Not sure how to add your code? Check our installation guidelines **KANINA KI AWAZ **कनीना की आवाज**

Saturday, August 2, 2025

चल उड़ जा रे पंछी अब यह देश हुआ बेगाना -खत्म हुए दिन उस डाली के जिस पर तेरा बसेरा था....... *************************************************************** *****************************************************************/ **************************************************************** कनीना की आवाज। समाज में लड़कियां आजकल ऐसा काम कर देती है जिसके कारण माता पिता की शर्म से आंखें झुक जाती हैं। एक भाई अपनी बहन के लिए आंसू बहा रहा था और उसकी बहन कोर्ट मैरिज कर मजे लूट रही थी। यहां तक कि अपने भाई और माता-पिता को भी दुश्मन बताते हुए पुलिस में शिकायत की कि उनसे उसे खतरा है। जिस मां-बाप ने 18- 20 साल तक पाल पोशकर बड़ा किया उनको आज दुश्मन बताया जाता हैं। बड़ी अजीब बात है जब भाई अपनी बहन के लिए आंसू बहाए और बहन उससे भी खतरा बता रही हो तो समाज में ऐसी कुरीति को क्या कहा जाए? समाज में एक नई विकृति पैदा हो गई है जिससे अब बचना कठिन लगता है। आने वाले समाज में अगर युवा बच्चों पर माता पिता ध्यान नहीं देंगे तो माता-पिता को और उसके भाइयों को ऐसे ही निराशा देखनी पड़ेगी। कुछ लड़कियां आजकल मोबाइल एवं सोशल मीडिया में इतनी आगे चली गई है कि अपने मां बाप की इज्जत का विचार नहीं रखती, पढ़े लिखे समझ में यह विकृति सिर चढ़कर बोलने लगी हैं। हरी पत्तेदार सब्जी के विकल्प खुद नष्ट कर दिये किसानों ने -चौलाई, श्रीआई अब गायब *************************************************************** *****************************************************************/ **************************************************************** कनीना की आवाज। कनीना और आसपास क्षेत्रों में किसी जमाने में अनेकों जड़ी बूटियां औषधीय पौधे खरपतवार के रूप में उगती थी किंतु किसान ने अपने हाथों से इनको नष्ट कर दिया है। परिणाम स्वरूप पंसारी की दुकानों पर महंगे दामों पर जड़ी बूटियों को ढूंढते फिरते हैं। एक वक्त था जब ग्रामीण क्षेत्रों में खरपतवार आदि को नष्ट करने के लिए कोई दवा का छिड़काव नहीं किया जाता था। महज अपने हाथों से उखाड़ कर इन खरपतवार को फेंक दिया जाता था जिससे अनेकों खरपतवार खेतों में रह जाती थी। किसान ही नहीं लोगों को भी जिनको जरूरत होती थी विभिन्न उद्देश्यों के लिए काम में लेते थे। ऐसी ही आने को खरपतवारों में बथुआ, चौलाई, सीरियाई, कोहेंद्रा, पुनर्नवा आदि प्रमुख थी। किसान उनको अपने खेत से उखाड़ कर लाता था और परिवार के लिए महत्वपूर्ण खाद्य पदार्थ रायता, कोफ्ता, पराठे, भाजी, खाटा का साग, कढ़ी आदि बनाता था किंतु जब से खरपतवार किसानों ने जहरीली दवा डाल कर नष्ट कर दी तब से बाजार में सब्जी की दुकानों पर किसान इन्हें खरीदते देखा जा सकता हैं। सर्दियों के मौसम में पैदा होने वाला बथुआ एवं कोहेंद्रा प्रमुख औषधियां थी। वैसे भी शाक सब्जियां थी जिन्हें विभिन्न रूपों में प्रयोग करता था। डाक्टर ही नहीं वैद्य भी इनको प्रयोग करने की सलाह देते थे। खून की कमी को अक्सर दूर करने के लिए भी इनका अहं योगदान होता था किंतु अब ये खरपतवार