, जान से मारने की धमकी दी। जब उठकर चलने लगा तो आगे से रास्ता फिर से रोक लिया फिर से थप्पड़ मुक्के जड़ दिए। पास खड़े एक व्यक्ति ऋषिराज ने उन्हें छुड़ाया। उनके बयान पर कनीना पुलिस ने साहिल के विरुद्ध मामला दर्ज कर लिया है।






बासौड़ा पर्व -17 मार्च को
सोमवार को मनाया जाएगा बासौड़ा पर्व
-तीन सप्ताह तक चलता है यह पर्व
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कनीना की आवाज।
 कनीना क्षेत्र में सोमवार को बासौड़ा का पर्व धूमधाम से मनाया जाएगा। यह पर्व पुराने समय से मनाया जाता आ रहा है। इस पर्व के प्रति लोगों में गहन आस्था है। इसे शीतला अष्टमी का पर्व भी कहते हैं। सोमवार को शीतला मां की पूजा करने के बाद समस्त परिवार बासी भोजन करेगा। करीब आधा दर्जन गांवों में बासौड़ा के छोटे मेले लगते हैं। गांव बव्वा में शीतला माता मेला लगता है। समाजसेवी सुरेंद्र यादव ने बताया कि सोमवार रात को जागरण आयोजित होगा तथा मंगलवार को माता का भंडारा लगेगा तथा बुधवार को मेला लगेगा। अक्सर यह पर्व होली के बाद सोमवार एवं बुधवार को मनाया जाता है।
  इस पर्व के तहत लोग रात को भोजन बनाकर रख देते हैं और सुबह होने पर माता स्थल पर ले जाकर उसकी पूजा करते हैं और फिर इसे ग्रहण किया जाता है।
इस त्योहार को बासौढ़ा, बासौड़ा, शीतला, पूजन तथा शीतला अष्टमी आदि नामों से जाना जाता है। चैत्र माह के रंगों के त्योहार होली के बाद अकसर सोमवार या बुधवार को भोजन बनाकर रखा जाता है। अगले दिन पूरा परिवार ही बासी भोजन खाता है।
बासौड़ा त्योहार मनाने के पीछे पुत्र कामना तथा शीतला रोगों से बचना माना जाता है। पुराने वक्त में चेचक या शीतला रोग अधिक होता था जिसमें लाखों व्यक्तियों की प्रतिवर्ष मृत्यु हो जाती थी। स्त्रियां शीतला माता की पूजा करके परिवार को रोगों से बचाने की प्रार्थना करती थी। तभी से यह त्योहार चला आ रहा है। त्योहार से एक दिन पूर्व विभिन्न पकवान बनाकर रख दिये जाते हैं। जिसमें चावल प्रमुख होता है। अगली रोज सुबह सवेरे उठ स्नान व शीतला माता की पूजा कर, जीवों को भोजन खिलाकर पूरा परिवार ही बासी भोजन करता है।
पुराने वक्त में बासी भोजन खाने के पीछे एक दंतकथा भी प्रचलित है जिसके अनुसार एक बुढिय़ा गांव से बाहर झोपड़ी में रहती थी। वह बासी भोजन करती थी जो ग्रामवासी देते थे। एक बार भयंकर शीतला रोग फैला। ग्रामीण रोग पीडि़त हो गए परन्तु बुढिय़ा  खुश व रोग रहित थी। ग्रामीणों ने बुढिय़ा से रोग रहित होने का कारण पूछा। बुढिय़ा ने बताया की वह बासी भोजन करती है, तभी से ग्रामीणों ने उनके पदचिह्नों पर चलना शुरू कर दिया। परम्परा वर्तमान में भी चली आ रही है।
बासौढ़ा के दिन चावल पकाकर आपसी आदान प्रदान करने की परम्परा भी चली आ रही है। इस परम्परा को कंडवारी नाम से जाना जाता है। पुत्रवती माता चावल पकाकर घर-घर बंटवाती है। प्रत्येक घर परिवार में यह प्रथा चली आ रही है बासी भोजन के पीछे वैज्ञानिक आधार भी माना जाता है। वर्तमान में भी कई रोगों से बचने के लिए बासी रोटी बताई जाती है। प्रत्येक गांव में माता स्थल बने हुये हैं जहां पूजा होती है।
कनीना में बना है माता शीतला मंदिर-
कनीना में माता शीतला मंदिर बना हुआ है तथा लोग प्रसाद के रूप में माता की मंढी पर भारी मात्रा में चावल एवं अनाज अर्पित कर देते हैं। चावल एवं अन्न के ढेर आगामी तीन सप्ताहों तक दिखाई देंगे।


जर्जर हो चला है कनीना से गाहड़ा सड़क मार्ग
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कनीना की आवाज।
 कनीना से गाहड़ा तक करीब 3 किलोमीटर का मार्ग अति जर्जर हो गया है। जिससे आवागमन में परेशानी हो रही है।
 उल्लेखनीय है कि कनीना से गाहड़ा, सीहोर तथा आगे चरखी दादरी आदि तक यह मार्ग पहुंचता है। और इसी मार्ग से होकर बव्वा, बहाला होकर रोहतक तक भी पहुंचा जा सकता है। यह मार्ग कुछ वर्षों पहले बना था किंतु अति जर्जर हो चला है। सुरेंद्र सिंह, सीटू ,बबली, दिनेश, इंद्रजीत आदि में बताया कि इस मार्ग पर पैदल चलना भी कठिन हो गया है, दुर्घटनाओं का अंदेशा बन गया है। इस मार्ग पर छोटे-छोटे गड्ढे बन गए हैं। कुछ जगह तो जल भराव से सड़क टूट गई है। कुछ जगह सड़क का नामोनिशान मिट गया है। इस मार्ग की अविलंब सुध ली जाए ताकि आवागमन सुचारु रूप से हो सके।















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