तीन दिनों की कड़ी मस्कत के बाद नहर में धनौंदा पंप हाऊस के पास रात को मिला सतेन्द्र का शव
-तीन दिनों से पुलिस टीम के द्वारा नहर में की जा रही थी सतेन्द्र के शव की तलाश
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कनीना। धनौंदा स्थित जवाहर लाल नेहरू कनाल में गिरने वाले युवक सतेन्द्र के शव को रात को धनौंदा पंप हाऊस के पास से बरामद कर दिया है। शव के नहर में दिखाई देने की सूचना के बाद पुलिस टीम ने मौके पर पहुंचकर शव को अपने कब्जे में ले पोस्टमार्टम के लिए महेंद्रढ़ अस्पताल में भिजवा दिया गया है। ताकि शव का पोस्टमार्टम करवाकर मौत के कारणों का पता लगाया जा सके। बता दे कि युवक सतेन्द्र के सोमवार दोपहर करीब एक बजे नहर में गिरने की सूचना पुलिस प्रशासन को परिजनों के द्वारा दी गई थी। जिसके बाद पुलिस टीम ने गांव के गौताखोरो की मद्द से सतेन्द्र की तलाश शुरू कर दी थी। लेकिन देर रात तक भी सतेन्द्र का कोई सुराग न मिलने पर मंगलवार को एनडीआरएफ की टीम भी मौके पर पहुंची। मंगलवार सुबह 6 बजे से देर रात व बुधवार शाम करीब 4 बजे तक एनडीआरएफ की टीम ने भी अपने स्तर पर शव की सभी जगह तलाश की व अंत में निराश होकर बुधवार को शाम करीब 4 बजे एनडीआरएफ की टीम भी वापस लौट गई। वहीं सतेन्द्र के बारे में कोई सुराग न लगने से परिजनों का भी बुरा हाल था। बुधवार रात करीब 8 बजे सतेन्द्र का शव पंप हाऊस के पास अपने आप पानी में उपर आ गया। जिसके संबंध में पंप पर तैनात कर्मचारियों ने ग्रामीणों व पुलिस प्रशासन को सूचना दी। जिसके बाद पुलिस की टीम ने मौके पर पहुंचकर शव का नहर से बाहर निकालकर अपने कब्जे में ले लिया। जिसे पोस्टमार्टम के लिए महेंद्रगढ़ शवगृह में भिजवा दिया गया है। गुरुवार को शव का पोस्टमार्टम करवाकर शव परिजनों को सौंपा जाएगा।
कनीना। सतेन्द्र के शव को पानी से बाहर निकालते हुए व मौके पर उपस्थित ग्रामीण
259 किसानों का 5939 क्विंटल बाजरा खरीदा गया
- बाजरे की आवक हुई कम
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कनीना की आवाज। चेलावास स्थित कनीना की नई अनाज मंडी में मंगलवार को 259 किसानों का 5939 क्विंटल बाजरा खरीदा गया। विस्तृत जानकारी देते हुए हेड मैनेजर वीरेंद्र कुमार ने बताया कि बुधवार तक 174416 क्विंटल बाजरा खरीदा जा चुका है जबकि बुधवार दिन 12000 बैग की लिफ्टिंग की गई। कुल 325000 बैग की लिफ्टिंग की जा चुकी है। बाजरे की आवक कम होती जा रही है।
ग्रुप डी की परीक्षा के लिए कनीना से भी चलाई जाए रोडवेज की स्पेशल बसें
-हजारों परीक्षार्थी जाएंगे विभिन्न जिलों में