किसी खेत में या तो पैदा होती ही नहीं होती है और अगर पैदा होती है तो उन पर जहरीली दवा छिड़की जाती हैं ताकि वेे समूल नष्ट हो जाए। इन दवाओं का कुप्रभाव अनाज पर भी पड़ता है और सांस की बीमारी, कैंसर, मिर्गी, दमा आदि उत्पन्न होते हैं किंतु किसान किसान जानबूझकर आज भी इनका उपयोग कर रहा है। गर्मियों के दिनों में पैदा होने वाली चौलाई ,श्रीआई, पुनर्नवा आज ढूंढे भी नहीं मिलते। बाजार और पंसारी की दुकान ऊपर चौलाई, सीरियाई के बीज ढूंढते हैं या उन्हें पुस्तकों में पढऩे को मिलती हैं। अधिकांश युवा पीढ़ी तो इनके नाम लेते ही अचंभित होते हैं कि यह भी कोई पौधा होता था। वास्तविकता यह है कि आज भी इक्का-दुक्का किसी जगह यह पौधे देखे जा सकते हैं। पर अधिक मात्रा में उत्पन्न नहीं होते। एक जमाना था जब जंगल में गहरी बणिया होती थी। पशुपालक उन बणियों में अपने पशुओं को चराने के लिए ले जाते थे। कैर एवं जाल पेड़ों के आसपास भारी मात्रा में चौलाई और खेतों में सीरियाई खड़ी नजर आती थी। इनको तोड़कर शुद्ध आयरन युक्त शाक बनाता था। आज भी बुजुर्गों के सामने यदि रायता, शाक, कोफ्ता, भाजी, पराठे कढ़ी, खाटा का साग आदि का नाम ले तो वह उत्सुकता भरी नजरों से देखते नजर आएंगे क्योंकि उनके जमाने में उन्होंने बहुत अधिक मात्रा में प्रयोग किया और आधुनिक पीढ़ी ने इनको अपने हाथों से नष्ट कर दिया। ऐसे समय में किसान और आम आदमी इन को नष्ट करके पछता रहा है किंतु कहते हैं अब पछताए होत क्या जब चिडिय़ा चुग गई खेत। अब तो किसी दुकान पर इनको ढूंढ सकते हैं। यही नहीं खेतों में जंगल के रूप में पैदा होने वाली कचरी, जंगली टिंडा, जंगली करेला आदि पूर्ण रूप से खो दिए। इनकी सब्जी जायकेदार होती थी और इंसान आज भी इनको नहीं भुला पाया है। अब जब सब्जियां महंगी होती हैं या फिर औषधियों की जरूरत होती है तो उन्हें ढूंढते फिरते हैं। पालक को महंगे दामों पर खरीद लेंगे किंतु गरीब की पहुंच चौलाई तक होती थी वो अब संभव नहीं है। टमाटर का विकल्प कचरी अब ढूंढे नहीं मिलती। ग्रामीण लोग सबसे अधिक कचरी प्रयोग करते आये हैं। महेंद्रगढ़ पुलिस का नशे के खिलाफ खेल प्रतियोगिताओं के जरिए युवाओं को जागरूक करने का अभियान --सदर कनीना पुलिस ने आयोजित की खो-खो प्रतियोगिता *************************************************************** *****************************************************************/ **************************************************************** कनीना की आवाज। पुलिस अधीक्षक पूजा वशिष्ठ के निर्देशानुसार महेंद्रगढ़ पुलिस ने जिले को नशामुक्त बनाने के लिए एक व्यापक अभियान शुरू किया हुआ है। इस अभियान के तहत, पुलिस का उद्देश्य युवाओं को खेलों के प्रति प्रोत्साहित कर उन्हें नशे के हानिकारक प्रभावों से अवगत कराना है। सदर कनीना पुलिस ने आयोजित की खो-खो प्रतियोगिता- इसी पहल के अंतर्गत, थाना सदर कनीना की पुलिस टीम ने गांव भोजावास में एक खो-खो प्रतियोगिता का आयोजन किया। इस प्रतियोगिता में गांवों की टीमों ने भाग लिया। इसका मुख्य उद्देश्य युवाओं को खेल से जोड़कर उन्हें नशे के शारीरिक और आर्थिक दुष्परिणामों के बारे में जागरूक करना था। इस अवसर पर, भोजावास गांव के सरपंच पवन सहित कई अन्य गणमान्य व्यक्ति भी मौजूद रहे। सरपंच ने पुलिस की इस मुहिम की सराहना करते हुए कहा कि यह पहल युवाओं को खेलों की ओर आकर्षित करेगी, जिससे वे नशे से दूर रह सकेंगे। उन्होंने समाज को नशामुक्त बनाने में अपना पूरा सहयोग देने का संकल्प लिया। थाना प्रबंधक उप-निरीक्षक सज्जन ने युवाओं और ग्रामीणों को संबोधित करते हुए समाज से नशे को जड़ से खत्म करने के लिए एकजुट होने का आह्वान किया। उन्होंने बताया कि पुलिस युवाओं को शिक्षा और खेलों के प्रति प्रेरित कर रही है। उन्होंने यह भी कहा कि पुलिस विभाग के एसपीओ जिले के विभिन्न गांवों में खेल प्रतियोगिताएं आयोजित कर युवाओं को खेलों से जोडऩे का काम कर रहे हैं। उप-निरीक्षक सज्जन ने लोगों से अपील की कि अगर उन्हें किसी भी नशा तस्कर की जानकारी मिलती है, तो तुरंत पुलिस को सूचित करें। उन्होंने स्पष्ट किया कि ऐसे तस्करों का सही स्थान जेल है। इसके साथ ही, उन्होंने यह भी कहा कि नशा करने वाले व्यक्तियों की सूचना भी पुलिस को दी जानी चाहिए। ऐसे व्यक्तियों की काउंसलिंग कराई जाएगी और उन्हें नशा छोडऩे के लिए प्रेरित किया जाएगा, जिसमें पुलिस हर संभव सहायता देगी। फोटो कैप्शन 02: पुलिस द्वारा आयोजित खेल प्रतियोगिता एसडी विद्यालय ककराला करेगा खंड स्तरीय एसजीएफ आई खेल प्रतियोगिता की मेजबानी --खण्ड स्तरीय प्रतियोगिता 04 अगस्त से 07 अगस्त क *************************************************************** *****************************************************************/ **************************************************************** कनीना की आवाज। एसजीएफ आई द्वारा खण्ड स्तरीय प्रतियोगिता 04 अगस्त से 07 अगस्त को एसडी विद्यालय ककराला में लड़के व लड़कियों की अंडर-11, 14, 17, 19 आयु वर्ग खंड स्तरीय प्रतियोगिता का आयोजन किया जा रहा है। विद्यालय प्राचार्य ओमप्रकाश ने बताया कि प्रतियोगिता संबंधित सभी तैयारियां पूरी कर ली गई है। इस प्रतियोगिता में भाग लेने वाले खिलाडिय़ों को आयोजन स्थल पर 8:30 बजे से पहले पहुंचना है। लड़कों की प्रतियोगिता 4 अगस्त व 5 अगस्त तथा लड़कियों की प्रतियोगिता 6 अगस्त व 7 अगस्त को होनी है। कुछ दिनों के बाद बिना वर्षा के बीता दिन -किंतु रात आठ बजे फिर हुई बूंदाबांदी *************************************************************** *****************************************************************/ **************************************************************** कनीना की आवाज। कनीना में शनिवार को पूरा दिन कोई वर्षा नहीं हुई। विगत कुछ दिनों से कनीना क्षेत्र में प्रतिदिन कुछ न कुछ वर्षा हो रही थी किंतु आज कुछ समय के लिए धूप खिली बाद में बादल छाए रहे परंतु पूरे दिन कोई वर्षा नहीं हुई। किसानों का मानना है कि वर्षा पर्याप्त हो चुकी है अब तो मौसम खुलना चाहिए ताकि बाजरे की फसल पैदावार अच्छी हो सके। मौसम विभाग की माने तो अभी मौसम इसी प्रकार का रहने की संभावना बनी हुई है। ऐसे में किसान आज कुछ मौसम खुलने से खुश नजर आए। रात्रि करीब आठ बजे फिर बूंदाबांदी हुई। रक्षा बंधन 9 अगस्त को - बाजार में अलग-अलग प्रकार की राखियों की भरमार *************************************************************** *****************************************************************/ **************************************************************** कनीना की आवाज। 9 अगस्त रक्षाबंधन के पर्व के दृष्टिगत बाजार विभिन्न प्रकार की राखियों से सज गए हैं। कई डिजाइन की राखियां बाजार में आई हुई हैं। राखियों को भेजने की परंपरा जारी है। बहने अपने भाइयों के लिए राखियां भेज रही है वहीं पर्व को मनाने के लिए विभिन्न गांव में तैयारियां चल रही हैं। विशेष का दुकानें सज गई हैं। गांव में राखी बेचने के लिए भी लोग आने लगे हैं। सबसे बड़ी विशेषता है कि त्योहार को लेकर के विभिन्न दुकानदार अपनी दुकानों के आगे राखियां रख लेते हैं और जमकर बेचते हैं। इस दिन जहां विगत वर्षों महिलाओं को पूरे हरियाणा की रोड़वेज बसों में मुफ्त यात्रा करने का प्रावधान है वही रक्षाबंधन को लेकर के अच्छा खासा उत्साह देखने को मिल रहा है। या तो बहने अपने भाइयों के घर जाती है और राखी बांधकर कर आती है या भाई अपने बहन के घर राखी बंधवाने जाते हैं। यह पर्व सभी पर्वों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है और भाई बहन के प्यार को इंगित करता है। अब तो भारी भरकम राखियों की बचाए हल्की राखियां पसंद की जाति और आधुनिक समय विज्ञान की उन्नति के साथ-साथ विभिन्न प्रकार की राखियां बाजार में आ गई है। जिनको लेकर के बच्चे, बूढ़े और युवा सभी में उत्साह होता है। म्यूजिकल राखियां भी बाजार में आई हुई है। एक वक्त था जब डाकघरों के माध्यम से राखियां गंतव्य स्थान तक जाती थी। डाकघर में गर्मी दिनभर लगे रहते थे किंतु अब राखी भेजने का रिवाज कम हो गया है। कोरियर से भी राखियां भेजी जाती हैं। इस संबंध में दुकानदारों का कहना है कि राखियां आनलाइन भेजे जाने के कारण उनकी खरीददारी कम हो रही है। इस संबंध में दुकानदारों एवं पोस्टमैन के विचार निम्र हैं- एक वक्त था जब 20 दिनों से लेकर एक माह तक केवल राखियों के पैकेट घर घर पहुंचाए जाते थे। ये राखियां तीन दिनों से दस दिनों के बीच गंतव्य स्थान पर पहुंचती थी। पोस्टमैन का काम उन दिनों सबसे अधिक होता था। इसके बाद कुरियर सेवा की ओर रुझान बढ़ा। इसके बाद तो डाकघरों में राखी कम से कम आने लगी। समय बदला और डाकघरों की बजाय लोग राखी न भेजकर रक्षा बंधन पर्व पर या तो भाई बहन के पास या बहन भाई के पास पहुंचती है। इस प्रकार रक्षा पर्व भी हाइटेक हो गया है। --राजेंद्र सिंह पोस्टमैन अब तो आनलाइन राखी भेजे जाने एवं गांवों में राखियां बेचने वाले आने लगे हैं जिससे उनका काम कम होता जा रहा है। चाहे कितनी भी बेहतर राखियां दे दे किंतु बेचने वालों की राखियों की मांग अधिक होती है। उनका कारोबार कम होता जा रहा है। ---रोहित कुमार दुकानदार अब तो आनलाइन राखियों का जमाना आ गया है। ग्रामीण क्षेत्रों में राखियां अब भी दुकानों से सीधे खरीदकर बांधी जाती हैं किंतु बड़े शहरों में उल्टा राखी आनलाइन खरीदकर आनलाइन ही गंतव्य स्थान पर भेज दी जाती हैं। राखी के प्रति आधुनिक युग में बहन एवं भई एक दूसरे के पास जाने लगे हैं। --योगेश कुमार दुकानदार फोटो कैप्शन 01: बाजार में राखियां खरीदती महिलाएं

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