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Friday, March 21, 2025


 




विश्व जल दिवस 22 मार्च पर
जरूरत है वर्षा जल संरक्षण की
-कनीना में 6 जोहड़ों की हो खोदाई
-पेयजल को बहा रहे हैं नालियों में
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कनीना की आवाज।
दिनोंदिन भूमिगत जल कम होता जा रहा है। कनीना को पहले ही डार्क जोन घोषित किया हुआ है किंतु पेयजल और भूमिगत जल को खराब करने में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है।
जोहड़ों की हो खोदाई-
कनीना क्षेत्र में करीब छह जोहड़ पानी से भरे रहते हैं। इन जोहड़ों की खोदाई की जरूरत है। कनीना के दो प्रमुख जोहड़ होलीवाला और कालरवाली जोहड़ लबालब पानी से भरे हैं।  खोदाई न होने और जल की को सही ढंग से न सहेजे जाने के कारण गंदा जल दूर-दराज तक फैल रहा है और सैकड़ों हरे पेड़ों को लील लिया है।
 वर्षा का जल सहेजे-
 सरकार द्वारा जोहड़ों का पानी सहेजने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं किंतु अभी तक कनीना के लिए जोहड़ों के पानी को सहेजने के लिए अनुदान नहीं आया है। अप्रैल माह में यह अनुदान आए जाने की संभावना जता रहे हैं। वर्षा जल को सहेजने की जरूरत समझी जा रही है। घरों में वर्षा जल कउ्ढों में जमा करके काम मे लाया जा सकता है।
विगत 20 वर्षों में कनीना क्षेत्र में जलस्तर गिरता ही जा रहा है। कभी 20 मीटर गहराई पर होता था जो अब 70 मीटर गहरा जा चुका है। पूरा जिला महेंद्रगढ़ ही डार्क जोन घोषित हो चुका है। दिनोंदिन जल का दोहन हो रहा है किंतु जल की आपूर्ति जो वर्षा से होती है वो घटती ही जा रही है। करीब 20 वर्षों में कनीना क्षेत्र में हुई वर्षा पर नजर डाले तो पता चलता है कि वर्ष 1995 व 1996 में कुछ वर्षा हुई जबकि अन्य वर्ष अल्प वर्षा हुई है।
नालियों में बहा रहे हैं जल-
कनीना क्षेत्र ही नहीं अपितु आस पास के लोग पेयजल से गाडिय़ां धोते, नालियां साफ करते, भैंस को नहलाते देखे जा सकते हैं और पेयजल से गलियों को साफ करते है। भूमिगत जल का दोहन हो रहा है। यू ही जल का दोहन हुआ तो जल पाताल में पहुंच जाएगा।
31 हजार हेक्टेयर पर होती है कृषि-
  कहने को तो कनीना क्षेत्र 52 हजार हेक्टेयर का स्वामी माना जाता है किंतु वर्तमान में 31 हजार हेक्टेयर के करीब भूमि पर खेती की जाती है। यहां भूमिगत जल स्तर में निरंतर गिरावट आ रही है। किसान भी बारिश के समय फव्वारा चलाते, सउ़क तथा रास्तों में फव्वारा चलाते देखे गये हैं।  करीब 20 वर्षों में कनीना क्षेत्र में हुई वर्षा पर नजर डाले तो पता चलता है कि वर्ष 1995 व 1996 में कुछ वर्षा हुई जबकि अन्य वर्ष अल्प वर्षा हुई है।
 घटते जल स्तर को लेकर कृषि वैज्ञानिक हैं चिंतित-
 घटते जल स्तर को लेकर कृषि वैज्ञानिक हैं चिंतित हैं। इस संबंध में कृषि वैज्ञानिकों ने 2014 से अब तक दर्जनों गांवों में किसान शिविर लगाकर आने वाली जल समस्या के बारे में जानकारी दी चुकी है। ताप, वायु, हिम, वर्षा में बदलाव के पीछे सूर्य की ऊष्मा में बदलाव, महासागरों के जल बहाव में परिवर्तन, जीवाष्मी ईंधन का अधिक जलाना, वनों की कटाई, शहरों के आस पास अंधाधुंध भवन निर्माण, जल का दोहन आदि प्रमुख कारण माने जा रहे हैं जिसके चलते ग्रीन हाउस प्रभाव बनता है जिसके कुप्रभावों में पृथ्वी का अधिक गर्म होना, समुद्र के जलस्तर में बढ़ोतरी, वर्षा की मात्रा में बदलाव, अधिक कार्बन डाइआक्साइड के चलते उगने वाली पौधों की प्रजातियों में प्रभाव पड़ता है।
  क्या कहते हैं कृषि वैज्ञानिक-
पूर्व कृषि विस्तार अधिकारी डा देवराज यादव का कहना है कि वे किसानों को शिविर लगाकर समझा रहे हैं कि वर्षा की कमी या प्रतिकूल होने के क्या कारण है जिसके लिए किसान अहं योगदान दे सकते हैं। उन्होंने बताया कि भूमिगत जल स्रोतों को पुन: प्रभावी करके, सिंचाई के लिए आधुनिक मशीनों एवं तरीकों को अपनाकर, धान की अवशेष, गेहूं के भागों को जलाना नहीं चाहिए। उनके अनुसार अधिक से अधिक पौधारोपण करके, ऊर्जा के नवीनीकरण तरीकों को अपनाकर, फसलों में कम से कम रासायनिक पदार्थ डालकर, गोबर गैस का प्रयोग करके, खान पान की आदतों में बदलाव करके, जल का कम दोहन करके, फसल की आवश्यकतानुसार सिंचाई करके भू जल स्तर को कम होने से बचाया जा सकता है। अगर इसी प्रकार वर्षा के जल का दोहन हुआ तो आने वाले समय में गंभीर समस्या बन जाएगी।
फोटो कैप्शन: कनीना के जोहड़ जिनमें खड़ा भारी मात्रा में जल
  साथ में डा देवराज पूर्व कृषि अधिकारी







कनीना में स्थापित की जाए आईआईटी-अतरलाल
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कनीना की आवाज।
बसपा के अतरलाल ने केन्द्र सरकार द्वारा हरियाणा में आईआईटी स्थापित करने के निर्णय का स्वागत करते हुए राज्य सरकार से इसे अटेली विधानसभा क्षेत्र में स्थापित करने की मांग की है। उन्होंने इस सम्बन्ध में हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी, स्थानीय विधायक एवं स्वास्थ्य मंत्री आरती सिंह राव व लोकसभा सांसद चौधरी धर्मबीर सिंह से अटेली हलका में आईआईटी स्थापित करने की मांग उठाई है।
विस्तृत जानकारी देते हुए अतरलाल ने कहा कि मापदंड के हिसाब से अटेली हलका सबसे उपयुक्त जगह है। फिजिबिलिटी और कनेक्टीविटी के हिसाब से अटेली सर्वोत्तम स्थान है। यहाँ कनीना, गुढ़ा, कैमला, अटेली तथा मिर्जापुर बाछौद रेलवे स्टेशन लगते हैं। निकट मिर्जापुर बाछौद में हवाई पट्टी है। दो-दो राष्ट्रीय राजमार्ग तथा कई राज्यमार्ग यहाँ से निकलते हैं। पानी तथा जमीन की कोई समस्या नहीं है। वैसे भी अटेली क्षेत्र का हक बनता है क्योंकि इस हलके में कोई सरकारी विश्वविद्यालय, मेडिकल कालेज, आर्युेवैदिक कॉलेज, लॉजिस्टीक हैब, इंजीनियरिंग कॉलेज जैसे बड़े जनहितकारी संस्थान अब तक नहीं बनाए गए है। उन्होंने ज्ञापन में अटेली हल्का के मिर्जापुर बाछौद, भोजावास, दौंगड़ा अहीर, बजाड़, गणियार, कनीना, खेड़ी तलवाना, बाघोत, सागरपुर, चेलावास, उन्हाणी तथा सेहलंग गांवों को आईआईटी के लिए औचित्यपूर्ण तथा उपयुक्त स्थान बताते हुए कनीना या अटेली क्षेत्र में ही आईआईटी स्थापित करने की मांग पर जोर दिया है।




 अनाथ आश्रम मोड़ी मुद्दा
-ग्रामीण मिले एसडीएम से,चाहते हैं खाली करवाना
-संचालक का कहना है कि लिया है लीज पर भरता हूं पैसे
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कनीना की आवाज।
 कनीना उपमंडल के गांव मोड़ी स्थित अनाथ आश्रम विगत दिनों से चर्चाओं में है। यह आश्रम कुछ वर्षों से चल रहा है और इसमें कुछ अनाथ एवं बेसहारा  लोग रह रहे हैं। मोड़ी ग्रामीणों का कहना है कि यह अवैध कब्जा किया हुआ है और इसे खाली करवाया जाए ताकि इसमें लाइब्रेरी आदि चलाई जा सके। इस संबंध में उच्च अधिकारियों से कई बार ग्रामीण मिल चुके हैं। अधिकारी भी इसे खाली करवाने का बार-बार आश्वासन दे रहे हैं किंतु अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। इसी मुद्दे को लेकर के मोड़ी गांव के रामावतार, कर्ण सिंह, ईश्वर, रामनिवास, जग्गन, विजय, कुलदीप आदि एसडीएम कनीना से शुक्रवार को मिले। एसडीएम कनीना ने उनकी बात को सुना। सभी ग्रामीणों अनाथ आश्रम को खाली करवाने की बात कहीं साथ में अनेक आरोप भी लगाए। इसको लेकर एसडीएम डा. जितेंद्र सिंह ने उन्हें बताया कि वे सोमवार को मौके पर जाकर हालात को देखेंगे। जिसको लेकर के मोड़ी के ग्रामीण अब सोमवार का इंतजार करेंगे। ग्रामीणों का कहना है कि मोड़ी अनाथ आश्रम पर पवन नामक व्यक्ति अवैध कब्जा किए हुए है और इसमें जो इंसान रखे जाते हैं उनको ताले में बंद कर कैदियों की भांति रखा जाता है। उन्होंने कई आरोप भी पवन कुमार पर लगाये।
उधर अनाथ आश्रम चला रहे पवन राठौड़ का कहना है कि उन्होंने कोई कब्जा नहीं किया है अपितु पंचायत से आश्रम लीज पर लिया हुआ है। 3 साल पहले लीज कर लिया था और अब तक 90 हजार रुपये लीज की राशि प्रतिवर्ष 30000 रुपये दे रहा हूं। ऐसे में यदि यह अवैध है तो फिर पंचायत इस पैसों को क्यों खर्च कर रही है? उनका यह भी कहना है कि अगर पंचायत इसे खाली करवाना चाहती है तो थोड़ा समय करीब एक साल का दिया जाए ताकि इसमें रह रहे लोगों को अन्यत्र स्थानांतरित किया जा सके।



लड़की गुम-गुमशुदगी का मामला दर्ज
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कनीना की आवाज।
 कनीना उप-मंडल के एक गांव से करीब 20 वर्षीय लड़की 18 मार्च से गुम है। वह सुबह 10 बजे कालेज के लिए निकली थी वापस नहीं लौटी। उसके फोन पर भी फोन नहीं जा रहा है। हर जगह तलाश की गई किंतु कहीं नहीं मिली। स्वजनों ने दीपक , राजस्थान के एक व्यक्ति पर शक जाहिर किया है। कनीना पुलिस में गुमशुदगी का मामला दर्ज कर लिया है।






25 मार्च के बाद सरसों की आवक होने की उम्मीद
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कनीना की आवाज।
कनीना मंडी में गेहूं एवं सरसों की सरकारी खरीद होगी किंतु अभी तक अनाज मंडी सूनी पड़ी है। 25 मार्च तक सरसों की आवक होने की उम्मीद है वहीं अप्रैल के दूसरे सप्ताह तक गेहूं के आने की उम्मीद है।  इस वर्ष गेहूं का समर्थन मूल्य 2425 रुपये प्रति क्विंटल किया हुआ है जबकि सरसों का समर्थन मूल्य 5900 रुपये प्रति क्विंटल रखा हुआ है।
 व्यापार मंडल के उप प्रधान रविंद्र बंसल ने बताया कि 25 मार्च तक खुली मंडियों सरसों की आवक शुरू हो जाती है। अप्रैल के दूसरे सप्ताह में गेहूं के आने की संभावना होती है। सरकारी खरीद के सरकार ने आदेश जारी कर दिये हैं।
कनीना क्षेत्र में इस वर्ष गेहूं की फसल करीब 9500 हेक्टेयर पर खड़ी है। जबकि 19500 हेक्टेयर पर सरसों की बिजाई की गई थी। किसान सरसों फसल कटाई में जुटे हुए हैं। वहर वर्ष गेहूं के मुकाबले सरसों अधिक क्षेत्रफल पर उगाई जाती है।
बहरहाल कनीना मंडी सूनी सूनी नजर आ रही है। कनीना की नई अनाज मंडी स्थित चेलावास में सरकारी खरीद होती है। आढ़ती ग्राहकों के आने का इंतजार कर रहे हैं। ज्यों ही पैदावार मंडियों में आती है तब हलचल बढ़ जाती है। इस वक्त सरसों पैदावार लेने में किसान लगे हुए हैं। चूंकि वर्तमान में दो अनाज मंडियां होने के कारण नई अनाज मंडी कनीना में ही खरीद की जाएगी। मौसम में बार बार बदलाव के चलते सरसों की पैदावार लेने में देरी हो गई है। किसान कृष्ण सिंह, रोहित कुमार, मनोज कुमार आदि ने बताया कि सरसों की पैदावार लेने में वे लगे हुए हैं।
फोटो कैप्शन 04:सूनी पड़ी कनीना अनाज मंडी






अभी तक कनीना उप-नागरिक अस्पताल को नहीं मिला है प्रथम परामर्श इकाई का दर्जा
--100 बेड का अस्पताल करने की मांग
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कनीना की आवाज।
 सेवा भारती हरियाणा की कनीना इकाई द्वारा लंबे समय से कनीना के उप-नागरिक अस्पताल को एफआरयू/ प्रथम परामर्श इकाई का दर्जा देने की मांग की जा रही है और स्वास्थ्य मंत्री आरती सिंह राव से भी मिल चुके हैं किंतु अभी तक मांग सिरे नहीं चढ़ पाई है। साथ में 50 बेड के उप-नागरिक अस्पताल अपग्रेड करके 100 बेड का बनाये जाने की मांग की है। वर्तमान में यह 50 बेड का अस्पताल है।       कनीना के सुरेश शर्मा, जगदीश आचार्य, योगेश अग्रवाल, सोमदत्त, यादराम यादव, दिनेश गुढ़ा आदि ने यहां बताया कि कनीना उप नागरिक अस्पताल वर्तमान में 50 बेड का है किंतु यहां 84 कमरे उपलब्ध है। यहां एक एसएमओ के अतिरिक्त 8 डाक्टरों के पद भरे हुये हैं। एक एसएमओ का पद तथा दो एमओ के पद रिक्त हैं चूंकि यहां दो एसएमओ के पद हैं। अब यह मुद्दा कनीना के प्रधान पद के दावेदारों का घोषणा पत्र में शामिल हो चुका है। सभी दावे कर रहे हैं कि जीत के बाद वे इसे एफआरयू का दर्जा दिलवा देंगे।
 जब अटेली से विधायक सीताराम यादव होते थे उस वक्त भी यह मांग जोर-शोर से उठाई गई थी। मांग सिरे नहीं चढ़ पाई थी कि चुनाव आ गये। सेवा भारती हरियाणा की कनीना इकाई ने एक पत्र भेज कर कनीना के उप-नागरिक अस्पताल को एफआरयू/ प्रथम परामर्श इकाई का दर्जा देने की मांग के लिए आरती सिंह राव को पत्र भेजा था। साथ में 50 बेड के उप-नागरिक अस्पताल अपग्रेड करके 100 बेड का बनाये जाने की मांग की है। वर्तमान में यह 50 बेड का अस्पताल है। यह अस्पताल 100 बेड के सर्वथा उचित है । सैकड़ों मुफ्त चिकित्सा शिविर लगाने वाले सेवा भारती ने के सदस्यों ने बताया कि इस संबंध में उन्होंने आरती सिंह राव को भी एक पत्र भेजकर भी मांग की गई थी कि कनीना के उप-नागरिक अस्पताल में एफआरयू की सुविधा प्रदान की जाए। साथ में 100 बेड का कनीना का अस्पताल बनाया जाए। उन्होंने बताया कि वे इस मांग को लेकर कई अधिकारियों से मिल चुके हैं और सभी ने मांग को उचित ठहराते हुए इस मांग को सिरे चढ़ाने की बात कही है।




स्टेट अवार्डी शिक्षकों का खोया हुआ सम्मान किया जाए बहाल
-सेवानिवृत्ति की उम्र बढ़ाकर, दे दो अग्रिम वेतनवृद्धियां
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कनीना की आवाज।
प्रदेश के स्टेट अवार्डी शिक्षकों का खोया हुआ सम्मान वापस दिलवाने की मांग बढ़ती ही जा रही है। स्टेट अवार्डी शिक्षकों को न  तो 2 साल का अतिरिक्त सेवा विस्तार और न ही दो अतिरिक्त वेतन वृद्धियां दी जा रही है जिसके कारण कर्मचारी एवं स्टेट अवार्डी शिक्षकों में रोष है।  स्टेट अवार्डी शिक्षकों की सेवानिवृत्ति की उम्र 58 साल से 60 किया की जाए। यद्यपि विगत सरकार में सभी शिक्षकों की 2014 में भी 58 से बढ़कर 60 करने का निर्णय लिया था। प्रदेश के स्टेट अवार्डी शिक्षकों की दो साल सेवा बहाल की जाए साथ में सभी कर्मियों की सेवानिवृत्ति की उम्र 60 साल की जानी चाहिए। यह केंद्र की तर्ज होगी। जिससे कर्मचारियों का भी हित होगा और विद्यार्थियों का भी हित होगा। उल्लेखनीय है कि सेवानिवृत्ति की उम्र सभी राज्यों में हरियाणा से अधिक है। ऐसे में हरियाणा में भी यह उम्र बढ़ाई जाए।


एसीपी में तदर्थ सेवा का दि






या जाए लाभ
-दस-दस सालों की तदर्थ सेवा कर सेवानिवृत्त हो रहे हैं शिक्षक
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कनीना की आवाज।
 सरकारी स्कूलों में कार्यरत कर्मचारियों की तदर्थ/एडहाक सेवा का लाभ उनकी एसीपी(सुनिश्चित सेवा प्रगति) में शामिल किया जाए। यह मांग अध्यापक नेताओं ने सरकार से यहां की है।
  यहां जारी एक बयान में अध्यापक नेताओं निर्मल शास्त्री,कंवरसेन वशिष्ठ एवं धर्मपाल शर्मा ने कहा कि प्रदेश में करीब 30 हजार ऐसे शिक्षक हैं जिनको 20-20 वर्षों की सेवा पर एक ही एसीपी लग पाया है। सरकार पहले दस, बीस एवं तीस वर्ष पर तो अब आठ, सोलह एवं 24 वर्षों के बाद एसीपी का लाभ दे रही है। ऐसे में उनकी एसीपी लाभ में तदर्थ या अस्थाई नौकरी का लाभ नहीं दिया गया है। इस बात को लेकर शिक्षकों में रोष है और वे वर्षों से एसीपी के लाभ में अस्थाई एवं तदर्थ सेवा का लाभ देने की मांग कर रहे हैं। बार बार सरकार से मांग की जाती है किंतु सिरे नहीं चढ़ पाती है।

 

 

किसान गजराज सिंह की पहल पर
-पूरा गांव

मोड़ी कर रहा है जल संरक्षण
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कनीना की आवाज।
एक पूरा परिवार ही नहीं अपितु एक ढ़ाणी के सभी लोग बारिष का पानी न केवल फसल की सिंचाई में काम ले रहे हैं अपितु वाटर रिचार्ज भी करके जनहित के काम में लगे हुए है। यह ढ़ाणी मोड़ी गांव की है जो जिला महेंद्रगढ़ का ही एक गांव है।
  इस ढ़ाणी के लोगों को यह नेक सलाह कृषि विभाग के एक अधिकारी ने दी और इस ढाणी के एक जन ने सभी को पानी की बचत करने की सलाह देकर न केवल घरों का गंदा जल रिचार्ज करने का मन बनाया अपितु वर्षा का समस्त छतों का जल सिंचाई के काम में लेने तथा उसे स्टोर करने का मन बनाया। यह कहानी मोड़ी गांव की एक ढ़ाणी धोला कुआं के लोगों की है।
 इस ढ़ाणी के पूर्व सरपंच गजराज सिंह को करीब चार वर्षों पूर्व कृषि अधिकारी एएससीओ से भेंट हुई थी जिन्होंने बताया कि पानी का दोहन यूं ही होता रहा तो आने वाले समय में पानी की भयंकर किल्लत खड़ी हो जाएगी। इसके लिए उन्होंने रेन वाटर स्टोरेज एवं उस जल से सिंचाई करने तथा घरों से निकलने वाले गंदे जल से भूमिगत जल को रिचार्ज करने की सलाह दी। यह सलाह किसान एवं पूर्व सरपंच गजराज सिंह को इतनी अधिक प्रभावित कर गई कि उन्होंने समस्त ढ़ाणी के लोगों को मिल बैठकर छतों का बारिष से बहने वाला जल दो कुंडों में इकट्ठा करने की सलाह दी और सभी प्रसन्न हुए।
  गजराज सिंह बताते हैं कि वर्तमान में समस्त ढाणी के लोगों ने अपनी छतों से वर्षा का बहने वाला जल धरती तक पाइपों से लाकर दो कुंडों में छोड़ रखा है जो सिंचाई के काम आता है वहीं घरों का समस्त गंदा जल नालियों द्वारा एक वाटर रिचार्ज बोर में जाकर गिरता है जिससे भूमिगत जल रिचार्ज हो रहा है। उनका कहना है कि सभी लोग इस विधि का उपयोग करे तो वो दिन दूर नहीं जब भूमिगत जल की समस्या नहीं बनेगी।
कई बार अल्प संसाधन होते हुए भी कोई किसान अपनी मेहनत के बल पर ऐसा करिष्मा कर दिखलाता है जिसके चलते उनके पदचिह्नों पर अन्य किसान भी चलने को मजबूर हो जाते हैं। जिला महेंद्रगढ़ के यूं तो कई किसान अपने अद्भुत मेहनत के बल पर नाम कमा चुके हैं किंतु कनीना उप-मंडल के गांव मोड़ी का एक साधारण सा किसान अल्प संसाधनों के चलते न केवल जल संरक्षण में अहं भूमिका निभा रहा है अपितु आधुनिक खेती, जैविक कृषि, बागवानी एवं सोलर ऊर्जा का उपयोग करके किसानों को अपनी बनाई राह पर चलने को मजबूर कर रहे हैं।
   किसान गजराज के इस रिचार्ज बोर से करीब एक हजार लीटर जल प्रतिदिन भूमि में चला जाता है। सभी ढाणी के किसानों ने अपने घरों की छतों को साफ करवा रखा है जिसके चलते वर्षा का समस्त जल पाइपों से होकर कुंडों में चला जाता है जो या तो फसल के काम आता है या फिर रिचार्ज बोर से जल संरक्षण का कारण बनता है।
  किसान गजराज सिंह वर्ष 1990 से लगातार खेती करते आ रहे है और नए प्रयोग करने के लिए उतावले नजर आते हैं। घर में पढ़ा लिखा परिवार होने के कारण परिवार को समझाना आसान रहता है। उनका मानना है कि हर घर एवं हर किसान को इस विधि से जल का संरक्षण करना चाहिए ताकि पानी की कमी एवं अनावश्यक खर्च को बचाया जा सके। किसान उनकी योजना से प्रसन्न हैं।

 

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