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Saturday, July 4, 2020

करंट आने से एक व्यक्ति की मौत, बिजली विभाग पर करवाया मामला दर्ज
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 कनीना। कनीना में बिजली के तारों पर काम कर रहे प्रदीप उन्हाणी की अचानक करंट आने से मौत हो गई।
 मिली जानकारी अनुसार कर्मचारी प्रदीप कनीना के एसआर पेट्रोल पंप समक्ष रास्ते पर बिजली विभाग से परमिट लेकर तारों पर काम कर रहा था। अचानक बिजली के तारों में करंट आ गया और मौके पर मौत हो गई। उन्हें कनीना के उप नागरिक अस्पताल ले जाया गया जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया। मृतक के परिजन संदीप ने बिजली विभाग के अधिकारियों एवं कर्मियों पर  मामला दर्ज करवा दिया है। उधर शव का पोस्टमार्टम करवा उसके परिजनों को दे दिया गया है जबकि पुलिस मामले की जांच कर रही है। वह डीसी रेट पर करीब छह वर्षों से काम कर रहा था।






30 सालों से गुरु की सेवा कर रहे हैं
- निस्वार्थ भाव से पूरा परिवार करते आए हैं उनकी सेवा

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कनीना। गुरु शिष्य परंपरा बहुत पुरानी है। जहां भगवान श्रीकृष्ण ने संदीपन गुरु से शिक्षा शिक्षा पाई थी वही श्रीराम ने गुरु वशिष्ठ से शिक्षा पाई किंतु गुरु शिष्य परंपरा वर्तमान में भी जारी है।
 कनीना से 9 किलोमीटर दूर जैनाबाद में जहां रणधीर सिंह (50) विगत 30 सालों से अपने गुरु आश्रम में नियमित रूप से जा रहे हैं। यही नहीं उनका पूरा परिवार ही उनकी गुरु की सेवा में जुटा रहता है। गुरु लाल दास महाराज (70) उनसे अपनी सेवा कम करवाते बाकी मंदिर आश्रम की सेवा ज्याद करवाते हैं।
रणधीर सिंह ने बताया कि उनकी गहन आस्था है। सुबह शाम बस जब भी समय मिलता है गुरु लाल दास महाराज को याद करते हैं। गुरु आश्रम में जाकर वे प्रतिदिन धोक लगाते हैं। गुरु लाल दास महाराज को से आशीर्वाद पाते हैं। करीब 13 साल पूर्व गौशाला का निर्माण करवाया था तब से रणधीर सिंह गौशाला में भी मददगार साबित होते हैं। आश्रम में भक्तों की सेवा निभाने में उनका अहम योगदान होता है। गुरु के प्रति उनकी भक्ति,भक्तों के लिए भोजन प्रबंध करना, किसी खास पर्व पर बनाए जाने वाला विशेष भोजन बनाने व भक्तों को खिलाने में आनंद महसूस करते हैं। गुरु लाल दास महाराज को अपने दिल में समाए हुए हैं। उनका पूरा आशीर्वाद लेकर ही किसी कार्य को करते हैं। यद्यपि वे एक दुकान चलाते हैं और जब कभी जरूरत होती तो अपनी दुकान का कार्य भी रोक देते हैं। उनका पूरा परिवार गुरु सेवा में जुटा रहता है। उनका कहना है कि गुरु से बढ़कर कोई दुनिया में श्रेष्ठ नहीं है।
रणधीर सिंह का कहना है कि गुरु उनको सच्चा मार्ग दिखाते हैं। लाल दास महाराज को एक सच्चा गुरु मानते हैं जिसके कारण भी उनके कदमों में बैठे मिलते हैं। जब भी कोई सेवा होती है तो वे उनके पास जाकर सेवा प्रदान करते हैं। एक वक्त था जब खाना तक भी विशेष पर्व पर अपने हाथों से गुरु को खाना खिलाते थे लेकिन बीच में एक दुर्घटना होने के बाद रणधीर सिंह से अस्वस्थ रहें और घर पर रहने के कारण कुछ दिनों से गुरु से दूर रहकर बहुत दर्द हुआ। इसलिए जब भी वे ठीक हुये तुरंत गुरु के चरणों में जाकर बैठ गए।
रणधीर सिंह उद्यो दास आश्रम में सुबह शाम जब भी वक्त में होता है जरूर जाते हैं। कुछ देर आश्रम में गुरु के चरणों में बैठे रहते हैं इससे उन्हें बहुत मानसिक शांति मिलती है।
फोटो कैप्शन दो: गुरु लाल दास महाराज के साथ रणधीर सिंह


