राजकीय महाविद्यालय कनीना में पोषण एवं आहार संबंधी सलाह पर व्याख्यान का आयोजन
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कनीना की आवाज। राजकीय महाविद्यालय कनीना में पोषण एवं आहार संबंधी सलाह पर एक व्याख्यान का आयोजन किया गया। इसमें मुख्य अतिथि डा. मिथिलेश यादव एसोसिएट प्रोफेसर आरडीएस गर्ल्स कॉलेजरेवाड़ी रही। उन्होंने पोषण के छह अनिवार्य तत्वों पर चर्चा की। उन्होंने बताया कि हमारे शरीर के लिए प्रोटीन कार्बोहाइड्रेट वसा खनिज लवण विटामिन तथा जल महत्वपूर्ण तत्व है। इन्हें हमें संतुलित मात्रा में ग्रहण करना चाहिए प्रोटीन के लिए उन्होंने पशु जगत से मिलने वाली प्रोटीन जैसे मांस मछली अंडा दूध तथा वनस्पति जगत से मिलने वाली प्रोटीन डाल सोयाबीन अनाज मूंगफली इत्यादि के बारे में बताया। प्रोटीन शरीर की वृद्धि तथा विकास के लिए महत्वपूर्ण है प्रोटीन की कमी से अनेक रोग उत्पन्न हो जाते हैं। कार्बोहाइड्रेट के स्रोतों के रूप में अनाज दाल कंदमूल और आदि की चर्चा की कार्बोहाइड्रेट शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है। इसके अलावा उन्होंने वास खनिज लवणों के महत्व पर भी चर्चा की डॉक्टर यादव ने बताया कि हमें भोजन में मिलेट को जरूर शामिल करना चाहिए । उन्होंने डॉक्टर खादर वाली जिसे मिलेटमैन आफ इंडिया कहा जाता है के बारे में विद्यार्थियों को बतलाया। डॉक्टर खादर वाली कहते थे सही भोजन साधारण जीवन शैली सही कृषि पद्धति से मानव समाज फिर स्वस्थ समाज बन सकता है। उन्होंने बताया हमें अपने भोजन में कंगनी सवा कुटकी बाजरा रागी जवार चना को शामिल करना चाहिए। इनमें आयरन कैल्शियम फास्फोरस प्रोटीन खनिज सभी प्रकार के तत्व पाए जाते हैं । कार्यक्रम अधिकारी संदीप ककरालिया तथा भारती यादव ने संयुक्त रूप से बताया कि डॉक्टर यादव द्वारा दी गई जानकारी बेहद ज्ञानवर्धक तथा एवं रुचि पूर्ण थी। इससे हमारे स्वयंसेवकों तथा विद्यार्थियों को अत्यंत लाभ हुआ। कार्यक्रम के अंत में प्रोफेसर डा. कांत यादव ने डा. मिथिलेश यादव का धन्यवाद किया। इस अवसर पर डॉक्टर नीनू ज्योति आशा सोमवीर जितेंद्र बलराज निशा अनीता इत्यादि उपस्थित थे।
फोटो कैप्शन 08: संबंधित फोटो 08 नंबर है।
यूरो स्कूल में स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताओं का आयोजन ।
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कनीना की आवाज। यूरो स्कूल स्कूल प्रांगण में विभिन्न प्रकार की प्रतियोगिताएं आयोजित की गई। कक्षा पहली और दूसरी में फैंसी ड्रेस प्रतियोगिता, कक्षा तीसरी से पांचवीं तक एकल नृत्य प्रतियोगिता और कक्षा छठी से आठवीं तक एकल गायन, समूह गायन की प्रतियोगिताएं आयोजित की गई। इन प्रतियोगिताओं में विद्यार्थियो ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। कक्षा पहली व दूसरी के विद्यार्थियों ने सुंदर-सुंदर परिधान धारण कर सभी को मंत्र-मुग्ध कर दिया। कुछ बच्चों ने वीर सिपाहियों की वेशभूषा धारण कर हर तरफ देश भक्ति का रंग बिखेर दिया। कक्षा तीसरी से पांचवीं तक के विद्यार्थियों ने अपनी नृत्य कला का उत्कृष्ट प्रदर्शन कर सभी को आश्चर्यचकित कर दिया। कक्षा छठी से आठवीं तक के विद्यार्थियों ने अपने गायन कौशल द्वारा सभी