Not sure how to add your code? Check our installation guidelines **KANINA KI AWAZ **कनीना की आवाज**

Monday, March 29, 2021





 
हंसी खुशी से रंगों का पर्व दुलेंडी संपन्न















*************************************************
*******************************************************
**********************************************************
 कनीना। कनीना में धुलेंडी का पर्व होली का पर्व धूमधाम से संपन्न हुआ। होली के पर्व पर किसी अप्रिय घटना का समाचार नहीं मिला है। दिन भर लोग रंग गुलाल से होली खेलते नजर आए।
 उल्लेखनीय है कि युवा वर्ग में पहली बार देखने को मिला कि पानी की बचत कर रहे थे तथा प्राकृतिक रंग एवं गुलाल आदि से होली खेल रहे थे। अजीत कुमार, सूबे सिंह, राजेंद्र सिंह आदि ने बताया कि उन्होंने पहली बार हल्दी, टेसू के फूल, चुकंदर का रस, पत्तों के रस एवं मेहंदी आदि से होली खेली और पानी को बचत किया पहली बार क्षेत्र में सूखी होली खेलने को मिली। वहीं यदाकदा कुछ लोग पानी बिखेरते भी नजर आए। विगत वर्षों से कनीना क्षेत्र में गंदे पानी डालने कीचड़ में डालने आदि की घटनाएं घटती रहती थी किंतु इस बार होली पर ऐसी कोई घटना नहीं देखने को मिली। वहीं दुुलेंडी के दिन तो दिन भर सड़कों, गलियों में होली खेलते लोग नजर आए। क्षेत्र में भडफ़ एवं जैनाबाद,सीहा, निमोठ, बवानिया आदि गांवों में मेले लगे वहीं  जैनाबाद आश्रम में लाल दास महाराज ने होली खेली और भक्तों पर रंग डाला। भक्तों ने भी महाराज पर रंग डाला। होली का पर्व धूमधाम से विभिन्न संस्थाओं में भी मनाया गया। होली खेलते महिलाएं, पुरुष एवं बच्चे देखे गए।
  दुलेंडी का पर्व धूमधाम से मनाया गया। इस बार रंगों का कम प्रयोग हुआ तथा गुलाल से होली खेलते देखे गए। पानी भी प्रयोग किया गया किंतु इस बार कम पानी प्रयोग किया। कई स्थानों पर मेले लगे तथा बाल उतरवाने की परंपरा पूर्ण की गई।
 दुलेंडी का पर्व क्षेत्र में पूरे उत्साह के साथ मनाया गया। आपस में गुलाल लगाकर होली खेलते देखे गए। संत लालदास उधोदास आश्रम स्वयं भक्तों से होली खेलते देखे गए। कई स्थानों पर मेले लगे। जैनाबाद, कारोली तथा कई अन्य स्थानों पर होली के पर्व पर मेले लगे।
  कनीना के सामान्य बस स्टैंड पर तथा अनाज मंडी में सभी दुकानें बंद रही और वे होली खेलते देखे गए। विभिन्न संस्थानों एवं समाजसेवियों के अनुरोध पर इस बार कम पानी का प्रयोग हुआ। बच्चे एवं युवा ही अधिक संख्या में होली खेलते मिले।
  दुलेंडी पर अकसर लड़ाई झगड़ा होता रहा है किंतु इस बार शांतिपूर्वक पर्व संपन्न हो गया। पत्रकार, समाजसेवी, नेता एवं सामान्य जन बढ़ चढ़कर गुलाल लगा रहे थे।
फोटो कैप्शन 6 से 8: होली खेलते कनीना के लोग।