30 सालों से कर रहे हैं गुरु की सेवा 

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 कनीना। गुरु शिष्य परंपरा में कनीना खंड के गांव धनौंदा में कृष्णानंद महाराज की सेवा करने में अहम भूमिका जसवंत सिंह ने निभाई है। जसवंत सिंह की पत्नी की शिक्षिका है। जबकि जसवंत सिंह समाजसेवी है। दोनों दिन रात सुबह शाम बाबा आश्रम में जाकर धोक लगाते हैं तथा उनकी निस्वार्थ भाव से सेवा करते हैं। यहां तक कि अपने हाथों से खाना खिलाना उनके चरणों में बैठकर उनके विचार सुनने में बिताते हैं। दंपति स्वयं खाना खाने से पहले संत को खिलाते हैं। इतनी निश्चल भक्ति दंपति में देखने को मिल रही है। कृष्णानंद महाराज 85 वर्षीय है उनके ।गुरु हरद्वारी लाल के दिल्ली टैर गांव के आश्रम में समाधि ली थी। तत्पश्चात कृष्णानंद महाराज धनौंदा में आकर बनी में अपना स्थान बनाया था और वहीं पर यह जीवन जी रहे हैं। करीब 50 साल पहले उन्होंने यहां आकर रहना शुरू किया था और जन सेवा में जुटे रहते हैं। चाहे कोई समाज सेवा का कार्य हो,औषधीय पौधों से किसी का कोई कष्ट दूर करना हो या फिर जन सेवा में भोजन कराने का कार्य हो, लगातार चलता है। जसवंत सिंह तथा उनकी पत्नी बारिश हो या आंधी हो जरूर उनके यहां जाते हैं और जाकर उनकी निस्वार्थ भाव से सेवा करते हैं। जब उनकी पत्नी स्कूल में जाती है तो उससे पहले वे संत के दर्शन कर लेते हैं। शायद ही कोई ऐसा वक्त हो जब वे संत से मिलकर नहीं आये हो। पूरा परिवार किसी विशेष मौके पर आश्रम में सेवा करता है। कृष्णानंद आश्रम में विभिन्न पर्वों पर कार्यक्रम चलते हैं। संत अपने विचार रखते हैं। दंपति की निश्छल भक्ति से आस पास के लोगों में भी एक सकारात्मक संदेश पहुंचा है।
फोटो कैप्शन : जसवंत सिंह एवं कृष्णानंद महाराज।

कपूरी गांव के युवा ने जहरीला पदार्थ खाकर की आत्म हत्या

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कनीना। अज्ञात कारणों से एक युवा ने जहरीला पदार्थ खाकर की आत्महत्या करने का मामला प्रकाश में आया है।
मिली जानकारी के अनुसार खण्ड के गांव कपूरी निवासी पारस ने अपने खेतों में जहरीला पदार्थ खाकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। मिली जानकारी अनुसार मृतक सुबह लगभग आठ बजे अपने खेतों में गया और वहा जाकर उसने कोई जहरीला पदार्थ खा लिया वही मृतक ने जहरीला पदार्थ खाने के बाद अपनी माँ के पास फोन कर यह भी बताया कि उन्होंने जहरीला पदार्थ खा लिया है। वही इसकी सूचना के बाद सारे घर वाले खेतों में दौड़ चले और तुरंत पारस को गाड़ी में डालकर रेवाडी एक निजी अस्पताल ले गए जहां चिकित्सों ने उसे मृत घोषित कर दिया। वही इसकी सूचना परिजनों द्वारा कनीना पुलिस को देकर अवगत कराया जिसके बाद पुलिस ने मृतक के परिजनों के बयान पर इत्तफाकिया मौत की कार्रवाई आरंभ कर दी है तथा शव का विच्छेदन कर परिजनों को सोप दिया है। गांव में शोक की लहर है।