का मन मोह लिया। उन्होंने अपने गायन में हर तरफ देश भक्ति के स्वर गुंजायमान कर समा-सा बांध दिया। इस अवसर पर प्रधानाचार्य सुनील यादव, उप-प्राचार्या संजू यादव ने सबसे पहले विद्यार्थियों और समस्त अध्यापक वर्ग को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई दी। साथ ही उन्होंने अपने वक्तव्य में इस पर्व को मनाने के बारे में अवगत कराते हुए कहा कि इस स्वतंत्रता को प्राप्त करने में हमने अपने कितने ही देशभक्तों की शहादत दी हैं। यह उनकी कुर्बानियों का फल है कि आज हम स्वतंत्र हैं। हमें उनकी शहादत को हमेशा याद रखना चाहिए और अपने देश की एकता और अखंडता को बनाए रखना चाहिए। इस अवसर पर को-र्डिनेटर रितु तंवर, तन्नू गुप्ता, सुमन यादव व समस्त अध्यापक वर्ग उपस्थित रहा।
फोटो कैप्शन 07: यूरो में स्वाधीनता दिवस मनाते हुए।
कनीना मेें तिरंगा यात्रा का किया आयोजन
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कनीना की आवाज। कनीना मेें तिरंगा यात्रा का आयोजन किया। तिरंगा यात्रा की शुरुआत दीपक चौधरी एवं खंड संचालक शिव कुमार, डाक्टर विनोद एवं पूर्व पार्षद मोहन सिंह यादव के हाथों से हुआ। इस दौरान नेताजी मेमोरियल क्लब में सुभाषचंद्र बोस की मूर्ति पर माला पहनाने के बाद आंबेडकर चौक पर भीमराव अंबेडकर की मूर्ति पर पुष्प समर्पित करते हुए यात्रा पूरी की। इस यात्रा के दौरान कमलेश यादव एवं संदीप मालड़ा ने राष्ट्र के प्रति बच्चों को जागरूक किया। इस यात्रा के संपूर्ण कार्यकारिणी सक्षम यादव मुंडिया खेड़ा रहे।
फोटो कैप्शन 08: तिरंगा यात्रा निकालते हुए लोग।
आफत बन गई है दो सड़क मार्ग
-नहर के साथ सड़क मार्ग तथा करीर सड़क मार्ग पर बड़े-बड़े गड्ढे और गंदा जल है भरा, लोगों में रोष
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कनीना की आवाज। कनीना के दो प्रमुख सड़क मार्ग आफत बने हुये हैं। जब वर्षा होते हैं तो छोटे-छोटे अनेकों तड़ाग रास्ते पर बन जाते हैं। आवागमन अधिक होने से अनेकों दुपहिया वाहन चालक गड्ढों में गिर जाते हैं, चोटिल हो जाते हैं ,प्रशासन और सरकार इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। प्रशासन बार-बार इनको बनाने व ठीक करने की बात तो कह रहा है किंतु यह बात कहते कहते लंबा अर्सा बीत गया है।
कनीना-रेवाड़ी मार्ग से 3 किलोमीटर दूर करीरा जाने वाला सड़क मार्ग करीब एक किलोमीटर तक बहुत खराब हो चुका है। बड़े-बड़े गड्ढे और उनमें गंदा पानी आने जाने वालों के लिए के तन बदन पर कीचड़ फेंक रहा है। नवोदय विद्यालय इसी मार्ग पर स्थित है परंतु दुर्भाग्य इस सड़क मार्ग का करीब एक किलोमीटर जो कनीना नगर पालिका के तहत आता है,की कोई सुध नहीं ली जा रही है। कनीना वासी जब भी दोपहिया वाहन से अपने पशुओं के लिए चारा आदि लेने जाते हैं फिसल कर गिर जाते हैं। आधा दर्जन लोग अब तक इसमें चोटिल हो चुके हैं परंतु कोई सुनने वाला नजर नहीं आता। यही नहीं कनीना मंडी से गुजरने वाली नहर के साथ-साथ अटेली और रेवाड़ी सड़क मार्गों को जोडऩे वाली सड़क जर्जर हालत में पड़ी हुई है।
इस मार्ग को भी बनाने में 3 वर्ष लग चुके हैं। अटेली विधायक सीताराम यादव बार-बार इसे जल्द ही बनाए जाने की बात कह रहे हैं किंतु उनके आश्वासन को भी लंबा अर्सा बीत गया है। यह मार्ग बहुत व्यस्त है तथा कनीना मंडी वासियों के अतिरिक्त अन्य गांवों के लोगों के लिए बेहतरीन विकल्प अटेली एवं नारनौल जाने का है। इस संबंध में कुछ लोगों से चर्चा की गई जिनके विचार निम्र हैं-
**करीरा को जाने वाला एक किलोमीटर मार्ग तथा नहर के साथ-साथ मार्ग दोनों पर सैकड़ों गड्ढे बन गये हैं जो वर्ष के जल से भरे रहते हैं। जब भी कुछ बूंदे वर्षा की होती है तब तब तड़ाग का रूप ले लेते हैं जिनसे दोपहिया वाहन चालक बेहद परेशान है, गिर जाते हैं और कीचड़ से लथपथ हो जाते हैं। किसानों की मजबूरी है कि इन मार्ग से गुजरते हैं।
-- मोहन कुमार पार्षद
किसानों के लिए अपने खेतों में जाने के लिए दो मार्ग प्रमुख है। जब इन मार्गों से वर्षा के समय गुजारते हैं तो अपने खेत क पहुंचाना बहुत मुश्किल हो जाता है। कई बार तो गिरकर इतने चोटिल हो जाते हैं कि वापस घर आना पड़ता है। इन मार्गों की अभिलंब सुध ली जाए ताकि लोगों को राहत मिल सके।
-- सत्यवीर सिंह,कनीनावासी
करीरा और नहर के साथ-साथ मार्ग आज के दिन अति व्यस्त मार्ग हैं। परंतु इन दोनों की हालत बेहद चिंताजनक बनी हुई है। जब इन मार्गों पर कोई सफेद वस्त्र धारी चलना शुरू कर दें तो निश्चित रूप से उसके कपड़े एक किलोमीटर दूरी तय करने में काले हो जाते हैं और कीचड़ से लथपथ हो जाते। इन मार्गों को सबसे पहले ठीक किया जाना चाहिए था किंतु दोनों ही मार्गों की कोई सुध नहीं ली जा रही है। प्रशासन मौन है। उनकी वर्तमान समय में सुध लेने की अधिक जरूरत है।
-- डा. विनोद कुमार
किसान,स्कूली विद्यार्थी और अन्य लोग करीरा और नहर के साथ-साथ वाले मार्गों को प्रयोग करते हैं किंतु अफसोस इन दोनों मार्गों की हालत किसी जोहड़ से कम नहीं है। इनसे न तो गुजर सकते न हीं गुजरना सरल है। इन मार्गों की सुध लेना बहुत जरूरी है ताकि लोगों को राहत मिल सके।
--- राजकुमार ,कनीनावासी
फोटो कैप्शन 05: नहर के साथ मार्ग
फोटो कैप्शन 06:करीरा का मार्ग
साथ में मोहन पार्षद, राजकुमार, सतबीर सिंह, डा. विनोद कुमार।
जंगली चौलाई ने बढ़ाई किसानों की चिंता
--पैदावार घटाने में होता है योगदान
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कनीना की आवाज। खरीफ फसल के दौरान क्षेत्र के किसान कांग्रेस घास से परेशान थे जो खेतों में तथा यहां वहां मिलती थी परंतु अब किसानों को परेशान करने में नंबर वन पर कंटीली चौलाई है। भारी मात्रा में यहां वहां खड़ी मिलती है। सड़क किनारे, नहरों के पाल पर, किसानों के खेतों में जमकर खड़ी हुई है।
बारिश होते ही कंटीली चौलाई लहलहाने लगी है। कांग्रेस घास को भी पीछे छोड़ दिया है तथा यह भी खरपतवार होती है। अंतर है तो बस इतना कि कांग्रेस घास जहरीली होती है जिसे कोई जानवर नहीं खाता है परंतु कंटीली चौलाई को पशु चारे के रूप में प्रयोग करते हैं तथा कुछ लोग इसे चौलाई की जगह प्रयोग कर रहे हैं। शहरों में तो यह चौलाई के विकल्प के रूप में मिलती है। जब बड़ी हो जाती है तो यह कंटीली बन जाती है तथा इसका रूप चौलाई से मिलता जुलता होता है जिसके कारण इसे कंटीली चौलाई कहते हैं।