होलिका दहन विभिन्न तरीकों से मनाया गया
***************************************************************
************************************
******************************
कनीना। कनीना क्षेत्र में होलिका दहन के लिए कई कार्यक्रम आयोजित किए गए।  मेले लगे तथा भंडारा भी आयोजित किया गया। कनीना के ज्योतिषाचार्य अरविंद जोशी के अनुसार करीब सात बजे  हालिका दहन किया जाना था वैसा ही किया गया।
  विगत एक माह पूर्व से ही होलिका दहन डांडा गाडऩे की प्रथा से शुरू हो जाता है। यद्यपि इस बार होली के खेल, गीत एवं पर्व कम आयोजित किए गए किंतु होलिका दहन पर व्रत रखकर होलिका की पूजा अर्चना का कार्यक्रम दिनभर चलता रहा। होलिका दहन पर बाड़, कांटेदार झाडिय़ा एवं युद्ध में प्रयोग किए जाने वाले हथियारों के प्रतीक भी प्रयोग किए गए। दुलेंडी की सुबह फिर से होलिका दहन स्थल की पूजा की जाएगी तथा गाड़ा गया डांडा निकालकर संवत का पता लगाया जाएगा।
  क्षेत्र में कई जगह होली के मेले आयोजित किए गए। कनीना के होलीवाला जोहड़ पर बसासत के वक्त से होली मनाई जाती आ रही है तथा जोहड़ का नाम भी होलीवाला जोहड़ रखा गया है। यहां पर होली का दिनभर मेला लगा तथा होलिका दहन स्थल पर पूजा अर्चना चलती रही। बाबूजी वेदप्रकाश द्वारा यहां पर सद्भावना बतौर पकवान खिलाने का कार्यक्रम दिनभर चलता रहा। विगत वर्ष होलिका दहन के दिन भी उन्होंने इस प्रकार का कार्यक्रम आयोजित किया था।
  कनीना मंडी में भी होली मनाई गई। समीपी गांवों में भी होलिका दहन चला।
      मान्यताएं-
होलिका दहन से पूर्व प्रह्लाद भक्त को बचाने के लिहाज से व्रत रखते हुए पूजा की जाती है ताकि प्रह्लाद भक्त बच जाए। आज भी वो पुरानी यादें लोगों के जीन में बसी हुई हैं। बताया जाता है कि जब प्रह्लाद भक्त बच गए और होलिका जल गई तो खुशी में रंगों का पर्व मनाया गया जो आज भी चला आ रहा है। होली से अगले दिन दुलेंडी खेली जाती है।
  माना जाता है कि प्रह्लाद भक्त को मारने के लिए कितने ही लोगों के हाथों में हथियार थे जो होलिका दहन पर यह समझकर डाल दिए गए कि अब प्रह्लाद मर जाएगा। यह प्रथा आज भी चली आ रही है और गोबर के हथियार आग में डाले जाते हैं। इनको ढाल एवं बिड़ला आदि नाम से जाना जाता है। जब होलिका दहन किया जाता है तो कुछ औरतें उसे बूझा देती हैं। यह भी पुराने वक्त की याद ताजा कर रही है। आग बूझाने वाली औरतें प्रह्लाद को बचाने के पक्ष में थी जबकि आग लगाने वाला उन्हें जलाना चाहता था। आज भी कई मान्यताएं यूं की यूं चली आ रही हैं।
फोटो कैप्शन 9: होलिका दहन का नजारा।


होली पर आयोजित हुये मेले
*****************************************************
**********************************
*************************
 कनीना। कनीना क्षेत्र में होली के पर्व पर विभिन्न गांवों में मेले आयोजित हुये तथा विभिन्न प्रतियोगिताएं भी आयोजित होंगी।
 उधोदास आश्रम में महंत लालदास स्वयं होली खेलें और यहां बहुत बड़ा मेला लगI। इस मेले में पूरे भारत के भक्तजन पहुंचे।
रात को ही होलिका दहन के पश्चात से कार्रवाई शुरू हो जाती है। रात भर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए गये तथा सुबह दुलेंडी के दिन संत लालदास ने होली खेली तथा विभिन्न कार्यक्रम दिनभर आयोजित हुये। भंडारा भी आयोजित हुआ।
बवानिया गांव में भी बड़ा मेला लगता है। यहां  बाबा खेम दास का विशाल मेला आयोजित होगा।  जिसमें कबड्डी, वालीबाल, दौड़, रस्साकशी, ऊंची कूद आदि आयोजित होंगी।
कनीना की समीपी गांव में निमोठ तथा कारोली में भी मेले आयोजित हुये जहां भारी संख्या में भक्तजन पहुंचे।