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कनीना की आवाज। ग्रुपडी के लिए 21 और 22 अक्टूबर को पूरे प्रदेश के विभिन्न परीक्षा केंद्रों पर परीक्षा आयोजित होगी जिसके लिए जिला में महेंद्रगढ़ से महेंद्रगढ़ और नारनौल से ही रोड़वेज की बसें चलाये जाने की बात कही है। इस समय हजारों की संख्या में कनीना क्षेत्र से बेरोजगार ग्रुप डी की परीक्षा देने के लिए विभिन्न केंद्रों पर जाएंगे। ऐसे में बेरोजगार अमीश कुमार, दिनेश कुमार, सुरेश कुमार, हर्ष आदि दर्जनों बेरोजगारों ने मांग की है कि ग्रुप डी की परीक्षा के लिए कनीना उपमंडल के बस स्टैंड से बसें उपलब्ध करवाई जाए। उधर समाजसेवी भगत सिंह, महेश बोहरा सुनील कुमार, निरंजन, कुलदीप कुमार आदि ने सरकार से मांग की है कि कनीना उपमंडल होते हुए भी यहां से बसें न चलाई जाने का फैसला गलत है। रोड़वेज विभाग के उच्चाधिकारी केवल महेंद्रगढ़ तथा नारनौल से ही बसें चलाये जाने की बात कह रहे हैं। उन्होंने कहा कि उपमंडल स्तर पर से ही बसें उपलब्ध करवानी चाहिए ताकि बेरोजगार ग्रुप डी के परीक्षा देने वाले परीक्षार्थी आसानी से अपने घरों से गंतव्य स्थान तक पहुंच सके।
स्कंदमाता की पूजा से मिलता है अमिट फल
-विधि विधान से करें पूजा-सुरेंद्र शर्मा
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कनीना की आवाज। नवरात्रि के पांचवें दिन मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप की पूजा की जाती है जिसका नाम स्कंदमाता है। कार्तिकेय की माता के कारण इन्हें स्कंदमाता का नाम दिया गया है भगवान स्कंद बाल बाल रूप में माता की गोद में विराजमान है। ये विचार पंडित सुरेंद्र शर्मा ने व्यक्त किये।
प्रदीप शास्त्री ने पूजा अर्चना की विधि बताते हुए कहा कि सबसे पहले माता के लिए चौकी पर स्कंदमाता की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करनी चाहिए इसके बाद शुद्धिकरण करने के लिए पंचगव्य तैयार करना चाहिए जिसके लिए हमें गोमूत्र गाय का गोबर, गाय का घी, गाय का दही, गाय का दूध एक पात्र में एकत्रित करके पंचगव्य तैयार करें और जिस स्थान में पूजा कर रहे उस स्थान में भी इसका छिड़काव करें और माता रानी के लिए चौकी के बगल में चांदी या मिट्टी के घड़े में जल भरकर कलश की स्थापना करनी चाहिए। इसके बाद हमें मन में संकल्प लेना चाहिए कि है माता यथाशक्ति यथा भक्ति पूजा कर रहे हैं। जो हमारा सामर्थ है उस हिसाब से हम आपकी सेवा में हाजिर हुए हैं, अपना बालक मानकर हमें क्षमा करें। वैदिक एवं सप्तशती मंत्रों के द्वारा स्कंदमाता सहित समस्त स्थापित देवताओं की षोडशोपचार पूजा करें माता का आवाहन करना चाहिए। जिसके लिए हमें आसन, आचमन,स्नान, वस्त्र, सौभाग्य सूत्र, चंदन, रोली, बिल पत्र, दूर्वा, सिंदूर, आभूषण, पुष्प हरा पुष्प माता को प्रिय है। हरा पुष्प चढ़ाना चाहिए सुगंधित द्रव्य धूप में फल और माता से क्षमा याचना करनी चाहिए तत्पश्चात वितरण करके पूजा संपन्न करें पंचमी तिथि की अष्टधातु देवी स्कंदमाता हैं जिन व्यक्तियों को संतान का अभाव हो वे माता की पूजन अर्चन तथा मंत्र जाप कर लाभ उठाएं। स्कंदमाता संतान को प्राप्ति देने वाली हैं। निश्चय ही स्कंदमाता की पूजा करने से हमारी मनोरथ सफल होती है। माता को भोग एवं प्रसाद स्कंदमाता को केले का भोग लगाना चाहिए और यह प्रसाद गौ ब्राह्मण को देना चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य की बुद्धि का विकास होता है। हमारे मन को शांति मिलती है और माता रानी अति शीघ्र प्रसन्न होती हैं हमारे जीवन के सभी कष्टों को नाश करती हैं और हमारे परिवार का कल्याण करते हैं इसीलिए हमें स्कंदमाता की मन मानसिक शांत चित्त से स्थिर मन से माता की पूजा करनी चाहिए।
फोटो कैप्शन :सुरेंद्र शर्मा
सिमट कर रह गया है बच्चियों का पर्व सांझी
-बड़ों के लिए नवरात्रि और बच्चों का है सांझी पर्व
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कनीना की आवाज। ग्रामीण क्षेत्रों में दशहरे तक चलने वाला सांझी का पर्व नवरात्रि प्रारंभ के साथ ही शुरू हो चुका है। एकता और भाईचारे का पर्व सांझी छोटे बच्चों का पर्व है। दुर्गा मां की प्रतिमूर्ति दीवार पर बनाई जाती है। परंतु अब यह पर्व एवं अनोखा खेल सिमटता ही जा रहा है। गांवों में भी लुप्तप्राय हो गया है।
गांवों में गोबर तथा सरकंडों से सांझी दिवार पर बनाई जाती है जिसे बच्चियां सिंझा कहती हैं। प्रतिदिन गीत गाकर और भोजन कराकर बच्चियों का समूह अपने घर चला जाता है। नौ दिनों तक लगातार चलने वाली दशहरे पर संपन्न होती है। राजस्थान का गणगौर का बहुत करीबी पर्व है। बड़ों का नवरात्रि तो बच्चों का सांझी पर्व समानांतर चलते हैं।
क्या है सांझी--
सांझी को देवी मां की संज्ञा दी जाती है जो नवरात्रों में नौ रूपों में पूजी जाती है। गांवों में तो सांझी बच्चों के मनोरंजन का अच्छा साधन बन गया है। भाद्रपद अमावस्या के दिन गांवों में छोटे-छोटे बच्चे एवं बच्चियां मिलकर गोबर, चूड़ी के टुकड़े, कपड़ों की कतरन व कई साजोसामान से देवी मां की झलक देने वाली सांझी दिवार पर बना दी जाती हैं। तत्पश्चात प्रतिदिन शाम के वक्त पास पड़ोस की बच्चियां इक_ïी होकर सांझी को खाना खिलाती हैं तथा गीत गाती हैं।
सांझी के निर्माण में बच्चियां अपनी बुद्धि व कौशल का परिचय देती हैं। जिस प्रकार सांझी मां के हाथ व पैरों को सजाया और संवारा जाता है। बाल कलाकारों की यह अनोखी कलाकारी मन को मोह लेती है। भोजन कराने की क्रिया दशहरे तक चलती है। दशहरे के दिन सांझी को भोजन कराकर एक मटकी में डाला जाता है और जोहड़ में बहा दिया जाता है। जब बच्चियां सांझी को जोहड़ में प्रवाहित करने ले जाती हैं तो लड़कों का समूह मटकी को छीनकर तोडऩे का प्रयास करते हैं। यहां तक कि जोहड़ में तैरती हुई मटकी को भी तोडऩे का प्रयास किया जाता है।
एक अनोखी परम्परा के अनुसार सांझी के समक्ष जितने भी बच्चे एवं बच्चियां मिलकर गीत गाते हैं वे प्रतिदिन अपनी बारी के अनुसार गीत समाप्त होने के बाद गेहूं व चने की बाकली या बतासे बांटते हैं। बारी-बारी से प्रत्येक घर का बच्चा यह प्रसाद लाता है और बांटकर खाते हैं। दशहरे के दिन गणेश विसर्जन की भांति सांझी को पानी में विसर्जि कर दिया जाता है।
इस पर्व से जुड़ा है बच्चों का मनोरंजन तथा साथ में उन्हें एकता, सहयोग एवं गीतीकेय के गुण पैदा होते हैं। कनीना की संतरा देवी का कहना है कि बच्चियां मिलकर खाना खिलाते हैं और मां के गुणगान करते हैं इससे धार्मिक आस्था बढ़ती है वहीं सहयोग की ताकत पैदा होती है।
फोटो कैप्शन 03: दीवार पर बनी हुई सांझी।
घरों से कबाड़ निकलने से कबाडिय़ों की मौज
-पर्वों पर होती है घरों की सफाई
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कनीना की आवाज। पर्वों के दौरान घरों की सफाई करने व कबाड़ निकलने से कबाडिय़ों की मौज हो गई है। 12 नवंबर को दीपावली मनाई जाएगी, वही दीपावली को लेकर घरों की साफ-सफाई करने में, मिठाई बनाने वाले मिठाई बनाने में, घरों में रंग पेंट करने वाले लंबे समय चलता हैं। वर्षभर कूड़ा कचरा घरों में जमा होता रहता हैं उसे भी वर्ष में एक बार साफ किया जाता है तथा अब कबाड़ी घर घर घूमने लग गए हैं ताकि उन्हें अधिक से अधिक कबाड़ मिल सके। प्रतिदिन गलियों से सेकड़ों कबाड़ी फेरी लगाते देखे जा सकते हैं। दीपावली के बाद 23 नवंबर से विवाह शादियां शुरू होंगी।
दीपावली पास आने से कबाड़ी खुश--
दीपावली नजदीक आने से घरों की सफाई करने से कबाड़ी खुश हैं। घरों से भारी मात्रा में कबाड़ का सामान निकाला जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि दीपावली के पर्व पर सफाई करने से प्रत्येक घर से कबाड़ी का सामान निकलता है जिसे कबाड़ के भाव बेच दिया जाता है। कबाड़ी इस सामान को सस्ते में खरीद लेते हैं और दीपावली पर अच्छी दिहाड़ी बना लेते हैं। कबाड़ी दीपावली पर इतना सामान खरीदते हैं जिससे कई माह का गुजारा संभव हो पाता है। एक ओर जहां कबाड़ी सफाई में अहं भूमिका निभा रहे हैं वहीं वे अपने परिवार का पालन पोषण आसानी से करने की क्षमता रखते हैं।
नहीं फेंकना चाहिए नवरात्रों में उगाए हुए जौ को
-ज्वारे रस बनाकर करें प्रयोग-बालकिशन वैद्य
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कनीना की आवाज। नवरात्रों पर जहां जौ उगाने की एक प्रथा है। करीब 9 दिनों में ये गेहूं और जौ बड़े हो जाते हैं जिन्हें पानी में बहा दिया जाता है। यद्यपि पानी में बहाने से जहां जल दूषित होता है वहीं अनेक विद्वान मानते हैं कि बहाने नहीं चाहिए। इनका उपयोग करना चाहिए। ये अनेक रोगों में काम आते हैं। भविष्य में नवरात्रे संपन्न होंगे। लोग सप्तमी के दिन से ही व्रत संपन्न कर कंजकों को भोजन करा देते हैं।
बालकिशन वैद्य का कहना है कि ये जौ तथा गेहूं जब आठ दिन बाद काटे जाए तो इनसे ज्वारे रस प्राप्त किया जा सकता है। इसमें क्लोरोफिल आयोडीन, सेलेनियम, आयरन, विटामिन आदि अनेक पौष्टिक तत्व पाए जाते हैं जो शरीर के लिए लाभप्रद है। इसलिए नवरात्रि संपन्न किए जाए इन का ऊपरी भाग काट कर पानी में मिलाकर जरूर व्रत खोलना चाहिए जिससे शरीर लंबे समय तक स्वस्थ रहेगा। उनका कहना है कि जहां करीब 350 के करीब बीमारियां ठीक हो जाती है वही कैंसर में भी लाभप्रद है। दांतों से खून आना, दांतो की समस्या को दूर करने के लिए ज्वारे रस पी लेना चाहिए।
आयुर्वेद में कैसर जैसे रोगियों को तथा शारीरिक बीमारियों को दूर करने के लिए ज्वारे रस का उपयोग किया जाता है।
फोटो कैप्शन 04: नवरात्रों में उगाया गया जौ जिससे बनता है ज्वारे रस।
कट की एकसूत्री मांग को लेकर धरना 220वें दिन जारी
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कनीना की आवाज। राष्ट्रीय राजमार्ग 152डी पर सेहलंग -बाघोत के बीच कट की एकसूत्री मांग को लेकर ग्रामीणों का धरना 220वें दिन में प्रवेश कर गया है। बुधवार को धरने की अध्यक्षता वेद प्रकाश सेहलंग ने की और उन्होंने बताया कि केंद्र सरकार जब तक राष्ट्रीय राजमार्ग 152डी पर बाघोत-सेहलंग के बीच कट का काम शुरू नहीं करती है, तब तक धरना जारी रहेगा।
धरना संघर्ष समिति के अध्यक्ष विजय सिंह चेयरमैन ने बताया कि किसानों की बीजाई प्रभावित हो रही है वहीं विषम परिस्थितियों को झेलते झेलते बीमार हो रहे हैं। परंतु दिल में एक ही मांग और वो भी अडिग मांग कट की है जिसके लिए हर परिस्थितियों को झेलने के लिए ग्रामीण तैयार हैं। नवरात्रे चल रहे हैं, किसानों को विश्वास है कि नवरात्रों में ही केंद्र सरकार के द्वारा राष्ट्रीय राजमार्ग 152डी पर बाघोत -सेहलंग के बीच कट का काम शुरू हो जाएगा। माता धरनाधारियों को धरने की शक्ति दे रही है वहीं मंत्रियों के मन में कट बनाने के भाव जागृत करेगी।
सूबेदार भोले राम और रामकिशन बाघोत ने धरना स्थल पर बैठे किसानों को विश्वास दिलाया कि आपकी मेहनत बेकार नहीं जाएगी। आपका धरना बाघेश्वर धाम में चल रहा है, लाखों की संख्या में श्रद्धालु बाबा शिव भोले के दर्शन करने के लिए बागेश्वर धाम पहुंचते हैं और भक्तों की पहली मन्नत है,राष्ट्रीय राजमार्ग 152डी पर बाघोत-सेहलंग के बीच कट का बनना। भक्तों की बात अवश्य मानी जाएगी, कट बनेगा,समय लग सकता है। केंद्र सरकार के द्वारा राष्ट्रीय राजमार्ग 152डी पर बाघोत -सेहलंग के बीच कट बनाने से आस पास के 40 गांवों के नागरिक सर्विस करने वाले हो, पढऩे वाले हो या सरकारी काम के लिए चंडीगढ़ आने -जाने वाले हो, उन्हें राष्ट्रीय राजमार्ग 152 डी पर चढऩे के लिए दादरी जाना पड़ेगा, जिसकी दूरी यहां से 20 किलोमीटर है। कट बनने से दूरी कम हो जाएगी और समय भी कम लगेगा।
इस मौके पर संघर्ष समिति के सदस्य डॉक्टर लक्ष्मण सिंह, मास्टर विजयपाल सेहलंग,पहलवान रणधीर सिंह, नरेंद्र शास्त्री छिथरौली, पूर्व सरपंच बेड़ा सिंह, ओम प्रकाश, धर्मपाल, वीरेंद्र,पंडित संजय कुमार, मास्टर ओम प्रकाश, प्रधान कृष्ण कुमार, दाताराम, नरेश कुमार, अमर सिंह, महिपाल बाबूजी नौताना, डॉ राम भक्त, सूबे सिंह पंच, मास्टर विजय सिंह, मुंशी राम, सीताराम,पूर्व सरपंच हंस कुमार, रामकुमार, सतनारायण साहब, सत्य प्रकाश,सूबेदार हेमराज अत्रि, प्यारेलाल, रोशन लाल आर्य, शेर सिंह, व गणमान्य लोग मौजूद थे।
फोटो कैप्शन 05: कट की मांग को लेकर धरने पर बैठे ग्रामीण।
श्रीआदर्श रामलीला के मंच पर मारीच और ताड़का वध का हुआ मंचन
-भोजावास में चल रहा है रामलीला मंचन
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कनीना की आवाज। भोजावास में चल रही रामलीला मंचन के कार्यक्रम में राम जन्म से जनकपुरी बाजार तक के प्रसंग का मंचन किया गया। इस दौरान कलाकारों ने शानदार अभिनय करते हुए लोगों का मनोरंजन भी किया। पिछले 4 दिन से चल रही रामलीला में प्रतिदिन अलग-अलग प्रसंग के संदर्भ में भगवान श्री राम और उनके बाल्यकाल से जुड़े कार्यक्रमों का भी मंचन किया गया। इस दौरान सुबाहू मारिच और ताड़का वध का अभिनय का मंचन हुआ। श्री आदर्श रामलीला क्लब द्वारा आयोजित इस रामलीला मंचन के कार्यक्रम में सुनील रोहिल्ला राम का किरदार निभा रहे हैं लक्ष्मण का किरदार बिरेंद्र शर्मा, भरत बने सुनील कौशिक, शत्रुघ्न पुनीत रोहिल्ला, मारिच का अभिनय जितेंद्र रोहिला ने किया तो वही तड़का के रूप में अभिषेक सोनी के अभिनय से लोग काफी प्रभावित हुए। राम जन्म से लेकर जनक दरबार तक के कार्यक्रमों का अभिनय किया गया। इस दौरान श्री आदर्श रामलीला के प्रधान बाबूलाल रोहिल्ला तथा क्लब संरक्षक रूनी राम रोहिल्ला मुख्य रूप से मौजूद रहे।
फोटो कैप्शन 06: रामलीला मंचन भोजावास का एक दृश्य।
कपड़े सिलाई एवं चद्दरों की छपाई कर अपने बच्चों को पढ़ाया लिखाया, नौकरी लगाया सुनीता देवी ने
-पति की मौत के बाद भी संभाला है परिवार
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कनीना की आवाज। अगर हिम्मत हो और कुछ करने का जज्बा हो तो समस्याएं रास्ता नहीं रोक पाती हैं। यूं तो विधवा होने पर महिलाएं टूट जाती है और किसी काम के प्रति उनकी रुचि नहीं रखती परंतु कुछ ऐसी भी विधवाएं हैं जो समाज में दूसरों के लिए उदाहरण बन चुकी है। ऐसी ही विधवा कनीना में सुनीता वर्मा है।
55 वर्षीय सुनीता वर्मा के तीन बच्चे एक लड़का अतुल 32 वर्ष, हेमलता लड़की 27 वर्ष, योगिता 23 वर्ष हैं। सुनीता वर्मा ने कभी हिम्मत नहीं हारी और सर्दियों में चादरों को प्रिंट करके बेचकर जो कुछ होती उसी से तीनों ही बच्चों को न केवल पढ़ाया अपितु अपने लड़के एवं एक लड़की की शादी कर दी है। उनका लड़का वर्तमान में नौकरी करता है।
सुनीता वर्मा की शादी 1992 में कनीना के राजेंद्र कुमार वर्मा से हुई थी किंतु राजेंद्र वर्मा अपने पिता रामकुमार के पद चिन्हों पर चलते हुए सफेद चादरों की छपाई का काम करते थे। उन्हीं से अपने परिवार का पालन पोषण करते थे किंतु उनके पिता रामकुमार का 1995 में देहांत हो गया। तत्पश्चात उन्होंने अपने पूरे परिवार का पालन पोषण करना पड़ा। कभी आइस फैक्ट्री में नौकरी करके तो कभी चद्दर छपाई तो कभी कबाड़ी का काम करके। उन्होंने अपने परिवार का पालन पोषण किया किंतु वह इन कामों को करते-करते इतनी टूट चुके थे कि बीमार हो गए। आखिरकार उनका 2015 में देहांत हो गया।
सुनीता वर्मा विधवा होते हुए भी कभी उसने अपने आप को अकेला नहीं समझा। उन्होंने अपने कंधों पर सारे परिवार की जिम्मेवारी ले ली और सर्दियों में चादरों की छपाई करना, गर्मियों के समय में महिलाओं के घर पर ही कपड़े सीलने का कार्य शुरू कर दिया। अधिकतम प्रतिदिन 500 रुपये कमा लेती है, कभी-कभी कोई काम नहीं मिल पाता है। परंतु उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। अपने पुत्र अतुल कुमार को बीकाम की पढ़ाई करवा कर कंप्यूटर की शिक्षा दिलाई। तत्पश्चात वे कोआपरेटिव सोसायटी बैंक में कंप्यूटर ऑपरेटर के पद पर कार्यरत हैं। आज के दिन अतुल कुमार की शादी हो चुकी है और दो बच्चे भी है। उधर सुनीता वर्मा की बड़ी पुत्री हेमलता 27 को बीए तक की पढ़ाई करवाई तथा उनकी शादी 2014 में राहुल से कर दी। राहुल भी कापरेटिव बैंक में कंप्यूटर आपरेटर है तथा उनके भी दो बच्चे हैं। सुनीता वर्मा की दूसरी लड़की योगिता 23 ने भी एमए की पढ़ाई कर ली है। आजकल नौकरी के लिए तैयारियों में जुटी हुई है, प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयारी कर रही है। उन्हें विश्वास है कि उनकी लड़की भी जरूर नौकरी पा जाएगी।
कइयों के लिए उदाहरण बनी है सुनीता वर्मा -
सुनीता वर्मा अपने घर के कामकाज को करके, बच्चों के लिए खाना वाना बनाकर सुबह करीब 10 बजे सिलाई काम में लग जाती और शाम तक सिलाई का काम करती है। तत्पश्चात फिर से घर के काम में लग जाती है। इस प्रकार मेहनत से मुख नहीं मोड़ती है। उनका काम सकुशल चल रहा है और अपने बच्चों को अच्छे ढंग से संस्कारवान बनाया है।
सुनीता वर्मा का मायका शेरपुर गांव कोटकासिम है। जहां वो पली और बड़ी हुई है। उनकी शादी 1992 में राजेंद्र वर्मा से हुई थी। सुनीता वर्मा के पिता बिशंबरदयाल का 2010 में देहांत हो गया। इसके कारण उनकी मां चमेली देवी की जिम्मेदारी भी उन्हीं पर आ पड़ी। क्योंकि सुनीता वर्मा का कोई सगा भाई नहीं है। केवल तीन बहने है जिन तीनों की शादी करने के बाद सुनीता वर्मा की मां चमेली देवी की देखरेख करने वाला घर पर कोई नहीं था। जिसके चलते वह अपनी मां चमेली देवी को कनीना घर पर ले आई। उसकी देखरेख भी करने का काम स्वयं करती है। 2012 से लगातार उनकी सेवा कर रही है।
क्या कहना है सुनीता वर्मा का-
सुनीता वर्मा ने कहा किसी का सुहाग उजड़ जाना दुनिया का सबसे बुरा वक्त होता है परंतु समाज के सामने गिड़गिड़ाना और बुरा होता है। हिम्मत से काम ले कर आगे बढऩा यही इंसानियत होती है। उन्होंने यही कार्य कर दिखलाया। पिता, पति ससुर एवं सास को खो देने के बाद भी किसी के सामने गिड़गिड़ाई नहीं और आज अपने पैरों पर खड़ी हुई है। वह दूसरी महिलाओं को भी सिलाई कढ़ाई सिखा रही है ताकि कोई महिला नौकरी नहीं लग पाए तो कम से कम सिलाई कढ़ाई का काम करके अपनी रोटी रोजी कमा सके। सुनीता की मदद करने में सुमन एवं अंजू कर रही हैं।
फोटो कैप्शन 01:विधवा सुनीता वर्मा का परिवार
02: चद्दर छापती सुनीता एवं उनके परिवार की सदस्य
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