बाघोत में नहीं लगेगा मेला

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कनीना। बाघेश्वरी धाम पर इस बार 18 जुलाई को लगने वाला सबसे बड़ा मेला नहीं लगेगा। कोरोना के दृष्टिगत यह निर्णय पंचायत ने लिया है। सरपंच विनोद कुमार भागवत ने बताया कि उन्होंने पूरे गांव में मुनादी करवा दी है किसी प्रकार की कोई दुकान की जगह किसी के अलाट नहीं की गई है और मेला इस बार कोरोना के चलते नहीं लगेगा।
 उल्लेखनीय कनीना उपमंडल का ही नहीं अपितु पूरे भारत का प्रसिद्ध मेला बाघेश्वर धाम पर लगता है जहां लाखों कावड़ चढ़ाई जाती है किंतु इस बार ने तो कोई कावड़ आएगी और न कोई मेला लगेगा। हर वर्ष यह मेला लगता रहा है किंतु यह पहला अवसर होगा जब यहां मेला नहीं लगेगा बाकी विभिन्न गांव में शिवालयों में जल जरूर अर्पित किया जाएगा या लोग घर पर ही जल अर्पित करेंगे।

गुरु पूर्णिमा 5 जुलाई को
गुरुओं से लिया जाएगा आशीर्वाद

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 कनीना। पांच जुलाई को गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जा रहा है। तत्पश्चात सावन माह लग जायेगा। इस बार कांवड़ लाने व अर्पित किये जाने पर प्रतिबंध लग गया है।
 गुरु पूर्णिमा के पर्व पर जहां पुराने समय से विधान है कि गुरु करीब 4 महीने एक ही जगह बैठकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं और सभी अंधकार दूर कर देते हैं इसलिए गुरु की पूजा की जाती है।
विस्तृत जानकारी देते हुए अरविंद जोशी ने बताया की महाभारत के रचयिता कृष्ण द्वैपायन व्यास जिन्हें वेदव्यास भी कहा जाता है, का जन्मदिन इसी दिन हुआ था उन्होंने चारों वेदों की रचना की थी। उन्हें आदिगुरु कहा जाता है इसलिए गुरु पूर्णिमा मनाई जाती है और इस दिन को व्यास वेद व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है। भक्ति काल के समय संत घीसा राम जो कबीर दास के शिष्य थे का भी जन्म इसी दिन हुआ था।
 गुरु पूर्णिमा के दिन जहां हरिद्वार के गंगा में डुबकी लगाकर भक्तजन कावड़ लेकर विभिन्न मार्गों पर प्रस्थान शुरू कर देते थे वो इस बार कोरोना के चलते बंद कर दिया गया है।
इस बार घर पर ही रहकर शिव की पूजा की जाएगी।
 सबसे अधिक कांवड़ वाले सुमेर सिंह चेयरमैन का कहना है कि भक्तजन हरिद्वार जाकर जहां मंशा देवी, चंडी देवी, ऋषिकेश, लक्ष्मण, राम झूला आदि के दर्शन करने के उपरांत नीलकंठ की चढ़ाई करते रहे हैं किंतु इस बार सरकार के आदेशों के चलते घर पर रहकर ही शिव आराधना करेंगे।
इस दिन शिष्य अपने गुरु को विभिन्न प्रकार की भेंट करते हैं।  इस पर्व को लेकर उत्साह देखने को मिलता है। श्रावण कृष्णा त्रयोदशी को बाघेश्वरी धाम पर मेला लगता है वह मेला इस बार नहीं लगेगा। तत्पश्चात विभिन्न प्रकार के पर्व शुरू हो जाते हैं जिनमें तीज,सिंघारा, रक्षाबंधन आदि पर्वों की भरमार रहती है। श्रावण माह पर्वों से भरा हुआ है किंतु सभी पर कोरोना का साया रहेगा।   कनीना के ज्योतिषाचार्य अर्रविंद जोशी का कहना है कि शिवभोले के व्रत करने वालों को श्रावण सोमवार से व्रत शुरू करना चाहिए। ये व्रत सर्वोत्तम होते हैं। शिवभक्त श्रावण शुक्ल सोमवार से ही व्रत धारण करते हैं।
फोटो कैप्शन: सुमेर सिंह।

श्रावण माह पांच जुलाई से शुरू 

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कनीना। श्रावण माह यूं तो कवियों की कई कल्पनाओं को मूर्तरुप देता रहा है और आमजन के लिए भी खुशी का पैगाम लाता है। कनीना और आस-पास गांवों में श्रावण माह में कई स्थानों पर मेले लगते हैं, पींग पर झूलने की प्रथा , तीज का पर्व, पतंगबाजी तथा रक्षा बंधन का त्यौहार भी इसी माह से जुड़े हुए हैं। ऐसे में श्रावण माह को त्योहारों का माह कहा जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगा। इस बार कोरोना का प्रभाव पर्वों पर रहेगा।
  श्रावण माह के आगमन से जुड़ी है वर्षा। किसान अपनी खरीफ की फसल में व्यस्त हो जाते हैं क्योंकि खरीफ की फसल पूर्णरूप से वर्षा पर आश्रित है। भीषण गर्मी से जहां राहत मिलती है वहीं दिन को झूला झूलने तथा रात के समय श्रावणी गीतों की गूंज सुनाई पड़ती है जो मन को मोह लेती है। श्रावण माह के आते ही ऊंचे वृक्षों पर झूले डाल दिए जाते हैं जिन पर बच्चियां व महिलाएं दिनभर झूलती रहती हैं। नव विवाहित तो पींग पर अपने प्रियतम के विछोह एवं पुनर्मिलन के गीत गाती देखी जा सकती हैं। नव विवाहिता के जीवन में प्रथम श्रावण के समय में अपने प्रियतम के दर्शन करने पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है। विवाहिता पूरे श्रावण माह में अपने मायके रहती है। ससुराल पक्ष अपनी बहु के लिए रस्सी व पींग भी भेजता है।
    श्रावण माह की तीज का यूं तो पूरे देश में ही महत्व है किंतु ग्रामीण क्षेत्रों में पतंगबाजी करके यह पर्व मनाया जाता है। ज्यों-ज्यों यह पर्व पास आता है त्यों-त्यों पतंगबाजी तेज हो जाती है। तीज के दिन अंतिम बार पतंगबाजी की जाती है। अच्छी वर्षा व सुहावना मौसम के साथ--साथ लहलहाती फसल को देखकर युवा वर्ग पूर्णतया पतंगबाजी में खो जाता है। तीज पूर्व सिंधारा आता है जब घेवर मिठाई की बहार देखने को मिलती है। अपनी विाहित लड़की के लिए माँ-बाप घेवर की मिठाई भेजते हैं। पूरे माह पकवान बनते हैं तथा गीत गूंजते रहते हैं। पदमावत के गीतों से कम इनमें भी विरह नहीं होता।
  शिवालयों में तांता लगता है वहीं पूरे माह व्रत चलता है। श्रावण माह के अंत में भाई-बहन के प्यार को इंगित करने वाला रक्षा बंधन का पर्व आता है। भाई अपनी बहन के पास अपनी कलाई पर रक्षासूत्र बंधवाने बहन के पास जाता है। बहन कहीं भी हो वह अपने भाई के आने का इंतजार करती है। इस पर्व का एतिहासिक एवं पौराणिक महत्व भी है।
                                                             

नीम वाटिकालगा कैलाश पाली ने कमाया नाम
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कनीना। जिला महेंद्रगढ़ के गांव पाली निवासी कैलाश पाली अपनी प्रतिभा के लिए ही नहीं अपितु नीम के पेड़ लगातार आठ वर्षों से लगाते आ रहे और उनकी सेवा करते आ रहे जन के रूप में भी जाने जाते हैं। इस प्रकार पाली न केवल पर्यावरण के क्षेत्र में अपितु सामाजिक एवं शिक्षा के क्षेत्र में अहं योगदान दिया है।
  पर्यावरण सुधार के क्षेत्र में कैलाश पाली को पर्यावरणविद नाम से जाना जाता है। बाबा जयरामदास पाली स्थित धार्मिक स्थल पर 25 जुलाई 2010 को 250 नीम के पेड़ लगाकर नीम वाटिका  का निर्माण किया है। आज उस वाटिका में लगभग सभी नीम के पेड़ जीवित हैं और उनकी देखरेख की जा रही है। इस वाटिका में लगे नीम के पेड़ों की हर रविवार को लगातार दो वर्षों तक श्रमदान करके सेवा की है। दस सेवा में गांव के कुछ व्यक्ति भी साथ होते थे। इस वाटिका में नीम के पेड़ों ने बहुत अधिक वृद्धि दिखाई और आज छायादार वाटिका दूर से मन को हर्षित कर रही है। प्रारंभ में पाली में 101 पेड़ लगाए थे जो बढ़कर 250 हो गए हैं।
  नीम के पेड़ लगाने की श्रंखला में कैलाश पाली ने नावां स्कूल में एक गैलरी में 50 नीम के पेड़ लगाए थे। यह गैलरी कोई काम नहीं आ रही थी। तत्पश्चात पालड़ी पनिहार में उन्होंने स्कूल कैंपस में एक सौ पेड़ लगाकर न केवल स्कूल प्रांगण की शोभा बढ़ाई अपितु विद्यार्थियों के गर्मियों में बैठने के काम आ रहे हैं। इससे पूर्वपाली स्कूल कैंपस में भी नीम के 11 पेड़ लगाए थे। विभिन्न स्कूलों में वे 300 नीम के पेड़ लगा चुके हैं और इस बाप 25 जुलाई को पाली के स्टेडियम में भ्ज्ञी नीम के पेड़ लगाने का इरादा है। चूंकि 25 जुलाई से ही नीम लगाने की शुरूआत की गई थी जिसके चलते वे 25 जुलाई को ही नीम के पेड़ लगाते आ रहे हैं।
  वर्ष 2008 से नीम के पेड़ लगाने की श्रंखला अब आगे भी चलती रहेगी। कैलाश पाली ने अपनी एक जमीन पर भी नीम के पेड़ लगाए थे।
क्यों लगाते हैं नीम के पेड़-
कैलाश पाली नीम के पेड़ से इतने क्यों जुड़े हुए हैं? इसके पीछे स्वयं कैलाश पाली का कहना है कि महेंद्रगढ़ जिला की मिट्टी में ये पेड़ बेहतर उन्नति करते हैं और जलते नहीं। ये कम बारिश में भी पनपते हैं और इनकी लंबी उम्र होती है। प्राचीन समय से ही इस क्षेत्र में कंटीली झाडिय़ां, पीपल एवं नीम के पेड़ पाए जाते थे। उनके अनुसार रेगिस्तान क्षेत्र में जब कभी महामारी फैलती थी तो इस नीम के पेड़ से ही दूर किया जाता था। आज भी नीम का पेड़ स्वास्थ्य का प्रतीक बन गया है। उन्होंने कहा कि लोग अक्सर विदेशी पेड़ लगाते हें जो कम आयु, कम ठंड व कम फल के अलावा कम छाया देते हैं जबकि नीम दन सभी से उलट है। जिन व्यक्तियों में मधुमेह का रोग हो उसे नीम की निबोरी से बचाया जा सकता है वहीं दांतों के पायरिया रोग को भी नीम की दातुन से बचाया जा सकता है। कितने ही रोगों में नीम की छाल, पत्ते, फल, नीम का जल आदि काम में लाए जाते हैं। यही कारण है कि वे नीम के प्रति इतने जुड़े हुए हैं।
   कैलाश पाली द्वारा लगाए गए सभी पेड़ लगभग सुरक्षित हैं और वे समय समय पर उनकी देखभाल के लिए जाते हैं। उनका मानना है कि 80 प्रतिशत पौधे सफल होते हैं और 20 प्रतिशत किन्हीं कारणों से समाप्त हो जाते हैं। उन्होंने सरकारी स्कूलों में नीम के अनेकों पेड़ लगाकर नीम को बचाने का आंदोलन छेड़ा हुआ है। उनका कहना है कि वे जीवनपर्यंत नीम के पेड़ लगाते रहेंगे। वर्ष 2010 से वे लगातार नीम के पेड़ लगाने का जिम्मा उठाए हुए हैं और हर वर्ष इन पेड़ों का जन्मोत्सव भी मनाते आ रहे हैं जो अपने आप में अनूठी पहल है। इस प्रकार वे ग्रामीण क्षेत्र में पर्यावरण के प्रति जागरूकता को बढ़ावा दे रहे हैं।
 संक्षिप्त जीवन परिचय-
पालड़ी पनिहारा के स्कूल में मौलिक हैडमास्टर पद पर कार्यरत कैलाश पाली ने वर्ष 2008 में 1857 की क्रांति के 150 वर्ष पूरे होने पर 150 निजी एवं सरकारी विद्यालयों के विद्यार्थियों को इतिहास के प्रति जागरूक किया। दस मई 2008 को सांय 18 बजकर 57 मिनट पर महेंद्रगढ़ के आजाद चौक 1857 दीपक जलाकर उन्होंने एवं उनके सहयोगियों ने क्रांतिकारियों को याद किया एवं नमन किया।
  कैलाश पाली ने 2009 में विश्व मंगल गऊ ग्राम यात्रा के तहत गाय बचाने का अभियान छेड़ा व गाय को राष्ट्रीय पशु घोषित करवाने के लिए लोगों को जागरूक करने का अभियान चलाया। इसी कड़ी में  51 गांवों के उन 170 गऊ भक्तों को सम्मानित किया जिनके घर में दो या दो से अधिक देशी गाय पाल रखी थी।  स्वामी विवेकानंद के जन्म को 150 वर्ष पूरे होने पर 2013 में स्वामी विवेकानंद श्राद्ध शती आयोजन समिति के बैनर तले इन्हीं तीन जिलों में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन कर स्वामी विवेकानंद के जीवन चरित्र पर प्रकाश डाला। इसी वर्ष विवेकानंद के जीवन को लेकर एक प्रतियोगिता का आयोजन किया और अव्वल रहने वालों को सम्मानित किया।  कैलाश पाली ने 11 सितंबर 2013 को भारत जागो दौड़ का आयोजन किया गया। 1981 से अब तक लगातार बाबा जयरामदास क्रिकेट प्रतियोगिता का हर वर्ष पाली में फाल्गुन मास में आयोजन किया जाता है जिसमें देश विदेश के प्रसिद्ध खिलाड़ी भाग लेते हैं। इस कार्यक्रम में कैलाश पाली की अहं भूमिका रही है। 1989 में डा. हेडगेवार जन्म शताब्दी वर्ष में 25 गांवों में सम्पर्क, शिला पूजन कार्यक्रम के निमित 40 गांवों में शिला पूजन कराया, राम जन्मभूमि आन्दोलन, सन् 2000 में राष्ट्र जागरण अभियान के पीछे कैलाश पाली का अहं योगदान रहा है।
कुछ फोटो साथ हैं और कुछ फोटो और भेज रहा हूं।
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पानी एवं सुरक्षा के अभाव में पेड़ पौधे तोड़ देते हैं दम

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कनीना। दक्षिण हरियाणा में जहां पहले ही पानी की कमी है तथा रेतीला क्षेत्र होने के कारण भरसक प्रयास करने के बावजूद भी पेड़ पौधों की संख्या इतनी अधिक नहीं बढ़ रही जितनी होनी चाहिए। बार-बार पानी देने की जरूरत पड़ती है। बारिश कम होती है इस वजह से पेड़ पौधे या तो बीच में ही दम तोड़ जाते हैं या फिर उन्हें पशु खत्म कर देते हैं। इस क्षेत्र में कांटेवाले पौधे, काला नीम, पपड़ी, बेलपत्र, आंवला आदि को पशु कम खाते हैं जबकि पीपल, बरगद एवं नीम आदि को पशु अधिक खाते हैं।
 क्षेत्र के समाजसेवी पौधारोपण करने वाले तथा फॉरेस्ट से संबंधित अधिकारी एवं कर्मचारियों से संबंध में चर्चा की गई।
 सुरेश कुमार करीरा ने करीरा में अकेले अपने दम पर एक वाटिका का निर्माण किया है जिसमें करीब 300 पौधों की सेवा कर रहे हैं। उनका कहना है कि पानी का अभाव बड़ी समस्या है, अक्सर कड़ाके की ठंड और भीषण गर्मी पड़ जाते हैंमें पैधे दम तोड़ देते हैं। यदि पौधों की देखरेख की जाए और सप्ताह में कम से कम एक बार पानी दिया जाए तो निश्चित रूप से बढ़ पाएंगे। पौधे लगाने के पीछे दिखावा न हो। उनका कहना है कि कुछ लोग मान लेते हैं कि पौधे अपने आप पैदा हो जाएंगे अपने आप नहीं तो बढ़ेंगे पाएंगे इसलिए उनकी सेवा बच्चे की तरह की जानी चाहिए।
राजेश कुमार एक प्रवक्ता है जिन्होंने बहुत पेड़ पौधे लगाए हैं। उनका कहना है कि पेड़ पौधे अधिक बढ़ाए जा सकते हैं, बस भेड़ बकरियों से बचाना चाहिये। क्षेत्र में भारी संख्या में भेड़ बकरियां होती है और भेड़ बकरियां छोटे पौधों को चट कर जाती है इसलिए पौधों की सुरक्षा के इंतजाम किए जाएं वहीं पर उन्होंने बताया कि यदि पेड़ों की देखरेख नियमित की जाए तो बहुत बेहतर होगा। पानी पर्याप्त होना जरूरी है। यदि पानी कम होगा तो पेड़ पौधे नष्ट हो जाएंगे। सप्ताह में कम से कम एक बार जरूर पौधों को पानी दे, उनकी सफाई रखें तब जाकर यह पेड़ पौधे बढ़ सकते हैं। उनका कहना है कि खाली जगह हो वहां पेड़ पौधे लगाए जाने चाहिए। छोटी-छोटी वाटिका भी निर्मित की जानी चाहिए जिससे पेड़ पौधे बढ़ सकते हैं।
पूर्व फोरेस्टर जसवंत सिंह का कहना है कि पेड़ पौधे लगाने के साथ-साथ सेवा करने से कामयाबी मिलती है। हर वर्ष हजारों पेड़ पौधे लगाये जाते हैं लेकिन देखरेख अभाव, जल आदि की आपूर्ति अभाव में दम तोड़ देते हैं।
फॉरेस्ट अधिकारी देवेंद्र सिंह का कहना है कि पेड़ पौधे बच्चे की भांति पाले जाते हैं जिसके लिए आवश्यकता है पानी की। पर्याप्त पानी नहीं मिलना दक्षिण हरियाणा में एक बड़ी समस्या है इसलिए अधिक पेड़ पौधे नहीं लगाए जा सकते हैं। यदि नहरों का पर्याप्त प्रबंध हो पानी आता रहे तो संभावनाएं कुछ पौधे और बढ़ाए जा सकते हैं। उन्होंने बताया कि रोड निर्माण तथा विकास कार्यों के दृष्टिगत पेड़ों की कटाई अधिक होती है और लगाए कम जाते हैं। उन्होंने कहा कि यदि हम सभी मिलकर प्रयास करें तब यह संभव हो पाएगा। भेड़ बकरियों से बचाए, पानी नियमित रूप से तब ही पौधे बन पायेंगे।  उन्होंने कहा कि  सप्ताह में कम से कम एक बार पानी दें तभी बच पाएंगे। घरों में जो पौधे लगाये जाते हैं उनकी सेवा प्रतिदिन की जानी चाहिए।
पूर्व फॉरेस्ट अधिकारी रूपचंद का कहना है कि पेड़ पौधे संख्या बढ़ा सकते हैं लेकिन किसी एक व्यक्ति का दायित्व नहीं होना चाहिए। सभी सरकार के साथ मिलकर कार्य करें तो पेड़ पौधे निश्चित रूप से बढ़ेंगे। खाली जगह पर पेड़ पौधे लगाए, सुरक्षा की जाए,  सप्ताह में एक बार जरूर पानी दे,हर रविवार को पानी का दिन कर दिया जाए। उन्होंने कहा कि पेड़ पौधे विकास कार्यों के दृष्टिगत घट जाते हैं, बारिश पर आधारित है।। बारिश अभाव में पौधे सूख जाते हैं। उन्होंने कहा कि पेड़ पौधों की सुरक्षा की जिम्मेवारी भी हमारी जिम्मेवारी होनी चाहिए।
 फोटो कैप्शन: राजेश कुमार, सुरेश कुमार,देवेंद्र, रूपचंद, जसवंत सिंह।



सूखने लगी है बाजरे की फसल 

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 कनीना। विगत दिनों क्षेत्र में बाजरे की फसल की बीजाई कर दी लेकिन बारिश समय पर न होने से अब सूखने के कगार पर पहुंच गई है। किसान मजबूरी वश फसल में पानी दे रहे हैं लेकिन जब तक बारिश नहीं होगी तब फसल को बचाना मुश्किल हो जाएगा।
किसान सूबे सिंह, कृष्ण सिंह ने बताया कि इस समय फसल बड़ी हो गई है किंतु बारिश न होने से समस्या बन गई है। यही कारण है कि अब मजबूरी वश फव्वारों द्वारा सिंचाई की जा रही है। बारिश सागर समय पर हो जाती है तो फसल बज जाएगी वरना यह अगेती फसल नष्ट हो जाएगी।
किसान परेशान हैं। बहुत से किसानों ने तो अभी तक बिजाई भी नहीं की और बारिश का इंतजार कर रहे हैं। जिन किसानों ने बिजाई कर दी वह अब पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। बारिश पर निर्भर है। सावन माह शुरू हो गया है किंतु बारिश अभी तक नहीं हुई है।
 फोटो कैप्शन एक :फसल को पानी देता किसान।


                कनीना में शिवालय पर लगता है तांता
शिव मंदिर-

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जिला महेंद्रगढ़ के कनीना के शिवभक्त भरपूर सिंह निर्बाण की शिव के प्रति आस्था जागृत क्या हुई कि कावड़ लाने का सिलसिला शुरू करने के तत्पश्चात उन्होंने कनीना में ही विशाल शिवालय का निर्माण कर डाला।
  कनीना के मोदीका मोहल्ले का रहने वाला भरपूर सिंह पेशे से एक छोटा सा दुकानदार है किंतु उनकी आस्था विशाल है। अच्छी आमदनी न होते हुए भी उन्होंने शिव के प्रति विश्वास नहीं छोड़ा। शिव के प्रति आस्था क्या जागी कि नीलकंठ एवं हरिद्वार से कावड़ लाने का सिलसिला शुरू कर दिया। वे लगातार 16 वर्षों तक कावड़ लाते रहे। वे बाघेश्वरी धाम पर चढ़ा  देते। वे शिव के प्रति इतने आशक्त हो गए कि उन्होंने अपने खून पसीने की पूंजी से कनीना में विशालकाय शिवालय बनवाने का निर्णय लिया।
इतिहास-
 कनीना निवासी भरपूर सिंह निर्बाण ने  कनीना के बाबा मोलडऩाथ मंदिर के पास ही 21 फुट ऊंची प्रतिमा वाले शिवालय का निर्माण 2000 शुरू करवा दिया। पूरे एक वर्ष तक काम चलने और लाखों रुपये खर्च करके उनका शिवालय पूर्ण हो गया। आखिरकार शिवरात्रि के दिन वर्ष 2001 में यह शिवालय आमजन के लिए खोल दिया गया। आस पास के लोग इस विशालकाय शिवभोले को देखते ही रह जाते हैं। इस शिवालय पर जो भी खर्चा आता है वह स्वयं वहन करते हंै। चढ़ावे के रूप में जो अन्न आता है उसे वह बोरों में भरकर या तो गौशाला को दान कर देता है या फिर गायों को चरा देता है। वर्ष 2001 से लगातार यहां शिवरात्रि हो या महाशिवरात्रि भक्तों की अपार भीड़ जुटती है और विभिन्न प्रकार के प्रसाद चढ़ाकर मन्नत मांगते हैं। यू तो हर सोमवार को यहां भीड़ जुटती है किंतु महाशिवरात्रि या शिवरात्रि को यहां का नजारा देखने लायक होती है। 
भरपूर सिंह-
 (शिवालय के निर्माण करवाने वाले)
  इस शिवालय पर प्रतिदिन सुबह सवेरे सबसे पहले भरपूर सिंह की पत्नी शकुंतला देवी ही पूजा अर्चना करने आती है। उनका पुत्र रोहित कुमार व बच्ची शर्मिला भी अक्सर शिवालय पर आकर पूजा करते हैं। भरपूर सिंह भी सबसे पहले अपनी दुकान पर जाने की बजाय शिवालय पर आकर पूजा करता है। भरपूर सिंह का कहना है कि वे वर्ष 2001 से लगातार यहां सुबह सवेरे आकर पूजा करते हैं तथा झाड़ू लगाकर शिवालय को साफ सुथरा बनाते हैं। कोरोना के दृष्टिगत फिजिकल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए भक्तों को शिवालय पर आने दिया जाएगा। मास्क पहनकर ही आने दिया जाएगा। शिवालय के बाहर भी सेनिटाइजर रखा जाएगा।
शकुंतला देवी
(शिव की अन्यय भक्त एवं देखरेख करने वाली)
मैं वर्ष 2001 से लगातार प्रत्येक सोमवार को तथा शिवरात्रि आदि पर्वों पर शिवालय पर रहकर भक्तों की सेवा करने तथा साफ सफाई करने का काम करती हूं। मुझे शिव के प्रति गहन आस्था है और लोगों में अपार भक्तिभाव देखने को मिलता है। भारी भीड़ यहां आती है।
फोटो कैप्शन 5: कनीना के शिवालय का दृश्य।
  साथ में भरपूर सिंह एवं शकुंतला देवी की फोटो

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