दुलेंडी पर लगा मेला, संत स्वयं खेली होली
*************************************************
***********************************
*******************
कनीना।  कनीना सीमावर्ती गांव जैनाबाद में स्थित बाबा उधोदास मंदिर पर होली मेला लगा। होली की रात  जागरण हुआ तथा दुलेंडी को बाबा उधोदास की याद में वर्षों से विशाल मेला लगा। भक्तों की अपार भीड़ यहां जमा होती है वहीं संत लालदास स्वयं भक्तों के संग होली खेलते नजर आये।
  कनीना से नौ किमी दूर ग्राम जैनाबाद में  बाबा उधोदास का भव्य मंदिर स्थित है। इसी मंदिर के सामने बाबा की समाधि तथा बाबा के बाद में आए उनके शिष्यों की समाधियों वाला मंदिर है। इन समाधियों में सबसे पहले बाबा उधोदास की समाधि है। इस समाधि के ऊपर की ओर झांक कर देखे तो सैकड़ों वर्ष पुरानी पेंट व ब्रुश से की हुई कलाकारी दिखाई पड़ती है जो आज भी अपनी आब नहीं खो पाई है। यह वही स्थान है जहां अनवरत पूजा अर्चना का सिलसिला चलता रहता है तथा दीप जलते रहते हैं।
       होली के दिन भजन-कीर्तन के समय यहां भारी भीड़ जुटती है। प्रत्येक पूर्णिमा के दिन यहां का नजारा देखने लायक होता है जब प्रवचन, भजन एवं कीर्तन का आगाज किया जाता है किंतु रंगों के त्योहार होली की रात को यहां विशेष जागरण चलता है तथा दिन के समय ढोल एवं नगाड़ों के बीच होली जमकर खेली जाती है। महंत लालदास के साथ होली खेलते भक्तों को देखा जा सकता है। यहां पर हरियाणा ही नहीं अपितु दूसरे राज्यों के भक्तजन भी आकर मन्नतें मांगते हैं। माना जाता है कि उनकी मन्नत पूर्ण हो जाती है जिसके चलते वे दंपति यहां गठ जोड़े की जात देने आते हैं।   गांव जैनाबाद के पास से कंशावती नदी बहती थी। इसी नदी के किनारे पर उधोदास का जन्म हुआ। उधोदास धुन के पक्के और मन के सच्चे थे।  उनके गुरू का नाम दाताराम था। उधोदास ने कंशावती नदी के किनारे एक वृक्ष के नीचे तप और ध्यान लगाते हुए दुखियों के दर्द को मिटाया।
 बाबा उधोदास की समाधि बनी हुई है जहां अनवरत दीपक जलता रहता है।  ढफ और नगाड़ों के बीच हर्षोल्लास के साथ महंत लालदास जी धुलेंडी खेली गई।  बाबा लालदास ने गायों के लिए बाबा के नाम पर एक गौशाला बनवाई हुई है। संत लालदास की देखरेख में गांव ही नहीं अपितु मंदिर को चार चांद लग चुके हैं।  
फोटो कैप्शन 4: जैनाबाद का उधोदास आश्रम।