बारिश होते ही जहां कभी नहरों के किनारे, खेतों में तथा पुराने घरों के आस पास कांग्रेस घास मिलती थी वहां अब कंटीली चौलाई मिलती है। किसान अजीत कुमार कनीना, सूबे सिंह कनीना, राजेंद्र सिंह कनीना ने बताया कि दूसरे प्रदेशों विशेषकर राजस्थान, बिहार एवं यूपी से आए हुए लोग इसे काटकर ले जाते हैं और सब्जी के रूप में प्रयोग करते हैं। उनका कहना है कि गाय, भैंस भी इसे खा लेती हैं किंतु उनके खेतों में परेशानी का कारण बना हुआ है। उन्हें निराई के रूप में इसे खेतों से हटाना पड़ता है।
किसान कृष्ण कुमार, योगेश कुमार, रोहित कुमार का कहना है कि कांग्रेस घास से डरते थे अब उन्हें कंटीली चौलाई से डर लगने लगा है। अधिक मात्रा में खड़ी होने से निराई करने में दिक्कत आती है। अगर पक जाए तो पूरे खेत में कांटे बिखेर देती है। पशु भी तब तक ही खाते हैं जब तक यह पक न जाए।
कुछ भी कहा जाए परंतु सड़क के किनारे हरियाली का प्रमुख स्रोत कंटीली चौलाई बनती जा रही है। गहरे हरे की होने के कारण इसे लोग खा रहे हैं। हरी पत्तेदार सब्जी का विकल्प भी इसे मान रहे हैं। इस संबंध में महेश बेाहरा एवं कुलदीप बोहरा बीज विक्रेताओं का कहना है कि इस कंटीली चौलाई को एट्राजीन दवा से खत्म किया जा सकता है। पूर्व कृषि वैज्ञानिक डा. देवेंद्र कुमार मानते हैं कि इससे फसल पैदावार पर कुप्रभाव पड़ता है। इसे हाथों से उखाडऩे पर स्थायी समाधान हो सकता है।
फोटो कैप्शन 04: कंटीली चौलाई।
समस्या बनता जा रहा है पोलीथिन
-सैकड़ों वर्षों तक नहीं होती खत्म
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कनीना की आवाज। पोलीथिन समस्या बनता जा रहा है। वर्षों तक भी पोलीथिन धरती से नष्ट नहीं होती हैं और जोहड़, तालाब, नहर एवं पानी के अन्य स्रोतों को तो खराब करती ही हैं वहीं गायों की मौत एवं वायु प्रदूषण में इनका अहं योगदान रहा है।
एक अनुमान के अनुसार पूरे देश में प्रति व्यक्ति पोलीथिन प्रयोग करने की क्षमता बढ़कर करीब 3.5 किग्रा पहुंच चुकी है। विगत दो दशकों में तो इसका प्रयोग बढ़ता ही जा रहा है। सूक्ष्म जीव खाकर इनको मिट्टी का अवयव नहीं बना सकते हैं और ऐसे में समस्या बनकर उभर रही हैं। सरकार ने विगत समय में जन जागरूकता का अभियान छेड़ा गांवों और शहरों में दुकानदारों पर जुर्माना किया गया किंतु आंशिक सफलता से अधिक कुछ नहीं हुआ।
सामान्यत: एक दुकानदार से चलकर यह घर के कूड़े कचरे से होता हुआ पानी तक चला जाता है। यहां तक की नहरों एवं बारिश के द्वारा बहकर समुद्रों तक चला जाता है। समुद्री जीवों के लिए तथा धरती पर पड़ा होने पर मुख्यत: गायों के पेट में जाकर उनके पाचन तंत्र को नुकसान पहुंचाता है। मौत का कारण भी बनता है। गांवों के जोहड़, खेतों में पुराने घरों में, कुरडी में तथा घरों के आस पास बस बहुरंगी पोलीथिन ही दिखाई पड़ती है। प्रशासन कभी कभार पोलीथिन रोकने के लिए अभियान चलाता है किंतु फिर चुप्पी साध लेता है।
पोलीथिन प्रयोग करने के पीछे सामान खरीद कर लाने वालों का आलस्य प्रमुख रूप से काम करता है। आसानी से उपलब्ध एवं वजन में सबसे हल्की होने के कारण इसका प्रयोग बढ़ता ही जा रहा है। सब्जी हो या घरेलू सामान, पानी हो या भोजन के पैकेट, मिठाई हो या अन्य सामान बस पोलीथिन ही प्रयोग किया जाता है। शौच को जाने वाले बोतल की बजाय इसे ही प्रयोग करने लग गए। नगरपालिका ने समय समय पर पोलीथिन हटाने के लिए अभियान चलाए तथा दुकानदारों के चालान भी काटे किंतु अब प्रशासन मौन है।
पर्यावरण को बचाने के लिए मुहिम छेडऩे वाले रवींद्र कुमार का कहना है कि ये पोलीथिन जलाने से वायु बहुत अधिक दूषित होती है और कार्बन डाइआक्साइड बढ़ जाती है वहीं धरती पर सैकड़ों वर्षों तक पड़ी रहकर भी नही गल पाती वहीं पानी में सैकड़ों वर्षों तक भी नहीं गल पाती है। प्रतिवर्ष हजारों गाए भारत में इनको खाने से मर जाती हैं। । एकमात्र सूझबूझ से काम लेने व जागरूकता से ही इनका प्रयोग धीरे-धीरे कम किया जा सकता है। उपभोक्ताओं का कहना है कि सरकार ने कोई ठोस कदम इस क्षेत्र में नहीं उठाए हैं। अगर पोलीथिन की फैक्ट्रियों पर ही प्रतिबंध लगा दिया जाए तो कैसे इनका प्रचलन होगा।
कनीना के रवि कुमार, दिनेश कुमार, शारदा, महेश कुमार का कहना है कि पोलीथिन हटाने के लिए पोलीथिन बनाने वाली फैक्ट्री पर छापा मारा जाए। दुकानदारों को तंग न किया जाए।
फोटो कैप्शन 03: पोलीथिन से अटा पड़ा नाला।
शिक्षक स्टेट अवार्ड की दी जाने वाली सुविधाएं खत्म करने से शिक्षक नाराज
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कनीना की आवाज। वर्तमान में शिक्षक स्टेट अवार्ड की अहमियत घटा देने से शिक्षकों में भारी रोष है। न तो दो अतिरिक्त वेतन वृद्धि दी जा रही है और नहीं 2 साल का सेवा विस्तार और तो और शिक्षक तबादला नीति में मिलने वाले पांच अंक भी समाप्त कर दिये गये हैं। दो साल पहले दो अतिरिक्त वेतन वृद्धियां दी जाती थी उन्हें अग्रिम वेतन वृद्धि बना दिया है जिसके लिए भी सरकार ने कोई पत्र जारी नहीं किया है।
शिक्षक को स्टेट अवार्डी बनवारी लाल, सुरेंद्र सिंह, महेंद्र सिंह आदि ने बताया कि पहले 2 साल पहले शिक्षकों को स्टेट अवार्ड मिलने पर उन्हें दो अतिरिक्त वेतन वृद्धियां, 2 साल का सेवा विस्तार और ट्रांसफर पालिसी में पांच अंक भी मिलते थे। परंतु वर्तमान समय में धीरे-धीरे सभी सुविधायें खत्म कर दी गई है। उन्होंने बताया वर्तमान में न तो सेवा विस्तार दिया जाता न हीं अतिरिक्त वेतन वृद्धि दी जाती और न हीं हाल ही में जारी नई तबादला नीति में अतिरिक्त पांच अंक दिये जाएंगे। इस शिक्षकों में भारी रोष है। उन्होंने सरकार से मांग की है कि स्टेट अवार्ड शिक्षकों को पहले मिलने वाली वाली सभी सुविधाएं प्रदान की जाए ताकि स्टेट अवार्ड के प्रति शिक्षकों का रुझान बढ़े। उन्होंने नई तबादला नीति में पांच अतिरिक्त अंक दिए जाने और उनके मनचाहा स्टेशन दिए जाने की भी मांग की है। इस संबंध में स्टेट अवार्डी शिक्षक उच्च अधिकारियों से भी मिल मिलेंगे ताकि पहले वाले सभी लाभ मिलते रहे।
एडवांस वेतनवृद्धि में तो एक नया नियम भी लागू कर दिया है कि जिनकी 55 वर्ष उम्र हो चुकी तथा अवार्ड मिला है तो उसे ये वेतनवृद्धियां नहीं दी जाएंगी। जबकि ऐसे शिक्षकों को तो जरूर मिलनी चाहिए। बहुत से 55 वर्ष से अधिक उम्र के शिक्षक दो वेतनवृद्धियां ले रहे हैं जबकि कुछ ्रप्राचार्य एवं मुखिया अपने को स्मार्ट मानते हुए ये वेतनवृद्धियां नहीं दे रहे हैं जिसके चलते भेदभाव प्रदेश में नजर आ रहा है। प्रदेश सरकार इनको बहाल करने में आनाकानी कर रही है जबकि कांग्रेस सरकार बनने पर ने तुरंत इनको बहाल करने की बात कह रहे हैं। ऐसे में सरकार के प्रति शिक्षकों में रोष पनप रहा है जिसका कुप्रभाव आने वाले चुनावों पर पड़ सकता है।
समस्या बन रही प्रेशर होर्न
- दुपहिया वाहनों में भी लगवा रखे प्रेशर हार्न
- किसी को बुलाना हो तो भी जोर जोर से बजाते हैं
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कनीना की आवाज। कनीना क्षेत्र में ही नहीं अपितु ग्रामीण क्षेत्रों में प्रेशर हार्न का प्रचलन बढऩे लगा है। रास्ते में हो या घर के सामने से गुजरते समय इसे प्रयोग कर समस्या पैदा कर रहे हैं।
युवा पीढ़ी में तो क्रेज बढ़ा है। लोगों को या दोस्तों को बुलाते हैं तो घर की घंटी न बजाकर प्रेशर हार्न बजाते हैं। रास्ते में तेजी से चलते हुये कुछ लोग तो प्रेशर हार्न सुनकर कानों पर हाथ रखते हैं या फिर झुंझलाते हैं किंतु वे किसी को कह नहीं पाते हैं। अनेकों लोग बेहद परेशान देखे गए। यहां तक कि किसी घर के सामने खड़े होकर बार-बार हार्न बजाया जाता है और अपने साथी को याद किया जाता है। अब तो एक नया ट्रेंड आ गया है कि बच्चों को बिठाकर हार्न बजाकर उसे खुश किया जाता है। बच्चा खुश रहे किंतु उस पर बुरा प्रभाव कितना पड़ता है यह बात नहीं जानते हैं। विज्ञान के जानकार बताते हैं कि इस प्रकार के प्रेशर हार्न प्रयोग करने से कानों में बहरापन तो आ ही जाता है स्वभाव चिड़चिड़ा और शरीर को हानि हो जाती है। शरीर में कई रोग पनपने लगते हैं। विशेषकर युवा पीढ़ी खुद तो जोखिम में रहती है साथ में दूसरों को जोखिम में भी डालते हैं। इस प्रकार के प्रेशर हार्न बजाने पर प्रतिबंध लगाया गया है किंतु कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है।
पुलिस प्रशासन मूक बनकर देखती रहती है। पुलिस प्रशासन अगर सख्ती से पेश आए और छोटे वाहनों में प्रेशर हार्न लगाने वालों के विरुद्ध कार्रवाई करे तो निश्चित रूप से हजारों लोगों का भला हो सकता है, अनेक दुर्घटना घटने से बचा जा सकता है। कितने ही लोगों का चिड़चिड़ापन भी दूर हो सकता है परंतु विज्ञान के जानकार रविंद्र कुमार का कहना है कि प्रेशर हार्न कभी प्रयोग नहीं करना चाहिए। सामान्य हार्न उतना ही प्रयोग करें जितनी जरूरत होती है किंतु हार्न बजाकर लोग खुशी का इजहार करते हैं वो परिणाम बाद में झेलते हैं। बगैर किसी कारण भी हार्न को बजाते पूरे रास्ते जाने की आदत बन गई है। विशेषकर प्रेशर होने वाले लोग तो बेहद परेशान करके रख देते हैं।
इस संबंध में पुलिस एवं डाक्टरों से चर्चा की गई जिनके विचार निम्र हैं-
लगातार प्रेशर होर्न से कान के पर्दे फट सकते हैं, स्थायी रूप से बहरापन आ जाता है, दुर्घटनाएं बंढ जाती हैं, बैचैनी, हार्ट अटैक, भूख कम लगना तथा कई समस्याएं पैदा हो सकती हैं। अस्पताल आदि के पास प्रेशर होर्न बजाना सख्त मना होता है।
--डा जितेंद्र मोरवाल, कनीना
प्रेशर होर्न का जुर्माना अधिक है। चाहे कोई भी वाहन हो उस पर दस हजार रुपये का जुर्माना होता है। इतने का चाहे कोई पुराना वाहन न हो किंतु जुर्माना देना पड़ेगा। ऐसे में प्रेशर होर्न न बजाने की सख्त हिदायत दी जाती है।
--गोविंद सिंह एसआई
फोटो कैप्शन: डा मोरवाल
























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