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Monday, March 9, 2020


दिनभर चली होलिका दहन स्थल की पूजा, भंडारा लगाया वहीं मेला लगा
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कनीना। कनीना में सबसे पुरानी होलिका दहन स्थल पर आज दिनभर होली की पूजा अर्चना चलती रही तथा विशाल मेला एवं खेलकूद आयोजित किया गया। कनीना के व्योवृद्ध डा मेहरचंद(84) के अनुसार करीब 800 वर्षों से इसी स्थान पर होलिका का दहन होता आ रहा है। मेले में तथा पूजा अर्चना में महिलाओं की संख्या अत्याधिक थी। कनीना मंडी में होली दहन कुछ वर्षों से अलग हो रहा है।
  कनीना-रेवाड़ी मार्ग पर करीरा मार्ग के पास प्राचीन पानी का जोहड़ स्थित है जिसे होलीवाला जोहड़ नाम से जाना जाता है। इसी जोहड़ के एक किनारे पर विगत एक माह से होलिका दहन की तैयारियां चल रही थी। आज यह पर्व यहां संपन्न होकर दुलेंडी में प्रवेश कर जाएगा।
  इस जोहड़ के एक किनारे पर मुख्य मार्ग पर आज दिनभर होली की पूजा चलती रही। महिलाएं लगभग पूरे कस्बा से सजधज कर आई और पूजा अर्चना की। दिनभर पूजा अर्चना का कार्यक्रम चलता रहा है। वर्षों से ही यहां होलिका एवं प्रहलाद भक्त की पूजा होती आ रही है।
  एक माह पूर्व ही यहां होलिका दहन की तैयारी शुरू हो जाती है। होली के नाम पर डांडा गाड़ा जाता है और तत्पश्चात होली के खेल एवं फाग शुरू हो जाते हैं। एक माह में इस डांडे पर भारी मात्रा में बाड़, सूखा ईंधन एवं पेड़ आदि डालकर होलिका दहन के दिन का इंतजार किया जाता है। दिनभर होलिका दहन के दिन लोग घरों से निकलकर आते हैं और भक्त प्रहलाद की पूजा करते हैं जिसे होलिका पूजा नाम से भी जाना जाता है। इस पर्व के बाद शुरू होता है दुलेंडी का कार्यक्रम।
 होलिका दहन की संक्षेप में पौराणिक कथा बताते हुए सुरेंद्र जोशी का कहना है कि हिरण्याकश्यप अपने पुत्र प्रहलाद भक्त को मारने के हर संभव प्रयास में असफल हो गया तो उनकी बहन होलिका ने हिरण्याकश्यप से कहा कि उनके पास एक ऐसा वस्त्र है जिसे ओढ़कर वे आग में प्रवेश कर सकती हैं। ऐसे में उन्होंने अपने भाई हिरण्याकश्यप से कहा कि वे प्रहलाद को अपनी गोदी में लेकर आग से सुरक्षा करने वाला कपड़ा स्वयं ओढ़कर बैठ जाएंगी। उस पर बाड़ एवं ईंधन डालकर आग लगा देना। प्रहलाद जल जाएगा और मैं बच जाऊंगी। हिरण्याकश्यप ने वैसा ही किया किंतु इस घटना में विष्णु कृपा से होलिका जल गई और भक्त प्रहलाद बच गए। तभी से होलिका दहन की प्रथा चली आ रही है।
 मेला-
समय के साथ-साथ बदलाव आना स्वाभाविक होता है। इस होलिका दहन के स्थान पर कभी से महिलाएं एवं भीड़ आकर पूजा करती है। विगत चंद वर्षों से यहां मेला भी लगने लग गया है। अब तो आलम यह है कि करीब आधा किमी दूरी में मेला लगता है और मेले का सामान होलिका दहन स्थल तक रखकर बेचते देखे गए हैं।
 हालांकि पूजा अर्चना करने आई महिलाएं यहां व्रत धारण करके आती हैं किंतु यहां से जाने के बाद व्रत खोलती हैं। मेले में बच्चों के अलावा कोई खरीददार नहीं होता है। अक्सर मेले में खरीददारी करने का काम महिलाएं करती है किंतु यहां पर मेले में बच्चे ही सामान खरीदते हैं। महिलाएं व्रत के कारण खाने पीने का सामान नहीं खरीदती हैं।
भंडारा लगाया-
होलिका दहन स्थल के पास ही बाबू वेदप्रकाश यादव केघर के पास भंडारा लगाया और आधुनिक युवा पीढ़ी की पसंद पकौड़े का प्रसाद दिनभर खिलाया गया। कई युवा पीढ़ी के जन इस नि:शुल्क भंडारे में मदद करते नजर आए। ओमप्रकाश यादव ने बताया कि यह भंडारा वर्षों से यहीं पर चला आ रहा है।  इस मौके दिनेश कुमार, अनिल कुमार, बाबू वेदप्रकाश, पंकज एडवोकेट, जितेंद्र, जोगेंद्र, सुनील, बलवान, प्रकाश,मुकेश कुमार, मुकेश शर्मा, बलिया, दिनेश यादव सहित कई समाजसेवियों ने भंडारे में मदद की।
फोटो कैप्शन 6: होलिका की पूजा करती महिलाएं एवं डाले गए गोबर के अस्त्र एवं शस्त्र साथ में लगा मेला।
   7: होली पर लगाया भंडारा।


कई तरीकों से लुत्फ उठाया जाता है

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कनीना। रंगों के त्योहार होली पर अनेकों प्रकार के रंगों और गुलालों से होली का लुत्फ लिया जाता है वहीं होलिका दहन से पूर्व ग्रामीण अचल में अनेकों प्रकार के खेल खेले जाते रहे हैं जिन्हें होली के खेल कहा जाता है। अब तो धीरे-धीरे होली के खेल लुप्त होने लगे हैं। होली अब रंगों का प्यार भरा पर्व न होकर दुश्मनी साधने का एक तरीका बन गया है।
 एक जमाना था जब रंगों के त्योहार को प्यार और सौहार्द से मनाया जाता था और आंखों व मुंह में रंग आदि नहीं डाला जाता था किंतु अब तो या तो मुंह को काले तेल से लेपकर सरेआम मुंह काला कर दिया जाता हे या फिर मुंह में गंदे रंग भरकर दुश्मनी साधी जाती है। अब तो ग्रामीण अंचलों में भी कीचड़ में इंसान को पटककर होली खेली जाती है। यही कारण है कि होली के प्रति वो लगाव नहीं रहा है और सभ्यजन तो होली से कोसों दूर रहना चाहता है। होली से पूर्व कई दिनों तक चलने वाले होली के खेल भी अब समाप्त होते जा रहे हैं। युवा वर्ग अब होली के खेल न खेलकर दुश्मनी के खेल खेलने में अधिक रुचि लेता है।
   होली के खेल अगर इस मौके पर खेले जाए तो ग्रामीण क्षेत्रों में जहां बिजली अभाव के कारण होली खेलने वालों को चोर समझ कर पीट दिया जाएगा। यही कारण है कि होली के खेल लुप्त प्राय हो चले हैं। एक वक्त था जब होली का डांडा गाड़ा जाता था उसी वक्त से ही होली के खेल शुरू कर दिए जाते थे। मस्तानों की टोलियां जहां होली के खेल खेलती थी वहीं डांडे के चारों ओर भारी मात्रा में ईंधन डालकर होलिका दहन के लिए तैयार करते थे। अब तो हालात यह बन गई है कि होली पर ईंधन डालने वालों की ही कमी नजर आती है।
  एक जमाना था जब होली के खेलों को चांदनी रातों में लुक्का छिप्पी के रुप में खेला जाता था। गलियों में रातभर भागदौड़ मची रहती थी। घरों में औरतें और बच्चे होली के खेल खेलते थे और गीत गाकर होली आगमन की सूचना देते थे। अब गांवों में होली खेलने वालों का लगभग अकाल ही पड़ गया है। रंजिश के चलते कोई भी माता पिता अपने बच्चों को घर से बाहर नहीं जाने देता। यदि युवा वर्ग होली खेलने निकलेगा तो वो दिन दूर नहीं है जब आपस में भारी मार पिटाई शुरू न कर देंगे। ऐसे में अब होली के खेल समाप्त होने को हैं। अब न तो सौहार्दपूर्ण वातावरण ही रहा है और न ही होली के खेल रहे हैं। आने वाले समय में होली का पर्व महज एक औपचारिकता बनकर रह जाएंगे।



मनाई गई होली

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कनीना।  मोहनपुर स्थित हेरिटेज पब्लिक वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय मोहनपुर में  होली का पर्व बड़ी धूमधाम से मनाया गया।
 इस अवसर पर बच्चों ने रंग गुलाल लगाकर होली खेली। इसके बाद बच्चों ने नृत्य पेश किए। गुंजन कक्षा सातवीं ने नृत्य नृत्य, मानसी ने भाषण तथा देवांशी कक्षा आठवीं ने डांस दिखाया। चेयरमैन ओमप्रकाश शर्मा ने बच्चों को होली के पर्व की शुभ शुभकामनाएं दी। इस मौके पर महिला अध्यापिकाओं को सम्मानित किया गया। इस मौके पर होली के पर्व की शुभकामनाएं दी। इस उपलक्ष्य पर प्रधानाचार्य कृष्ण सिंह, कैलााचंद सीइओ,विद्यालय समिति के सभी प्रबंधक और अध्यापक गण उपस्थित थे।
फोटो कैपन 1: हेरिटेज स्कूल में महिला शिक्षकों को सम्मानित करते हुए।


होली पर जल बचत की ली शपथ 

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कनीना। रंगों के त्योहार होली के प्रति लोग जल बचाने, रंगों की बजाय गुलाल एवं तिलक लगाकर होली खेलने के पक्ष में हैं। वे इस प्यार एवं भाईचारे के पर्व को दुश्मनी भुलाकर खेलना पसंद करते हैं। राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय धनौंदा में पानी बचाने, टीका लगाकर होली खेलने की शपथ ली।
  प्राचार्य कृष्ण कुमार ने कहा कि रंगों के त्योहार को वे हर हाल में खेलने के पक्षधर हैं किंतु वे नहीं चाहते है कि जल को अनावश्यक रूप से बर्बाद किया जाए या फिर किसी के मुंह को जहरीले रंगों से काला पीला किया जाए। रंगों के पर्व होली से पूर्व क्षेत्र के कुछ प्रबुद्ध जनों ने शपथ ली की वे कम से कम जल प्रयोग करेंगे तथा दूसरों को भी जल बचाने की प्रेरणा देंगे।
 मुख्याध्यापक महिपाल सिंह का कहना है कि पानी जीवन का आधार है और दिनोंदिन पानी कम होता जा रहा है। ऐसे में रंगों से बचने एवं पानी को बचाने के अलावा तिलक लगाकर होली खेलना चाहते हैं और दूसरों को भी यही प्रेरणा दे रहे हैं। उनका कहना है कि जिस प्रकार रंग हमें खुश नजर आते हैं ठीक उसी प्रकार वे हंसकर यह पर्व मनाएंगे।
राजेा कुमार वरिष्ठ प्रवक्ता ककराला ने कहा कि होली पर पुराने बैर भाव भुलाकर प्रेम एवं सद्भाव से यह पर्व मनाना चाहिए। वे स्वयं भी रंगों को एक दूसरे पर न डालकर गुलाल से ही होली खेलना चाहते हैं। पानी को बचाना उनका लक्ष्य रहेगा।
 उन्होंने कहा कि वे सभी के जीवन की मंगलकामना करने के उपरांत तिलक लगाकर एक दूसरे से गले मिलते हैं और लंबे जीवन के लिए मंगलकामना करते हैं। वे पानी को बेकार बहाने से रोकने की प्रेरणा देंगे। 
 नीलम कुमारी प्राध्यापिका कहा कि होली रंगों के बहाने एकता का प्रतीक है। जिस प्रकार सभी रंग मिलकर श्वेत रंग बन जाता है ठीक उसी प्रकार इस पर्व पर सभी प्यार में मिलकर इतना बड़ा प्यार कायम करे कि पूरा देश एकसूत्र में बंध जाए। उन्होंने पानी एवं जहरीले रंगों से होली खेलने से गुरेज किया है। उन्होंने कहा कि रंगों से खेली होली में आपसी द्वेषभाव भूला दिए जाते हैं।
लक्ष्मी देवी शिक्षिका ने कहा कि वे होली पर पानी अनावश्यक न बहाने की शपथ लेते हैं और गुलाल एवं प्राकृतिक रंगों से ही होली खेलेंगे। वे इस पर्व पर एक वर्ष की ही नहीं विगत समय की सभी द्वेष भावना को भुलाना चाहते हैं। यही उनका पैगाम है।
 बहरहाल इस होली के पर्व पर महेश बोहरा,कुलदीप कुमार भी अनावश्यक रूप से पानी को बहाने से रोकने तथा पानी को बचाने के पक्ष में हैं। धीरे-धीरे सुधार हो रहा है और रंगों की बजाय गुलाल या चंदन के तिलक से होली खेलने के पक्ष में हैं। प्यार एवं भाईचारे से इस पर्व को मनाने के लिए वे कटिबद्ध हैं।
फोटो कैप्शन 2: धनौंदा स्कूल में तिलक लगाकर होली खेलते प्राचार्य, शिक्षक एवं विद्याथी।


कनीना क्षेत्र के कई साहित्यकारों को किया गया सम्मानित

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कनीना। अटेली में धर्मपाल ज्वैलर्स काम्प्लेक्स में साहित्य संस्कृति मंच के तत्वावधान में महिला दिवस के अवसर पर नारी गौरव विषय पर  कवि संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसमें उत्कृष्ट कलमकारों को सम्मानित किया गया जिनमें कनीना क्षेत्र के कई साहित्यकार ाामिल हैं।
इस भव्य आयोजन में मुख्य अतिथि के तौर पर राष्ट्रपति द्वारा सम्मानित मंजू कौशिक विशेष अतिथि के रूप में अटेली के खंड शिक्षा अधिकारी डॉ राजेन्द्र सिंह यादव, अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार हरियाणा ग्रंथ अकादमी के सदस्य रोहित यादव ने की।
इस कार्यक्रम में कवियों ने बहुत जोशीले अंदाज में अपनी कविताओं का वाचन किया जिससे पूरा वातावरण भोर विभोर हो गया। हरियाणा भर से आए विभिन्न साहित्यकारों को उनकी पुस्तक लेखन के लिए साहित्य श्री सम्मान देकर विभूषित किया जिसमें वरिष्ठ साहित्यकार  जयप्रकाश कौशिक, डॉ जितेंद्र भारद्वाज, महेंद्र वर्मा , शैलेन्द्र सिंह शैली एडवोकेट,कनीना उत्कृष्ट साहित्यकार होशियार सिंह यादव, विजयपाल सेहलंगिया, सभाचन्द, किरन यादव,डॉ ईश कुमार,गीतांजलि शर्मा,विजेश यादव, नेमीचन्द शांडिल्य, डॉ कृष्णा आर्य, कुलदीप शास्त्री, गिरिबाला एडवोकेट,  दलबीर फूल, त्रिलोक चन्द सैन, योगेश हरियाणवी,शर्मिला कुमारी शील, पलका रानी,सुंदर लाल सुबोध, राजेश कुमार उन्हाणी प्रमुख हैं। कनीना क्षेत्र के कवियों ने कविताएं पेश की वहीं उनकी पुस्तक का विमोचन भी किया गया। कनीना के विजयपाल सेहलंगिया की पुस्तक गीतों की पुकार का विमोचन किया गया। वीरेंद्र सिंह कैमला मुख्याध्यापक को भी सम्मानित किया गया।
मंच संचालन डा सी एस वर्मा व डॉ रणपाल सिंह ने किया। इस पर साहित्य संस्कृति मंच के कार्यकारिणी के सदस्य अशोक गोठवाल, सुबोध, राजेश गोयल, कोषाध्यक्ष सतीश , विजय,  सोनी;मदन मोहन, नेमिचंद शांडिल्य, मा. राजेश उन्हाणी आदि समस्त सदस्य उपस्थित थे।
फोटो कैप्शन 3: विजयपाल सेहलंगिया की पुस्तक गीतों की पुकार का विमोचन करते एवं उन्हें सम्मानित करते हुए।


डाक्टरों के अनुसार रासायनिक रंगों की होली हानिकारक

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कनीना। पानी बचाकर होली खेलने की प्रेरणा देगा युवा वर्ग। होली को सामान्य तरीकों से मनाने तथा टीका लगाकर या फिर गुलाल का टीका लगाकर ही खेलेंगे। पानी को बचाने के लिए तथा रोगों से बचने के लिए रासायनिक रंगों से होली खेलने से बचेंगे।
 रासायनिक रंगों से बचना चाहिए। रासायनिक रंगों के प्रयोग से जहां खुजली, एलर्जी तथा कई अन्य बीमारियां हो जाती हैं। कनीना के विभिन्न डाक्टरों की रासायनिक रंगों के प्रयोग करने के बारे में राय प्रस्तुत है। वे चंदन का टीका लगाने तथा गले मिलने की बात पर जोर दे रहे हैं।
झगड़ोली निवासी डा अजीत शर्मा का कहना है कि रासायनिक रंगों से होली खेलना सेहत के लिए प्रतिकूल है। इन रंगों से खुजली, त्वचा के रोग, जलन एवं कई अन्य बीमारियां होने का अंदेशा होता है। रासायनिक रंगों में जल का अधिक उपयोग होने से जल की बर्बादी होती है। कपड़ों एवं चेहरे को रंग खराब कर देता है। इन रंगों से उन्होंने बचने की सलाह दी है।
  गागड़वास के डा वेदप्रकाश का कहना है कि रासायनिक रंगों से होली खेलना किसी भी रूप में बेहतर नहीं है। एक ओर पानी की बर्बादी तो दूसरी ओर शरीर को नुकसान। एक ओर रासायनिक रंग कपड़ों को दागिल कर देता है तो दूसरी ओर शरीर से रंग छुड़ाने से भी नहीं छूटता है। उन्होंने गुलाल एवं रंगों का प्रयोग न करने की अपील की है। उन्होंने कहा कि आंख, मुंह व नाक आदि में रंग गिर जाने पर तुरंत डाक्टर की सलाह लेनी चाहिए। ये रंग जहरीले होते हैं।
 विक्की पंसारी का कहना है कि होली खेलना अच्छी बात है किंतु रासायनिक रंगों की बजाय चंदन से तथा हो सके तो गुलाल से ही खेलना चाहिए। किसी परेशान व्यक्ति पर रंग गुलाल न डालकर गले से मिलकर खुशी का इजहार करना चाहिए तभी होली का रंग सच्चा रंग बन पाएगा। रासायनिक रंग कई मायनों में हानिकारक हैं।
  कनीना के समाजसेवी महेश कुमार का कहना है कि होली जरूर खेलनी चाहिए परंतु होली के नाम पर पानी की बर्बादी नहीं होनी चाहिए। पानी के लिए दिनरात मारामारी चलती है उसे केवल रंगों से खेलने व रंगों को हटाने में बर्बाद नहीं करना चाहिए। रासायनिक रंग डालकर  दुश्मनी साधने का पर्व नहीं बनाना चाहिए।
कुलदीप सिंह बोहरा का कहना है कि रंगों का पर्व होली हमें संदेश देता है कि एकता एवं बैर भाव को भूलाना। पुराना बैर भाव भूला देना चाहिए तथा एकता को कायम करना चाहिए। रासायनिक रंग कानों, आंखों एवं चेहरे के लिए घातक होते हैं।
 सुमेर सिंह चेयरमैन का कहना है कि होली अभी भी ग्रामीण क्षेत्रों में जमकर खेली जाती है। होली हमें एकता, बंधुता, भाईचारा एवं प्यार का संदेश देती है।  रासायनिक पदार्थों की होली, केवल शरीर को नुकसान पहुंचाती हैं। उससे बचना चाहिए। रासायनिक रंगों का नुकसान वर्षों तक घातक साबित होता है।
  फोटो कैप्शन: डा अजीत शर्मा, डा वेदप्रकाश, कुलदीप बोहरा, महेश कुमार, विक्की पंसारी, सुमेर सिंह चेयरमैन की फोटो साथ हैं।

होली पर आयोजित हुआ हवन

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कनीना। कनीना के आर्य समाज मंदिर में होली के पावन पर्व पर हवन आयोजित किया गया। इस मौके पर हवन में यजमान मनफूल सिंह आर्य को नियुक्त किया गया। इस मौके पर मुख्य अतिथि राव मोहर सिंह प्रधान थे।
   यज्ञ में अपने विचार रखते हुए प्रधान राव मोहर ङ्क्षसह ने कहा कि यज्ञ से वातावरण शुद्ध होता है वहीं एक पुनीत का कार्य होता है। यज्ञ का फल किसी बिरले को ही मिल पाता है। उन्होंने यज्ञ के शरीर, मन, वातावरण एवं देश के लिए होने वाले लाभों के विषय में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने यज्ञ के विभिन्न रूपों के बारे में विस्तार से जानकारी दी। इस अवसर पर राव मोहर सिंह प्रधान, मनफूल सिंह आर्य, कृष्ण प्रकाश, सरल लता आदि मौजूद थे।
फोटो कैप्शन 8: हवन आयोजित करते हुए आर्य समाज के जन।


 योग से होते हैं रोग दूर-

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कनीना। समीपी गांव बव्वा में पांच दिवसीय निशुल्क योग शिविर लगाया गया जिसमें सैकड़ों की संख्या में लोगों ने भाग लिया। पंतजलि योग समिति द्वारा लगाए गए शिविर में जिसमें दयानंद द्वारा योग की शिक्षा दी गई। इस मौके पर मुख्य अतिथि कांता महिला प्रभारी पतंजलि तथा विशिष्ट अतिथि रामनिवास जिला प्रभारी पतंजलि थे7
 दयानंद ने कहा कि योग से नजला, जुकाम, माइग्रेन, अस्थमा, मधुमेह, मोटापा, उच्च एवं निम्र रक्तचाप, हृदय रोग, कमर दर्द, सियाटिका, स्पोंडोलाइटिस, गठिया, पथरी, बवासीर, गैस, कब्ज, त्वचा रोग एवं स्त्रियों के विभिन्न रोगों के इलाज में लाभ मिलेगा।
 उन्होंने बताया कि समाज के करीब 90 फीसदी व्यक्ति रोगों से पीडि़त हैं। उन्होंने कहा कि योग अपनाओ व रोग भगाओ। उन्होंने अटेची रखने किंतु अटेचमेंट न रखने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि आज योग एवं ध्यान का डंका पूरे विश्व में बज चुका है। पूरे विश्व में भारत का नाम इस शिक्षा में टाप पर है। इस शिक्षा में ही नहीं अपितु किसी जमाने में भारत विश्वगुरू रहा है। विदेशों के लोग यहां शिक्षा पाने आते थे और यहां शिक्षा पाकर जाते थे। उन्होंने कहा कि आज भी लोग पैसे के अभाव में विभिन्न रोगों का समुचित इलाज नहीं करवा पा रहे हैं किंतु योग एवं ध्यान ऐसी शिक्षाएं हैं जिनके द्वारा इंसान घर बैठकर ही बीमारियों से निजात पा सकता है। उन्होंने लोगों का इस प्रकार के शिविर में बढ़ चढ़कर भाग लेने का आह्वान किया।
    इस अवसर पर रामनिवास जिला प्रभारी ने कहा कि आज के दिन लोगों के आहार विहार के चलते रोग बढ़ते ही जा रहे हैं। हमारे पूर्वज उन रोगों से कभी पीडि़त नहीं होते थे जिनसे आज बहुत अधिक लोग पीडि़त हो रहे हैं। आज के दिन लोगों के पास काम का अभाव है, शारीरिक परिश्रम कम कर दिया है वहीं जहरीले पदार्थों का प्रचलन बढ़ जाने से अकाल ही इंसान काल का ग्रास बन जाता है। उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य है कि जिस देश के लोग स्वास्थ्य की एक मिशाल होते थे वहां भी भयंकर रोग धावा बोलने लगे हैं। उन्होंने कहा कि रोगों को भगाने एवं चिरायु जीवित रहने का एकमात्र उपाय संगीतमय ध्यान एवं योग है।
इस मौके पर सूरत सिंह पूर्व सरपंच, संतोष लंबरदार सुरेंद्र,  सुरेंद्र सिंह, धर्म सिंह, ईश्वर पूर्व सरपंच आदि ने भाग लिया।
फोटो कैपन 9: योग की शिक्षा देते दयानंद।



 सभी ट्रेनों के ठहराव के लिए दिया ज्ञापन

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 कनीना। ग्राम पंचायत रसूलपुर ने कनीना खास रेलवे स्टेशन पर सभी ट्रेनों का ठहराव करने तथा समस्याओं को हल करने संबंधित एक ज्ञापन स्टेशन अधीक्षक निहाल सिंह के जरिए मंडल प्रबंधक उत्तर पश्चिम रेलवे बीकानेर को भेजा है।
 उन्होंने ज्ञापन में कहा है कि कनीना खास रेलवे स्टेशन के आस पास 58 गांव पड़ते हैं वह 30 गांव रेवाड़ी जिले के आसपास लगते हैं। क्षेत्र लगभग 53000 फौजी हैं तथा 78000 पूर्व सैनिक हैं। यहां से प्रतिदिन 500 व्यापारियों का दिल्ली तथा महेंद्रगड़ की ओर होता है। यहां के रेलवे स्टेशन कनीना खास से प्रतिदिन 1500 यात्रियों का होता है। कनीना से दिल्ली तथा बीकानेर साइड को 30 ट्रेनों का आवागमन प्रतिदिन होता है किंतु जिनमें से महज 8 पैसेंजर ट्रेन ही ठहराव करती है।
कनीना खास रेलवे स्टेशन पर 2008 से पहले सभी एक्सप्रेस एवं सुपरफास्ट ट्रेन ठहराव करती थी परंतु बड़ी लाइन बनने के बाद कोई सुपरफास्ट ट्रेन नहीं करती।  कनीना से रेवाड़ी 40 किलोमीटर इंदरगढ़ 20 किलोमीटर है। सैनिकों का आना-जाना इतनी दूरी से परेशानी का कारण बना हुआ है।  कनीना खास रेलवे स्टेशन पर सभी सुपरफास्ट और एक्सप्रेस ट्रेनों का ठहराव सुनिश्चित किया जाए ताकि समस्याओं का समाधान हो सके। कनीना खास रेलवे स्टेशन पर प्लेटफार्म नंबर 1 से प्लेटफार्म नंबर 2 पहुंचने के लिए 1 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है।
विद्युतीकरण होने के कारण अगर कोई लाइन क्रास करता है तो दुर्घटना होने का खतरा बना रहता है। साथ में प्लेटफार्म नंबर दो पर  वर्षा से बचाने के लिए टीन शेड तक नहीं है। प्लेटफार्म नंबर दो पर कम से कम 200 व्यक्तियों के रुकने की व्यवस्था की जाए। केवल प्लेटफार्म नंबर एक पर एक छोटी सी टीन शेड डलवा रखी है जिसके नीचे 50 व्यक्ति ही आ सकते हैं। इस सेड का विस्तार किया जाए ताकि यात्रियों की परेशानी कम हो सके।
   उन्होंने ज्ञापन में कहा है कि कनीना क्षेत्र वीर सैनिकों का बाहुल्य क्षेत्र है। भारत सरकार की तरफ से इस क्षेत्र के सैनिकों ने अनेक बहादुरी के जलवे दिखाकर अशोक चक्र, वीर चक्र, वीरता पुरस्कार प्राप्त कर रखे हैं। रेजांगला पोस्ट पर 11 कुमाऊँ रेजीमेंट के 128 में से 114 जवान शहीद हुए थे और इस चोटी पर विजय प्राप्त की थी। उनको  आशा ही नहीं बल्कि पूर्ण विश्वास है कि सैनिकों की भलाई और क्षेत्रवासियों की सुविधा के दृष्टिगत स्थाई ट्रेनों के ठहराव को स्थाई किया जाए और सभी फास्ट सुपर फास्ट रेलवे स्टेशन कनीना खास पर स्थायी रूप से रोकी जाए। ज्ञापन लेकर स्टेशन मास्टर निहाल सिंह ने ज्ञापन अविलंब उच्च अधिकारियों को भेजने का आश्वासन दिया। इस मौके पर सरपंच उमेद सिंह के नेतृत्व में नंबरदार ओमवीर यादव, समाजसेवी धर्मपाल डीपी, वीर सिंह यादव, समाजसेवी शेरसिंह रोहिल्ला,अधिवक्ता वीरेंद्र सिंह, अजित माथुर, मास्टर कृष्ण प्रकाश, सुमेर सिंह, अश्वनी, वेद प्रकाश, रामकिशन, संदीप आदि उपस्थित थे।
फोटो कैप्शन 10 को लेकर ज्ञापन देते हुए लोग

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