जौ की खेती भूले किसान
-40 हेक्टेयर पर हुई बीजाई
-होली पर भूनकर खाया जाता है जौ
***********************************************************
******************************************************************
**********************************
*****************************
 कनीना। किसान जौ की खेती कम होती जा रही है।  कनीना खंड के गांवों में महज 40 हेक्टेयर पर जौ उगाए गए हैं। जौ की रोटी, राबड़ी तथा धानी आदि बनाकर प्रयोग करते है। अब किसानों को पूजा के लिए या राबड़ी के लिए जौ खरीदकर लाने पड़ते हैं।
  कभी कनीना खंड में हजारों एकड़ में जौ की खेती की जाती थी। जौ न केवल पूजा आदि बल्कि हवन आदि में भी काम आता हैं। जब नवरात्रे आते हैं या गर्मी में राबड़ी बनानी हो या फिर जौ चनी की रोटी खानी हो तो जौ याद आता है। होली पूजा में जौ भूने जाते हैं तो दूर दराज से ढूंढ ढूंढकर लाए गए।
    किसान अजीत कुमार, सूबे सिंह एवं राजेंद्र सिंह ने बताया कि जौ की पैदावार तो बेहतर होती है तथा पानी की कम जरूरत होती है किंतु इसकी तूड़ी पशु नहीं खाते वहीं इसके रेट गेहूं की तुलना में कम हैं जिसके कारण जौ नहीं उगाया जाता है। एक जमाना था जब हर घर में जौ की खेती की जाती थी जिसे पूरी गर्मी आनंद से रोटी एवं अन्य रूपों में प्रयोग किया जाता था। अब जमाना लद गया है। जौ की खेती करना किसान भूल रहे हैं।
  अब सत्तू, धाणी, पूजा के लिए जौ तथा हवन आदि के लिए जौ बाजार से किसान खरीदते हैं।   कहावत है कि इतिहास अपने आप को दोहराता है। जौ उगाने का युग फिर से लौटकर आता नजर आता है। आज भी कुछ बुजुर्ग जौ को लाकर खाते हैं। दिनोंदिन राबड़ी की मांग बढ़ रही है। ठंडाई के रूप में राबड़ी को प्रति गिलास के हिसाब से बेचा भी जाता है। ऐसे में लगता है कि जौ की खेती आने वाले समय में फिर से हुआ करेगी।
कितनी उगाई गई है फसलें-
कनीना के कृषि विस्तार अधिकारी डा देवराज यादव ने बताया कि वर्तमान में 30340 हेक्टेयर पर कनीना क्षेत्र में विभिन्न प्रकार की फसलें उगाई है। उन्होंने बताया कि 19310 हेक्टेयर पर जहां सरसों, 10590 हेक्टेयर गेहूं, 40 हेक्टेयर पर जौ, 400 हेक्टेयर पर चारे की फसलें  तथा 6 हेक्टेयर पर चने की फसल उगाई गई है।
फोटो कैप्शन 8: कनीना में जौ की खेती दिखाता किसान।



किसानों की नजर गेहूं की ओर
*******************************************
******************************
**********************
कनीना। सरसों की कटाई जहां पूरे यौवन पर है वहीं किसानों की नजर पककर तैयार गेहूं की फसल पर टिकी हुई है। गेहूं की फसल की कटाई दो तीन दिनों में शुरू हो जाने की संभावना है।
  कनीना की बावनी भूमि पर जहां सरसों की बीजाई करीब 19 हजार हेक्टेयर पर की गई थी वहीं गेहूं की बीजाई दूसरे नंबर पर करीब दस हजार हेक्टेयर पर है। सरसों की कटाई पूरे वेग से चल रही है। बाहरी मजदूरों की मदद से किसान कटाई का काम पूरा करवा रहे हैं।  गेहूं की कटाई दो तीन दिनों में शुरू होने की संभावना है। कोरोना के डर से किसानों को शायद इस बार मजदूर कम मिलने के आसार हैं।
  किसान अजी कुमार, राजेंद्र सिंह, सूबे सिंह, कृष्ण कुमार, योगेश कुमार आदि ने बताया कि सरसों की पैदावार बेहतर होने के आसार है। वहीं मटर की कटाई लगभग हो चुकी है। किसान सुबह खेतों में जाते हैं और देर शाम को ही लौटते हैं। कोरोना के चलते किसान खेतों में ही अधिक समय बीताना चाहते हैं।
  किसानों ने बताया कि गेहूं की फसल से न केवल अन्न प्राप्त होता है अपितु पशुचारे के रूप में तूड़ी प्राप्त होती है। किसान पशु पालते हैं जिसके चलते गेहूं की फसल का अहं योगदान होता है। सरसों की पैदावार को जहां तक किसान बेचकर लाभ प्राप्त करते हैं वहीं तेल के रूप में भी प्रयोग करते हैं। अब किसानों के खेतों में सरसों हो या गेहूं फसल के सभी भाग उपयोगी हैं तथा उन्हें भी बेचकर आय प्राप्त की जाती है। गेहूं से अन्न एवं तूड़ी तो सरसों से धांसे, सरसों, पदाड़ी आदि सभी उपयोगी हैं।
फोटो कैप्शन 2: गेहूं की पकी हुई खेतों में खड़ी फसल।

No comments: