लड़की हुई गुम, एक व्यक्ति पर कहीं उसे छुपाने का शक जाहिर
--मामला दर्ज
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कनीना की आवाज। कनीना उप-मंडल के एक गांव से 19 वर्षीय एक लड़की लड़की 10 मार्च को सुबह बिना बताए कहीं चली गई। उसके पिता ने कनीना पुलिस में गुमशुदगी का मामला दर्ज करवाते हुए राहुल नामक युवक पर सक जाहिर किया है।
उन्होंने कनीना पुलिस में बताया कि वह मेहनत मजदूरी करता है तथा चार बच्चे हैं जिनमें दो लड़के और दो लड़कियां हैं। 19 वर्ष की उनकी लड़की 10 मार्च से सुबह 4 किसी को कुछ बिन बताएं कहीं चली गई। उन्होंने शक जाहिर किया है कि राहुल नामक व्यक्ति ने उसे कहीं छुपा रखा है। कनीना पुलिस ने गुमशुदगी का मामला दर्ज कर लिया है।
दुलेंडी पर लगेगा मेला, संत स्वयं खेलते हैं होली
-14 मार्च को लगेगा मेला
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कनीना की आवाज। बाबा उधोदास मंदिर पर होली मेला लगने जा रहा है। आठ मार्च को बाबा उधोदास की याद में वर्षों से विशाल मेला लगने जा रहा है। भक्तों की भीड़ यहां जमा होती है वहीं संत लालदास स्वयं भक्तों के संग होली खेलते हैं।
रणधीर सिंह भक्त ने बताया कि कनीना से नौ किमी दूर ग्राम जैनाबाद में बाबा उधोदास का भव्य मंदिर स्थित है। इसी मंदिर के सामने बाबा की समाधि तथा बाबा के बाद में आए उनके शिष्यों की समाधियों वाला मंदिर है। इन समाधियों में सबसे पहले बाबा उधोदास की समाधि है। इस समाधि के ऊपर की ओर झांक कर देखे तो सैकड़ों वर्ष पुरानी पेंट व ब्रुश से की हुई कलाकारी दिखाई पड़ती है जो आज भी अपनी आब नहीं खो पाई है। यह वही स्थान है जहां अनवरत पूजा अर्चना का सिलसिला चलता रहता है तथा दीप जलते रहते हैं।
होली के दिन भजन-कीर्तन के समय यहां भारी भीड़ जुटती है। प्रत्येक पूर्णिमा के दिन यहां का नजारा देखने लायक होता है जब प्रवचन, भजन एवं कीर्तन का आगाज किया जाता है किंतु रंगों के त्योहार होली की रात को यहां विशेष जागरण चलता है तथा दिन के समय ढोल एवं नगाड़ों के बीच होली जमकर खेली जाती है। महंत लालदास के साथ होली खेलते भक्तों को देखा जा सकता है। यहां पर हरियाणा ही नहीं अपितु दूसरे राज्यों के भक्तजन भी आकर मन्नतें मांगते हैं। माना जाता है कि उनकी मन्नत पूर्ण हो जाती है जिसके चलते वे दंपति यहां गठ जोड़े की जात देने आते हैं। गांव जैनाबाद के पास से कंशावती नदी बहती थी। इसी नदी के किनारे पर उधोदास का जन्म हुआ। उधोदास धुन के पक्के और मन के सच्चे थे। उनके गुरू का नाम दाताराम था। उधोदास ने कंशावती नदी के किनारे एक वृक्ष के नीचे तप और ध्यान लगाते हुए दुखियों के दर्द को मिटाया।
बाबा उधोदास की समाधि बनी हुई है जहां अनवरत दीपक जलता रहता है। ढफ और नगाड़ों के बीच हर्षोल्लास के साथ महंत लालदास जी धुलेंडी खेलते हैं। बाबा लालदास ने गायों के लिए बाबा के नाम पर एक गौशाला बनवाई हुई है। संत लालदास की देखरेख में गांव ही नहीं अपितु मंदिर को चार चांद लग चुके हैं।
फोटो कैप्शन: :जैनाबाद का उधोदास आश्रम।
होली दहन तथा होली मेले की तैयारियां पूर्ण
-13 मार्च होलिका दहन, 14 मार्च दुलेंडी मनेगी
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कनीना की आवाज। कनीना में होली दहन और होली मेले की तैयारी पूर्ण हो गई है। ज्यों ही बाबा मोलडऩाथ मेला संपन्न होता है उसके ठीक 4 दिन बाद होली का पर्व मनाया जाता है। करीरा रोड़ के पास जोहड़ के किनारे होलिका दहन होता है। वही होली मेला भी भरता है। उस मेले की सबसे बड़ी विशेषता है कि दूरदराज से महिलाएं व्रत करके यहां पहुंचती है, पूजा अर्चना दिनभर करती हैं। उनके बच्चों को बाबू वेद प्रकाश समाजसेवी पकोड़े का पकवान खिलाते हैं। लंबे समय से यह परंपरा चली आ रही है।
होली मेला होली दहन की खुशी मनाया जाता है। महिलाएं ढाल बिरकला लेकर के पूजा अर्चना करने आती है और इसी जोहड़ पर होलीवाला जोहड़ स्थल पर पहुंचती है। यहीं पर विगत वर्षों से मेला लगने लगा है। होली दहन इस बार 13 मार्च को होगा। मेले में जहां दुकान लगाने वाले और बच्चों में खुशी है। बच्चे जहां होली पर महिलाओं के साथ जाते हैं और पकवान आदि खाते हैं।
वर्षों से कनीना में एकमात्र स्थान होलीवाला पर होली दहन होता रहा है जिसके चलते जोहड़ का नाम भी होलीवाला पड़ा है।
क्या कहते लोग -
कनीना क्षेत्र के बाबू वेद प्रकाश का कहना है कि उनके घर के पास होलिका दहन होता है इसलिए वे बच्चों की खुशी के लिए पकवान पकोड़े के रूप में बनाते हैं और विगत वर्षों से खिलाते आ रहे हैं। कभी इस मेले के दृष्टिगत खेलकूद प्रतियोगिता होती थी वह बंद हो चुकी है। होली दहन के लिए कस्बे के अधिकांश लोग यहां आते हैं। कुछ वर्षों से कनीना मंडी में होलिका दहन अलग मनाया जाने लगा है। कनीना मंडी में गुजराती होली मनाई जाती है।
कनीना के बुजुर्ग में राजेंद्र कुमार बताते हैं कि होली दहन के बाद रंग डालने की परंपरा शुरू हो जाती है और दुलेंडी को तो जमकर होली खेली जाती है।
होली स्थल के पास कुरड़ी डालकर लोग हाली स्थल पर भी अतिक्रमण करते आये हैं। अभी भी कुरडिय़ां पड़ी हुई हैं।
फोटो कैप्शन होलिका दहन स्थल जहां मेला लगेगा
मेरा शिक्षा का सफर पुस्तक से साभार- 107
- बेरोजगारी में गाये भी चराई, दुकानदारी भी की -याद आती है दुकान
- ईमानदारी का पर्याय बनी है जैनिया की दुकान
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कनीना की आवाज। मोहल्ला मोदीका, कनीना निवासी डाक्टर होशियार सिंह यादव विश्व रिकार्ड धारक 30 अप्रैल 2024 को शिक्षा के क्षेत्र में लंबी सेवा देकर सेवानिवृत्त हो चुके हैं। वो वैसे तो कभी बेरोजगार नहीं रहे क्योंकि अपना ट्यूशन का कार्य पढ़ते वक्त शुरू कर दिया था किंतु जब बीएड रेवाड़ी से कर रहा था तो दुकान के लिए थोड़ा बहुत सामान लेकर आता था। 6 सालों तक दुकान पर बैठकर दुकानदारी भी की। यहां तक की गायें भी चराई, शिक्षा भी पाई, ट्यूशन भी किया, केंद्र और हरियाणा सरकार के स्कूल और कालेज में भी शिक्षण कार्य किया। उनका संबंध जयनारायण की दुकान से है जिसे आज पूरे क्षेत्र के लोग जैनिया की दुकान नाम से जानते हैं, एक ईमानदारी का पर्याय बन चुकी हैं। चाहे डाक्टर होशियार सिंह को कोई नहीं जानता हो लेकिन उसके पिता जयनारायण के नाम पर बनी दुकान जैनिया की दुकान आज भी मशहूर है। आइये सुनते हैं होशियार सिंह की जुबानी उनकी कहानी----
जब मैं 1985 में पढ़ रहा था तभी मोदीका मोहल्ला में स्थित जयनारायण की दुकान पर काम शुरू कर दिया था। जयनारायण मेरे पिता का नाम है और उन्हें शार्ट में लोग जैनिया की दुकान कहते हैं जिनका देहांत 1989 में निमोनिया बीमारी के कारण हो गया था। चाहे किसी भी कोने पर जाकर पूछे की जैनिया की दुकान कहां हैं,लोग तुरंत बता देते हैं। बच्चा, बूढ़ा, महिला सभी की जुबान पर जैनिया की दुकान नाम प्रसिद्ध है। यह दुकान लंबे समय से चली आ रही है। इस पर जहां सभी भाइयों कृष्ण कुमार, भरपूर सिंह, होशियार सिंह, करतार सिंह ने बारी बारी कार्य किया तत्पश्चात योगेश कुमार जिस योगी या भीम आदि नामों से जाना जाता है, उन्होंने काम संभाला और वर्तमान में जहां रोहित कुमार भी काम संभाले हुए हैं। इस दुकान पर बच्चा बड़ा कोई भी जाए सभी के साथ समान व्यवहार किया जाता है। यदि परिवार का कोई सदस्य सामान लेने जाता है तो उसे भी उसी क्रम में सामान दिया जाए सामान मिलेगा जिस क्रम में वह आकर खड़ा हुआ है अर्थात पहले आने वाले को पहले समान मिलेगा और बाद में आने वालों को बाद में समान मिलेगा। इस दुकान पर जहां पहले टाफी आदि बहुत चलती थी और ट्राफी जट्टू एवं पिं्रस स्वीट्स रेवाड़ी से खरीद कर लानी पड़ती थी। जब में बीएड कर रहा था तब यहां से टाफी खरीदाकर लाता था। वैसे तो बहुत कम टाफी ला पात था इसलिए अधिक मात्रा में टाफी लाने के लिए भाई कृष्ण ही जाता था। घर पर स्थित इस दुकान पर 6-7 सालों तक काम किया और फिर ऐसा ट्यूशन में लगा कि इस दुकान का कार्य बिल्कुल छोड़ दिया और छोटे भाई करतार को यह कार्य सौंप दिया गया। आज भी यह दुकान कनीना में मशहूर है। या तो योगी जिसे भीम आदि नाम से जानते हैं, को लोग जानते हैं या फिर जैनिया की दुकान नाम से जानते हैं। इस दुकान के कारण ही परिवार के भरण पोषण की शुरुआत हुई। आज जहां सारे भाई अलग-अलग क्षेत्र में काम कर रहे हैं। कृष्ण कुमार जिसने छोटे-मोटे काम संभाल रखे हैं वहीं भरपूर सिंह अपनी दुकान गाहड़ा रोड़ पर बना रखी है। करतार ने स्पेयर पार्ट्स की दुकान नजदीक कमल पार्षद के पास बना रखी है तथा मैं स्वयं शिक्षा क्षेत्र से निकलकर सेवानिवृत्त हो चुका हूं। यह भी सत्य है कि हमारे परिवार में मेरे से पहले न तो कोई शिक्षा क्षेत्र में आया है और ना इतना अधिक पढ़ा है। यह सत्य है कि बाद की पीढ़ी हमसे आगे जा चुकी है और जानी भी चाहिए। डाक्टर शर्मिला जो आज रोहतक विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर है। कभी सोचा नहीं था कि हमारे परिवार में जहां मुझे इतना पढ़कर और शिक्षा के क्षेत्र में आना पड़ेगा वहीं भरपूर सिंह की पुत्री इतनी अधिक पढ़ कर कालेज स्तर तक पहुंच जाएगी। यह हमारा सौभाग्य है। आगे अब यह देखना है कि कौन कितना पढ़कर इस परिवार का नाम कायम करता है।
ऐसे में यही कहूंगा कि किसी काम को छोटा नहीं समझना चाहिए। कोई ऐसा कार्य नहीं जो मैंने नहीं किया हो, कठिन से कठिन कार्य और आसान से आसान कार्य भी किया है। आज भी मुझे मेरी सादी ड्रेस पसंद हैं जिसको देखकर लोग यह नहीं जानते कि यह वही व्यक्ति है। यह सत्य है कि जहां समाचार पत्रों के माध्यम से, सोशल मीडिया द्वारा लोग डा. होशियार सिंह को जानते होंगे परंतु जब उनके सामने होता हूं तो लोग शायद ही जान पाते हैं कि यही वही शख्स है। अपनी पहचान गुप्त रखना अच्छा कार्य होता है। आज भी मेरी पहचान गुप्त ही है। पहले शिक्षण कार्य/शिक्षा क्षेत्र में आया, लेखन कार्य में आया, पत्रकारिता में आया उस हिसाब से न तो सम्मान मिला नहीं नाम हासिल हो पाया। खैर एक ही ध्येय है- अपने लिए जिये तो क्या जिये। अपने लिए नहीं सदा दूसरों के लिए जीता आ रहा हूं।
ऊंट घोड़ी व बकरी नृत्य ने मन मोहा
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कनीना की आवाज। कनीना में आयोजित बाबा मोलडऩाथ मेले ने सभी का मन मोह लिया। मेले में जहां अपार शक्ति देखने को मिली। वहीं पर ऊंटों तथा घोडिय़ों के नृत्य ने लोगों समा बांधे रखा। मेले में जहां कबड्डी, कुश्ती, रस्साकशी, घोड़ों की दौड़, घोडिय़ों की चाल, घोड़ी और ऊंट का नृत्य आदि अनेक मनोरंजन कार्यक्रम आयोजित किए गए। स्कूल के खेल के मैदान में ऊंट एवं घोडिय़ों की चाल एवं नृत्य चलते रहे। उनके करतबों ने सभी का मन मोह लिया। करीब एक दर्जन ऊंटों ने करतब दिखाकर मन मोह लिया। चारपाई पर, दो चारपाइयों पर, चार चारपाइयों पर खड़े होकर ऊंटों ने नृत्य किया।
ऊंटों को चौकी पर बिठाया गया। चौकी पर बिठाकर उनके नृत्य करवाए गए, उनके द्वारा हवा में करतब दिखाने, उनके द्वारा बाल्टी द्वारा पानी पिलाने, केतली द्वारा पानी पिलाने जैसे कितने ही करतब दिखाए गए। उन्होंने लोगों का मन मोह लिया। इसी कड़ी में ऊंट नाच में अशोक बगड़, 3100 रुपये, सुभाष सुलताना 2100 रुपये वहीं नेकीराम, धर्मेंद्र, कृष, मोनू, भैरूं सिंह, नीर, सुंदर, सोमवीर, विकास, रोशन, रामपत, अशोक, सोमवीर के ऊंटों के नृत्य पर 1100-1100 रुपये का ईनाम दिया गया। इसी क्रम में घोडिय़ों का नृत्य देखने लायक था। यहां अगले पैरों पर खड़े होकर घोडिय़ों ने नृत्य किया वही घोडिय़ों द्वारा चार पाई पर नृत्य करके दिखाया गया। इस मौके पर घोडिय़ों के नृृत्य में बलजीत डोहरकां 21000 रुपये, बाबा राजूदास बेरला 15000, मदन कासन 7100 रुपये का ईनाम जीता वहीं राहुल, लीला, नसीम की घोडिय़ों को 500-500 रुपये, धर्मेंद्र छावसरी 3100 रुपये, सुनील श्योपुरा 2100 रुपये तथा नेकी, मोनू, सुभाष, सत्यवीर, बंटी, सत्यवीर मानेसर, सोमवीर की घोडिय़ों को क्रमश: 1100-1100 रुपये का ईनाम दिया गया।
कनीना के श्याम मंदिर में लगा मेला
-भारी संख्या में भक्त पहुंचे जैतपुर
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कनीना की आवाज। कनीना स्थित श्याम बाबा मंदिर में एकादशी पर मेला आयोजित हुआ। दूर दराज से भक्त पैदल चलकर निशान अर्पित करने पहुंचे। सुबह से भक्तों की भीड़ रही तथा मेला शाम तक जारी रहा। उधर जैतपुर के लिए भी भारी संख्या भक्त मेले में पहुंचे। मेले को लेकर के भक्त निशान लेकर निशान यात्रा पर जाते मिले। उल्लेखनीय है कि जैतपुर में 11 मार्च तक मेला लगेगा। यही कारण है कि मंगलवार को भी भक्त जैतपुर जाएंगे। इसके बाद मेला समाप्त हो जाएगा।
फोटो कैप्शन 07: मेले में जाते हुए भक्त
किसान लगे सरसों की लावणी में
-दूसरे प्रांतों से आने लगे हैं मजदूर
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कनीना की आवाज। कनीना क्षेत्र के किसान सरसों की लावणी में लग गये हैं। होली के बाद लावणी में तेजी आ जाएगी चूंकि कनीना में मोलडऩाथ मेला एवं होली पर्व के चलते लावणी में देरी हो रही है। अभी गेहूं की बालियां आ चुकी हैं जिनमें गेहूं का दाना मिल्किंग स्टेज पर है जिसे ठंड की जरूरत होती है।
करीब 19500 हेक्टेयर पर उगाई गई सरसों की फसल पक चुकी है। कुछ किसान कटाई के काम में लग गये हैं। दिन के समय ताप बढ़ गया है।
किसान अजीत कुमार,कृष्ण कुमार, राजेंद्र सिंह से इस संबंध में चर्चा करने पर उन्होंने बताया कि इस वक्त गेहूं की फसल की सिंचाई की जरूरत है। गत दिनों थोड़ी सी बूंदाबांदी हुई थी किंतु अब किसानों को सिंचाई की जरूरत पड़ रही है। करीब 9500 हेक्टेयर पर गेहूं की खेती की गई है। अधिकांश मजदूर होली पर्व के बाद आते हैं। 13 मार्च की होली है। परंतु लावणी पहले ही कुछ खेतों में आ चुकी है।
पहुंचने लगे हैं मजदूर-
सरसों एवं गेहूं की लावणी के दृष्टिगत मजदूर इस क्षेत्र में आने लग गये हैं। ये मजदूर अपनी रोटी रोजी लावणी से ही कमाते हैं। उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार, राजस्थान आदि राज्यों से मजदूर चार माह के लिए इस क्षेत्र में आते हैं और रोटी रोजी कमाकर वापस अपने घरों को लौट जाते हैं।
हर हर वर्ष बढ़ जाते हैं इनके रेट-
हर वर्ष इन मजदूरों के भी रेट बढ़ जाते हैं। विगत वर्ष जहां 5000 रुपये तक एक एकड़ गेहूं खेत की लावणी की गई। इस बार अनुमान है कि कम से कम 6000 रुपये प्रति एकड़ में लावणी करेंगे। लावणी के अतिरिक्त भी इन मजदूरों से खेती करने तथा मुर्गी फार्म में रखरखाव का काम करते हैं। सरसों की लावणी का रेट विगत वर्ष 2500 रुपये प्रति किला था किंतु इस बार यह कम से कम 3 हजार रुपये किला है।
नहीं है आत्मनिर्भर किसान-
किसानों ने बताया कि एक जमाना था जब परिवार के सदस्यों की संख्या अधिक होती थी उस समय मजदूरों की जरूरत कम पड़ती थी किंतु अब प्रत्येक घर में सदस्य की संख्या कम होती है। एक और जहां चल रही हैं विद्यार्थी अपने स्कूल में परीक्षा देने जाते हैं वही किसान अपने खेतों में लावणी का कार्य करते हैं। लेकिन ऐसे बहुत कम किसान है जो अपने खेत की लावणी स्वयं करते हैं। मजदूरों पर ही लावणी का कार्य निर्भर करता है।
मिली जानकारी अनुसार राजस्थान, बिहार ,उत्तर प्रदेश तथा अन्य राज्य से मजदूरों के ग्रुप आए हुए हैं। ये ग्रुप दस से लेकर के 30 की संख्या में मिलते हैं। एक साथ मिलकर कार्य करते हैं। फसल कटाई का काम जो दिनों में पूरा होना चाहिए कुछ ही घंटों में पूरा कर जाते हैं। यही कारण है किसान मौसम को देखते हुए तथा मौसम बदलाव के चलते हुए इन मजदूरों से कटाई करवाता है। यहां तक सरसों निकालने का कार्य भी मजदूरों से करवा भंडारण तक का कार्य भी मजदूरों से करवाता है।
क्या कहते हैं कृषि अधिकारी-
उधर इस संबंध में पूर्व कृषि अधिकारी डा. देवराज से बात हुई। उन्होंने बताया कि अकसर सरसों की लावणी 15 मार्च से ही शुरू होती है किंतु खेत के स्वभाव एवं वातावरण का भी प्रभाव पड़ता है। अगैती फसल पहले लावणी आ जाती है। किसान तेजी से लावणी कार्य में लग गये हॅैं।
स्टेज पर है जिसे ठंड की जरूरत होती है।
सरसों खरीद 15 मार्च से-
उधर कनीना व्यापार मंडल प्रकोष्ठ के उपाध्यक्ष रविंद्र बंसल ने बताया कि सरकार ने सरसों का समर्थन मूल्य 5950 रुपये वहीं गेहूं का समर्थन मूल्य 2375 रुपये प्रति क्विंटल रखा है तथा सरसों की खरीद 15 मार्च से किये जाने के आदेश आये हुए हैं। हालांकि कनीना क्षेत्र में सरसों की आवक करीब 20 अप्रैल से हो पाएगी। यहां की भूमि पर सरसों देर से पक पाती है।
फोटो कैप्शन 06: कनीना के खेतों में लावणी करते किसान
कनीना क्षेत्र में मनाई आंवला एकादशी
आंवला पौधे का किया गया पूजन
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कनीना की आवाज। कनीना क्षेत्र में सोमवार को आंवला एकादशी का पर्व मनाया गया। व्रत करके महिलाओं ने आंवला की पूजा की और आंवला एकादशी की कथा सुनाई। इसे आमलकी एकादशी नाम से भी जाना जाता है।
वयोवृद्ध महिला शकुंतला देवी ने बताया कि हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। यूं तो एक वर्ष के अंतराल में 24 एकादशियां आती हैं। जब मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। आमलकी यानी आंवला को शास्त्रों में उसी प्रकार श्रेष्ठ स्थान प्राप्त है जैसा नदियों में गंगा को प्राप्त है और देवों में भगवान् विष्णु को। विष्णु जी ने जब सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा को जन्म दिया उसी समय उन्होंने आंवले के वृक्ष को जन्म दिया। आंवले को भगवान विष्णु ने आदि वृक्ष के रूप में प्रतिष्ठित किया है। आंवले के हर अंग में ईश्वर का स्थान माना गया है। स्वयं भगवान विष्णु ने कहा है जो प्राणी स्वर्ग और मोक्ष प्राप्ति की कामना रखते हैं उनके लिए फाल्गुन शुक्ल पक्ष में जो पुष्य नक्षत्र में एकादशी आती है उस एकादशी का व्रत अत्यंत श्रेष्ठ है। इस एकादशी को आमलकी एकादशी के नाम से जाना जाता है।
फोटो कैप्शन 01: आंवला एकादशी पर आंवला की पूजा करती महिलाएं
बाबा मोलडऩाथ मेले में जुटी अपार भीड़
-ऊंट दौड़ एवं घुड़दौड़ देखने पहुंचे भारी संख्या में लोग
--कई प्रांतों से पहुंचे लोग
--अब याद आएंगी 12 मार्च की मतगणना
--कनीना के लोगों की दुलेंडी मनेगी 12 मार्च मतगणना पर
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कनीना की आवाज। कनीना में आयोजित बाबा मोलडऩाथ मेले दूर दराज से भक्तों ने आकर धोक लगाई। बीती रात्रि को जागरण आयोजित हुआ। मेले में जहां अपार शक्ति देखने को मिली। वहीं पर ऊंटों तथा घोडिय़ों की दौड़ ने लोगों समा बांधे रखा। मेले में जहां कबड्डी, कुश्ती, रस्साकशी, घोड़ों की दौड़, घोडिय़ोंकी चाल, घोड़ी और ऊंट का नृत्य आदि अनेक मनोरंजन कार्यक्रम आयोजित किए गए। स्कूल के खेल के मैदान में ऊंट एवं घोडिय़ों की चाल एवं नृत्य चलते रहे। उनके करतबों ने सभी का मन मोह लिया। करीब एक दर्जन ऊंटों ने करतब दिखाकर मन मोह लिया।
बाबा आश्रम पर अपार श्रद्धा भक्ति देखने को मिली। विक्रमी संवत 2006 में वे ब्रह्मलीन हुए थे तब से लेकर आज तक का मेला भरता रहा है। एकादशी को मेला लगता है किंतु फागुन की एकादशी का यह मेला अपार भक्ति और श्रद्धा से भरा होता है जिसमें भारी संख्या में पूरे ही प्रदेश से भक्त आते हैं। इस मेले की विशेषता है कि हर घर से शक्कर चढ़ाई जाती है।
हाजी कनरूं का ऊंट दौड़ा सबसे तेज
-घोड़ी दौड़ में सुमेर की घोड़ी रही पहले स्थान पर
फाल्गुन की एकादशीको लगे बाबा मोलडऩाथ मेले का आयोजन सोमवार को धूमधाम से किया गया। मेले में हरियाणा, उत्तर प्रदेश पंजाब राजस्थान से लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं ने माथा टेक कर शक्कर का प्रसाद चढ़ाकर मन्नतें मांगी। इस मेले को शक्कर मेला कहा जाता है। मेले में आज भी राजा महाराजाओं के समय के मनोरंजन की पुरानी परंपराएं चली आ रही हैं। जिनमें ऊंट, घोड़ों की दौड़, दंगल व कबड्डी खेले जाते हैं। मेले में ऊंटों की दौड़ में हाजी कनरू, महूं ने प्रथम स्थान पर रहकर 51 हज़ार रुपये का इनाम प्राप्त किया। दूसरा स्थान सुरेश इस्लामपुर ने 41 हज़ार रुपये का इनाम प्राप्त किया। तीसरे स्थान पर जीता गगवाड़ी का दूसरा रूप रहा और 31 हजार रुपये का इनाम जीता। वहीं चेतराम डांगीवास का ऊंट चौथे स्थान पर रहा और 21 हजार रुपये का इनाम जीता। घोड़ी दौड़ में सुमेर टोड़ा की ढ़ाणी ने पहला इनाम 51 हजार रुपये जीता। दूसरा इनाम राजकुमार महिपालवास ने 41 हजार रुपये का इनाम जीता। तीसरा इनाम कालू मोकलवास ने 31 हजार रुपये का ईमान जीता। वहीं बाबा बालकनाथ हालुवास की घांड़ी ने चौथा स्थान पाकर 31 हजार रुपये का इनाम जीता। बाबा मोलडऩाथ ट्रस्ट प्रधान दिनेश कुमार ने बताया कि रविवार की रात्रि को बाबा मोलडऩाथ का विशाल जागरण किया गया था।
मेले में जहां आधा दर्जन भंडारे लगे वहीं पैदल एवं पेट के बल बाबा के दर्शन करने आने वाले भक्तों की संख्या अधिक रही। दिनभर बाबा के धूणे पर प्रसाद चढ़ाया तथा शक्कर का प्रसाद वितरित किया।
ऊंट नृत्य ने मन मोहा---
कनीना में आयोजित बाबा मोलडऩाथ मेले ने सभी का मन मोह लिया। मेले में जहां अपार शक्ति देखने को मिली। वहीं पर ऊंटों तथा घोडिय़ों के नृत्य ने लोगों समा बांधे रखा। मेले में जहां कबड्डी, कुश्ती, रस्साकशी, घोड़ों की दौड़, घोडिय़ों की चाल, घोड़ी और ऊंट का नृत्य आदि अनेक मनोरंजन कार्यक्रम आयोजित किए गए। स्कूल के खेल के मैदान में ऊंट एवं घोडिय़ों की चाल एवं नृत्य चलते रहे। उनके करतबों ने सभी का मन मोह लिया। करीब एक दर्जन ऊंटों ने करतब दिखाकर मन मोह लिया। चारपाई पर, दो चारपाइयों पर, चार चारपाइयों पर खड़े होकर ऊंटों ने नृत्य किया।
ऊंटों को चौकी पर बिठाया गया। चौकी पर बिठाकर उनके नृत्य करवाए गए, उनके द्वारा हवा में करतब दिखाने, उनके द्वारा बाल्टी द्वारा पानी पिलाने, केतली द्वारा पानी पिलाने जैसे कितने ही करतब दिखाए गए। उन्होंने लोगों का मन मोह लिया। इसी कड़ी में ऊंट नाच में अशोक बगड़, 3100 रुपये, सुभाष सुलताना 2100 रुपये वहीं नेकीराम, धर्मेंद्र, कृष, मोनू, भैरूं सिंह, नीर, सुंदर, सोमवीर, विकास, रोशन, रामपत, अशोक, सोमवीर के ऊंटों के नृत्य पर 1100-1100 रुपये का ईनाम दिया गया। इसी क्रम में घोडिय़ों का नृत्य देखने लायक था। यहां अगले पैरों पर खड़े होकर घोडिय़ों ने नृत्य किया वही घोडिय़ों द्वारा चार पाई पर नृत्य करके दिखाया गया। इस मौके पर घोडिय़ों के नृृत्य में बलजीत डोहरकां 21000 रुपये, बाबा राजूदास बेरला 15000, मदन कासन 7100 रुपये का ईनाम जीता वहीं राहुल, लीला, नसीम की घोडिय़ों को 500-500 रुपये, धर्मेंद्र छावसरी 3100 रुपये, सुनील श्योपुरा 2100 रुपये तथा नेकी, मोनू, सुभाष, सत्यवीर, बंटी, सत्यवीर मानेसर, सोमवीर की घोडिय़ों को क्रमश: 1100-1100 रुपये का ईनाम दिया गया।
कुश्तियां--
2100 रुपये की ईनामी कुश्ती आशीष, संदीप, कृष्ण, कालू, देवेंद्र, चिराग, जयपाल, मनीष, रोहित, गोलू, राहुल, अतुल, मोनू, रवि, अली, जाकिर, दीपक ने जीती वही 500 रुपये की कुश्ती लोकेश, बोली, रितेश, आनंद, नवीन, सुरेंद्र, राकेश, प्रतीक, अरविंद, सौरभ ने जीती। 6100 रुपये की कुश्ती सोमवीर,भेलू, वीरेंद्र, छग्गन, ढिल्लू, जितेंद्र, कृष्ण ने जीती। 1100 रुपये की कुश्ती रोहित, हिमांशु, दीपांशु, दक्ष, अजय ने जीती। 1000 रुपये की कुश्ती चंद रूप, राजकुमार, सुदेश, गोली, नवीन, विक्की, नकुल, दीपक और नितिन ने जीती। 31000 रुपये की ईनामी कुश्ती बलजीत बाघोत ने जीती वही बकरी नृत्य में रामपत,सोमवीर और अनिल को 1100-1100 रुपये इनाम दिये गये।
फोटो कैप्शन 02: रात्रि जागरण में संबोधित करते जसवंत सिंह
03 व 04: मोलडऩाथ आश्रम पर भक्तों की भीड़
05: ऊंट दौड़ का नजारा
एक दर्शनीय स्थल के रूप में उभर रहा है बाबा मोलडऩाथ आश्रम
--कई धार्मिक स्थान खड़े हें पास में
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कनीना की आवाज।
कनीना का बाबा मोलडऩाथ आश्रम एक दर्शनीय स्थल के रूप में उभर रहा है। एक दर्जन मंदिर बाबा आश्रम के पास में निर्मित हो चुके हैं। बाबा मोलडऩाथ का हर वर्ष विशाल मेला लगता है। ये एक कुलदेवता एवं कनीना का प्रमुख देख्ता के रूप में उभरता जा रहा है।
बाबा स्थल को चार चांद लगाने के लिए बाबा के स्थल के पास ही अनेकों धार्मिक स्थलों का निर्माण होता जा रहा है। बाबा के आश्रम के पास ही 21 फुट ऊंची शिव प्रतिमा वाला शिवालय स्थित है। इस शिवालय का निर्माण शिवभक्त भरपूर सिंह ने निर्मित करवाया है। पास में सीताराम मंदिर का निर्माण किया जा रहा है। सीताराम मंदिर के पास ही राधाकृष्ण का मंदिर बना हुआ है। बाबा आश्रम के पीछे सती समाधि भी बनी हुई है। पास में पानी से भरा जोहड़ है जहां कभी बाबा जल समाधि लेते थे। यह यह पक्का तालाब बना दिया गया हे।
बाबा आश्रम के नीचे वर्तमान में प्रकटीनाथ का आश्रम बना हुआ है जो बाबा के एक कमरे के निर्माण के वक्त प्रकट हुए थे। बाबा के पास ही बाबा डूंगरमल की समाधि, खागड़ आश्रम, मंगलदेव की कुटिया, शहीद सुजान सिंह पार्क, बाबा हनुमान की 11 फुट ऊंची प्रतिमा वाला मंदिर, बाबा हनुमान का पुराना मंदिर, बाबा भैया स्थल, शनिदेव मंदिर, मां मंदिर, माता स्थल , राधाकृष्ण मंदिर बने हुए हैं। पास में रणबांकुरों की प्रतिमाएं लगी हुई है। जहां समय-समय पर लोगों का तांता लगा रहता है। सात वर्षों पहले यहां विशाल दर्शनीय श्याम मंदिर निर्मित करवाया है जो मन मोह रहा है। बाबा आश्रम के पास ही बस स्टैंड का होना भी अहं भूमिका निभा रहा है। पास में शहीद सुजान सिंह की प्रतिमा लगी हुई है। शहीद सुजान सिंह ने 1994 में जम्मू कश्मीर में आतंकवादियों का सफाया करते हुए शहादत दी थी जिन्हें मरणोपरान्त अशोक चक्र से सम्मानित किया गया है। पास में पार्क बना हुआ है। इसी पार्क में पुराना हनुमान मन्दिर स्थित है जहां मंगलवार को श्रद्धालुओं का तांता लगता है और प्रसाद चढ़ाया जाता है।
बाबा के जोहड़ के पास मंगलदेव कुटिया बनी हुई है। मंगलदेव तपस्वी साधुजन हुए हैं जिन्होंने कुआं खुदवा कर पेयजल का प्रबंध करवाया था। मोलडऩाथ स्थल के पास बनवाया गया खागड़ आश्रम भी मनमोहक है। बाब डूगंरदास की समाधि भी बनी हुई है। पास में विशाल खाटू श्याम मंदिर एवं साई मंदिर बरबस लोगों का मन मोह रहा है। यहां भी बाबा मोलडऩाथ मेले के साथ साथ मेला लगता है। पास में साईं बाबा का मंदिर सुशोभित है। शनिदेव का मंदिर तथा माता का विशालकाय मंदिर बना हुआ है तथा आकर्षक हें। अनेकों अन्य धार्मिक स्थल भी यहां पर निर्मित किये जा चुके हैं। इस प्रकार कई धार्मिक स्थानों से परिपूर्ण बाबा मोलडऩाथ आश्रम दर्शनीय स्थल के रूप में उभर रहा है। मोलडऩाथ की प्रतिमा भीम सिंह कनीना ने निर्मित करवाई थी किंतु बाबा पर दो पुस्तकें कनीना के लेखक डा. एचएस यादव की आ चुकी हैं। इस लेखक ने आरतियां, बाबा चालिसा, पंचांग आदि भी बनवाये हैं। इब तो यह क्षेत्र का प्रमुख दर्शनीय स्थल बन चुका है जहां दूर दराज तक के भक्त आते हैं। बाबा मोलडऩाथ की पूजा आधा दर्जन से अधिक गांवों में होती आ रही है। रोड़वाल में बाबा की प्रतिमा विगत वर्षों स्थापित की गई थी। बाबा आश्रम एवं आस पास के मंदिर बाबा के दर्शनीय स्थल को चार चांद लगा रहे हैं।
फोटो कैप्शन 12: कनीना का श्याम मंदिर
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